एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र: स्मार्ट सिटीज़ मिशन
प्रिलिम्स के लिये:नगर निगम, शहरी विकास से संबंधित पहल। मेन्स के लिये:स्मार्ट सिटीज़ मिशन, विकास से संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने घोषणा की है कि सभी 100 स्मार्ट शहरों में स्मार्ट सिटीज़ मिशन (SCM) के तहत एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (Integrated Command and Control Centers -ICCCs) स्थापित किये जाएंगे।
- ये ICCCs स्मार्ट सिटी के तहत विभिन्न राज्यों जैसे- तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात में विकसित किये जा रहे है, जो कि ICCCs की कुल संख्या के मामले में अग्रणी हैं।
एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (ICCCs):
- परिचय:
- ICCC दिन-प्रतिदिन अपवादों से निपटने और आपदा प्रबंधन के साथ शहर के संचालन प्रबंधन के लिये "तंत्रिका केंद्र” (Nerve Center) के रूप में कार्य करेगा।
- ICCCs शहर के नगर निगम को स्मार्ट समाधान प्रदान करने तथा शहर की सुरक्षा एवं निगरानी का प्रबंधन करने में मदद करते हैं।
- केंद्रों में वास्तविक समय निगरानी, आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली, महत्त्वपूर्ण और 24x7 मैनुअल रखरखाव को शामिल करने के लिये संचालित योजना में वीडियो वॉल शामिल हैं।
- स्मार्ट जीवन, स्मार्ट वातावरण, स्मार्ट अर्थव्यवस्था, स्मार्ट शासन, स्मार्ट जनसंख्या और स्मार्ट गतिशीलता को सक्षम करने के लिये केंद्र स्थापित किये जा रहे हैं।
- बेहतर योजना और नीति निर्माण के लिये खुफिया जानकारी प्राप्त करने हेतु केंद्र समग्र स्तर पर जटिल डेटा समूह को संसाधित कर मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।
- ICCCs अब गृह मंत्रालय के तहत अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम (CCTNS) से भी जुड़े हुए हैं।
- उद्देश्य:
- शहर भर में तैनात एकाधिक अनुप्रयोगों में जानकारी एकत्र करने तथा निर्णय लेने वालों को उपयुक्त दृश्य के साथ कार्रवाई योग्य जानकारी प्रदान करना है।
स्मार्ट सिटी मिशन:
- स्मार्ट सिटी मिशन के बारे में:
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे जून 2015 में "स्मार्ट सॉल्यूशंस" (Smart Solutions) के आवेदन के माध्यम से नागरिकों को उच्च गुणवत्ता के साथ जीवन जीने हेतु आवश्यक बुनियादी ढांँचा, स्वच्छ और टिकाऊ वातावरण प्रदान करने के लिये 100 शहरों को परिवर्तित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- मिशन का उद्देश्य विभिन्न शहरी विकास परियोजनाओं के माध्यम से शहरों में रहने वाली भारतीय आबादी की आकांक्षाओं को पूरा करना है।
- विशेषताएँ:
- इसके रणनीतिक घटकों में 'क्षेत्र-आधारित विकास' जिसमें शहर सुधार (Retrofitting), शहर नवीनीकरण (Redevelopment) और शहर विस्तार (Greenfield Development) शामिल हैं, साथ ही एक पैन-सिटी पहल, जिसमें शहर के बड़े हिस्से को कवर करते हुए 'स्मार्ट समाधानों' को लागू किया जाता हैं।
- योजना के मुख्य फोकस क्षेत्रों में पैदल मार्ग का निर्माण, पैदल यात्री क्रॉसिंग, साइकिल ट्रैक, कुशल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली, एकीकृत यातायात प्रबंधन और मूल्यांकन शामिल हैं।
- यह योजना शहरी विकास को ट्रैक करने हेतु विभिन्न सूचकांकों का भी आकलन करती है जैसे- जीवन सुगमता सूचकांक, नगर पालिका कार्य प्रदर्शन सूचकांक, सिटी जीडीपी फ्रेमवर्क, जलवायु स्मार्ट शहरों का आकलन ढाँचा आदि।
- स्थिति:
- SCM के कार्यान्वयन की अवधि जून 2023 तक बढ़ा दी गई है।
- SCM ने अब तक 140 से अधिक सार्वजनिक-निजी भागीदारी, 340 'स्मार्ट सड़कों', 78 'जीवंत सार्वजनिक स्थानों', 118 'स्मार्ट वाटर' परियोजनाओं और 63 से अधिक सौर परियोजनाओं को कवर किया है।
स्मार्ट सिटी:
- स्मार्ट सिटी की कोई मानक परिभाषा या खाका नहीं है। हमारे देश के संदर्भ में स्मार्ट सिटी की अवधारणा जिन छह मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है, वे इस प्रकार हैं:
शहरी विकास से संबंधित पहलें:
- कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन- अमृत मिशन (AMRUT)
- प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U)
- क्लाइमेट स्मार्ट सिटीज़ असेसमेंट फ्रेमवर्क 2.0
- ट्यूलिप- द अर्बन लर्निंग इंटर्नशिप प्रोग्राम
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
फिनक्लुवेशन
प्रिलिम्स के लिये:फिनक्लुवेशन, इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक, आरबीआई, स्टार्टअप, वित्तीय समावेशन, डिजिटल इंडिया, डाक विभाग। मेन्स के लिये:वृद्धि एवं विकास, संसाधनों का संग्रहण, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप विकास से संबंधित मुद्दे, बैंकिंग क्षेत्र एवं एनबीएफसी, वित्तीय समावेशन, डिजिटल इंडिया। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (India Post Payments Bank- IPPB) द्वारा फिनक्लुवेशन प्लेटफॉर्म (Fincluvation Platform) को लॉन्च किया गया है, ताकि फिनटेक स्टार्टअप्स के सहयोग से अभिनव उपायों को बढ़ावा दिया जा सके और वंचित तथा सेवाओं तक पहुँच वाली आबादी के बीच वित्तीय समावेशन में तेज़ी लाई जा सके।
- फिनटेक (वित्तीय प्रौद्योगिकी) शब्द व्यवसायों द्वारा उपयोग किये जाने वाले उन सॉफ्टवेयर और अन्य आधुनिक तकनीकों को संदर्भित करता है जो स्वचालित एवं आयातित वित्तीय सेवाएंँ प्रदान करते हैं।
प्रमुख बिंदु
फिनक्लुवेशन:
- फिनक्लुवेशन, भाग लेने वाले स्टार्टअप के साथ समावेशी वित्तीय समाधान उपलब्ध कराने हेतु IPPB का एक स्थायी मंच होगा।
- IPPB और डाक विभाग (Department of Post- DoP) सामूहिक रूप से डाकघरों और उनमें कार्यरत्त 4,00,000 से अधिक कर्मचारियों तथा ग्रामीण डाक सेवकों के माध्यम से 430 मिलियन ग्राहकों को अपनी सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं जो इसे विश्व के सबसे बड़े और सबसे भरोसेमंद डाक नेटवर्क का निर्माण करते हैं।
- वित्तीय समावेशन के लिये लक्षित सार्थक वित्तीय उत्पादों के निर्माण की दिशा में स्टार्टअप्स समुदाय को प्रोत्साहित करने हेतु एक शक्तिशाली मंच की स्थापना करने की यह उद्योग की प्रथम पहल है।
- स्टार्टअप्स को निम्नलिखित ट्रैक्स के साथ संरेखित समाधान विकसित करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है:
- क्रेडिटाइज़ेशन- लक्षित ग्राहकों के साथ संयोजित नवोन्मेषी तथा समावेशी क्रेडिट उत्पादों का विकास करना एवं उन्हें डाक नेटवर्क के माध्यम से उनके द्वार तक पहुँचाना।
- डिजिटाइज़ेशन- डिजिटल भुगतान प्रौद्योगिकियों के साथ पारंपरिक सेवाओं के समन्वयन के माध्यम से सुविधा प्रदान करना, उदाहरण के लिये अंतः पारस्परिक बैंकिंग सेवा के रूप में पारंपरिक मनीऑर्डर सेवा उपलब्ध कराना।
- बाज़ार आधारित समाधान- बाज़ार आधारित कोई भी समाधान जो लक्षित ग्राहकों की सेवा करने में आईपीपीबी (IPPB) और/या डाक विभाग से संबंधित किसी अन्य समस्या का समाधान करने में सहायता कर सकती है।
- फिनक्लुवेशन मेंटर स्टार्टअप्स के साथ मिलकर कार्य करेंगे ताकि ग्राहकों की ज़रूरतों के हिसाब से उत्पादों में बदलाव किया जा सके और आईपीपीबी और डीओपी के ऑपरेटिंग मॉडल के साथ बाज़ार में प्रवेश की रणनीति बनाई जा सके।
भारत में फिनक्लुवेशन की आवश्यकता:
- नए अवसरों को बढ़ावा देना: पारंपरिक वितरण नेटवर्कों से जुड़ी वित्तीय सेवाओं के साथ प्रौद्योगिकी का समन्वयन नए प्रकार के व्यवसाय अवसर उपलब्ध करा रही है।
- उपयोगकर्त्ताओं के अनुभव को बढ़ाना: प्रौद्योगिकी खरीद के पारंपरिक मॉडल के कारण बैंकों द्वारा उत्पाद निर्माण में अक्सर उपयोगकर्त्ता के अनुभव की कमी देखी जाती है जिससे ग्राहकों की अपेक्षाओं और सेवा वितरण के बीच एक बड़ा अंतर उत्पन्न होता है।
- पारंपरिक प्रौद्योगिकियों की विफलता: उत्पाद निर्माण में स्वामित्व की कमी के कारण पारंपरिक प्रौद्योगिकी फर्म ग्राहकों की सेवा अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहती है। भारतीय नागरिकों की विविध ज़रूरतें हैं, इसलिये उपयोगकर्त्ताओं के बीच सावधानीपूर्वक विचार करते हुए उत्पाद का डिजाइन और प्रतिरूप तैयार करने की आवश्यकता है।
इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक
- IPPB को वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा भारत सरकार के स्वामित्व वाली 100% इक्विटी के साथ लॉन्च किया गया था।
- यह भारतीय डाक विभाग का एक भुगतान बैंक है जो डाकघरों और लगभग 4 लाख डाकियों के नेटवर्क के माध्यम से काम करता है। इसे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- बैंकों की स्थापना भारत में आम आदमी के लिये सबसे सुलभ, किफायती और भरोसेमंद बनाने की दृष्टि से की गई है। IPPB का मूल उद्देश्य है बैंक के अभाव और ऐसी बाधाओं को दूर करना तथा अंतिम व्यक्ति तक बैंक की सुविधा पहुंँचाना है।
- IPPB कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और डिजिटल इंडिया के विज़न में योगदान करने के लिये प्रतिबद्ध है।
वित्तीय समावेशन:
- वित्तीय समावेशन मुख्यधारा के संस्थागत प्लेयर्स द्वारा उचित और पारदर्शी तरीके से यथोचित वित्तीय उत्पादों और सेवाओं तक पहुंँच सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है, जिसमें कमज़ोर वर्ग और कम आय वाले समूह शामिल हैं।
वित्तीय समावेशन के लिये कुछ अन्य पहलें:
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
- स्टैंडअप इंडिया योजना
- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना
- प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना
- अटल पेंशन योजना
- प्रधानमंत्री जन धन योजना
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये:(2010)
भारत में "वित्तीय समावेशन" के लिये उपरोक्त में से कौन-सा/से कदम उठाया/उठाए जाना/जाने चाहिये? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
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स्रोत: पीआईबी
गुरु तेग बहादुर
प्रिलिम्स के लिये:गुरु ग्रंथ साहिब, गुरु नानक देव और सिख धर्म, सिख धर्म के अन्य गुरु। मेन्स के लिये:प्राचीन भारतीय इतिहास, गुरु तेग बहादुर और उनकी शिक्षाएँ, सिख धर्म। |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने गुरु तेग बहादुर (1621-1675) की 401वीं जयंती के अवसर पर लाल किले से राष्ट्र को संबोधित किया।
गुरु तेग बहादुर:
- तेग बहादुर का जन्म 21 अप्रैल, 1621 को अमृतसर में माता नानकी और छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद के यहाँ हुआ था, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ सेना खड़ी की और योद्धा संतों की अवधारणा पेश की।
- तेग बहादुर को उनके तपस्वी स्वभाव के कारण त्याग मल (Tyag Mal) कहा जाता था। उन्होंने अपना प्रारंभिक बचपन भाई गुरदास के संरक्षण में अमृतसर में बिताया, जिन्होंने उन्हें गुरुमुखी, हिंदी, संस्कृत और भारतीय धार्मिक दर्शन सिखाया, जबकि बाबा बुद्ध ने उन्हें तलवारबाज़ी, तीरंदाज़ी और घुड़सवारी का प्रशिक्षण दिया।
- जब वह केवल 13 वर्ष के थे तब उन्होंने एक मुगल सरदार के खिलाफ लड़ाई में खुद को प्रतिष्ठित किया।
- उनकी रचना को 116 काव्य भजनों के रूप में पवित्र ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में शामिल किया गया है।
- वह एक उत्साही यात्री भी थे और उन्होंने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचार केंद्र स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- ऐसे ही एक मिशन के दौरान उन्होंने पंजाब में चक-ननकी शहर की स्थापना की, जो बाद में पंजाब के आनंदपुर साहिब का हिस्सा बन गया।
- वर्ष 1675 में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर की हत्या दिल्ली में कर दी गई थी।
सिख धर्म:
- पंजाबी भाषा में 'सिख' शब्द का अर्थ है 'शिष्य'। सिख भगवान के शिष्य हैं, जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं।
- सिख एक ईश्वर (एक ओंकार) में विश्वास करते हैं। सिख अपने पंथ को गुरुमत (गुरु का मार्ग- The Way of the Guru) कहते हैं।
- सिख परंपरा के अनुसार, सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और बाद में नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया।
- सिख धर्म का विकास भक्ति आंदोलन और वैष्णव हिंदू धर्म से प्रभावित था।
- इस्लामिक युग में सिखों के उत्पीड़न ने खालसा की स्थापना को प्रेरित किया जो अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता का पंथ है।
- खालसा का आशय उन 'पुरुष' और 'महिलाओं' से है, जो सिख दीक्षा समारोह के माध्यम से पंथ में शामिल हुए हैं तथा जो सिख आचार संहिता एवं संबंधित नियमों का सख्ती से पालन करते हैं।
- वे निर्धारित दिनचर्या जिसमें (5K): केश (बिना कटे बाल), कंघा (एक लकड़ी की कंघी), कारा (एक लोहे का कंगन), कचेरा (सूती जाँघिया) और कृपाण (एक लोहे का खंजर)) शामिल हैं, का पालन करते हैं।
- सिख धर्म अंध अनुष्ठानों जैसे- उपवास, तीर्थ स्थलों का दौरा, अंधविश्वास, मृतकों की पूजा, मूर्ति पूजा आदि की निंदा करता है।
- यह उपदेश देता है कि ईश्वर की दृष्टि में विभिन्न जातियों, धर्मों या लिंग के लोग सभी समान हैं।
- सिख साहित्य:
- आदि ग्रंथ को सिखों द्वारा शाश्वत गुरु का दर्जा दिया गया है और इसी कारण इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता है।
- दशम ग्रंथ के साहित्यिक कार्य और रचनाओं को लेकर सिख धर्म के अंदर कुछ संदेह और विवाद है।
- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति:
- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, अमृतसर, पंजाब (भारत) को दुनिया भर में रहने वाले सिखों का एक सर्वोच्च लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित निकाय, धार्मिक मामलों, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मारकों की देखभाल के लिये वर्ष 1925 में संसद के एक विशेष अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था।
सिख धर्म के दस गुरु |
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गुरु नानक देव (1469-1539) |
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गुरु अंगद (1504-1552) |
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गुरु अमर दास (1479-1574) |
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गुरु राम दास (1534-1581) |
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गुरु अर्जुन देव (1563-1606) |
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गुरु हरगोबिंद (1594-1644) |
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गुरु हर राय (1630-1661) |
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गुरु हरकिशन (1656-1664) |
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गुरु तेग बहादुर (1621-1675) |
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गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708) |
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियांँ (SPACs)
प्रिलिम्स के लिये:एसपीएसी, कंपनी लॉ कमेटी 2022, आईपीओ, शेल कंपनियांँ, एस्क्रो अकाउंट, सेबी। मेन्स के लिये:एसपीएसी का महत्त्व तथा संबधित चिंताओं को दूर करने के उपाय। |
चर्चा में क्यों?
कंपनी कानून समिति 2022 (Company Law Committee 2022) की हालिया सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए सरकार देश में भारतीय कंपनियों की संभावित लिस्टिंग में सहायता हेतु विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियों (Special Purpose Acquisition Companies (SPACs) के लिये एक नियामक ढांँचा स्थापित करने पर विचार कर रही है।
- भारत में व्यापार करने में आसानी प्रदान करने हेतु सिफारिशें करने के लिये वर्ष 2019 में कंपनी लॉ कमेटी का गठन किया गया था।
प्रमुख बिंदु
SPACs के बारे में:
- एक विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनी (SPAC) इनिशियल पब्लिक ऑफ के माध्यम से निवेश हेतु पूंजी जुटाने के एकमात्र उद्देश्य के लिये बनाया गया एक निगम है।
- उनके आईपीओ के समय SPAC के पास कोई मौजूदा व्यवसाय संचालन या अधिग्रहण के लिये कोई निर्धारित लक्ष्य नहीं होता है।
- इस तरह की व्यावसायिक संरचना निवेशकों को फंड हेतु धन का उपयोग करने की अनुमति देती है जिसका उपयोग आईपीओ के बाद पहचाने जाने वाले एक या अधिक अनिर्दिष्ट व्यवसायों हेतु किया जाता है।
- इसलिये इस प्रकार की शेल फर्म संरचना को लोकप्रिय मीडिया में अक्सर "ब्लैंक-चेक कंपनी" कहा जाता है।
- एक बार जब जनता से पैसा जुटा लिया जाता है तो इसे एस्क्रो खाते में रखा जाता है जिसे अधिग्रहण करते समय एक्सेस किया जा सकता है।
- यदि आईपीओ के दो साल के भीतर अधिग्रहण नहीं किया जाता है, तो SPAC को हटा दिया जाता है और पैसा निवेशकों को वापस कर दिया जाता है।
कंपनी कानून समिति 2022 की सिफारिशें:
- यह कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत एसपीएसी को मान्यता देने हेतु एक सक्षम ढांँचा प्रस्तुत करने की सिफारिश करती है और उद्यमियों को घरेलू व वैश्विक एक्सचेंजों पर भारत में शामिल एक एसपीएसी को सूचीबद्ध करने की अनुमति प्रदान करती है।
- विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनियों (SPACs) को अधिनियम की मौज़ूदा योजना के साथ संरेखित करने के लिये समिति ने यह भी सिफारिश की है कि उन शेयरधारकों को एक निकास विकल्प प्रदान किया जाना चाहिये, जो लक्षित कंपनी की पसंद से सहमत नहीं हैं।
- इसके अलावा यह SPACs के लिये अपने आवेदन में कंपनियों को बंद करने से संबंधित प्रावधानों को उपयुक्त रूप से संशोधित करने की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है, क्योंकि उनका अपना कोई परिचालन व्यवसाय नहीं है।
SPACs का महत्त्व:
- लागत कुशल:
- एक कंपनी महीनों के भीतर सार्वजनिक कंपनी हो सकती है यदि उसका विलय हो जाता है या एक SPAC द्वारा अधिग्रहित कर ली जाती है।
- SPACs विशेष रूप से निवेशकों को विशिष्ट भारतीय व्यवसायों के लिये अद्वितीय अवसर पेश करते हैं जो इस प्रक्रिया से जुड़ी विशाल लागतों को वहन किये बिना विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होने का इरादा रखते हैं।
- उदाहरण के लिये अगस्त 2021 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निगमित SPAC के माध्यम से NASDAQ (एक अमेरिकी स्टॉक मार्केट) पर एक भारतीय अक्षय ऊर्जा कंपनी, रिन्यू पावर प्राइवेट लिमिटेड की हालिया लिस्टिंग SPAC की लोकप्रियता की बात करती है।
- ज़ोखिम को कम कर सुरक्षा सुनिश्चित करना:
- SPACs के माध्यम से सूचीबद्ध करना उल्लेखनीय माना जाता है क्योंकि पूरी प्रक्रिया न्यूनतम ज़ोखिम और सुनिश्चित निश्चितता के साथ एक निश्चित समझौते के अनुसार होती है।
- असहमत शेयरधारकों को सुरक्षा प्रदान करना:
- यह असंतुष्ट SPAC शेयरधारकों के हितों की भी रक्षा करती है क्योंकि प्रस्तावित अधिग्रहण के खिलाफ वोट देने वालों को SPAC प्रमोटरों को अपने शेयर बेचकर बाहर निकलने की अनुमति है।
- निवेशकों के लिये आकर्षक:
- अनिवार्य रूप से शेल कंपनियाँ होने के बावजूद ये निवेशकों के लिये आकर्षक हैं क्योंकि ब्लैंक-चेक कंपनियाँ लोगों द्वारा प्रायोजित होती हैं।
- देशों और उपभोक्ता आधारों के लिये एक्सपोज़र का अवसर:
- कुछ व्यवसायों के लिये SPACs उन देशों और उपभोक्ता आधारों के साथ संपर्क हेतु अवसर भी प्रदान करते हैं जहाँ ऐसे विशिष्ट उत्पादों की मांग है तथा ऐसी कंपनियों को उच्च मूल्यांकन प्राप्त करने अनुमति है।
शेल कंपनियाँ:
- शेल कंपनी एक ऐसी फर्म होती है जिसका अर्थव्यवस्था में कोई संचालन नहीं होता है, लेकिन यह अर्थव्यवस्था में औपचारिक रूप से पंजीकृत, निगमित या कानूनी रूप से संगठित होती है।
- इन्हें कभी-कभी अवैध रूप से जैसे कि कानून प्रवर्तन या जनता से व्यावसायिक स्वामित्व को छिपाने के लिये उपयोग किया जाता है|
इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग(IPO):
- प्राथमिक बाज़ार में जनता को प्रतिभूतियों की बिक्री को इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग कहा जाता है।
- प्राथमिक बाज़ार पहली बार जारी की जा रही नई प्रतिभूतियों से संबंधित है। इसे न्यू इश्यू मार्केट के नाम से भी जाना जाता है।
- इसे शेयर बाज़ार या स्टॉक एक्सचेंज के नाम से भी जाना जाता है। जो द्वितीयक बाज़ार से अलग है, जहाँ मौजूदा प्रतिभूतियों को खरीदा और बेचा जाता है।
- इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग तब प्रस्तुत की जाती है जब एक गैर-सूचीबद्ध कंपनी या तो प्रतिभूतियों को पहली बार या अपनी मौजूदा प्रतिभूतियों की बिक्री का प्रस्ताव या दोनों को पहली बार शेयर बाज़ार में बिक्री के लिये जारी करती है।
- गैर-सूचीबद्ध कंपनियाँ वे हैं जो स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध नहीं होती हैं।
एस्क्रो खाता (Escrow Account):
- यह एक कानूनी अवधारणा है जो एक ऐसे वित्तीय उपकरण को संदर्भित करती है जिसके तहत लेन-देन की प्रक्रिया को पूरा करने के लिये संपत्ति या एस्क्रो मनी को दो अन्य पार्टियों की ओर से एक तीसरे पक्ष को उपलब्ध कराया जाता है।
- तृतीय-पक्ष निधि को तब तक अपने पास रखता है जब तक कि दोनों पक्ष अपनी संविदात्मक शर्तों को पूरा नहीं कर लेते।
SPAC से संबंधित चिंताएँ:
- खुदरा निवेशकों के लिये रिटर्न सीमित हो सकता है:
- एसपीएसी के लिये निवेशक फर्मों में उछाल और फिर लक्षित कंपनियों की तलाश ने निवेशित फर्मों के पक्ष में पैमानों को झुका दिया है। इसमें सैद्धांतिक रूप से विलय के बाद खुदरा (व्यक्तिगत) निवेशकों के लिये रिटर्न सीमित करने की क्षमता है।
- प्रत्येक SPAC लक्ष्य आकर्षित करने में सक्षम नहीं है:
- क्योंकि एसपीएसी को लिस्टिंग के बाद एक लक्षित इकाई की तलाश शुरू करने की आवश्यकता होती है और समग्र लेन-देन एक निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर पूरा करने की उम्मीद की जाती है, ऐसे में कई एसपीएसी आकर्षक लक्षित व्यवसायों की तलाश करते नज़र आते हैं।
- सौदे के परिणामस्वरूप जल्दबाज़ी में निर्णय लिया जा सकता है:
- समयबद्ध खोज - एसपीएसी दो साल के लिये मौजूद है, एक आकर्षक सौदे के परिणामस्वरूप जल्दबाज़ी में निर्णय हो सकते हैं, जिससे असंतुष्ट शेयरधारकों को बाहर निकलने हेतु प्रेरित किया जा सकता है और निवेशकों का समग्र लाभ कम हो सकता है।
- निराशाजनक परिणाम जांँच शुरू कर सकते हैं:
- कई मामलों में निराशाजनक परिणामों के फलस्वरूप शेयरधारकों द्वारा यूएस में एसपीएसी प्रायोजकों के खिलाफ क्लास एक्शन सूट और जांँच शुरू करने का निर्णय लिया गया।
- अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग ने निवेशकों के लिये अधिक खुलासे की आवश्यकता पर ध्यान दिया है और धोखाधड़ी तथा हितों के टकराव के खिलाफ अधिक सुरक्षा का आह्वान किया गया है।
आगे की राह
- भारत को SPAC का लाभ उठाना चाहिये :
- भारत, SPACs का संचालन सतर्कता, आशावाद और अधिक नियामक निरीक्षण के साथ किया जा रहा है, यहांँ तक कि SPACs द्वारा किये गए बेहतर प्रदर्शन के उदाहरण धीरे-धीरे धरातल पर दिखने लगे हैं।
- उन्हें नियंत्रित करने वाले नियामक ढांँचे को मज़बूत करने और जोखिम को कम करने के लिये ऐसी कंपनियों को वैधानिक मान्यता प्रदान करना तथा निवेशकों के हितों की रक्षा के उपाय करना आवश्यक है।
- SPAC वैश्विक एक्सचेंजों कीअनुमति:
- यह आवश्यक है कि भारत में निगमित SPAC को न केवल घरेलू स्टॉक एक्सचेंजों पर बल्कि वैश्विक एक्सचेंजों पर भी सूचीबद्ध होने की अनुमति दी जानी चाहिये, ताकि लक्षित कंपनियाँ SPACs की लहर को पार कर अपनी पूरी क्षमता हासिल करने में सक्षम बन सकें।
- SPAC से संबंधित मुद्दों का विश्लेषण:
- कंपनी अधिनियम के अंतर्गत SPACs को मान्यता देना एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन अभी भी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के परामर्श से बाज़ार प्रथाओं के आधार पर SPACs से संबंधित मुद्दों के अधिक उत्कृष्टता के साथ विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त कंपनी अधिनियम की धारा 23(3) और धारा 23(4) के लागू होने के बाद ही भारतीय निगमित SPACs की विदेशी सूची प्राप्त की जा सकती है। जो कुछ वर्गों की कंपनियों को अनुमत विदेशी क्षेत्राधिकार के स्टॉक एक्सचेंजों पर अपनी प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध करने में सक्षम बनाता है।
- कंपनी अधिनियम के अंतर्गत SPACs को मान्यता देना एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन अभी भी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के परामर्श से बाज़ार प्रथाओं के आधार पर SPACs से संबंधित मुद्दों के अधिक उत्कृष्टता के साथ विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये बैटरी स्वैपिंग ड्राफ्ट पॉलिसी
प्रिलिम्स के लिये:बैटरी स्वैपिंग, नीति आयोग, ईवी प्रोत्साहन के लिये सरकारी योजनाएँ, मेन्स के लिये:इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये बैटरी स्वैपिंग नीति का मसौदा, वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के लिये बैटरी स्वैपिंग नीति का मसौदा जारी किया।
- नीति का उद्देश्य इलेक्ट्रिक स्कूटर और तिपहिया इलेक्ट्रिक रिक्शा के लिये बैटरी स्वैपिंग इकोसिस्टम की दक्षता में सुधार करना है, ताकि इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाया जा सके।
- मसौदा नीति के अनुसार, पहले चरण के तहत बैटरी स्वैपिंग नेटवर्क के विकास के लिये 40 लाख से अधिक आबादी वाले सभी महानगरीय शहरों को प्राथमिकता दी जाएगी।
बैटरी स्वैपिंग क्या है?
- बैटरी स्वैपिंग एक ऐसा तंत्र है जिसके तहत चार्ज की गई बैटरी को चार्ज खत्म हो चुकी बैटरी (Discharged Batteries) से बदला जाता है।
- यह इन बैटरियों को अलग से चार्ज करने की सुविधा प्रदान करता है और नगण्य डाउनटाइम के साथ वाहन को परिचालन मोड में रखता है।
- बैटरी की अदला-बदली आमतौर पर छोटे वाहनों जैसे- दोपहिया और तीनपहिया वाहनों के लिये किया जाता है, जिनमें छोटी बैटरी इस्तेमाल होती है, साथ ही चार पहिया और ई-बसों की तुलना में स्वैप करना आसान होता है, हालाँकि इन बड़े वाहनों के लिये भी समाधान खोजा जा रहां है।
मसौदा नीति के मुख्य बिंदु:
- परिचय: मसौदा नीति के अनुसार, बैटरी की अदला-बदली बैटरी-एज़-ए-सर्विस (Battery-as-a-Service - BaaS) व्यवसाय मॉडल के अंतर्गत की जाएगी तथा ऐसे मॉडलों को वैकल्पिक रूप से बैटरी स्वैपिंग के लिये ईवीएस और बैटरी के बीच अंतर-संचालन सुनिश्चित करना होगा।
- उद्देश्य:
- न्यूनतम तकनीकी मानक: यह नीति बैटरी-स्वैपिंग बुनियादी ढाँचे के प्रभावी, कुशल, विश्वसनीय, सुरक्षित और ग्राहक-अनुकूल कार्यान्वयन को सक्षम बनाने के लिये बैटरी स्वैपिंग पारिस्थितिकी तंत्र हेतु आवश्यक न्यूनतम तकनीकी व परिचालन आवश्यकताओं को निर्धारित करती है।
- वित्तीय सहायता: बैटरी प्रदाताओं (बैटरी की लागत के लिये) और ईवी उपयोगकर्त्ताओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- कर को कम करना: मसौदा नीति में सुझाव दिया गया है कि वस्तु एवं सेवा कर परिषद लिथियम-आयन बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहन आपूर्ति उपकरणों पर कर दरों में अंतर को कम करने पर विचार कर रही है।
- पूर्व में वर्तमान कर की दर 18% थी, जो बाद में 5% कर दी गई।
- विशिष्ट पहचान संख्या: नीति में विनिर्माण स्तर पर स्वैपेबल बैटरियों को ट्रैक तथा उनकी निगरानी करने हेतु एक विशिष्ट पहचान संख्या (UIN) प्रदान करने का भी प्रस्ताव है।
- नोडल एजेंसी: ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency) केंद्रीय नोडल एजेंसी है, जो ईवी (EV) पब्लिक चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के रोलआउट तथा देश भर में बैटरी स्वैपिंग नेटवर्क के कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार होगी।
नीति की आवश्यकता क्यों है?
- EVs पारंपरिक रूप से "फिक्स्ड" बैटरी के साथ खरीदे जाते हैं जिन्हें केवल EV के भीतर रखे जाने पर बिजली का उपयोग करके चार्ज किया जा सकता है।
- पारंपरिक वाहनों के लिये ईंधन स्टेशनों की तरह बड़े पैमाने पर EV अपनाने के लिये पर्याप्त, किफायती, सुलभ और विश्वसनीय चार्जिंग नेटवर्क ज़रूरी है।
- भारत में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता को बढ़ावा देने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं।
- हालांँकि चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने में अभी भी काफी समय लग सकता है और शहरी क्षेत्रों में जगह की कमी है।
- इसलिये भारत सरकार ने बजट भाषण 2022-23 में घोषणा की थी कि ईवी पारिस्थितिकी तंत्र दक्षता में सुधार हेतु केंद्रीय बैटरी स्वैपिंग नीति और इंटरऑपरेबिलिटी मानकों को पेश किया जाएगा।
नीति का महत्त्व:
- डीकार्बोनाइज़िंग ट्रांसपोर्ट सेक्टर: भारत जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) का एक हस्ताक्षरकर्त्ता देश है, जिस पर भारत द्वारा वर्ष 2021 में हस्ताक्षर किये गए थे।
- जनादेश के तहत भारत वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य लक्ष्य प्राप्त करने हेतु प्रतिबद्ध है।
- परिवहन को डीकार्बोनाइज़ करने हेतु इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के नेतृत्व में स्वच्छ गतिशीलता के लिये यह परिवर्तन आवश्यक है।
- सड़क परिवहन क्षेत्र कार्बन उत्सर्जन में प्रमुख योगदानकर्त्ताओं में से एक है और लगभग 33% पार्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन करता है।
- ईवी बाज़ार का लाभ उठाना: वर्ष 2021 में समग्र भारतीय ईवी बाज़ार 1,434.04 बिलियन अमेरिकी डाॅलर आंँका गया था तथा जिसके वर्ष 2027 तक 47.09% CAGR से बढ़कर 15,397.19 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।
ईवी को बढ़ावा देने हेतु संबंधित सरकारी योजनाएंँ:
- सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 2015 में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को फेम-इंडिया (Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles-FAME) योजना शुरू की थी।
- इसके अलावा इसने वर्ष 2021 में एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल (ACC) बैटरियों के निर्माण के लिये प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना को भी मंज़ूरी दी गई।
- एक अन्य PLI योजना, जिसमें ईवी स्टार्टअप भी शामिल हैं, को भी बजटीय परिव्यय के साथ मोटर वाहन क्षेत्र हेतु अनुमोदित किया गया था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अरुणाचल प्रदेश और असम विवाद
प्रिलिम्स के लिये:असम-अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद, संविधान का अनुच्छेद 263. मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर सीमा विवाद और संबंधित मुद्दे तथा आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अरुणाचल प्रदेश और असम की सरकारों ने सीमा विवादों के समाधान हेतु ज़िला स्तरीय समितियों (District-level Committees) को गठित करने का निर्णय लिया है।
- ये ज़िला समितियांँ दोनों राज्यों की ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, जातीयता, निकटता, लोगों की इच्छा और प्रशासनिक सुविधा के आधार पर लंबे समय से लंबित मुद्दे के ठोस समाधान खोजने हेतु विवादित क्षेत्रों में संयुक्त सर्वेक्षण का कार्य करेंगी।
प्रमुख बिंदु
देश में सीमा विवाद:
- असम-अरुणाचल प्रदेश:
- असम अरुणाचल प्रदेश के साथ 804.10 किमी की अंतर-राज्यीय सीमा साझा करता है। वर्ष 1987 में बनाए गए अरुणाचल प्रदेश राज्य का दावा है कि पारंपरिक रूप से इसके निवासियों की कुछ भूमि असम को दे दी गई है।
- एक त्रिपक्षीय समिति ने सिफारिश की थी कि कुछ क्षेत्रों को असम से अरुणाचल में स्थानांतरित किया जाए। इस मुद्दे को लेकर दोनों राज्य न्यायालय की शरण में हैं।
- असम-मिज़ोरम:
- मिज़ोरम एक अलग केंद्रशासित प्रदेश बनने से पहले असम का एक ज़िला हुआ करता था जो बाद में एक अलग राज्य बना।
- मिज़ोरम की सीमा असम के कछार, हैलाकांडी और करीमगंज ज़िलों से लगती है।
- समय के साथ सीमांकन को लेकर दोनों राज्यों की अलग-अलग धारणाएँ बनने लगीं।
- मिज़ोरम चाहता है कि यह बाहरी प्रभाव से आदिवासियों की रक्षा के लिये वर्ष 1875 में अधिसूचित एक आंतरिक रेखा के साथ हो, जो मिज़ो को उनकी ऐतिहासिक मातृभूमि का हिस्सा लगता है, असम का मानना है कि सीमा का निर्धारण बाद में तैयार की गई ज़िला सीमाओं के अनुसार किया जाए।
- असम-नगालैंड:
- वर्ष 1963 में नगालैंड के गठन के बाद से ही दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद चल रहा है।
- दोनों राज्य असम के गोलाघाट ज़िले के मैदानी इलाकों के बगल में एक छोटे से गांँव मेरापानी पर अपना दावा करते हैं।
- 1960 के दशक से इस क्षेत्र में हिंसक झड़पों की खबरें आती रही हैं।
- असम-मेघालय:
- मेघालय ने करीब एक दर्ज़न क्षेत्रों की पहचान की है जिन पर राज्य की सीमाओं को लेकर असम के साथ उसका विवाद है।
- हरियाणा-हिमाचल प्रदेश:
- दो का उत्तरी राज्यों का परवाणू क्षेत्र पर सीमा विवाद है, जो हरियाणा के पंचकुला ज़िले के समीप स्थित है।
- हरियाणा ने इलाके की एक बड़ी ज़मीन पर अपना दावा किया है और हिमाचल प्रदेश पर हरियाणा के कुछ पहाड़ी इलाके पर कब्ज़ा करने का आरोप लगाया है।
- लद्दाख-हिमाचल प्रदेश:
- लद्दाख और हिमाचल दोनों केंद्रशासित प्रदेश सरचू क्षेत्र पर अपना का दावा करते हैं, जो लेह-मनाली राजमार्ग से यात्रा करने वालों के लिये एक प्रमुख पड़ाव बिंदु है।
- यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति ज़िले और लद्दाख के लेह ज़िले के बीच स्थित है।
- महाराष्ट्र-कर्नाटक:
- शायद देश में सबसे बड़ा सीमा विवाद बेलगाम ज़िले को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच है।
- बेलगाम में मराठी और कन्नड़ दोनों भाषी लोगों की एक बड़ी आबादी है तथा दोनों राज्यों के बीच अतीत में इस क्षेत्र में संघर्ष हुए हैं।
- यह क्षेत्र अंग्रेज़ों के समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन वर्ष 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद इसे कर्नाटक में शामिल कर लिया गया।
अंतर्राज्यीय सीमा विवाद अनसुलझे क्यों हैं?
- भाषायी आधार पर पुनर्गठन का विचार: हालाँकि राज्य पुनर्गठन आयोग, 1956 प्रशासनिक सुविधा पर आधारित था फिर भी पुनर्गठित राज्य काफी हद तक एक भाषा एक राज्य के विचार से मिलते जुलते थे।
- भौगोलिक जटिलता: दूसरी जटिलता इस क्षेत्र की रही है, जहाँ नदियाँ, पहाड़ियाँ और जंगल कई जगहों पर दो राज्यों में फैले हुए हैं व सीमाओं को भौतिक रूप से चिह्नित नहीं किया जा सकता है।
- औपनिवेशिक मानचित्रों ने असम के बाहर पूर्वोत्तर के बड़े इलाकों को "घने जंगलों" (Thick Forests) के रूप में छोड़ दिया था या उन्हें "अन्वेषित" (Unexplored) के रूप में चिह्नित किया था।
- स्वदेशी समुदाय: अधिकांश भाग के स्वदेशी समुदाय अकेले रह गए थे। प्रशासनिक सुविधा के लिये सीमाएँ "ज़रूरत" पड़ने पर ही खींची गई थीं।
- वर्ष 1956 के सीमांकन ने विसंगतियों का समाधान नहीं किया।
- जब असम (वर्ष 1963 में नगालैंड, वर्ष 1972 में मिज़ोरम, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर तथा वर्ष 1987 में अरुणाचल प्रदेश) से नए राज्य बनाए गए थे, तब भी इस पर ध्यान नहीं दिया गया था।
आगे की राह
- राज्यों के बीच सीमा विवादों को वास्तविक सीमा स्थानों के उपग्रह मानचित्रण का उपयोग करके सुलझाया जा सकता है।
- अंतर-राज्यीय परिषद को पुनर्जीवित करना अंतर-राज्यीय विवाद के समाधान का एक विकल्प हो सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत अंतर-राज्य परिषद से विवादों की जाँच और सलाह देने, सभी राज्यों के लिये सामान्य विषयों पर चर्चा करने और बेहतर नीति समन्वय हेतु सिफारिशें करने की अपेक्षा की जाती है।
- इसी तरह सामाजिक और आर्थिक नियोजन, सीमा विवाद, अंतर-राज्यीय परिवहन आदि से संबंधित मामलों में प्रत्येक क्षेत्र में राज्यों के लिये सामान्य चिंता के मामलों पर चर्चा करने हेतु क्षेत्रीय परिषदों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
- भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है। हालाँकि इस एकता को और मज़बूत करने के लिये केंद्र व राज्य सरकारों दोनों को सहकारी संघवाद के लोकाचार को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. वर्ष 1953 में जब आंध्र प्रदेश को अलग राज्य बनाया गया था तब उसकी राजधानी किसे बनाया गया था? (2008) (a) गुंटूर उत्तर: (b)
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