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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु क्षतिपूर्ति

  • 07 Sep 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु क्षतिपूर्ति, प्रदूषक भुगतान सिद्धांत, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC), मानवीय प्रयासों के समन्वय हेतु संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOCHA), वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र (WIM)।

मेन्स के लिये:

जलवायु क्षतिपूर्ति, जलवायु परिवर्तन।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान अपने इतिहास  की सबसे भीषण बाढ़ आपदा का सामना कर रहा है, इसलिये उसने उन विकसित देशों से क्षतिपूर्ति या मुआवजे की मांग करना शुरू कर दिया है जो मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
जलवायु क्षतिपूर्ति

  • जलवायु क्षतिपूर्ति विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन की दिशा में किये गए ऐतिहासिक योगदानों को संबोधित करने के साधन के रूप में भुगतान किये जाने वाले धन के आह्वान को संदर्भित करती है।

जलवायु परिवर्तन हेतु ज़िम्मेदार:

  • ऐतिहासिक उत्सर्जन: पश्चिमी देशों की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड सैकड़ों वर्षों तक वातावरण में बनी रहती है और यह इस कार्बन डाइऑक्साइड का संचय है जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।
  • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle): प्रदूषक भुगतान सिद्धांत की अवधारणा प्रदूषक को न केवल उपचारात्मक कार्रवाई की लागत का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी बनाती है, बल्कि उनके कार्यों के कारण पर्यावरणीय क्षति के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति करने हेतु भी उत्तरदायी बनाती है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम सहित, वर्तमान समय के दौरान सभी उत्सर्जन का 50% से अधिक हिस्सा है।
    • वर्तमान समय के दौरान सभी उत्सर्जन का 50% से अधिक हिस्सा यूनाइटेड किंगडम सहित संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ का है।
    • यदि रूस, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल किया जाए, तो संयुक्त योगदान 65% या सभी उत्सर्जन के लगभग दो-तिहाई से अधिक हो जाता है।
    • इसके अलावा भारत जैसा देश, जो वर्तमान में तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, ऐतिहासिक उत्सर्जन का केवल 3% है। जबकि, चीन, जो पिछले 15 वर्षों से अधिक समय से दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, ने वर्ष 1850 के बाद से कुल उत्सर्जन में लगभग 11% का योगदान दिया है।
  • वैश्विक प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गरीब देशों पर उनकी भौगोलिक स्थिति और सामना करने की कमजोर क्षमता के कारण बहुत अधिक गंभीर हैं।
    • इन सबसे होने वाली क्षति मुआवजे की मांगों को जन्म दे रहा है, जिन देशों द्वारा अतीत में उत्सर्जन  नगण्य योगदान रहा है और संसाधनों की कमी है, वे जलवायु परिवर्तन के सबसे विनाशकारी प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
  • भारत पर प्रभाव: वर्ष 2020 में भारत और बांग्लादेश में चक्रवात अम्फान से 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया गया है।

 अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में निर्धारित जलवायु उत्तरदायित्व:

  • उत्तरदायित्व की स्वीकृति: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) , 1994 का अंतर्राष्ट्रीय समझौता जो जलवायु परिवर्तन से का सामना करने के वैश्विक प्रयासों के व्यापक सिद्धांतों को निर्धारित करता है, स्पष्ट रूप से राष्ट्रों की इस विभेदित ज़िम्मेदारी को स्वीकार करता है।
    • यह स्पष्ट करता है कि विकसित देशों को विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये वित्त और प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण करना चाहिये।
      • इस जनादेश के परिणामस्वरूप विकसित देश प्रत्येक वर्ष विकासशील देशों को 100 बिलियन अमेरीकी डॉलर का अनुदान देने पर सहमत हुए।
    • वर्तमान स्थिति: 100 बिलियन अमेरीकी डॉलर के अनुदान की प्रतिबद्धता अभी पूरा नहीं हुई है।
      • संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिये तैयार किये गए मानवीय प्रयासों के समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOCHA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु से जुड़ी आपदाओं से संबंधित वार्षिक वित्त पोषण अनुरोध वर्ष 2019 और 2021 के मध्य तीन वर्ष की अवधि में औसतन 15.5 बिलियन अमेरीकी डॉलर का था।
        • अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने उत्सर्जन के कारण "अन्य देशों को हानि में 1.9 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर से अधिक की क्षति" का अनुमान लगाया है।
        • गैर-आर्थिक हानि: जीवन की हानि, विस्थापन और प्रवासन, स्वास्थ्य प्रभाव तथा सांस्कृतिक विरासत को नुकसान सहित गैर-आर्थिक नुकसान शामिल हैं।
        • आर्थिक हानि: जलवायु परिवर्तन से अपरिहार्य वार्षिक आर्थिक नुकसान वर्ष 2030 तक 290 बिलियन अमेरीकी डॉलर से 580 बिलियन अमेरीकी डॉलर के बीच कहीं पहुँचने का अनुमान लगाया गया था।
  • पहल: विकासशील देश और गैर-सरकारी संगठन अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ता में हानि और क्षति के लिये एक अलग चैनल स्थापित करने में सफल रहे।
    • इसलिये हानि और भरपाई के लिये वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र (WIM), 2013 में स्थापित, जलवायु आपदाओं से प्रभावित विकासशील देशों को क्षतिपूर्ति करने की आवश्यकता की पहली औपचारिक स्वीकृति थी।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ):

प्रश्न 'हरित जलवायु निधि (ग्रीन क्लाइमेट फण्ड) के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

1- यह विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने हेतु अनुकूलन और न्यूनीकरण पद्धतियों में सहायता देने के आशय से बनी है।
2- इसे UNEP, OECD, एशिया विकास बैंक और विश्व बैंक के तत्वाधान में स्थापित किया गया है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: A

व्याख्या:

  • हरित जलवायु निधि (जीसीएफ) की स्थापना विकासशील देशों को कम उत्सर्जन और जलवायु-लचीला विकास व्यवस्था में स्थानांतरित करने में सहायता करके जलवायु परिवर्तन को चुनौती देने के उनके प्रयासों में सहायता करने के लिए की गई थी। अत: कथन 1 सही है।
  • GCF को UNFCCC के वित्तीय तंत्र की एक परिचालन इकाई के रूप में डिज़ाइन किया गया है और इसका मुख्यालय इंचियोन, कोरिया गणराज्य में है।
  • वर्ष 2010 में UNFCCC के 194 सदस्य देशों या पार्टियों के सम्मेलन (COP) ने अपने 16 वें सत्र में एक हरित जलवायु निधि (GCF) बनाने पर सहमति व्यक्त की। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • GCF का उद्देश्य अभिसमय के सिद्धांतों और प्रावधानों द्वारा निर्देशित होते हुए, शमन और अनुकूलन के लिये समान मात्रा में धन वितरित करना है।
  • पेरिस समझौते को पूरा करने और जलवायु परिवर्तन को 2ºC से नीचे रखने के लक्ष्य का समर्थन करने में GCF को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका दी गई थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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