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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सिगरेट में निकोटिन के स्तर को कम करने का प्रस्ताव

  • 02 Aug 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?

  • विदित हो कि अमेरिकी ‘फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन’ (एफडीए) के एक प्रस्ताव ने सिगरेट निर्माता कंपनियों में हड़कंप मचा दिया है। एफडीए ने कहा है कि सिगरेट में निकोटिन की मात्रा इस स्तर तक कम कर दी जाए, जिससे लोगों को इसकी लत ना लगे।
  • दरअसल, निकोटीन सीधे तौर पर कैंसर और अन्य बीमारियों का कारण नहीं बनता है, लेकिन इसके कारण ही लोगों को नशे की लत लग जाती है और लोग चाहकर भी सिगरेट नहीं छोड़ पाते।
  • साथ ही एफडीए ने यह भी कहा है कि ई-सिगरेट में निकोटिन की मात्रा कम नहीं की जाएगी, क्योंकि लोगों ने सिगरेट के विकल्प के तौर पर ई-सिगरेट का उपयोग किया है और इससे उन्हें सिगरेट छोड़ने में मदद मिली है।

कैसे नशे का आदि बनाता है निकोटिन

  • तंबाकू में निकोटिन पाया जाता है। लगातार तंबाकू के सेवन से शरीर के कुछ अंग इसको लेकर संवेदी हो जाते हैं, जिस कारण तंबाकू या सिगरेट छोड़ना बहुत मुश्किल होता है। दरअसल, निकोटिन के कारण आवेग और तनाव में कमी का एहसास होता है।
  • निकोटिन का त्याग करना मुश्किल है, क्योंकि जब कोई निकोटिन की लत का शिकार व्यक्ति इसे त्यागना चाहता है तो उसे शारीरिक उतार चढ़ाव के साथ-साथ मानसिक कमज़ोरी का भी एहसास होने लगता है।
  • यही कारण है कि निकोटिन को पूरी तरह त्यागना आसान नहीं होता, लेकिन धीरे-धीरे इसकी मात्रा में कमी कर ऐसा किया जा सकता है। इन कारणों से एफडीए का यह प्रस्ताव महत्त्वपूर्ण है, जिस पर भारत सरकार को भी ध्यान देना चाहिये।
  • सिगरेट में निकोटिन के स्तर को कम किया जाना उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना कि ई-सिगरेट को विनियमित या प्रतिबंधित किया जाना। 

क्या है ई-सिगरेट ?

  • ई-सिगरेट या इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम (ENDS) एक बैटरी संचालित डिवाइस है, जो तरल निकोटीन, प्रोपलीन, ग्लाइकॉल, पानी, ग्लिसरीन के स्वाद के मिश्रण को गर्म करके एक एयरोसोल बनाता है, जो एक असली सिगरेट जैसा अनुभव देता है।
  • यह डिवाइस पहली बार 2004 में चीनी बाज़ारों में "तंबाकू के स्वस्थ विकल्प" के रूप में बेची गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, 2005 से ही ई-सिगरेट उद्योग एक वैश्विक व्यवसाय बन चुका है और आज इसका बाज़ार लगभग 3 अरब डॉलर का हो गया है।
  • ई-सिगरेट ने अधिक लोगों को धूम्रपान शुरू करने के लिये प्रेरित किया है, क्योंकि इसका प्रचार-प्रसार ‘हानिरहित उत्पाद’ के रूप में किया जा रहा है। किशोरों के लिये ई-सिगरेट धूम्रपान शुरू करने का एक प्रमुख साधन बन गया है। भारत में 30-50% ई-सिगरेट्स ऑनलाइन बिकती हैं, और चीन इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता देश है।
  • भारत में ई-सिगरेट की बिक्री को अभी तक विनियमित नहीं किया गया है। यही कारण है कि इसे बच्चे और किशोर आसानी से ऑनलाइन खरीद सकते हैं। पंजाब राज्य ने ई-सिगरेट को अवैध घोषित किया है। राज्य का कहना है कि इसमें तरल निकोटीन का प्रयोग किया जाता है, जो वर्तमान में भारत में अपंजीकृत ड्रग के रूप में वर्गीकृत है।
  • इसके चलते पंजाब सरकार ने ई-सिगरेट के विक्रेताओं के खिलाफ मामले भी दर्ज़ किये हैं । अप्रैल 2016 में पंजाब की सत्र अदालत ने मोहाली के विक्रेता को अवैध ड्रग बेचने के ज़ुर्म में तीन साल की सज़ा सुनाई थी। यह भारत में अपनी तरह का पहला मामला था। स्वास्थ्य पर प्रभाव के कई अध्ययनों से पता चला है कि ई-सिगरेट बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिये बहुत हानिकारक है।
  • रिपोर्ट में पाया गया कि ई-सिगरेट पीने वाले लोगों में श्वसन और जठरांत्र संबंधी रोग पाए गए।

क्या करना चाहिये ? 
जहाँ यूरोप में 18 साल से कम उम्र के बच्चों को धूम्रपान संबंधित सामग्री बेचना वर्जित है, वहीं अमेरिका में ई-सिगरेट, यूएसएफडीए (USFDA) द्वारा विनियमित की जाती है। अत: भारत को भी ऐसे कानून और नियम बनाने चाहिये, जिनसे हम बच्चों और किशोरों को ई-सिगरेट के नकारात्मक प्रभावों से बचा सकें।

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