शासन व्यवस्था
आयुष्मान भारत- स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र
प्रिलिम्स के लिये:आयुष्मान भारत योजना, स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र , झंगला (Jhangla), ई-संजीवनी प्लेटफॉर्म मेन्स के लिये:स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
‘आयुष्मान भारत’ योजना के तहत 50,000 से अधिक 'स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों' (Health and Wellness Centres- HWCs ) द्वारा अपनी सेवाएँ शुरू कर दी गई हैं।
प्रमुख बिंदु:
- आयुष्मान भारत योजना भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है जिसे 'सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज' के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति’- 2017 के तहत की गई अनुशंसा के आधार पर वर्ष 2018 में पर लॉन्च किया गया था। प्रथम, आयुष्मान भारत- स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र को छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में झंगला (Jhangla) नामक स्थान पर लॉन्च किया गया था।
- योजना के तहत दो अंतर-संबंधित घटकों से युक्त देखभाल के दृष्टिकोण को अपनाया गया है, जो हैं-
- स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWCs)।
- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY)।
स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (HWCs):
HWC की टीम:
- HWC टीम में एक प्रशिक्षित ‘सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी’ (Community Health Officer- CHO), एक या दो स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता और 5 से 8 आशा कार्यकर्त्ता शामिल होते हैं।
- इस टीम के कार्यों को अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है, जो स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक समुदाय की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यों और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ प्रदान करते हैं।
उद्देश्य एवं कार्य:
- HWCs मुख्यत: लोगों को 'व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल' (Comprehensive Primary Health Care- CPHC) सेवाएँ प्रदान करने का कार्य करते हैं।
- इसके अलावा ये प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल स्वास्थ्य, किशोर और पोषण (Reproductive, Maternal, Newborn, Child Health, Adolescent+ Nutrition: RMNCHA+N) से जुड़ी सेवाएँ प्रदान करने के साथ ही संचारी रोगों के नियंत्रण संबंधी प्रयास भी करते हैं।
- वे विशेष रूप से क्रोनिक और गैर-संचारी रोगों के नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके लिये सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से लोगों में स्वास्थ्य, जीवनशैली, उचित पोषण और योग जैसी शारीरिक गतिविधियों के बारे में जागरूकता पैदा करने का कार्य करते हैं।
HWCs की स्थापना में प्रगति:
- आयुष्मान भारत योजना के तहत वर्तमान में 50,000 से अधिक HWCs की स्थापना के साथ योजना के तहत निर्धारित लक्ष्य का ⅓ हिस्सा प्राप्त कर लिया गया है।
- योजना के तहत दिसंबर 2022 तक 1.5 लाख स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों’ की स्थापना की जानी है।
- इन HWCs में 27,890 उप स्वास्थ्य केंद्र (Sub Health Centres), 18,536 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (Primary Health Centres- PHCs) और 3,599 नगरीय 'प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शामिल' हैं।
- इन स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्य और कल्याण से जुड़े 30 लाख से अधिक सत्र आयोजित किये गए जिनमें योग, सामुदायिक वॉक, ध्यान आदि गतिविधियाँ शामिल हैं।
- HWCs स्वास्थ्य मंत्रालय के ‘ई-संजीवनी’ (eSanjeevani) प्लेटफॉर्म के कार्यान्वयन में प्रमुख भूमिका निभाता है।
- ई-संजीवनी डॉक्टर-टू-डॉक्टर टेली-परामर्श सुविधा है। गौरतलब है कि इसके तहत वर्ष 2022 तक ‘हब एंड स्पोक’ (Hub and Spoke) मॉडल का उपयोग करते हुए देश भर के सभी 1.5 लाख स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों में टेली-परामर्श प्रदान करने की योजना बनाई गई है।
- 23,103 HWCs ने वर्तमान में नागरिकों को टेली-परामर्श दूर सेवाएँ प्रदान करना शुरू कर दिया है।
आयुष मंत्रालय में वित्तीय प्रबंधन और शासन सुधार:
- आयुष मंत्रालय द्वारा वित्तीय प्रबंधन और शासन सुधार की दिशा में अनेक पहलें प्रारंभ की गई हैं।
- इन पहलों में दो प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं, अर्थात् सरकारी योजनाएँ (केंद्रीय क्षेत्र और केंद्र प्रायोजित दोनों) और मंत्रालय के स्वायत्त निकाय।
- 'राष्ट्रीय आयुष मिशन' (National Ayush Mission- NAM) के लिये 'राष्ट्रीय वित्तीय लेखा प्रबंधन प्रणाली' (National Financial Accounting Management System) की तर्ज पर एक पोर्टल विकसित किया जा रहा है।
- धन के प्रवाह की वास्तविक समय में निगरानी के लिये एक डैशबोर्ड विकसित करने का भी निर्णय लिया गया है।
- इन पहलों का उद्देश्य मंत्रालय के तहत आने वाले स्वायत्त निकायों और योजनाओं के क्रियान्वयन में सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली तथा लेखा प्रबंधन प्रणाली का आधुनिकीकरण करना है।
निष्कर्ष:
‘आयुष्मान भारत’ योजना सहकारी संघवाद का एक बेहतर नमूना है। स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों की स्थापना तथा शासन प्रणाली में सुधार की दिशा में केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा की गई प्रगति ‘सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज' को प्राप्त करने के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
एनसीआर के लिये क्षेत्रीय तीव्र पारगमन प्रणाली
प्रिलिम्स के लिये:क्षेत्रीय तीव्र पारगमन प्रणाली, उपनगर, दिल्ली-एनसीआर, कम्यूटर्स मेन्स के लिये:क्षेत्रीय तीव्र पारगमन प्रणाली |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ के लिये ‘क्षेत्रीय तीव्र पारगमन प्रणाली’ (Regional Rapid Transit System Project- RRTS) हेतु 500 मिलियन के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
प्रमुख बिंदु:
- यह ऋण समझौता ‘आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय’ (Ministry of Housing and Urban Affairs) , ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम’ (National Capital Region Transport Corporation- NCRTC) लिमिटेड और ‘न्यू डेवलपमेंट बैंक’ (New Development Bank- NDB) के बीच किया गया है।
- RRTS परियोजना का उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र-दिल्ली (National Capital Region-Delhi) को तीव्र, विश्वसनीय, सुरक्षित और आरामदेह ‘सार्वजनिक परिवहन प्रणाली’ प्रदान करना है।
क्षेत्रीय तीव्र पारगमन प्रणाली (RRTS):
- RRTS एक रेल आधारित तीव्र परिवहन प्रणाली होगी जो दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में स्थित अपेक्षाकृत छोटे लेकिन तेज़ी से विकसित हो रहे नगरों को जोड़ेगी।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) एक बहु-राज्य क्षेत्र है जिसके केंद्रीय भाग में राष्ट्रीय राजधानी है। दिल्ली-एनसीआर लगभग 35,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और पड़ोसी राज्य हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के कुछ हिस्से शामिल हैं।
- परियोजना के तहत एनसीआर क्षेत्र में स्थित उपनगरों (Suburb) तथा औद्योगिक नगरों जैसे 'विशेष आर्थिक क्षेत्रों’ (Special Economic Zones- SEZs) आदि को जोड़ा जाएगा।
- उपनगर नगर के केंद्रीय भाग से बाहर स्थित निवास क्षेत्र होता है।
- RRTS मेट्रो से अलग है क्योंकि इसमें मेट्रो की तुलना में कम स्टॉप और अधिक गति होती है तथा अपेक्षाकृत लंबी दूरी की यात्रा करने वाले यात्रियों की आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है।
- RRTS परंपरागत रेलवे से भी अलग है क्योंकि यह उसकी तुलना में अधिक विश्वसनीय है तथा उच्च गति के साथ अधिक चक्र पूरे करती है।
- परियोजना की कुल अनुमानित लागत 3,749 मिलियन डॉलर है, जिसे ‘न्यू डेवलपमेंट बैंक’ (500 मिलियन), ‘एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक’ (500 मिलियन), ‘एशियाई विकास बैंक’ (1,049 मिलियन), जापान ( 3 मिलियन), सरकार और अन्य स्रोतों (1,707 मिलियन) द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा।
उद्देश्य:
- RRTS का उद्देश्य सड़क परिवहन पर कम्यूटर्स (Commuters) की निर्भरता को कम करने के लिये सड़क-सह रेल (Road-cum Rail) परिवहन प्रणाली का विकास करना है।
- कम्यूटर्स ऐसे व्यक्ति होते हैं जो नियमित रूप से कार्य करने के लिये मुख्य नगर के आसपास के क्षेत्रों से मुख्य नगर आने-जाने लिये कुछ किलोमीटर की दूरी तय करते हैं।
चिह्नित 8 RRTS गलियारे:
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (NCRPB) द्वारा वर्ष 2032 तक एनसीआर की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किये एक अध्ययन में 8 RRTS गलियारों की पहचान की गई है।
- दिल्ली - गुड़गांव - रेवाड़ी - अलवर;
- दिल्ली - गाजियाबाद - मेरठ;
- दिल्ली - सोनीपत - पानीपत;
- दिल्ली - फरीदाबाद - बल्लभगढ़ - पलवल;
- दिल्ली - बहादुरगढ़ - रोहतक;
- दिल्ली - शाहदरा - बड़ौत;
- गाज़ियाबाद - खुर्जा;
- गाजियाबाद - हापुड़;
RRTS परियोजना का महत्त्व:
सतत् विकास (Sustainable Development):
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सहित एनसीआर क्षेत्र में RRTS का क्रियान्वयन ‘शहरी विकास लिये सतत् विकास लक्ष्य (SDG- 11) को प्राप्त करने में सहयोग करेगा।
- यह ऐसी प्रक्रियाओं को सक्रिय करेगा जो भविष्य की पीढ़ियों के लिये पर्यावरण संरक्षण के साथ ही स्थायी आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देती हो।
कम प्रदूषक उत्सर्जन और भीड़-भाड़ में कमी:
- RRTS प्रणाली पर्यावरण के अनुकूल है जिसमें प्रदूषकों का बहुत कम उत्सर्जन होता है।
- उच्च गति (औसत 100 किमी. प्रति घंटा) होने के कारण सड़क परिवहन की तुलना में यह कई गुना अधिक यात्रियों को ले जाने सक्षम है। जिससे सड़कों पर लगने वाले जाम में कमी आएगी।
- कुल मिलाकर यह एनसीआर में परिवहन से होने वाले उत्सर्जन को काफी कम कर देगा।
संतुलित आर्थिक विकास:
- निर्बाध उच्च गति कनेक्टिविटी के परिणामस्वरूप क्षेत्र के संतुलित आर्थिक विकास के चलते समाज के सभी वर्गों को लाभ होगा तथा दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में विकास के कई नोड्स विकसित हो सकेंगे।
चुनौतियाँ:
- परियोजना के प्रथम चरण के तहत दिल्ली - गाजियाबाद - मेरठ कॉरिडोर सहित 2 अन्य गलियारों का चयन किया गया। परियोजना अभी प्रारंभिक चरण में है, अत: परियोजना को दिल्ली-एनसीआर की मांग के अनुसार समय पर पूरा करना एक प्रमुख चुनौती है।
- परियोजना की आर्थिक लागत बहुत अधिक है, जिसका अधिकांश हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सहयोग पर निर्भर है। इस वजह से भविष्य में परियोजना में वित्त-व्यवस्था संबंधी बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
निष्कर्ष:
लगभग 1 मिलियन वाहन (वर्ष 2007 के आँकड़ों के आधार पर) प्रतिदिन दिल्ली-एनसीआर क्षेत्रों से राष्ट्रीय राजधानी की सीमा में प्रवेश करते हैं उनमें से एक-चौथाई का आवागमन क्षणिक प्रकृति का होता है। यह क्षेत्र के लिये एक वैकल्पिक परिवहन व्यवस्था जैसे RRTS की आवश्यकता को बताता है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-लक्ज़मबर्ग वर्चुअल समिट
प्रिलिम्स के लियेभारत-लक्ज़मबर्ग वर्चुअल समिट, लक्ज़मबर्ग की भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लियेभारत-लक्ज़मबर्ग संबंध |
चर्चा में क्यों?
19 नवंबर, 2020 को भारत-लक्ज़मबर्ग वर्चुअल समिट का आयोजन किया गया, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिस्सा लिया।
प्रमुख बिंदु
- इस वर्चुअल सम्मेलन में हिस्सा लेते हुए दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने भारत और लक्ज़मबर्ग के बीच साझा सिद्धांतों और लोकतंत्र, कानून के शासन तथा मानवाधिकारों के मूल्यों के आधार पर उत्कृष्ट द्विपक्षीय संबंध स्थापित करने पर ज़ोर दिया।
- ध्यातव्य है कि भारत और लक्ज़मबर्ग के बीच वर्ष 1948 में कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए थे और बीते सात दशक से भी अधिक समय में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में काफी विस्तार देखने को मिला है।
- हालाँकि दोनों देशों ने व्यापार, वित्त, इस्पात, अंतरिक्ष, आईसीटी और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाकर द्विपक्षीय समझौतों को और मज़बूत करने पर ज़ोर दिया।
भारत-लक्ज़मबर्ग वर्चुअल समिट
- आर्थिक संबंध
- दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने भारत और लक्ज़मबर्ग के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों का स्वागत किया और संतोष व्यक्त किया कि दोनों देशों की कंपनियाँ एक-दूसरे के देशों में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही हैं।
- जल्द ही आर्थिक-व्यापारिक संबंधों की समीक्षा के लिये भारत तथा बेल्ज़ियम-लक्ज़मबर्ग आर्थिक संघ के बीच 17वीं संयुक्त आर्थिक आयोग की बैठक आयोजित की जाएगी, ज्ञात हो कि संयुक्त आर्थिक आयोग की 16वीं बैठक सितंबर 2019 में आयोजित की गई थी।
- सम्मेलन के दौरान वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को अधिक लचीला, विविध और सतत् बनाने को लेकर विचारों का आदान-प्रदान भी किया गया।
- वित्त
- इस सम्मेलन के दौरान कुल 3 समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किये गए-
- इंडिया इंटरनेशनल एक्सचेंज (India INX) और लक्ज़मबर्ग स्टॉक एक्सचेंज के बीच समझौता ज्ञापन।
- भारतीय स्टेट बैंक और लक्ज़मबर्ग स्टॉक एक्सचेंज के बीच समझौता ज्ञापन।
- इन्वेस्ट इंडिया और लक्सिनोवेशन (Luxinnovation) के बीच समझौता ज्ञापन।
- पहले दो समझौता ज्ञापनों (MoUs) का उद्देश्य वित्तीय सेवा उद्योग में सहयोग को बढ़ावा देना, देशों में प्रतिभूति बाज़ारों का रखरखाव करना और स्थानीय बाज़ार में ESG (पर्यावरण, सामाजिक, शासन) तथा ग्रीन फाइनेंस में सहयोग को बढ़ावा देना है।
- जबकि तीसरे और अंतिम समझौते का उद्देश्य भारत और लक्ज़मबर्ग की कंपनियों के बीच आपसी व्यापार सहयोग का समर्थन करना है।
- इसके अलावा लक्ज़मबर्ग की वित्तीय नियामक संस्था तथा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के बीच भी एक समझौता ज्ञापन प्रस्तावित है, जिससे दोनों देशों के बीच वित्तीय क्षेत्र में द्विपक्षीय संबंध और अधिक मज़बूत होगा।
- गौरतलब है कि लक्ज़मबर्ग, यूरोप का एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्र होने के नाते, भारत के वित्तीय उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़ने तथा यूरोपीय एवं वैश्विक निवेशकों तक पहुँचने में मदद हेतु एक सेतु के रूप में कार्य कर सकता है।
- इस सम्मेलन के दौरान कुल 3 समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किये गए-
- अंतरिक्ष और डिजिटल तकनीक
- ज्ञात हो कि दोनों देशों के बीच उपग्रह प्रसारण (Satellite Broadcasting) और संचार (Communications) जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा है।
- लक्ज़मबर्ग आधारित कई कंपनियों ने अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में लॉन्च करने के लिये भारत की सेवाओं का उपयोग करना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिये नवंबर 2020 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने PSLV-C49 मिशन लॉन्च किया था, जिसमें लक्ज़मबर्ग के 4 उपग्रह शामिल थे।
- शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग को लेकर भी दोनों देशों की सरकारों के बीच एक सहयोग समझौते पर वार्ता की जा रही है।
- भारत और लक्ज़मबर्ग दोनों ही देशों में क्रमशः ‘डिजिटल इंडिया तथा ‘डिजिटल लक्ज़मबर्ग’ पहलों के माध्यम से डिजिटलीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, हालिया सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने इन पहलों को बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की है।
- उच्च शिक्षा और अनुसंधान
- इंडियन नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर और लक्ज़मबर्ग इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ तथा लक्ज़मबर्ग सेंटर फॉर सिस्टम बायोमेडिसिन द्वारा न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों (Neurodegenerative Diseases) के क्षेत्र में एक साथ कार्य किया जा रहा है।
- भारतीय उच्च शिक्षण संस्थाओं जैसे- IIT-बॉम्बे, IIT-मद्रास, IIT-कानपुर और नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया तथा लक्ज़मबर्ग विश्वविद्यालय के बीच मौजूदा संबंधों को और अधिक विस्तारित करने पर भी सहमति व्यक्त की गई है।
- संस्कृति
- भारत और लक्ज़मबर्ग दोनों ही देश अहिंसा के विचारों का समर्थन करते हैं और इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2019 में लक्ज़मबर्ग ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर स्मारक डाक टिकट जारी किया था।
- सम्मेलन के दौरान दोनों देशों ने राजनयिक और आधिकारिक पासपोर्ट धारकों के लिये वीज़ा में छूट प्रदान करने और दोनों देशों के बीच गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिये समझौते को अंतिम रूप देने की भी इच्छा ज़ाहिर की।
- यूरोपीय संघ-भारत
- जुलाई 2020 में भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया था, इसमें भारत ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देकर व्यापक कनेक्टिविटी के माध्यम से भारत तथा यूरोपीय संघ (EU) के संबंधों को और मज़बूत करने की बात कही थी।
- यूरोपीय संघ (EU) का संस्थापक सदस्य होने के नाते लक्ज़मबर्ग भारत और यूरोपीय संघ के संबंधों को मज़बूती प्रदान करने में रचनात्मक भूमिका अदा कर सकता है, जो कि कोरोना वायरस महामारी के बाद और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।
- बहुपक्षीय समर्थन
- सम्मेलन के दौरान लक्ज़मबर्ग ने वर्ष 2021-2022 के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में गैर-स्थायी सीट के लिये भारत के चयन का स्वागत किया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधारों के लिये अपने समर्थन को दोहराया।
- लक्ज़मबर्ग ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया।
- इसके अलावा लक्ज़मबर्ग ने मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) में भारत की भागीदारी का भी समर्थन किया।
- भारत ने वर्ष 2022-2024 के लिये संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNSC) में लक्ज़मबर्ग की उम्मीदवारी का भी समर्थन किया।
लक्ज़मबर्ग के बारे में
- लक्ज़मबर्ग, पश्चिमी यूरोप का एक देश है, जो चारों ओर से भू-सीमा से घिरा हुआ है। यह पश्चिम और उत्तर में बेल्ज़ियम, पूर्व में जर्मनी और दक्षिण में फ्रांँस के साथ अपनी अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करता है।
आगे की राह
- पिछले दो दशकों में भारत और लक्ज़मबर्ग के बीच आयोजित यह पहला शिखर सम्मेलन दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के एक नए चरण का प्रतीक है, जहाँ दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक विस्तारित करने तथा आपसी और वैश्विक हित के मामलों में क्षेत्रीय तथा बहुपक्षीय मंचों में परामर्श एवं समन्वय को बढ़ाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
स्रोत: पी.आई.बी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी और श्रीलंका
प्रिलिम्स के लियेक्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी मेन्स के लियेRCEP का महत्त्व और भारत तथा श्रीलंका के लिये RCEP के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
उभरते एशियाई बाज़ार के दोहन की श्रीलंका की महत्त्वाकांक्षा के मद्देनज़र चीन के नेतृत्त्व वाला क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) समझौता श्रीलंका के लिये एक आदर्श मंच सिद्ध हो सकता है।
- हालाँकि श्रीलंका की मौजूदा आर्थिक चुनौतियों और इस समूह में शामिल न होने के भारत के निर्णय को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि श्रीलंका के लिये इस मुक्त व्यापार समझौते में शामिल होना आसान नहीं होगा।
प्रमुख बिंदु
श्रीलंका के लिये एक अवसर
- विश्लेषकों का मानना है कि विश्व के सबसे व्यस्त शिपिंग मार्गों में से एक हिंद महासागर में अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण श्रीलंका, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) में शामिल देशों के लिये व्यापार की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
- श्रीलंका को अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से वहाँ हवाई अड्डों के साथ-साथ हंबनटोटा और कोलंबो बंदरगाहों को विकसित किया जा रहा है।
- ध्यातव्य है कि श्रीलंका के प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री महिंदा राजपक्षे ने सरकार के पहले बजट की घोषणा करते हुए कोलंबो पोर्ट सिटी को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश हब के रूप में विकसित करने के संबंध में सरकार की प्राथमिकता को भी रेखांकित किया था।
- इससे स्पष्ट है कि भविष्य में श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है और इस लिहाज़ से यह RCEP के लिये भी काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
श्रीलंका के लिये RCEP का महत्त्व
- वर्तमान समय में कोरोना वायरस महामारी, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और ब्रेक्ज़िट (Brexit) के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में उत्पन्न हुई अनिश्चितता के बीच यह समझौता वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- यदि श्रीलंका इस व्यापक मुक्त व्यापार समझौते में शामिल होता है तो यह श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने, समावेशी विकास, रोज़गार के अवसरों का विकास और आपूर्ति शृंखला को मज़बूत बनाने में भी सहायक हो सकता है।
- समग्र तौर पर क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) के महत्त्व को इस बात से समझा जा सकता है कि यह अपने मौजूदा स्वरूप में विश्व की एक-तिहाई आबादी और वैश्विक जीडीपी के तकरीबन 29 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।
श्रीलंका के लिये बाधाएँ
- अस्पष्ट व्यापार नीति
श्रीलंका की वर्तमान व्यापार नीति फिलहाल काफी अस्पष्ट बनी हुई है। उदाहरण के लिये इस वर्ष की शुरुआत में कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के बाद श्रीलंका की सरकार ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार को संरक्षित करने के लिये कई आयात प्रतिबंध लागू किये थे। - मुक्त व्यापार समझौते को लेकर असंगत नीति
मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) को लेकर श्रीलंका की सरकार की स्थिति सुसंगत नहीं रही है। उदाहरण के लिये जहाँ एक ओर भारत के साथ प्रस्तावित आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौता (ETCA) अभी तक पूरा नहीं सका है, वहीं श्रीलंका की सरकार चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को लेकर वार्ता को पुनर्जीवित करने के प्रति रुचि व्यक्त कर रही है। श्रीलंका की सरकार सिंगापुर के साथ भी अपने मुक्त व्यापार समझौते की पुनः समीक्षा कर रही है। - जटिल व्यापार क्षेत्र
आँकड़ों के मुताबिक, अमेरिका और यूरोपीय संघ श्रीलंका के दो सबसे बड़े निर्यात बाज़ार हैं, जबकि भारत और चीन श्रीलंका के लिये आयात के दो सबसे बड़े स्रोत हैं। एशियाई देश सदैव श्रीलंका के लिये आयात का महत्त्वपूर्ण स्रोत रहे हैं, ऐसे में श्रीलंका के लिये इस जटिल व्यापार समीकरण में अपना स्थान खोजना काफी चुनौतीपूर्ण होगा।
RCEP के बारे में
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है, जिसमें आसियान (ASEAN) के दस सदस्य देश तथा पाँच अन्य देश (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) शामिल हैं।
- RCEP के रूप में एक मुक्त व्यापार ब्लॉक बनाने को लेकर वार्ता की शुरुआत वर्ष 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी और अब लगभग 8 वर्ष बाद इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया है।
- भारत शुरुआत से ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के लिये होने वाली वार्ताओं का हिस्सा रहा है किंतु वर्ष 2019 में भारत ने कुछ अनसुलझे मुद्दों और चीन से संबंधित चिंताओं का हवाला देते हुए इसमें शामिल न होने का निर्णय लिया था।
आगे की राह
- महामारी के बीच मौजूदा स्थिति में कोई भी देश अलगाववादी नीति के साथ आगे बढ़ते हुए वर्तमान चुनौतियों से नहीं उबर सकता है। ऐसे में सभी देशों को अपने राजनीतिक मतभेदों को अलग रखकर एक साथ काम करना होगा।
- श्रीलंका एक व्यापार समर्थक देश है और इसलिये श्रीलंका को अपनी आर्थिक एवं व्यापारिक कूटनीति को आगे बढ़ाते हुए RCEP समेत सभी बहुपक्षीय व्यवस्थाओं में नई संभावनाओं की तलाश करनी चाहिये।
- यद्यपि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि श्रीलंका की सरकार क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) की सदस्यता लेने पर विचार कर रही है अथवा नहीं, किंतु यह ज़रूर कहा जा सकता है कि मुक्त व्यापार ब्लॉक श्रीलंका के लिये एक आदर्श मंच साबित हो सकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
C.B.I और राज्यों की सहमति
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो मेन्स के लिये:C.B.I. और राज्यों की सहमति का मुद्दा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार की सहमति उसके अधिकार क्षेत्र में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) द्वारा जाँच के लिये अनिवार्य है और इसके बिना सीबीआई जाँच नहीं कर सकती है। न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की एक पीठ ने कहा कि यह प्रावधान संविधान के संघीय ढाँचे के अनुरूप है।
प्रमुख बिंदु:
- पृष्ठभूमि:
- उत्तर प्रदेश सरकार के दो अधिकारियों ने पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा दी गई सामान्य सहमति पर्याप्त नहीं थी और उनकी जाँच किये जाने से पहले अलग सहमति प्राप्त की जानी चाहिये थी।
- उत्तर प्रदेश राज्य ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 के तहत अपराधों की जाँच के लिये DSPE के सदस्यों की शक्तियों एवं अधिकार क्षेत्र के विस्तार के लिये एक सामान्य सहमति प्रदान की है।
- हालाँकि राज्य सरकारों के तहत लोक सेवकों के मामले में जाँच के लिये राज्य द्वारा दी गई सामान्य सहमति के बाद भी संबंधित राज्य से पूर्व सहमति की आवश्यकता होती है।
- उत्तर प्रदेश सरकार के दो अधिकारियों ने पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा दी गई सामान्य सहमति पर्याप्त नहीं थी और उनकी जाँच किये जाने से पहले अलग सहमति प्राप्त की जानी चाहिये थी।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उल्लेख किया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने दो लोक सेवकों के खिलाफ ‘पोस्ट फैक्टो’ (Post Facto) की सहमति दी थी। गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
उच्चतम न्यायालय का पक्ष:
- यह माना जाता है कि यदि राज्य ने भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई जाँच के लिये सामान्य सहमति दी और न्यायालय द्वारा संज्ञान लिया गया तो केस को तब तक अलग नहीं रखा सकता जब तक कि लोक सेवक यह निवेदन नहीं करते कि पक्षपात का कारण पूर्व सहमति न लेना है।
- इसके अलावा न्यायाधीशों ने कहा कि केस को तब तक अलग नहीं रखा जा सकता जब तक कि जाँच में अवैधता को न्याय की विफलता के संदर्भ में न दिखाया जा सके।
राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली ‘सहमति’ के प्रकार:
- सहमति दो प्रकार की होती है- एक केस-विशिष्ट सहमति और दूसरी, सामान्य सहमति। यद्यपि CBI का अधिकार क्षेत्र केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों तक सीमित होता है, किंतु राज्य सरकार की सहमति मिलने के बाद यह एजेंसी राज्य सरकार के कर्मचारियों या हिंसक अपराध से जुड़े मामलों की जाँच भी कर सकती है।
- दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम (DSPEA) की धारा 6 के मुताबिक, दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का कोई भी सदस्य किसी भी राज्य सरकार की सहमति के बिना उस राज्य में अपनी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का उपयोग नहीं करेगा।
- जब एक सामान्य सहमति वापस ले ली जाती है, तो सीबीआई को संबंधित राज्य सरकार से जाँच के लिये केस के आधार पर प्रत्येक बार सहमति लेने की आवश्यकता होती है।
- यह सीबीआई द्वारा निर्बाध जाँच में बाधा डालती है। ‘सामान्य सहमति’ सामान्यतः CBI को संबंधित राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करने में मदद के लिये दी जाती है, ताकि CBI की जाँच सुचारु रूप से चले सके और उसे बार-बार राज्य सरकार के समक्ष आवेदन न करना पड़े। लगभग सभी राज्यों द्वारा ऐसी सहमति दी गई है। यदि राज्यों द्वारा सहमति नहीं दी गई हो तो CBI को प्रत्येक मामले में जाँच करने से पहले राज्य सरकार से सहमति लेना आवश्यक होता है।
राज्यों द्वारा सामान्य सहमति की वापसी का मुद्दा:
- हाल ही में यह देखा गया है कि आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल आदि विभिन्न राज्यों ने केंद्र एवं राज्यों के बीच झगड़े के परिणामस्वरूप अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली है।
- सहमति की वापसी का प्रभाव: किसी भी राज्य सरकार द्वारा सामान्य सहमति को वापस लेने का अर्थ है कि अब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा उस राज्य में नियुक्त किसी भी केंद्रीय कर्मचारी अथवा किसी निजी व्यक्ति के विरुद्ध तब तक नया मामला दर्ज नहीं किया जाएगा, जब तक कि केंद्रीय एजेंसी को राज्य सरकार से उस मामले के संबंध में केस-विशिष्ट सहमति नहीं मिल जाती।
- इस प्रकार सहमति वापस लेने का सीधा मतलब है कि जब तक राज्य सरकार उन्हें केस-विशिष्ट सहमति नहीं दे देती, तब तक उस राज्य में CBI अधिकारियों के पास कोई शक्ति नहीं है।
- सीबीआई के पास पहले से ही दर्ज मामलों की जाँच पर इसका कोई असर नहीं होगा क्योंकि पुराने मामले तब दर्ज हुए थे जब सामान्य सहमति प्रदान की गई थी।
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम
(Delhi Special Police Establishment- DSPE Act):
- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वर्ष 1941 में ब्रिटिश भारत के युद्ध विभाग (Department of War) में एक विशेष पुलिस स्थापना (Special Police Establishment- SPE) का गठन किया गया था ताकि युद्ध से संबंधित खरीद मामलों में रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच की जा सके।
- दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (Delhi Special Police Establishment- DSPE Act), 1946 को लागू करके भारत सरकार के विभिन्न विभागों/संभागों में भ्रष्टाचार के आरोपों के अन्वेषण हेतु एक एजेंसी के रूप में इसकी औपचारिक शुरुआत की गई।
- CBI को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 द्वारा अन्वेषण करने की शक्ति प्राप्त है।