ई-सिगरेट
प्रिलिम्स के लिये:ई-सिगरेट, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), तंबाकू, निकोटीन का व्यसन, कैंसरजन्य पदार्थ मेन्स के लिये:ई-सिगरेट, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनकी रूपरेखा और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सरकारों से ई-सिगरेट को तंबाकू के समान मानने तथा इसके सभी स्वादों/फ्लेवर्स पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया है, जिससे ई-सिगरेट को धूम्रपान का विकल्प मानने वाली सिगरेट-कम्पनियाँ खतरे की स्थिति में हैं।
- कुछ शोधकर्त्ता, प्रचारक तथा सरकारें ई-सिगरेट अथवा वेप्स को धूम्रपान से होने वाली मृत्यु एवं बीमारी को कम करने में एक सार्थक विकल्प वाले उपकरण के रूप में देखती हैं किंतु WHO के अनुसार इनके इस्तेमाल को नियंत्रित करने के लिये “तत्काल उपाय” की आवश्यकता है।
ई-सिगरेट क्या हैं?
- ई-सिगरेट बैटरी चालित उपकरण हैं जो एक तरल को एयरोसोल में गर्म करके संचालित होते हैं जिसे उपयोगकर्त्ता श्वसन के माध्यम से अंदर खींचता है और बाहर छोड़ता है।
- ई-सिगरेट तरल में आमतौर पर निकोटीन, प्रोपलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन, फ्लेवर तथा अन्य रसायन शामिल होते हैं।
- उपयोग में आने वाली ई-सिगरेट के विभिन्न प्रकार हैं, जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम (ENDS) एवं कभी-कभी इलेक्ट्रॉनिक नॉन-निकोटिन डिलीवरी सिस्टम (ENNDS) के रूप में भी जाना जाता है।
ई-सिगरेट के संबंध में WHO द्वारा क्या चिंताएँ व्यक्त की गई हैं?
- धूम्रपान समाप्ति के लिये अप्रभाविता:
- ई-सिगरेट जैसे उपभोक्ता उत्पाद जनसंख्या स्तर पर व्यसनी को तंबाकू का उपयोग रोकने में मदद करने में सफल साबित नहीं हुए हैं। इसके स्थान पर जनसंख्या के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के चिंताजनक साक्ष्य सामने आए हैं।
- ई-सिगरेट को बाज़ार में लाने की अनुमति दी गई है तथा युवाओं के लिये इसका व्यापक विपणन किया गया है।
- चौंतीस देशों ने ई-सिगरेट की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, 88 देशों में ई-सिगरेट खरीदने की कोई न्यूनतम आयु नहीं है एवं 74 देशों में इन हानिकारक उत्पादों के लिये कोई नियम नहीं है।
- युवाओं पर प्रभाव:
- अल्प आयु में ही बच्चों एवं युवाओं की ई-सिगरेट के उपयोग के लिये प्रलोभन तथा संभावित जाल, जिससे संभावित रूप से वे निकोटीन के व्यसन से ग्रसित हो सकते हैं।
- देशों में इसकी रोकथाम हेतु अपर्याप्त नियमों सहित ई-सिगरेट का व्यापक विपणन इस समस्या में योगदान देता है।
- युवाओं में बढ़ता उपयोग:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सभी क्षेत्रों में 13-15 वर्ष के बच्चे वयस्कों की तुलना में अधिक दर पर ई-सिगरेट का उपयोग कर रहे हैं।
- कनाडा में 16-19 वर्ष के बच्चों के बीच ई-सिगरेट के उपयोग की दर वर्ष 2017-2022 के बीच दोगुनी हो गई है और इंग्लैंड (यूनाइटेड किंगडम) में युवा उपयोगकर्त्ताओं की संख्या पिछले तीन वर्षों में तीन गुना हो गई है।
- स्वास्थ्य को खतरा:
- हालाँकि ई-सिगरेट के दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों को पूरी तरह से समझा नहीं गया है, लेकिन ये उपकरण विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करते हैं, जिनमें से कुछ कैंसर का कारण बनते हैं और हृदय तथा फेफड़ों के विकारों के खतरे को बढ़ाते हैं।
- ई-सिगरेट का उपयोग मस्तिष्क के विकास को भी प्रभावित कर सकता है, युवाओं में सीखने के विकार पैदा कर सकता है और गर्भवती महिलाओं में भ्रूण के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
- निकोटीन की लत और नशे की प्रकृति:
- निकोटीन युक्त ई-सिगरेट को अत्यधिक नशे की लत माना जाता है, जो उपयोगकर्त्ताओं और दर्शकों दोनों के लिये स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है। ई-सिगरेट में निकोटीन की लत की प्रकृति, खासकर युवा उपयोगकर्त्ताओं के बीच, निकोटीन की लत का मुकाबला करने के बारे में चिंता पैदा करती है।
नोट: भारत में ई-सिगरेट और इसी तरह के उपकरणों का कब्ज़ा इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट निषेध अधिनियम (PECA) 2019 का उल्लंघन है।
ई-सिगरेट के पक्ष में क्या तर्क हैं?
- नुकसान में कमी:
- समर्थकों का तर्क है कि ई-सिगरेट पारंपरिक तंबाकू उत्पादों की तुलना में नुकसान कम करने की रणनीति प्रदान करती है।
- उनमें निकोटीन होता है लेकिन पारंपरिक सिगरेट में मौजूद कई हानिकारक कार्सिनोजेन्स की कमी होती है। परिणामस्वरूप, उन्हें अक्सर वयस्क धूम्रपान करने वालों के लिये एक सुरक्षित विकल्प के रूप में देखा जाता है जो निकोटीन का उपयोग पूरी तरह से छोड़ने में असमर्थ या अनिच्छुक हैं।
- आर्थिक राजस्व:
- एक आर्थिक तर्क यह सुझाव दे रहा है कि ई-सिगरेट को वैध बनाने और विनियमित करने से सरकारों के लिये पर्याप्त कर राजस्व उत्पन्न हो सकता है। ई-सिगरेट पर कर लगाने से, अधिकारियों को राजस्व से लाभ हो सकता है, साथ ही उनके उपयोग पर नियंत्रण तथा निगरानी भी हो सकती है।
- उपभोक्ता की पसंद:
- समर्थक उपभोक्ता की पसंद और विकल्पों तक पहुँच के महत्त्व पर तर्क देते हैं। उनका मानना है कि यदि वयस्क धूम्रपान करने वालों को पारंपरिक धूम्रपान बंद करने के तरीके अप्रभावी लगते हैं तो उनके पास कम हानिकारक निकोटीन वितरण प्रणाली चुनने का विकल्प होना चाहिये।
निकोटीन क्या है?
- निकोटीन एक पादप एल्कलॉइड है जिसमें नाइट्रोजन होता है, जो तंबाकू के पौधे सहित कई प्रकार के पौधों में पाया जाता है और इसे कृत्रिम रूप से भी उत्पादित किया जा सकता है।
- निकोटीन शामक/दर्दनिवारक और उत्तेजक दोनों है।
- ई-सिगरेट में निकोटीन का उपयोग प्रत्यक्ष पदार्थ के रूप में किया जाता है और इसकी मात्रा 36 mg/mL तक होती है। हालाँकि रेग्युलर सिगरेट में भी निकोटीन होता है, लेकिन यह 1.2 से 1.4 mg/mL के बीच होता है।
- कर्नाटक ने निकोटीन को क्लास A ज़हर के रूप में अधिसूचित किया है।
तंबाकू उपभोग से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
- राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम
- सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और व्यापार एवं वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति तथा वितरण का विनियमन) संशोधन नियम, 2023।
- राष्ट्रीय तंबाकू क्विटलाइन सेवाएँ (NTQLS)
- भारत के केंद्रीय वित्त मंत्री ने बजट 2023-24 में सिगरेट पर राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक शुल्क (NCCD) में 16% की वृद्धि की घोषणा की।
- भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्ट्रीम की गई सामग्री के दौरान तंबाकू से संबंधित स्वास्थ्य चेतावनियों को प्रदर्शित करने के लिये ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफार्मों की आवश्यकता वाले नए नियमों की घोषणा की है।
आगे की राह
- राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, ई-सिगरेट के सेवन को रोकने, निकोटीन की लत का मुकाबला करने और तंबाकू नियंत्रण के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की दिशा में तत्काल उपायों की आवश्यकता है।
- अधिवक्ता सिगरेट और शराब जैसी अन्य “सिन गुड्स” की तरह ई-सिगरेट को भी विनियमित और कर लगाने का सुझाव देते हैं। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य धूम्रपान करने वालों के लिये संभावित रूप से हानिकारक विकल्प तक कम पहुँच की अनुमति देते हुए इनके अत्यधिक उपयोग को हतोत्साहित करना है।
अपशिष्ट प्रबंधन पहल
प्रिलिम्स के लिये:विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व, प्लास्टिक पैकेजिंग, ई-अपशिष्ट, बैटरी अपशिष्ट, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट, स्वच्छ भारत मिशन, जैव-उपचार, अपशिष्ट प्रबंधन नियम मेन्स के लिये:अपशिष्ट प्रबंधन पहल और नियम, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
राज्यसभा में हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश में अपशिष्ट प्रबंधन से निपटने के लिये उठाए गए महत्त्वपूर्ण कदमों पर प्रकाश डाला।
अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित प्रमुख पहल क्या हैं?
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) तंत्र:
- EPR अपशिष्ट प्रबंधन में एक नीतिगत दृष्टिकोण है जो उत्पादकों को उनके संग्रह, पुनर्चक्रण और निपटान सहित उनके उत्पादों के पूरे जीवनचक्र के लिये ज़िम्मेदार बनाता है।
- इसका उद्देश्य अपशिष्ट प्रबंधन के वित्तीय और भौतिक बोझ को सरकारों तथा करदाताओं से उत्पादकों पर स्थानांतरित करके उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है।
- वर्ष 2022 में प्लास्टिक पैकेजिंग, ई-अपशिष्ट, बैटरी अपशिष्ट और प्रयुक्त तेल के लिये बाज़ार तंत्र का उपयोग करते हुए EPR पहल लागू की गई थी। इस रणनीतिक कदम से अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्र में विकास को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।
- EPR अपशिष्ट प्रबंधन में एक नीतिगत दृष्टिकोण है जो उत्पादकों को उनके संग्रह, पुनर्चक्रण और निपटान सहित उनके उत्पादों के पूरे जीवनचक्र के लिये ज़िम्मेदार बनाता है।
- अपशिष्ट प्रसंस्करण क्षमता:
- शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले लगभग 1.5 लाख मीट्रिक टन (MT/D) कचरे में से लगभग 76% संसाधित किया जाता है।
- वर्ष 2014 के बाद से ठोस अपशिष्ट, खतरनाक अपशिष्ट, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट, ई-अपशिष्ट, प्लास्टिक अपशिष्ट और निर्माण तथा विध्वंस अपशिष्ट सहित विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट के प्रसंस्करण की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- पिछले आठ वर्षों में, विशेष रूप से स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के तहत, ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण क्षमता में लगभग 1.05 लाख मीट्रिक MT/D की वृद्धि देखी गई है।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन हेतु स्वच्छ भारत मिशन:
- योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन सहित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।
- केंद्र सरकार ने "कचरा मुक्त शहर" बनाने के समग्र दृष्टिकोण के साथ वर्ष 2021 में स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0 (SBM-U 2.0) लॉन्च किया, जिसमें यह लक्ष्य हासिल करना शामिल होगा कि सभी शहरी स्थानीय निकाय कम से कम 3-स्टार प्रमाणित हो जाएँगे (जैसा कि कचरा मुक्त शहरों के लिये प्रति स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल) जिसमें घर-घर जाकर संग्रहण, स्रोत पृथक्करण और नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का वैज्ञानिक प्रसंस्करण शामिल है।
- यह मिशन स्रोत पृथक्करण, एकल-उपयोग प्लास्टिक का निपटारा करने, निर्माण-और-विध्वंस गतिविधियों से अपशिष्ट का प्रबंधन एवं परंपरागत अपशिष्ट डंप साइटों के जैव-उपचार पर केंद्रित है।
- स्वच्छ भारत मिशन - ग्रामीण चरण II के तहत, पेयजल और स्वच्छता विभाग ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को परिचालन दिशानिर्देश जारी किये हैं जिनमें ग्रामीण स्तर पर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन गतिविधियाँ शामिल हैं।
- योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन सहित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये स्वच्छ भारत मिशन के तहत केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है।
- अपशिष्ट प्रबंधन नियम और दिशानिर्देश:
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत मंत्रालय ने पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न अपशिष्ट प्रबंधन नियमों और दिशानिर्देशों को लागू किया है। इसमे शामिल है:
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016।
- जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016।
- निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016।
- हानिकारक व अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन और सीमापारीय संचलन) नियम, 2016।
- ई-अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022।
- बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022।
- पर्यावरण के अनुकूल अपशिष्ट प्रबंधन पर भी दिशानिर्देश जारी किये गए हैं।
- हानिकारक अपशिष्ट, ई-अपशिष्ट तथा प्लास्टिक के उत्पाद शुल्क भुगतान सिद्धांत के आधार पर पर्यावरणीय क्षति/पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाने के लिये दिशानिर्देश जारी किये गए हैं।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत मंत्रालय ने पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न अपशिष्ट प्रबंधन नियमों और दिशानिर्देशों को लागू किया है। इसमे शामिल है:
नोट:
- 'प्रदूषक भुगतान' सिद्धांत आम तौर पर स्वीकृत प्रथा है जिसके तहत जो लोग प्रदूषण फैलाते हैं उन्हें मानव स्वास्थ्य अथवा पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने के लिये इसके प्रबंधन की लागत वहन करनी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2019) (a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे। उत्तर: (c) |
अधिवक्ता संशोधन विधेयक, 2023
प्रिलिम्स के लिये:अधिवक्ता संशोधन विधेयक, 2023, दलाल, अधिवक्ता अधिनियम, 1961, बार काउंसिल, अखिल भारतीय बार मेन्स के लिये:न्यायालय में कानूनी प्रथाओं में सुधार के लिये अधिवक्ता संशोधन विधेयक, 2023 का महत्त्व। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अधिवक्ता संशोधन विधेयक, 2023 लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो गया। इसका उद्देश्य कानूनी प्रणाली से 'दलाल' को बाहर करना था।
- विधेयक कानूनी व्यवसायी अधिनियम, 1879 को निरस्त करता है और अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन करता है, ताकि "कानून की किताब में अनावश्यक अधिनियमों की संख्या" को कम किया जा सके और सभी "अप्रचलित कानूनों" को निरस्त किया जा सके।
अधिवक्ता संशोधन विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- दलाल (Tout):
- इस विधेयक में प्रावधान है कि प्रत्येक उच्च न्यायालय, ज़िला न्यायाधीश, सत्र न्यायाधीश, ज़िला मजिस्ट्रेट व राजस्व अधिकारी (ज़िला कलेक्टर के पद से नीचे नहीं) दलालों की सूची बनाकर इसे प्रकाशित कर सकते हैं।
- दलाल (Tout) उस व्यक्ति को संदर्भित करता है, जो:
- या तो किसी भुगतान के बदले में किसी कानूनी व्यवसाय में किसी कानूनी व्यवसायी का रोज़गार प्राप्त करने का प्रस्ताव करता है या प्राप्त करता है।
- ऐसे रोज़गार प्राप्त करने के लिये दीवानी या फौज़दारी अदालतों के परिसर, राजस्व-कार्यालयों, या रेलवे स्टेशनों जैसे स्थानों का बार-बार उपयोग किया जाता है।
- न्यायालय या न्यायाधीश किसी भी ऐसे व्यक्ति को न्यायालय परिसर से बाहर कर सकता है जिसका नाम दलालों सूची में शामिल है।
- सूचियाँ तैयार करना:
- दलालों की सूची तैयार करने और प्रकाशित करने का अधिकार रखने वाले प्राधिकारी अधीनस्थ अदालतों को दलाल होने के कथित या संदिग्ध व्यक्तियों के आचरण की जाँच करने का आदेश दे सकते हैं।
- एक बार जब ऐसा व्यक्ति दलाल साबित हो जाता है, तो उसका नाम प्राधिकारी द्वारा दलालों की सूची में शामिल किया जा सकता है। किसी भी व्यक्ति को उसके शामिल किये जाने के विरुद्ध कारण बताने का अवसर प्राप्त किये बिना ऐसी सूचियों में शामिल नहीं किया जाएगा।
- दंड (Penalty): कोई भी व्यक्ति जो दलाल के रूप में कार्य करता है, जबकि उसका नाम दलालों की सूची में शामिल है, उसे तीन महीने तक की कैद, 500 रुपए तक का ज़ुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
अधिवक्ता अधिनियम, 1961 क्या है?
- अधिवक्ता अधिनियम, 1961, भारतीय विधि व्यवसायियों (Legal Practitioners) से संबंधित विधि को संशोधित एवं समेकित करने तथा बार काउंसिल व एक अखिल भारतीय बार के गठन का प्रावधान करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- इस अधिनियम ने अधिकांश विधि व्यवसायी अधिनियम, 1879 को निरस्त कर दिया हालाँकि इसकी सीमा, परिभाषाएँ, दलालों की सूची बनाने और प्रकाशित करने की शक्तियाँ व अन्य उपबंध यथावत बने रहे।
विधिक दृष्टिकोण: अधिवक्ता संशोधन विधेयक, 2023
https://www.drishtijudiciary.com/en
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
वार्षिक आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड: NOAA
प्रिलिम्स के लिये:वार्षिक आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड राष्ट्रीय समुद्री और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA), आर्कटिक, पर्माफ्रॉस्ट, ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर, जंगल की आग। मेन्स के लिये:वार्षिक आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड: NOAA, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने अपना 18वाँ वार्षिक आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड जारी किया है, जिसमें आर्कटिक पर अत्यधिक मौसमीऔर जलवायु घटनाओं के गहरे प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है।
- NOAA एक संयुक्त राज्य सरकार एजेंसी है जो मौसम पूर्वानुमान, जलवायु, महासागरों, तटों और यहाँ तक कि बाहरी अंतरिक्ष की खोज़ के बारे में सटीक तथा समय पर जानकारी प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदार है।
आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड क्या है?
- यह वर्ष 2006 से प्रति वर्ष जारी किया जाता है, आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड ऐतिहासिक रिकॉर्ड के सापेक्ष आर्कटिक पर्यावरण प्रणाली के विभिन्न घटकों की वर्तमान स्थिति पर स्पष्ट, विश्वसनीय तथा संक्षिप्त पर्यावरणीय जानकारी के लिये एक समय पर और सहकर्मी-समीक्षा स्रोत है।
आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- उच्च तापमान रिकॉर्ड करना:
- वर्ष 2023 में, आर्कटिक में रिकॉर्ड पर सबसे गर्मी थी, जो जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 1979 के बाद से दुनिया की तुलना में लगभग चार गुना तेज़ी से गर्म हुई है।
- इस रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 1900 को आर्कटिक में छठा सबसे गर्म वर्ष माना गया।
- बढ़ते तापमान का प्रभाव:
- बढ़ते तापमान के कारण अभूतपूर्व वनाग्नि हुई, जिससे समुद्री बर्फ की मात्रा में गिरावट, गंभीर बाढ़, खाद्य असुरक्षा और समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण सामुदायिक निकासी को मजबूर होना पड़ा।
- ये प्रभाव सीधे पारिस्थितिक तंत्र, मानव स्वास्थ्य और सांस्कृतिक प्रथाओं को प्रभावित करते हैं।
- बढ़ते तापमान के कारण अभूतपूर्व वनाग्नि हुई, जिससे समुद्री बर्फ की मात्रा में गिरावट, गंभीर बाढ़, खाद्य असुरक्षा और समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण सामुदायिक निकासी को मजबूर होना पड़ा।
- समुद्री पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना:
- समुद्र का गर्म तापमान समुद्र के नीचे पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने की प्रक्रिया को तेज़ कर रहा है, जिससे मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड निकल रहा है।
- यह प्रक्रिया ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करती है और समुद्र के अम्लीकरण को बढ़ाती है। इन उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की अज्ञात सीमा और प्रभाव के बारे में चिंता है।
- सैल्मन की गिरावट के कारण खाद्य असुरक्षा:
- पश्चिमी अलास्का में चिनूक और चुम सैल्मन की आबादी में उल्लेखनीय रूप से कमी देखी गई (क्रमशः 30 वर्ष के औसत से 81% और 92% कम), जिससे जीविका के लिये इन मछलियों पर निर्भर स्वदेशी समुदाय प्रभावित हुए।
- इस कमी के सांस्कृतिक, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक निहितार्थ हैं।
- आर्कटिक क्षेत्रों में वनाग्नि:
- कनाडा में जंगल की आग का अब तक का सबसे खराब मौसम रिकॉर्ड किया गया, जिससे आर्कटिक और उत्तरी माने जाने वाले उसके 40% भूभाग पर असर पड़ा।
- उच्च तापमान और शुष्क परिस्थितियों के कारण उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 10 मिलियन एकड़ से अधिक भूमि जल गई, जिसके कारण लोगों को स्थान खाली करना पड़ा तथा हवा की गुणवत्ता कम हो गई।
- ग्लेशियर का पिघलना और बाढ़ आना:
- पिछले 20 वर्षों में बढ़ते तापमान के कारण अलास्का में स्थित मेंडेनहॉल ग्लेशियर प्रभावी रूप से पिघलता जा रहा है।
- परिणामस्वरूप, विगत कुछ वर्षों में ग्लेशियर के पिघलने के कारण संबद्ध क्षेत्र में प्रतिवर्ष बाढ़ आती रही है।
- ऐसी ही एक आपदा अगस्त 2023 में हुई थी, जब अलास्का के जूनो शहर में “मेंडेनहॉल ग्लेशियर की एक सहायक नदी पर एक हिमनदी झील की हिम परत के विघटन से गंभीर बाढ़ एवं अत्यधिक संपत्ति की क्षति हुई”।
- ग्रीनलैंड की हिम परत का विरलन:
- ग्रीनलैंड की हिम परत 34 वर्ष के रिकॉर्ड में केवल पाँचवीं बार पिघली है। इतना ही नहीं, सर्दियों में औसत से अधिक बर्फ जमा होने के बावजूद इसकी हिम परत का द्रव्यमान कम होता रहा। अगस्त 2022 एवं सितंबर 2023 के बीच, इसका द्रव्यमान लगभग 350 ट्रिलियन पाउंड कम हो गया। विशेष रूप से, ग्रीनलैंड की हिम परत का पिघलना समुद्र के स्तर में वृद्धि का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
आर्कटिक क्या है?
- आर्कटिक पृथ्वी के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक ध्रुवीय क्षेत्र है।
- आर्कटिक क्षेत्र के भीतर की भूमि में मौसम के अनुसार विभिन्न हिम और हिम का आवरण होता है।
- इसमें आर्कटिक महासागर, निकटवर्ती समुद्र तथा अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका), कनाडा, फिनलैंड, ग्रीनलैंड (डेनमार्क), आइसलैंड, नॉर्वे, रूस और स्वीडन के कुछ हिस्से शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प D सही है। मेन्सQ1. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप और मनुष्य की गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं? स्पष्ट कीजिये। (2021) Q2. उत्तरध्रुव सागर में तेल की खोज के क्या आर्थिक महत्त्व हैं और उसके संभव पर्यावरणीय परिणाम क्या होंगे? (2015) |
मानसिक स्वास्थ्य पर कोविड टीकाकरण का प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:मानसिक स्वास्थ्य पर कोविड टीकाकरण का प्रभाव, मानसिक स्वास्थ्य, कोविड-19, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP), आयुष्मान भारत - स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (AB-HWC), राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम। मेन्स के लिये:मानसिक स्वास्थ्य पर कोविड टीकाकरण का प्रभाव, भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य जनसंख्या से संबंधित सरकारी पहल और संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
कुछ अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि Covid-19 के टीकाकरण के बाद बिना टीकाकरण वाले व्यक्तियों की तुलना में टीका लगाए गए व्यक्तियों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ कम होती हैं।
- कोविड-19 के बाद 6 महीनों में अवसाद का अतिरिक्त जोखिम टीकाकरण वाले व्यक्तियों में प्रति 100,000 पर 449 था, जबकि टीकाकरण न करवाने वाले व्यक्तियों में यह प्रति 100,000 व्यक्तियों पर 1009 था।
कोविड-19 के बाद मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा कितना गंभीर था?
- चिंता और अवसाद:
- जो व्यक्ति कोविड-19 होने के बाद अस्पताल में भर्ती होने से बच गए, उन्हें चिंता और अवसाद सहित लगातार मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जो ठीक होने के बाद लगभग एक वर्ष तक बनी रहीं।
- लंबे समय तक रहने वाले कोविड के लक्षण लगभग 5% व्यक्तियों को प्रभावित कर रहा है, भले ही इसका कारण कुछ भी हो, इन मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के साथ ओवरलैप होता है, जिससे बोझ बढ़ जाता है।
- स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर बढ़ा बोझ:
- कोविड-19 के बाद मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के बोझ ने स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव बढ़ा दिया, जिससे इन चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्तियों के लिये निदान, उपचार तथा सहायता के लिये अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता हुई।
- बच्चों तथा सुभेद्य समुदाय पर प्रभाव:
- स्कूल बंद होने, बाधित दिनचर्या तथा सीमित सामाजिक संपर्क ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया, जिससे चिंता एवं अन्य मनोवैज्ञानिक चुनौतियाँ बढ़ गईं।
- हाशियाई समुदाय की आबादी को सामाजिक-आर्थिक असमानताओं के कारण जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिससे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कमज़ोरियाँ बढ़ गईं।
- दुःख और अलगाव का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- सामाजिक अलगाव, संचार उपकरणों तक सीमित पहुँच, घरेलू तनाव तथा कोविड-19 के कारण, विशेषकर वृद्ध जैसे कमज़ोर समूहों के बीच दोस्तों एवं रिश्तेदारों को खोने के दुःख से मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों बढ़ गई हैं।
मानसिक स्वास्थ्य और टीकाकरण के बीच क्या संबंध है?
- मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों में कमी:
- टीका लगाए गए व्यक्तियों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कमी देखी गई, भले ही उन्हें मानसिक बीमारी का पूर्व इतिहास रहा हो।
- इससे पता चलता है कि मानसिक स्वास्थ्य परिणामों पर टीकाकरण का प्रभाव पहले से मौजूद विकारों से स्वतंत्र था।
- कोविड-19 की गंभीरता में कमी:
- टीकाकरण ने उन लोगों में कोविड-19 की गंभीरता को कम करने में योगदान दिया, जो वायरस से संक्रमित थे। रोग की गंभीरता पर इस अप्रत्यक्ष प्रभाव से गंभीर बीमारी से जुड़े संकट को कम करके मानसिक स्वास्थ्य परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने का अनुमान लगाया गया है।
- कम चिंता:
- टीकाकरण से लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा हुई और चिंता कम हुई।
- गंभीर बीमारी या कोविड-19 से मृत्यु के प्रति सुरक्षित महसूस करने से महामारी से जुड़ी चिंता और तनाव का स्तर कम हुआ।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य बीमारी की स्थिति क्या है?
- परिचय:
- मानसिक स्वास्थ्य किसी व्यक्ति की भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्वास्थ्य को संदर्भित करता है, जिसमें उसकी समग्र मानसिक और भावनात्मक परिस्थितियाँ शामिल होती हैं।
- इसमें किसी व्यक्ति की तनाव से निपटने, अपनी भावनाओं को प्रबंधित करने, अच्छे संबंध बनाए रखने, उत्पादक रूप से काम करने और तर्कसंगत निर्णय लेने की क्षमता शामिल है।
- मानसिक स्वास्थ्य समग्र स्वास्थ्य और खुशहाली का एक अभिन्न अंग है तथा यह शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्त्वपूर्ण है।
- भारत में स्थिति:
- भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंसेज़ के आँकड़ों के अनुसार, 80% से अधिक लोग ज्ञान की कमी, कलंक और देखभाल की उच्च लागत जैसे कई कारणों से देखभाल सेवाओं तक पहुँच नहीं पाते हैं।
- वर्ष 2012-2030 के दौरान मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के कारण आर्थिक नुकसान 1.03 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (WHO) होने का अनुमान है।
- भारत में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो-साइंसेज़ के आँकड़ों के अनुसार, 80% से अधिक लोग ज्ञान की कमी, कलंक और देखभाल की उच्च लागत जैसे कई कारणों से देखभाल सेवाओं तक पहुँच नहीं पाते हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित सरकारी पहल:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:भारतीय समाज में युवा महिलाओं में आत्महत्या क्यों बढ़ रही है? (2023) |