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भारतीय विरासत और संस्कृति

गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप

  • 25 Aug 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये 

 गुरु ग्रंथ साहिब, सिख धर्म

मेन्स के लिये 

सिख धर्म के गुरु एवं उनके विचार 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत, अफगानिस्तान से गुरु ग्रंथ साहिब (सिख पवित्र पुस्तक) के तीन स्वरूप/प्रतियाँ (Saroops) लाया है, अब अफगानिस्तान में शेष तीन प्रतियाँ बची हैं।

  • अफगानिस्तान में 13 प्रतियाँ थी, जिनमें से सात पहले ही भारत में स्थानांतरित हो चुकी थीं।

प्रमुख बिंदु

परिचय :

  • स्वरूप श्री गुरु ग्रंथ साहिब की एक भौतिक प्रति है, जिसे पंजाबी में बीर भी कहा जाता है। प्रत्येक बीर में 1,430 पृष्ठ होते हैं, जिन्हें अंग कहा जाता है। प्रत्येक पृष्ठ पर छंद एक समान रहते हैं।
  • सिख गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप को एक जीवित गुरु मानते हैं तथा इसे अत्यंत सम्मान के साथ रखते हैं।
    • उनका मानना है कि सभी 10 गुरु अलग-अलग शरीरों में एक ही आत्मा थे तथा गुरु ग्रंथ साहिब उनका शाश्वत भौतिक और आध्यात्मिक रूप है।
  • गुरु अर्जुन देव (पाँचवें सिख गुरु) ने 1604 में गुरु ग्रंथ साहिब के पहले बीर को संकलित किया और इसे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में स्थापित किया।
  • बाद में गुरु गोबिंद सिंह (दसवें सिख गुरु) ने अपने पिता गुरु तेग बहादुर (नौवें गुरु) द्वारा लिखे गए छंदों को जोड़ा तथा दूसरी और आखिरी बार बीर का संकलन किया।
  • 1708 में गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का जीवित गुरु घोषित किया था।
  • गुरु ग्रंथ साहिब छह सिख गुरुओं, 15 संतों द्वारा लिखे गए भजनों का एक संग्रह है, जिसमें भगत कबीर, भगत रविदास, शेख फरीद और भगत नामदेव, 11 भट्ट (गीतकार) और 4 सिख शामिल हैं।
    • श्लोकों की रचना 31 रागों में की गई है।
  • शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के पास गुरु ग्रंथ साहिब के बीर को प्रकाशित करने का एकाधिकार है तथा इसका प्रकाशन अमृतसर में किया जाता है।
  • गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना तथा परिवहन एक सख्त आचार संहिता द्वारा नियंत्रित होती है जिसे सिख राहत मर्यादा कहा जाता है।
    • आदर्श परिस्थितियों में गुरु ग्रंथ साहिब को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने के लिये  पाँच बपतिस्मा (Baptism) प्राप्त सिखों की आवश्यकता होती है। सम्मान की निशानी के रूप में गुरु ग्रंथ साहिब के बीर को सिर पर रखा जाता है और व्यक्ति नंगे पैर चलता है।
  • गुरुद्वारों में स्वरूप के लिये एक अलग विश्राम स्थल है, जिसे 'सुख आसन स्थान' या 'सचखंड' कहा जाता है जहाँ गुरु रात में विश्राम करते हैं।
  • सुबह में स्वरूप को फिर से 'प्रकाश' उत्सव समारोह में स्थापित किया जाता है।
  • सिख राहत मर्यादा: यह एक मैनुअल है जो सिखों के कर्तव्यों को निर्दिष्ट करता है तथा  चार अनुष्ठानों को नाम देता है जिन्हें संस्कार मार्ग कहा जाता है।
    • पहला अनुष्ठान जन्म और गुरुद्वारे में आयोजित नामकरण समारोह है।
    •  दूसरा अनुष्ठान आनंद करज (आनंदमय मिलन) या विवाह समारोह है। 
    • तीसरा अनुष्ठान जिसे सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है, अमृत संस्कार है जो खालसा में दीक्षा के लिये होने वाला समारोह है।
    •  चौथा अनुष्ठान मृत्योपरांत होने वाला अंतिम संस्कार समारोह है।

सिख धर्म

  • पंजाबी भाषा में 'सिख' शब्द का अर्थ है 'शिष्य'। सिख भगवान के शिष्य हैं, जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं।
  • सिख एक ईश्वर (एक ओंकार) में विश्वास करते हैं। सिख अपने पंथ को गुरुमत (गुरु का मार्ग- The Way of the Guru) कहते हैं। 
  • सिख परंपरा के अनुसार, सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और बाद में नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया। 
    • सिख धर्म का विकास भक्ति आंदोलन और वैष्णव हिंदू धर्म से प्रभावित था।
  • इस्लामिक युग में सिखों के उत्पीड़न ने खालसा की स्थापना को प्रेरित किया जो अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता का पंथ है।
  • गुरु गोविंद सिंह ने खालसा (जिसका अर्थ है 'शुद्ध') पंथ की स्थापना की जो सैनिक-संतों का विशिष्ट समूह था। 
    • खालसा (Khalsa) प्रतिबद्धता, समर्पण और सामाजिक विवेक के सर्वोच्च सिख गुणों को उजागर करता है तथा ये पंथ की पाँच निर्धारित भौतिक वस्तुओं को धारण करते हैं, जो हैं:
      • केश (बिना कटे बाल), कंघा (लकड़ी की कंघी), कड़ा (एक लोहे का कंगन), कच्छा (सूती जांघिया) और कृपाण (एक लोहे का खंजर)।
  • यह उपदेश देता है कि विभिन्न नस्ल, धर्म या लिंग के लोग भगवान की नज़र में समान हैं।
  • सिख साहित्य:
    • आदि ग्रंथ को सिखों द्वारा शाश्वत गुरु का दर्जा दिया गया है और इसी कारण इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता है।
    • दशम ग्रंथ के साहित्यिक कार्य और रचनाओं को लेकर सिख धर्म के अंदर कुछ संदेह और विवाद है।

सिख धर्म के दस गुरु

गुरु नानक देव (1469-1539)

  • ये सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के संस्थापक थे।
  • इन्होंने ‘गुरु का लंगर’ की शुरुआत की।
  • वह बाबर के समकालीन थे।
  • गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर करतारपुर कॉरिडोर को शुरू किया गया था।

गुरु अंगद (1504-1552)

  • इन्होंने गुरुमुखी नामक नई लिपि का आविष्कार किया और ‘गुरु का लंगर’ प्रथा को लोकप्रिय बनाया।

गुरु अमर दास (1479-1574)

  • इन्होंने आनंद कारज विवाह (Anand Karaj Marriage) समारोह की शुरुआत की।
  • इन्होंने सिखों के बीच सती और पर्दा व्यवस्था जैसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया।
  • ये अकबर के समकालीन थे।

गुरु राम दास (1534-1581)

  • इन्होंने वर्ष 1577 में अकबर द्वारा दी गई ज़मीन पर अमृतसर की स्थापना की।
  • इन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) का निर्माण शुरू किया।

गुरु अर्जुन देव (1563-1606)

  • इन्होंने वर्ष 1604 में आदि ग्रंथ की रचना की।
  • इन्होंने स्वर्ण मंदिर का निर्माण पूरा किया।
  • वे शाहिदीन-दे-सरताज (Shaheeden-de-Sartaj) के रूप में प्रचलित थे।
  • इन्हें जहाँगीर ने राजकुमार खुसरो की मदद करने के आरोप में मार दिया।

गुरु हरगोबिंद (1594-1644)

  • इन्होंने सिख समुदाय को एक सैन्य समुदाय में बदल दिया। इन्हें "सैनिक संत" (Soldier Saint) के रूप में जाना जाता है।
  • इन्होंने अकाल तख्त की स्थापना की और अमृतसर शहर को मज़बूत किया।
  • इन्होंने जहाँगीर और शाहजहाँ के खिलाफ युद्ध छेड़ा।

गुरु हर राय (1630-1661)

  • ये शांतिप्रिय व्यक्ति थे और इन्होंने अपना अधिकांश जीवन औरंगज़ेब के साथ शांति बनाए रखने तथा मिशनरी काम करने में समर्पित कर दिया।

गुरु हरकिशन (1656-1664)

  • ये अन्य सभी गुरुओं में सबसे कम आयु के गुरु थे और इन्हें 5 वर्ष की आयु में गुरु की उपाधि दी गई थी।
  • इनके खिलाफ औरंगज़ेब द्वारा इस्लाम विरोधी कार्य के लिये सम्मन जारी किया गया था।

गुरु तेग बहादुर (1621-1675)

  • इन्होंने आनंदपुर साहिब की स्थापना की।

गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708)

  • इन्होंने वर्ष 1699 में ‘खालसा’ नामक योद्धा समुदाय की स्थापना की।
  • इन्होंने एक नया संस्कार "पाहुल" (Pahul) शुरू किया।
  • ये मानव रूप में अंतिम सिख गुरु थे और इन्होंने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के गुरु के रूप में नामित किया।

 स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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