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डेली न्यूज़

  • 22 Oct, 2020
  • 54 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ अंतर्वाह

प्रिलिम्स के लिये:

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश,  उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना 

मेन्स के लिये: 

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त होने के विभिन्न रूट्स/रास्ते, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्ति के संदर्भ में सरकारी प्रयास 

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार को वर्ष 2020 में अप्रैल से अगस्त माह के दौरान 35.73 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ ( Foreign Direct Investment- FDI) प्राप्त हुआ है जो किसी वित्तीय वर्ष के पहले 5 माह में प्राप्त प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की उच्चतम मात्रा है।

प्रमुख बिंदु: 

  • पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2020) में सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) 23.9% रहने के बावजूद FDI प्रवाह में वृद्धि देखी गई है।
  •  FDI में हालिया बढ़ोतरी:
    • वर्ष 2019-20 ( 31.60 बिलियन अमेरिकी डाॅलर) की तुलना में वर्ष 2020-21 के पहले 5 माह में 13% अधिक FDI ( 35.73 बिलियन अमेरिकी डाॅलर) प्राप्त हुआ है।
      • FDI के कुल अंतर्वाह में 55% की वृद्धि हुई जो वर्ष 2008-14 के 231.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2014-20 में 358.29 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
    • वर्ष 2020 में अप्रैल से अगस्त माह के दौरान FDI इक्विटी प्रवाह (FDI के तीन घटकों में से एक) 27.10 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। जो वित्त वर्ष के पहले 5 माह के लिये FDI के इक्विटी प्रवाह की उच्चतम मात्रा है। साथ ही वर्ष 2019-20 के पहले पाँच माह (23.35 बिलियन अमेरिकी डाॅलर) की तुलना में 16% अधिक है।
    • सरकार द्वारा FDI नीति में सुधार करने, निवेश नीति को सुगम बनाने इत्यादि मोर्चों पर किये गए उपायों के परिणामस्वरूप देश में FDI अंतर्वाह की मात्रा में बढ़ोतरी हुई है।

UNCTAD द्वारा जारी विश्व निवेश रिपोर्ट (World Investment Report), 2020 के अनुसार, वर्ष 2019 में सबसे अधिक FDI प्राप्तकर्त्ता देशों में भारत  9वें  स्थान पर रहा।

FDI बढ़ाने हेतु सरकारी प्रयास:

  • वर्ष 2020 में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्षेत्र के लिये ‘उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन’ (Production-Linked Incentive-PLI) जैसी योजनाओं को अधिकाधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये अधिसूचित किया गया है।
  • वर्ष 2019 में केंद्र सरकार द्वारा कोयला खनन गतिविधियों में स्वचालित मार्ग ( Automatic Route) के तहत 100% FDI की अनुमति देने के लिये FDI नीति 2017 में संशोधन किया गया।
  • इसके अलावा सरकार द्वारा डिजिटल क्षेत्र में 26% FDI की अनुमति दे दी गई है। इस क्षेत्र में भारत में अनुकूल जनसांख्यिकी, पर्याप्त मोबाइल एवं इंटरनेट उपभोक्ताओं के  उच्च FDI प्राप्ति की संभावना विद्यमान है, जो बड़े पैमाने पर खपत  एवं प्रौद्योगिकी (Consumption Along with Technology) के साथ-साथ विदेशी निवेशकों  को भारत में एक  शानदार एवं संभावनाओं से युक्त बाज़ार उपलब्ध कराने का  अवसर प्रदान करता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र में पहले से ही 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश  स्वचालित मार्ग के तहत हो रहा था, हालाँकि वर्ष 2019 में सरकार द्वारा स्पष्ट किया गया कि अनुबंध निर्माण (Contract Manufacturing) में संलग्न भारतीय संस्थाओं में  स्वचालित मार्ग के तहत 100% निवेश की अनुमति है, बशर्ते कि यह निवेश एक वैध अनुबंध के माध्यम से किया जाना चाहिये।
    • अनुबंध विनिर्माण: इसमें किसी अन्य फर्म के लेबल या ब्रांड के तहत किसी फर्म द्वारा माल का उत्पादन करना शामिल है। 
  • विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (Foreign Investment Facilitation Portal-FIFP)  निवेशकों को FDI की सुविधा देने के लिये भारत सरकार का एक ऑनलाइन एकल बिंदु इंटरफ़ेस है। इसे ‘उद्योग और आंतरिक व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के संवर्द्धन विभाग’ (Department for Promotion of Industry and Internal Trade, Ministry of Commerce and Industry) द्वारा प्रशासित किया जाता है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि से उम्मीदें:

  • जैसा ही  ट्रेन के  निजी संचालन और हवाई अड्डों के निर्माण के लिये बोली लगाने की प्रक्रिया की अनुमति देने के सरकार के कदमों में विदेशी निवेशकों द्वारा रुचि दिखाई गई। वैसे ही मार्च 2020 में सरकार द्वारा अनिवासी भारतीयों (Non-Resident Indians- NRIs) को एयर इंडिया की 100% हिस्सेदारी प्राप्त करने की अनुमति दे दी गई है।
  • रक्षा विनिर्माण( Defence Manufacturing) जैसे महत्त्वपूर्ण  क्षेत्र में सरकार द्वारा मई 2020 में स्वचालित मार्ग के तहत FDI सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया है, सरकार का यह कदम आगे भी बड़े निवेश आकर्षित कर सकता है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश:

  • FDI एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत एक देश (मूल देश) के निवासी किसी अन्य देश (मेज़बान देश) में एक फर्म के उत्पादन, वितरण और अन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त करते हैं।
    • यह विदेशी पोर्टफोलियो(Foreign Portfolio Investment-FPI) निवेश से भिन्न है, इसमें विदेशी इकाई केवल एक कंपनी के स्टॉक और बॉन्ड  खरीदती है लेकिन यह FPI निवेशक को व्यवसाय पर नियंत्रण का अधिकार नहीं प्रदान करता है।
  • FDI के प्रवाह में शामिल पूंजी किसी उद्यम के लिये एक विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक द्वारा (या तो सीधे या अन्य संबंधित उद्यमों के माध्यम से) प्रदान की जाती है।
  • FDI में तीन घटक- इक्विटी कैपिटल (Equity Capital), पुनर्निवेशित आय (Reinvested Earnings) और इंट्रा-कंपनी लोन  (Intra-Company Loans) शामिल हैं।
    • इक्विटी कैपिटल विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक की अपने देश के अलावा किसी अन्य देश के उद्यम के शेयरों की खरीद से संबंधित है।
    • पुनर्निवेशित आय में (प्रत्यक्ष इक्विटी भागीदारी के अनुपात में) प्रत्यक्ष निवेशकों द्वारा की गई कमाई शामिल होती है जिसे किसी कंपनी के सहयोगियों (Affiliates)  द्वारा लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जाता है या यह कमाई प्रत्यक्ष निवेशक को प्राप्त नहीं होती है।
    • इंट्रा-कंपनी लोन या  लेन-देन में प्रत्यक्ष निवेशकों (या उद्यमों) और संबद्ध उद्यमों के बीच अल्पकालिक या दीर्घकालिक उधार और निधियों का उधार शामिल होता है।

भारत में FDI आने का मार्ग:

  • स्वचालित मार्ग (Automatic Route): इसमें विदेशी संस्था को सरकार या RBI की पूर्व स्वीकृति लेने की आवश्यकता नहीं होती  है।
  • सरकारी मार्ग (Government Route): इसमें विदेशी संस्था को सरकार की स्वीकृति लेनी  आवश्यक होती है।
    • विदेशी निवेश सुविधा पोर्टल (Foreign Investment Facilitation Portal- FIFP) उन आवेदनों (Applications) को ‘एकल खिड़की निकासी’ (Single Window Clearance) की सुविधा प्रदान करता है जो अनुमोदन मार्ग (Approval Route) से प्राप्त होते हैं।

आगे की राह:

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment-FDI) आर्थिक विकास का एक प्रमुख प्रेरक बल  है तथा भारत के आर्थिक विकास के लिये गैर-ऋण वित्त का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत भी। अतः एक मज़बूत एवं आसानी से सुलभ होने वाला FDI सुनिश्चित किया जाना चाहिये ।

इस प्रकार महामारी के बाद की अवधि में आर्थिक विकास तथा भारत का बाज़ार देश में बड़े  निवेशों को आकर्षित करेगा।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

‘एकीकृत थियेटर कमांड’ की आवश्यकता

प्रिलिम्स के लिये:

एकीकृत थियेटर कमांड, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, शेकेतकर समिति

मेन्स के लिये:

एकीकृत थियेटर कमांड

चर्चा में क्यों?

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (Chief of Defence Staff- CDS) के  चीफ की नियुक्ति के बाद रक्षा सुधारों में अगला महत्त्वपूर्ण कदम ‘एकीकृत थिएटर कमांड्स’ (Integrated Theatre Commands- ITC) का गठन करना होगा।

प्रमुख बिंदु:

  • 'विभिन्न एकीकृत कमांड्स' के गठन पर सिफारिशें करने के लिये तीनों सेवाओं के उपाध्यक्षों के नेतृत्त्व में अनेक टीमों का गठन किया गया है।
  • 'वायु सेना के लिये एकीकृत रक्षा कमान’ पर गठित टीम का अध्ययन पूरा होने वाला है तथा जल्द ही वायु सेना के लिये 'एकीकृत रक्षा कमान' के गठन की उम्मीद है।

थिएटर कमांड क्या है?

  • 'थिएटर कमांड' एक संगठनात्मक संरचना है जिसका उद्देश्य युद्ध में 'सैन्य प्रभावशीलता' बढ़ाने के लिये सभी सैन्य परिसंपत्तियों को एकल थिएटर के माध्यम से नियंत्रित करने के लिये डिज़ाइन किया जाता है।
  • सैन्य बोल-चाल में सैन्य सेवाओं (थल सेना, वायु सेना और नौसेना) की 'संयुक्त कमान' को एक 'थिएटर कमांड' कहा जाता है।
  • वर्तमान में एकमात्र 'संयुक्त कमान' का गठन अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिये किया गया है।

विभिन्न समितियों द्वारा सिफारिश:

  • कारगिल समीक्षा समिति, शेकेतकर समिति (Shekatkar Committee) द्वारा भी आंतरिक और बाह्य खतरों से निपटने के लिये उच्च स्तर पर ‘संयुक्त इकाई’ बनाने के संदर्भ में सिफारिश की गई थी।
  • इन समितियों के अनुसार, सैन्य सेवाओं में निचले स्तरों पर असंबद्धता के कारण  परिचालन में तालमेल की कमी पाई जाती है।

एकीकृत थिएटर कमांड का महत्त्व:

  • यह कमांडर अपने कार्यों के लिये सेना के किसी अंग के प्रति जवाबदेह नहीं होगा एवं अपने कमांड को निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम एक ‘संयुक्त युद्धक बल’ (Cohesive Fighting Force) के रूप में विकसित करने के लिये प्रशिक्षित करने हेतु स्वतंत्र होगा। 
  • अपने कार्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक संसाधनों को थियेटर कमांडर के नियंत्रण में रखा जाएगा ताकि ऑपरेशन के दौरान उसे किसी पर निर्भर न रहना पड़े।
  • यह भारत की वर्तमान ‘सेवा-विशिष्ट कमांड प्रणाली’ (Service-specific Commands): जिसमें पूरे देश में तीनों सैन्य सेवाओं (थल सेना, वायु सेना और नौसेना) की अपनी-अपनी कमांड होती है, के विपरीत है।

विपक्ष में तर्क:

  • भारत के सामने अब तक उत्पन्न युद्ध की चुनौतियों के दौरान तीनों सेवाओं ने सराहनीय सहयोग से काम किया है। ऐसा कोई अवसर नहीं देखा गया है जब तीनों सेवाओं के मध्य सहयोग का अभाव पाया गया हो।
  • बढ़ते संचार नेटवर्क ने तीनों सैन्य सेवाओं के बीच संचार को आसान बनाया है। स्थानिक दूरी पर विचार किये बिना योजना बनाई जा सकती है, इसलिये नवीन संगठन की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • 'एकीकृत  थियेटर कमांडर' विशिष्ट सेवा में डोमेन का ज्ञान रखने वाला होगा, अत: अन्य दो सेवा घटकों के संबंध में उसका ज्ञान सीमित रहने की संभावना है। इससे उसके आदेश के तहत अन्य सेवा घटकों को उपयुक्त तरीके से और उचित समय पर नियोजित करने की उसकी क्षमता सीमित हो जाती है।

निष्कर्ष:

  • राष्ट्रीय सुरक्षा की बदलती गतिशीलता के कारण अब साइबर, स्वचालन और ऐसी ही कई नवीन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में वर्तमान डिसजॉइंटेड जनरल (Disjointed General) और रक्षा मंत्री द्वारा इन चुनौतियों को हल करना आसान नहीं है, बल्कि इन उभरती स्थितियों का जवाब देने के लिये एक स्पष्ट और मज़बूत संगठनात्मक अवसंरचना की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना का विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना, सनराइज़िंग उद्योग/सेक्टर 

मेन्स के लिये: 

उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

सरकार द्वारा घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन(Production-Linked Incentive-PLI) योजना का विस्तार शीघ्र ही आठ और अन्य क्षेत्रों में किया जाएगा। 

प्रमुख बिंदु:

  • PLI एक आगत उन्मुख ( output-oriented) योजना है जिसमें निर्माता/उत्पादक यदि किसी सामान का उत्पादन करता है तो उसे केवल प्रोत्साहन (Incentives) राशि का भुगतान किया जाएगा।
  • इस योजना के अंतर्गत पाँच से सात वर्षों के लिये नकद प्रोत्साहन राशि दी जाएगी जिसमें सभी उभरते हुए (Sunrise) महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को शामिल किया जाना प्रस्तावित है।
    • इन विनिर्माण क्षेत्रों में ऑटोमोबाइल, नेटवर्किंग उत्पाद, खाद्य प्रसंस्करण, उन्नत रसायन विज्ञान और सोलर पॉवर सिस्टम शामिल हो सकते हैं।

आवश्यकता: 

  • सनराइज़ सेक्टर उभरते हुए क्षेत्र हैं लेकिन उन्हें प्रारंभिक चरण में सहायता/समर्थन की आवश्यकता हो सकती है।
  • PLI योजना के तहत निर्यात आधार (Export Base) को विभिन्न क्षेत्रों में विकसित किया जा सकता है।
  • आपूर्ति  शृंखलाओं में विविधीकरण (Diversification in Supply Chains) के लिये विश्व में लगातार मांग बढ़ रही है जिसमें  भारत एक प्रमुख प्रतिभागी बन सकता है।
  • भारत को एक विनिर्माण केंद्र बनाने के दृष्टिकोण से सरकार द्वारा मोबाइल फोन (इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण) के लिये PLI योजना शुरू की गई जिसका विस्तार फार्मा उत्पादों (Pharma Products) और चिकित्सा उपकरण (Medical Equipment) के क्षेत्र तक किया गया।

 बड़े स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये PLI योजना:

  • यह योजना इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और अर्द्धचालक पैकेजिंग सहित घरेलू विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने तथा इलेक्ट्रॉनिक मूल्य शृंखला में बड़े निवेश को आकर्षित करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन/इंसेंटिव का प्रस्ताव प्रस्तुत करती है।
  • योजना के तहत इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण कंपनियों को अगले 5 वर्षों की अवधि के लिये भारत में निर्मित वस्तुओं की बढ़ती मांग (आधार वर्ष) के आधार पर 4 से 6% का इंसेंटिव प्राप्त होगा।
  • यह योजना केवल लक्षित क्षेत्रों जैसे-मोबाइल फोन और निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक घटकों पर लागू होगी।
  • सरकार का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक PLI योजना के तहत मोबाइल फोन के लिये घरेलू मूल्य वृद्धि 20-25% के मौजूदा स्तर से बढ़कर 35-40% हो जाएगी जिससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से 8 लाख अतिरिक्त नौकरियों के लिये अवसर पैदा होंगे।
  • देश में मोबाइल फोन का उत्पादन पिछले चार वर्षों में लगभग आठ गुना तक बढ़ा है और इस उद्योग से प्राप्त आय वर्ष 2014-15 के 18,900 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 1.7 लाख करोड़ रुपए हो गई है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

COVID-19 ग्लोबल जेंडर रिस्पांस ट्रैकर

प्रिलिम्स के लिये:

COVID-19 ग्लोबल जेंडर रिस्पांस ट्रैकर, यू.एन. वीमेन

मेन्स के लिये:

COVID-19 और महिलाएँ 

चर्चा में क्यों?

 'COVID-19 ग्लोबल जेंडर रिस्पांस ट्रैकर' के आँकड़ों के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में होने वाली गिरावट की रक्षा की दिशा में दुनिया के अधिकांश देशों द्वारा पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • 'COVID-19 ग्लोबल जेंडर रिस्पांस ट्रैकर'  'संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम' (United Nations Development Programme-UNDP) और ‘यू.एन. वीमेन' (UN Women) द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • यह COVID-19 महामारी से निपटने के लिये दुनिया भर में सरकारों द्वारा लागू किये गए नीतिगत उपायों की निगरानी करता है और इस दौरान उत्पन्न लैंगिक मुद्दों को रेखांकित करता है।
  • यह ट्रैकर 206 देशों और क्षेत्रों में 2,500 से अधिक संकेतकों का विश्लेषण करता है। विशेषतया लैंगिक क्षेत्र से जुड़े तीन संकेतकों का विश्लेषण करता है:
    • महिलाओं और बालिकाओं के खिलाफ हिंसा से निपटना (VAWG);
    • अवैतनिक देखभाल का समर्थन;
    • महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा को मज़बूत करना।

ट्रैकर के निष्कर्ष:

  • 42 देशों द्वारा COVID -19 महामारी की प्रतिक्रिया में कोई लिंग-संवेदनशील उपाय नहीं अपनाए गए हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा, नौकरियों की सुरक्षा की दिशा में बहुत कम देशों द्वारा महिलाओं की आवश्यकता का ध्यान रखा गया है। एक-तिहाई से भी कम देशों द्वारा अवैतनिक देखभाल का समर्थन किया गया है।
  • COVID-19 महामारी ने महिलाओं को कई प्रकार से बुरी तरह प्रभावित किया है यथा- उनके खिलाफ घरेलू हिंसा में वृद्धि हुई है, अवैतनिक देखभाल करने वालों के रूप में सामाजिक सुरक्षा की कमी आदि।

 सिफारिशें:

  • महिलाओं को महामारी से खिलाफ प्रतिक्रिया में मदद के लिये राजकोषीय पैकेज की घोषणा की जानी चाहिये।
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिये सेवाओं को पर्याप्त रूप से वित्तपोषित किया जाने चाहिये।
  • सरकारों को COVID-19 महामारी के प्रति प्रतिक्रिया हेतु नेतृत्त्व और निर्णयन प्रक्रियाओं में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी का समर्थन करना चाहिये। 

आगे की राह:

  • COVID-19 महामारी देशों को सामाजिक सुरक्षा के मौजूदा आर्थिक मॉडल को बदलने का अवसर प्रदान करती है। 
  • ‘ग्लोबल जेंडर रिस्पांस ट्रैकर’ राष्ट्रीय प्रयासों और फंडिंग में अंतराल पर मार्गदर्शन और सर्वोत्तम प्रथाओं को उजागर करके नीतिगत सुधार में तेज़ी लाने में मदद कर सकता है। 
  • ग्लोबल ट्रैकर महिलाओं के खिलाफ हिंसा को दूर करने के उपायों की निगरानी करके सही नीतिगत निर्णय लेने में सरकारों का समर्थन करता है। 

‘यू.एन. वीमेन’ (UN Women):

  • वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘यू.एन. वीमेन’ (UN Women) का गठन किया गया था। यह संस्था महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य करती है।
  • यह चार रणनीतिक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करती है:
    • महिलाओं द्वारा नेतृत्त्व तथा शासन प्रणालियों में समान रूप से भागीदारी।
    • महिलाओं की आय सुरक्षा, अच्छी कार्य दशाएँ तथा आर्थिक स्वायत्तता।
    • महिलाएँ और बालिकाएँ सभी प्रकार की हिंसा से मुक्त हों।
    • प्राकृतिक आपदाओं एवं संघर्षों और मानवीय कार्रवाई में महिलाओं को विशेष सहायता।
  • इसके तहत संयुक्त राष्ट्र तंत्र के 4 अलग-अलग प्रभागों के कार्यों को संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है:
    • महिलाओं की उन्नति के लिये प्रभाग।
    • महिलाओं की उन्नति के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान।
    • लैंगिक मुद्दों और महिलाओं की उन्नति पर विशेष सलाहकार कार्यालय।
    • महिलाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कोष।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्यवस्था में विरोधाभास की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये

श्रम बल भागीदारी दर, हेडलाइन मुद्रास्फीति, कोर मुद्रास्फीति, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये

महामारी के कारण उत्पन्न विरोधाभासी स्थितियाँ और उनका कारण

चर्चा में क्यों?

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के हालिया आँकड़ों के मुताबिक, महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के बाद भारत की आर्थिक स्थिति में हुए सुधार के कारण कुछ विरोधाभासी (Paradoxist) स्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं। हालाँकि चीन की अर्थव्यवस्था ने लगातार तीसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर्ज की है।

प्रमुख बिंदु

  • रोज़गार
    • सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) द्वारा प्रस्तुत किये गए आँकड़े बताते हैं कि जहाँ एक ओर श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में गिरावट आ रही है, वहीं दूसरी ओर रोज़गार की दर में कुछ सुधार दिखाई दे रहा है।
      • श्रम बल को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो या तो कार्य कर रहे हैं या काम की तलाश कर रहे हैं अथवा काम के लिये उपलब्ध हैं। 
      • आमतौर पर यह देखा जाता है कि जब अधिक लोगों को रोज़गार मिलता है तब और अधिक लोग रोज़गार की तलाश करने लगते हैं, यानी रोज़गार की दर में बढ़ोतरी के साथ श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में भी बढ़ोतरी होती है, किंतु वर्तमान स्थिति में ऐसा नहीं हो रहा है। 
      • इस असामान्य स्थिति को आँकड़ों के ग्रामीण-शहरी विभाजन द्वारा समझा जा सकता है। एक तरफ ग्रामीण भारत में ‘पोस्ट-हार्वेस्टिंग’ गतिविधियों के कारण रोज़गार में वृद्धि हो रही है, वहीं दूसरी तरह भारत के शहरी क्षेत्रों में रोज़गार में कमी आ रही है।
      • साथ ही शहरी क्षेत्रों में बेहतर गुणवत्ता और उच्चतर आय वाली नौकरियाँ कम हो रही हैं और निम्न वेतन वाली ग्रामीण क्षेत्र की नौकरियों में बढ़ोतरी हो रही है।
      • यह असामान्य घटना इस तथ्य को उजागर करती है कि महामारी के बाद शहरों में जिस स्तर पर प्रवासन होना चाहिये था वैसा नहीं हो रहा है।
  • मुद्रास्फीति
    • लॉकडाउन के कारण वस्तुओं और सेवाओं के आपूर्ति पक्ष पर काफी प्रभाव पड़ा है, जिससे हेडलाइन मुद्रास्फीति (Headline Inflation) में वृद्धि हुई है, जो कि मुख्यतः खाद्य कीमतों में वृद्धि से प्रेरित है।
      • हेडलाइन मुद्रास्फीति के अंतर्गत एक अर्थव्यवस्था के भीतर कुल मुद्रास्फीति को मापा जाता है, जिसमें खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाला उतार-चढ़ाव भी शामिल होता है।
    • सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के आँकड़े बताते हैं कि वर्तमान में हेडलाइन मुद्रास्फीति में वृद्धि के साथ-साथ कोर मुद्रास्फीति में भी वृद्धि हो रही है, जो कि एक अप्रत्याक्षित घटना है। कोर मुद्रास्फीति में एक ऐसे समय में वृद्धि हो रही है जब अनुमान के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड दर से संकुचन होने वाला है।
    • सामान्य स्थिति में यह देखा जाता है कि जब मांग में गिरावट होती है तो इसके कारण कोर मुद्रास्फीति में भी गिरावट आती है।
      • कोर मुद्रास्फीति वह है जिसमें खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को शामिल नहीं किया जाता है।
  • विकास
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के हालिया आँकड़ों के मुताबिक, चीन, अमेरिका, पाकिस्तान और ब्राज़ील आदि देशों की तुलना में भारत महामारी के कारण सबसे अधिक प्रभावित देश है।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुमानानुसार, कोरोना वायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित भारतीय अर्थव्यवस्था में इस वर्ष तकरीबन 10.3 प्रतिशत संकुचन हो सकता है। 
      • जबकि इससे पूर्व जून माह में जारी रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कहा था कि इस वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था में केवल 4.5 प्रतिशत का ही संकुचन होगा। 
    • हालाँकि अर्थव्यवस्था में संकुचन की अपेक्षा यह तथ्य नीति निर्माताओं के लिये चिंताजनक है कि वर्ष 2020 में बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय, भारत की औसत प्रति व्यक्ति आय से अधिक हो जाएगी। 

महामारी के बीच आर्थिक प्रदर्शन

  • चीन की सरकार द्वारा जारी आधिकारिक आँकड़े के मुताबिक, इस वर्ष लगातार तीसरी तिमाही में चीन की अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर्ज की गई है और वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में चीन की अर्थव्यवस्था में 4.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है।
  • चीन के पर्यटन उद्योग में वृद्धि दर्ज की जा रही है, साथ ही औद्योगिक उत्पादन तथा निर्यात में भी वृद्धि हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप चीन में लाखों लोगों के लिये राजस्व और नौकरियों का सृजन हो रहा है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का अनुमान है कि वर्ष 2020 में चीन की अर्थव्यवस्था में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, जिसके कारण चीन की अर्थव्यवस्था महामारी के प्रभाव के बावजूद वृद्धि करने वाली एकमात्र प्रमुख अर्थव्यवस्था बन जाएगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविरैप

प्रिलिम्स के लिये

कोविरैप

मेन्स के लिये

COVID-19 परीक्षण की आवश्यकता तथा अन्य नई परीक्षण सुविधाएँ

चर्चा में क्यों?

आईआईटी खड़गपुर (IIT Kharagpur) ने COVID-19 की जाँच के लिये कोविरैप (COVIRAP) नामक एक नए डायग्नोस्टिक परीक्षण की खोज की है।

मुख्य बिंदु:

  • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research-ICMR) ने इस टेस्ट की प्रभावकारिता को मान्यता प्रदान की है।
  • कोरोना के खिलाफ जंग में यह एक बड़ी उपलब्धि सिद्ध हो सकती है।

कार्य प्रक्रिया:

  • कोविरैप में तापमान नियंत्रित करने की यूनिट, जीनोमिक एनालिसिस (Genomic Analysis) के लिये स्पेशल डिटेक्शन यूनिट और परिणाम प्राप्ति हेतु एक अनुकूलित स्मार्टफोन एप संलग्न है।
  • ये तीनों उपकरण विभिन्न जीनों को चिह्नित करके SARS-CoV-2 की उपस्थिति की पुष्टि करते हैं।
  • एकत्र किये गए नमूने जब दिये गए मिश्रण के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और जब पेपर स्ट्रिप्स को प्रतिक्रिया उत्पादों में डुबोया जाता है, तो रंगीन रेखाएँ वायरस की उपस्थिति का संकेत देती हैं।
  • इस प्रौद्योगिकी का ICMR के दिशा-निर्देशों के अनुसार कठोर प्रोटोकॉल के अधीन परीक्षण किया गया है।

यह विशेष क्यों है?

  • जहाँ वर्तमान परीक्षणों में आरटी-पीसीआर, जो कि अत्यधिक सटीक है, के लिये एक उन्नत प्रयोगशाला की आवश्यकता होती है, वहीं एंटीजन परीक्षण मिनटों में परिणाम दे सकते हैं, लेकिन उनकी सटीकता कम होती है।
  • वहीं COVIRAP टेस्ट की प्रक्रिया एक घंटे के भीतर पूरी हो जाती है। यह परीक्षण एक कम लागत वाले पोर्टेबल उपकरण द्वारा आयोजित किया जाता है जिसे प्रयोगशाला के बाहर अकुशल ऑपरेटरों द्वारा भी आयोजित किया जा सकता है और यह उच्च लागत वाली RTPCR मशीनों का एक विकल्प है।
  • इसके माध्यम से खुले क्षेत्र में भी नमूनों का परीक्षण किया जा सकता है। 
  • इस टेस्ट में एक ही मशीन का उपयोग प्रत्येक परीक्षण के बाद पेपर कार्ट्रिज (Paper Cartridge) बदल कर बड़ी संख्या में परीक्षणों के लिये किया जा सकता है।
  • इस टेस्ट मशीन का क्षेत्र बहुत व्यापक है, जिसका अर्थ है कि यह COVID-19 से परे भी इन्फ्लूएंजा, मलेरिया, डेंगू, जापानी इंसेफेलाइटिस, टीबी आदि बीमारियों के परीक्षण के साथ-साथ ‘आइसोथर्मल न्यूक्लिक एसिड-आधारित परीक्षण’ (Isothermal Nucleic Acid-based Tests) भी कर सकता है।

COVIRAP और FELUDA परीक्षण की तुलना:

  • इस जाँच विधि का नाम सत्यजीत रे के एक काल्पनिक जासूसी चरित्र ‘फेलुदा’ के नाम पर रखा गया है। ‘FNCAS9 एडिटर-लिमिटेड यूनिफॉर्म डिटेक्शन एसे’ (FNCAS9 Editor-Limited Uniform Detection Assay) इसका विस्तृत रूप  है, यह एक परीक्षण है जो ‘जीनोमिक्स और इंटीग्रेटिव बायोलॉजी इंस्टीट्यूट’ ( Institute of Genomics and Integrative Biology) द्वारा विकसित किया गया है।
  • इस जाँच विधि में भी SARS-CoV-2 के लिये विशिष्ट जीन का पता लगाया जाता है, परंतु इस विधि में CRISPR-CAS तकनीक का उपयोग किया जाता है।
  • FELUDA के साथ भी तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता कम-से-कम है, जबकि वर्तमान FELUDA प्रोटोटाइप के प्रसंस्करण के लिये PCR मशीन की आवश्यकता होती है। आईआईटी खड़गपुर द्वारा पेटेंट किया गया COVIRAP अपनी डिटेक्शन तकनीक का उपयोग करता है। COVIRAP के कुछ विशेष घटक हैं और  यह CRISPR CAS तकनीक से अलग है।

अधिक परीक्षणों की आवश्यकता:

  • भारत ने 20 अक्तूबर, 2020 तक 9.72 करोड़ नमूनों का परीक्षण किया है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा तय की गई (प्रतिदिन प्रति मिलियन जनसंख्या पर 140 परीक्षण) सीमा को पूरा कर रहा है।
  • हालाँकि नए मामलों में प्रतिदिन गिरावट आ रही है परंतु विशेषज्ञों ने कहा है कि उन क्षेत्रों में ऐसे स्थानों तक परीक्षण सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये जहाँ प्रतिदिन 140/मिलियन से कम परीक्षण किये जाते हैं। 

स्रोत-द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में वायु प्रदूषण और नवजात स्वास्थ्य

प्रिलिम्स के लिये:

उत्तर भारत में वायु प्रदूषण, स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर- रिपोर्ट 

मेन्स के लिये:

भारत में वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य

चर्चा में क्यों?

'हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ (HEI) की रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर'- 2020 (SoGA- 2020) के अनुसार,  भारत में प्रतिवर्ष 116,000 से अधिक नवजात शिशुओं की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है।

प्रमुख बिंदु:

  • SoGA रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर वायु की गुणवत्ता और इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव तथा रुझानों का व्यापक विश्लेषण किया जाता है।
  •  रिपोर्ट में वायु प्रदूषण तथा भारत में शिशु मृत्यु के मध्य संबंध स्थापित करने का प्रयास किया गया है।

रिपोर्ट संबंधी प्रमुख तथ्य:

  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 116,000 से अधिक नवजातों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है।
  • 50% से अधिक नवजातों की मृत्यु आउटडोर 'पार्टिकुलेट मैटर'- 2.5 (PM 2.5) से जुड़ी थी, जबकि नवजात मृत्यु के अन्य कारणों में लकड़ी का कोयला/चारकोल, लकड़ी और गोबर के उपले जैसे ठोस ईंधन का उपयोग शामिल था।
    • PM 2.5 का आशय उन कणों या छोटी बूँदों से है जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है और इसीलिये इसे PM 2.5 के नाम से भी जाना जाता है।
  • वर्ष 2019 में आउटडोर और इनडोर वायु प्रदूषण के कारण स्ट्रोक, दिल का दौरा, मधुमेह, फेफड़ों का कैंसर, क्रोनिक फेफड़ों की बीमारियों और नवजात रोगों से 1.67 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी।
  • भारत में अधिकांश नवजातों की मृत्यु का कारण जन्म के समय वजन का कम होना और अपरिपक्व जन्म (Preterm birth) से संबंधित जटिलताएँ थीं।

COVID-19 और वायु प्रदूषण:

  • यद्यपि वायु प्रदूषण और COVID-19 महामारी के मध्य पूर्ण संबंध अभी तक ज्ञात नहीं हैं लेकिन दिल और फेफड़ों से संबंधित रोगियों में COVID-19 महामारी के संक्रमण और मृत्यु का खतरा अधिक रहता है।
  • वायु प्रदूषण में वृद्धि होने पर दिल एवं फेफड़ों की बीमारियों के बढ़ने की  संभावना भी बढ़ जाती है, अत: दक्षिण एशिया में बढ़ता वायु प्रदूषण स्तर COVID-19 महामारी की संभावना को बढ़ा सकता है।

भारत में वायु प्रदूषण का कारण:

  • ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की रिपोर्ट (वर्ष 2016) के अनुसार,  PM 2.5 के संकेंद्रण के आधार पर विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 उत्तर भारत में अवस्थित हैं। उत्तर भारत में वायु प्रदूषण के निम्नलिखित संभावित कारक हो सकते हैं: 

मौसम विज्ञान संबंधी (Meteorology):

  • शीत काल में उत्तर भारत में 'तापीय व्युत्क्रमण' और स्थिर वायु  की दशा देखने को मिलती है। 
  • स्थिर/शांत वायु की दशा में प्रदूषकों का प्रसार बाहरी क्षेत्रों में नहीं हो पाता है। इसी प्रकार तापीय व्युत्क्रमण होने पर प्रदूषकों का सतह के पास संकेंद्रण बढ़ जाता है जिससे दृश्यता कम हो जाती है। 

पवन अभिसरण क्षेत्र (Wind Convergence Zone):

  • सिंधु-गंगा का मैदान एक स्थालाब्ध (Landlocked) क्षेत्र है। हिमालय प्रदूषित हवा को उत्तर की ओर जाने से रोकता है,  इसे 'घाटी प्रभाव' (Valley Effect) के रूप में जाना जाता है।
  • इस क्षेत्र में 'कम दबाव के गर्त' का  निर्माण होता है जिससे आसपास की पवनें अपने साथ प्रदूषक भी लाती हैं।

असंगठित जलोढ़ मृदा (Loose Alluvial Soil):

  • सिंधु-गंगा बेल्ट सतत् जलोढ़ मृदा जमाव का सबसे बड़ा क्षेत्र है। जलोढ़ मृदा में असंगठित मृदा कण होते हैं। इस प्रकार वायु-जनित धूल के निर्माण में शुष्क जलोढ़ मृदा का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

PM कणों में मौसमी बदलाव (Seasonal variation of PM composition):

  • सिन्धु-गंगा बेसिन में मानवजनित स्रोतों का प्रदूषण में प्रमुख योगदान है।  आईआईटी-कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार, ग्रीष्मकाल में PM 10 में धूल का 40 प्रतिशत योगदान रहता है, जबकि सर्दियों में यह मात्र 13 प्रतिशत रहता है।

आगे की राह:

  • निम्न और मध्यम आय वाले देशों को वायु प्रदूषण के कारण गर्भावस्था और नवजातों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों को संबोधित करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाना चाहिये।
  • राष्ट्रीय सरकारों को समाज के कमज़ोर समूहों को संबोधित करने के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप के माध्यम से व्यापक रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।
  • ठोस ईंधन के कारण उत्पन्न होने वाले इनडोर प्रदूषण की जाँच के लिये सतत् सरकारी समर्थन की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम: आवश्यकता और आलोचना

प्रिलिम्स के लिये

गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967, भीमा कोरेगाँव युद्ध 

मेन्स के लिये

UAPA की आवश्यकता, इसकी प्रासंगिकता और आलोचना

चर्चा में क्यों?

देश भर के प्रमुख विपक्षी दलों ने संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के लिये गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) को निरस्त करने का आह्वान किया है।

प्रमुख बिंदु

  • आदिवासी लोगों के अधिकारों के लिये कार्य करने वाले 83 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्त्ता स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए विपक्षी दलों के नेताओं ने गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) जैसे कठोर कानून के व्यापक दुरुपयोग के खिलाफ एक मज़बूत आंदोलन करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • ध्यातव्य है कि सामाजिक कार्यकर्त्ता स्टेन स्वामी को भीमा कोरेगाँव मामले में गिरफ्तार किया गया है और उन पर भीमा कोरेगाँव की हिंसा में शामिल होने का आरोप लगाया गया है। स्टेन स्वामी के अलावा इस मामले में 15 अन्य सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया है।

क्या है गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम?

  • गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम को किसी भी प्रकार की गैर-कानूनी गतिविधि को रोकने और आतंकवाद से निपटने के लिये वर्ष 1967 में शुरू किया गया था।
    • गैर-कानूनी गतिविधियों से तात्पर्य उन कार्यवाहियों से है जो किसी व्यक्ति/संगठन द्वारा देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को भंग करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं।
  • संसद द्वारा अधिरोपित यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, हथियारों के बिना एकत्र होने और संघ बनाने के अधिकार पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाता है।
    • इन प्रतिबंधों का उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करना है।
  • बीते कुछ वर्षों में इस अधिनियम में कई बार संशोधन किये गए हैं तथा इसे और अधिक कठोर बनाया गया है, इसलिये वर्तमान में यह भारत में एक प्रमुख आतंकवाद-रोधी अधिनियम के तौर पर कार्य कर रहा है।

अधिनियम की आवश्यकता

  • वर्ष 1947 में भारत के आज़ाद होने के बाद से ही देश में ऐसे कई संगठन, धार्मिक समूह और आतंकवादी समूह रहे हैं जो भारत की एकता एवं अखंडता को प्रभावित करने के साथ-साथ भारत में गैर-कानूनी गतिविधियों के माध्यम से अशांति फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।
  • भारत की आज़ादी के साथ ही भारत के नागरिकों को भारतीय संविधान के तहत व्यापक अधिकार प्रदान किये गए, किंतु जल्द ही सरकार को महसूस होने लगा कि इन अधिकारों पर प्रतिबंध लगाना अति आवश्यक है।
    • उदाहरण के लिये जब वर्ष 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो कुछ भारतीय राजनीतिक दल ऐसे भी थे जो चीन का समर्थन कर रहे थे।
  • ऐसे में इन आतंकवादी समूहों और संगठनों को भारत की एकता एवं अखंडता को प्रभावित करने से रोकने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ हद तक प्रतिबंध अधिरोपित करने के लिये एक मज़बूत कानून बनाना काफी महत्त्वपूर्ण हो गया था।

कठोरतम कानूनों में से एक: UAPA

  • यह अधिनियम सरकार को किसी भी 'गैर-कानूनी संगठन' को 'आतंकवादी संगठन' के रूप में घोषित करने और उसे प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है, लेकिन इसी अधिनियम की धारा-36 के तहत यह प्रतिबंध न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
  • अधिनियम की धारा-43A और धारा-43B के तहत पुलिस को बिना वारंट के गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल किसी भी व्यक्ति की खोज करने और उसे गिरफ्तार करने का अधिकार है। साथ ही अधिनियम की धारा-43D के तहत पुलिस के पास आरोपियों को बिना चार्जशीट दाखिल किये 30 दिनों के लिये पुलिस हिरासत में रखने का अधिकार है। 
  • UAPA के तहत अभियुक्त के पास अग्रिम जमानत का विकल्प भी नहीं होता है। यही कारण है कि UAPA को भारत के सबसे कठोरतम कानूनों में से एक माना जाता है। 

अधिनियम की आलोचना

  • सर्वप्रथम तो यह कि गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) में आतंकवाद की परिभाषा काफी अनिश्चित और व्यापक है, क्योंकि इसमें लगभग हर तरह के हिंसक कृत्य को शामिल किया गया है, चाहे वह राजनीतिक हो अथवा या गैर राजनीतिक।
    • अधिनियम में शामिल परिभाषा के अस्पष्ट, अनिश्चित और व्यापक होने के कारण इस अधिनियम के दुरुपयोग की संभावना काफी बढ़ जाती है।
    • उदाहरण के लिये UAPA की धारा 2(o) के तहत भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर प्रश्न उठाना एक गैर-कानूनी गतिविधि है। मगर यहाँ यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि प्रश्न पूछना किस प्रकार गैर-कानूनी गतिविधि हो सकती है और किस प्रकार के प्रश्न को गैर-कानूनी गतिविधि में शामिल किया जाएगा।
    • इसी प्रकार अधिनियम में भारत के विरुद्ध असंतोष की स्थिति पैदा करना भी एक गैर-कानूनी गतिविधि मानी गई है, किंतु अधिनियम में कहीं भी ‘असंतोष’ को परिभाषित नहीं किया गया है, जिसके कारण इस अधिनियम के दुरुपयोग की संभावना काफी अधिक है।
  • ऐसा माना जाता है कि प्रायः इस अधिनियम का उपयोग राजनीतिक दलों द्वारा असंतोष को लेकर उठाई जाने वाली आवाज़ को दबाने के लिये जान-बूझकर किया जाता है।
  • बीते माह राज्यसभा में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों से पता चला कि वर्ष 2017, 2018 और 2019 में UAPA के तहत कुल 3,005 मामले पंजीकृत किये गए थे, जिसके तहत कुल 3,974 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। हालाँकि इन मामलों में से केवल 821 यानी केवल 27 प्रतिशत मामलों में ही चार्जशिट दाखिल की गई थी।

भीमा कोरेगाँव विवाद

  • महाराष्ट्र के पुणे में स्थित भीमा कोरेगाँव एक छोटा सा गाँव है, जिसका महाराष्ट्र और मराठा इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। दरअसल तकरीबन 200 वर्ष पूर्व 1 जनवरी, 1818 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के 500 सैनिकों की एक छोटी कंपनी, जिसमें ज़्यादातर सैनिक महार समुदाय से थे, ने पेशवा शासक बाजीराव द्वितीय की 28,000 सैनिकों वाली सेना को तकरीबन 12 घंटे तक चले युद्ध में पराजित किया था।
  • इस युद्ध में जिन महार सैनिकों ने लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की, उनके सम्मान में वर्ष 1822 में भीमा नदी के किनारे काले पत्थरों से एक विजय स्तंभ का निर्माण किया गया। 
  • भीमा कोरेगाँव युद्ध का भारत के दलित इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसीलिये भीमा कोरेगाँव के युद्ध को राष्ट्रवाद बनाम साम्राज्यवाद के संकीर्ण दृष्टिकोण से न देखते हुए प्रत्येक वर्ष तमाम अंबेडकरवादी 1 जनवरी को महार सैनिकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिये विजय स्तंभ पर एकत्रित होते हैं।
  • वर्ष 2018 को भीमा कोरेगाँव युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ पर जब कई बुद्धिजीवी और अंबेडकरवादी एकत्रित हुए तो वहाँ दो पक्षों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। मामले की जाँच करते हुए कई लोगों को इस हिंसा की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

आगे की राह

  • आतंकवाद और गैर-कानूनी गतिविधियाँ निसंदेश भारत की एकता और अखंडता के लिये गंभीर खतरा हैं और किसी भी कीमत पर इनसे निपटने के आवश्यकता है। हालाँकि गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम की अस्पष्टता और व्यापकता के कारण इसके दुरुपयोग की संभावना काफी बढ़ जाती है।
  • अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने और ऐसे मामलों की जाँच करने में न्यायपालिका की काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। कानून के तहत पुलिस और प्रशासन को प्रदान की गई शक्तियों की न्यायिक समीक्षा के माध्यम से जाँच की जा सकती है, जिससे अधिनियम के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा।

स्रोत: द हिंदू


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