नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 23 Mar, 2021
  • 40 min read
शासन व्यवस्था

डिप्थीरिया के मामलों में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए अध्ययन में पाया गया है कि डिप्थीरिया जो कि अपेक्षाकृत आसानी से रोका जा सकने वाला संक्रमण है, एक बड़ा वैश्विक खतरा बन सकता है।

प्रमुख बिंदु:

आँकड़े:

  • वैश्विक वृद्धि: विश्व स्तर पर डिप्थीरिया के मामलों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। वर्ष 2018 में 16,651 मामले रिपोर्ट किये गए थे, जो कि वर्ष 1996-2017 (8,105 मामले) के दौरान दर्ज मामलों के वार्षिक औसत के दोगुने से अधिक हैं।
  • भारतीय परिदृश्य: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में वर्ष 2015 के दौरान 2,365 मामले दर्ज किये गए। हालाँकि वर्ष 2016, 2017 और 2018 में यह संख्या क्रमिक रूप से बढ़कर 3,380, 5,293 और 8,788 हो गई।
    • WHO के अनुसार, भारत वर्ष 2017 में वैश्विक स्तर पर डिप्थीरिया के कुल मामलों के 60% मामलों के लिये ज़िम्मेदार था।
    • वर्ष 2018 में दिल्ली में डिप्थीरिया के कारण 50 से अधिक बच्चों की मौत हो गई।

कारण:

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR): डिप्थीरिया ने एंटीबायोटिक दवाओं के कई वर्गों के लिये प्रतिरोधक क्षमता विकसित करनी शुरू कर दी है।
    • किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी आदि) द्वारा ऐसी रोगाणुरोधी दवाओं (एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंट) के लिये प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना, जिनका उपयोग  इसके संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, AMR कहलाता है।
  • कोविड-19 का प्रभाव: कोविड-19 ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में टीकाकरण कार्यक्रम को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
    • हाल ही में ‘बच्चों पर कोविड-19 के प्रभाव को लेकर जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट’ के अनुसार, टीकाकरण अभियानों के निलंबन से विभिन्न बीमारियों को खत्म करने के लिये किये जा रहे दशकों पुराने प्रयासों में कमी आएगी।
  • बीमारी के संबंध में गलतफहमी: माता-पिता अक्सर इस बीमारी को सामान्य खाँसी और सर्दी समझ लेते हैं तथा चिकित्सक से दवा लेते हैं। चूँकि बच्चे को डिप्थीरिया की दवा नहीं दी जाती है, अतः समय बीतने के साथ बैक्टीरिया से निकलने वाला विष गुर्दे, हृदय और तंत्रिका तंत्र की कार्यशैली में बाधा उत्पन्न करने लगता है।
  • आमतौर पर देखा गया है कि डिप्थीरिया अथवा अन्य संक्रामक रोगों की वैक्सीन को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति पाई जाती है, जिससे टीकाकरण संबंधी प्रक्रिया में बाधा आने के साथ-साथ इन रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की तीव्रता में भी कमी आती है। वर्तमान में कोविड-19 वैक्सीन के संबंध में भी ऐसी धारणा देखने को मिली है।

डिप्थीरिया:

डिप्थीरिया मुख्य रूप से कोरिनेबैक्टेरियम डिप्थीरिया (Corynebacterium Diphtheriae) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।

लक्षण:

  • सामान्य जुकाम, बुखार, ठंड लगना, गले में सूजन ग्रंथि, गले में खराश, त्वचा नीली होना आदि।

प्रभाव:

  • इसका प्राथमिक संक्रमण गले और ऊपरी श्वसन मार्ग में होता है। यह अन्य अंगों को प्रभावित करने वाले टॉक्सिन का उत्पादन करता है।
  • डिप्थीरिया गले और कभी-कभी टॉन्सिल को भी प्रभावित करता है।
  • इसका एक अन्य प्रकार त्वचा पर अल्सर का कारण बनता है।

संक्रमण:

  • यह मुख्य रूप से खाँसी और छींक या संक्रमित व्यक्ति के साथ निकट संपर्क के माध्यम से फैलता है।

संक्रमित जनसंख्या:

  • डिप्थीरिया विशेष रूप से 1 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रभावित करता है।
    • पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में डिप्थीरिया के मामलों की घटना प्राथमिक डिप्थीरिया टीकाकरण के कम कवरेज को दर्शाती है

मृत्यु दर:

  • केवल 5-10% मामलों में डिप्थीरिया मृत्यु का कारण बन सकता है।

उपचार:

  • टॉक्सिन के प्रभावों को बेअसर करने के लिये ‘डिप्थीरिया एंटीटॉक्सिन’, साथ ही बैक्टीरिया को मारने के लिये ‘एंटीबायोटिक्स’ का प्रयोग किया जाता है।
  • डिप्थीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं और टीकों के उपयोग से रोका जा सकता है।

टीकाकरण:

  • डिप्थीरिया का टीका भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत सबसे पुराने टीकों में से एक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आँकड़ों के अनुसार, डिप्थीरिया वैक्सीन का कवरेज 78.4% है।
  • वर्ष 1978 में भारत ने टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम शुरू किया।
    • इस कार्यक्रम के अंतर्गत पहले तीन टीके BCG (टीबी के खिलाफ), DPT (डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनेस) और हैजा के थे।
  • वर्ष 1985 में इस कार्यक्रम को ‘सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम’ (Universal Immunisation Programme- UIP) में बदल दिया गया। DPT का टीका अभी भी सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम का हिस्सा बना हुआ है, इस कार्यक्रम में अब 12 टीके शामिल हैं।
  • अब इसे एक ‘पेंटावैलेंट वैक्सीन’ (डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टिटनेस, हेपेटाइटिस बी और हीमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी के खिलाफ टीका) के रूप में शामिल किया गया है ।
    • इसे उन आठ वैक्सीन खुराक के संयोजन में भी शामिल किया गया है जो जीवन के प्रथम वर्ष में पूर्ण टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लगाई जाती हैं।
  • हाल ही में कोविड-19 महामारी के दौरान नियमित टीकाकरण से चूक गए बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कवर करने के लिये सघन मिशन इन्द्रधनुष 3.0 (Intensified Mission Indradhanush- IMI 3.0) योजना शुरू की गई है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

ग्राम उजाला कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार द्वारा ग्राम उजाला कार्यक्रम (Gram UJALA Programme) की शुरुआत की गई है। यह सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है जिसके तहत कार्यशील पुराने तापदीप्त बल्बों के बदले मात्र 10 रुपए में (विश्व में सबसे सस्ते) ग्रामीण क्षेत्रों में एलईडी बल्बों का वितरण किया जाएगा। 

प्रमुख बिंदु:

  • कवरेज एरिया: इस कार्यक्रम का प्रथम चरण बिहार के आरा ज़िले से शुरू किया गया है जिसमें 5 ज़िलों- आरा (बिहार), वाराणसी (उत्तर प्रदेश), विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश), नागपुर (महाराष्ट्र), और पश्चिमी गुजरात के गांँवों में 15 मिलियन एलईडी बल्बों का वितरण किया जाएगा।
    • प्रकाश उत्सर्जक डायोड (Light-Emitting Diode- LED) वर्तमान में सबसे अधिक ऊर्जा कुशल और तेज़ी से विकास करने वाली प्रकाश प्रौद्योगिकियों में से एक है।

कार्यान्वयन:

  • इस कार्यक्रम के तहत ग्रामीण उपभोक्ताओं को 3 साल की वारंटी के साथ 7 वाट और 12 वाट के LED बल्बों का वितरण किया जाएगा। 
    • प्रत्येक उपभोक्ता अधिकतम पांँच एलईडी बल्ब प्राप्त कर सकता है। 
    •  कार्यक्रम में शामिल ग्रामीण परिवारों को अपने विद्युत उपयोग का हिसाब रखने हेतु घर में मीटर भी लगवाना होगा। 
  • उजाला कार्यक्रम के तहत कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज़ लिमिटेड (Convergence  Energy Services Limited- CESL) द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाले एलईडी बल्बों का वितरण किया जाएगा।
    • EESL, विद्युत मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (Public Sector Undertaking- PSU)- एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज़ लिमिटेड Energy Efficiency Services Limited- EESL) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। 

वित्तपोषण तंत्र:

  • इस कार्यक्रम का वित्तपोषण पूरी तरह से कार्बन क्रेडिट द्वारा किया जाएगा तथा यह भारत में इस तरह का पहला कार्यक्रम होगा।
    • कार्बन क्रेडिट (या "कार्बन ऑफसेट") उन  परियोजनाओं या गतिविधियों हेतु प्रदान किया जाना वाला प्रमाण पत्र है जो ग्रीनहाउस गैसों का कम उत्सर्जन करते हैं। 
    • परियोजना संचालनकर्त्ता, जैसे कि सौर और पवन ऊर्जा डेवलपर्स, या लुप्तप्राय वन के संरक्षकों द्वारा इन प्रमाण पत्रों को किसी भी व्यक्ति या कंपनी को बेचा जा सकता है ताकि भविष्य में परियोजनाओं का विस्तार करने हेतु अतिरिक्त राजस्व अर्जित किया जा सके।
    • जब कोई कार्बन ऑफसेट की खरीद करता है तो अन्य द्वारा कार्बन की कमी या उन्मूलन हेतु फंडिंग की जाती है।
  • इसके अलावा कार्बन क्रेडिट प्रलेखन/ डॉक्यूमेंटेशन को शाइन कार्यक्रम (Shine Program ) की गतिविधियों में शामिल करने हेतु संयुक्त राष्ट्र ( United Nations- UN) के मान्यता प्राप्त सत्यापनकर्त्ताओं के पास भेजा जाएगा।
    • शाइन कार्यक्रम की गतिविधियों के तहत स्वैच्छिक कार्बन मानक से संबंधित सत्यापन हेतु खरीदारों की ज़रूरतों के आधार पर एक विकल्प के साथ कार्बन क्रेडिटों प्राप्त किया जा सके ।
    • वहीं बाज़ार के साथ प्रारंभिक विचार-विमर्श पर आधारित एक खुली प्रक्रिया के माध्यम से भी कार्बन क्रेडिट खरीदारों को तैयार किया जाएगा।

महत्त्व:

  • पेरिस जलवायु समझौते (Paris Climate Accord) के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों को पूरा करने में मदद करना।  
    • यदि भारत में सभी 300 मिलियन लाइटों को बदल दिया जाए तो बिजली की पीक डिमांड में 22,743 मेगावाट की कमी आएगी और प्रतिवर्ष लगभग 40,743 मिलियन kWh ऊर्जा की बचत होगी। साथ ही कार्बन डाइऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन में 37 मिलियन टन की कमी आएगी।
  •  वैश्विक कार्बन व्यापार में अतिरिक्त कार्बन क्रेडिट के माध्यम से भारत की स्थिति में सुधार होगा।
  • 24 घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा।
    • भारत के प्रधानमंत्री ने वर्ष 2015 में  स्वतंत्रता दिवस पर दिये गए अपने भाषण में वादा किया था कि उन सभी गाँवों में जहाँ बिजली नहीं है, 1,000 दिनों के भीतर बिजली की पहुंँच सुनिश्चित की जाएगी। 
    • सरकार द्वारा दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना की घोषणा की गई  जिसका उद्देश्य बुनियादी बिजली संरचना (Basic Power Infrastructure) और कनेक्टिविटी (Connectivity) स्थापित करना था।
  • यह घरेलू एलईडी बाज़ारों को विकसित करने में सहायक होगा। 
  • सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) का लाभ प्राप्त करने में सहायक होगा।
    • विशेष रूप से SDG-7 की स्थिति प्राप्त करने में सहायक होगा जो कि सस्ती, विश्वसनीय और आधुनिक ऊर्जा सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंँच सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।

 LED बल्बों के उपयोग को प्रोत्साहित करने हेतु अन्य योजनाएंँ:

स्रोत: पी.आई.बी


भारतीय इतिहास

अहोम साम्राज्य के सेनापति लाचित बोड़फुकन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने अहोम साम्राज्य (Ahom Kingdom) के सेनापति लाचित बोड़फुकन (Lachit Borphukan) को भारत की "आत्मनिर्भर सेना का प्रतीक" कहा।

प्रमुख बिंदु

लाचित बोड़फुकन:

  • लाचित बोड़फुकन का जन्म 24 नवंबर, 1622 को हुआ था। इन्होंने वर्ष 1671 में हुए सराईघाट के युद्ध (Battle of Saraighat) में अपनी सेना को प्रभावी नेतृत्व प्रदान किया, जिससे मुगल सेना का असम पर कब्ज़ा करने का प्रयास विफल हो गया था।
  • इनसे भारतीय नौसैनिक शक्ति को मज़बूत करने, अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने और नौसेना की रणनीति से जुड़े बुनियादी ढाँचे के निर्माण की प्रेरणा ली गई।
  • राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को लाचित बोड़फुकन स्वर्ण पदक (The Lachit Borphukan Gold Medal) प्रदान किया जाता है।
    • इस पदक को वर्ष 1999 में रक्षा कर्मियों हेतु बोड़फुकन की वीरता से प्रेरणा लेने और उनके बलिदान का अनुसरण करने के लिये स्थापित किया गया था।
  • 25 अप्रैल, 1672 को इनका निधन हो गया।

अहोम साम्राज्य:

संस्थापक: 

  • छोलुंग सुकफा (Chaolung Sukapha) 13वीं शताब्दी के अहोम साम्राज्य के संस्थापक थे, जिसने छह शताब्दियों तक असम पर शासन किया था। अहोम शासकों का इस भूमि पर नियंत्रण वर्ष 1826 की यांडाबू की संधि (Treaty of Yandaboo) होने तक था।

राजनीतिक व्यवस्था: 

  • अहोमों ने भुइयाँ (ज़मींदारों) की पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को कुचलकर एक नया राज्य बनाया।
  • अहोम राज्य बंधुआ मज़दूरों (Forced Labour) पर निर्भर था। राज्य के लिये इस प्रकार की मज़दूरी करने वालों को पाइक (Paik) कहा जाता था।

समाज:

  • अहोम समाज को कुल/खेल (Clan/Khel) में विभाजित किया गया था। एक कुल/खेल का सामान्यतः कई गाँवों पर नियंत्रित होता था।
  • अहोम साम्राज्य के लोग अपने स्वयं के आदिवासी देवताओं की पूजा करते थे, फिर भी उन्होंने हिंदू धर्म और असमिया भाषा को स्वीकार किया।
    • हालाँकि अहोम राजाओं ने हिंदू धर्म अपनाने के बाद अपनी पारंपरिक मान्यताओं को पूरी तरह से नहीं छोड़ा।
  • अहोम लोगों का स्थानीय लोगों के साथ विवाह के चलते उनमें असमिया संस्कृति को आत्मसात करने की प्रवृत्ति देखी गई।

कला और संस्कृति: 

  • अहोम राजाओं ने कवियों और विद्वानों को भूमि अनुदान दिया तथा रंगमंच को प्रोत्साहित किया।
  • संस्कृत के महत्त्वपूर्ण कृतियों का स्थानीय भाषा में अनुवाद किया गया।
  • बुरंजी (Buranjis) नामक ऐतिहासिक कृतियों को पहले अहोम भाषा में फिर असमिया भाषा में लिखा गया।

सैन्य रणनीति:

  • अहोम राजा राज्य की सेना का सर्वोच्च सेनापति भी होता था। युद्ध के समय सेना का नेतृत्व राजा स्वयं करता था और पाइक राज्य की मुख्य सेना थी।
    • पाइक दो प्रकार के होते थे- सेवारत और गैर-सेवारत। गैर-सेवारत पाइकों ने एक स्थायी मिलिशिया (Militia) का गठन किया, जिन्हें खेलदार (Kheldar- सैन्य आयोजक) द्वारा थोड़े ही समय में इकट्ठा किया जा सकता था।
  • अहोम सेना की पूरी टुकड़ी में पैदल सेना, नौसेना, तोपखाने, हाथी, घुड़सवार सेना और जासूस शामिल थे। युद्ध में इस्तेमाल किये जाने वाले मुख्य हथियारों में तलवार, भाला, बंदूक, तोप, धनुष और तीर शामिल थे।
  • अहोम राजा युद्ध अभियानों का नेतृत्व करने से पहले दुश्मनों की युद्ध रणनीतियों को जानने के लिये उनके शिविरों में जासूस भेजते थे।
  • अहोम सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध (Guerilla Fighting) में विशेषज्ञता प्राप्त थी। ये सैनिक दुश्मनों को अपने देश की सीमा में प्रवेश करने देते थे, फिर उनके संचार को बाधित कर उन पर सामने और पीछे से हमला कर देते थे।
  • कुछ महत्त्वपूर्ण किले: चमधारा, सराईघाट, सिमलागढ़, कलियाबार, कजली और पांडु।
  • उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी पर नाव का पुल (Boat Bridge) बनाने की तकनीक भी सीखी थी।
  • इन सबसे ऊपर अहोम राजाओं के लिये नागरिकों और सैनिकों के बीच आपसी समझ तथा रईसों के बीच एकता ने हमेशा मज़बूत हथियारों के रूप में काम किया।

सराईघाट की लड़ाई

  • सराईघाट का युद्ध (Battle of Saraighat) वर्ष 1671 में गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र (Brahmaputra) नदी के तट पर लड़ा गया था।
  • इसे एक नदी पर होने वाली सबसे बड़ी नौसैनिक लड़ाई के रूप में जाना जाता है, जिसमें मुगल सेना की हार और अहोम सेना की जीत हुई।

Tibet

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

स्वास्थ्य का अधिकार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री ने राजस्थान के ‘पब्लिक हेल्थ मॉडल’ के कार्यान्वयन की घोषणा की है, जिसमें ‘स्वास्थ्य के अधिकार’ के साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सुझाए गए निवारक, प्राथमिक एवं उपचारात्मक देखभाल के उपाय शामिल होंगे।

प्रमुख बिंदु

राजस्थान का ‘पब्लिक हेल्थ मॉडल’

  • राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य अवसंरचना को सुदृढ़ करने और सभी नागरिकों तक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित करने हेतु ‘मुख्यमंत्री स्वास्थ्य चिरंजीवी योजना’ की शुरुआत की गई है।
    • यह योजना राज्य में प्रत्येक परिवार को 5 लाख रुपए तक का वार्षिक चिकित्सा बीमा प्रदान करेगी।
  • भारतीय स्वास्थ्य प्रबंधन अनुसंधान संस्थान (IIHMR) ने मरीज़ों के अधिकारों के साथ-साथ सेवा प्रदाताओं के लिये राज्य में उपलब्ध संसाधनों के अनुसार मानकों की स्थापना की सिफारिश की है। 
    • केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (IPHS) को मौजूदा कार्यक्रमों के बदलते प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए संशोधित किया गया है।

भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (IPHS)

  • IPHS देश में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के वितरण की गुणवत्ता में सुधार के लिये परिकल्पित समान मानकों का एक समूह है।
  • IPHS संबंधी दस्तावेज़ों को मौजूदा कार्यक्रमों के बदलते प्रोटोकॉल और विशेष रूप से गैर-संचारी रोगों हेतु नए कार्यक्रमों की शुरुआत को ध्यान में रखते हुए संशोधित किया गया है।
  • इसमें राज्यों और क्षेत्रों की विविध आवश्यकताओं के अनुरूप लचीलापन लाया गया है।
  • IPHS दिशा-निर्देश, गुणवत्ता में निरंतर सुधार के लिये मुख्य चालक के रूप में और स्वास्थ्य सुविधाओं की कार्यात्मक स्थिति का आकलन करने हेतु बेंचमार्क के रूप में कार्य करते हैं।
  • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों को मज़बूत बनाने के लिये इन IPHS दिशा-निर्देशों को अपनाया।
  • स्वास्थ्य का अधिकार: अन्य अधिकारों के साथ स्वास्थ्य के अधिकार में स्वतंत्रता और इसे प्राप्त करने का हक दोनों शामिल हैं।
    • स्वतंत्रता में किसी को भी अपने स्वास्थ्य और शरीर (उदाहरण के लिये-यौन और प्रजनन अधिकारों) को नियंत्रित करना और हस्तक्षेप से मुक्त होना (उदाहरण के लिये यातना और गैर-सहमति चिकित्सा उपचार और प्रयोग से मुक्त) शामिल है।
    • तथा इसे प्राप्त करने के हक के अंतर्गत सभी को स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य स्तर का आनंद लेने का समान अवसर प्रदान करना शामिल है।

भारत में स्वास्थ्य के अधिकार से संबंधित प्रावधान:

  • अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय: भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा (1948) के अनुच्छेद-25 का हस्ताक्षरकर्त्ता है जो भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं के माध्यम से मनुष्यों को स्वास्थ्य कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है। 
  • मूल अधिकार: भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है। स्वास्थ्य का अधिकार गरिमायुक्त जीवन के अधिकार में निहित है।
  • राज्य नीति के निदेशक तत्त्व: अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 ने स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्यों का मार्गदर्शन किया है।
  • न्यायिक उद्घोषणा: पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति मामले (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्तव्य लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना और लोगों को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है।
    • परमानंद कटारा बनाम भारत संघ मामले (1989) में अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि हर डॉक्टर चाहे वह सरकारी अस्पताल में हो या फिर अन्य कहीं, को जीवन रक्षा के लिये उचित विशेषज्ञता के साथ अपनी सेवाएँ देना उसका पेशेवर दायित्व है।

भारत के लिये स्वास्थ्य के अधिकार का महत्त्व:

  • स्वास्थ्य सेवा आधारित अधिकार: लोग स्वास्थ्य के अधिकार के हकदार हैं और सरकार द्वारा इस दिशा में कदम उठाना उसका उत्तरदायित्त्व  है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं तक व्यापक पहुँच: यह सभी को सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है और सुनिश्चित करता है कि सेवाओं की गुणवत्ता उन लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये पर्याप्त है,  जो उन्हें प्राप्त करते हैं।
  • व्यय कम करना: लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय करने के वित्तीय परिणामों से बचाता है और उन्हें गरीबी में धकेलने जैसे जोखिम को कम करता है।

चुनौतियाँ:

  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में कमी: देश में मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का दायरा सीमित है।
    • यहाँ तक ​​कि एक अच्छी तरह से कार्यरत सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी केवल गर्भावस्था देखभाल, सीमित चाइल्ड केयर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों से संबंधित कुछ सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • अपर्याप्त धन: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य निधि पर व्यय लगातार कम रहा है (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.3%)।
    • OECD के अनुसार, भारत का कुल ‘आउट-ऑफ-पॉकेट’ खर्च जीडीपी का लगभग 2.3% है

आगे की राह:

  • अधिक धन आवंटित करना: राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में की गई परिकल्पना के अनुसार, स्वास्थ्य पर सार्वजनिक वित्त को जीडीपी के कम-से-कम 2.5% तक बढ़ाया जाना चाहिये।
  • इस संबंध में स्वास्थ्य के अधिकार को शामिल करने वाला एक व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून संसद द्वारा पारित किया जा सकता है।
  • एक नोडल स्वास्थ्य एजेंसी का निर्माण: रोग निगरानी संबंधी कार्यों को करने के लिये एक नामित और स्वायत्त एजेंसी बनाने की आवश्यकता है, जो प्रमुख गैर-स्वास्थ्य संबंधी विभागों की नीतियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव की जानकारी एकत्र करे, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आँकड़ों का रखरखाव करे ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य नियमों का प्रवर्तन और इससे संबंधित सूचनाओं का प्रसार जनता तक हो।

स्रोत- द हिंदू


सामाजिक न्याय

वैश्विक जल संकट : यूनिसेफ

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में हर पाँच में से एक बच्चा उच्च या अत्यंत उच्च जल भेद्यता वाले क्षेत्रों में रहता है।

  • यह रिपोर्ट  विश्व जल दिवस (22 मार्च) से पहले जारी की गई थी।

प्रमुख बिंदु 

रिपोर्ट के विषय में 

  • यह नई रिपोर्ट यूनिसेफ की पहल “सर्वजन के लिये जल सुरक्षा”   (Water security for All) का हिस्सा है जो उन क्षेत्रों की पहचान करती है जहाँ भौतिक रूप से उपलब्ध जल की कमी का जोखिम जल की व्यवस्था के खराब स्तर के साथ अतिव्याप्त है। इन क्षेत्रों में निवास करने वाले समुदाय सतही जल, अपरिष्कृत स्रोतों या जल पर निर्भर रहते  हैं, जिन्हें जल एकत्रित करने में 30 मिनट से अधिक समय लग सकता है।
  • इस पहल का उद्देश्य चिह्नित हॉटस्पॉटों में संसाधनों, साझेदारी, नवाचार और वैश्विक प्रतिक्रिया का संयोजन करना है।
    • यूनिसेफ ने 37 ऐसे देशों की पहचान की है जिन्हें बच्चों के लिये जल संकट का हॉटस्पॉट माना गया है। इसमें भारत के साथ-साथ अफगानिस्तान, बुर्किना फासो, इथियोपिया, हैती, केन्या, नाइजर, नाइजीरिया, पाकिस्तान, पापुआ न्यू गिनी, सूडान, तंजानिया और यमन आदि देश शामिल हैं। 

निष्कर्ष :

  • 80 से अधिक देशों में बच्चे उच्च या अत्यंत उच्च जल भेद्यता वाले क्षेत्रों में रहते हैं।
  • पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों का अनुपात सबसे अधिक था जहाँ आधे से अधिक (58%) बच्चे प्रतिदिन पानी की समस्या का सामना करते हैं।
  • अन्य प्रभावित क्षेत्रों  में पश्चिम और मध्य अफ्रीका (31%), दक्षिण एशिया (25%) और मध्य पूर्व  (23%) शामिल हैं।
  • बच्चों की संख्या के आधार पर देखा जाए तो दक्षिण एशिया में सर्वाधिक 155 मिलियन से अधिक बच्चे उच्च अथवा अति उच्च जल भेद्यता वाले क्षेत्रों में रहते हैं।

भारत में जल संकट:

  • विश्व भर में उपलब्ध कुल ताज़े जल  का 4% हिस्सा भारत में पाया जाता है जो विश्व की  17% आबादी की आवश्यकता को पूरा करता है।
  • जून 2018 में जारी नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत इतिहास के सबसे खराब जल संकट का सामना कर रहा है। भारत में लगभग 600 मिलियन लोग या लगभग 45% आबादी उच्च व गंभीर जल तनाव का सामना कर रही है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक भारत की लगभग 40% आबादी की पीने के पानी तक पहुँच नहीं होगी और वर्ष 2050 तक जल संकट के कारण भारत को   सकल घरेलू उत्पाद में 6% नुकसान का सामना करना पड़ेगा।

भारत में जल संकट के कारण:

  • केंद्रीय भूजल बोर्ड का अनुमान है कि देश के अधिकांश हिस्सों में भूजल के अतिदोहन के कारण भूजल के स्तर में प्रतिवर्ष गिरावट दर्ज की जा रही है|
    • यदि भूजल में निरंतर गिरावट जारी रहती है तो देश की कृषि और पेयजल आवश्यकताओं को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बन जाएगी।
    • 85% ग्रामीण जलापूर्ति, 45% शहरी जलापूर्ति और 64% से अधिक सिंचाई अब भूजल पर निर्भर है।
  • वर्तमान में प्रमुख और मध्यम सिंचाई बाँधों के जल भंडारण क्षेत्रों में तलछट के संचय के कारण उनकी कुल भंडारण क्षमता में काफी गिरावट आई है।
    • केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2020 में जारी रिपोर्ट 'भारत में जलाशयों में गाद अवसादन का संग्रह '(Compendium on Silting of Reservoirs in India) में इस बात को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के स्तर में भी काफी परिवर्तन देखा गया है।

केंद्र सरकार द्वारा किये गए उपाय:

  • "जल शक्ति अभियान: ‘कैच द रेन’ (Catch the Rain) अभियान
    • इस अभियान को देश में 22 मार्च, 2021 से 30 नवंबर, 2021  (मानसून पूर्व और मानसून अवधि के दौरान) तक लागू किया जाएगा।
    • इस अभियान का उद्देश्य राज्य और अन्य सभी हितधारकों को जलवायु परिस्थितियों तथा अवमृदा स्तर के अनुकूल  वर्षा  जल को संग्रहीत करने के लिये वर्षा जल संचयन संरचनाओं (Rain Water Harvesting Structures- RWHS) का निर्माण करना है।
      • देश के अधिकांश हिस्सों में जल का एकमात्र स्रोत चार/पाँच महीनों के दौरान होने वाली वर्षा है।
  • जल जीवन मिशन (JJM):
    • वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में सतत् विकास लक्ष्य-6 (SDG-6) के अनुसार, सभी वैधानिक शहरों में कार्यशील नल के माध्यम से घरों में जल आपूर्ति का सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने हेतु केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अंतर्गत जल जीवन मिशन (शहरी) की घोषणा की गई है। 
    • यह जल जीवन मिशन (ग्रामीण) का पूरक है, जिसके तहत वर्ष 2024 तक कार्यशील घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) के माध्यम से सभी ग्रामीण घरों में दैनिक रूप से प्रति व्यक्ति 55 लीटर जल की आपूर्ति की परिकल्पना की गई है।
  • जल शक्ति मंत्रालय:
    • भारत सरकार ने जल प्रबंधन से संबंधित कार्यों को समेकित करने के लिये वर्ष 2019 में जल शक्ति मंत्रालय की स्थापना की
    • मंत्रालय ने जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये जल शक्ति अभियान शुरू किया

राज्य सरकारों द्वारा किये गए उपाय:

  • उत्तर प्रदेश - जाखनी गाँव (जल  गाँव), बुंदेलखंड
  • पंजाब - पानी बचाओ पैसे कमाओ
  • मध्य प्रदेश - कपिल धारा योजना
  • गुजरात - सुजलाम सुफलाम योजना
  • तेलंगाना - मिशन काकतीय कार्यक्रम
  • महाराष्ट्र - जलयुक्त शिवहर अभियान
  • आंध्र प्रदेश - नीरू चेट्टू कार्यक्रम
  • राजस्थान- मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान (MJSA)

विश्व जल दिवस

  • विश्व जल दिवस 22 मार्च को दुनिया भर में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य जल के महत्त्व को उजागर करना और भविष्य के जल संकट के बारे में दुनिया को जागरूक करना है। 
  • संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्य-6 (वर्ष 2030 तक सभी के लिये पानी और स्वच्छता) को प्राप्त करने के लिये समर्थन प्रदान करना है।

इतिहास 

  • विश्व जल दिवस मनाने का प्रस्ताव पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 22 दिसंबर, 1992 को अपनाया गया था।
  • इसके बाद 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में घोषित किया गया और वर्ष 1993 से इसे दुनिया भर में विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • विश्व जल दिवस, 2021 की थीम
    •  वर्ष 2021 में विश्व जल दिवस की थीम  “वैल्यूइंग वाटर" (Valuing Water) है जिसे हमारे दैनिक जीवन में पानी के महत्त्व को दर्शाने के लिये  चुना गया है। 
  • विश्व जल दिवस पर या उसके आस-पास हर वर्ष एक नई ‘विश्व जल विकास रिपोर्ट’ जारी की जाती है, ताकि निर्णय लेने वालों को स्थायी जल नीतियाँ बनाने और उन्हें कार्यान्वित करने हेतु उपकरण प्रदान किये जा सकें। यह रिपोर्ट ‘यूएन वाटर’ की ओर से UNESCO के विश्व जल विकास कार्यक्रम (WWAP) द्वारा समन्वित की जाती है।

यूनिसेफ:-

  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) संयुक्त राष्ट्र का एक विशेष कार्यक्रम है जो बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और सामान्य कल्याण में सुधार हेतु राष्ट्रीय प्रयासों को सहायता प्रदान करने के लिये समर्पित है|
  • यूनिसेफ की स्थापना वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र राहत पुनर्वास प्रशासन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (ICEF) के रूप में की गई थी ताकि द्वितीय विश्व युद्ध से प्रभावित बच्चों की मदद की जा सके।
  • वर्ष 1953 में यूनिसेफ संयुक्त राष्ट्र का एक स्थायी अंग बन गया।
    • वर्तमान में इसका नाम संयुक्त राष्ट्र बाल कोष है किंतु इसके मूल संक्षिप्त नाम ‘यूनिसेफ’ को बरकरार रखा गया है।
  • यूनिसेफ को ‘बाल अधिकारों पर अभिसमय,1989’ द्वारा निर्देशित किया जाता है
    • यह बच्चों के प्रति नैतिक सिद्धांतों और व्यवहारों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मानकों के स्थायीकरण के रूप में बच्चों के अधिकारों को स्थापित करने का प्रयास करता है।
  • “राष्ट्रों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने” के लिये वर्ष 1965 में  इसे शांति  का  नोबेल पुरस्कार दिया गया।

मुख्यालय: न्यूयॉर्क सिटी।

  • यह 7 क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ 190 से अधिक देशों और क्षेत्रों में काम करता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow