डेली न्यूज़ (19 Jul, 2021)



देशद्रोह कानून को चुनौती

प्रिलिम्स के लिये:

देशद्रोह कानून, धारा 124A

मेन्स के लिये:

देशद्रोह कानून से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) में एक याचिका दायर कर देशद्रोह कानून पर फिर से विचार करने की मांग की गई थी।

प्रमुख बिंदु:

याचिकाकर्त्ता का दृष्टिकोण:

  • लगभग 60 वर्ष पुराने फैसले ने भारतीय दंड संहिता में देशद्रोह कानून को बनाए रखने में मदद की।
  • केदारनाथ मामले में वर्ष 1962 का फैसला, जिसने औपनिवेशिक विरासत के अवशेष, धारा 124A (देशद्रोह) को बरकरार रखा था, ऐसे समय में दिया गया था जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर 'द्रुतशीतन प्रभाव' (प्रतिबंधात्मक कानून से उत्पन्न प्रभाव) जैसे सिद्धांत अनसुने थे। यह फैसला  ऐसे समय में आया जब मौलिक अधिकारों का दायरा और अंतर-संबंध प्रतिबंधात्मक था।
    • केदार नाथ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लगाए गए प्रावधान की वैधता को बरकरार रखा और फैसला सुनाया कि अगर कानून द्वारा स्थापित सरकार को उलट दिया जाता है तो राज्य का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। हालाँकि यह कहा गया है कि धारा 124A केवल उन अभिव्यक्तियों पर लागू होगी जो या तो हिंसा का इरादा रखती हैं या जिनमें हिंसा कराने की प्रवृत्ति है।

न्यायालय का फैसला:

  • यह सरकार को एक कड़ा संदेश देता है कि नागरिकों के ‘भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के मौलिक अधिकारों को रौंदने के लिये अधिकारियों द्वारा देशद्रोह कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि न्यायालय जनता की मांग के प्रति संवेदनशील हैं, जिस तरह से कानून प्रवर्तन अधिकारी स्वतंत्र भाषण को नियंत्रित करने और पत्रकारों, कार्यकर्त्ताओं तथा असंतुष्टों को जेल भेजने एवं उन्हें वहाँ रखने के लिये राजद्रोह कानून का उपयोग कर रहे हैं, उसकी न्यायिक समीक्षा की जानी चाहिये।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 124A का समय बीत चुका है।
  • न्यायालय ने कहा, "सरकार के प्रति असंतोष” की असंवैधानिक रूप से अस्पष्ट परिभाषाओं के आधार पर स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अपराधीकरण करने वाला कोई भी कानून अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध है और संवैधानिक रूप से अनुमेय भाषण पर 'द्रुतशीतन प्रभाव' (Chilling Effect) का कारण बनता है।

राजद्रोह कानून की पृष्ठभूमि:

  • राजद्रोह संबंधी कानून प्रायः 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में बनाए गए थे, जब सांसदों का यह मानना ​​था कि सरकार के प्रति केवल अच्छी राय को ही बढ़ावा दिया जाना चाहिये, क्योंकि सरकार के प्रति नकारात्मक राय सरकार और राजशाही के लिये हानिकारक हो सकती थी।
  • इस कानून को मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार-राजनेता थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन वर्ष 1860 में भारतीय दंड संहिता (IPC) को लागू करते समय इस प्रावधान को उसमें शामिल नहीं किया गया था।
  • हालाँकि वर्ष 1870 में जब इस प्रकार के अपराधों से निपटने के लिये एक कानून की आवश्यकता महसूस हुई तब सर जेम्स स्टीफन द्वारा एक संशोधन प्रस्तुत किया गया और इसके माध्यम से भारतीय दंड संहिता में धारा 124A को शामिल किया गया। 
    • यह उस समय असंतोष की किसी भी आवाज़ को दबाने के लिये बनाए गए कई कठोर कानूनों में से एक था।
    • अंग्रेज़ों द्वारा महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे प्रमुख राजनेताओं को गिरफ्तार करने और उनकी आवाज़ को दबाने के लिये भी इस कानून का प्रयोग किया गया था।

वर्तमान में राजद्रोह कानून: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत देशद्रोह एक अपराध है।

  • IPC की धारा 124A
    • यह कानून राजद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित करता है जिसमें ‘किसी व्यक्ति द्वारा भारत में कानूनी तौर पर स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित (शब्दों द्वारा), संकेतों या दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है।
    • विद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल होती हैं। हालाँकि इस खंड के तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किये बिना की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।
  • राजद्रोह के अपराध हेतु दंड
    • राजद्रोह गैर-जमानती अपराध है। राजद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
    • इस कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी करने से रोका जा सकता है।
      • आरोपित व्यक्ति को पासपोर्ट के बिना रहना होता है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे न्यायालय में पेश होना ज़रूरी है।

विश्लेषण:

धारा 124A के पक्ष में तर्क:

  • यह राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों का मुकाबला करने में उपयोगी है।
  • यह चुनी हुई सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाता है।
  • यदि अदालत की अवमानना ​​पर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है तो सरकार की अवमानना ​​पर भी सज़ा होनी चाहिये।
  • विभिन्न राज्यों में कई ज़िले माओवादी विद्रोह और विद्रोही समूहों का सामना करते रहे हैं, वे खुले तौर पर क्रांति द्वारा राज्य सरकार को उखाड़ फेंकने की वकालत करते हैं।
  • इस पृष्ठभूमि में धारा 124A को समाप्त करने की सलाह केवल इसलिये गलत होगी क्योंकि इसे कुछ अत्यधिक प्रचारित मामलों में गलत तरीके से लागू किया गया है।

धारा 124A के विरुद्ध तर्क:

  • यह वाक् और अभिव्यक्ति की संवैधानिक रूप से गारंटीशुदा स्वतंत्रता के वैध व्यवहार पर एक बाधा है।
  • सरकार की असहमति और आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में मज़बूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्त्व हैं। उन्हें देशद्रोह के रूप में व्यक्त नहीं किया जाना चाहिये।
  • भारतीयों पर अत्याचार करने के लिये देशद्रोह का परिचय देने वाले अंग्रेज़ों ने अपने देश में स्वयं इस कानून को समाप्त कर दिया है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि भारत इस धारा को समाप्त न करे।
  • धारा 124A के तहत 'असंतोष' जैसे शब्द अस्पष्ट हैं और जाँच अधिकारियों के व्यवहार एवं कल्पनाओं के अंतर्गत अलग-अलग व्याख्याओं के अधीन हैं।
  • IPC और गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन अधिनियम 2019 में ऐसे प्रावधान हैं जो "सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने" या "हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने" संबंधी मामलों में दंडित करते हैं। ये राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिये पर्याप्त हैं।
  • राजद्रोह कानून का राजनीतिक असंतोष से बचने के लिये एक उपकरण के रूप में दुरुपयोग किया जा रहा है।
  • वर्ष 1979 में भारत ने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR) की पुष्टि की, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा हेतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों को निर्धारित करता है। हालाँकि देशद्रोह का दुरुपयोग व मनमाने ढंग से आरोप लगाना भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप नहीं है।

आगे की राह: 

  • भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार लोकतंत्र का एक अनिवार्य घटक है। जो अभिव्यक्ति या विचार उस समय की सरकार की नीति के अनुरूप नहीं है, उसे देशद्रोह नहीं माना जाना चाहिये।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिये धारा 124A का दुरुपयोग एक उपकरण के रूप में नहीं किया जाना चाहिये। केदारनाथ मामले में दी गई कैविएट के अनुसार, कानून के तहत मुकदमा चलाकर इसके दुरुपयोग की जाँच की जा सकती है। इसे बदले हुए तथ्यों और परिस्थितियों के तहत तथा आवश्यकता, आनुपातिकता और मनमानी के निरंतर विकसित होने वाले परीक्षणों के आधार पर जाँचने की आवश्यकता है।

स्रोत- द हिंदू


वैवाहिक अधिकारों की बहाली को चुनौती

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 21,  सर्वोच्च न्यायालय,  हिंदू विवाह अधिनियम 1955

मेन्स के लिये:  

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के प्रमुख प्रावधान एवं वैवाहिक आधिकारों के समक्ष चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC), हिंदू पर्सनल लॉ (हिंदू विवाह अधिनियम 1955) के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली (वापसी) की अनुमति देने वाले प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने वाला है।

प्रमुख बिंदु 

वैवाहिक/दांपत्य अधिकार:

  • वैवाहिक अधिकार विवाह द्वारा स्थापित अधिकार हैं, अर्थात् पति या पत्नी दोनों को एक-दूसरे के प्रति साहचर्य का अधिकार होता है।
  • कानून इन अधिकारों को मान्यता देता है जिसके तहत  विवाह, तलाक आदि से संबंधित हिंदू पर्सनल लॉ तथा आपराधिक कानून में पति या पत्नी को भरण-पोषण और गुजारा भत्ता के भुगतान की आवश्यकता होती है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 वैवाहिक अधिकारों के एक पहलू- साथ जीवन व्यतीत करने वाले अधिकार को मान्यता देती है तथा इस अधिकार को लागू करने के लिये पति या पत्नी को न्यायालय में जाने की अनुमति देती है।
  • वैवाहिक अधिकारों की बहाली की अवधारणा को अब हिंदू पर्सनल लॉ में संहिताबद्ध किया गया है, लेकिन इसकी उत्पत्ति औपनिवेशिक काल की है। 
    • यहूदी कानून से उत्पन्न, वैवाहिक अधिकारों की बहाली का प्रावधान ब्रिटिश शासन के माध्यम से भारत तथा अन्य समान कानून वाले देशों तक पहुँचा। 
    • ब्रिटिश कानून पत्नियों को पति की निजी संपत्ति/अधिकार मानता था, इसलिये उन्हें अपने पति को छोड़ने की अनुमति नहीं थी।
  • मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ-साथ तलाक अधिनियम, 1869 में भी इसी तरह के प्रावधान किये गए हैं, जो ईसाई समुदाय के कानून को नियंत्रित करते हैं।
    •  आकस्मिक रूप से वर्ष 1970 में ब्रिटेन ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के उपाय को समाप्त कर दिया।

चुनौतीपूर्ण प्रावधान:

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9, निम्नलिखित परिस्थितियों में वैवाहिक अधिकारों की बहाली से संबंधित है:
    • जब पति और पत्नी दोनों में से कोई एक, पक्ष की संगति से बिना उचित कारण के अलग हो जाता है तब पीड़ित पक्ष ज़िला अदालत में याचिका द्वारा आवेदन कर सकता है। 
    • दांपत्य/वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिये  यदि अदालत याचिका में दिये गए बयानों की सच्चाई से संतुष्ट है और उसे आश्वासन दिया जाता है कि कोई ऐसा कानूनी आधार नहीं है कि इस तरह के आवेदन को क्यों खारिज किया जाना चाहिये, तो वह वैवाहिक अधिकारों की बहाली का आदेश दे सकता है।

कानून को चुनौती देने का कारण:

  • अधिकारों का उल्लंघन:
    • कानून को अब इस मुख्य आधार पर चुनौती दी जा रही है कि यह निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
    • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी थी।
      • निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत जीवन के अधिकार तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के रूप में संरक्षित है।
    • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने समलैंगिकता के अपराधीकरण, वैवाहिक बलात्कार, वैवाहिक अधिकारों की बहाली, बलात्कार की जांँच में टू-फिंगर टेस्ट जैसे कई कानूनों हेतु संभावित चुनौतियों के लिये एक आधार निर्मित किया है।
    • याचिका में तर्क दिया गया है कि न्यायालय द्वारा दाम्पत्य अधिकारों की अनिवार्य बहाली राज्य की ओर से एक "ज़बरदस्ती अधिनियम" (Coercive Act) है, जो किसी की यौन और निर्णयात्मक स्वायत्तता तथा निजता एवं गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है।
  • महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण :
    • यद्यपि यह कानून लैंगिक रुप से तटस्थ है क्योंकि यह पत्नी और पति दोनों को वैवाहिक अधिकारों की बहाली की अनुमति देता है, अत: प्रावधान महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करते हैं।
    • प्रावधान के तहत महिलाओं को अक्सर अपने पति के घर वापस आना पड़ता है और यह देखते हुए कि वैवाहिक बलात्कार एक अपराध नहीं है, इच्छा न होने के बावजूद उन्हें पति के साथ रहना होता है।
    • यह भी तर्क दिया जाता है कि क्या विवाह को सुरक्षित करने में राज्य की इतनी अधिक रुचि हो सकती है कि राज्य कानून द्वारा पति-पत्नी को एक साथ रहने के लिये बाध्य कर सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुरूप नहीं:
    • वर्ष 2019 के जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (Joseph Shine v Union of India) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हालिया निर्णय में विवाहित महिलाओं की निजता के अधिकार और दैहिक स्वायत्तता पर ज़ोर दिया है जिसमें न्यायालय ने कहा है कि शादी महिलाओं की यौन स्वतंत्रता और उनकी पसंद के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकती है।
    • अगर प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शारीरिक स्वायत्तता, पसंद और निजता का  अधिकार है तो न्यायालय कैसे दो वयस्कों को सहवास करने हेतु बाध्य कर सकता है यदि उनमें से एक ऐसा नहीं करना चाहता है।
      • न्यायालय दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन कैसे कर सकता है या इन अधिकारों से अलग अन्यथा आदेश दे सकता है।
  • प्रावधान का दुरुपयोग:
    • विचार करने के लिये एक और प्रासंगिक मामला तलाक की कार्यवाही तथा गुज़ारा भत्ता भुगतान के खिलाफ ढाल के रूप में इस प्रावधान का दुरुपयोग है।
    • अक्सर पीड़ित पति या पत्नी अपने निवास स्थान से तलाक के लिये अर्जी देते हैं और उनके पत्नी या पति अपने यहाँ से मुआवज़ा हेतु मांग करते हैं।

पूर्व के निर्णय:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1984 में सरोज रानी बनाम सुदर्शन कुमार चड्ढा (Saroj Rani v Sudarshan Kumar Chadha) मामले में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 को बरकरार रखा था, जिसमें कहा गया था कि यह प्रावधान विवाह को टूटने से रोककर एक सामाजिक उद्देश्य को पूरा करता है।
  • आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने वर्ष 1983 में इस प्रावधान को पहली बार टी. सरिता बनाम टी. वेंकटसुब्बैया (T. Sareetha vs T. Venkatasubbaiah) मामले में शून्य घोषित कर दिया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य कारणों के साथ निजता के अधिकार का हवाला दिया। अदालत ने यह भी माना कि "पत्नी या पति से इतने घनिष्ठ रूप से संबंधित मामले में पक्षकारों को राज्य के हस्तक्षेप के बिना अकेला छोड़ दिया जाता है"।
    • अदालत ने यह भी माना था कि "सेक्स" के लिये मज़बूर किये जाने के कारण  "महिलाओं के लिये गंभीर परिणाम" होंगे।
  • हालाँकि उसी वर्ष दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश पीठ ने इस कानून के बिल्कुल विपरीत दृष्टिकोण अपनाया और हरविंदर कौर बनाम हरमंदर सिंह चौधरी (Harvinder Kaur vs Harmander Singh Chaudhary) के मामले में इस प्रावधान को बरकरार रखा।

आगे की राह

  • हम लैंगिक समानता और कानून की लिंग तटस्थ गुणवत्ता के विषय में बात करते हैं, लेकिन भारतीय समाज में महिलाएँ अभी भी प्रतिकूल परिस्थिति में हैं जिसे ऐसे प्रावधान बढ़ावा देते हैं।
  • दहेज़ हत्याएँ समाज पर कलंक हैं, जिसके लिये महिलाओं को भावनात्मक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है।
  • जब पत्नियाँ क्रूरता से थक और टूट जाती हैं तो पति का घर छोड़ देती हैं, फिर अपने दाम्पत्य अधिकारों के लिये लड़ना इनके लिये बहुत मुश्किल हो जाता है।
  • यह समय भारतीय न्यायपालिका और समाज को विवाह के प्रगतिशील सिद्धांत के साथ ही अधिक प्रगतिशील विचारों को अपनाने का है। विवाह, समारोहों के आधार पर नहीं बल्कि दो व्यक्तियों की स्वायत्तता तथा स्वतंत्रता पर निर्मित होता है, जिसे नए दंपत्ति एक-दूसरे के साथ साझा करने के लिये सहमत होते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, कृषि विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय कोष, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

कोविड-19 महामारी से प्रेरित आय में हानि के प्रभाव का विश्लेष्णात्मक अध्ययन

चर्चा में क्यों?

'द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2021 (SOFI)' शीर्षक वाली एक रिपोर्ट ने भोजन के सेवन और कुपोषण पर कोविड-19 महामारी से प्रेरित आय में हानि के प्रभाव का अध्ययन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • विकासशील और अविकसित दुनिया पर प्रभाव: खाद्य सुरक्षा पर कोविड-19 का प्रभाव लगभग सभी निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों पर अधिक पड़ा है।
    • इसके अलावा वे देश जहाँ महामारी नियंत्रण उपाय के परिणामस्वरूप जलवायु संबंधी आपदाएँ या संघर्ष या आर्थिक मंदी के साथ-साथ दोनों थे, उन्हें सबसे अधिक नुकसान हुआ।
    • दुनिया के आधे से अधिक कुपोषित एशिया (418 मिलियन) में और एक-तिहाई से अधिक अफ्रीका (282 मिलियन) में पाए जाते हैं। 
    • वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में अफ्रीका में लगभग 46 मिलियन अधिक, एशिया में 57 मिलियन अधिक और लैटिन अमेरिका एवं कैरिबियन में लगभग 14 मिलियन अधिक लोग भूख से प्रभावित थे।
  • सतत् विकास लक्ष्यों से चूकने की संभावना: वैश्विक स्तर पर वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों (गरीबी उन्मूलन- एसडीजी 1 और भूख- एसडीजी 2) को प्राप्त करने के लिये किसी भी पोषण संकेतक के संदर्भ में विश्व प्रतिबद्धताएँ संतोषजनक नहीं हैं।
    • यह इस निष्कर्ष में परिलक्षित होता है कि पाँच वर्षों तक अपरिवर्तित रहने के बाद अल्पपोषण की व्यापकता केवल एक वर्ष में 1.5 प्रतिशत अंक बढ़ गई।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान आवश्यक पोषण हस्तक्षेपों में व्यवधान और आहार संबंधी व्यवहारों पर नकारात्मक प्रभावों के कारण कुपोषण को खत्म करने के प्रयासों को चुनौती मिली है।
  • स्वस्थ भोजन तक पहुंच में समस्याएँ: वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में लगभग 11.8 करोड़ अधिक लोगों को भूख का सामना करना पड़ा, जो कि तकरीबन 18% की वृद्धि है।
    • आय में कमी के कारण स्वस्थ भोजन के लिये लोगों के सामर्थ्य में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
    • दुनिया में लगभग तीन में से एक व्यक्ति (लगभग 3 बिलियन) के पास वर्ष 2020 में पर्याप्त भोजन नहीं था।
    • खाद्य प्रणालियों को प्रभावित करने वाले बाह्य कारक (जैसे- संघर्ष या जलवायु प्रभाव) और आंतरिक कारक (जैसे कम उत्पादकता एवं अक्षम खाद्य आपूर्ति शृंखला) पौष्टिक खाद्य पदार्थों की लागत को बढ़ा रहे हैं, जो कि कम आय के साथ-साथ स्वस्थ भोजन तक पहुँच की समस्या और गंभीर कर रही है। 
  • लैंगिक असमानता: पुरुषों और महिलाओं के बीच भोजन की पहुँच में काफी अंतर दिखाई देता है।
    • वर्ष 2020 में खाद्य-सुरक्षा के मामले में प्रत्येक 10 पुरुषों की तुलना में 11 महिलाएँ असुरक्षित थीं, जबकि वर्ष 2019 में यह संख्या 10.6 से अधिक थी।
    • दुनिया में प्रजनन आयु की लगभग एक-तिहाई महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।

भारतीय परिदृश्य

कुपोषण की स्थिति:

  • वर्ष 2018-20 के दौरान भारत में कुल आबादी के बीच कुपोषण का प्रसार 15.3% था, जो कि इसी अवधि के दौरान वैश्विक औसत (8.9%) की तुलना में काफी खराब प्रदर्शन है।
    • हालाँकि इसे वर्ष 2004-06 (21.6%) की तुलना में एक सुधार के रूप में देखा जा सकता है।
  • वर्ष 2020 में पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 17.3% बच्चे ऊँचाई की तुलना में कम वज़न के साथ ‘वेस्टेड ग्रोथ’ का सामना कर रहे थे, जो कि अन्य देशों की तुलना में सबसे अधिक है।
    • लगभग 31% बच्चों की उम्र की तुलना में लंबाई कम है (स्टंटेड), जो कि वर्ष 2012 में 41.7% की तुलना में बेहतर स्थिति है, किंतु यह अभी भी दुनिया के कई अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है।
  • भारत में वयस्क आबादी में मोटापे के मामले 2012 के 3% से बढ़कर 2016 में 3.9% हो गए हैं।
  • प्रजनन आयु की महिलाओं में एनीमिया का प्रसार वर्ष 2012 के 53.2% से वर्ष 2019 में 53% हो गया जिसमें मामूली सुधार हुआ है।

संबंधित पहलें: 

आगे की राह:

  • रिपोर्ट में निम्नलिखित छह तरीके बताए गए हैं जिनके माध्यम से खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के प्रमुख कारकों से निपटने के लिये खाद्य प्रणालियों को बदला जा सकता है तथा स्थायी एवं समावेशी रूप से सस्ता व स्वस्थ आहार तक सभी की पहुँच सुनिश्चित की जा सकती है।
    • संघर्षरत क्षेत्रों में मानवतावादी, विकास और शांति निर्माण नीतियों को एकीकृत करने का प्रयास करना- उदाहरण के लिये परिवारों को भोजन के लिये संपत्ति बेचने से रोकने हेतु सामाजिक सुरक्षा उपाय अपनाना।
    •  छोटे किसानों को जलवायु जोखिम बीमा और पूर्वानुमान-आधारित वित्तपोषण तक व्यापक पहुँच प्रदान करके खाद्य प्रणालियों में जलवायु लचीलापन को बढ़ाना
    • महामारी या खाद्य मूल्य अस्थिरता के प्रभाव को कम करने के लिये इन-काइंड या कैश सपोर्ट प्रोग्राम के माध्यम से आर्थिक प्रतिकूलता के प्रति कमज़ोर वर्ग के लोगों को मज़बूती प्रदान करना
    • पौष्टिक खाद्य पदार्थों की लागत को कम करने के लिये आपूर्ति शृंखलाओं में हस्तक्षेप करना- बायोफोर्टिफाइड फसलों के रोपण को प्रोत्साहित कर फल और सब्जी उत्पादकों के लिये बाजारों तक पहुँच आसान बनाना।
    • गरीबी और संरचनात्मक असमानताओं से निपटना- उदाहरण के लिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं प्रमाणन कार्यक्रमों के माध्यम से गरीब समुदायों में खाद्य मूल्य शृंखला को बढ़ावा देना।
    • खाद्य प्रणाली को मज़बूत करना और उपभोक्ता व्यवहार को बदलना- उदाहरण के लिये औद्योगिक ट्रांस वसा को समाप्त करना और खाद्य आपूर्ति में नमक तथा चीनी की मात्रा को कम करना या बच्चों को खाद्य विपणन के नकारात्मक प्रभाव से बचाना।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


क्यूबा में विरोध-प्रदर्शन

प्रिलिम्स के लिये 

क्यूबा की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये

भारत-क्यूबा संबंध,  क्यूबा के राजनीतिक-आर्थिक संकट का भारत पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्यूबा में हज़ारों लोग अधिकारों पर लंबे समय से लगे प्रतिबंधों, भोजन और दवाओं की कमी तथा कोविड-19 महामारी के प्रति सरकार की खराब प्रतिक्रिया का विरोध करने के लिये सड़कों पर उतर आए।

  • यह कई दशकों बाद कम्युनिस्टों (Communist) द्वारा संचालित सबसे बड़ा सरकार विरोधी प्रदर्शन है।

Cuba

प्रमुख बिंदु

आंदोलन की शुरुआत:

  • सोवियत संघ या उसके पूर्व सहयोगियों  के पतन और शीत युद्ध (Cold War) की समाप्ति (वर्ष 1945-1991) के बाद से क्यूबा में आर्थिक संकट के बीच सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए।
    • क्यूबा में छः दशकों से भी अधिक समय तक साम्यवादी सरकार रही है।
  • वर्तमान में क्यूबा, अमेरिकी प्रतिबंधों और कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
  • क्यूबा के लोग अर्थव्यवस्था के पतन, भोजन और दवा की कमी, वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि तथा महामारी से निपटने में सरकार की असफलता से नाराज़ हैं।
  • प्रदर्शनकारियों ने "आज़ादी" के नारे लगाए और राष्ट्रपति मिगुएल डियाज़ कैनेल (Miguel Diaz Canel) से पद छोड़ने की मांग की।
  • दूसरी ओर क्यूबा के राष्ट्रपति इस उथल-पुथल के लिये अमेरिका को ज़िम्मेदार मान रहे हैं।
    • उन्होंने क्यूबा पर अमेरिका द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों का आह्वान किया, जिसके परिणामस्वरूप देश में आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हुई।
  • इसके अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका क्यूबा के लोगों की आज़ादी के लिये उनके साथ खड़ा है।

क्यूबा का इतिहास:

  • 15वीं शताब्दी से लेकर वर्ष 1898 में स्पेन-अमेरिका युद्ध (Spanish–American War) तक क्यूबा, स्पेन का एक उपनिवेश था, इस युद्ध के बाद क्यूबा पर संयुक्त राज्य अमेरिका का कब्ज़ा हुआ। 
    • हालाँकि वर्ष 1902 में इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा संरक्षित राष्ट्र के रूप में नाममात्र स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
  • वर्ष 1940 में क्यूबा ने अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली को मज़बूत करने का प्रयास किया, किंतु बढ़ती राजनीतिक कट्टरता और सामाजिक संघर्ष के कारण वर्ष 1952 में फुलगेनियो बतिस्ता के नेतृत्त्व में तख्तापलट हुआ और वहाँ तानाशाही शासन स्थापित हो गया।
  • फुलगेनियो बतिस्ता के शासन के दौरान बढ़ते भ्रष्टाचार और उत्पीड़न के कारण जनवरी 1959 में आंदोलन की शुरुआत हुई तथा बतिस्ता को सत्ता से हटा दिया गया, जिसके बाद फिदेल कास्त्रो के नेतृत्त्व में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना हुई।
  • वर्ष 1965 से क्यूबा को कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा शासित किया जा रहा है।
  • इसके अलावा शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच विवाद का प्रमुख विषय क्यूबा था तथा वर्ष 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान दोनों महाशक्तियाँ परमाणु युद्ध की कगार पर मौजूद थीं।
  • वर्ष 2019 में क्यूबा में एक नए संविधान को मंज़ूरी दी गई, जो निजी संपत्ति के अधिकार को आधिकारिक मान्यता देता है, जबकि उत्पादन और भूमि के विनियमन पर केंद्र सरकार का अधिकार सुनिश्चित करता है।

अमेरिका-क्यूबा संबंध: संयुक्त राज्य अमेरिका और क्यूबा के बीच’ 60 वर्षों से अधिक समय तक तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। अमेरिका-क्यूबा संबंधों की जड़ें शीत युद्ध काल में निहित हैं। यह निम्नलिखित घटनाओं में परिलक्षित हो सकता है।

  • क्यूबा क्रांति: वर्ष 1959 में फिदेल कास्त्रो और क्रांतिकारियों के एक समूह ने हवाना (क्यूबा की राजधानी) की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने फुलगेनियो बतिस्ता की अमेरिका समर्थित सरकार को उखाड़ फेंका।
    • क्यूबा की क्रांति के बाद फिदेल कास्त्रो की सरकार ने अमेरिकी स्वामित्व वाली संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण करना शुरू कर दिया, अमेरिका के साथ होने वाले व्यापार पर आर्थिक दंड लगाया और सोवियत संघ के साथ अपने व्यापार को बढ़ाया।
  • क्यूबा का मिसाइल संकट: क्यूबा की क्रांति के बाद की विभिन्न घटनाओं का अनुसरण करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा के साथ राजनयिक संबंध समाप्त कर दिये और वर्ष 1961 में फिदेल कास्त्रो शासन को उखाड़ फेंकने के लिये एक गुप्त अभियान शुरू किया।
    • इसके बाद अमेरिकी एजेंसियों द्वारा क्यूबा सरकार को गिराने का प्रयास किया गया, जिसे बे ऑफ पिग्स आक्रमण (Bay of Pigs invasion) के रूप में जाना जाता है।
    • इसके प्रत्युत्तर में क्यूबा ने सोवियत संघ को द्वीप पर गुप्त रूप से परमाणु मिसाइल स्थापित करने की अनुमति दी। इसने अमेरिका और सोवियत संघ को परमाणु युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया।
    • अंत में सोवियत संघ ने अमेरिका से क्यूबा पर आक्रमण न करने और तुर्की से अमेरिकी परमाणु मिसाइलों को हटाने की प्रतिबद्धता के बदले में मिसाइलों को वापस लेने पर सहमति व्यक्त की।
  • अमेरिकी प्रतिबंध: क्यूबा मिसाइल संकट के बाद अमेरिका ने क्यूबा के अपने लगभग सभी निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी (John F. Kennedy) ने एक पूर्ण आर्थिक प्रतिबंध में विस्तारित किया जिसमें कड़े यात्रा प्रतिबंध भी शामिल थे।
    • ये आर्थिक प्रतिबंध आज भी जारी हैं।
    • अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने राजनयिक संबंधों को बहाल करने और यात्रा तथा व्यापार का विस्तार करने सहित द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने हेतु कई कदम उठाए।
    • हालाँकि ट्रंप प्रशासन ने पर्यटन और वाणिज्य पर प्रतिबंध लगाकर पिछले समझौतों के पहलुओं को उलट दिया था।

भारत का स्टैंड:

  • भारत ने वर्तमान में चल रहे विरोध पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन भारत ने अतीत में क्यूबा की आर्थिक नाकेबंदी को हटाने का समर्थन किया है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने ज़ोर देकर कहा कि क्यूबा के खिलाफ अमेरिका द्वारा इस घेराबंदी का निरंतर अस्तित्व बहुपक्षवाद और संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता को कमज़ोर करता है।

कम्युनिस्ट देश 

  • कम्युनिस्ट देश एक ऐसा राष्ट्र है जो एक ही पार्टी द्वारा शासित होता है और सत्तारूढ़ नेताओं के फैसलों की नींव मार्क्स एवं लेनिन के दर्शन पर आधारित होती है।
  • साम्यवाद एक राजनीतिक, सामाजिक, दार्शनिक और आर्थिक सिद्धांत है जिसका लक्ष्य निजी संपत्ति, लाभ-आधारित अर्थव्यवस्था को उत्पादन के प्रमुख साधनों के सामान्य स्वामित्व से बदलना है।

स्रोत: द हिंदू


मध्याह्न भोजन योजना पर नया अध्ययन

प्रिलिम्स के लिये:

मध्याह्न भोजन योजना, कुपोषण

मेन्स के लिये:

मध्याह्न भोजन योजना से संबंधित मुद्दे और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में भारत की मध्याह्न भोजन योजना (Midday Meal Scheme) के अंतर-पीढ़ीगत लाभों (Intergenerational Benefits) पर एक नया अध्ययन प्रकाशित किया गया है। 

प्रमुख बिंदु: 

 अध्ययन के बारे में:

  • अध्ययन में देखा गया कि मध्याह्न भोजन का प्रभाव लंबे समय तक होता है। मध्याह्न भोजन योजना के तहत लाभार्थी बच्चों का बेहतर विकास हुआ है।
  • इस अध्ययन हेतु बच्चों के जन्म वर्ष और 23 वर्षों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के साथ माताओं और उनके बच्चों के समूह पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि डेटा का इस्तेमाल किया गया। 
  • यह सामूहिक आहार कार्यक्रम के प्रभावों का अपनी तरह का पहला अंतर-पीढ़ीगत विश्लेषण है।

लंबाई-से-आयु तक का अनुपात:

  • जिन लड़कियों को सरकारी स्कूलों में मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया गया, उनकी लंबाई-उम्र का अनुपात उन बच्चों की तुलना में अधिक था, जिन लड़कियों को सरकारी स्कूलों में मुफ्त में भोजन प्राप्त नहीं हुआ।

मध्याह्न भोजन और स्टंटिंग में संबंध:

  • जिन क्षेत्रों में  वर्ष 2005 के दौरान मध्याह्न भोजन योजना लागू की गई थी वहाँ वर्ष 2016 तक स्टंटिंग की व्यापकता में काफी कमी आई।
  • अगली पीढ़ी में जहाँ  महिलाओं की शिक्षा, प्रजनन क्षमता और स्वास्थ्य सेवाओं का बेहतर उपयोग किया गया वहाँ निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर में मध्याह्न भोजन और स्टंटिंग की कमी के बीच मज़बूत संबंध  थे।

रुकावट/अवरोध:

  • स्कूली शिक्षा और मध्याह्न भोजन योजना में रुकावट का दीर्घकालिक प्रभाव अगली पीढ़ी के पोषण स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचा सकता है।

नोट:

  • कुपोषण से तात्पर्य किसी व्यक्ति के ऊर्जा और/या पोषक तत्त्वों के सेवन में कमी, अधिकता या असंतुलन से है। 
  • कुपोषण शब्द में दो व्यापक समूह एवं परिस्थितियाँ शामिल हैं:
    • प्रथम 'अल्पपोषण'(Undernutrition) जिसमें स्टंटिंग (Stunting), निर्बलता (Wasting) कम वज़न (Underweight) और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी या अपर्याप्तता (महत्त्वपूर्ण विटामिन और खनिजों की कमी) शामिल है।
    • द्वितीय, ‘छिपी हुई भूख’ (Hidden Hunger) जो कि विटामिन और खनिजों की कमी है। यह स्थिति तब होती है जब लोगों द्वारा खाए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता पोषक तत्त्वों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है। भोजन में विटामिन और खनिजों जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी होती है जो शारीरिक वृद्धि एवं विकास हेतु आवश्यक होते हैं।

मध्याह्न भोजन योजना (Midday Meal Scheme)

परिचय:

  • मध्याह्न भोजन योजना (शिक्षा मंत्रालय के तहत) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसकी शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी।
  • यह प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये विश्व का सबसे बड़ा विद्यालय भोजन कार्यक्रम है।
  • इस कार्यक्रम के तहत विद्यालय में नामांकित I से VIII तक की कक्षाओं में अध्ययन करने वाले छह से चौदह वर्ष की आयु के हर बच्चे को पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है।

उद्देश्य:

  • भूख और कुपोषण समाप्त करना, स्कूल में नामांकन और उपस्थिति में वृद्धि, जातियों के बीच समाजीकरण में सुधार, विशेष रूप से महिलाओं को ज़मीनी स्तर पर रोज़गार प्रदान करना।

गुणवत्ता की जाँच:

  • एगमार्क गुणवत्ता वाली वस्तुओं की खरीद के साथ ही स्कूल प्रबंधन समिति के दो या तीन वयस्क सदस्यों द्वारा भोजन का स्वाद चखा जाता है।

खाद्य सुरक्षा:

  • यदि खाद्यान्न की अनुपलब्धता या किसी अन्य कारण से किसी भी दिन स्कूल में मध्याह्न भोजन उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो राज्य सरकार अगले महीने की 15 तारीख तक खाद्य सुरक्षा भत्ता का भुगतान करेगी।

विनियमन:

  • राज्य संचालन-सह निगरानी समिति (SSMC) पोषण मानकों और भोजन की गुणवत्ता के रखरखाव के लिये एक तंत्र की स्थापना सहित योजना के कार्यान्वयन की देखरेख करती है।

पोषण स्तर:

  • प्राथमिक (I-V वर्ग) के लिये 450 कैलोरी और 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक (VI-VIII वर्ग) के लिये 700 कैलोरी और 20 ग्राम प्रोटीन के पोषण मानकों वाला पका हुआ भोजन। 

कवरेज़:

  • सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल, मदरसे और मकतब जो सर्व शिक्षा अभियान (SSA) के तहत समर्थित हैं।

मुद्दे और चुनौतियाँ:

  • भ्रष्ट आचरण:
    •  नमक के साथ सादे चपाती परोसे जाने, दूध में पानी मिलाने, फूड प्वाइज़निंग आदि के उदाहरण सामने आए हैं।
  • जाति पूर्वाग्रह और भेदभाव: 
    • भोजन जाति व्यवस्था का केंद्र है, इसलिये कई स्कूलों में बच्चों को उनकी जाति की स्थिति के अनुसार अलग-अलग बैठाया जाता है।
  • कोविड-19: 
    • कोविड -19 ने बच्चों और उनके स्वास्थ्य तथा पोषण संबंधी अधिकारों के लिये गंभीर खतरा पैदा कर दिया है।
    • राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने मध्याह्न भोजन (Mid-Day Meals) सहित कई आवश्यक सेवाओं तक पहुँच को बाधित कर दिया है।
    • हालाँकि इसके बजाय परिवारों को सूखा खाद्यान्न (Dry foodgrains) या नकद हस्तांतरण प्रदान किया जाता है, साथ ही भोजन एवं शिक्षकों ने चेतावनी दी है कि इसका स्कूल परिसर में गर्म पके हुए भोजन के समान प्रभाव नहीं होगा, विशेष रूप से उन लड़कियों के लिये जो घर पर अधिक भेदभाव का सामना करती हैं तथा अधिकांश को स्कूल बंद होने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा।
  • कुपोषण का खतरा: 
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, देश भर के कई राज्यों ने पाठ्यक्रम में बदलाव करते हुए बाल कुपोषण के बिगड़ते स्तर को दर्ज किया है।
    • भारत दुनिया के लगभग 30% अविकसित बच्चों और पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चों का केंद्र है।
  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020: 
    •  ‘वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2020' के अनुसार, भारत विश्व के उन 88 देशों में शामिल है, जो संभवतः वर्ष 2025 तक ‘वैश्विक पोषण लक्ष्यों’ (Global Nutrition Targets) को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकेंगे।
  • 'वैश्विक भुखमरी सूचकांक' (GHI)- 2020  

आगे की राह

  • उन महिलाओं और युवतियों के माँ बनने के वर्षों पहले मातृत्व क्षमता और शिक्षा या जागरूकता में सुधार के उपायों को लागू किया जाना चाहिये।
    • बौनापन (Stunting) के खिलाफ लड़ाई में अक्सर छोटे बच्चों के लिये पोषण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, लेकिन पोषण विशेषज्ञों ने लंबे समय से तर्क दिया है कि मातृत्त्व स्वास्थ्य और कल्याण उनकी संतानों में बौनेपन को कम करने की कुंजी है।
  • अंतर-पीढ़ीगत लाभों के लिये मध्याह्न भोजन योजना के विस्तार एवं सुधार की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत में लड़कियाँ स्कूल स्तर की पढ़ाई पूरी करती हैं,  उनकी शादी हो जाती है और कुछ ही वर्षों के बाद वे संतान को जन्म देती हैं, इसलिये स्कूल-आधारित हस्तक्षेप वास्तव में मदद कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू


वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नवीन आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नवीन आयोग, मानसून सत्र, बजट सत्र, अध्यादेश

मेन्स के लिये:

वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नवीन आयोग का कार्य, शक्तियाँ एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) मानसून सत्र के दौरान संसद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक, 2021 को पेश करने के लिये तैयार है।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि और नए परिवर्तन:

  • प्रारंभ में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग संबंधी अध्यादेश को अक्तूबर 2020 में राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित किया गया था, लेकिन अध्यादेश के प्रतिस्थापन हेतु विधेयक को संसद के बजट सत्र में पारित नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप आयोग ने मार्च 2020 में काम करना बंद कर दिया।
  • इसके बाद MoEFCC ने किसानों के विरोध के कारण अप्रैल 2021 में संशोधनों के साथ दूसरा अध्यादेश प्रस्तुत किया।
    • किसानों ने पराली जलाने के आरोप में कठोर दंड और जेल की सज़ा की चिंता जताई (जैसा कि पहले अध्यादेश में कहा गया)।
    • सरकार ने पराली जलाने के कृत्य को अपराध से मुक्त कर दिया है और संभावित जेल की सज़ा से संबंधित खंड वापस ले लिया है।
    • हालाँकि पर्यावरण प्रतिपूर्ति शुल्क उन लोगों पर लगाया जाता है जो किसानों के साथ पराली जलाने में लिप्त पाए जाते हैं।

विधेयक के विषय में:

  • यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) और उसके आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता से संबंधित समस्याओं के बेहतर समन्वय, अनुसंधान, पहचान और समाधान के लिये एक आयोग के गठन का प्रावधान करता है।
    • आसपास के क्षेत्रों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सटे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों के क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जहाँ किसी भी प्रकार का प्रदूषण राजधानी में वायु गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
  • यह विधेयक वर्ष 1998 में राजधानी दिल्ली के लिये स्थापित ‘पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण प्राधिकरण’ को भी भंग करता है।

संरचना

  • इस आयोग का नेतृत्त्व एक पूर्णकालिक अध्यक्ष द्वारा किया जाएगा, जो कि भारत सरकार का सचिव या राज्य सरकार का मुख्य सचिव रहा हो।
    • अध्यक्ष तीन वर्ष के लिये या 70 वर्ष की आयु तक पद पर रहेगा।
  • इसमें कई मंत्रालयों के सदस्यों के साथ-साथ हितधारक राज्यों के प्रतिनिधि भी होंगे।
  • साथ ही इसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और सिविल सोसाइटी के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे।

कार्य:

  • संबंधित राज्य सरकारों (दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) द्वारा की गई समन्वित कार्रवाई।
  • एनसीआर में वायु प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिये योजना बनाना तथा उसे क्रियान्वित करना।
  • वायु प्रदूषकों की पहचान के लिये एक रूपरेखा प्रदान करना।
  • तकनीकी संस्थानों के साथ नेटवर्किंग के माध्यम से अनुसंधान और विकास का संचालन करना।
  • वायु प्रदूषण से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये एक विशेष कार्यबल का प्रशिक्षण और गठन करना।
  • वृक्षारोपण बढ़ाने और पराली जलाने से रोकने से संबंधित विभिन्न कार्य योजनाएँ तैयार करना।

शक्तियाँ:

  • नए निकाय के पास दिशा-निर्देश जारी करने और शिकायतों के समाधान की शक्ति होगी क्योंकि यह एनसीआर तथा आसपास के क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता एवं सुधार के उद्देश्य से आवश्यक है।
  • यह वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिये मानदंड भी निर्धारित करेगा।
  • इसके पास पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों की पहचान करने, कारखानों एवं उद्योगों और क्षेत्र में किसी भी अन्य प्रदूषणकारी इकाई की निगरानी करने तथा ऐसी इकाइयों को बंद करने की शक्ति होगी।
  • इसके पास क्षेत्र में राज्य सरकारों द्वारा जारी किये गए निर्देशों जो प्रदूषण मानदंडों का उल्लंघन करती हों, को रद्द करने का भी अधिकार होगा।

आगे की राह

  • वायु प्रदूषण जैसे सार्वजनिक मुद्दों से निपटने के लिये कानूनी और नियामक परिवर्तनों हेतु एक लोकतांत्रिक अवधारणा की आवश्यकता है।
  • शहर के भीतर बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाने व उद्योगों, बिजली संयंत्रों और अन्य उपयोगकर्त्ताओं को प्रदूषणकारी ईंधन जैसे- कोयले से प्राकृतिक गैस, बिजली व नवीकरणीय ऊर्जा को स्वच्छ दहन में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है।
  • सरकार को विभिन्न कानूनों और संस्थानों की प्रभावशीलता व उपयोगिता को देखने के लिये उनकी व्यापक समीक्षा करनी चाहिये, इसमें सभी संबंधित हितधारकों विशेष रूप से दिल्ली के बाहर के लोगों के साथ विस्तृत परामर्श होना चाहिये, जिसमें किसान समूह तथा लघु उद्योग एवं बड़े पैमाने पर जनता शामिल हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


हबल स्पेस टेलीस्कॉप

प्रिलिम्स के लिये

हबल स्पेस टेलीस्कोप, ग्रेट ऑब्ज़र्वेटरीज़ प्रोग्राम, लो अर्थ ऑर्बिट

मेन्स के लिये

हबल स्पेस टेलीस्कोप का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने हबल स्पेस टेलीस्कोप (HST) पर मौजूद वैज्ञानिक उपकरणों का परिचालन पुनः शुरू कर दिया है, जबकि लगभग एक माह पूर्व पेलोड कंप्यूटर में उत्पन्न तकनीकी समस्याओं के कारण उनके काम को निलंबित कर दिया गया था।

प्रमुख बिंदु

‘हबल स्पेस टेलीस्कोप’ के विषय में

  • इस टेलीस्कोप का नाम खगोलशास्त्री एडविन हबल के नाम पर रखा गया है।
  • यह वेधशाला अंतरिक्ष में स्थापित की जाने वाली पहली प्रमुख ऑप्टिकल टेलीस्कोप है और इसने अपने प्रक्षेपण (1990 में ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ में) के बाद से खगोल विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व खोज की हैं।
    • इसे ‘गैलीलियो के टेलीस्कोप के बाद खगोल विज्ञान में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रगति’ माना जाता है।
  • यह नासा के ग्रेट ऑब्ज़र्वेटरीज़ प्रोग्राम का एक हिस्सा है, जिसमें चार अंतरिक्ष-आधारित वेधशालाओं का एक समूह है और प्रत्येक वेधशाला एक अलग तरह के प्रकाश में ब्रह्मांड पर नज़र रखती है।
    • इस प्रोग्राम के अन्य मिशनों में विज़िबल-लाइट स्पिट्जर स्पेस टेलीस्कोप, कॉम्पटन गामा-रे ऑब्ज़र्वेटरी (CGRO) और चंद्र एक्स-रे ऑब्ज़र्वेटरी (CXO) भी शामिल हैं।
  • विशालकाय और बहुमुखी:
    • यह टेलीस्कोप आकार में एक स्कूल बस (13.3 मीटर) से बड़ा है और इसमें 7.9 फीट का दर्पण है।
    • यह काफी दूरी पर स्थित सितारों, आकाशगंगाओं और ग्रहों को देखकर ब्रह्मांड को समझने में खगोलविदों की मदद करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • आम लोगों के लिये सार्वजिक डेटा
    • नासा किसी भी व्यक्ति को हबल डेटाबेस प्राप्त करने की अनुमति देता है, जिसमें टेलीस्कोप द्वारा खोजी गई नई आकाशगंगा, नए सितारों, सौरमंडल और ग्रहों, असामान्य अंतरिक्ष घटनाओं तथा आयनित गैसों के विशिष्ट पैटर्न आदि से संबंधित सूचना शामिल है।

HST का महत्त्वपूर्ण योगदान:

  • वर्ष 1990 में हबल स्पेस टेलीस्कोप ने पता लगाया कि ब्रह्मांड का विस्तार तेज़ी से हो रहा  है, इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि अधिकांश ‘कॉस्मोस’ एक रहस्यमयी सामग्री से बने हैं जिसे ‘डार्क एनर्जी’ कहा जाता है।
  • दक्षिणी रिंग नेबुला (1995) का स्नैपशॉट: इसने नेबुला के केंद्र में दो तारे, एक चमकीला सफेद तारा और एक हल्का मंद तारा प्रदर्शित किया, जिसमें मंद तारा पूरे नेबुला का निर्माण कर रहा था।
  • दो ड्वार्फ आकाशगंगाओं का मिलन (1998): इनमें से एक I Zwicky 18 है। इससे एक नए तारे का निर्माण हुआ।
  • ब्लैक होल संचालित आकाशगंगा में गैसों के रंगीन पैटर्न जिन्हें 'सर्सिनस गैलेक्सी' (1999) के रूप में जाना जाता है।
  • दो आकाशगंगाओं UGC 06471 और UGC 06472 (2000) के बीच टकराव।
  • नेपच्यून का स्नैपशॉट (2011): इसने सबसे दूर स्थित ग्रह की छवि लेते हुए मीथेन बर्फ के क्रिस्टल से बने उच्च बादलों के संगठन का खुलासा किया।
  • एक स्टार 'बीटा पिक्टोरिस' के आसपास की डिस्क को वर्ष 1984 में खोजा गया।
  • इसने वर्ष 2013 में 'गैलेक्सी क्लस्टर एबेल 2744' (Galaxy Cluster Abell 2744) को अधिकृत कर लिया। यह 3.5 बिलियन प्रकाश वर्ष दूर है और इसमें छोटी आकाशगंगाओं के कई समूह हैं।
    • यह एक मज़बूत गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र भी बनाता है जो लगभग 3,000 आकाशगंगाओं के प्रकाश को प्रतिबिंबित करने के लिये लेंस के रूप में कार्य करता है।
  • इसने वर्ष 2014 में मंगल के साथ C/2013 A1 नामक धूमकेतु की टक्कर को कैद किया।
    • 'धूमकेतु साइडिंग स्प्रिंग' (Comet Siding Spring) मंगल ग्रह से सिर्फ 87, 000 मील की दूरी से गुज़रा।
  • 'गम 29' (Gum 29) 20,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक दोलनशील तारकीय (Vibrant Stellar) सतह है, जिसमें 3,000 सितारों के विशाल समूह को वर्ष 2014 में कैप्चर किया गया था।
    • तारों के इस विशाल समूह को 'वेस्टरलंड 2' (Westerlund 2) कहा जाता है।
  • वर्ष 2016 में एक प्राचीन धूमकेतु 332P/Ikeya-मुराकामी (332P/Ikeya-Murakami) के विघटन की तस्वीरें लीं ।
  • त्रिकोणीय आकाशगंगा को तारे के जन्म के विशिष्ट क्षेत्रों को दर्शाते हुए एक चमकदार नीली रोशनी के साथ आकाशगंगाओं के गर्म गैस के सुंदर निहारिकाओं में फैलाया गया था।
  • 'गैलेक्सी ईएसओ 243-49' (Galaxy ESO 243-49) की तस्वीर, जिसमें वर्ष 2012 में एक मध्यम आकार का ब्लैक होल था।
    • लगभग 20 हज़ार सूर्य के आकार का ब्लैक होल आकाशगंगा के एक हिमनद तल पर स्थित था।

HST का उत्तरवर्ती:

  • हबल के उत्तरवर्ती के रूप में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप  (James Webb Space Telescope- JWST) को इस वर्ष के अंत में लॉन्च किया जाना है।
  • लेकिन कई खगोलविदों को उम्मीद है कि कुछ समय के लिये ही सही दोनों एक-दूसरे के साथ काम करने में सक्षम होंगे।

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप

  • जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (जिसे JWST या वेब भी कहा जाता है) 6.5 मीटर का प्राथमिक दर्पण युक्त एक बड़ा इन्फ्रारेड टेलीस्कोप होगा।
  • वर्ष 2021 में इस टेलीस्कोप को  फ्रेंच गुयाना से एरियन 5 रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा।
  • यह हमारे ब्रह्मांड के इतिहास के प्रत्येक चरण का अध्ययन करेगा, जिसमें बिग बैंग के बाद पहली प्रतिदीप्ति से लेकर जीवन का समर्थन करने में सक्षम  पृथ्वी जैसे ग्रहों और हमारे अपने सौर मंडल का विकास तक शामिल हैं।
  • वेब (Webb) नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी (CSA) के मध्य एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


चंद्रमा के डगमगाने का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये 

चंद्रमा एवं पृथ्वी, ज्वार, बाढ़ 

मेन्स के लिये 

चंद्रमा एवं पृथ्वी का संबंध, ज्वार के संक्षिप्त परिचय एवं इसके प्रकार, पृथ्वी पर चंद्रमा के डगमगाने का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) ने निकट भविष्य में चंद्रमा के डगमगाने के प्रभाव को संभावित समस्या के रूप में उजागर किया है।

प्रमुख बिंदु

 चंद्रमा का डगमगाना:

  • जब चंद्रमा अपनी अंडाकार कक्षा बनाता है, तो इसका वेग भिन्न होता है जिससे "प्रकाश पक्ष" के हमारे दृष्टिकोण को यह थोड़ा अलग कोणों पर प्रकट कर बदल देता है जिसके परिणामस्वरूप चंद्रमा डगमगाता है या इस प्रकार की घटना को देखा जा सकता है।
  • यह चंद्रमा की कक्षा में एक चक्रीय परिवर्तन है और चंद्रमा की कक्षा में नियमित रूप से चलायमान (दोलन) है।
  • इसे पहली बार 1728 में प्रलेखित किया गया था। इस डगमगाने की प्रक्रिया को पूरा होने में 18.6 वर्षों का समय लगता है। इसे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि के परिणाम के रूप में देखा जाता है।

पृथ्वी पर चंद्रमा के डगमगाने का प्रभाव:

  • चंद्रमा का डगमगाना, चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव को प्रभावित करता है जो प्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी पर ज्वार-भाटा के उतार-चढ़ाव को प्रभावित करता है।
  •  डगमगाने के प्रत्येक चक्रीय प्रक्रिया में पृथ्वी पर ज्वार को बढ़ाने और दबाने की शक्ति होती है।
    • वर्तमान में  इन 18.6 वर्षों के आधे समय में पृथ्वी के नियमित ज्वार दब जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप उच्च ज्वार सामान्य से कम और निम्न ज्वार सामान्य से अधिक देखे जाते हैं।
    • दूसरे भाग में प्रभाव उल्टा होता है, जिसे चंद्रमा का ज्वार-प्रवर्धक चरण कहा जाता है।

संबंधित चिंताएँ:

  •  इस चक्र के 2030 के मध्य में फिर से होने की उम्मीद है तथा आने वाले चरण में एक बार फिर से ज्वार में वृद्धि होगी।
  • इस चक्र में आने वाले परिवर्तन गंभीर खतरा पैदा करेंगे, क्योंकि उच्च ज्वार में वृद्धि तथा  बढ़ते समुद्री जल स्तर से दुनिया के सभी तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा।
    • यह आधार रेखा को ऊपर उठाता है और जितना अधिक आधार रेखा को ऊपर उठाया जाता है, उतनी ही न्यून मौसमीय घटनाएँ बाढ़ का कारण बनती हैं।
  • उच्च ज्वार से आने वाली बाढ़– इसे उपद्रव बाढ़ या धूप बाढ़ के रूप में भी जाना जाता है जो क्लस्टर में हो सकती है और महीनों या लंबी अवधि तक भी रह सकती है।
    • यह घटना या परिवर्तन चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य की स्थिति के साथ निकटता से जुड़ा होगा। 

ज्वार 

Spring-Tide

परिचय:

  • ज्वार को समुद्र के पानी के नियतकालिक उठने और गिरने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

घटना:

  • यह सूर्य तथा चंद्रमा द्वारा पृथ्वी पर लगाए गए गुरुत्वाकर्षण बल और पृथ्वी के घूर्णन के संयुक्त प्रभावों के कारण होता है।

प्रकार: 

  • वृहत् ज्वार: पृथ्वी के संदर्भ में सूर्य और चंद्रमा की स्थिति ज्वार की ऊँचाई को परोक्ष रूप से प्रभावित करती है। जब तीनों एक ही सीधी रेखा में होते हैं, तब ज्वारीय उभार अधिकतम होगा। इनको वृहत् ज्वार-भाटा कहा जाता है तथा ऐसा महीने में दो बार होता है- पहला पूर्णिमा के समय और दूसरा अमावस्या के दिन।
  • निम्न ज्वार: यह स्थिति तब होती है जब चंद्रमा अपनी पहली और अंतिम तिमाही में होता है, इसमें समुद्र का पानी सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण तिरछे विपरीत दिशाओं की ओर खिंच जाता है जिसके परिणामस्वरूप निम्न ज्वार की स्थिति होती है।

ज्वारीय परिवर्तन के चरण:

flood

  • उच्च ज्वार वह चरण है जब ज्वारीय शिखा तट पर किसी विशेष स्थान पर पहुँचती है, जिससे स्थानीय समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है।
  • निम्न ज्वार वह चरण है जब गर्त (Trough) की स्थिति उत्पन्न होती है, जो स्थानीय समुद्र के जल स्तर को कम करता है।
  • ज्वारीय बाढ़ (Flood Tide) कम ज्वार और उच्च ज्वार के बीच उठने वाला या आने वाला ज्वार है।
  • उच्च ज्वार और निम्न ज्वार के बीच का समय, जब जल स्तर गिरता है, ‘भाटा (Ebb)’ कहलाता है। 
    • उच्च ज्वार और निम्न ज्वार के बीच की ऊर्ध्वाधर दूरी ज्वार की सीमा होती है।

प्रभाव:

  • ज्वार मछली और समुद्री पौधों की प्रजनन गतिविधियों सहित समुद्री जीवन के अन्य पहलुओं को प्रभावित करते हैं।
  • उच्च ज्वार नेविगेशन में मदद करते हैं। वे तटों के करीब जल स्तर को बढ़ाते हैं जिससे जहाज़ों को बंदरगाह पर अधिक आसानी से पहुँचने में मदद मिलती है।
  • ज्वार समुद्र के पानी से टकराते हैं जो रहने योग्य जलवायु परिस्थितियों का निर्माण करता है और ग्रहों पर तापमान को संतुलित करता है।
  • अंतर्वाह और बहिर्वाह के दौरान पानी की तेज़ गति तट के किनारे रहने वाले समुदायों को अक्षय ऊर्जा का स्रोत प्रदान करेगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


पेगासस स्पाईवेयर

प्रिलिम्स के लिये:

पेगासस स्पाईवेयर

मेन्स के लिये:

साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यह बताया गया है कि स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर पेगासस (Pegasus) का कथित तौर पर भारत में व्यापक रूप से सार्वजनिक हस्तियों पर गुप्त रूप से निगरानी रखने और जासूसी करने के लिये उपयोग किया गया है।

Pegasus-Project

प्रमुख बिंदु:

पेगासस (Pegasus) के संदर्भ: 

  • यह एक प्रकार का मैलेशियस सॉफ्टवेयर या मैलवेयर है जिसे स्पाइवेयर के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • यह उपयोगकर्त्ताओं के ज्ञान के बिना उपकरणों तक पहुँच प्राप्त करने के लिये डिज़ाइन किया गया है और व्यक्तिगत जानकारी एकत्र करता है तथा इसे वापस रिले करने के लिये सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है।
  • पेगासस को इज़राइली फर्म NSO ग्रुप द्वारा विकसित किया गया है जिसे वर्ष 2010 में स्थापित किया गया था।
  • पेगासस स्पाइवेयर ऑपरेशन पर पहली रिपोर्ट वर्ष 2016 में सामने आई, जब संयुक्त अरब अमीरात में एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता को उसके आईफोन 6 पर एक एसएमएस लिंक के साथ निशाना बनाया गया था। इसे स्पीयर-फिशिंग कहा जाता है।
  • तब से हालाँकि NSO की आक्रमण क्षमता और अधिक उन्नत हो गई है। पेगासस स्पाइवेयर ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है जो उपयोगकर्त्ताओं के मोबाइल और कंप्यूटर से गोपनीय एवं व्यक्तिगत जानकारी को नुकसान पहुँचाता है।
    • यह किसी ऑपरेटिंग सिस्टम में एक प्रकार की तकनीकी खामियाँ या बग हैं जिनके संबंध में मोबाइल फोन के निर्माता को जानकारी प्राप्त नहीं होती है और इसलिये वह इसमें सुधार करने में सक्षम नहीं होता है।

लक्ष्य

  • इज़राइल की निगरानी वाली फर्म द्वारा सत्तावादी सरकारों को बेचे गए एक फोन मैलवेयर के माध्यम से दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं, पत्रकारों और वकीलों को लक्षित किया गया है।
  • भारतीय मंत्री, सरकारी अधिकारी और विपक्षी नेता भी उन लोगों की सूची में शामिल हैं जिनके फोन पर इस स्पाइवेयर द्वारा छेड़छाड़ किये जाने की संभावना व्यक्त की गई है।
    • वर्ष 2019 में व्हाट्सएप ने इज़रायल के NSO ग्रुप के खिलाफ अमेरिकी अदालत में एक मुकदमा दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि यह फर्म मोबाइल उपकरणों को दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर से संक्रमित करके एप्लीकेशन पर साइबर हमलों को प्रेरित कर रही है।

भारत में उठाए गए कदम:

  • साइबर सुरक्षित भारत पहल: इसे वर्ष 2018 में सभी सरकारी विभागों में मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारियों (CISO) और फ्रंटलाइन आईटी कर्मचारियों के लिये सुरक्षा उपायों हेतु साइबर अपराध एवं निर्माण क्षमता के बारे में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
  • राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वय केंद्र (NCCC): वर्ष 2017 में NCCC को रियल टाइम साइबर खतरों का पता लगाने के लिये देश में आने वाले इंटरनेट ट्रैफिक और संचार मेटाडेटा (जो प्रत्येक संचार के अंदर छिपी जानकारी के छोटे भाग हैं) को स्कैन करने के लिये विकसित किया गया था।
  • साइबर स्वच्छता केंद्र: इसे वर्ष 2017 में इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं के लिये मैलवेयर जैसे साइबर हमलों से अपने कंप्यूटर और उपकरणों को सुरक्षति करने हेतु पेश किया गया था।
  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): सरकार द्वारा साइबर क्राइम से निपटने के लिये इस केंद्र का उद्घाटन किया गया।
    • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल को भी पूरे भारत में लॉन्च किया गया है।
  • कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम- इंडिया (CERT-IN): यह हैकिंग और फ़िशिंग जैसे साइबर सुरक्षा खतरों से निपटने हेतु नोडल एजेंसी है।
  • कानून:

अंतर्राष्ट्रीय तंत्र:

  • अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ: यह संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के भीतर एक विशेष एजेंसी है जो दूरसंचार और साइबर सुरक्षा मुद्दों के मानकीकरण तथा विकास में अग्रणी भूमिका निभाती है।
  • साइबर अपराध पर बुडापेस्ट कन्वेंशन: यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो राष्ट्रीय कानूनों के सामंजस्य, जाँच-पड़ताल की तकनीकों में सुधार और राष्ट्रों के बीच सहयोग बढ़ाकर इंटरनेट तथा साइबर अपराध को रोकना चाहती है। यह संधि 1 जुलाई, 2004 को लागू हुई थी।
    • भारत इस संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।

साइबर हमलों के प्रकार: 

  • मैलवेयर: यह Malicious Software (यानी दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर) के लिये प्रयुक्त संक्षिप्त नाम है, यह ऐसे किसी भी सॉफ्टवेयर को संदर्भित करता है जिसे किसी एकल कंप्यूटर, सर्वर या कंप्यूटर नेटवर्क को क्षति पहुँचाने के लिये डिज़ाइन किया जाता है। रैंसमवेयर, स्पाई वेयर, वर्म्स, वायरस और ट्रोजन सभी मैलवेयर के प्रकार हैं।
  • फिशिंग: यह भ्रामक ई-मेल और वेबसाइटों का उपयोग करके व्यक्तिगत जानकारी एकत्र करने का प्रयास करने का तरीका है।
  • डेनियल ऑफ सर्विस अटैक: डेनियल-ऑफ-सर्विस (DoS) अटैक एक ऐसा हमला है जो किसी मशीन या नेटवर्क को बंद करने हेतु किया जाता है।
    • DoS हमले लक्ष्य को ट्रैफ़िक से भरकर या हानिकारक जानकारीयों को भेजकर ट्रिगर किये जाते है।
  • मैन-इन-द-मिडिल (MitM) हमले: इसे ईव्सड्रॉपिंग हमलों के रूप में भी जाना जाता है, ये हमले तब होते हैं जब हमलावर खुद को दो-पक्षीय लेनदेन में सम्मिलित करते हैं।
    • एक बार जब हमलावर ट्रैफिक में बाधा डालते हैं, तो वे डेटा को फ़िल्टर और चोरी कर सकते हैं।
  • SQL इंजेक्शन: SQL का अर्थ है संरचित क्वेरी भाषा (Structured Query Language), डेटाबेस के साथ संचार करने के लिये उपयोग की जाने वाली प्रोग्रामिंग भाषा।
    • वेबसाइटों और सेवाओं के लिये महत्त्वपूर्ण डेटा संग्रहीत करने वाले कई सर्वर अपने डेटाबेस में डेटा को प्रबंधित करने हेतु SQL का उपयोग करते हैं।
    • एक SQL इंजेक्शन हमला विशेष रूप से ऐसे सर्वरों को लक्षित करता है, जो सर्वर को जानकारी प्रकट करने हेतु दुर्भावनापूर्ण कोड का उपयोग करते हैं।
  • क्रॉस साइट स्क्रिप्टिंग (XSS): SQL इंजेक्शन हमले के समान, इस हमले में एक वेबसाइट में दुर्भावनापूर्ण कोड डालना भी शामिल है, लेकिन इस मामले में वेबसाइट पर हमला नहीं किया जाता है।
    • इसके बजाय हमलावर ने जिस दुर्भावनापूर्ण कोड को इंजेक्ट किया है, वह केवल उपयोगकर्त्ता के ब्राउज़र में चलता है जब वह हमला की गई वेबसाइट पर जाता है तो सीधे विज़िटर के पीछे जाता है, न कि वेबसाइट पर।
    • सोशल इंजीनियरिंग: यह एक ऐसा हमला है जो आमतौर पर संरक्षित संवेदनशील जानकारी हासिल करने हेतु उपयोगकर्त्ताओं को बरगलाने के लिये मानवीय संपर्क पर निर्भर करता है।

स्रोत: द हिंदू