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डेली न्यूज़

  • 20 Jun, 2022
  • 72 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

नवीकरणीय वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2022 (GSR 2022)

प्रिलिम्स के लिये:

REN21, राष्ट्रीय सौर मिशन (NSM), राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (NHEM), संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) 

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में REN21 (21वीं सदी के लिये अक्षय ऊर्जा नीति नेटवर्क) द्वारा नवीकरणीय वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2022 (GSR 2022) जारी की गई। 

  • REN21 नवीकरणीय अभिकर्त्ताओं का एक वैश्विक समूह है। 
  • इसमें वैज्ञानिक, भारत सरकार, गैर-सरकारी संगठन और उद्योग जगत के सदस्य शामिल हैं, जिन्होंने दुनिया भर के देशों में अक्षय ऊर्जा प्रतिष्ठानों, बाज़ारों, निवेश और नीतियों पर डेटा एकत्र किया है। 

नवीकरणीय वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2022: 

  • नवीकरणीय ऊर्जा वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2022, अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में हुई प्रगति का दस्तावेज़ीकरण करती है। 
  • यह स्थानीय ऊर्जा उत्पादन और मूल्य शृंखलाओं के माध्यम से अधिक विविध तथा समावेशी ऊर्जा शासन प्राप्त करने की क्षमता सहित नवीकरणीय -आधारित अर्थव्यवस्था एवं समाज द्वारा वहन किये गए अवसरों पर प्रकाश डालती है। 
  • अपनी कुल ऊर्जा खपत में नवीकरणीय ऊर्जा की उच्च हिस्सेदारी वाले देश ऊर्जा स्वतंत्रता और सुरक्षा के उच्च स्तर सुनिश्चित करते हैं। 

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ: 

  • वैश्विक परिदृश्य: 
    • रिपोर्ट एक स्पष्ट चेतावनी देती है कि वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण नहीं हो रहा है, जिससे यह संदेहास्पद है कि दुनिया इस दशक में महत्त्वपूर्ण जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त कर पायेगी। 
    • यद्यपि कई सरकारों ने वर्ष 2021 में शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि, ऊर्जा संकट के जवाब में, अधिकांश देश जीवाश्म ईंधन के नए स्रोतों की तलाश कर रहे हैं तथा अधिक कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस का उपयोग कर रहे हैं। 
    • पहली बार, GSR 2022 में देशों द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा शेयरों का एक विश्व मानचित्र प्रदान किया गया है तथा कुछ प्रमुख देशों में प्रगति पर प्रकाश डालता है। 
    • नवंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) की अगुवाई में, रिकॉर्ड 135 देशों ने 2050 तक शुद्ध शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया। 
      • हालांँकि इनमें से केवल 84 देशों के पास अक्षय ऊर्जा के लिये अर्थव्यवस्था-व्यापी लक्ष्य थे, और केवल 36 के पास 100% नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य थे। 
  • भारत का प्रदर्शन: 
    • अक्षय ऊर्जा: भारत वर्ष 2021 में चीन और रूस के बाद अक्षय ऊर्जा प्रतिष्ठानों में तीसरे स्थान पर है। 
    • पनबिजली क्षमता: भारत ने वर्ष 2021 में 843 मेगावाट की पनबिजली क्षमता वृद्धि की, जिससे कुल क्षमता बढ़कर 45.3 गीगावॉट हो गई। 
    • नई सौर फोटोवोल्टिक क्षमता: नई सौर फोटोवोल्टिक क्षमता के लिये भारत एशिया का दूसरा  और विश्व में तीसरा (वर्ष 2021 में 13 गीगावॉट अतिरिक्त) सबसे बड़ा बाज़ार है 
    • कुल संस्थापन: भारत ने जर्मनी (59.2 GW) को पछाड़ते हुए कुल प्रतिष्ठानों (60.4 GW) की क्षमता में चौथे स्थान पर आ गया। 
    • पवन ऊर्जा: पवन ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता (40.1 GW) के मामले में भारत चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है। 

नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये भारत की पहल:  

अक्षय ऊर्जा संक्रमण में बाधाएँ: 

  • डिस्कॉम की खराब वित्तीय स्थिति: 
    • भारत में नवीकरणीय ऊर्जा को और बढ़ने के लिये सबसे  चुनौती बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की खराब वित्तीय स्थिति है, जिनमें से अधिकांश राज्य सरकारों के स्वामित्व में हैं। लगभग सभी अक्षय ऊर्जा ऐसी डिस्कॉम द्वारा खरीदी जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बहुत लंबा और अस्थिर भुगतान चक्र होता है। 
  • पीढ़ी में परिवर्तनशीलता:  
    • मौसम की स्थिति के कारण इसके उत्पादन में परिवर्तन, ट्रांसमिशन ग्रिड के संचालन को तकनीकी रूप से कार्यशील बनाता है। कुछ समय पहले तक नवीकरणीय विद्युत् की क्षमता कम थी, लेकिन अब नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ इतनी अधिक बिजली का उत्पादन कर रही हैं कि ग्रिड को सुचारू रूप से संचालित करने के लिये उन्हें कभी-कभी उत्पादन को कम करना या बंद करना पड़ता है। 
  • कमज़ोर ट्रांसमिशन ग्रिड:  
    • देश में कमज़ोर ट्रांसमिशन ग्रिड भी एक चुनौती रही है, खासकर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के मामले में, जो अक्सर दूरदराज़ के क्षेत्रों में बड़े शहरों और खपत केंद्रों से दूर स्थापित की जाती हैं। 
      • उदाहरण के लिये, लेह में बड़ी सौर परियोजनाओं के निर्माण की महत्वात्कांक्षी योजनाओं को हाल ही में कमज़ोर पारेषण बुनियादी ढाँचे का हवाला देते हुए रद्द कर दिया गया था। 
  • अल्पविकसित प्रौद्योगिकी:  
    • भारत के पास वह आवश्यक तकनीक नहीं है जिसकी इस क्षेत्र में आवश्यकता है, उदाहरण के लिये भारत फोटोवोल्टिक सौर सेल के आयात के लिये अन्य देशों पर निर्भर है 
  • पर्यावरण पर प्रभाव:  
    • यद्यपि नवीकरणीय ऊर्जा सृजन शून्य-कार्बन गतिविधि है (कुछ जैव ईंधन को छोड़कर), इसके जीवन चक्र के अन्य बिंदुओं पर (जैसे कच्चे माल के निष्कर्षण और उपकरण निर्माण के दौरान) उत्सर्जन होता है। जैव विविधता और पारिस्थितिकी पर भी RE के हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। 
  • कुशल कर्मियों की कमी:  
    • भारत के बिजली क्षेत्र को न केवल निजी क्षेत्र में बल्कि वितरण कंपनियों (DISCOMs), ग्रिड प्रबंधन कंपनियों, नियामकों और नीति-निर्माताओं के अंदर भी कुशल कर्मियों की कमी का सामना करना पड़ा है और वर्तमान परिदृश्य में यह समस्या और भी बढ़ती जा रही है। 
  • स्थापना लागत का मुद्दा: 
    • स्थापना (installation) की उच्च प्रारंभिक लागत नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है। यद्यपि किसी कोयला संयंत्र के विकास के लिये उच्च निवेश की आवश्यकता होती है, यह ज्ञात है कि पवन और सौर ऊर्जा संयंत्रों को भी भारी निवेश की आवश्यकता होती है। 
    • इसके अलावा, उत्पन्न ऊर्जा की भंडारण प्रणालियाँ महँगी हैं और मेगावाट उत्पादन के मामले में एक वास्तविक चुनौती का प्रतिनिधित्व करती हैं। 

आगे की राह 

  • वैश्विक भागीदारी: वैश्विक भागीदारी साझा की जा रही प्रौद्योगिकी या वित्तीय संसाधनों के माध्यम से समर्थन के नए मार्ग खोल सकती है। 
  • वितरित नवीकरणीय ऊर्जा (DRE): वितरित नवीकरणीय ऊर्जा, जिसमें नवीकरणीय स्रोतों से बिजली केंद्रीकृत संयंत्रों के बजाय उपयोग के बिंदुओं के पास उत्पादित की जाती है, ‘ग्लोबल साउथ’ के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ विश्वसनीय एवं आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच बढ़ाने में मदद कर सकती है, यदि एक अनुकूल विनियामक और नीतिगत वातावरण का निर्माण किया जाए। 
  • उत्तरदायी ऊर्जा के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा: RE केवल ‘रिन्यूएबल एनर्जी’ को इंगित न करता हो, बल्कि ‘रेस्पोंसिबल एनर्जी’ को भी सूचित करता हो। 
    • नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिये, RE उद्योग को चार सिद्धांतों पर कार्य करना चाहिये: 
      • सार्वभौमिक श्रम, भूमि और मानवाधिकारों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना; 
      • प्रत्यास्थी, प्रगतिशील पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा, पुनर्बहाली और संपोषण; 
      • सहभागी शासन सिद्धांतों के लिये प्रतिबद्धता 
      • यह चिह्नित करना कि प्रत्यास्थी समुदाय और एक समावेशी कार्यबल उनकी सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • जलवायु वित्तपोषण: यह ऊर्जा-निर्धन देशों को अपने कार्बन कटौती लक्ष्यों में तेज़ी लाने और जीवाश्म ईंधन से अपने विकास प्रक्षेपवक्र को अलग करने हेतु नई तकनीकों में निवेश करने के लिये धन की आवश्यकता पूरी करने में सहायता करेगा। 

विगत वर्षों के प्रश्न 

प्रश्न: 'घरेलू सामग्री की आवश्यकता' शब्द को कभी-कभी समाचारों में देखा जाता है, यह किस संदर्भ में है? (2017) 

(a) हमारे देश में सौर ऊर्जा उत्पादन का विकास करना
(b) हमारे देश में विदेशी टीवी चैनलों को लाइसेंस प्रदान करना
(c) हमारे खाद्य उत्पादों को अन्य देशों में निर्यात करना
(d) विदेशी शिक्षण संस्थानों को हमारे देश में अपने कैंपस को स्थापित करने की अनुमति देना

उत्तर: A 

  • राष्ट्रीय सोलर मिशन 2010 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य पूरे देश में सौर ऊर्जा का विस्तार करना है और संपूर्ण मूल्य शृंखला में विकास सुनिश्चित करना  है। इसलिये मूल्य शृंखला में घरेलू विनिर्माण क्षमता विकसित करना भी मिशन के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। 
  • घरेलू विनिर्माण के विकास को सुनिश्चित करने के लिये इस मिशन के तहत 'घरेलू सामग्री की आवश्यकता' का प्रावधान शुरू किया गया था। 
  • सौर ऊर्जा उत्पादक स्थानीय रूप से निर्मित सेल का उपयोग करने के लिये उन डेवलपर्स को सब्सिडी की पेशकश की गई जो घरेलू उपकरणों का उपयोग करेंगे। 
  • हालाँकि भारत विश्व व्यापार संगठन में अमेरिका के खिलाफ मामला हार गया क्योंकि निकाय ने फैसला सुनाया कि भारत के घरेलू सामग्री आवश्यकता प्रावधान अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के साथ असंगत थे। 

स्रोत- डाउन टू अर्थ 


शासन व्यवस्था

अमृत सरोवर मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

अमृत सरोवर मिशन, आजादी का अमृत महोत्सव, मनरेगा, XV वित्त आयोग अनुदान, पीएमकेएसवाई। 

मेन्स के लिये:

सरकारी हस्तक्षेप और नीतियांँ, XV वित्त आयोग अनुदान, अमृत सरोवर मिशन। 

चर्चा में क्यों? 

केंद्र सरकार ने रेल मंत्रालय और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) से कहा है कि वे अमृत सरोवर मिशन के तहत देश भर के सभी ज़िलों में तालाबों/टैंकों से खुदाई की गई मृदा/गाद का उपयोग अपनी बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं के लिये करें। 

अमृत सरोवर मिशन: 

  • परिचय: 
    • अमृत सरोवर मिशन 24 अप्रैल 2022 को जल संरक्षण के उद्देश्य से शुरू किया गया था। 
  • लक्ष्य: 
    • मिशन का उद्देश्य आजादी का अमृत महोत्सव के उत्सव के रूप में देश के प्रत्येक ज़िले में 75 जल निकायों का विकास और कायाकल्प करना है। 
    • कुल मिलाकर इससे लगभग एक एकड़ या उससे अधिक आकार के 50,000 जलाशयों का निर्माण होगा। 
    • मिशन इन प्रयासों को पूरा करने के लिये नागरिक और गैर-सरकारी संसाधनों को जुटाने को प्रोत्त्साहित करता है। 
  • शामिल मंत्रालय: 
    • यह मिशन 6 मंत्रालयों/विभागों के साथ संपूर्ण सरकारी दृष्टिकोण के साथ शुरू किया गया है, अर्थात्: 
      • ग्रामीण विकास विभाग 
      • भूमि संसाधन विभाग 
      • पेयजल एवं स्वच्छता विभाग 
      • जल संसाधन विभाग 
      • पंचायती राज मंत्रालय 
      • वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय। 
  • तकनीकी भागीदार: 
    • भास्कराचार्य राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुप्रयोग और भू-सूचना विज्ञान संस्थान (BISAG-N) को मिशन के लिये तकनीकी भागीदार के रूप में नियुक्त किया गया है। 
  • विभिन्न योजनाओं के साथ पुनः ध्यान केंद्रित करना: 
    • यह मिशन राज्यों और ज़िलों के माध्यम से मनरेगा, XV वित्त आयोग अनुदान, पीएमकेएसवाई उप योजनाओं जैसे वाटरशेड विकास घटक, हर खेत को पानी के अलावा राज्यों की अपनी योजनाओं पर फिर से ध्यान केंद्रित करके काम करता है। 
  • लक्ष्य: 
    • मिशन अमृत सरोवर को 15 अगस्त 2023 तक पूरा किया जाना है। 
    • देश में करीब 50,000 अमृत सरोवर बनाए जाने हैं। 
      • इनमें से प्रत्येक अमृत सरोवर 10,000 घन मीटर की जल धारण क्षमता के साथ 1 एकड़ क्षेत्र में होगा। 
    • मिशन में लोगों की भागीदारी केंद्र में है। 
      • स्थानीय स्वतंत्रता सेनानी, उनके परिवार के सदस्य, शहीद के परिवार के सदस्य, पद्म पुरस्कार विजेता और स्थानीय क्षेत्र के नागरिक जहाँ अमृत सरोवर का निर्माण किया जाना है, सभी चरणों में संलग्न रहेंगे। 
    • प्रत्येक 15 अगस्त को प्रत्येक अमृत सरोवर स्थल पर राष्ट्रीय ध्वजारोहण का आयोजन किया जाएगा। 
  • उपलब्धियाँ: 
    • अब तक राज्यों/ज़िलों द्वारा अमृत सरोवरों के निर्माण के लिये 12,241 स्थलों को अंतिम रूप दिया जा चुका है, जिनमें से 4,856 अमृत सरोवरों पर काम शुरू हो गया है। 

आज़ादी का अमृत महोत्सव: 

  • आज़ादी का अमृत महोत्सव स्वतंत्रता के 75 वर्ष और अपने लोगों, संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को मनाने के लिये भारत सरकार की एक पहल है। 
  • यह महोत्सव भारत के लोगों को समर्पित है, जिन्होंने न केवल भारत को अपनी विकासवादी यात्रा में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, बल्कि इसमें आत्मनिर्भर भारत द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत 2.0 को सक्रिय करने के दृष्टिकोण को सक्षम करने की शक्ति और क्षमता भी है। । 
  • 12 मार्च 2021 को आज़ादी का अमृत महोत्सव की आधिकारिक यात्रा शुरू हुई, जिसने हमारी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांँठ के लिये 75-सप्ताह की उलटी गिनती शुरू की जो 15 अगस्त 2023 को एक वर्ष के बाद समाप्त होगी। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016) 

  1. संघ और राज्य के बजट में पर्यावरणीय लाभों और लागतों को शामिल करना जिससे 'हरित लेखांकन' को लागू किया जा सके।
  2. कृषि उत्पादन बढ़ाने हेतु दूसरी हरित क्रांति शुरू करना ताकि भविष्य में सभी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  3. अनुकूलन और शमन उपायों के संयोजन से वन आवरण को बहाल करना और बढ़ाना तथा जलवायु परिवर्तन का प्रतिउत्तर देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। 

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 3
(d) 1, 2और 3 

उत्तर: (c) 

  • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन, जिसे हरित भारत मिशन GIM) के रूप में भी जाना जाता है, जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत उल्लिखित आठ मिशनों में से एक है। इसे फरवरी 2014 में लॉन्च किया गया था। 
  • मिशन के लक्ष्य: 
    • वन/वृक्ष आच्छादन को 5 मिलियन हेक्टेयर (mha) तक बढ़ाना और वन/गैर वन भूमि के अन्य 5 mha पर वन/वृक्ष आवरण की गुणवत्ता में सुधार करना। विभिन्न वन प्रकारों और पारिस्थितिक तंत्रों (जैसे, आर्द्रभूमि, घास के मैदान, घने जंगल, आदि) के लिये अलग-अलग उप-लक्ष्य मौजूद हैं। अत: 3 सही है। 
    • मध्यम घने, खुले वन, अवक्रमित घास के मैदान और आर्द्रभूमि (5 मिलियन हेक्टेयर) सहित वनों/गैर-वनों की वनावरण और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार। 
    • उनमें से प्रत्येक के लिये अलग-अलग उप-लक्ष्यों के साथ स्क्रब, शिफ्टिंग खेती क्षेत्रों, शीत मरुस्थल, मैंग्रोव, खड्डों और परित्यक्त खनन क्षेत्रों (1.8 मिलियन हेक्टेयर) की पारिस्थितिकी-पुनर्स्थापना / वनीकरण। 
    • शहरी / उपनगरीय भूमि में वन और वृक्षों के आवरण में सुधार (0.20 मिलियन हेक्टेयर)। 
    • कृषि वानिकी/सामाजिक वानिकी के अंतर्गत सीमांत कृषि भूमि/परती और अन्य गैर-वन भूमि पर वन और वृक्ष आवरण में सुधार (3 मिलियन हेक्टेयर)। 
    • ईको-सिस्टम सेवाओं जैसे कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन और स्टोरेज (जंगलों और अन्य पारिस्थितिक तंत्रों में), हाइड्रोलॉजिकल सेवाओं और जैव विविधता में सुधार / वृद्धि करना; प्रावधान सेवाओं के साथ-साथ ईंधन, चारा, और लकड़ी और गैर-लकड़ी वन उत्पाद (लघु वन उत्पाद या एमएफपी) आदि, जो उपचार के परिणामस्वरूप 10 मिलियन हेक्टेयर की होने की उम्मीद है। 
    • इन वन क्षेत्रों में और आसपास के लगभग 30 लाख परिवारों के लिये वन आधारित आजीविका आय में वृद्धि करना; और वर्ष 2020 तक वार्षिक CO2 ज़ब्ती को 50 से 60 मिलियन टन तक बढ़ाना। दूसरी हरित क्रांति शुरू करना और केंद्र और राज्य के बजट में हरित लेखांकन को शामिल करना ग्रीन इंडिया मिशन का उद्देश्य नहीं है। अतः 1 और 2 सही नहीं हैं। 

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। 

स्रोत : द हिंदू 


शासन व्यवस्था

आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, एसडीजी, नीति आयोग 

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री ने आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम को ब्लॉक और शहर के स्तर तक विस्तारित करने की इच्छा व्यक्त की है। 

आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम: 

  • परिचय: 
    • इसे जनवरी 2018 में 'आकांक्षी ज़िलों का परिवर्तन' कार्यक्रम (Transformation of Aspirational Districts’ Programme- TADP) के रूप में लॉन्च किया गया था। 
    • आकांक्षी ज़िले भारत के वे ज़िले हैं जो खराब सामाजिक-आर्थिक संकेतकों से प्रभावित हैं। 
  • कार्यक्रम की व्यापक रूपरेखा: 
    • अभिसरण (केंद्र और राज्य की योजनाओं का) 
    • सहयोग (केंद्रीय, राज्य स्तरीय 'प्रभारी' अधिकारियों और ज़िला कलेक्टरों का), 
    • मासिक डेल्टा रैंकिंग के माध्यम से ज़िलों के बीच प्रतिस्पर्द्धा। 
      • आकांक्षी ज़िलों की डेल्टा रैंकिंग, व्यावहारिक प्रशासन के साथ डेटा के अभिनव उपयोग को जोड़ती है, जिससे ज़िले को समावेशी विकास के केंद्र में रखा जाता है। 
  • उद्देश्य: 
    • यह प्रत्येक ज़िले की क्षमता पर ध्यान केंद्रित करता है, एवं तत्काल सुधार के लिये प्रभावी कारकों की पहचान करता है और मासिक आधार पर ज़िलों की रैंकिंग करके प्रगति को मापता है। 
    • ज़िलों को अपने राज्य में सबसे अच्छे ज़िले के समान स्थिति में पहुँचने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है और बाद में प्रतिसपर्द्धी तथा सहकारी संघवाद की भावना से दूसरों से प्रतिस्पर्द्धा करके और दूसरों से सीखकर देश के सर्वश्रेष्ठ में से एक बनने के लिये प्रेरित किया जाता है।i 
    • "सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास" (Sabka Saath Sabka Vikas aur Sabka Vishwas) के अपने नारे के साथ सरकार अपने नागरिकों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सभी के लिये समावेशी विकास सुनिश्चित करने हेतु प्रतिबद्ध है । 
    • ADP अनिवार्य रूप से सतत् विकास लक्ष्यों को स्थानिक बनाने के उद्देश्य से है, जिससे राष्ट्र की प्रगति सुनिश्चित की जा सके। 
  • रैंकिंग के लिये पैरामीटर: 
    • रैंकिंग 5 व्यापक सामाजिक-आर्थिक विषयों के तहत 49 प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (KPIs) में की गई वृद्धिशील प्रगति पर आधारित है - 
      • स्वास्थ्य और पोषण (30%) 
      • शिक्षा (30%) 
      • कृषि और जल संसाधन (20%) 
      • वित्तीय समावेशन और कौशल विकास (10%) 
      • अवसंरचना (10%) 
  • विभिन्न कार्यक्रम: 
  • ADP से जुड़ी चुनौतियाँ: 
    • अपर्याप्त बजटीय संसाधन: 
      • अपर्याप्त बजटीय संसाधनों से संबंधित मुद्दे से ADP प्रभावित होता है। 
    • समन्वय की कमी: 
      • ADP को कई मंत्रालयों द्वारा लागू किया जाता है जिससे समन्वय की कमी होती है। 
    • डेटा उच्च गुणवत्ता वाला प्रशासनिक डेटा: 
      • स्थानीय स्तर पर कार्यक्रम कार्यान्वयन और डिज़ाइन में सुधार के लिये उच्च गुणवत्ता वाला प्रशासनिक डेटा महत्त्वपूर्ण है। 
    • रैंकिंग विधि: 
      • डेल्टा रैंकिंग स्वयं काफी हद तक गुणवत्ता के बजाय मात्रा (यानी, पहुंँच का कवरेज) का आकलन करने पर केंद्रित है। 
    • शिक्षा की गुणवत्ता: 
      • इसके अलावा, भारत में शिक्षा की गुणवत्ता एक निराशाजनक स्थिति में है, जैसा कि ASER रिपोर्ट द्वारा पता चलता है। 

आगे की राह 

  • एक अधिक सरलीकृत सूचकांक की आवश्यकता है, जिसमें विभिन्न परिणाम संकेतकों को सावधानीपूर्वक चुना गया हो ताकि राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों को अधिक स्पष्ट रूप से दर्शाया जा सके। 
  • स्थानीय प्रशासन को और अधिक वित्तीय स्वायत्तता दी जानी चाहिये। 
  • स्वतंत्र सर्वेक्षणों का उपयोग प्रशासनिक डेटा को मान्य करने के लिये किया जा सकता है, यह डेटा की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करेगा। 
  • प्रशासनिक डेटा में सुधार के लिये प्रत्येक ज़िले की आंतरिक क्षमता में बढ़ोतरी की जानी चाहिये, और डेटा उपयोग की संस्कृति को बढ़ावा देना, ADP के लिये प्राथमिकता बनाई जा सकती है। 

यूूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न. अटल इनोवेशन मिशन किस के अंतर्गत स्थापित किया गया है? (2019) 

(a) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग 
(b) श्रम और रोज़गार मंत्रालय 
(c) नीति आयोग 
(d) कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय 

  • अटल इनोवेशन मिशन (AIM) देश की नवाचार और उद्यमशीलता की ज़रूरतों पर विस्तृत अध्ययन और विचार-विमर्श के आधार पर नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये नीति आयोग द्वारा स्थापित एक प्रमुख पहल है। 
  • AIM को व्यापक नवाचार संगठन के रूप में परिकल्पित किया गया है जो विभिन्न स्तरों पर नवाचार और उद्यमशीलता के पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना और संवर्धन को प्रोत्त्साहित करने वाली केंद्रीय, राज्य और क्षेत्रीय नवाचार योजनाओं के बीच नवाचार नीतियों के संरेखण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जैसे-उच्चतर माध्यमिक स्कूल, विज्ञान, इंजीनियरिंग और उच्च शैक्षणिक संस्थान, SME/ MSME उद्योग, कॉर्पोरेट और गैर सरकारी संगठन के स्तर। 

अतः विकल्प (c) सही है। 

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स  


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पश्चिमी सेती विद्युत परियोजना: नेपाल

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-नेपाल संबंध, भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि 1950, पश्चिम सेती जलविद्युत परियोजना। 

मेन्स के लिये:

भारत-नेपाल संबंध और महत्त्व। 

चर्चा में क्यों?  

चीन लगभग छ: वर्षों तक (2012 से 2018 तक) पश्चिमी सेती जलविद्युत परियोजना में शामिल रहा।  वर्ष 2018 में चीन के बाहर होने के लगभग चार वर्षों के बाद भारत द्वारा इस परियोजना का अधिग्रहण किया जाएगा। 

  • इससे पहले भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा लुंबिनी का दौरा किया गया, जहांँ उन्होंने 2566वीं बुद्ध जयंती समारोह मनाया गया। नेपाल ने भी भारत को पश्चिमी सेती जलविद्युत परियोजना में निवेश करने के लिये आमंत्रित किया है। 

प्रमुख बिंदु  

पश्चिम सेती विद्युत परियोजना: 

  • यह प्रस्तावित 750 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना है, जिसे सुदूर-पश्चिमी नेपाल में सेती नदी पर बनाया जाना है। जो पिछले छह दशकों से इसका सिर्फ खाका ही निर्मित हो है। 
  • हाल ही में सरकार ने 1,200 मेगावाट विद्युत उत्पादन करने की क्षमता वाली एक संयुक्त भंडारण परियोजना, वेस्ट सेती और सेती नदी (SR-6)  परियोजना को फिर से तैयार किया है। 
  • इसके भंडारण या जलाशय मानसून के मौसम के दौरान भर जाएगा और इनसे शुष्क मौसम में प्रत्येक दिन पीक आवर्स के दौरान विद्युत की उत्पादन करने के लिये पानी निकाला जाएगा। 
  • इसकी सफलता से नेपाल में भारत की छवि को बहाल करने और जलविद्युत परियोजनाओं के लिये भविष्य के विचारों में इसे महत्त्व देने की उम्मीद है, ऐसे समय में जब प्रतिस्पर्धा कठिन हो। इसलिये, पश्चिम सेती में भविष्य में नेपाल-भारत के शक्ति संबंधों के लिये एक परिभाषित मॉडल बनने की क्षमता है। 

Seti-River

भारत-नेपाल ऊर्जा संबंध: 

  • नेपाल लगभग 6,000 नदियों और 83,000 मेगावाट की अनुमानित क्षमता के साथ विद्युत् स्रोतों में समृद्ध है। 
  • 6,480 मेगावाट उत्पादन के लिये वर्ष 1996 में महाकाली संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे, लेकिन भारत अभी भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के साथ सामने नहीं आ पाया है। 
  • ऊपरी करनाली परियोजना, जिसके लिये बहुराष्ट्रीय GMR ने अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं, ने वर्षों से कोई प्रगति नहीं की है। 
  • पूर्वी नेपाल की संखुवा सभा में 900 मेगावाट की अरुण-3 परियोजना को क्रियान्वित करने में भारत ने  सफलता हासिल की, जिसकी नींव वर्ष 2018 में रखी गई थी और जिसे वर्ष 2023 तक पूरा करने के लिये निर्धारित किया गया है, ने हाल ही में भारत में विश्वास बनाने में मदद की है। 
  • वर्ष 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा के दौरान, उन्होंने कहा था कि भारत को अपनी परियोजनाओं को समय पर निष्पादित करना शुरू करना चाहिये। 
  • नेपाल के संविधान में एक प्रावधान है जिसके तहत प्राकृतिक संसाधनों पर किसी अन्य देश के साथ किसी भी संधि या समझौते के लिये कम से कम दो-तिहाई बहुमत से संसद के अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी। इसका मतलब यह भी होगा कि किसी भी हाइड्रो परियोजना पर हस्ताक्षर करने और निष्पादन के लिये दिये जाने से पहले शासकीय कार्यों की आवश्यकता होगी। 
  • नेपाल में बिजली की भारी कमी है क्योंकि यह लगभग 2,000 मेगावाट की स्थापित क्षमता के मुकाबले केवल लगभग 900 मेगावाट उत्पादित करता है। हालांँकि यह वर्तमान में भारत को 364 मेगावाट बिजली  निर्यात कर रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह भारत से आयात कर रहा है। 

भारत-नेपाल राजनयिक संबंध: 

  • नेपाल और भारत के बीच गतिरोध के कारण 2015 में आर्थिक प्रतिबंध आरोपित किया गया लेकिन ओली के बाद नए पीएम देउबा के पदभार संभालने के बाद समीकरण बदल गए, जिन्होंने हाल ही में भारत का दौरा किया, जहांँ उन्होंने भारत के साथ भाईचारे का संबंध स्थापित करने का फैसला किया । 
  • नेपाल भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के कारण अपनी विदेश नीति में विशेष महत्त्व रखता है। 
  • भारत और नेपाल वर्तमान नेपाल में स्थित बुद्ध के जन्मस्थान लुंबिनी के साथ हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं। 
  • दोनों देश न केवल एक खुली सीमा और लोगों की निर्बाध आवाजाही साझा करते हैं, बल्कि विवाह और पारिवारिक संबंधों के माध्यम से भी उनके बीच घनिष्ठ संबंध हैं, जिन्हें लोकप्रिय रूप से रोटी-बेटी के रिश्ते के रूप में जाना जाता है। 
  • 1950 की शांति और मित्रता की भारत-नेपाल संधि भारत एवं नेपाल के बीच मौज़ूद विशेष संबंधों का आधार है। 
  • नेपाल में उत्पन्न होने वाली नदियाँ पारिस्थितिकी और जलविद्युत क्षमता के साथ हीं भारत की बारहमासी नदी प्रणालियों को पोषित करती हैं। 
  • हालांँकि नवंबर 2019 में सीमा मुद्दा तब उभरा जब नेपाल ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था, जिसमें नेपाल के क्षेत्र के हिस्से के रूप में उत्तराखंड के कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख का दावा किया गया था। नए नक्शे में सुस्ता (पश्चिमी चंपारण ज़िला, बिहार) के क्षेत्र को भी प्रदर्शित किया जा सकता है। 

आगे की राह 

  • जब तक भारत नेपाल के जल को महत्त्व देने के लिये सहमत नहीं हो जाता है और बिजली पर मौजूदा फोकस की समीक्षा नहीं की जाती है, तब तक आपसी अविश्वास लंबे समय में दोनों पक्षों की प्रगति की क्षमता को प्रभावित करता रहेगा। 
  • एक बार जब परियोजनाओं को बहुउद्देश्यीय बना दिया जाता है तो - बाढ़ नियंत्रण, नेविगेशन, मत्स्य पालन, कृषि विकास में योगदान देने वाली सिंचाई आदि के साथ पानी को उचित मूल्य प्राप्त होगा एवं बिजली की लागत मौजूदा दरों की तुलना में बहुत कम होगी और दोनों पक्षों के लोगों को एकाधिक लाभ होगा। 
  • बिजली व्यापार समझौता ऐसा होना चाहिये जिससे भारत नेपाल में विश्वास पैदा कर सके। भारत में अधिक नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ होने के बावजूद जलविद्युत ही एकमात्र स्रोत है जो भारत में चरम मांग का प्रबंधन कर सकता है। 

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस 


भारतीय अर्थव्यवस्था

ज़मानती बॉण्ड

प्रिलिम्स के लिये:

ज़मानती बॉण्ड, प्रदर्शन बॉण्ड, अग्रिम भुगतान बॉण्ड, बोली बॉण्ड 

मेन्स के लिये:

ज़मानती बॉण्ड और बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MORTH) ने भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण   (IRDAI) को सामान्य बीमाकर्ताओं के परामर्श से ज़मानती बॉण्ड पर एक मॉडल उत्पाद विकसित करने के लिये कहा है। 

  • कई चुनौतीपूर्ण मुद्दों ने बीमाकर्त्ताओं के साथ ज़मानती बॉण्ड को पूरी तरह से गैर-स्टार्टर बना दिया है और IRDAI को प्रस्तावित किया गया है कि इसे एक मॉडल उत्पाद तैयार करना चाहिये। 
  • भारतीय अनुबंध अधिनियम के साथ-साथ दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) में परिवर्तन के मुद्दे पर भी प्रकाश डाला गया ताकि डिफाल्ट  के मामले में उनके लिये उपलब्ध सबूतों के संदर्भ में ज़मानती बॉण्ड बैंक गारंटी के समान स्तर पर हों, इस पर भी विचार किया जा रहा है। 

ज़मानती बॉण्ड: 

  • परिचय: 
    • किसी अधिनियम के अनुपालन, भुगतान या प्रदर्शन की गारंटी के लिये एक लिखित समझौते के रूप में एक ज़मानती बॉण्ड को अपने सरल रूप में परिभाषित किया जा सकता है। 
    • यह एक अद्वितीयक  प्रकार का बीमा है क्योंकि इसमें तीन-पक्षीय समझौता शामिल है। एक ज़मानत समझौते में तीन पक्ष होते हैं: 
      • मुख्य पक्ष- वह पक्ष जो बॉण्ड खरीदता है और वादे के अनुसार कार्य करने का दायित्व लेता है।  
      • ज़मानत पक्ष- दायित्व की गारंटी देने वाली बीमा कंपनी या ज़मानत कंपनी का प्रदर्शन किया जाएगा। यदि मुख्य पक्ष वादे के अनुसार कार्य करने में विफल रहता है, तो ज़मानत   पक्ष  निरंतर नुकसान के लिये संविदात्मक रूप से उत्तरदायी है।
    • ओब्लिगी- जिस पार्टी की आवश्यकता होती है वह प्रायः ज़मानती बॉण्ड से लाभ प्राप्त करता है। अधिकांश ज़मानती बॉण्ड के लिये ‘ओब्लिगी' एक स्थानीय, राज्य या संघीय सरकारी संगठन होता है। 
    • बीमा कंपनी द्वारा ठेकेदार की ओर से उस संस्था को ज़मानती बॉण्ड प्रदान किया जाता है जो परियोजना शुरू कर रही है। 
  • उद्देश्य: 
    • ज़मानती बाॅण्ड मुख्य रूप से बुनियादी ढाँचे के विकास से संबंधित है, यह आपूर्तिकर्त्ताओं और कार्य-ठेकेदारों के लिये अप्रत्यक्ष लागत को कम करने हेतु उनके विकल्पों में विविधता लाने व बैंक गारंटी के विकल्प के रूप में कार्य करता है। 
  • लाभ: 
    • ज़मानती बाॅण्ड लाभार्थी को उन कृत्यों या घटनाओं से बचाता है जो मुख्य पक्ष को अंतर्निहित दायित्वों  से वंचित करते हैं। 
    • वे निर्माण या सेवा अनुबंधों से लेकर लाइसेंसिंग और वाणिज्यिक उपक्रमों तक विभिन्न दायित्वों के प्रदर्शन की गारंटी देते हैं। 

Surety-Bond

ज़मानती बाॅण्ड से संबंधित मुद्दे: 

  • एक नई अवधारणा के रूप में ज़मानती बाॅण्ड काफी जोखिम भरा हो सकता है और भारत में बीमा कंपनियों को अभी तक ऐसे व्यवसाय में जोखिम मूल्यांकन में विशेषज्ञता हासिल नहीं हुई है। 
  • इसके अलावा मूल्य निर्धारण, डिफॉल्टिंग ठेकेदारों के विरुद्ध उपलब्ध सहायता और पुनर्बीमा विकल्पों पर कोई स्पष्टता नहीं है। 
    • ये काफी महत्त्वपूर्ण विषय हैं और ज़मानत से संबंधित विशेषज्ञता एवं क्षमताओं के निर्माण में बाधा डाल सकते हैं तथा अंततः बीमाकर्त्ताओं को इस व्यवसाय में प्रवेश करने से रोक सकते हैं। 

अवसंरचना परियोजनाओं को किस प्रकार बढ़ावा देगा? 

  • ज़मानती अनुबंधों के लिये नियम बनाने के कदम से बुनियादी अवसंरचना क्षेत्र को अधिक तरलता और वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी। 
  • यह बड़े, मध्यम एवं छोटे ठेकेदारों के लिये समान अवसर प्रदान करेगा। 
  • ज़मानती बीमा व्यवसाय, निर्माण परियोजनाओं के लिये बैंक गारंटी के विकल्प को विकसित करने में सहायता करेगा। 
    • यह कार्यशील पूंजी के कुशल उपयोग को सक्षम करेगा और निर्माण कंपनियों द्वारा प्रदान की जाने वाली संपार्श्विक की आवश्यकता को कम करेगा। 
  • जोखिम संबंधी जानकारी साझा करने हेतु बीमाकर्त्ता वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर काम करेंगे। 
    • इसलिये यह जोखिम पहलुओं पर समझौता किये बिना बुनियादी अवसंरचना के क्षेत्र में तरलता लाने में सहायता करेगा। 

ज़मानती बाॅण्ड पर IRDAI दिशा-निर्देश 

  • नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, बीमा कंपनियाँ अब बहुप्रतीक्षित ज़मानती बाॅण्ड लॉन्च कर सकती हैं। 
  • IRDAI ने कहा है कि एक वित्तीय वर्ष में सभी निश्चित बीमा पॉलिसियों के लिये लिया गया प्रीमियम, उन नीतियों हेतु बाद के वर्षों में सभी किश्तों सहित उस वर्ष के कुल सकल लिखित प्रीमियम के 10% से अधिक नहीं होना चाहिये, जो कि अधिकतम 500 करोड़ रुपए की सीमा के अधीन है। 
  • भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के अनुसार, बीमाकर्त्ता ज़मानती बाॅण्ड जारी कर सकते हैं, जो सार्वजनिक संस्था, डेवलपर्स, उप-अनुबंधकर्त्ता और आपूर्तिकर्त्ताओं को आश्वासन देते हैं कि ठेकेदार परियोजना शुरू करते समय अपने संविदात्मक दायित्व को पूरा करेगा। 
    • अनुबंध बाॅण्ड में बोली बाॅण्ड, प्रदर्शन बाॅण्ड, अग्रिम भुगतान बाॅण्ड और प्रतिधारण राशि शामिल हो सकती है 
      • बोली बाॅण्ड: यह एक उपकृत को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है यदि बोली लगाने वाले को बोली दस्तावेज़ो के अनुसार एक अनुबंध से सम्मानित किया जाता है, लेकिन अनुबंध पर हस्ताक्षर करने में विफल रहता है। 
      • प्रदर्शन बाॅण्ड: यह आश्वासन प्रदान करता है कि यदि प्रिंसिपल या ठेकेदार अनुबंध को पूरा करने में विफल रहता है तो उपकृत की रक्षा की जाएगी। यदि उपकृतकर्ता प्रिंसिपल या ठेकेदार को डिफॉल्ट घोषित करता है और अनुबंध को समाप्त कर देता है, तो यह ज़मानत प्रदाता को बाॅण्ड के तहत ज़मानत के दायित्वों को पूरा करने के लिये कह सकता है। 
      • अग्रिम भुगतान बाॅण्ड: यदि ठेकेदार विनिर्देशों के अनुसार, अनुबंध को पूरा करने में या अनुबंध के दायरे का पालन करने में विफल रहता है, तो यह ज़मानत प्रदाता द्वारा अग्रिम भुगतान की बकाया राशि का भुगतान करने का वायदा है। 
      • प्रतिधारण राशि: यह ठेकेदार को देय राशि का एक हिस्सा है, जिसे अनुबंध के सफल समापन के बाद अंत में बनाए रखा जाता है और देय होता है। 
  • गारंटी की सीमा अनुबंध मूल्य के 30% से अधिक नहीं होनी चाहिये। 
  • ज़मानत बीमा अनुबंध केवल विशिष्ट परियोजनाओं के लिये जारी किये जाने चाहिये और कई परियोजनाओं के लिये संयोजित नहीं किये जाने चाहिये। 

विगत वर्ष के प्रश्न 

प्र. कभी-कभी समाचारों में देखे जाने वाले 'आईएफसी मसाला बाॅण्ड' के संदर्भ में, नीचे दिये गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016) 

  1. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम, जो इन बाॅण्डों की पेशकश करता है, विश्व बैंक की एक शाखा है।
  2. वे रुपए में मूल्यवर्ग के बाॅण्ड हैं और सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के लिये ऋण वित्तपोषण का एक स्रोत हैं।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर का चयन कीजिये: 

(a) केवल 1  
(b) केवल 2  
(c) 1 और 2 दोनों  
(d) न तो 1 और न ही 

उत्तर:(c) 

व्याख्या:  

  • विश्व बैंक समूह जो विकासशील देशों के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, में पांँच विशिष्ट लेकिन पूरक संगठन शामिल हैं, अर्थात्, 
    • अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक 
    • अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA) 
    • अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC), अतः कथन 1 सही है। 
    • बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA) 
    • निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID) 
  • IFC में सदस्यता केवल विश्व बैंक के सदस्य देशों के लिये खुली है। इसके बोर्ड की स्थापना 1956 में हुई थी। 
  • IFC का स्वामित्त्व 184 सदस्य देशों के पास है, एक समूह जो सामूहिक रूप से नीतियों को निर्धारित करता है। बोर्ड ऑफ गवर्नर्स और निदेशक मंडल के माध्यम से सदस्य देश IFC के कार्यक्रमों और गतिविधियों का मार्गदर्शन करते हैं। 
  • मसाला बांड विदेशी बाज़ारों में भारतीय संस्थाओं द्वारा जारी रुपये-नामित उधार हैं। मसाला का अर्थ है 'मसाले' और इस शब्द का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) द्वारा विदेशी प्लेटफार्मों पर भारत की संस्कृति और व्यंजनों को लोकप्रिय बनाने के लिये किया गया था। 
  • मसाला बांड का उद्देश्य भारत में बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करना, उधार के माध्यम से आंतरिक विकास को बढ़ावा देना और भारतीय मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना है। अत: कथन 2 सही है। 

अतः विकल्प (c) सही है। 

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस 


सामाजिक न्याय

विश्व मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट: WHO

प्रिलिम्स के लिये:

डब्ल्यूएचओ, व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना, मनोदर्पण। 

मेन्स के लिये:

मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट जारी की। 

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु: 

  • WHO ने दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को संबोधित करने के लिये और अधिक कार्रवाई का आह्वान किया है, खासकर तब जब 'कोविड -19' महामारी को मानसिक स्वास्थ्य को कुप्रभावित करने में योगदान के रूप में उद्धृत किया गया है। 
  • लगभग एक अरब लोग, जिनमें से 14% किशोर थे, 2019 में किसी न किसी रूप में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के साथ जी रहे थे। कुछ के लिये यह आत्महत्या का कारण बना, जिसमें 100 में से एक की मृत्यु हुई, जिनमें से आधे से अधिक 50 वर्ष की आयु से पहले हुई। . 
  • महामारी (2020) के पहले वर्ष में अवसाद और चिंता 25% बढ़ गई। 
  • WHO के सभी 194 सदस्य राज्यों ने व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना 2013-2030 को अपनाया है लेकिन इसकी प्रगति धीमी रही है। 
  • महामारी के अलावा मानसिक कल्याण के लिये अन्य संरचनात्मक खतरों में सामाजिक और आर्थिक असमानताएंँ, सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति, युद्ध और जलवायु संकट शामिल हैं। 
  • मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के साथ जीने वाले सामान्य आबादी की तुलना में लगभग दो दशक कम जीते हैं। 
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंँच खराब बनी हुई है। वैश्विक स्तर पर, 71% मनोविकृति रोगियों को उपचार प्राप्त नहीं होता है। उच्च आय वाले देश 70% मनोविकृति रोगियों को उपचार प्रदान करते हैं और कम आय वाले देश केवल 12% के लिये इसका प्रबंधन करते हैं। 
  • WHO की रिपोर्ट में व्यापक मानसिक स्वास्थ्य कार्य योजना 2013-2030 पर प्रगति को तेज़ करने के लिये तीन प्रमुख 'परिवर्तन के पथ' को सूचीबद्ध किया गया है। 
    • इनमें मानसिक स्वास्थ्य में अधिक केंद्रित निवेश, घरों, समुदायों, स्कूलों, कार्यस्थलों और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं जैसे वातावरण को फिर से आकार देना शामिल है जो मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और इसे विविधता लाकर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता को मज़बूत करते हैं। 

मानसिक स्वास्थ्य: 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य खुशहाली एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी क्षमताओं का एहसास करता है, जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक और लाभदायक रूप से काम कर सकता है और अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम होता है। 
  • शारीरिक स्वास्थ्य की तरह, मानसिक स्वास्थ्य भी जीवन के हर चरण में, बचपन और किशोरावस्था से लेकर वयस्कता तक महत्वपूर्ण है। 

मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियांँ: 

  • उच्च सार्वजनिक स्वास्थ्य बोझ: भारत के नवीनतम राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत में अनुमानित 150 मिलियन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप की आवश्यकता है। 
  • संसाधनों की कमी: भारत में मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल के निम्न अनुपात (प्रति 100,000 जनसंख्या) में मनोचिकित्सक (0.3), नर्स (0.12), मनोवैज्ञानिक (0.07) और सामाजिक कार्यकर्त्ता (0.07) शामिल हैं। 
    • स्वास्थ्य देखभाल पर सकल घरेलू उत्पाद के केवल एक प्रतिशत से अधिक के कम वित्तीय संसाधन आवंटन ने सस्ती मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये सार्वजनिक पहुंँच में बाधाएंँ पैदा की हैं। 
  • अन्य चुनौतियाँ: मानसिक बीमारी के लक्षणों के बारे में कम जागरूकता, सामाजिक लांछनऔर मानसिक रूप से बीमार, विशेष रूप से वृद्ध और निराश्रितों का परित्याग, रोगी के इलाज़ के लिये परिवार के सदस्यों की ओर से सामाजिक अलगाव और अनिच्छा का कारण बनता है। 
    • इसके परिणामस्वरूप इलाज़ में भारी अंतर पैदा हो गया है, जो किसी व्यक्ति की वर्तमान मानसिक बीमारी को और खराब कर देता है। 
  • परवर्ती चिकित्सा अंतराल: मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के उपचार के बाद उनके उचित पुनर्वास की आवश्यकता होती है जो वर्तमान में मौजूद नहीं है। 
  • तीव्रता में वृद्धि: आर्थिक मंदी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य समस्याएंँ बढ़ जाती हैं, इसलिये आर्थिक संकट के समय विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। 

मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदम: 

  • संवैधानिक प्रावधान: सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वास्थ्य सेवा को मौलिक अधिकार माना है। 
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP): मानसिक विकारों के भारी बोझ और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग्य पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिये सरकार वर्ष 1982 से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) को लागू कर रही है। 
    • वर्ष 2003 में दो योजनाओं को शामिल करने हेतु इस कार्यक्रम को सरकार द्वारा पुनः रणनीतिक रूप से तैयार किया गया, जिसमें राजकीय मानसिक अस्पतालों का आधुनिकीकरण और मेडिकल कॉलेजों/सामान्य अस्पतालों की मानसिक विकारों से संबंधित इकाइयों का उन्नयन करना शामिल था। 
  • मानसिक स्वास्थ्यकर अधिनियम, 2017: यह अधिनयम प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित या वित्तपोषित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और उपचार तक पहुँच की गारंटी देता है। 
    • मानसिक स्वास्थ्यकर अधिनियम, 2017: यह अधिनियम प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित या वित्तपोषित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और उपचार तक पहुँच की गारंटी देता है। 
  • किरण हेल्पलाइन: वर्ष 2020 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं का सामना कर रहे लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन 'किरण' शुरू की थी।  
  • मनोदर्पण: मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MHRD) ने इसे आत्मानिर्भर भारत अभियान के तहत लॉन्च किया। इसका उद्देश्य छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को उनके मानसिक स्वास्थ्य और भलाई के लिये कोविड -19 के समय में मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है। 

आगे की राह:  

  • भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति सरकार द्वारा सक्रिय नीतिगत हस्तक्षेप और संसाधन आवंटन की मांग करती है।. 
  • मानसिक स्वास्थ्य के प्रति कलंक को कम करने के लिये हमें समुदाय/समाज को प्रशिक्षित और संवेदनशील बनाने के उपायों की आवश्यकता है। 
  • जब मानसिक बीमारी वाले रोगियों को सही देखभाल प्रदान करने की बात आती है, तो हमें रोगियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, हमें सेवाओं और कर्मचारियों की पहुँच को बढ़ाने के लिये नए मॉडल की आवश्यकता है। 
  • भारत को मानसिक स्वास्थ्य और इससे संबंधित मुद्दों के बारे में शिक्षित करने और जागरूकता पैदा करने के लिये निरंतर वित्तीयन की आवश्यकता है। 
  • स्वच्छ मानसिकता अभियान जैसे अभियानों के माध्यम से लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिये प्रेरित करना समय की मांग है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ  


भारतीय अर्थव्यवस्था

सॉवरेन गोल्ड बाॅण्ड योजना

प्रिलिम्स के लिये:

सरकारी प्रतिभूति (जीएस) अधिनियम, 2006, आरबीआई, आयकर अधिनियम, 1961। 

मेन्स के लिये:

सॉवरेन गोल्ड बाॅण्ड योजना, इसके फायदे और नुकसान। 

चर्चा में क्यों?  

भारत सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक के परामर्श से 2022-23 के लिये सॉवरेन गोल्ड बाॅण्ड (SGB) किश्तों में जारी करेगी। 

  • SGB में निवेश कोविड-प्रभावित वर्षों के दौरान तेजी से बढ़ा क्योंकि निवेशकों ने 2020-21 और 2021-22 के साथ इक्विटी बाज़ारों में अस्थिरता के बीच सुरक्षित विकल्पों की तलाश की, जो नवंबर 2015 में योजना की स्थापना के बाद से बाॅण्ड की कुल बिक्री का लगभग 75% हिस्सा था। 

सॉवरेन गोल्ड बाॅण्ड योजना: 

  • शुरुआत: 
    • सरकार ने सोने की मांग को कम करने और घरेलू बचत के एक हिस्से (जिसका उपयोग स्वर्ण की खरीद के लिये किया जाता है) को वित्तीय बचत में बदलने के उद्देश्य से नवंबर, 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (Sovereign Gold Bond) योजना की शुरुआत की थी। 
  • निर्गमन: 
    • गोल्ड/स्वर्ण बॉण्ड सरकारी प्रतिभूति (GS) अधिनियम, 2006 के तहत भारत सरकार के स्टॉक के रूप में जारी किये जाते हैं। 
    • ये भारत सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं। 
    • बॉण्ड की बिक्री वाणिज्यिक बैंकों, स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL)नामित डाकघरों (जिन्हें अधिसूचित किया जा सकता है) और मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों जैसे कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड तथा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड के ज़रिये या तो सीधे अथवा एजेंटों के माध्यम से की जाती है। 
  • पात्रता: इन बॉण्डों की बिक्री निवासी व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (HUFs), न्यासों/ट्रस्ट, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थानों तक ही सीमित है। 
  • विशेषताएँ: 
    • विमोचन मूल्य:  गोल्ड/स्वर्ण बॉण्ड की कीमत इंडिया बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन (India Bullion and Jewellers Association- IBJA) द्वारा 999 शुद्धता वाले सोने (24 कैरट) के लिये प्रकाशित मूल्य पर आधारित होती है। 
    • निवेश सीमा: गोल्ड बॉण्ड एक ग्राम यूनिट के गुणकों में खरीदे जा सकते हैं जिसमें विभिन्न निवेशकों के लिये एक निश्चित सीमा निर्धारित होती है। 
      • खुदरा (व्यक्तिगत) तथा हिंदू अविभाजित परिवारों (Hindu Undivided Families- HUFs) के लिये खरीद की अधिकतम सीमा 4 किलोग्राम है। ट्रस्ट एवं इसी तरह के निकायों के लिये प्रति वित्त वर्ष 20 किलोग्राम की अधिकतम सीमा लागू होती है। 
      • संयुक्त धारिता के मामले में 4 किलोग्राम की निवेश सीमा केवल प्रथम आवेदक पर लागू होती है। 
      • न्यूनतम स्वीकार्य निवेश सीमा 1 ग्राम सोना है। 
    • अवधि: इन बॉण्डों की परिपक्वता अवधि 8 वर्ष होती है तथा 5 वर्ष के बाद इस निवेश से बाहर निकलने का विकल्प उपलब्ध होता है। 
    • ब्याज दर: निवेशकों को प्रतिवर्ष 2.5 प्रतिशत की निश्चित ब्याज दर लागू होती है, जो छह माह पर देय होती है। 
      • ोल्ड बॉण्ड पर प्राप्त होने वाले ब्याज पर कर/टैक्स आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधान के अनुसार अदा करना होगा। 
  • लाभ:  
    • ऋण के लिये बॉण्ड का उपयोग संपार्श्विक (जमानत या गारंटी) के रूप में किया जा सकता है। 
    • किसी भी व्यक्ति को सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (SGB) के विमोचन पर होने वाले पूंजीगत लाभ को कर मुक्त कर दिया गया है। 
      • विमोचन (Redemption) का तात्पर्य एक जारीकर्त्ता द्वारा परिपक्वता पर या उससे पहले बॉण्ड की पुनर्खरीद के कार्य से है। 
      • पूंजीगत लाभ (Capital Gain) स्टॉक, बॉण्ड या अचल संपत्ति जैसी संपत्ति की बिक्री पर अर्जित लाभ है। यह तब प्राप्त होता है जब किसी संपत्ति का विक्रय मूल्य उसके क्रय मूल्य से अधिक हो जाता है। 
  • SGB में निवेश के नुकसान: 
    • यह भौतिक स्वर्ण (जिसे तुरंत बेचा जा सकता है) के विपरीत एक दीर्घकालिक निवेश है। 
    • सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होते हैं लेकिन इनका ट्रेडिंग वॉल्यूम ज़्यादा नहीं होता, इसलिये परिपक्वता से पहले बाहर निकलना मुश्किल होगा। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्र. सरकार की 'सॉवरेन गोल्ड बाॅण्ड योजना' और 'स्वर्ण मुद्रीकरण योजना' का लक्ष्य/उद्देश्य क्या है/हैं? (2016) 

  1. भारतीय परिवारों के पास बेकार पड़े सोने को अर्थव्यवस्था में लाना।
  2. स्वर्ण और आभूषण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देना।
  3. सोने के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(A) केवल 1 
(B) केवल 2 और 3 
(C) केवल 1 और 3 
(D) 1, 2 और 3 

उत्तर: (C) 

व्याख्या: 

  • सॉवरेन गोल्ड बाॅण्ड स्कीम और गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम को सरकार ने वर्ष 2015 में लॉन्च किया था। 
  • इन योजनाओं के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं: 
  • देश में घरों और संस्थानों के पास रखे सोने को जुटाना। अत: कथन 1 सही है। बैंकों से ऋण पर कच्चे माल के रूप में सोना उपलब्ध कराकर देश में रत्न एवं आभूषण क्षेत्र को प्रोत्साहन प्रदान करना 
  • घरेलू मांग को पूरा करने के लिये समय के साथ सोने के आयात पर निर्भरता कम करने में सक्षम होना। अत: कथन 3 सही है। 
  • इन योजनाओं का उद्देश्य सोना और आभूषण क्षेत्र में FDI को बढ़ावा देना नहीं है। अत: कथन 2 सही नहीं है। अतः विकल्प (C) सही उत्तर है। 

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया 


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