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डेली न्यूज़

  • 21 Nov, 2022
  • 32 min read
इन्फोग्राफिक्स

परमाणु हथियारों के खिलाफ संधियाँ

nuclear


इन्फोग्राफिक्स

परमाणु हथियारों के खिलाफ संधियाँ (भाग-2)

Nuclear-2


शासन व्यवस्था

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, गोपनीयता का अधिकार, पुट्टास्वामी निर्णय, अन्य देशों के डेटा संरक्षण कानून

मेन्स के लिये:

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 के प्रावधान, पुट्टास्वामी निर्णय, अन्य देशों के डेटा संरक्षण कानून

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने एक संशोधित व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक जारी किया है, जिसे अब डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 कहा जाता है।

 डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2022 के सात सिद्धांत:

  • सबसे पहल संगठनों द्वारा व्यक्तिगत डेटा का उपयोग इस तरह से किया जाना चाहिये जो संबंधित व्यक्तियों के लिये वैध, निष्पक्ष और पारदर्शी हो।
  • दूसरे, व्यक्तिगत डेटा का उपयोग केवल उन उद्देश्यों के लिये किया जाना चाहिये जिनके लिये इसे एकत्र किया गया हो।
  • तीसरा सिद्धांत डेटा न्यूनीकरण की बात करता है।
  • चौथा सिद्धांत संग्रह की बात आने पर डेटा सटीकता पर ज़ोर देता है।
  • पाँचवाँ सिद्धांत कहता है कि कैसे एकत्र किये गए व्यक्तिगत डेटा को "डिफाॅल्ट रूप से स्थायी तौर पर संग्रहीत नहीं किया जा सकता है" और भंडारण एक निश्चित अवधि तक सीमित होना चाहिये।
  • छठा सिद्धांत कहता है कि यह सुनिश्चित करने के लिये उचित सुरक्षा उपाय होने चाहिये कि "व्यक्तिगत डेटा का कोई अनधिकृत संग्रह या प्रसंस्करण नहीं हो"।
  • सात सिद्धांत कहता है कि "जो व्यक्ति व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों को तय करता है, उसे इस तरह के प्रसंस्करण के लिये ज़वाबदेह होना चाहिये"।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • डेटा प्रिंसिपल और डेटा न्यासी:
    • डेटा प्रिंसिपल उस व्यक्ति को संदर्भित करता है जिसका डेटा एकत्र किया जा रहा है।
      • बच्चों (<18 वर्ष) के मामले में उनके माता-पिता/वैध अभिभावकों को उनके "डेटा प्रिंसिपल" माना जाएगा।
    • डेटा न्यासी इकाई (व्यक्तिगत, कंपनी, फर्म, राज्य आदि) है, जो "किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों" को तय करता है।
      • व्यक्तिगत डेटा "कोई भी ऐसा डेटा, जिसके द्वारा किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है"।
    • प्रसंस्करण का अर्थ है व्यक्तिगत डेटा के संबंध में पूरा होने वाला "संचालन का चक्र” ही प्रसंस्करण कहलाता है।
  • महत्त्वपूर्ण डेटा न्यासी:
    • महत्त्वपूर्ण डेटा न्यासी वे हैं जो व्यक्तिगत डेटा की उच्च मात्रा से निपटते हैं। केंद्र सरकार कई कारकों के आधार पर परिभाषित करेगी कि इस श्रेणी के तहत किसे नामित किया जाना है।
      • ऐसी इकाइयों को एक 'डेटा संरक्षण अधिकारी' और एक स्वतंत्र डेटा ऑडिटर नियुक्त करना होगा।
  • व्यक्तियों के अधिकार:
    • जानकारी तक पहुँच:
  • सहमति का अधिकार:
    • व्यक्तियों को उनके डेटा को संसाधित करने से पहले सहमति देने की आवश्यकता होती है और "प्रत्येक व्यक्ति को पता होना चाहिये कि व्यक्तिगत डेटा के कौन से आइटम एक डेटा फिड्यूशरी एकत्र करना चाहते हैं और इस तरह के संग्रह एवं आगे की प्रक्रिया का उद्देश्य क्या है"।
    • व्यक्तियों को डेटा फिड्यूशरी से सहमति वापस लेने का भी अधिकार है।
  • नष्ट करने का अधिकार:
    • डेटा प्रिंसिपल के पास डेटा फिड्यूशरी द्वारा एकत्र किये गए डेटा को मिटाने और सुधार की मांग करने का अधिकार होगा।
  • नामांकित करने का अधिकार:
    • डेटा प्रिंसिपल्स को किसी ऐसे व्यक्ति को नामांकित करने का भी अधिकार होगा जो अपनी मृत्यु या अक्षमता की स्थिति में इन अधिकारों का प्रयोग करेगा।
  • डेटा संरक्षण बोर्ड:
    • विधेयक में विधेयक का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये डेटा संरक्षण बोर्ड के गठन का भी प्रस्ताव है।
    • डेटा फिड्यूशरी से असंतोषजनक प्रतिक्रिया के मामले में उपभोक्ता डेटा संरक्षण बोर्ड में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
  • सीमा पार डेटा स्थानांतरण:
    • विधेयक सीमा पार भंडारण एवं डेटा को "कुछ अधिसूचित देशों और क्षेत्रों" में स्थानांतरित करने की अनुमति देता है, बशर्ते उनके पास उपयुक्त डेटा सुरक्षा परिदृश्य हो तथा सरकार वहाँ से भारतीयों के डेटा तक पहुँच सके।
  • वित्तीय दंड:
    • डेटा फिड्यूशरी हेतु:
      • विधेयक उन व्यवसायों पर दंड लगाने का प्रस्ताव करता है जो डेटा उल्लंघनों से गुज़रते हैं या उल्लंघन होने पर उपयोगकर्त्ताओं को सूचित करने में विफल रहते हैं।
      • जुर्माना 50 करोड़ रुपए से लेकर 500 करोड़ रुपए तक लगाया जाएगा।
    • डेटा प्रिंसिपल हेतु:
      • यदि कोई उपयोगकर्त्ता ऑनलाइन सेवा के लिये साइन-अप करते समय झूठे दस्तावेज़ प्रस्तुत करता है या तुच्छ शिकायत दर्ज करता है, तो उपयोगकर्त्ता पर 10,000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • छूट:
    • सरकार कुछ व्यवसायों को उपयोगकर्त्ताओं की संख्या और इकाई द्वारा संसाधित व्यक्तिगत डेटा की मात्रा के आधार पर विधेयक के प्रावधानों का पालन करने से छूट दे सकती है।
      • यह देश के स्टार्टअप्स को ध्यान में रखते हुए किया गया है जिन्होंने शिकायत की थी कि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 बहुत अधिक "अनुपालन गहन" था।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित छूट, पिछले (वर्ष 2019) संस्करण के समान, बरकरार रखी गई है।
      • भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव या किसी भी संज्ञेय अपराध को रोकने के हित में केंद्र को अपनी एजेंसियों को विधेयक के प्रावधानों का पालन करने से छूट देने का अधिकार दिया गया है।

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक का महत्त्व:

  • नया विधेयक भारत में डेटा के स्थानीय भंडारण की पिछले विधेयक की विवादास्पद आवश्यकता से हटकर, सीमा पार डेटा प्रवाह पर महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान करता है।
  • यह डेटा स्थानीयकरण आवश्यकताओं पर अपेक्षाकृत नरम रुख प्रदान करता है और वैश्विक गंतव्यों का चयन करने के लिये डेटा हस्तांतरण की अनुमति देता है इससे देश-दर-देश व्यापार समझौतों को बढ़ावा देने की संभावना है।
  • विधेयक डेटा प्रिंसिपल के पोस्टमॉर्टम प्राईवेसी (सहमति वापस लेने) के अधिकार को मान्यता देता है जो PDP विधेयक, 2019 में नहीं था लेकिन संयुक्त संसदीय समिति (JPC) द्वारा इसकी सिफारिश की गई थी।

भारत ने डेटा संरक्षण व्यवस्था को कैसे मज़बूत किया?

  • न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ 2017:
  • बी.एन. श्रीकृष्ण समिति 2017:
    • सरकार ने अगस्त 2017 में न्यायमूर्ति बी. एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में डेटा संरक्षण के लिये विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की, जिसने डेटा संरक्षण विधेयक से संबंधित मसौदा और अपनी रिपोर्ट जुलाई 2018 में प्रस्तुत की।
      • रिपोर्ट में भारत में गोपनीयता कानून को मज़बूत करने के लिये अनेकों सिफारिशें हैं, जिनमें डेटा के प्रसंस्करण और संग्रह पर प्रतिबंध, डेटा संरक्षण प्राधिकरण, भूल जाने का अधिकार, डेटा स्थानीयकरण आदि शामिल हैं।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021
    • आईटी नियम (2021) के तहत सोशल मीडिया साइट्स को अपने द्वारा होस्ट की जाने वाली सामग्री का अधिक ध्यान रखना आवश्यक है।

अन्य देशों में डेटा संरक्षण कानून:

  • यूरोपीय संघ मॉडल:
    • सामान्य डेटा संरक्षण विनियम व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण के लिये व्यापक डेटा संरक्षण कानून पर केंद्रित है।
    • यूरोपीय संघ में, निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार के रूप में निहित है जो किसी व्यक्ति की गरिमा और उसके द्वारा उत्पन्न डेटा पर उसके अधिकार की रक्षा करने पर लक्षित है।
  • संयुक्त राष्ट्र मॉडल:
    • अमेरिका में गोपनीयता अधिकारों या सिद्धांतों का कोई समग्र विनियम नहीं है जैसा कि EU का GDPR, जो डेटा के उपयोग, संग्रह और प्रकटीकरण को विनियमित करता है।
    • इसके बजाय यह सीमित क्षेत्र-विशिष्ट विनियमन है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के लिये डेटा सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण अलग है।
      • गोपनीयता अधिनियम, इलेक्ट्रॉनिक संचार गोपनीयता अधिनियम जैसे  व्यापक कानून के माध्यम से व्यक्तिगत जानकारी तथा सरकार की गतिविधियों और शक्तियों को अच्छी तरह से परिभाषित एवं सूचित किया गया है
      • निजी क्षेत्र के लिये कुछ क्षेत्र आधारित विशिष्ट मानदंड हैं।
  • चीन मॉडल:
    • पिछले 12 महीनों में डेटा गोपनीयता और सुरक्षा संबंधी जारी किये गए नए चीनी कानूनों में व्यक्तिगत सूचना संरक्षण कानून (PIPL) शामिल है जो नवंबर 2021 में लागू हुआ था।
      • यह चीनी डेटा विनियामकों को नए अधिकार प्रदान करता है ताकि व्यक्तिगत डेटा के दुरुपयोग को रोका जा सके।
    • डेटा सुरक्षा कानून (DSL), जो सितंबर 2021 में लागू हुआ, व्यावसायिक डेटा को उनके महत्त्व के स्तरों के आधार पर वर्गीकृत करने की आवश्यकता है। DSL सीमा पार हस्तांतरण पर नए प्रतिबंध आरोपित करता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. 'निजता का अधिकार' भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत संरक्षित है? (2021)

(a) अनुच्छेद 15
(b) अनुच्छेद 19
(c) अनुच्छेद 21
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • ‘पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ’ (वर्ष 2017) मामले में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।
  • निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में तथा संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।
  • निजता व्यक्तिगत स्वायत्तता की रक्षा करती है और जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को नियंत्रित करने की क्षमता को पहचानती है। निजता पूर्ण अधिकार नहीं है, लेकिन इसे कोई भी अतिक्रमण वैधता, आवश्यकता और आनुपातिकता पर आधारित होना चाहिये।

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।


प्रश्न. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है?? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग 4 में दिये राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग 3 में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) की नौ न्यायाधीशों की बेंच ने अपने फैसले में न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामले में सर्वसम्मति से पुष्टि की कि निजता का अधिकार भारतीय संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है।।
  • SC की बेंच ने कहा कि निजता एक मौलिक अधिकार है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान किये गए जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी में अंतर्निहित है।
  • पीठ ने यह भी कहा कि संविधान के भाग III में निहित मौलिक अधिकारों द्वारा मान्यता प्राप्त और गारंटीकृत स्वतंत्रता एवं गरिमा के अन्य पहलुओं से अलग-अलग संदर्भों में निजता के तत्त्व भी उत्पन्न होते हैं।

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।


प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के विस्तार का परिक्षण कीजिये। (मेन्स-2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

लॉस एंड डैमेज फंड

प्रिलिम्स के लिये:

COP27 शिखर सम्मेलन, लॉस एंड डैमेज फंड, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, ग्लोबल वार्मिंग, हानि और क्षति पर वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र, हरित जलवायु कोष

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संपन्न COP27 शिखर सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने एक 'लॉस एंड डैमेज फंड' बनाने पर सहमति व्यक्त की, जो जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण सबसे कमज़ोर देशों को हुए उनके नुकसान की क्षतिपूर्ति करेगा।

लॉस एंड डैमेज फंड (हानि और क्षति कोष):

  • 'लॉस एंड डैमेज' जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संदर्भित करता है जिसे शमन (ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती) या अनुकूलन (जलवायु परिवर्तन प्रभावों से निपटने की प्रथाओं को संशोधित करना) से टाला नहीं जा सकता है।
  • इनमें न केवल संपत्ति की आर्थिक क्षति बल्कि आजीविका की हानि और जैव विविधता एवं सांस्कृतिक महत्त्व वाले स्थलों का विनाश भी शामिल है।
  • इससे प्रभावित देशों के लिये मुआवज़े का दावा करने का दायरा बढ़ जाता है।

लॉस एंड डैमेज की अवधारणा का विकास:

  • चूँकि वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन का गठन किया गया था, इसलिये जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले हानि और क्षति पर बहस हुई है।
  • कम-से-कम विकसित देशों के समूह ने लंबे समय से नुकसान और विनाश के लिये जवाबदेही और मुआवज़े की स्थापना का लक्ष्य रखा है।
    • हालाँकि जलवायु क्षति के लिये ऐतिहासिक रूप से दोषी ठहराए गए अमीर देशों ने कमज़ोर देशों की चिंताओं की अनदेखी की है।
  • हानि और क्षति पर वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र (WIM) की स्थापना वर्ष 2013 में विकासशील देशों के व्यापक दबाव के बाद बिना फंडिंग के की गई थी।
    • हालाँकि ग्लासगो में वर्ष 2021 COP26 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान हानि और क्षति के लिये धन की व्यवस्था पर विचार करने के लिये 3-वर्षीय टास्क फोर्स की स्थापना की गई थी।
  • अब तक कनाडा, डेनमार्क, जर्मनी, न्यूज़ीलैंड, स्कॉटलैंड और वालोनिया के बेल्जियम प्रांत आदि को मिलाकर सभी ने लॉस एंड डैमेज फंड में रुचि व्यक्त की है

निधि की स्थापना से संबंधित चिंताएँ:

  • जहाँ तक भविष्य की COP वार्ताओं का संबंध है, यह केवल एक फंड बनाने के लिये प्रतिबद्ध है और फिर इसे चर्चा हेतु छोड़ दिया जाता है जिसमे इसकी स्थापना और योगदान जैसी महत्त्वपूर्ण बातें शामिल होती हैं।
    • जबकि कुछ देशों ने इस फंड में नाममात्र दान किेया है लेकिन अनुमानित क्षति पहले से ही 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर चुकी है।
    • COP27 में वार्ता के दौरान यूरोपीय संघ ने चीन, अरब राज्यों और "बड़े विकासशील देशों" (शायद भारत भी) पर इस आधार पर योगदान देने के लिये ज़ोर दिया कि उनका उत्सर्जन में काफी योगदान था।
  • बुनियादी ढाँचे की क्षति, संपत्ति की क्षति और अमूल्य सांस्कृतिक संपत्तियों की क्षति आदि को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले "नुकसान एवं क्षति" के रूप में मापे जाने जैसा कुछ ख़ास निर्धारित भी नहीं किया गया।
    • जलवायु वित्तपोषण अब तक मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के प्रयास में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित है, जबकि इसका लगभग एक-तिहाई हिस्सा समुदायों को भविष्य के प्रभावों के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिये परियोजनाओं में खर्च हो गया है।

भारत की संबंधित पहलें:

  • राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष (NAFCC):
    • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों हेतु जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की लागत को पूरा करने के लिये वर्ष 2015 में इस कोष की स्थापना की गई थी।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (NCEF):
    • उद्योगों द्वारा कोयले के उपयोग पर प्रारंभिक कार्बन टैक्स के माध्यम से वित्तपोषित स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये इस कोष का निर्माण किया गया था।
    • यह एक अंतर-मंत्रालयी समूह द्वारा शासित होता है जिसका अध्यक्ष वित्त सचिव होता है।
    • इसका जनादेश जीवाश्म और गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षेत्रों में नवीन स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के अनुसंधान एवं विकास के लिये निधि देना है।
  • राष्ट्रीय अनुकूलन कोष:
    • आवश्यकता और उपलब्ध धन के बीच की खाई को पाटने के उद्देश्य से वर्ष 2014 में 100 करोड़ रुपए के निधियन के साथ कोष की स्थापना की गई थी।
    • यह कोष पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत संचालित किया जाता है।

आगे की राह

  • हालाँकि लाभ यह है कि वृद्धिशील देशों को गति नहीं खोनी चाहिये और यह सुनिश्चित करने के लिये कड़ी मेहनत करनी चाहिये कि COP विश्वसनीय उत्प्रेरक बने रहें न कि कुछ खोखली जीत के अवसर मात्र।
  • इसके अलावा यह सुनिश्चित करना कि उत्सर्जन और भेद्यता को कम करने के लिये वित्त बेहतर लक्षित है, नए वित्त जुटाने हेतु एक राजनीतिक प्रतिबद्धता को बनाए रखने की आवश्यकता है। हाल के अनुभवों से सीखना और सुधार करना, खासकर जब हरित जलवायु कोष काम करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं?

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
  2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
  3. वायुमंडल में मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • ‘मीथेन हाइड्रेट’ बर्फ की एक जालीनुमा पिंजड़े जैसी संरचना है, जिसमें मीथेन अणु बंद होते हैं। यह एक प्रकार की "बर्फ" है जो केवल स्वाभाविक रूप से उपसतह में जमा होती है जहाँ तापमान और दबाव की स्थिति इसके गठन के लिये अनुकूल होती है।
  • आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट के नीचे मीथेन हाइड्रेट और तलछटी चट्टानी इकाइयों के निर्माण और स्थिरता के लिये उपयुक्त तापमान एवं दबाव की स्थिति वाले क्षेत्रों में महाद्वीपीय सीमांत पर तलछट जमाव; अंतर्देशीय झीलों और समुद्रों के गहरे पानी के तलछट तथा अंटार्कटिक बर्फ आदि शामिल है। अत: कथन 2 सही है।
  • मीथेन हाइड्रेट्स जो एक संवेदनशील तलछट है, तापमान में वृद्धि या दबाव में कमी के साथ तेज़ी से पृथक हो सकते हैं।
  • इस पृथक्करण से मुक्त मीथेन और पानी को प्राप्त किया जाता है जिसे ग्लोबल वार्मिंग के द्वारा रोका जा सकता है। अत: कथन 1 सही है।
  • मीथेन वायुमंडल से लगभग 9 से 12 वर्ष की अवधि में ऑक्सीकृत हो जाती है जहाँ यह कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित होती है। अत: कथन 3 सही है। अतः विकल्प (d) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. नवंबर, 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन में COP26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में, आरंभ की गई हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था? (2021)

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के COP के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (2021)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय विरासत और संस्कृति

सूफीवाद

प्रिलिम्स के लिये:

इस्लामिक रहस्यवाद, वैराग्य, चिश्ती, सुहरावर्दी आदेश।

मेन्स के लिये:

सूफीवाद।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'इन सर्च ऑफ द डिवाइन: लिविंग हिस्ट्रीज़ ऑफ सूफीज़्म इन इंडिया' नामक पुस्तक प्रकाशित हुई है।

सूफीवाद

  • परिचय:
    • सूफीवाद इस्लाम का एक आध्यात्मिक रहस्यवाद है तथा यह एक धार्मिक संप्रदाय है जो ईश्वर की आध्यात्मिक खोज पर ध्यान केंद्रित करता है और भौतिकवाद को नकारता है।
    • यह इस्लामी रहस्यवाद का एक रूप है जो तपस्या पर ज़ोर देता है। इसमें भगवान की भक्ति पर बहुत ज़ोर दिया गया है।
    • सूफीवाद में आत्म-अनुशासन को धारणा के माध्यम से ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करने के लिये एक आवश्यक शर्त माना जाता है।
    • 12वीं ईस्वी की शुरुआत में फारस में कुछ धार्मिक लोग खलीफा के बढ़ते भौतिकवाद के कारण तपस्या की ओर मुड़ गए। उन्हें 'सूफी' कहा जाने लगा।
    • भारत में सूफी आंदोलन 1300 ईस्वी में शुरू हुआ और 15 वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में आया।
    • सूफीवाद में आत्म-अनुशासन को ईश्वर का ज्ञान प्राप्त करने के लिये एक आवश्यक शर्त माना जाता था। जबकि रूढ़िवादी मुसलमान बाहरी आचरण पर ज़ोर देते हैं, सूफी आंतरिक शुद्धता पर ज़ोर देते हैं।
    • मुल्तान और पंजाब शुरुआती केंद्र थे और बाद में यह कश्मीर, बिहार, बंगाल और दक्कन में फैल गया।
  • व्युत्पत्ति:
    • 'सूफी' शब्द संभवतः अरबी के 'सूफ' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है 'वह जो ऊन से बने कपड़े पहनता है'। इसका एक कारण यह है कि ऊनी कपड़ों को आमतौर पर फकीरों से जोड़कर देखा जाता था। इस शब्द का एक अन्य संभावित मूल 'सफा' है जिसका अरबी में अर्थ 'शुद्धता' है।
  • सूफीवाद के चरण:
    • पहला चरण (खानकाह): 10वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जिसे स्वर्ण रहस्यवाद का युग भी कहा जाता है
    • दूसरा चरण (तारिका): 11-14वीं शताब्दी, जब सूफीवाद को संस्थागत बनाया जा रहा था और परंपराओं एवं प्रतीकों को इसके साथ जोड़ा जाने लगा था।
    • तीसरा चरण (तारिफा): 15वीं शताब्दी में शुरू हुआ, इस स्तर पर जब सूफीवाद एक लोकप्रिय आंदोलन बन गया।
  • प्रमुख सूफी सिलसिले:
    • चिश्ती:
      • चिश्तिया सिलसिला की स्थापना भारत में ख्वाज़ा मोइन-उद्दीन चिश्ती ने की थी।
      • इसने ईश्वर के साथ एकात्मकता (वहदत अल-वुजुद) के सिद्धांत पर ज़ोर दिया और इस सिलसिले के सदस्य शांतिप्रिय थे।
      • उन्होंने सभी भौतिक वस्तुओं को भगवान के चिंतन से विकर्षण के रूप में अस्वीकार कर दिया।
      • वे धर्मनिरपेक्ष राज्य के साथ संबंध से दूर रहे।
      • उन्होंने भगवान के नामों का ज़ोर से और चुपचाप पाठ (धिकर जाहरी, धिकर खफी), चिश्ती अभ्यास की आधारशिला का निर्माण किया।
      • चिश्ती की शिक्षाओं को ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, फरीदुद्दीन गंज-ए-शकर, निजामुद्दीन औलिया और नसीरुद्दीन चरघ जैसे ख्वाजा मोइन-उद्दीन चिश्ती के शिष्यों द्वारा आगे बढ़ाया तथा लोकप्रिय बनाया गया।
    • सुहरावर्दी सिलसिला (Suhrawardi Order):
      • इसकी स्थापना शेख शहाबुद्दीन सुहरावार्दी मकतूल द्वारा की गई थी।
      • चिश्ती सिलसिले के विपरीत सुहरावर्दी सिलसिले को मानने वालों ने सुल्तानों/राज्य के संरक्षण/अनुदान को स्वीकार किया।
    • नक्शबंदी सिलसिला:
      • इसकी स्थापना ख्वाज़ा बहा-उल-दीन नक्सबंद द्वारा की गई थी।
      • भारत में इस सिलसिले की स्थापना ख्वाज़ा बहाउद्दीन नक्शबंदी ने की थी।
      • शुरुआत से ही इस सिलसिले के फकीरों ने शरियत के पालन पर ज़ोर दिया।
    • कदिरिया सिलसिला:
      • यह पंजाब में लोकप्रिय था।
      • इसकी स्थापना शेख अब्दुल कादिर गिलानी द्वारा 14वीं शताब्दी में की गई थी
      • वे अकबर के अधीन मुगलों के समर्थक थे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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