भारतीय तटरक्षक जहाज़ समुद्र प्रहरी की आसियान देशों में तैनाती
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय तटरक्षक बल, समुद्र प्रहरी, प्रदूषण नियंत्रण पोत, आसियान, चेतक हेलीकॉप्टर, पुनीत सागर अभियान, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय, 1982, लंदन अभिसमय, भारत-नॉर्वे द्वारा समुद्री प्रदूषण से निपटने हेतु पहल मेन्स के लिये:समुद्र प्रहरी की मुख्य विशेषताएँ, समुद्री प्रदूषण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय पहल |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
भारतीय तटरक्षक जहाज़ समुद्र प्रहरी, एक विशिष्ट प्रदूषण नियंत्रण पोत, वर्तमान में 11 सितंबर से 14 अक्तूबर 2023 तक आसियान देशों में तैनात रहेगा।
- इस पहल की घोषणा रक्षा मंत्री ने नवंबर 2022 में कंबोडिया में आयोजित आसियान रक्षा मंत्री मीटिंग प्लस बैठक के दौरान की थी।
- तैनाती के दौरान इस जहाज़ को बैंकॉक (थाईलैंड), हो ची मिन्ह (वियतनाम) और जकार्ता (इंडोनेशिया) में बंदरगाह पर रुकने की सुविधा प्रदान की गई है।
समुद्र प्रहरी की मुख्य विशेषताएँ:
- परिचय:
- भारतीय तटरक्षक जहाज़ समुद्र प्रहरी अत्याधुनिक प्रदूषण प्रतिक्रिया तकनीक से लैस है। इसे 9 अक्तूबर 2010 को मुंबई में कमीशन किया गया था।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- जहाज़ उन्नत प्रदूषण नियंत्रण गियर से लैस है, जिसमें तेल रिसाव को रोकने के लिये हाई-स्प्रिंट बूम और रिवर बूम जैसे रोकथाम उपकरण, साथ ही स्किमर एवं साइड स्वीपिंग आर्म्स जैसे तेल पुनर्प्राप्ति उपकरण तथा भारतीय विशेष आर्थिक क्षेत्र के भीतर भंडारण सुविधाएँ शामिल हैं।
- जहाज़ प्रदूषण प्रतिक्रिया कॉन्फिगरेशन में चेतक हेलीकॉप्टर से भी लैस है।
- इसमें मानव रहित मशीनरी संचालन की क्षमता भी मौजूद है।
- जहाज़ उन्नत प्रदूषण नियंत्रण गियर से लैस है, जिसमें तेल रिसाव को रोकने के लिये हाई-स्प्रिंट बूम और रिवर बूम जैसे रोकथाम उपकरण, साथ ही स्किमर एवं साइड स्वीपिंग आर्म्स जैसे तेल पुनर्प्राप्ति उपकरण तथा भारतीय विशेष आर्थिक क्षेत्र के भीतर भंडारण सुविधाएँ शामिल हैं।
नोट: तेल रिसाव मानव गतिविधि के कारण पर्यावरण, विशेष रूप से समुद्री क्षेत्रों में तरल पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन है। यह शब्द आमतौर पर समुद्री तेल रिसाव के लिये प्रयोग किया जाता है, जहाँ तेल समुद्र या तटीय जल में मुक्त कर दिया जाता है, लेकिन रिसाव भूमि पर भी हो सकता है।
- गतिविधियाँ:
- एक विदेशी विनिमय कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, जहाज़ ने 13 राष्ट्रीय कैडेट कोर कैडेटों को "पुनीत सागर अभियान" में भाग लेने के लिये भेजा है, जो एक अंतर्राष्ट्रीय आउटरीच कार्यक्रम है और साझेदार देशों के साथ समन्वय में समुद्र तट की सफाई एवं इसी प्रकार की गतिविधियों पर केंद्रित है।
समुद्री प्रदूषण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय पहल:
- संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea - UNCLOS), 1982 हस्ताक्षरकर्त्ता राज्यों को डंपिंग द्वारा समुद्री पर्यावरण के प्रदूषण को रोकने, कम करने और नियंत्रित करने हेतु एक कानूनी ढाँचा विकसित करने का आह्वान करता है।
- भारत UNCLOS का एक हस्ताक्षरकर्ता है।
- जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (International Convention for the Prevention of Pollution from Ships- MARPOL) परिचालन संबंधी या आकस्मिक कारणों से जहाज़ों द्वारा समुद्री पर्यावरण के प्रदूषण को रोकने का आह्वान करता है।
- भारत MARPOL का हस्ताक्षरकर्ता है।
- लंदन अभिसमय और लंदन प्रोटोकॉल का उद्देश्य समुद्री पर्यावरण को समुद्र में अपशिष्ट तथा अन्य पदार्थों के डंपिंग से होने वाले प्रदूषण से बचाना है।
- लंदन अभिसमय वर्ष 1972 में अपनाया गया और वर्ष 1975 में लागू हुआ। लंदन प्रोटोकॉल वर्ष 1996 में अपनाया गया और वर्ष 2006 में लागू हुआ।
- भारत इनमें से किसी में भी भागीदार नहीं है।
- भारत-नॉर्वे द्वारा समुद्री प्रदूषण से निपटने हेतु पहल: भारत और नॉर्वे अपने अनुभव और क्षमता को साझा करते हुए स्वच्छ एवं स्वस्थ महासागरीय विकास, समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग एवं ब्लू इकोनॉमी के विकास के प्रयासों के लिये प्रतिबद्ध हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्र. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018) 1- ऑस्ट्रेलिया उपर्युक्त में से कौन-से देश “आसियान के-मुक्त-व्यापार भागीदारों” में से हैं? (a) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: c प्रश्न 2. 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी' शब्द अक्सर देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में समाचारों में दिखाई देने वाली वार्ता है जिसे निम्नलिखित में से किसके रूप में जाना जाता है (2016) (a) G-20 उत्तर: (B) मेंस:प्रश्न:शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्याकंन कीजिये।(2016) प्रश्न. तेल प्रदूषण क्या है? समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके प्रभाव क्या हैं? भारत जैसे देश के लिये किस तरह से तेल प्रदूषण विशेष रूप से हानिकारक है?(2023) |
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा
प्रीलिम्स के लिये:भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा, G20 शिखर सम्मेलन, ग्रीनहाउस गैस (GHG), बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), यूरेशियन क्षेत्र, SEZ (विशेष आर्थिक क्षेत्र)। मेन्स के लिये:भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा, भारत के लिये इसका महत्त्व और चुनौतियाँ। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, नई दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) परियोजना पर हस्ताक्षर किये गए, जो भारत के लिये महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ रखता है।
- यह परियोजना वैश्विक अवसंरचना और निवेश साझेदारी (PGII) का हिस्सा है। PGII निम्न और मध्यम आय वाले देशों की विशाल बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये एक मूल्य-संचालित, उच्च-प्रभावी तथा पारदर्शी बुनियादी ढाँचा साझेदारी है।
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) परियोजना:
- परिचय:
- प्रस्तावित IMEC में रेलमार्ग, शिप-टू-रेल नेटवर्क और सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे जो दो गलियारों तक फैले होंगे, अर्थात,
- पूर्वी गलियारा - भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ता है,
- उत्तरी गलियारा - खाड़ी को यूरोप से जोड़ता है।
- IMEC गलियारे में एक विद्युत केबल, एक हाइड्रोजन पाइपलाइन और एक हाई-स्पीड डेटा केबल भी शामिल होंगे।
- प्रस्तावित IMEC में रेलमार्ग, शिप-टू-रेल नेटवर्क और सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे जो दो गलियारों तक फैले होंगे, अर्थात,
- हस्ताक्षरकर्त्ता देश:
- भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यूरोपीय संघ, इटली, फ्राँस और जर्मनी।
- जोड़े जाने वाले बंदरगाह:
- भारत: मुंद्रा (गुजरात), कांडला (गुजरात), और जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (नवी मुंबई)।
- मध्य पूर्व: संयुक्त अरब अमीरात में फुज़ैरा, ज़ेबेल अली और अबू धाबी के साथ-साथ सऊदी अरब में दम्मम तथा रास अल खैर बंदरगाह।
- रेलवे लाइन फुज़ैरा बंदरगाह (UAE) को सऊदी अरब (घुवाईफात और हराद) तथा जॉर्डन के माध्यम से हाइफा बंदरगाह (इज़राइल) से जोड़ेगी।
- इज़राइल: हाइफा बंदरगाह
- यूरोप: ग्रीस में पीरियस बंदरगाह, दक्षिण इटली में मेसिना और फ्राँस में मार्सिले।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को जोड़ने वाला एक व्यापक परिवहन नेटवर्क बनाना है, जिसमें रेल, सड़क तथा समुद्री मार्ग शामिल हैं।
- इसका उद्देश्य परिवहन दक्षता बढ़ाना, लागत कम करना, आर्थिक एकता बढ़ाना, रोज़गार उत्पन्न करना और ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना है।
- इससे व्यापार और कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाकर एशिया, यूरोप तथा मध्य पूर्व के एकीकरण में बदलाव आने की आशा है।
- महत्त्व:
- इसके पूरा होने पर यह मौजूदा समुद्री और सड़क परिवहन के पूरक के रूप में सीमा पार से रेलवे परिवहन नेटवर्क उपलब्ध कराएगा।
IMEC के भूराजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ:
- भू-राजनीतिक:
- चीन के BRI को विफल करना:
- IMEC को यूरेशियाई क्षेत्र में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के संभावित प्रतिकार के रूप में देखा जाता है।
- यह चीन के बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव को संतुलित करने का कार्य कर सकता है, विशेषतः अमेरिका के साथ ऐतिहासिक रूप से मज़बूत संबंधों वाले क्षेत्रों में।
- सभी सभ्यताओं में एकीकरण:
- यह परियोजना महाद्वीपों और सभ्यताओं के बीच संबंधों एवं एकीकरण को मज़बूत कर सकती है।
- यह क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच अमेरिका का प्रभाव बनाए रखने और पारंपरिक भागीदारों को आश्वस्त करने का एक रणनीतिक अवसर प्रदान करता है।
- पाकिस्तान के ओवरलैंड कनेक्टिविटी वीटो को तोड़ना:
- IMEC ने पश्चिम के साथ भारत की ओवरलैंड कनेक्टिविटी पर अपने वीटो को तोड़ते हुए पाकिस्तान को दरकिनार कर दिया, जो अतीत में निरंतर एक बाधा बना हुआ था।
- अरब प्रायद्वीप के साथ रणनीतिक जुड़ाव:
- गलियारा स्थायी कनेक्टिविटी स्थापित करके और क्षेत्र के देशों के साथ राजनीतिक तथा रणनीतिक संबंधों को बढ़ाकर अरब प्रायद्वीप के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी को मज़बूत करता है।
- अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और शांति को बढ़ावा देना:
- IMEC में अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की क्षमता है और यह अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक तनाव को कम करने में सहायता कर सकता है।
- यह क्षेत्र में "शांति के लिये बुनियादी ढाँचा" बनने की संभावना रखता है।
- अफ्रीका में भारत की रणनीतिक भूमिका:
- ट्रांस-अफ्रीकी कॉरिडोर विकसित करने की अमेरिका और यूरोपीय संघ की योजना के अनुरूप, गलियारे के मॉडल को अफ्रीका तक बढ़ाया जा सकता है।
- यह अफ्रीका के साथ अपने जुड़ाव/अनुबंध को सुदृढ़ करने और इसके अवसंरचना के विकास में योगदान करने के भारत के इरादे को दर्शाता है।
- चीन के BRI को विफल करना:
- आर्थिक:
- उन्नत व्यापार के अवसर:
- IMEC प्रमुख क्षेत्रों के साथ अपनी व्यापार कनेक्टिविटी बढ़ाकर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की दिशा में भारत के लिये एक परिवर्तनकारी अवसर प्रस्तुत करता है।
- यह मार्ग परिवहन में लगने वाले समय को बहुत हद तक कम कर सकता है, जिससे स्वेज़ नहर समुद्री मार्ग की तुलना में यूरोप के साथ व्यापार 40% तेज़ हो जाएगा।
- उत्प्रेरित औद्योगिक विकास:
- यह गलियारा वस्तुओं के निर्बाध परिवहन के लिये एक कुशल परिवहन नेटवर्क तैयार करेगा।
- इससे विशेषकर गलियारे से जुड़े क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि कंपनियों को कच्चे माल और तैयार उत्पादों के परिवहन में आसानी होगी।
- रोज़गार सृजन:
- जैसे-जैसे बेहतर कनेक्टिविटी के कारण आर्थिक गतिविधियों का विस्तार होगा, सभी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों में वृद्धि होगी।
- व्यापार, बुनियादी ढाँचे और संबद्ध उद्योगों में विस्तार हेतु रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये कुशल व अकुशल श्रम की आवश्यकता होगी।
- ऊर्जा सुरक्षा और संसाधन अभिगम:
- यह गलियारा विशेष रूप से मध्य पूर्व देशों से सुरक्षित ऊर्जा और संसाधन आपूर्ति की सुविधा प्रदान कर सकता है।
- इन संसाधनों तक विश्वसनीय अभिगम भारत के ऊर्जा क्षेत्र को स्थिर करेगी और इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था को समर्थन देगी।
- विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) को सुविधा प्रदान करना:
- इस गलियारे का इसके मार्ग पर SEZ (विशेष आर्थिक क्षेत्र) विकसित करने के लिये रणनीतिक रूप से लाभ उठाया जा सकता है। SEZ विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकते हैं, विनिर्माण को बढ़ावा दे सकते हैं और इन निर्दिष्ट क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।
- उन्नत व्यापार के अवसर:
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (IMEC) की चुनौतियाँ:
- रसद और कनेक्टिविटी मुद्दे:
- कई देशों तक विस्तृत रेल, सड़क और समुद्री मार्गों को शामिल करते हुए एक मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर विकसित करने के लिये हितधारकों के बीच जटिल/मिश्रित लॉजिस्टिक योजना एवं समन्वय की आवश्यकता होती है।
- सबसे व्यवहार्य और लागत प्रभावी मार्गों का चयन करना, रेल व सड़क कनेक्टिविटी की व्यवहार्यता का आकलन करना तथा इष्टतम कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
- रेल मार्ग की अनुपलब्धता:
- विशेषकर मध्य पूर्वी देशों में रेल मार्गों की अनुपलब्धता एक बड़ी समस्या है, रेल नेटवर्क का विस्तार करने के लिये पर्याप्त अवसंरचना निर्माण प्रयासों और निवेश की आवश्यकता है।
- विभिन्न देशों के बीच समन्वय:
- इस अंतर-महाद्वीपीय गलियारे के निर्माण को साकार करने में विविध हितों, कानूनी प्रणालियों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं वाले कई देशों के बीच प्रयासों, नीतियों तथा विनियमों का समन्वय एक बड़ी चुनौती है।
- संभावित विरोध और प्रतिस्पर्द्धा:
- कॉरिडोर के निर्माण से मौजूदा परिवहन मार्गों, विशेष रूप से मिस्र की स्वेज़ नहर के माध्यम से होने वाले यातायात में कमी और राजस्व में गिरावट देखी जा सकती है, इससे कई चुनौतियाँ एवं राजनयिक बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- लागत और वित्तपोषण:
- गलियारे के निर्माण, संचालन एवं रखरखाव के लिये पर्याप्त वित्त का अनुमान लगाना और सुरक्षित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
- ऐसा अनुमान है कि इस कॉरिडोर के निर्माण की लागत बड़ी होगी, ऐसे में धन के स्रोतों की पहचान करना आवश्यक है।
- प्रारंभिक अनुमानों से पता चलता है कि इनमें से प्रत्येक IMEC मार्ग के निर्माण में 3 बिलियन अमरीकी डॉलर से 8 बिलियन अमरीकी डॉलर के बीच लागत आ सकती है।
आगे की राह
- विभिन्न देशों में गेज(Gauges), ट्रेन प्रौद्योगिकियों, कंटेनर के आकर और अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं के संदर्भ में तकनीकी अनुकूलता एवं मानकीकरण प्राप्त करना इस कॉरिडोर के निर्बाध संचालन के लिये अहम है।
- सुचारू कार्यान्वयन के लिये भागीदार देशों के भू-राजनीतिक हितों के बीच समन्वय स्थापित करना और संभावित राजनीतिक संवेदनशीलताओं को ध्यान में रखना, विशेष रूप से इज़रायल के संदर्भ में, आवश्यक है।
- पर्यावरणीय प्रभाव संबंधी चिंताओं का समाधान करना, धारणीयता सुनिश्चित करना और निर्माण व संचालन में हरित तथा पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं का पालन करना इस परियोजना के प्रमुख पहलू हैं।
- कार्गो और बुनियादी ढाँचे को संभावित खतरों, चोरी व अन्य सुरक्षा जोखिमों से सुरक्षित करने के लिये ठोस सुरक्षा उपायों को लागू करना आवश्यक है।
नदी पारिस्थितिकी तंत्र में वि-ऑक्सीजनीकरण
प्रिलिम्स के लिये:नदी पारिस्थितिकी तंत्र में वि-ऑक्सीजनीकरण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) मेन्स के लिये:नदी पारिस्थितिकी तंत्र में वि-ऑक्सीजनीकरण तथा पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका के पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अध्ययन में नदी के पारिस्थितिकी तंत्र में वि-ऑक्सीजनीकरण के मुद्दे को उजागर किया गया है।
- शोधकर्त्ताओं की टीम ने संयुक्त राज्य अमेरिका और मध्य यूरोप की लगभग 800 नदियों के जल गुणवत्ता डेटा का विश्लेषण करने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग किया।
- नदी के जल का तापमान और घुलित ऑक्सीजन का स्तर जल की गुणवत्ता व पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के आवश्यक उपाय हैं।
जल निकायों में वि-ऑक्सीजनीकरण:
- परिचय:
- जल निकायों में वि-ऑक्सीजनीकरण का तात्पर्य जलीय वातावरण, जैसे नदियों, झीलों, महासागरों और जल के अन्य निकायों में घुलित ऑक्सीजन के स्तर में कमी या क्षय से है।
- ऑक्सीजन की उपलब्धता में यह कमी विभिन्न प्राकृतिक और मानवजनित कारकों के कारण हो सकती है, जो जलीय जीवों के अस्तित्व के लिये आवश्यक, संवेदनशील संतुलन को बाधित करती है।
- वि-ऑक्सीजनीकरण के प्रभाव:
- जलीय जीवन पर: वि-ऑक्सीजनीकरण के परिणामस्वरूप ‘मृत क्षेत्र’ बन सकते हैं जहाँ मछली और सागरीय जीव ऑक्सीजन की कमी के कारण जीवित रहने के लिये संघर्ष करते हैं। गंभीर मामलों में, इससे बड़े पैमाने पर मछलियाँ और अन्य समुद्री जीव मर सकते हैं।
- अत्यधिक पोषक तत्त्वों के अपवाह और औद्योगिक एवं शहरी स्रोतों से प्रदूषण के कारण बाल्टिक सागर में ऑक्सीजन की कमी हो गई है। परिणामी मृत क्षेत्रों ने मत्स्य पालन और जैव विविधता को प्रभावित किया है।
- मैक्सिको की खाड़ी जैसे तटीय क्षेत्रों में अक्सर गर्मियों में मृत क्षेत्र होते हैं।
- प्रजातियों के वितरण में बदलाव: कुछ प्रजातियाँ उच्च ऑक्सीजन स्तर वाले अन्य क्षेत्रों में जा सकती हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बाधित हो सकता है और संभावित रूप से आक्रामक प्रजातियों का प्रभुत्व हो सकता है।
- मानव स्वास्थ्य: वि-ऑक्सीजनीकरण पीने के जल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, यदि कम ऑक्सीजन वाले जल में प्रदूषक और संदूषक मौजूद होते हैं, तो संभावित रूप से यह मानव उपभोग के लिये असुरक्षित हो जाता है।
- आर्थिक प्रभाव: मछलियों की आबादी कम होने से मत्स्य पालन पर असर पड़ता है, जिससे मछली पकड़ने वाले उद्योगों को आर्थिक नुकसान होता है। इसके अतिरिक्त, जल की गुणवत्ता प्रभावित होने के कारण सौंदर्यशास्त्र और मनोरंजक अवसरों में कमी पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
- जलीय जीवन पर: वि-ऑक्सीजनीकरण के परिणामस्वरूप ‘मृत क्षेत्र’ बन सकते हैं जहाँ मछली और सागरीय जीव ऑक्सीजन की कमी के कारण जीवित रहने के लिये संघर्ष करते हैं। गंभीर मामलों में, इससे बड़े पैमाने पर मछलियाँ और अन्य समुद्री जीव मर सकते हैं।
अध्ययन के मुख्य बिंदु:
- वार्मिंग और ऑक्सीजन की हानि:
- नदियाँ महासागरों की तुलना में तेज़ी से गर्म होकर और वि-ऑक्सीजनीकरण कर रही हैं, जिसका जलीय जीवन एवं मनुष्यों के जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
- नदियों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (लगभग 87%), तापमान में वृद्धि का अनुभव कर रहा है, जबकि 70% ऑक्सीजन की हानि से पीड़ित है। यह नदी पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने वाले एक व्यापक मुद्दे का संकेत देता है।
- शहरी बनाम ग्रामीण प्रभाव:
- शहरी नदियों में तेज़ी से तापमान वृद्धि देखी गई, जबकि ग्रामीण नदियों में तापमान में धीमी वृद्धि लेकिन तेज़ी से डी-ऑक्सीजनेशन देखा गया।
- यह विभेदन विभिन्न वातावरणों में भिन्न-भिन्न प्रभावों पर बल देता है।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और विषाक्त धातु विमोचन:
- वि-ऑक्सीजनीकरण ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) और ज़हरीली धातुओं के उत्सर्जन का कारक है, जो इस घटना के बहुमुखी परिणामों को बढ़ाता है।
- भविष्य के अनुमान:
- अगले 70 वर्षों के भीतर नदी प्रणालियों, विशेष रूप से अमेरिका के दक्षिण में, ऑक्सीजन के इतने कम स्तर के साथ अवधि का अनुभव करने की संभावना है कि नदियाँ मछली की कुछ प्रजातियों के लिये "तीव्र गति से मृत्यु का कारण बन सकती हैं" और बड़े पैमाने पर जलीय विविधता को खतरे में डाल सकती हैं।
- सभी अध्ययनित नदियों में भविष्य में ऑक्सीजन की कमी की दर का सामान्य से 1.6 से 2.5 गुना अधिक होने का अनुमान है।
प्रश्न. महासागरों का अम्लीकरण बढ़ रहा है। यह घटना चिंता का कारण क्यों है? (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (A) |