डेली न्यूज़ (20 May, 2021)



यूएस ग्लोबल एंट्री प्रोग्राम

चर्चा में क्यों?

भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले दो वर्षों में 9,000 से अधिक भारतीयों के पूर्वर्ती स्थितियों (Antecedent) की जाँच की, जो यूएस के ग्लोबल एंट्री प्रोग्राम (Global Entry Programme) के लिये नामांकन करना चाहते थे।

प्रमुख बिंदु

यूएस ग्लोबल एंट्री प्रोग्राम के विषय में:

  • यह प्रोग्राम अमेरिका का एक सीमा शुल्क और सीमा सुरक्षा (Customs and Border Protection- CBP) कार्यक्रम है जो कम जोखिम वाले यात्रियों को अपने देश में आने पर एयरपोर्ट से त्वरित निकासी की सुविधा देता है।
  • हालाँकि यह पायलट प्रोजेक्ट के रूप में वर्ष 2008 में शुरू किया गया था, लेकिन भारत वर्ष 2017 में इसका सदस्य बना।
  • यात्रियों की संदिग्ध पृष्ठभूमि की जाँच के बाद इस कार्यक्रम के अंतर्गत पूर्व-अनुमोदन प्रदान किया जाता है।
  • यात्रियों का अनुरोध प्राप्त होने के बाद अमेरिकी अधिकारी इसे विदेश मंत्रालय (MEA) के पास भेजता है। विदेश मंत्रालय इसे गृह मंत्रालय को भेजता है, जो पृष्ठभूमि की जाँच करने के लिये अन्य मंत्रालयों, राज्य पुलिस और अन्य डेटाबेस को टैप करता है।
  • सीबीपी प्राप्त आवेदन को उस स्थिति में आगे नहीं बढ़ाता है यदि किसी व्यक्ति को “किसी भी अपराध का दोषी ठहराया गया है या आपराधिक आरोप न्यायालय में लंबित है, साथ ही यदि उसे  किसी भी देश में सीमा शुल्क, आप्रवास, कृषि नियमों या कानूनों का उल्लंघन करते हुए पाया गया है।”

अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क एवं सिस्टम:

  • यह एक केंद्रीय वित्तपोषित योजना है, जिसे राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) द्वारा विकसित किया गया है।
    • यह गृह मंत्रालय के नेशनल ई-गवर्नेंस प्लान (National e-Governance Plan) के तहत स्थापित एक मिशन मोड प्रोजेक्ट है।
    • इसे वर्ष 2009 में मंज़ूरी दी गई थी।
  • यह एक सुरक्षित एप्लीकेशन है जो देश के 97% से अधिक पुलिस स्टेशनों को जोड़ता है।
  • उद्देश्य:
    • पुलिस थानों के कामकाज को पारदर्शी करके पुलिस के कामकाज को नागरिक हितैषी और अधिक पारदर्शी बनाना।
    • आईसीटी के प्रभावी उपयोग के माध्यम से नागरिक केंद्रित सेवाओं के वितरण में सुधार लाना।
    • अपराध और अपराधियों की सटीक एवं तीव्र जाँच के लिये जाँच अधिकारियों को अद्यतित उपकरण, तकनीक और जानकारियाँ प्रदान करना।

स्रोत: द हिंदू


ग्रामीण विकास योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

कोविड-19 महामारी के बावजूद, देश में ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न योजनाओं में प्रगति परिलक्षित होती रही है।

प्रमुख बिंदु 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 2005:

  • परिचय : 
    • इस योजना को एक सामाजिक उपाय के रूप में प्रदर्शित किया गया था जो "रोज़गार के अधिकार" की गारंटी देती है। इस योजना के संपूर्ण कार्यान्वयन की निगरानी ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से किया जाता है।
  • प्रमुख उद्देश्य:
    • मनरेगा कार्यक्रम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये एक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार प्रदान किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप निर्धारित गुणवत्ता और स्थायित्व की उत्पादक संपत्ति का निर्माण होता है।
      • मनरेगा की संपत्तियों में प्रमुख रूप से खेत, तालाब, रिसाव टैंक, चेक डैम, सड़क की मरम्मत, सिंचाई प्रणाली आदि शामिल हैं।
  • अन्य विशेषताएँ :
    • इसमें शामिल ग्राम पंचायतों द्वारा मनरेगा के तहत कार्यों की प्रकृति को मंजूरी देकर उनकी प्राथमिकता तय की जाती है।
    • मनरेगा के तहत किये गए कार्यों का सामाजिक-लेखांकन (Social Audit)  अनिवार्य है, जिसके परिणामस्वरूप जवाबदेही और पारदर्शिता में विस्तार होता  है।
  • उपलब्धियाँ:
    • वित्तीय वर्ष 2021-22 में 2.95 करोड़ व्यक्तियों को 5.98 लाख संपत्ति निर्माण कार्य को पूरा करने और 34.56 करोड़ व्यक्ति-दिनों का सृजन करने के लिये काम की पेशकश की गई है।

 दीनदयाल अंत्‍योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM):

  • परिचय:
  • उद्देश्य:
    • इस योजना का उद्देश्य देश में ग्रामीण गरीब परिवारों हेतु कौशल विकास और वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुँच के माध्यम से आजीविका के अवसरों में वृद्धि कर ग्रामीण गरीबी को कम करना है।
  • कार्यप्रणाली:
    • इसमें स्व-सहायतित  उद्देश्यों की पूर्ति के लिये सामुदायिक पेशेवरों के माध्यम से सामुदायिक संस्थाओं  के साथ कार्य किया जाना शामिल है जो DAY-NRLM का एक अनूठा प्रस्ताव है।
    • स्वयं-सहायता संस्थानों और बैंकों के वित्तीय संसाधनों तक पहुँच के माध्यम से अन्य सुविधाओं के साथ-साथ प्रत्येक ग्रामीण गरीब परिवार से एक महिला सदस्य को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) में शामिल कर, उनके प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, उनकी सूक्ष्म-आजीविका योजनाओं को सुविधाजनक बनाना और उन्हें अपनी आजीविका योजनाओं को लागू करने में सक्षम बनाकर सार्वभौमिक सामाजिक लामबंदी के माध्यम से आजीविका को प्रभावित करना है। 
  • उपलब्धियाँ:
    •  वित्त वर्ष 2021 में लगभग 56 करोड़ रुपए का रिवॉल्विंग फंड और कम्युनिटी इनवेस्टमेंट फंड महिला स्वयं सहायता समूहों को जारी किया गया जो कि वित्त वर्ष 2020 की समान अवधि में 32 करोड़ रुपए था। 
    • इस कार्यक्रम के तहत कृषि और गैर-कृषि आधारित आजीविका पर प्रशिक्षण, कोविड प्रबंधन और कृषि-पोषक उद्यानों को बढ़ावा देना शामिल है ।

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY):

  • आरंभ: 25 दिसंबर , 2000.
  • उद्देश्य: 
    • इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य निर्धारित मानकों को पूरा करने वाली असंबद्ध बस्तियों को बारहमासी सड़क नेटवर्क प्रदान करना है।
  •  लाभार्थी:
    • इसमें निर्धारित जनसंख्या वाली असंबद्ध बस्तियों को ग्रामीण संपर्क नेटवर्क प्रदान कर ग्रामीण क्षेत्रों का सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण करना शामिल है। योजना के अंतर्गत जनसंख्या का आकार (2001 की जनगणना के अनुसार) मैदानी क्षेत्रों में 500+ और उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों, मरुस्थलीय और जनजातीय क्षेत्रों में 250+ निर्धारित किया गया है।  
  • उपलब्धियाँ:
    • विगत 3 वर्षों की में तुलनीय अवधि में इस योजना के तहत सड़कों की सर्वाधिक  लंबाई का निर्माण किया गया है।

प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण:

  • आरंभ: 
    •  वर्ष 2022 तक ‘सभी के लिये आवास’ के उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु  1 अप्रैल, 2016 को पूर्ववर्ती इंदिरा आवास योजना (Indira Awaas Yojana-IAY) का पुनर्गठन कर उसे  प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) कर दिया गया था।
  • उद्देश्य: 
    • पूर्ण अनुदान सहायता प्रदान करके आवास इकाइयों के निर्माण और मौजूदा गैर-लाभकारी कच्चे घरों के उन्नयन में गरीबी रेखा (बीपीएल) से नीचे रह रहे ग्रामीण लोगों की मदद करना।
  • लाभार्थी:
    • इसके लाभार्थियों में एससी/एसटी, मुक्त बंधुआ मज़दूर और गैर-एससी/एसटी श्रेणियाँ, विधवाओं या कार्रवाई में मारे गए रक्षाकर्मियों के परिजन, पूर्व सैनिक एवं अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्य, विकलांग व्यक्ति तथा अल्पसंख्यक शामिल हैं।
    • 2011 की सामाजिक-आर्थिक जातीय जनगणना (SECC) से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार लाभार्थियों का चयन किया जाता है।
  • उपलब्धियाँ:
    • वित्त वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण के अंतर्गत 5854 करोड़ रुपए का सबसे अधिक व्यय दर्ज किया गया जो वित्त वर्ष 2020 की तुलनीय अवधि के मुकाबले दोगुना है। 

स्रोत: पी.आई.बी.


चुनावी बॉण्ड

चर्चा में क्यों?

विधानसभाओं के चुनाव के दौरान तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, पश्चिम बंगाल, असम और केरल में 695.34 करोड़ रुपए के चुनावी बॉण्ड बेचे गए।

  • वर्ष 2018 में योजना शुरू होने के बाद से किसी भी विधानसभा चुनाव में चुनावी बॉण्ड से प्राप्त यह राशि सबसे अधिक थी।

प्रमुख बिंदु

  • चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को दान देने हेतु एक वित्तीय साधन है।
  • चुनावी बॉण्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
  • भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
  • यह बॉण्ड एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होता है।
    • केवल वे राजनीतिक दल ही चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के योग्य हैं जो जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29(A) के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने बीते आम चुनाव में कम-से-कम 1% मत प्राप्त किया है।
  • बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया है।
    • एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
    • बॉण्ड पर दाता के नाम का उल्लेख नहीं किया जाता है।
  • इसमें दो प्रमुख समस्याएँ हैं-
    • एक, पारदर्शिता की कमी, क्योंकि जनता को यह नहीं पता कि कौन किसको क्या दे रहा है और बदले में उन्हें क्या मिल रहा है।
    • दूसरा, मंत्रालयों के माध्यम से केवल सरकार के पास ही इसकी जानकारी रहती है।
  • हालाँकि भारत के चुनाव आयोग ने कहा है कि यह योजना नकद वित्तपोषण की पुरानी प्रणाली की तुलना में एक कदम आगे है, जो कि जवाबदेह नहीं थी।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को लागू करने के लिये प्रमुख संस्था केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission- CIC) ने फैसला किया है कि राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड योजना के माध्यम से चंदा देने वालों के विवरण का खुलासा करने में कोई सार्वजनिक हित नहीं है और इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा।

स्रोत: द हिंदू


जनजातीय स्कूलों के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के लिये पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जनजातीय मामलों के मंत्रालय (Ministry of Tribal Affairs) ने एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (Eklavya Model Residential School) और आश्रम (Ashram) जैसे स्कूलों में डिजिटलीकरण बढ़ाने हेतु माइक्रोसॉफ्ट के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।

  • इसका उद्देश्य समावेशी, कौशल आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है।

प्रमुख बिंदु

समझौता ज्ञापन के विषय में:

  • माइक्रोसॉफ्ट आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) सहित अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों को सभी ईएमआरएस स्कूलों में अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों में आदिवासी छात्रों तथा शिक्षकों को हुनरमंद बनाने के लिये पाठ्यक्रम उपलब्ध कराएगा।
  • इस कार्यक्रम के तहत पहले चरण में 250 ईएमआरएस स्कूलों को माइक्रोसॉफ्ट ने गोद लिया है, जिसमें से 50 ईएमआरएस स्कूलों को गहन प्रशिक्षण दिया जाएगा और पहले चरण में 500 मास्टर ट्रेनर्स (Master Trainer) को प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • भारत में राज्यों के शिक्षकों को शिक्षण में ऑफिस 365 और एआई एप्लीकेशन जैसी उपयोगी तकनीकों का उपयोग करने के लिये चरणबद्ध तरीके से प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • यह प्रोग्राम शिक्षकों को माइक्रोसॉफ्ट एजुकेशन सेंटर से पेशेवर ई-बैज और ई-सर्टिफिकेट अर्जित करने का अवसर भी प्रदान करेगा।
  • इन स्कूलों के छात्रों को उन परियोजनाओं पर सलाह दी जाएगी जिनमें सामाजिक कल्याण और संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य (SDGs) के लिये एआई एप्लीकेशन शामिल हैं।

अपेक्षित लाभ:

  • यह कार्यक्रम सुनिश्चित करेगा कि आदिवासी छात्रों को अपना भविष्य, अपना पर्यावरण, अपना गाँव और समग्र समुदाय बदलने का मौका मिले।
  • यह पहल शिक्षकों के व्यावसायिक विकास को भी सक्षम बनाएगी, जिससे वे कक्षाओं में प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकेंगे।
  • यह डिजिटल इंडिया मिशन की सफलता में मदद करेगा।
  • यह प्रोग्राम आदिवासी छात्रों और अन्य लोगों के बीच की खाई को पाटने में सक्षम होगा।

आदिवासियों के लिये अन्य शैक्षिक योजनाएँ:

  • राजीव गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप योजना: इस योजना को वर्ष 2005-2006 में अनुसूचित जनजाति समुदाय के छात्रों को उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र: इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जनजाति के छात्रों की योग्यता और वर्तमान बाज़ार के रुझान के आधार पर उनके कौशल का विकास करना है।
  • राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति योजना: यह योजना पीएचडी और पोस्ट डॉक्टोरल अध्ययन के लिये विदेश में उच्च अध्ययन करने हेतु चुने गए 20 छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • प्री और पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजनाएँ।

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय

  • इस विद्यालय की शुरुआत वर्ष 1997-98 में दूरस्थ क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये की गई थी।
  • ये स्कूल न केवल अकादमिक शिक्षा पर बल्कि छात्रों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • इसके अंतर्गत न केवल उन्हें उच्च एवं पेशेवर शैक्षिक पाठ्यक्रमों के माध्यम से सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों में रोज़गार हेतु सक्षम बनाने पर बल दिया जा रहा है, बल्कि गैर-अनुसूचित जनजाति की आबादी के समान शिक्षा के सर्वोत्तम अवसरों तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करने के भी प्रयास किये जा रहे हैं।
  • राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में 480 छात्रों की क्षमता वाले EMRS की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद-275 (1) के अंतर्गत अनुदान द्वारा विशेष क्षेत्र कार्यक्रम (Special Area Programme- SAP) के तहत की जा रही है।
  • इनका वित्तपोषण जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • इसको गति देने के लिये यह निर्णय लिया गया है कि वर्ष 2022 तक 50 प्रतिशत से अधिक जनजातीय आबादी वाले प्रत्येक ब्लॉक तथा कम-से-कम 20,000 जनजातीय जनसंख्या वाले प्रखंडों में एक ईएमआरएस होगा।
  • एकलव्य विद्यालय लगभग नवोदय विद्यालय के समान होते हैं, जहाँ खेल तथा कौशल विकास में प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा स्थानीय कला एवं संस्कृति के संरक्षण के लिये विशेष सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं।
    • इस योजना के अंतर्गत नवोदय विद्यालय समिति (Navodaya Vidyalaya Samiti) शिक्षा मंत्रालय के अधीन देश के प्रत्येक ज़िले में एक नवोदय विद्यालय की स्थापना की परिकल्पना करती है। 
    • ये आवासीय विद्यालय अनुसूचित जनजाति के बच्चों सहित सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के ग्रामीण प्रतिभाशाली बच्चों को अच्छी गुणवत्ता वाली आधुनिक शिक्षा प्रदान करते हैं।

आश्रम विद्यालय

  • आश्रम विद्यालय आवासीय विद्यालय होते हैं, जिनमें छात्रों को निःशुल्क रहने-खाने के साथ-साथ अन्य सुविधाएँ एवं प्रोत्साहन प्रदान किये जाते हैं।
  • यहाँ औपचारिक शिक्षा के अलावा ध्यान, दृष्टि-दर्शन, खेल, शारीरिक गतिविधियों आदि पर ज़ोर दिया जाता है।
  • इन विद्यालयों की निर्माण लागत जनजातीय कार्य मंत्रालय प्रदान करता है और इन विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के चयन सहित विद्यालयों के संचालन तथा समग्र रखरखाव के लिये राज्य सरकार ज़िम्मेदार होती है।
  • अब तक इस मंत्रालय ने जनजाति बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिये पूरे देश में 1,205 आश्रम विद्यालयों को वित्तपोषित किया है।

स्रोत: पी.आई.बी.


मेडिसिन फ्रॉम द स्काई प्रोजेक्ट : तेलंगाना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तेलंगाना सरकार ने एक महत्त्वाकांक्षी यानी इस प्रकार की पहली पायलट परियोजना 'मेडिसिन फ्रॉम द स्काई' के परीक्षण के लिये 16 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) का चयन किया है।

Leveraging-Technology

प्रमुख बिंदु 

परिचय:

  • इस परियोजना में ड्रोन के ज़रिये दवाओं की डिलीवरी करना शामिल है।
  • नागरिक उड्डयन मंत्रालय की मंजूरी के पश्चात् इस परियोजना की शुरूआत की जा रही है।
    • मंत्रालय ने वैक्सीन की डिलीवरी हेतु प्रायोगिक बियॉन्ड विज़ुअल लाइन ऑफ साइट (BVLOS) ड्रोन उड़ानों के संचालन के लिये मानव रहित विमान प्रणाली नियम, 2021 से तेलंगाना सरकार को सशर्त छूट दी है।
  • परियोजना को तीन चरणों में शुरू किया जाएगा, जो एक पायलट परियोजना के रूप में  शुरू होगी और इसके बाद वांछित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में वैक्सीन/दवा पहुँचाने हेतु ड्रोन के संचालन के लिये रूट नेटवर्क की मैपिंग निर्धारित होगी।

सहयोगी:

  • इस परियोजना को तेलंगाना सरकार, विश्व आर्थिक मंच और हेल्थनेट ग्लोबल के सहयोग से संचालित किया जाएगा।
    • हेल्थनेट ग्लोबल (HealthNet Global) एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है जो व्यक्तियों, परिवारों, मेडिकेयर और व्यवसायों हेतु गुणवत्तापूर्ण किफायती स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करती है।

लक्ष्य:

  • दवाओं, कोविड -19 टीकों, लघु ब्लड बैंक और अन्य जीवन रक्षक उपकरणों जैसी स्वास्थ्य देखभाल वस्तुओं के सुरक्षित, सटीक और विश्वसनीय पिकअप और डिलीवरी प्रदान करने के लिये ड्रोन को स्वास्थ्य वितरण केंद्र से विशिष्ट स्थानों तक और पुन: वापस आने के लिये एक वैकल्पिक लॉजिस्टिक रूट का आकलन करना है।
  • साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के लिये स्वास्थ्य देखभाल में समानता सुनिश्चित करना।

महत्त्व :

  • इस मॉडल के सफल परीक्षण के पश्चात् यह ज़िला मेडिकल स्टोर्स और ब्लड बैंकों से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) तथा आगे PHC/CHC से केंद्रीय डायग्नोस्टिक प्रयोगशालाओं में डिलीवरी को सक्षम बनाएगा।
  • इसमें स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को बिना बाधित किये आपातकालीन स्थिति के दौरान तथा दुर्लभ भौगोलिक क्षेत्रों में लोगों की जान बचाने की क्षमता है।

अन्य ड्रोन समर्थित परियोजनाएँ:

ड्रोन :

  • ड्रोन को मानव रहित विमान (Unmanned Aerial Vehicle-UAV) भी कहा जाता है। मानव रहित विमान के तीन सबसेट हैं- रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट, ऑटोनॉमस एयरक्राफ्ट और मॉडल एयरक्राफ्ट।
  • रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट को उनके वज़न के आधार पर पाँच श्रेणियों में विभाजित किया गया है-
    • नैनो : 250 ग्राम या उससे कम 
    • माइक्रो: 250 ग्राम से 2 किलो तक 
    • स्मॉल: 2 किलो से 25 किलो तक 
    • मीडियम: 25 किलो से 150 किलो तक 
    • लार्ज: 150 किलो से अधिक
  • ड्रोन नियामक या नीति, 2018 के तहत नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एयर स्पेस को रेड ज़ोन (उड़ान की अनुमति नहीं), येलो ज़ोन (नियंत्रित हवाई क्षेत्र) और ग्रीन ज़ोन (स्वचालित अनुमति) में विभाजित किया है।

बियॉन्ड विज़ुअल लाइन ऑफ साइट (BVLOS)

परिचय:

  • BVLOS मानव रहित विमानों (UAVs) के संचालन से संबंधित है जिसमें ड्रोन पायलट के सामान्य दृश्यमान सीमा के बाहर स्थित होता है।
  • BVLOS उड़ानों को आमतौर पर अतिरिक्त उपकरण और अतिरिक्त प्रशिक्षण तथा  प्रमाणन की आवश्यकता होती है जो विमानन अधिकारियों से अनुमति के अधीन है।
    • मानव रहित विमान प्रणाली नियम 2021 में यह प्रावधान है कि ड्रोन को BVLOS सीमा में संचालित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, जो इन उपकरणों के उपयोग को सर्वेक्षण, फोटोग्राफी, सुरक्षा और विभिन्न सूचना एकत्र करने के उद्देश्यों तक सीमित करता है।

लाभ:

  • BVLOS अत्यधिक लागत प्रभावी और दक्षतापूर्ण हैं, क्योंकि यह टेकऑफ़ और लैंडिंग चरण में कम समय लेते हैं, इसलिये मानव रहित विमान एक ही मिशन में सर्वाधिक क्षेत्र को कवर करेगा। 
  • BVLOS विमान न्यून मानवीय हस्तक्षेप वाली प्रणाली है क्योंकि कुछ या सभी मिशन स्वचालित हो सकते हैं। वे रिमोटेड या खतरनाक क्षेत्रों तक आसानी से पहुँच स्थापित करने की अनुमति भी दे सकते हैं।
  • BVLOS क्षमता ड्रोन को अधिकतम दूरी तय करने में सक्षम बनाती हैं।

जोख़िम:

  • इसके परिचालन में कुछ गतिविधियों के कारण सुरक्षा जोखिम की स्थिति उत्पन्न होती है जैसे- पायलट केवल रिमोट कैमरा फीड के माध्यम से संभावित बाधाओं पर नज़र रख सकता है या स्वचालित उड़ानों के मामले में कोई मानव अवलोकन नहीं हो सकता है।
  • विशेषकर जब उड़ानें गैर-पृथक हवाई क्षेत्र में होती हैं तब अन्य विमानों के साथ टकराव या संपत्ति की हानि तथा व्यक्तियों को क्षति  पहुँचने का खतरा बढ़ जाता है। 

स्रोत: द हिंदू


स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रतिभा पलायन

चर्चा में क्यों?

भारत खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों, यूरोप और अन्य अंग्रेज़ी भाषी देशों के लिये स्वास्थ्यकर्मियों का एक प्रमुख निर्यातक रहा है।

  • स्वास्थ्य क्षेत्र में हो रहे प्रतिभा पलायन/ब्रेन ड्रेन को वर्तमान महामारी के दौरान डॉक्टरों और नर्सों की मौज़ूदा कमी का कारण माना जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

प्रतिभा पलायन

  • प्रतिभा पलायन/ब्रेन ड्रेन का आशय व्यक्तियों खासतौर पर शिक्षित युवाओं के पर्याप्त उत्प्रवास या प्रवास से होता है।
    • प्रतिभा पलायन के प्रमुख कारणों में एक राष्ट्र के भीतर राजनीतिक उथल-पुथल, अन्य देशों में अनुकूल पेशेवर अवसरों की मौजूदगी और उच्च जीवन स्तर एवं बेहतर अवसरों की तलाश आदि शामिल हो सकता है।
  • अधिकांश पलायन विकासशील देशों से विकसित देशों में होता है। विकासशील देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों पर इसके प्रभाव के कारण यह दुनिया भर में एक महत्त्वपूर्ण विषय है।
  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2017 में लगभग 69,000 भारतीय प्रशिक्षित डॉक्टरों ने ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में कार्य किया था। इन चार देशों में इसी अवधि में लगभग 56,000 प्रशिक्षित भारतीय नर्सें कार्य कर रही थीं।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) में शामिल देशों में भी भारतीय स्वास्थ्यकर्मियों का व्यापक पैमाने पर प्रवासन होता है, किंतु इन देशों में ऐसे श्रमिकों के उत्प्रवास या प्रवास से संबंधित विश्वसनीय आँकड़ों की कमी है।
    • इसके अलावा कम कुशल और अर्द्ध-कुशल प्रवास के मामलों के विपरीत भारत से उच्च कुशल प्रवास पर कोई वास्तविक समय डेटा मौजूद नहीं है।

कारण

  • महामारी के दौरान आवश्यकता
    • महामारी की शुरुआत के साथ ही दुनिया भर में विशेष रूप से विकसित देशों में स्वास्थ्यकर्मियों की मांग तेज़ी से बढ़ गई है।
    • स्वास्थ्यकर्मियों को बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने और उन्हें देश में बनाए रखने के लिये प्रवासी-अनुकूल नीतियाँ अपनाई गई हैं।
      • ब्रिटेन ने उन योग्य विदेशी स्वास्थ्यकर्मियों और उनके आश्रितों को एक वर्ष के लिये मुफ्त वीज़ा विस्तार प्रदान किया है, जिनकी वीज़ा अवधि अक्तूबर 2021 से पहले समाप्त होने वाली थी।
      • फ्रांँस ने महामारी के दौरान फ्रंटलाइन प्रवासी स्वास्थ्यकर्मियों को नागरिकता देने की पेशकश की है।
  • उच्च वेतन और बेहतर अवसर
    • गंतव्य देशों में उच्च वेतन और बेहतर अवसर स्वास्थ्यकर्मियों के प्रवास से संबंधित सबसे प्रमुख कारक माने जा सकते हैं।
  • कम मज़दूरी और भारत में निवेश की कमी
    • प्रतिभा पलायन/ब्रेन ड्रेन को रोकने के लिये सरकार की नीतियाँ प्रतिबंधात्मक प्रकृति की हैं और समस्या का वास्तविक दीर्घकालिक समाधान नहीं देती हैं।
    • वर्ष 2014 में भारत ने अमेरिका में प्रवास करने वाले डॉक्टरों को ‘भारत वापसी अनापत्ति प्रमाण-पत्र’ जारी करना बंद कर दिया था।
      • ‘भारत वापसी अनापत्ति प्रमाण-पत्र’ उन डॉक्टरों के लिये एक अनिवार्य दस्तावेज़ है, जो J1 वीज़ा पर अमेरिका में प्रवास करते हैं और अपने प्रवास को तीन वर्ष से आगे बढ़ाना चाहते हैं।
    • वहीं सरकार ने नर्सों को ‘इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड’ (ECR) श्रेणी में शामिल किया है। यह कदम नर्सिंग भर्ती में पारदर्शिता लाने और गंतव्य देशों में नर्सों के शोषण को कम करने के लिये उठाया गया है।

भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र संबंधी चिंताएँ

  • मानव संसाधन का अभाव
    • भारत में प्रति 1,000 जनसंख्या पर 1.7 नर्स हैं और डॉक्टर- रोगी अनुपात लगभग 1:1,404 है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रति 1,000 जनसंख्या पर तीन नर्सों के मानदंड और 1:1,100 के डॉक्टर-रोगी अनुपात से काफी नीचे है।
  • असमान वितरण
    • भारत के विभिन्न क्षेत्रों में डॉक्टरों और नर्सों की मौजूदगी काफी विषम है। कुछ शहरी क्षेत्रों में डॉक्टरों और नर्सों की संख्या काफी अधिक है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह संख्या काफी कम है।
  • स्वास्थ्य अवसंरचना का अभाव
    • मानव विकास रिपोर्ट-2020 के मुताबिक, भारत में प्रति 10,000 लोगों पर केवल पाँच हॉस्पिटल बेड ही उपलब्ध हैं, जो कि विश्व में सबसे कम है। 

आगे की राह

  • स्वास्थ्य सेवा में विशेष रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाना वर्तमान समय में काफी महत्त्वपूर्ण है। इससे स्वास्थ्यकर्मियों के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।
  • भारत को एक समग्र वातावरण के निर्माण के लिये व्यवस्थित परिवर्तनों की आवश्यकता है, जो स्वास्थ्यकर्मियों के लिये फायदेमंद साबित हों और उन्हें देश में रहने के लिये प्रेरित कर सकें।
  • सरकार को ऐसी नीतियाँ बनाने पर ध्यान देना चाहिये जो ‘रिवर्स माइग्रेशन’ को बढ़ावा दें, ऐसी नीतियाँ जो स्वास्थ्यकर्मियों को उनके प्रशिक्षण या अध्ययन के पूरा होने के बाद घर लौटने के लिये प्रोत्साहित कर सकें।
  • भारत ऐसे द्विपक्षीय समझौतों की दिशा में भी काम कर सकता है जो ‘ब्रेन-शेयर’ की नीति को आकार देने में मदद कर सकें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस