भारतीय अर्थव्यवस्था
विश्व व्यापार संगठन पैनल का भारत के खिलाफ फैसला
प्रिलिम्स के लिये:विश्व व्यापार संगठन, यूरोपीय संघ, संरक्षणवाद, सूचना प्रौद्योगिकी समझौता मेन्स के लिये:विश्व व्यापार संगठन का भारत के खिलाफ फैसला |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व व्यापार संगठन पैनल ने यूरोपीय संघ और अन्य देशों के साथ सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर सीमा शुल्क संबंधी विवाद में भारत के खिलाफ फैसला सुनाया है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- भारत का लक्ष्य घरेलू सूचना प्रौद्योगिकी विनिर्माण को बढ़ावा देना और आयात पर अपनी निर्भरता को कम करना रहा है, लेकिन यूरोपीय संघ और अन्य देशों द्वारा इस दृष्टिकोण को चुनौती दी गई है जिनका तर्क है कि ऐसे उपाय संरक्षणवादी हैं तथा वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन करते हैं।
- वर्ष 2019 में यूरोपीय संघ ने एकीकृत सर्किट, मोबाइल फोन और घटकों सहित विभिन्न IT उत्पादों पर 7.5% से 20% तक आयात कर लगाने के भारत के फैसले को चुनौती दी तथा दावा किया कि ये दरें अनुमत सीमा से अधिक हैं।
- जापान और ताइवान द्वारा भी यही शिकायत की गई है।
- आदेश/निर्णय:
- पैनल का मानना था कि भारत द्वारा कुछ सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर लगाया गया सीमा शुल्क वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन है, इसका मुख्य कारण उन उत्पादों का सूचना प्रौद्योगिकी समझौते की शर्तों के साथ असंगत होना माना गया है।
- ITA एक वैश्विक व्यापार समझौता है जिसका उद्देश्य IT उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला पर सीमा शुल्क को समाप्त करना है। भारत वर्ष 1996 के वैश्विक व्यापार समझौते का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- इस फैसले ने वैश्विक मानदंडों और दायित्त्वों के साथ अपनी व्यापार नीतियों को संरेखित करने के लिये भारत की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
- यह उन चुनौतियों को भी रेखांकित करता है जिनका सामना भारत जैसे विकासशील देशों को अंतर्राष्टीय व्यापार प्रतिबद्धताओं के साथ अपनी घरेलू नीति में संतुलन हेतु करना पड़ता है।
- पैनल का मानना था कि भारत द्वारा कुछ सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर लगाया गया सीमा शुल्क वैश्विक व्यापार नियमों का उल्लंघन है, इसका मुख्य कारण उन उत्पादों का सूचना प्रौद्योगिकी समझौते की शर्तों के साथ असंगत होना माना गया है।
- भारत का तर्क:
- भारत ने तर्क दिया कि ITA पर हस्ताक्षर करते समय स्मार्टफोन जैसे उत्पाद मौजूद नहीं थे और इसलिये यह ऐसी वस्तुओं पर टैरिफ को समाप्त करने के लिये बाध्य नहीं है।
- आशय:
- यूरोपीय आयोग के अनुसार, यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जिसका हिस्सा वर्ष 2021 में कुल भारतीय व्यापार का 10.8 प्रतिशत था।
- भारत के खिलाफ WTO के निर्णय का भारत और यूरोपीय संघ के साथ-साथ जापान तथा ताइवान के बीच व्यापार संबंधों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
- यूरोपीय संघ और अन्य देशों द्वारा प्रस्तुत चुनौती के चलते भारत को आयात शुल्क कम करना या समाप्त करना पड़ सकता है। इसका भारत के घरेलू विनिर्माण क्षेत्र पर प्रभाव पड़ने की आशंका है, जिसे इस प्रकार के टैरिफ द्वारा संरक्षित किया गया है।
विश्व व्यापार संगठन के निर्णय के बाद भारत के पास विकल्प:
- भारत के पास IT टैरिफ पर WTO के फैसले के खिलाफ अपील करने का विकल्प है, लेकिन यदि भारत अपील करता है तो मामला कानूनी उत्पीड़न के तहत माना जाएगा।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि WTO की शीर्ष अपीलीय पीठ न्यायाधीश नियुक्तियों के अमेरिकी विरोध के कारण अब कार्य नहीं कर रही है।
- कानूनी शोधन (Legal Purgatory) का उपयोग ऐसी स्थिति का वर्णन करने के लिये किया जाता है जहाँ एक कानूनी मामला या विवाद बिना समाधान या स्पष्ट मार्ग के कारण अधर में लटका हो।
- यह स्थिति उन देशों के लिये विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती है जो व्यापार विवादों को पारदर्शी और नियम-आधारित तरीके से हल करने की मांग कर रहे हैं क्योंकि यह विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान तंत्र की प्रभावशीलता को कम करता है।
विश्व व्यापार संगठन (WTO):
- परिचय:
- यह वर्ष 1995 में अस्तित्त्व में आया। विश्व व्यापार संगठन द्वितीय विश्व युद्ध के मद्देनज़र स्थापित टैरिफ और व्यापार (GATT) पर सामान्य समझौते का उत्तराधिकारी है।
- इसका उद्देश्य संभावित व्यापार प्रवाह को सुचारु, स्वतंत्र बनाने में मदद करना है।
- इसमें 164 सदस्य शामिल हैं और विश्व व्यापार इनकी 98% की हिस्सेदारी है।
- इसे GATT के तहत आयोजित व्यापार वार्ताओं या दौरों की एक शृंखला के माध्यम से विकसित किया गया था।
- GATT बहुपक्षीय व्यापार समझौतों का एक समूह है जिसका उद्देश्य कोटा समाप्त करना और अनुबंध करने वाले देशों के बीच टैरिफ शुल्क में कमी करना है।
- विश्व व्यापार संगठन के नियम-समझौते सदस्यों के बीच बातचीत का परिणाम हैं।
- वर्तमान स्वरूप काफी हद तक वर्ष 1986-94 उरुग्वे दौर की वार्ता का परिणाम है, जिसमें मूल GATT में एक बड़ा संशोधन शामिल था।
- विश्व व्यापार संगठन का सचिवालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में स्थित है।
- यह वर्ष 1995 में अस्तित्त्व में आया। विश्व व्यापार संगठन द्वितीय विश्व युद्ध के मद्देनज़र स्थापित टैरिफ और व्यापार (GATT) पर सामान्य समझौते का उत्तराधिकारी है।
- विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन:
- यह विश्व व्यापार संगठन का शीर्ष निर्णय लेने वाला निकाय है और आमतौर पर हर दो साल में इसकी बैठक होती है।
- विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्य मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शामिल होते हैं और वे किसी भी बहुपक्षीय व्यापार समझौते के तहत आने वाले सभी मामलों पर निर्णय ले सकते हैं।
- चिंताएँ:
- न्यायाधीश नियुक्तियों को लेकर अमेरिकी विरोध के कारण WTO के शीर्ष अपीलीय अधिकारी अब काम नहीं कर रहे हैं।
- वर्तमान स्थिति उन चुनौतियों को उजागर करती है जिनका सामना विश्व व्यापार संगठन को वर्तमान वैश्विक संदर्भ में व्यापार विवादों को हल करने में करना पड़ता है, देश संरक्षणवादी उपायों को तेज़ी से अपना रहे हैं जो नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली को चुनौती दे रहे हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) व्याख्या:
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स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
संविधान की नौवीं अनुसूची
प्रिलिम्स के लिये:आरक्षण, संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951। मेन्स के लिये:संविधान की नौवीं अनुसूची। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संविधान की नौवीं अनुसूची में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के उच्च कोटे की अनुमति देने वाले दो संशोधन विधेयकों को शामिल करने की मांग की।
क्या है विधेयक?
- छत्तीसगढ़ में राज्य विधानसभा ने सर्वसम्मति से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्यों के लिये 76% कोटा हेतु दो संशोधन विधेयकों को मंज़ूरी दे दी है।
- राज्यपाल ने अभी तक इन विधेयकों को मंज़ूरी नहीं दी है।
विधेयकों को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की आवश्यकता:
- संविधान की नौवीं अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों की एक सूची शामिल है जिन्हें न्यायालयों में चुनौती नहीं दी जा सकती है। नौवीं अनुसूची में दो संशोधन विधेयकों को शामिल करने से वे कानूनी चुनौतियों से मुक्त हो जाएंगे।
- छत्तीसगढ़ सरकार का तर्क है कि नौवीं अनुसूची में संशोधित प्रावधानों को शामिल करना राज्य में पिछड़े और वंचित वर्गों को न्याय दिलाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- इससे पहले छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 58% कोटा की अनुमति देने वाले एक सरकारी आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता क्योंकि यह असंवैधानिक है।
- हालाँकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को 76% आरक्षण प्रदान करने के लिये राज्य विधानसभा द्वारा दो संशोधन विधेयक पारित किये गए थे।
नौवीं अनुसूची:
- इस अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों की एक सूची है जिसे न्यायालयों में चुनौती नहीं दी जा सकती है जिसे संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा जोड़ा गया था।
- पहले संशोधन में अनुसूची में 13 कानूनों को जोड़ा गया था। बाद के विभिन्न संशोधनों सहित वर्तमान में संरक्षित कानूनों की संख्या 284 हो गई है।
- यह नए अनुच्छेद 31B के तहत बनाया गया था, जिसे अनुच्छेद 31A के साथ सरकार द्वारा कृषि सुधार से संबंधित कानूनों की रक्षा करने और ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करने हेतु लाया गया था।
- अनुच्छेद 31A कानून के 'उपबंधों' को सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 31B विशिष्ट कानूनों या अधिनियमों को सुरक्षा प्रदान करता है।
- जबकि अनुसूची के तहत संरक्षित अधिकांश कानून कृषि/भूमि के मुद्दों से संबंधित हैं, सूची में अन्य विषय भी शामिल हैं।
- अनुच्छेद 31B में एक पूर्वव्यापी संचालन भी है, जिसका अर्थ है कि यदि कानूनों को असंवैधानिक घोषित किये जाने के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो उन्हें उनकी स्थापना के बाद से अनुसूची में माना जाता है, अतः उन्हें वैध माना जाता है।
- इस तथ्य के बावजूद कि अनुच्छेद 31B न्यायिक समीक्षा के बाहर है, सर्वोच्च न्यायालय ने पहले कहा है कि नौवीं अनुसूची में सूचीबद्ध कानून भी समीक्षा के अधीन होंगे यदि वे मौलिक अधिकारों या संविधान के मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।
क्या नौवीं अनुसूची के कानून न्यायिक जाँच से पूरी तरह मुक्त हैं?
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): सर्वोच्च न्यायालय ने गोलकनाथ मामले में निर्णय को बरकरार रखा तथा "भारतीय संविधान की मूल संरचना" की एक नई अवधारणा पेश की और कहा कि, "संविधान के सभी प्रावधानों में संशोधन किया जा सकता है लेकिन यह उन संशोधनों को संविधान के बुनियादी ढाँचे से हटा देगा जिसमें मौलिक अधिकार शामिल हैं, न्यायालय द्वारा खारिज किये जाने के योग्य हैं"।
- वामन राव बनाम भारत संघ (1981): इस महत्त्वपूर्ण निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि "वे संशोधन जो 24 अप्रैल, 1973 (जिस पर केशवानंद भारती मामले में निर्णय दिया गया था) से पहले संविधान में किये गए थे, वैध और संवैधानिक हैं लेकिन जो निर्दिष्ट तिथि के बाद बनाए गए थे, उन्हें संवैधानिकता के आधार पर चुनौती दी जा सकती है।
- आई आर कोल्हो बनाम तमिलनाडु राज्य (2007): यह माना गया था कि 24 अप्रैल, 1973 के बाद लागू होने पर अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत हर कानून का परीक्षण किया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त न्यायालय ने अपने पिछले निर्णयों को बरकरार रखा और घोषित किया कि किसी भी अधिनियम को चुनौती दी जा सकती है तथा यदि यह संविधान की मूल संरचना के अनुरूप नहीं है तो न्यायपालिका द्वारा जाँच के लिये खुला है।
- इसके अलावा यह भी कहा गया कि यदि नौवीं अनुसूची के तहत किसी कानून की संवैधानिक वैधता को पहले बरकरार रखा गया है, तो भविष्य में इसे फिर से चुनौती नहीं दी जा सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. नौवीं अनुसूची को भारत के संविधान में किसके प्रधानमंत्रित्त्व काल में पेश किया गया था? (2019) (a) जवाहरलाल नेहरू उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. कोहिलो केस में क्या अभिनिर्धारित किया गया था? इस संदर्भ में क्या आप कह सकते हैं कि न्यायिक पुनर्विलोकन संविधान के बुनियादी अभिलक्षणों में प्रमुख महत्त्व का है? (2016) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय विरासत और संस्कृति
विश्व धरोहर दिवस
प्रिलिम्स के लिये:स्मारकों और स्थलों पर अंतर्राष्ट्रीय परिषद (ICOMOS), विश्व धरोहर दिवस, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, खंगचेंदज़ोंगा राष्ट्रीय उद्यान, कला और सांस्कृतिक विरासत हेतु भारतीय राष्ट्रीय न्यास (INTACH), भौगोलिक सूचना प्रणाली, सुदूर संवेदन। मेन्स के लिये:भारत में विरासत स्थलों की स्थिति, भारत की सांस्कृतिक पहचान पर विरासत का प्रभाव, भारत में विरासत प्रबंधन से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
स्मारकों और स्थलों पर अंतर्राष्ट्रीय परिषद (International Council on Monuments and Sites- ICOMOS) ने वर्ष 1982 में 18 अप्रैल का दिन स्मारकों एवं स्थलों हेतु अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया, जिसे विश्व धरोहर दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
- इस वर्ष की थीम "धरोहर परिवर्तन (Heritage Changes)" है, जो जलवायु कार्रवाई में सांस्कृतिक विरासत की भूमिका एवं कमज़ोर समुदायों की रक्षा में इसके महत्त्व पर केंद्रित है।
भारत में धरोहर स्थलों की स्थिति:
- परिचय:
- भारत में वर्तमान में 40 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल मौजूद हैं, जो इसे विश्व में छठा स्थान प्रदान करता है।
- इनमें 32 सांस्कृतिक स्थल, 7 प्राकृतिक स्थल और एक खंगचेंदज़ोंगा राष्ट्रीय उद्यान मिश्रित प्रकार का स्थल है।
- भारत में सांस्कृतिक धरोहर स्थलों में प्राचीन मंदिर, किले, महल, मस्जिद और पुरातात्त्विक स्थल शामिल हैं जो देश के समृद्ध इतिहास एवं विविधता को दर्शाते हैं।
- भारत के प्राकृतिक धरोहर स्थलों में राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव रिज़र्व और प्राकृतिक परिदृश्य शामिल हैं जो देश की अद्वितीय जैवविविधता एवं पारिस्थितिक महत्त्व को प्रदर्शित करते हैं।
- भारत में मिश्रित प्रकार का स्थल खंगचेंदज़ोंगा राष्ट्रीय उद्यान अपने सांस्कृतिक महत्त्व के साथ-साथ जैवविविधता हेतु जाना जाता है, क्योंकि यह कई दुर्लभ तथा लुप्तप्राय प्रजातियों का आवास स्थल है।
- भारतीय धरोहर से संबंधित संवैधानिक और विधायी प्रावधान:
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत: अनुच्छेद 49 के अनुसार, राज्य का दायित्त्व है कि वह संसद द्वारा बनाए गए कानून के तहत राष्ट्रीय महत्त्व के प्रत्येक स्मारक/कलाकृति/ ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तु अथवा स्थान को सुरक्षित करे।
- मौलिक कर्तव्य: संविधान के अनुच्छेद 51A में कहा गया है कि यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह देश की संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्त्व दे और उसका संरक्षण करे।
- प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम (AMASR अधिनियम) 1958: यह भारत की संसद द्वारा पारित अधिनियम है जो प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातात्त्विक स्थलों तथा राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों के संरक्षण, पुरातात्त्विक खुदाई संबंधी नियमन और मूर्तियों, नक्काशियों एवं इसी तरह की अन्य वस्तुओं के संरक्षण का प्रावधान करता है।
- भारत की सांस्कृतिक पहचान पर विरासत का प्रभाव:
- भारत का वैभव: विरासत दृश्यमान कलाकृतियों और अदृश्य सामाजिक विशेषताओं के रूप में पूर्वजों द्वारा सुरक्षित की गई संपदा है जिसे वर्तमान में बरकरार रखते हुए आने वाली पीढ़ियों के लाभ के लिये संरक्षित किया जाता है।
- विविधता में एकता का प्रतिबिंब: भारत समुदायों, रीति-रिवाजों, परंपराओं, धर्मों, संस्कृतियों, मान्यताओं, भाषाओं, जातियों और सामाजिक व्यवस्था का देश है।
- इतनी विविधता के बाद भी अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है।
- सहिष्णु प्रकृति: भारतीय समाज में प्रत्येक संस्कृति को समृद्ध होने का अवसर प्राप्त हुआ है जो हमें इसकी विविध धरोहरों में देखने को मिलता है। यह एकरूपता के लिये विविधता को दबाने का प्रयास नहीं करता।
- भारत में धरोहर प्रबंधन से संबंधित मुद्दे:
- धरोहर स्थलों के लिये केंद्रीकृत डेटाबेस का अभाव: भारत में राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक डेटाबेस का अभाव है जो राज्यवार धरोहर संरचनाओं को वर्गीकृत करता है।
- कला और सांस्कृतिक विरासत हेतु भारतीय राष्ट्रीय न्यास (INTACH) ने लगभग 150 शहरों में लगभग 60,000 इमारतों का आविष्कार किया है जो काफी कम है क्योंकि देश में 4000 से अधिक विरासत कस्बों और शहरों के होने का अनुमान है।
- उत्खनन और अन्वेषण का पुराना तंत्र: पुराने तंत्रों की व्यापकता के कारण अन्वेषण में शायद ही कभी भौगोलिक सूचना प्रणाली और सुदूर संवेदन का उपयोग किया जाता है।
- साथ ही शहरी विरासत परियोजनाओं में शामिल स्थानीय निकाय अकसर विरासत संरक्षण को संभालने के लिये पर्याप्त रूप से सुसज्जित नहीं होते हैं।
- पर्यावरणीय गिरावट और प्राकृतिक आपदाएँ: भारत में विरासत स्थल पर्यावरणीय क्षरण और प्रदूषण, कटाव, बाढ़ एवं भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील हैं, जो उनकी भौतिक संरचनाओं तथा सांस्कृतिक महत्त्व को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचा सकते हैं।
- उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश में ताजमहल को वायु प्रदूषण के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है जिससे इसका संगमरमर पीले रंग का हो गया है और खराब होने लगा है जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल एवं भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक प्रतिष्ठित प्रतीक है।
- अस्थिर पर्यटन: भारत में अकसर लोकप्रिय विरासत स्थलों को उच्च पर्यटन दबाव का सामना करना पड़ता है जिसका कारण भीड़भाड़, अनियमित आगंतुक गतिविधियाँ और अपर्याप्त आगंतुक प्रबंधन जैसे मुद्दे हो सकते हैं।
- अनियंत्रित पर्यटन धरोहर संरचनाओं को नुकसान पहुँचा सकता है, स्थानीय पर्यावरण को प्रभावित कर सकता है और स्थानीय समुदाय की जीवनशैली को बाधित कर सकता है।
- धरोहर स्थलों के लिये केंद्रीकृत डेटाबेस का अभाव: भारत में राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक डेटाबेस का अभाव है जो राज्यवार धरोहर संरचनाओं को वर्गीकृत करता है।
- धरोहर संरक्षण से संबंधित हाल की सरकारी पहल:
आगे की राह
- सतत् वित्तपोषण मॉडल: सार्वजनिक-निजी भागीदारी, कॉर्पोरेट प्रायोजन, क्राउड फंडिंग और समुदाय-आधारित फंडिंग जैसे विरासत संरक्षण के लिये नवीन निधीकरण मॉडल की खोज और कार्यान्वयन का कार्य करना।
- यह धरोहर स्थलों के लिये अतिरिक्त वित्तीय संसाधन सुनिश्चित करने और उनका सतत् संरक्षण एवं रख-रखाव सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
- उदाहरण: विशिष्ट संरक्षण परियोजनाओं के लिये कॉर्पोरेट प्रायोजन को प्रोत्साहित करना, जहाँ कंपनियाँ ब्रांड पहचान और प्रचार के अवसरों के बदले धन एवं संसाधनों का योगदान कर सकती हैं।
- प्रौद्योगिकी-सक्षम संरक्षण: धरोहर स्थलों के प्रलेखन, निगरानी और संरक्षण के लिये उन्नत तकनीकों जैसे- रिमोट सेंसिंग, 3डी स्कैनिंग, वर्चुअल रियलिटी और डेटा विश्लेषण का लाभ उठाना।
- यह अधिक कुशल और प्रभावी धरोहर प्रबंधन प्रथाओं को सक्षम कर सकता है, जिसमें स्थिति मूल्यांकन, निवारक संरक्षण और आभासी पर्यटन अनुभव शामिल हैं।
- उदाहरण: विरासत संरचनाओं की डिजिटल प्रतिकृतियाँ बनाने के लिये 3डी स्कैनिंग और वर्चुअल रियलिटी का उपयोग करना, ताकि आभासी पर्यटन, शैक्षिक उद्देश्यों और बहाली एवं संरक्षण का कार्य सुनिश्चित किया जा सके।
- व्यवसाय बढ़ाने हेतु नवीन उपाय: जो स्मारक बड़ी संख्या में आगंतुकों को आकर्षित नहीं करते हैं और जो सांस्कृतिक/धार्मिक रूप से संवेदनशील नहीं है, उनके सांस्कृतिक महत्त्व को निम्नलिखित उपायों द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिये:
- संबंधित अमूर्त धरोहर को बढ़ावा देना।
- ऐसी साइटों पर आगंतुकों की संख्या बढ़ाना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारतीय कला विरासत की रक्षा करना समय की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2018) प्रश्न. भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारत में स्मारकों एवं उनकी कला की कल्पना तथा आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। चर्चा कीजिये। (2020) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
अयस्कों के अवैध खनन से संबंधित मुद्दे
प्रिलिम्स के लिये:अवैध खनन, आईबीएम, कोयला, पेट्रोलियम, परमाणु खनिज, मानवाधिकार उल्लंघन, राष्ट्रीय खनिज नीति, पीएमकेकेवाई। मेन्स के लिये:अवैध खनन के मुद्दे और इससे निपटने के तरीके। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय खान ब्यूरो (Indian Bureau of Mines- IBM) ने ओडिशा में मैंगनीज़ के अवैध खनन और परिवहन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को चिह्नित किया है।
- IBM, खान मंत्रालय के तहत एक बहु-अनुशासनात्मक सरकारी संगठन है, जो कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, परमाणु खनिजों तथा लघु खनिजों के अलावा खानों के संरक्षण, खनिज संसाधनों के वैज्ञानिक विकास और पर्यावरण की सुरक्षा को बढ़ावा देने में लगा हुआ है।
IBM की चिंताएँ:
- ओडिशा भारत का एक खनिज समृद्ध राज्य है जहाँ देश का 96.12% क्रोम अयस्क, 51.15% बॉक्साइट रिज़र्व, 33.61% हेमेटाइट लौह अयस्क और 43.64% मैंगनीज़ है।
- ओडिशा में खनन पट्टाधारकों द्वारा अपनी खदानों से मैंगनीज़ अयस्क को निम्न श्रेणी के रूप में पश्चिम बंगाल के व्यापारियों को भेजा जा रहा था , जिसे वे बाद में बिना किसी प्रसंस्करण के उच्च श्रेणी के रूप में बेचते थे।
- ओडिशा में कुछ खनन कंपनियाँ खनन और परिवहन किये गए खनिजों की मात्रा को कम दर्शाने में शामिल हैं, साथ ही वे उचित रॉयल्टी और करों का भुगतान नहीं कर रही हैं।
- ऐसे मुद्दों के पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और उन लोगों की आजीविका के लिये गंभीर परिणाम हो सकते हैं जो अपने भरण-पोषण हेतु प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं।
- मैंगनीज़ अयस्क ग्रेड में कमी का मुद्दा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह अयस्क की गुणवत्ता और मूल्य को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार को राजस्व का नुकसान हो सकता है।
- राज्य सरकार ने खनिजों के अवैध खनन और परिवहन में शामिल कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने तथा खनन कानूनों और विनियमों को सख्ती से लागू करने का आह्वान किया।
- खान और खनिज (विकास और विनियमन) (MMDR) अधिनियम की धारा 23C के अनुसार, राज्य सरकारों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने के लिये नियम बनाने का अधिकार है।
अवैध खनन क्या है?
- विषय:
- अवैध खनन भूमि या जल निकायों से आवश्यक परमिट, लाइसेंस या सरकारी प्राधिकरणों से नियामक अनुमोदन के बिना खनिजों, अयस्कों या अन्य मूल्यवान संसाधनों का निष्कर्षण है।
- इसमें पर्यावरण, श्रम और सुरक्षा मानकों का उल्लंघन भी शामिल हो सकता है।
- समस्याएँ:
- पर्यावरण का क्षरण:
- यह वनों की कटाई, मिट्टी के कटाव और जल प्रदूषण का कारण बन सकता है तथा इसके परिणामस्वरूप वन्यजीवों के आवासों का विनाश हो सकता है, जिसके गंभीर पारिस्थितिक परिणाम हो सकते हैं।
- खतरा:
- अवैध खनन में अकसर पारा और साइनाइड जैसे खतरनाक रसायनों का उपयोग शामिल होता है, जो खनिकों और आस-पास के समुदायों के लिये गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है।
- राजस्व की हानि:
- इससे सरकारों को राजस्व का नुकसान हो सकता है क्योंकि खनिक उचित करों और रॉयल्टी का भुगतान नहीं कर सकते हैं।
- इसके महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं, विशेषकर उन देशों में जहाँ प्राकृतिक संसाधन राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है।
- मानव अधिकारों के उल्लंघन:
- अवैध खनन के परिणामस्वरूप मानव अधिकारों का उल्लंघन भी हो सकता है, जिसमें बलात् श्रम, बाल श्रम और कमज़ोर आबादी का शोषण शामिल है।
- पर्यावरण का क्षरण:
भारत में खनन से संबंधित कानून:
- भारत के संविधान की सूची II (राज्य सूची) की क्रम संख्या 23 की प्रविष्टि राज्य सरकार को अपनी सीमाओं के अंदर स्थित खनिजों के स्वामित्त्व के लिये बाध्य करती है।
- सूची I (केंद्रीय सूची) की क्रम संख्या 54 पर प्रविष्टि केंद्र सरकार को भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के अंदर खनिजों के मालिक होने का अधिकार देती है।
- इसके अनुसरण में खान और खनिज (विकास और विनियमन) (MMDR) अधिनियम 1957 बनाया गया था।
- इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) खनिज अन्वेषण और निष्कर्षण को नियंत्रित करती है। यह संधि संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्देशित है तथा संधि का एक पक्षकार होने के नाते भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन में 75000 वर्ग किलोमीटर से अधिक बहुधात्त्विक पिंडों का पता लगाने का विशेष अधिकार प्राप्त है।
भारत में खनन क्षेत्र परिदृश्य:
- परिचय:
- भारत में लौह अयस्क, कोयला, बॉक्साइट, मैंगनीज़, ताँबा, सोना, जस्ता, सीसा और अन्य खनिजों के बड़े भंडार के साथ एक समृद्ध खनिज संसाधन आधार है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में खनन क्षेत्र का योगदान महत्त्वपूर्ण है, यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.5% है और लाखों लोगों को रोज़गार प्रदान करता है।
- आँकड़े:
- वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में 8.55% की वृद्धि के साथ कोयले का उत्पादन 777.31 मिलियन टन (MT) रहा।
- वर्ष 2021 तक के प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक है।
- वित्त वर्ष 2022 में भारत में 190,392 करोड़ (24.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर) रुपए का खनिज उत्पादन होने का अनुमान है।
- लौह अयस्क उत्पादन के मामले में भारत विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है। वित्त वर्ष 2021 में कुल लौह अयस्क का उत्पादन 204.48 मीट्रिक टन रहा।
- वित्त वर्ष 21 में भारत में एल्यूमीनियम का संयुक्त उत्पादन (प्राथमिक और माध्यमिक) 4.1 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष था, जिससे यह एल्यूमीनियम का विश्व का दूसरा उत्पादक बन गया।
मैंगनीज़:
- यह एक ठोस, स्लेटी रंग की धातु है जो आमतौर पर पृथ्वी की भू-पपड़ी में पाई जाती है और इसमें सबसे प्रचुर मात्रा पाया जाने वाला बारहवाँ तत्त्व है।
- मैंगनीज़ मनुष्य, पशुओं और पौधों के लिये एक आवश्यक पोषक तत्त्व है। यह कार्बोहाइड्रेट, कोलेस्ट्रॉल एवं अमीनो एसिड के चयापचय के लिये आवश्यक है।
- मैंगनीज़ का उपयोग विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जाता है, जिसमें इस्पात, एल्यूमीनियम मिश्र धातु और बैटरी का उत्पादन शामिल है।
- मैंगनीज़ लौह अयस्क को गलाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है और इसका उपयोग फेरो मिश्र धातुओं के निर्माण के लिये भी किया जाता है। लगभग सभी भूवैज्ञानिक संरचनाओं में मैंगनीज़ के निक्षेप पाए जाते हैं। हालाँकि यह मुख्य रूप से धारवाड़ प्रणाली से जुड़ा है।
- ओडिशा मैंगनीज़ का प्रमुख उत्पादक है। ओडिशा में प्रमुख खानें भारत के लौह अयस्क बेल्ट के मध्य भाग में स्थित हैं, विशेष रूप से बोनाई, केंदुझार, सुंदरगढ़, गंगपुर, कोरापुट, कालाहांडी और बोलांगीर में।
अवैध खनन के मुद्दों से निपटने के उपाय:
- कानूनी और नियामक ढाँचा:
- अवैध खनन को रोकने में इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिये खनन से संबंधित विधिक एवं नियामक ढाँचे को मज़बूत किये जाने की आवश्यकता है।
- इसके लिये कानून को मज़बूत बनाकर, प्रवर्तन तंत्र में सुधार करके और अवैध खनन गतिविधियों के लिये दंडों में कुछ सख्त बदलाव किया जा सकता है।
- जाँच एवं निगरानी:
- सैटेलाइट इमेजरी, ड्रोन और GPS जैसी आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से अवैध खनन गतिविधियों की निगरानी एवं पता लगाने में मदद मिल सकती है।
- हितधारकों के बीच सहयोग:
- खनन कंपनियों को स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम करना चाहिये ताकि उनकी चिंताओं को दूर किया जा सके, साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी गतिविधियाँ धारणीय हैं।
- जागरूकता और शिक्षा:
- जागरूकता और शिक्षा अभियान पर्यावरण एवं समाज पर अवैध खनन के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करने में मदद कर सकते हैं। यह लोगों को अवैध खनन गतिविधियों की सूचना अधिकारियों को देने हेतु प्रोत्साहित करेगा।
- धारणीय खनन अभ्यास:
- धारणीय खनन प्रथाओं को बढ़ावा देने से अवैध खनन की मांग को कम करने में मदद मिल सकती है।
- इसमें खनन कंपनियों को ज़िम्मेदार खनिज साधन, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक ज़िम्मेदारी जैसी टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना शामिल है।
खनन से संबंधित सरकारी पहलें:
- राष्ट्रीय खनिज नीति 2019: इसका उद्देश्य खनिज अन्वेषण और उत्पादन को बढ़ाना, धारणीय खनन विधियों को बढ़ावा देना एवं नियामक प्रक्रियाओं को कारगर बनाना है।
- प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (PMKKKY): यह खनन प्रभावित क्षेत्रों और सागरमाला परियोजना हेतु एक कल्याणकारी योजना है, जिसका उद्देश्य खनन क्षेत्र के विकास का समर्थन करने हेतु बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे का विकास करना है।
निष्कर्ष:
- अवैध खनन के मुद्दे को उजागर करने हेतु बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें कानूनी और नियामक ढाँचे को मज़बूत करना, जाँच एवं निगरानी में सुधार करना, धारणीय खनन विधियों को बढ़ावा देना तथा जागरूकता व शिक्षा अभियान शुरू करना शामिल है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देता है। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021) प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन के विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा,2017) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की निर्यात क्षमता
प्रिलिम्स के लिये:भारत का शीर्ष निर्यात ज़िला, मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (MITRA) पार्क, रूस-यूक्रेन युद्ध, उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियाँ, अंतरिक्ष, अर्द्धचालक, सौर ऊर्जा मेन्स के लिये:भारत में निर्यात क्षेत्र की स्थिति, निर्यात क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
भारत में गुजरात का जामनगर शीर्ष निर्यात ज़िला है। इसने वित्त वर्ष 2023 (जनवरी तक) में मूल्य के संदर्भ में भारत के निर्यात में लगभग 24% की भागीदारी की है।
- गुजरात में सूरत और महाराष्ट्र में मुंबई उपनगर दूरी के आधार पर क्रमशः दूसरे एवं तीसरे स्थान पर हैं, जिसने वित्त वर्ष 2023 में देश के निर्यात में लगभग 4.5% की भागीदारी की है।
- शीर्ष 10 में अन्य ज़िले दक्षिण कन्नड़ (कर्नाटक), देवभूमि द्वारका, भरूच और कच्छ (गुजरात), मुंबई (महाराष्ट्र), कांचीपुरम (तमिलनाडु) एवं गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश) हैं।
भारत में निर्यात क्षेत्र की स्थिति:
- व्यापार की स्थिति:
- वस्तु व्यापार घाटा, जो कि निर्यात और आयात के बीच का अंतर है, वर्ष 2022-23 में 39% से अधिक बढ़कर रिकॉर्ड 266.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 191 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- वर्ष 2022-23 में व्यापारिक वस्तुओं का आयात 16.51% बढ़ा, जबकि व्यापारिक निर्यात 6.03% बढ़ा है।
- हालाँकि सेवाओं में व्यापार अधिशेष के कारण कुल व्यापार घाटा वर्ष 2022-2023 में घटकर 122 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2022 में 83.53 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- भारत के प्रमुख निर्यात के क्षेत्र:
- इंजीनियरिंग वस्तुएँ: वित्त वर्ष 2022 में 101 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के साथ इन्होंने निर्यात में 50% की वृद्धि दर्ज की है।
- वर्तमान में भारत में सभी तरह के पंपों, उपकरणों, कार्बाइड, एयर कंप्रेशर्स, इंजन और जनरेटर के विनिर्माण से संबद्ध बहुराष्ट्रीय निगम रिकॉर्ड उच्च स्तर पर कारोबार कर रहे हैं और अधिकाधिक उत्पादन इकाइयों को भारत में स्थानांतरित कर रहे हैं।
- कृषि उत्पाद: महामारी के बीच खाद्य की वैश्विक मांग की पूर्ति के लिये सरकार के प्रोत्साहन से कृषि निर्यात में उछाल आया है। भारत 9.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के चावल का निर्यात करता है, जो कृषि जिंसों में सबसे अधिक है।
- वस्त्र एवं परिधान: वित्त वर्ष 2012 में भारत का वस्त्र एवं परिधान निर्यात (हस्तशिल्प सहित) 44.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा जो पिछले वर्ष की तुलना में 41% वृद्धि दर्शाता है।
- भारत सरकार मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (MITRA) पार्क स्कीम इस क्षेत्र को व्यापक रूप से बढ़ावा दे रही है।
- इंजीनियरिंग वस्तुएँ: वित्त वर्ष 2022 में 101 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के साथ इन्होंने निर्यात में 50% की वृद्धि दर्ज की है।
- फार्मास्यूटिकल्स और ड्रग्स: भारत मात्रा के हिसाब से दवाओं का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।
- भारत, अफ्रीका की जेनरिक आवश्यकताओं के 50% से अधिक, अमेरिका की जेनरिक मांग के लगभग 40% और यूके की सभी दवाओं के 25% की आपूर्ति करता है।
- निर्यात क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
- वित्त तक पहुँच: निर्यातकों के लिये किफायती और समय पर वित्त तक पहुँच महत्त्वपूर्ण है।
- हालाँकि कई भारतीय निर्यातकों को उच्च ब्याज दरों, संपार्श्विक आवश्यकताओं और वित्तीय संस्थानों से विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) के लिये ऋण उपलब्धता की कमी के कारण वित्त प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- निर्यात का सीमित विविधीकरण: भारत का निर्यात कुछ क्षेत्रों में केंद्रित है, जैसे कि इंजीनियरिंग सामान, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स, जो इसे वैश्विक मांग में उतार-चढ़ाव एवं बाज़ार के जोखिमों के प्रति संवेदनशील बनाता है।
- निर्यात का सीमित विविधीकरण भारत के निर्यात क्षेत्र के लिये एक चुनौती पेश करता है क्योंकि यह वैश्विक व्यापार गतिशीलता को बदलने के लिये अपने लचीलेपन को सीमित कर सकता है।
- बढ़ता संरक्षणवाद और विवैश्वीकरण: विश्व भर के देश बाधित वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था (रूस-यूक्रेन युद्ध) और आपूर्ति शृंखला के शस्त्रीकरण के कारण संरक्षणवादी व्यापार नीतियों की ओर बढ़ रहे हैं, जो भारत की निर्यात क्षमताओं को कम कर रहा है।
- वित्त तक पहुँच: निर्यातकों के लिये किफायती और समय पर वित्त तक पहुँच महत्त्वपूर्ण है।
आगे की राह
- अवसंरचना में निवेश: निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये बेहतर अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत को परिवहन नेटवर्क, बंदरगाहों, सीमा शुल्क निकासी प्रक्रियाओं और निर्यात-उन्मुख बुनियादी ढाँचे जैसे निर्यात प्रोत्साहन क्षेत्रों तथा विशेष विनिर्माण क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- यह परिवहन लागत को कम कर सकता है, आपूर्ति शृंखला दक्षता में सुधार कर सकता है और निर्यात क्षमताओं को बढ़ावा दे सकता है।
- कौशल विकास और प्रौद्योगिकी को अपनाना: निर्यातोन्मुखी उद्योगों में कुशल श्रम की उपलब्धता बढ़ाने के लिये कौशल विकास कार्यक्रम लागू किये जाने चाहिये।
- इसके अतिरिक्त स्वचालन, डिजिटलीकरण और उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों जैसे प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहन और बढ़ावा देने से निर्यात क्षेत्र में उत्पादकता, प्रतिस्पर्द्धा एवं नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
- संयुक्त विकास कार्यक्रमों की खोज: विवैश्वीकरण की लहर और धीमी वृद्धि के बीच निर्यात विकास का एकमात्र इंजन नहीं हो सकता है।
- भारत मध्यम अवधि के विकास की बेहतर संभावनाओं के लिये अंतरिक्ष, सेमीकंडक्टर, सौर ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अन्य देशों के साथ संयुक्त विकास कार्यक्रमों का भी पता लगा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास के उच्च स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रहता है। उत्तर: (c) प्रश्न. फरवरी 2006 से प्रभाव में आए SEZ अधिनियम, 2005 के कुछ निर्धारित उद्देश्य हैं। इस संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त में से कौन-से इस अधिनियम के उद्देश्य हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. "बंद अर्थव्यवस्था" एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें: (2011) (a) मुद्रा की आपूर्ति पूरी तरह से नियंत्रित होती है। उत्तर: (d) |