भारत-सऊदी अरब संबंध
प्रिलिम्स के लिये:प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी, सदा तनसीक सैन्य अभ्यास, द्विपक्षीय हज समझौता मेन्स के लिये:भारत की विदेश नीति और रणनीतिक साझेदारियाँ, भारत-सऊदी अरब संबंध, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के भीतर भारत के रणनीतिक गठबंधन |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब की राजकीय यात्रा की और भारत-सऊदी अरब सामरिक साझेदारी परिषद (SPC) की दूसरी बैठक की अध्यक्षता की।
भारत-सऊदी अरब द्विपक्षीय सहभागिता के प्रमुख परिणाम क्या हैं?
- मंत्रिस्तरीय नई समितियाँ: SPC की दूसरी बैठक में रक्षा सहयोग और पर्यटन एवं सांस्कृतिक सहयोग पर दो नई मंत्रिस्तरीय समितियों का गठन किया गया।
- SPC अब चार प्रमुख समितियों के माध्यम से कार्य करती है: राजनीतिक, कौंसलीय और सुरक्षा सहयोग; रक्षा सहयोग; अर्थव्यवस्था, ऊर्जा, निवेश एवं प्रौद्योगिकी; तथा पर्यटन व् सांस्कृतिक सहयोग।
- उच्च स्तरीय निवेश कार्यबल (HLTF): सऊदी अरब ने भारत में 100 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की वचनबद्धता व्यक्त की है, जिसमें ऊर्जा, बुनियादी ढाँचा, प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- HLTF ने भारत में दो रिफाइनरियों की स्थापना में सहयोग प्रदान किया है तथा कराधान में प्रगति हासिल की है, जिससे भविष्य में निवेश सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन/समझौते:
- अंतरिक्ष सहयोग: शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अंतरिक्ष गतिविधियों में सहयोग के लिये सऊदी अंतरिक्ष एजेंसी और भारतीय अंतरिक्ष विभाग के बीच समझौता ज्ञापन।
- स्वास्थ्य सहयोग: सऊदी अरब ने स्वास्थ्य सेवा में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये भारत के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
- डोपिंग रोधी सहयोग: सऊदी अरब डोपिंग रोधी समिति (SAADC) और राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA) (भारत) के बीच डोपिंग रोधी शिक्षा और निवारण पर समझौता ज्ञापन ।
- डाक सहयोग: सऊदी पोस्ट कॉर्पोरेशन (SPL) और डाक विभाग, भारत के बीच आवक सतह पार्सल सेवाओं में सहयोग पर समझौता हुआ।
विगत वर्षों में भारत-सऊदी अरब संबंधों में किस प्रकार विकास हुआ है?
- राजनयिक और रणनीतिक संबंध: भारत और सऊदी अरब ने वर्ष 1947 में राजनयिक संबंध स्थापित किये, जिनमें दिल्ली घोषणा (2006) और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा के दौरान रियाद घोषणा (2010) शामिल हैं, जिससे संबंधों का रणनीतिक साझेदारी में विस्तार हुआ।
- वर्ष 2019 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरी यात्रा के साथ SPC का गठन हुआ।
- आर्थिक सहयोग:
- व्यापार: भारत, सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है जबकि सऊदी अरब, भारत का पाँचवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
- वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 42.98 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा है जिसमें भारतीय निर्यात 11.56 बिलियन अमेरिकी डॉलर और आयात 31.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
- निवेश: सऊदी अरब में भारतीय निवेश लगभग 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है जो आईटी, दूरसंचार, फार्मा और निर्माण जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है।
- भारत में सऊदी अरब का निवेश 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है जिसके तहत सार्वजनिक निवेश कोष (PIF) शामिल है।
- सऊदी अरब वर्ष 2000-2024 तक 3.22 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संचयी FDI राशि के साथ भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) इक्विटी प्रवाह में 20वें स्थान पर है।
- व्यापार: भारत, सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है जबकि सऊदी अरब, भारत का पाँचवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
- ऊर्जा साझेदारी: वित्त वर्ष 2023-24 में सऊदी अरब, भारत का कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत (भारत के कुल कच्चे तेल आयात का 14.3%) था।
- यह तीसरा सबसे बड़ा तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) आपूर्तिकर्त्ता (कुल LPG आयात में 18.2%) भी था।
- रक्षा साझेदारी: पहला भारत-सऊदी संयुक्त भूमि अभ्यास (EX-SADA TANSEEQ) वर्ष 2024 में भारत में आयोजित किया गया था और द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास 'अल मोहद अल हिंदी' भी आयोजित किया गया।
- सांस्कृतिक संबंध: भारत और सऊदी अरब ने वर्ष 2024 के द्विपक्षीय हज समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत लगभग 1.75 लाख भारतीय तीर्थयात्रियों का कोटा आवंटित किया गया। यह समझौता भारत की उस पहल के भी अनुरूप है, जिसमें बिना मेहरम के महिला तीर्थयात्रियों को अनुमति दिया जाना शामिल है।
- वर्ष 2017 में खेल गतिविधि के रूप में मान्यता मिलने के बाद सऊदी अरब में योग को लोकप्रियता मिली। वर्ष 2018 में सुश्री नौफ अल-मारवाई को सऊदी अरब में योग को बढ़ावा देने के लिये पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
- सऊदी अरब में 2.6 मिलियन की संख्या वाला भारतीय समुदाय, सऊदी अरब में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है।
भारत-सऊदी अरब संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- श्रम कल्याण संबंधी चिंताएँ: सऊदी अरब में भारतीय ब्लू-कॉलर श्रमिकों के बीच खराब कार्य स्थितियाँ, समय पर वेतन न मिलना और शोषण संबंधी रिपोर्टें आम हैं।
- कफाला प्रणाली (जिसके तहत श्रमिकों और नियोक्ता के बीच विधिक समझौता होता है) जैसे प्रतिबंधात्मक श्रम कानून, श्रमिकों की गतिशीलता और अधिकारों को सीमित करते हैं।
- व्यापार घाटा में असंतुलन: कच्चे तेल के आयात के कारण वर्ष 2023-24 में सऊदी अरब के साथ भारत का व्यापार घाटा लगभग 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। जबकि सऊदी अर्थव्यवस्था विज़न 2030 के तहत विविधीकरण कर रही है, यह अभी भी तेल पर निर्भर है।
- सऊदी तेल पर भारत की निर्भरता से इनके बीच व्यापार असंतुलन बना हुआ है।
- सऊदी अरब की विदेश नीति और क्षेत्रीय अस्थिरता: यमन में सऊदी अरब की सैन्य कार्रवाई, कतर की नाकाबंदी एवं सीरिया में इसकी संलिप्तता से खाड़ी क्षेत्र में अस्थिरता होने से इस क्षेत्र में भारत के सुरक्षा और आर्थिक हित प्रभावित होते हैं।
- सऊदी-ईरान प्रतिद्वंद्विता विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय सहयोग के क्षेत्र में भारत के लिये कूटनीतिक चुनौती उत्पन्न करती है जिसके दोनों देशों के साथ रणनीतिक संबंध हैं।
- चीन और पाकिस्तान के साथ मज़बूत संबंधों की ओर सऊदी अरब का रुख भारत के अमेरिका के साथ पारंपरिक गठबंधन को चुनौती देता है, जिससे सऊदी अरब और उसके व्यापक क्षेत्रीय गठबंधनों के साथ अपने सामरिक संबंधों को संतुलित करने के भारत के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
भारत और सऊदी अरब के बीच संबंधों को मज़बूत करने के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?
- हरित ऊर्जा सहयोग: सऊदी अरब के विजन 2030 में विविधीकरण का लक्ष्य रखा गया है, तथा सौर और हरित हाइड्रोजन में भारत की विशेषज्ञता संयुक्त नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये द्वार खोलती है।
- सऊदी अरब के विशाल रेगिस्तानों में सौर ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के माध्यम से दोनों देश विश्व का सबसे बड़ा सौर क्षेत्र बना सकते हैं, जिससे सतत् ऊर्जा और वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार साझेदारी: भारत की IT और AI विशेषज्ञता, सऊदी अरब के तकनीकी नवाचार अभियान के साथ मिलकर, अगली पीढ़ी की वित्तीय प्रणालियों और AI समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए "डिजिटल सिल्क रोड" के सह-विकास के लिये एक अनूठा अवसर प्रदान करती है।
- रियाद या बंगलूरू में एक संयुक्त AI और फिनटेक इनोवेशन लैब निवेश को बढ़ावा दे सकती है और मध्य पूर्व और एशिया के लिये अत्याधुनिक समाधान तैयार कर सकती है।
- सामरिक साझेदारी को बढ़ावा देना: IMEC (भारत-मध्य पूर्व आर्थिक गलियारा) व्यापार, ऊर्जा और सेवाओं में निर्बाध संपर्क के लिये एक सामरिक अवसर प्रदान करता है, जो इस क्षेत्र को एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति में बदल देता है।
- अत्याधुनिक व्यापार और शिपिंग केंद्रों के विकास से वैश्विक व्यापार नेटवर्क में दोनों देशों की स्थिति मज़बूत होगी।
- GCC मंच का उपयोग: चूँकि सऊदी अरब अधिक मुखर विदेश नीति की ओर अग्रसर है, इसलिये GCC (खाड़ी सहयोग परिषद) के भीतर विशेष रूप से ईरान और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ विकसित संबंधों के संदर्भ में भारत के राजनयिक चैनल क्षेत्रीय स्थिरता और शांति प्रयासों पर सहयोग को सुविधाजनक बनाने में मदद कर सकते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत-सऊदी अरब सामरिक साझेदारी के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। यह विकसित हो रहा संबंध भारत की विदेश नीति के उद्देश्यों के साथ किस प्रकार संरेखित है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016) (a) ईरान उत्तर: (a) व्याख्या:
अत: विकल्प (a) सही है। मेन्सप्रश्न. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017) |
छात्र वीज़ा मानदंडों में सख्ती
प्रिलिम्न्स के लिये:वीज़ा, धन प्रेषण, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, गिफ्ट सिटी, वियना अभिसमय मेन्स के लिये:घरेलू शिक्षा प्रणालियों पर विदेशी शिक्षा नीतियों का प्रभाव, भारत की सॉफ्ट पावर और वैश्विक प्रभाव |
स्रोत:द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारतीय छात्रों को अमेरिका में वीज़ा जारी करने में तीव्र गिरावट और वीज़ा निरस्तीकरण में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है, साथ ही ऑस्ट्रेलिया में वीज़ा मानदंड कड़े हो रहे हैं, जिससे शैक्षणिक योजनाएँ और कॅरियर आकांक्षाएँ बाधित हो रही हैं।
भारतीय छात्र वीज़ा के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?
- वीज़ा जारी करने में तीव्र गिरावट: फरवरी 2025 में, अमेरिका ने फरवरी 2024 की तुलना में भारतीय नागरिकों को जारी किये गए F-1 छात्र वीज़ा में 30% की गिरावट (590 से 411 वीज़ा) दर्ज की।
- यह गिरावट वैश्विक औसत 4.75% की गिरावट से अनुपातहीन रूप से अधिक है, तथा चीन (5.2%), जापान (9.6%) और वियतनाम (7.4%) जैसे अन्य शीर्ष देशों की गिरावट की तुलना में काफी अधिक है।
- भारतीय छात्रों के लिये वीज़ा प्रतीक्षा अवधि भी काफी लंबी है, दिल्ली में औसतन 58 दिन, जबकि पूर्वी एशियाई राजधानियों में यह अवधि केवल 2-15 दिन है।
- वीज़ा समाप्ति और निरस्तीकरण में वृद्धि: अमेरिकन इमिग्रेशन लॉयर्स एसोसिएशन (AILA) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2025 की शुरुआत में जिन अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के अमेरिकी वीज़ा निरस्त कर दिये गए, उनमें से 50% भारतीय नागरिक थे।
- ये प्रतिसंहरण (वापस लिया जाना) मुख्य रूप से अमेरिकी विदेश विभाग के AI-आधारित "कैच एंड रिवोक" कार्यक्रम द्वारा संचालित थे, जो सोशल मीडिया और पुलिस डेटाबेस की निगरानी करता है, जिससे निष्पक्षता, पारदर्शिता और कूटनीतिक नतीजों को लेकर चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
- विधिक और वित्तीय कठिनाई: प्रतिसंहरण का सामना करने वाले छात्रों को अपनी SEVIS (छात्र और विनिमय आगंतुक सूचना प्रणाली) प्रस्थिति पुनः प्राप्त करने हेतु जटिल विधिक प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है।
- अनेक व्यक्तियों ने मुकदमा दायर किया है, लेकिन इसकी लागत बहुत अधिक है, तथा इस विलंब के कारण छात्रों के शैक्षणिक सत्र, रोज़गार और छात्रवृत्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- लक्षित वीज़ा जाँच: विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार ऑस्ट्रेलिया ने भारत के पाँच राज्यों- पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार के आवेदकों के लिये वीज़ा जाँच बढ़ा दी है।
- इससे इन क्षेत्रों से आने वाले भारतीय आवेदकों के विरुद्ध प्रोफाइलिंग और अनुचित सामान्यीकरण की आशंकाएँ उत्पन्न हो गई हैं।
भारतीय छात्र वीज़ा मुद्दों के संभावित निहितार्थ क्या हैं?
- भारत की सॉफ्ट पावर पर नकारात्मक प्रभाव: चीन सहित भारत, अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के दो सबसे बड़े स्रोतों में से एक है, लेकिन सीमित अमेरिकी वीज़ा और ऑस्ट्रेलिया में सख्त मानदंडों के कारण इसे बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
- इन व्यवधानों से AI, जलवायु विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भारत की सॉफ्ट पावर और वैश्विक प्रभुता प्रभावित होती है।
- भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के लिये जोखिम: भारत की 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है, इसलिये कौशल विकास के लिये वैश्विक शिक्षा तक पहुँच महत्त्वपूर्ण है। वीज़ा प्रतिबंध और प्रतिसंहरण से अवसरों में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे दीर्घकालिक उत्पादकता और नवाचार प्रभावित होते हैं।
- विप्रेषण में गिरावट: वर्ष 2024 में, भारत को रिकॉर्ड 129.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विप्रेषण प्राप्त हुआ, जो आंशिक रूप से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में रह रहे भारतीय छात्रों द्वारा प्राप्त हुआ था।
- सख्त वीज़ा मानदंडों से छात्रों का प्रवास और धन प्रेषण कम हो सकता है, जिसका भारत की अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव पड़ सकता है।
- SEVIS रिमूवल: SEVIS रिमूवल के तत्काल और गंभीर परिणाम होते हैं, जैसे कि रोज़गार की पात्रता समाप्त हो जाना और आश्रितों जैसे कि जीवनसाथी और बच्चों के लिये कठिनाइयाँ, जबकि इसके विपरीत वीज़ा रेवोकेशन के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में पुनः प्रवेश पर प्रतिबंध लग जाता है, लेकिन इससे छात्र की कानूनी स्थिति तत्काल समाप्त नहीं होती।
- ऋण या बचत पर निर्भर रहने वाले मध्यम वर्ग के उम्मीदवार सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, तथा उन्हें आर्थिक और भावनात्मक दोनों तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- मानव पूंजी का निष्कासन और पुनर्निर्देशन: पारंपरिक गंतव्यों (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया) से हटकर नॉर्डिक देशों और दक्षिण कोरिया जैसे उभरते केंद्रों की ओर जाने से भारत के वैश्विक प्रतिभा प्रवाह की दिशा बदल रही है।
- यह पुनर्निर्देशन नेटवर्क निर्माण, प्रवासी प्रभाव और रणनीतिक उद्योग प्लेसमेंट, विशेष रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM), स्वास्थ्य सेवा और अनुसंधान, को प्रभावित करता है।
- घरेलू उच्च शिक्षा अवसंरचना पर दबाव: जैसे-जैसे अंतर्राष्ट्रीय अवसर कम होते जा रहे हैं, भारत में गुणवत्तापूर्ण संस्थानों की मांग तेज़ी से बढ़ने की उम्मीद है।
- इससे पहले से ही सीमित टियर-I विश्वविद्यालयों (IIT, IIM, AIIMS) पर दबाव बढ़ सकता है और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) को राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत क्षमता निर्माण एवं मान्यता सुधारों को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिये मज़बूर होना पड़ सकता है।
कौन-सी रणनीतियाँ भारतीय छात्र वीज़ा से संबंधित चुनौतियों को कम कर सकती हैं?
- राजनयिक साधनों का लाभ उठाना: वर्ष 1963 का वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस भारतीय मिशनों को विदेशों में भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा करने का अधिकार प्रदान करता है। इस कानूनी संभावना का उपयोग करके उन छात्रों की मदद करने के लिये और अधिक कार्य किया जाना चाहिये जिन्हें वीज़ा प्राप्त करने में परेशानी हो रही है।
- उत्प्रवास अधिनियम, 1983 के तहत छात्र वीज़ा परामर्शदाताओं को लाने के लिये इसे प्रभावी बनाया जाए तथा झूठे वादों या जाली दस्तावेज़ो के लिये दंड लगाया जाए।
- आपातकालीन छात्र सुरक्षा तंत्र: वीज़ा निरस्तीकरण, ट्यूशन हानि या जबरन निर्वासन का सामना करने वाले छात्रों की सहायता के लिये विदेश मंत्रालय के तहत एक विदेशी शिक्षा संरक्षण कोष (OEPF) की स्थापना की जाए।
- घरेलू उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना: वर्ष 2022-23 के केंद्रीय बजट के अनुसार, भारत द्वारा शीर्ष-स्तरीय विदेशी विश्वविद्यालयों को परिसर स्थापित करने या संयुक्त-डिग्री कार्यक्रम प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये, जैसे GIFT (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी) सिटी में विश्व स्तरीय संस्थानों को संचालित करने की अनुमति दी गई।
- इसके साथ ही NEP 2020 के तहत भारतीय विश्वविद्यालयों को दोहरे डिग्री कार्यक्रम एवं अंतर्राष्ट्रीय संकाय विनिमय जैसे सुधारों को अपनाना चाहिये तथा विश्व स्तरीय शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करने के लिये बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान विश्वविद्यालय (MERUs) की स्थापना करनी चाहिये।
- छात्रों के लिये डिजिटल रजिस्ट्री: भारत को रियल टाइम वीज़ा ट्रैकिंग एवं दूतावास सहायता के क्रम में एक स्वैच्छिक डिजिटल छात्र रजिस्ट्री बनानी चाहिये।
- भारतीय दूतावास, अमेरिका के "कैच एंड रिवोक" कार्यक्रम के समान एक AI-आधारित प्रणाली विकसित कर सकते हैं ताकि वीज़ा जोखिमों के बारे में प्रारंभिक चेतावनी के लिये छात्रों के डिजिटल प्रोफाइल तथा सोशल मीडिया पर नजर रखी जा सके।
- शिक्षा परामर्शदाताओं का विनियमन: भारत को शिक्षा परामर्शदाताओं पर लेखा परीक्षा के साथ धोखाधड़ी के लिये दंड लागू करके विनियमन को कड़ा करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि छात्रों को गुमराह न किया जाए।
- शिक्षा मंत्रालय को जागरूकता अभियान शुरू करने के साथ घोटालों को कम करने के लिये प्रतिष्ठित परामर्शदाताओं की सत्यापित सूची उपलब्ध करानी चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारतीय छात्रों के लिये वीज़ा मानदंडों को सख्त करने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। इससे संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिये भारत सरकार क्या उपाय कर सकती है? |