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डेली न्यूज़

  • 18 Nov, 2022
  • 61 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

खाद्य-पशु खेती और रोगाणुरोधी प्रतिरोध

प्रिलिम्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध, महामारी, जलवायु परिवर्तन, WHO, ICMR, जूनोटिक रोग।

मेन्स के लिये:

खाद्य-पशु खेती और रोगाणुरोधी प्रतिरोध।

चर्चा में क्यों?

फैक्टरी फार्मिंग में पशुओं का खराब स्वास्थ्य हमारी खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और जलवायु को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) हो सकता है।

  • फैक्टरी फार्मिंग या गहन खाद्य-पशु फार्मिंग सूअर, गाय जैसे जानवरों और पक्षियों की तीव्र और सीमित खेती है। ये वे औद्योगिक सुविधाएँ हैं जिनके तहत घर के अंदर न्यूनतम लागत पर जानवरों के उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की जाती है

मुद्दे:

  • दुनिया भर में जानवरों की पीड़ा को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है या महामारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट, जलवायु परिवर्तन एवं जैवविविधता के नुकसान, खाद्य असुरक्षा तथा कुपोषण जैसे बड़े मुद्दों से अलग देखा जाता है।
    • वास्तव में यह वैश्विक समस्याओं को बढ़ा सकता है और साथ ही अरबों जानवरों के लिये अत्यधिक क्रूरता पैदा कर सकता है।
  • सस्ते मांस की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये हर साल 50 बिलियन से अधिक फैक्टरी फार्म स्थापित किये जा रहे हैं जिनमें जानवरों का उत्पादन करने के लिये आनुवंशिक रूप से समान जानवरों की नस्लों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है, जिससे बीमारी के लिये एक आदर्श प्रजनन पृष्ठभूमि तैयार होती है और यह मनुष्यों में भी फैल सकती है।
    • जब बीमारियाँ एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में फैलती हैं, तो वे अक्सर अधिक संक्रामक हो जाती हैं और अधिक गंभीर बीमारी एवं मृत्यु का कारण बनती हैं, जिससे वैश्विक महामारी की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू दो प्रमुख उदाहरण हैं जहाँ गहन खेती वाले जानवरों से लगातार नए उपभेद निकलते हैं।
    • हालाँकि इसके अतिरिक्त- रोगाणुरोधी प्रतिरोध को अनदेखा किया जाता है।
  • फैक्टरी फार्मिंग में  एंटीबायोटिक दवाओं के अति प्रयोग से सुपरबग उत्पन्न  होते हैं जो श्रमिकों, पर्यावरण और खाद्य शृंखला में फैल जाते हैं।
  • घटिया पशुपालन प्रथाओं और खराब पशु कल्याण की विशेषता वाली फैक्टरी फार्मिंग में रोगाणुरोधी के बढ़ते उपयोग के कारण जूनोटिक रोगजनकों की एक शृंखला AMR के उद्भव से जुड़ी होेती है।

AMR और भारत में इसका प्रचलन:

  • AMR रोगाणुरोधी दवाओं के खिलाफ किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी आदि) द्वारा प्राप्त प्रतिरोध है जिसे संक्रमण के इलाज के लिये उपयोग किया जाता है।
  • यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब एक सूक्ष्मजीव समय के साथ बदलता है और दवा कोई प्रतिक्रिया नहींं करती जिससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है और बीमारी फैलने, गंभीर बीमारी, मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
  • भारत में पहली पंक्ति के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी जीवों की वजह से सेप्सिस के कारण हर साल 56,000 से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है।
    • ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) द्वारा 10 अस्पतालों से रिपोर्ट किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि जब कोविड रोगियों को अस्पतालों में दवा प्रतिरोधी संक्रमण होता है, तो मृत्यु दर लगभग 50-60% होती है।
  • बहु-दवा (multi-drug) प्रतिरोध निर्धारक, नई दिल्ली मेटालो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (NDM -1) की उत्पत्ति इस क्षेत्र में हुई।
    • दक्षिण एशिया से बहु-दवा (multi-drug) प्रतिरोधी टाइफाइड एशिया, अफ्रीका और यूरोप के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया।

AMR पर रोक के लिये सरकार द्वारा की गई पहल:

  • देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के सबूत पाने और प्रवृत्तियों एवं पैटर्न को रिकॉर्ड करने हेतु वर्ष 2013 में ‘रोगाणुरोधी प्रतिरोध सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क’ (AMRSN) शुरू किया गया।
  • AMR पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on AMR) ‘वन हेल्थ’ के दृष्टिकोण पर केंद्रित है जो अप्रैल 2017 में विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को संलग्न करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
  • ICMR ने रिसर्च काउंसिल ऑफ नॉर्वे (RCN) के साथ वर्ष 2017 में रोगाणुरोधी प्रतिरोध में अनुसंधान के लिये एक संयुक्त आह्वान की पहल की थी।
  • ICMR ने फेडरल मिनिस्ट्री ऑफ एजुकेशन एंड रिसर्च (BMBF), जर्मनी के साथ AMR पर शोध के लिये एक संयुक्त भारत-जर्मन सहयोग का निर्माण किया है।
  • ICMR ने अस्पताल वार्डों एवं आईसीयू में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग एवं अति-प्रयोग को नियंत्रित करने के लिये पूरे भारत में एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम (AMSP) को एक पायलट प्रोजेक्ट की तरह शुरू किया है।

आगे की राह

  • पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थों की मांग में वृद्धि करके स्थायी खाद्य प्रणालियों को विकसित करने की आवश्यकता है जिससे पालतू पशुओं पर निर्भरता कम होगी और अधिक स्थान, एंटीबायोटिक्स का कम प्रयोग, स्वस्थ विकास एवं अधिक प्राकृतिक वातावरण के साथ उच्च कल्याणकारी उत्पादन प्रणालियों को अधिक व्यवहार्य बनाने में मदद मिलेगी।
  • खाद्य प्रणाली को अधिक टिकाऊ बनाने और जानवरों एवं मनुष्यों के समग्र स्वास्थ्य में आवश्यक सुधार करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत में माइक्रोबियल रोगजनकों में बहु-दवा प्रतिरोध की घटना के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ लोगों की आनुवंशिक प्रवृत्ति
  2. बीमारियों को ठीक करने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं की गलत खुराक लेना
  3. पशुपालन में एंटीबायोटिक का प्रयोग
  4. कुछ लोगों में कई पुरानी बीमारियाँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न: क्या डॉक्टर के निर्देश के बिना एंटीबायोटिक दवाओं का अति प्रयोग और मुफ्त उपलब्धता भारत में दवा प्रतिरोधी रोगों के उद्भव में योगदान कर सकते हैं? निगरानी एवं नियंत्रण के लिये उपलब्ध तंत्र क्या हैं? इसमें शामिल विभिन्न मुद्दों पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014, मुख्य परीक्षा)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और ब्रिटेन के बीच युवा छात्रों एवं पेशेवरों का आदान-प्रदान

प्रिलिम्स के लिये:

युवा पेशेवरों का आदान-प्रदान, हिंद-प्रशांत, मुक्त व्यापार समझौता (FTA)

मेन्स के लिये:

भारत के हितों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों एवं राजनीति का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और ब्रिटेन ने वर्ष 2023 में ‘यंग प्रोफेशनल्स’ योजना शुरू करने का निर्णय लिया है।

  • ब्रिटेन 18-30 वर्ष आयु वर्ग के 3000 डिग्रीधारक भारतीयों को दो साल तक काम करने का अवसर प्रदान करेगा।
  • यह योजना वर्ष 2023 के प्रारंभ में शुरू होगी जिसमें ब्रिटिश नागरिकों को भी भारत में इसी तरह की सुविधा प्रदान की जाएगी।

भारत-ब्रिटेन साझेदारी का महत्त्व:

  • ब्रिटेन के लिये: बाज़ार में हिस्सेदारी और रक्षा क्षेत्र दोनों के संदर्भ में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्रिटेन के लिये भारत एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार है, जैसा कि वर्ष 2015 में भारत और ब्रिटेन के बीच रक्षा एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा साझेदारी पर हस्ताक्षर द्वारा रेखांकित किया गया था।
    • भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की सफलता ब्रिटेन को उसकी 'ग्लोबल ब्रिटेन' की महत्त्वाकांक्षा को बढ़ावा देगी क्योंकि यूके ब्रेक्ज़िट के बाद से ही यूरोप के बाहर अपने बाज़ारों का वैश्विक विस्तार करने का इच्छुक है।
    • ब्रिटेन एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्रों में विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं में अवसरों का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है।
      • भारत से अच्छे द्विपक्षीय संबंधों के साथ वह इस लक्ष्य को बेहतर ढंग से हासिल करने में सक्षम होगा।
  • भारत के लिये: हिंद प्रशांत में UK एक क्षेत्रीय शक्ति है क्योंकि इसके पास ओमान, सिंगापुर, बहरीन, केन्या और हिंद महासागर क्षेत्र में नौसैनिक सुविधाएँ हैं।
    • यूके (UK) ने भारत में अक्षय ऊर्जा के उपयोग का समर्थन करने के लिये ब्रिटिश अंतर्राष्ट्रीय निवेश निधि के 70 मिलियन अमेरिकी डॉलर की भी पुष्टि की है, जिससे इस क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा बुनियादी ढाँचे के निर्माण एवं सौर ऊर्जा के विकास में मदद मिलेगी।
    • भारत ने मत्स्य पालन, फार्मा और कृषि उत्पादों के लिये बाज़ार तक आसान पहुँच के साथ-साथ श्रम-गहन निर्यात के लिये शुल्क रियायत की भी मांग की है।

इन दोनों देशों के बीच वर्तमान प्रमुख द्विपक्षीय मुद्दे:

  • भारतीय आर्थिक अपराधियों का प्रत्यर्पण:
    • यह मुद्दा भारतीय आर्थिक अपराधियों के प्रत्यर्पण का है जो वर्तमान में ब्रिटेन की शरण में हैं और अपने लाभ के लिये कानूनी प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं।
    • विजय माल्या, नीरव मोदी और ऐसे अन्य अपराधियों ने लंबे समय से ब्रिटिश प्रणाली के तहत शरण ले रखी है, जबकि भारत में उनके खिलाफ मामले हैं, जिनके प्रत्यर्पण की आवश्यकता है।
  • ब्रिटिश और पाकिस्तान के बीच गहरे संबंध :
    • उपमहाद्वीप में लंबे समय तक रहे ब्रिटिश राज की विरासत की बदौलत ब्रिटेन जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान की भूलों के कारण विभाजन करने में सक्षम हुआ।
    • ब्रिटेन में उप-महाद्वीप के एक बड़े मुस्लिम समुदाय की उपस्थिति, विशेष रूप से पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के मीरपुर जैसे क्षेत्रों से वोट बैंक की राजनीति के जाल के अलावा असंगति को बढ़ाती है।
  • श्वेत ब्रिटिश द्वारा गैर-स्वीकृति:
    • श्वेत ब्रिटिश लोगों द्वारा एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उदय की अस्वीकार्यता एक और मुद्दा है।
      • वर्तमान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत ने जीडीपी के मामले में ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है और पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
      • ब्रिटिश साम्राज्य की शाही विरासत के संदर्भ में एक आधुनिक और आत्मविश्वासी भारतीय तथा एक ब्रिटिश औपनिवेशिक भारतीय के बीच कोई अंतर नहीं है

आगे की राह

  • संस्कृति, इतिहास और भाषा के गहन संबंध पहले से ही ब्रिटेन को एक संभावित मज़बूत आधार देते हैं जिसे आधार बनकर भारत के साथ संबंधों को और गहरा किया जा सकता है।
  • नई परिस्थितियों के साथ भारत और ब्रिटेन को यह स्वीकार करना चाहिये कि दोनों को अपने बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक-दूसरे की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष का प्रश्न  

प्रश्न. हाल के दिनों में भारत और ब्रिटेन में न्यायिक प्रणालियाँ एक-दूसरे से अलग-अलग होती दिख रही हैं। दोनों देशों के बीच उनकी न्यायिक प्रथाओं के संदर्भ में अभिसरण एवं विचलन के प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालिये। (2020)

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

वैश्विक अपतटीय पवन गठबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक अपतटीय पवन गठबंधन, अपतटीय पवन ऊर्जा, नेट ज़ीरो

मेन्स के लिये:

भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति और संबंधित पहल

हाल ही में COP27 में वैश्विक अपतटीय पवन गठबंधन के लिये नौ नए देशों ने हस्ताक्षर किये हैं।

  • ये नौ देश हैं: बेल्जियम, कोलंबिया, जर्मनी, आयरलैंड, जापान, नीदरलैंड, नॉर्वे, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका।
  • ऑस्ट्रेलिया ने वैश्विक अपतटीय पवन गठबंधन के साथ हस्ताक्षर करने की घोषणा की है।

वैश्विक अपतटीय पवन गठबंधन (Global Offshore Wind Alliance-GOWA):

  • यह जलवायु और ऊर्जा सुरक्षा संकट से निपटने के लिये अपतटीय पवन को बढ़ाने हेतु स्थापित किया गया था।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (IRENA), डेनमार्क और वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद द्वारा स्थापित किया गया था।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संपूर्ण पवन ऊर्जा क्षेत्र के लिये एक विश्वसनीय और प्रतिनिधि मंच प्रदान करने के लिये GWEC की स्थापना वर्ष 2005 में की गई थी।
  • कई संगठन गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं और अपने संबंधित क्षेत्रों में अपतटीय पवन को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • IRENA और अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) दोनों को उम्मीद है कि वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने तथा शुद्ध शून्य/नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने के लिये अपतटीय पवन क्षमता को वर्ष 2050 तक 2000 GW से अधिक करने की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान में 60 GW से अधिक है।
    • इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिये GOWA का लक्ष्य वर्ष 2030 के अंत तक कम से कम 380 GW की कुल स्थापित क्षमता तक पहुँचने के लिये विकास में तेज़ी लाने में योगदान देना होगा

अपतटीय पव ऊर्जा:

  • परिचय:
    • वर्तमान में पवन ऊर्जा के सामान्यत: दो प्रकार हैं- तटवर्ती पवन फार्म जो भूमि पर स्थित पवन टर्बाइनों के व्यापक रूप में स्थापित हैं और अपतटीय पवन फार्म जो जल निकायों में स्थित प्रतिष्ठान हैं।
    • अपतटीय पवन ऊर्जा का तात्पर्य जल निकायों के अंदर पवन फार्मों की स्थापना से है। वे बिजली उत्पन्न करने के लिये समुद्री हवाओं का उपयोग करते हैं। ये पवन फार्म या तो फिक्स्ड-फाउंडेशन टर्बाइन (Fixed-Foundation Turbines) या फ्लोटिंग विंड टर्बाइन (Floating Wind Turbines) का उपयोग करते हैं।
      • उथले जल में एक फिक्स्ड-फाउंडेशन टर्बाइन निर्मित किया जाता है, जबकि एक फ्लोटिंग विंड टर्बाइन गहरे जल में निर्मित होता है जहाँ इसकी नींव समुद्र तल से लगी होती है। फ्लोटिंग विंड फार्म अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में हैं।
    • अपतटीय पवन फार्म को समुद्र तट से कम-से-कम 200 समुद्री मील (नॉटिकल माइल) दूर और समुद्र में 50 फीट गहरा होना चाहिये।
    • अपतटीय पवन टर्बाइन बिजली उत्पादन करते हैं जो समुद्र तल में दबे केबलों/तारों के माध्यम से तट पर आती है।
  • भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति:
    • मार्च 2021 में एक वर्ष में भारत की पवन बिजली उत्पादन क्षमता 39.2 गीगावाट (GW) तक पहुँच गई है। अगले पांँच वर्षों में और 20 गीगावाट अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त होने की उम्मीद है।
    • वर्ष 2010 और 2020 के बीच पवन उत्पादन की कुल वार्षिक वृद्धि दर 11.39% रही है, जबकि स्थापित क्षमता के मामले में यह दर 8.78% रही है।
    • व्यावसायिक रूप से दोहन योग्य 95% से अधिक संसाधन सात राज्यों में स्थित हैं: आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु।
  • पवन ऊर्जा से संबंधित नीतियाँ:
    • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति: राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, ट्रांसमिशन बुनियादी अवसंरचना तथा भूमि के इष्टतम एवं कुशल उपयोग के लिये बड़े ग्रिड से जुड़े पवन-सौर फोटोवोल्टिक हाइब्रिड सिस्टम को बढ़ावा देने हेतु एक अवसंरचना का निर्माण करना है।
    • राष्‍ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति: राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को अक्तूबर 2015 में भारतीय विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में 7600 किलोमीटर की भारतीय तटरेखा के साथ अपतटीय पवन ऊर्जा विकसित करने के उद्देश्य से अधिसूचित किया गया था।

अपतटीय पवन ऊर्जा के लाभ:

  • जल निकायों पर हवा की गति अधिक और दिशा में सुसंगत होती है। परिणामस्वरूप अपतटीय पवन प्रतिस्थापन क्षमता में अधिक बिजली उत्पन्न करते हैं।
  • ऊर्जा की समान क्षमता का उत्पादन करने के लिये तटवर्ती की तुलना में कम अपतटीय टरबाइन की आवश्यकता होती है।
  • अपतटीय पवन तटवर्ती पवन की तुलना में उच्च CUF (क्षमता उपयोग कारक) होता है। इसलिये अपतटीय पवन ऊर्जा लंबे समय तक परिचालन घंटों की अनुमति देती है।
  • एक पवन टरबाइन का CUF अधिकतम बिजली क्षमताओं द्वारा विभाजित औसत उत्पादन शक्ति के बराबर है।
  • बड़े और लंबे अपतटीय पवन चक्कियों का निर्माण करना संभव है, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा में वृद्धि होगी।
  • इसके अलावा हवा का प्रवाह पहाड़ियों या इमारतों द्वारा प्रतिबंधित नहीं है

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. देश में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से संबंधित वर्तमान स्थिति और प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों का लेखा-जोखा दीजिये। प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED)  पर राष्ट्रीय कार्यक्रम के महत्त्व पर संक्षेप में चर्चा कीजिये। (2016)

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

NIIF की शासी परिषद की 5वीं बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

NIIF, NBFC, PPP परियोजनाएँ, नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन, PM गतिशक्ति, नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर

मेन्स के लिये:

संसाधन जुटाना, वृद्धि और विकास, बुनियादी ढाँचा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वित्त एवं कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री ने राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (NIIF) की शासी परिषद (GC) की 5वीं बैठक की अध्यक्षता की।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

  • इंडिया-जापान फंड:
    • एक समझौता ज्ञापन में NIIF और जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (JBIC) ने NIIF का पहला द्विपक्षीय कोष- "इंडिया-जापान फंड" स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है, जिसमें भारत सरकार (GoI) द्वारा भी योगदान किया जाएगा।
    • इस समझौता ज्ञापन पर हाल ही में 9 नवंबर, 2022 को हस्ताक्षर किये गए थे।
  • NBFCs:
    • शासी परिषद (GC) ने इस बात की सराहना की कि NIIF की बहुमत हिस्सेदारी वाली दो इन्फ्रा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) ने अब तक बिना किसी गैर-निष्पादित ऋण (NPL) के ही 3 वर्षों में अपनी कंबाइंड लोन बुक को 4,200 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 26,000 करोड़ रुपए कर दिया है।
    • शासी परिषद (GC) ने NIIF को निवेश योग्य सार्वजनिक निजी भागीदारी PPP परियोजनाओं की एक पाइपलाइन बनाने हेतु केंद्र और राज्य सरकारों की सहायता करने के लिये अत्‍यंत सक्रियतापूर्वक सलाहकारी गतिविधियाँ शुरू करने का भी निर्देश दिया।
  • विभिन्न योजनाओं के तहत अवसरों की खोज:
  • वित्त मंत्री ने NIIFL टीम को राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचा पाइपलाइन, PM गतिशक्ति और राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचा गलियारे के तहत अवसरों का पता लगाने के लिये भी प्रोत्साहित किया।
    • इन योजनाओं में निवेश योग्य ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड निवेश परियोजनाओं का एक बड़ा पूल शामिल है, तथा उन अवसरों में अधिक से अधिक वाणिज्यिक पूंजी का निवेश करना है।
  • तीन निधियों की स्थिति:
    • GC को वर्तमान में NIIFL द्वारा प्रबंधित 3 फंडों की वर्तमान स्थिति से अवगत कराया गया था :
      • मास्टर फंड: मुख्य रूप से सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली आदि जैसे मुख्य बुनियादी ढाँचेे के क्षेत्रों में परिचालन परिसंपत्तियों में निवेश करता है।
      • फंड ऑफ फंड (FoF): भारत में बुनियादी ढाँचे और संबंधित क्षेत्रों में अनुभवी फंड प्रबंधकों द्वारा प्रबंधित। ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर, मिड-इनकम एंड अफोर्डेबल हाउसिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विसेज़ तथा संबद्ध क्षेत्र फोकस के कुछ क्षेत्र हैं।
      • रणनीतिक अवसर कोष (SoF): एसओएफ की स्थापना भारत में उच्च विकास वाले भविष्य के लिये तैयार व्यवसायों को दीर्घकालिक पूंजी प्रदान करने के उद्देश्य से की गई है। फंड की रणनीति बड़े उद्यमी के नेतृत्व वाले या पेशेवर रूप से प्रबंधित घरेलू चैंपियन और यूनिकॉर्न का पोर्टफोलियो बनाना है।

राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (NIIF):

  • NIIF सरकार समर्थित संस्था है जो देश के बुनियादी ढाँचा क्षेत्र को दीर्घकालिक पूंजी प्रदान करने के लिये स्थापित की गई है।
    • NIIF में भारत सरकार की 49% हिस्सेदारी है, बाकी विदेशी और घरेलू निवेशकों के पास है।
    • केंद्र की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी के साथ NIIF को भारत का अर्द्ध-संप्रभु धन कोष माना जाता है।
  • इसे दिसंबर 2015 में श्रेणी-II वैकल्पिक निवेश कोष के रूप में स्थापित किया गया था।
  • अपने तीन फंडों में यह 4.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक पूंजी का प्रबंधन करता है।
  • इसका रजिस्टर्ड कार्यालय नई दिल्ली में है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न: 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखितव् कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह नीति आयोग का अंग है।
  2. वर्तमान में इसके पास `4,00,000 करोड़ रुपए का कोष है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-नॉर्वे हरित समुद्री क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-नॉर्वे संयुक्त कार्य समूह, नॉर्वे का भूगोल

मेन्स के लिये:

भारत-नॉर्वे संबंध, ग्रीन मैरीटाइम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 8वीं भारत-नॉर्वे समुद्री संयुक्त कार्य समूह की बैठक मुंबई, भारत में आयोजित की गई।

  • नॉर्वे के पास समुद्री क्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञता है और भारत में समुद्री क्षेत्र और प्रशिक्षित नाविकों के बड़े पूल के विकास की बड़ी क्षमता है, जो दोनों देशों को प्राकृतिक पूरक भागीदार बनाते हैं।
  • इससे पहले भारत ने मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 भी तैयार किया था, जिसने क्षमता वृद्धि आदि पर ध्यान केंद्रित करने वाले बंदरगाहों, शिपिंग और जलमार्गों जैसे विभिन्न समुद्री क्षेत्रों में 150 से अधिक पहलों की पहचान की है।

Norway

बैठक की मुख्य चर्चाएँ:

  • भविष्य के शिपिंग के लिये ग्रीन अमोनिया और हाइड्रोजन जैसे वैकल्पिक ईंधन के उपयोग पर चर्चा की गई।
  • नॉर्वेजियन ग्रीन शिपिंग कार्यक्रम सफल रहा है और बैठक में अनुभव विशेषज्ञता साझा की गई थी।
  • भारत और नॉर्वे ग्रीन वॉयज 2050 परियोजना का हिस्सा हैं।
  • दोनों पक्ष साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये इच्छा, समर्पण, साझेदारी और क्षमता निर्माण पर सहमत हुए।
  • भारत जहाज़ों के पुनर्चक्रण के लिये हॉन्गकॉन्ग सम्मेलन का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
    • बैठक में भारत ने अनुरोध किया कि यूरोपीय संघ के नियमों को गैर-यूरोपीय देशों के पुनर्चक्रण में बाधा नहीं बनना चाहिये, जो अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अनुरूप है।
    • नॉर्वे से अनुरोध किया गया था कि वह भारत में जहाज़ों के पुनर्चक्रण को आगे न बढ़ाए क्योंकि भारतीय पुनर्चक्रण करने वालों द्वारा बहुत अधिक निवेश किया गया है।
  • नार्वे का प्रतिनिधिमंडल आईएनएमएआरसीओ, हरित पोत परिवहन और समुदी क्षेत्र के सम्मेलन में भी भाग लेगा।
    • समुद्री शीओ (ShEO) सम्मेलन नॉर्वे द्वारा समर्थित है और समुद्री विविधता एवं स्थिरता पर केंद्रित है, जिसमें समुद्री उद्योग में लैंगिक समानता भी शामिल है।

मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030:

  • परिचय:
    • मैरीटाइम इंडिया विज़न (MIV) 2030 समुद्री क्षेत्र के लिये दस वर्ष का ब्लूप्रिंट है जिसे भारत के प्रधानमंत्री द्वारा नवंबर 2020 में मैरीटाइम इंडिया शिखर सम्मेलन में जारी किया गया था।
    • MIV 2030 को 350 से अधिक सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के हितधारकों के परामर्श से तैयार किया गया है, जिसमें बंदरगाह, शिपयार्ड, अंतर्देशीय जलमार्ग, व्यापार निकाय एवं संघ, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय उद्योग और कानूनी विशेषज्ञ शामिल हैं।
  • थीम:
    • MIV 2030 भारतीय समुद्री क्षेत्र के सभी पहलुओं को कवर करने वाले 10 विषयों पर आधारित है और राष्ट्रीय समुद्री उद्देश्यों को परिभाषित करने एवं पूरा करने का एक व्यापक प्रयास है:
      • सर्वश्रेष्ठ श्रेणी के बंदरगाह बुनियादी ढाँचे का विकास।
      • लॉजिस्टिक्स दक्षता और लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता का आदान-प्रदान करने के लिये ड्राइव एक्सचेंज।
      • प्रौद्योगिकी और नवाचार के माध्यम से लॉजिस्टिक्स दक्षता में वृद्धि।
      • सभी हितधारकों का समर्थन करने के लिये नीति और संस्थागत ढाँचे को मज़बूत करना।
      • जहाज़ निर्माण, मरम्मत और पुनर्चक्रण में वैश्विक हिस्सेदारी बढ़ाना।
      • अंतर्देशीय जलमार्गों के माध्यम से कार्गो और यात्रियों की आवाजाही में वृद्धि।
      • महासागर, तटीय और नदी क्रूज़ क्षेत्र को बढ़ावा देना।
      • भारत के वैश्विक कद और समुद्री सहयोग को बढ़ाना।
      • सुरक्षित, सतत् और हरित समुद्री क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व करना।
      • विश्व स्तर की शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण के साथ शीर्ष नेविगेसन राष्ट्र बनना।
  • मुख्य लक्ष्य 2030:
    • 300 मिलियन टन प्रतिवर्ष (MTPA) कार्गो हैंडलिंग क्षमता वाले तीन प्रमुख बंदरगाह।
    • 75% से अधिक भारतीय कार्गो ट्रांसशिपमेंट भारतीय बंदरगाहों द्वारा संभाला जाता है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी/अन्य ऑपरेटरों द्वारा प्रमुख बंदरगाहों पर 85% से अधिक कार्गो का प्रबंधन किया जाता है।
    • 20 घंटे से कम का औसत पोत टर्नअराउंड समय (कंटेनर)।
    • जहाज़ निर्माण और जहाज़ मरम्मत में शीर्ष 10 में वैश्विक रैंकिंग।
    • 15 लाख से अधिक वार्षिक क्रूज़ यात्री।
    • प्रमुख बंदरगाहों पर नवीकरणीय ऊर्जा का 60% से अधिक हिस्सा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये हिंद महासागर रिम संघ (इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन-IOR_ARC)' के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसकी स्थापना हाल ही में समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (OIL SPILLS) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

अमेज़न वर्षावन

प्रिलिम्स के लिये:

अमेज़न वर्षावन, विश्व वन्यजीव कोष

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, संरक्षण

चर्चा में क्यों?

विश्व वन्यजीव कोष (WWF) की एक नई रिपोर्ट 'लिविंग अमेज़न रिपोर्ट' 2022 के अनुसार, वर्षावन का लगभग 35% हिस्सा या तो पूरी तरह से नष्ट हो गया है या अत्यधिक निम्नीकृत हो गया है।

  • यह रिपोर्ट मिस्र के शर्म अल-शेख में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के पार्टियों के 27वें सम्मेलन (COP27) में जारी की गई थी।
  • रिपोर्ट में अमेज़न बायोम और बेसिन की वर्तमान स्थिति को रेखांकित किया गया है, प्रमुख दबावों व परिवर्तन के कारणों पर संक्षेप में चर्चा हुई तथा एक संरक्षण रणनीति को रेखांकित किया गया है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • अमेज़न वर्षावन के विशाल क्षेत्र जो कार्बन सिंक और ग्रह के फेफड़ों के रूप में काम करते हैं, संकट में हैं।
    • वर्षावन का लगभग 35% या तो पूरी तरह से नष्ट हो गया है या अत्यधिक निम्नीकृत हो गया है, जबकि 18% को अन्य उद्देश्यों के लिये परिवर्तित किया गया है।
  • वनों की कटाई, अग्नि और क्षरण के कारण अमेज़न के वनों को खतरा है।
  • सतही जल समाप्त हो गया है और नदियाँ लगातार सूखती जा रही हैं तथा प्रदूषित हो रही हैं।
    • यह अत्यधिक दबाव बहुत जल्द अमेज़न और ग्रह को अपरिवर्तनीय रूप से क्षति पहुँचाएगाा।
  • आर्थिक गतिविधियाँ, विशेष रूप से व्यापक पशुपालन और कृषि, अवैध गतिविधियाँ एवं खराब नियोजित बुनियादी ढाँचे, इस क्षेत्र को खतरे में डालते हैं तथा पूरे बायोम में वनों की कटाई एवं गिरावट का कारण बनते हैं, जिससे कई क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।
    • अमेज़न में नदियों के किनारे लगभग 600 बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ चल रही हैं।
    • 20 नियोजित सड़क परियोजनाएँ, 400 संचालन या नियोजित बाँध और कई खनन परियोजनाएँ पारा जैसे रसायनों को नदियों में उत्सर्जित कर रही हैं।

सुझाव:

  • अमेज़न की सुरक्षा के लिये रणनीतियों और दृष्टिकोणों के संयोजन की आवश्यकता होती है जो संरक्षण आवश्यकताओं को उन देशों की विकासात्मक आवश्यकताओं के साथ जोड़ते हैं जिनमें यह शामिल है।
  • प्रभावी, एकीकृत परिदृश्य प्रबंधन के लिये रणनीतियों में शामिल हैं:
    • रूपांतरण मुक्त परिदृश्य
    • स्थायी रूप से प्रबंधित वन
    • वैध व्यापार
  • स्थानीय लोगों, स्थानीय समुदायों, महिलाओं और युवाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करना।
    • इन रणनीतियों का उद्देश्य संरक्षित परिदृश्यों का नेटवर्क बनाने के लिये अच्छी तरह से प्रबंधित संरक्षण क्षेत्रों और स्थानीय क्षेत्रों को पूरक बनाना है।
  • अमेज़न बायोम, इसके जंगलों और नदियों के संरक्षण एवं स्थायी प्रबंधन के लिये तीन प्रमुख क्षेत्रों - नीतियों, ज्ञान सृजन तथा संचार में क्रॉस-कटिंग रणनीतियों की भी आवश्यकता है।
  • बायोम को तत्काल प्रभावी नीतियों, अनुसंधान और इसकी वर्तमान स्थिति के बारे में अधिक जागरूकता की आवश्यकता है।

अमेज़न वर्षावन:

  • ये विशाल उष्णकटिबंधीय वर्षावन हैं, जो उत्तरी दक्षिण अमेरिका में अमेज़न नदी और इसकी सहायक नदियों के जल निकासी बेसिन में मौजूद हैं तथा कुल 6,000,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करते हैं।
    • उष्णकटिबंधीय बंद वितान वन होते हैं जो भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में 28 डिग्री के भीतर पाए जाते हैं।
    • यहाँ मौसमी रूप से या पूरे वर्ष में 200 सेमी. से अधिक वर्षा होती है।
    • तापमान समान रूप से उच्च होता है (20 डिग्री सेल्सियस और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच)।
    • इस तरह के वन एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मेक्सिको तथा कई प्रशांत द्वीपों में पाए जाते हैं।
  • ब्राज़ील के कुल क्षेत्रफल का लगभग 40% हिस्सा, उत्तर में गुयाना हाइलैंड्स, पश्चिम में एंडीज़ पर्वत, दक्षिण में ब्राज़ील के केंद्रीय पठार और पूर्व में अटलांटिक महासागर से घिरा है।

Brazil

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही सुमेलित है? (2013)

भौगोलिक विशेषता        क्षेत्र

(a) एबिसिनी पठार :     अरब
(b) एटलस पर्वत :         उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका
(c) गुयाना उच्चभूमि :    दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका
(d) ओकावांगो द्रोणी : पैटागोनिया

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • एबिसिनियन पठार इथियोपिया (अफ्रीका) में समुद्र तल से 1388 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक पठार है।
  • एटलस पर्वत उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका में पर्वतों की एक शृंखला है, जो आमतौर पर दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तक चलती है। यह माघरेब (अरब दुनिया का पश्चिमी क्षेत्र) - मोरक्को, अल्जीरिया और ट्यूनीशिया के देशों की भूगर्भिक सीमा बनाता है।
  • गुयाना हाइलैंड्स उत्तरी दक्षिण अमेरिका का वह क्षेत्र है जहाँ ब्राज़ील, गुयाना और वेनेज़ूएला माउंट रोरिमा में मिलते हैं। यह ओरिनोको तथा अमेज़न नदी घाटियों और गुआना के तटीय तराई क्षेत्रों से घिरा हुआ है।
  • ओकावांगो नदी बेसिन दक्षिणी अफ्रीका में चौथी सबसे लंबी नदी प्रणाली है। यह दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका में पाया जाने वाला एक एंडोरिक बेसिन है। अत: विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोतडाउन टू अर्थ:


जैव विविधता और पर्यावरण

रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल

प्रिलिम्स के लिये:

लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय , IUCN, बटागुर कचुगा, बंगाल रूफ्ड टर्टल।

मेन्स के लिये:

रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल।

चर्चा में क्यों?

भारत ने पनामा में वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) के 19वें सम्मेलन में रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल की रक्षा करने का प्रस्ताव रखा है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत ने वर्तमान परिशिष्ट II से परिशिष्ट I में नदी की प्रजातियों को शामिल करने के लिये वन्यजीवों और वनस्पतियों पर लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय में प्रस्ताव रखा है।
    • CITES द्वारा कवर की जाने वाली प्रजातियों को सुरक्षा की आवश्यकता के अनुसार तीन परिशिष्टों में सूचीबद्ध किया गया है:
      • परिशिष्ट I में विलुप्त होने के खतरे वाली प्रजातियों को शामिल किया गया है।
      • परिशिष्ट II में ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जो विलुप्त के कगार में नहीं हैं (जहाँ व्यापार को नियंत्रित किया जाना चाहिये)।
      • परिशिष्ट III में ऐसी प्रजातियाँ शामिल हैं जो कम-से-कम एक देश में संरक्षित हैं, जिसने व्यापार को नियंत्रित करने में सहायता के लिये अन्य CITES पार्टियों से सुझाव लिया है।
  • CITES के पक्षकारों के 19वें सम्मेलन में जानवरों और पौधों की लगभग छह सौ प्रजातियों के व्यापार संबंधी नियमों पर सख्ती से विचार करने के लिये कहा जा रहा है, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं।

रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल:

  • वैज्ञानिक नाम: बाटागुर कचुगा।
  • सामान्य नाम: बंगाल रूफ टर्टल, रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल।
  • परिचय:
    • रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल भारत के स्थानिक 24 प्रजातियों में से एक है जिसके नर के चेहरे और गर्दन पर लाल, पीले, सफेद एवं नीले जैसे चमकीले रंग उनकी विशेषता है।

red-crown

  • वितरण:
    • यह मीठे पानी में पाए जाने वाले कछुए की प्रजाति है जो नेस्टिंग साइट्स वाली गहरी बहने वाली नदियों में पाई जाती है।
    • रेड क्राउन रूफ्ड टर्टल कछुआ भारत, बांग्लादेश और नेपाल में पाया जाता है।
    • ऐतिहासिक रूप से यह प्रजाति भारत और बांग्लादेश दोनों में गंगा नदी में व्यापक रूप से पाई जाती थी। यह ब्रह्मपुत्र बेसिन में भी पाई जाती है।
    • वर्तमान में भारत में राष्ट्रीय चंबल नदी घड़ियाल अभयारण्य एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहाँ इस प्रजाति की पर्याप्त आबादी है, लेकिन यह संरक्षित क्षेत्र और आवास भी अब खतरे में हैं।
  • खतरा:
    • ये प्रजातियाँ समुद्र तटों पर प्रमुख हाइड्रोलॉजिकल परियोजनाओं और नदी प्रवाह की गतिशीलता  और जल प्रदूषण पर उनके प्रभावों के लिये अतिसंवेदनशील हैं। चूँकि नदी पर और उसके आसपास मानव गतिविधियाँ परेशान करने वाली हैं, मछली पकड़ने के जाल में उलझने से उप-आबादी पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
    • प्रदूषण के कारण आवास का क्षरण और बड़े पैमाने पर विकास गतिविधियों जैसे मानव उपभोग, सिंचाई के लिये पानी निकालने और अपस्ट्रीम बाँधोंं, जलाशयों से अनियमित प्रवाह इन प्रजातियों के लिये मुख्य खतरा हैं।
    • गंगा नदी के किनारे खनन और मौसमी फसलों की वृद्धि नदी के किनारे रेत के पट्टों को मुख्य रूप से प्रभावित कर रही है जो प्रजातियों द्वारा शिकार के लिये उपयोग की जाती हैं।
    • अवैध उपभोग और अवैध अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये जानवर को ओवरहार्वेस्ट करना
    • इसके विलुप्त होने के अन्य कारण है।
      • जंगली जानवरों और पौधों के व्यापार तथा उनके संरक्षण पर काम करने वाले एक वैश्विक गैर-सरकारी संगठन ट्रैफिक द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया है कि 2009-2019 तक भारत में 11,000 से अधिक कछुए और मीठे पानी के कछुए जब्त किये गए हैं।
  • सुरक्षा की स्थिति:

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. भारत के निम्नलिखित जीवों पर विचार कीजिये: (2013)

  1. घड़ियाल
  2. लेदरबैक टर्टल
  3. स्वैंप डियर

उपर्युक्त में से कौन-सा/से संकटापन्न है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: (c)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय विरासत और संस्कृति

बालीयात्रा

प्रिलिम्स के लिये:

बालीयात्रा, महानदी, बंगाल की खाड़ी, कालिदास

मेन्स के लिये:

कलिंग साम्राज्य का दक्षिण पूर्व एशिया के साथ संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, प्रधानमंत्री ने G20 शिखर सम्मेलन के मौके पर बाली में भारतीय प्रवासियों को अपने संबोधन में प्राचीन कलिंग और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच सदियों पुराने संबंधों की स्मृति में कटक में महानदी के तट पर आयोजित वार्षिक बालीयात्रा का उल्लेख किया ।

  • वर्ष 2022 की बालीयात्रा को कागज की सुंदर मूर्तियों के निर्माण हेतु ओरिगेमी की प्रभावशाली उपलब्धि हासिल करने के लिये गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया।

बालीयात्रा:

  • परिचय:
    • बालीयात्रा, शाब्दिक रूप से 'बाली की यात्रा' देश के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है।
    • बालीयात्रा एक सप्ताह तक चलती है जो कार्तिक पूर्णिमा (कार्तिक के महीने में पूर्णिमा की रात) से शुरू होती है।
  • ऐतिहासिक/सांस्कृतिक महत्त्व:
    • यह प्रतिवर्ष प्राचीन कलिंग (आज का ओडिशा), बाली तथा अन्य दक्षिणी और दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्रों जैसे जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, बर्मा (म्याँमार) और सीलोन (श्रीलंका) के बीच 2,000 साल पुराने समुद्री और सांस्कृतिक संबंधों की स्मृति के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है। .
    • इतिहासकारों के अनुसार, कलिंग और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच व्यापार की लोकप्रिय वस्तुओं में काली मिर्च, दालचीनी, इलायची, रेशम, कपूर, सोना और आभूषण शामिल थे।
    • बालीयात्रा उन विशेषज्ञ नाविकों की सरलता और कौशल का जश्न मनाती है जिन्होंने कलिंग को अपने समय के सबसे समृद्ध साम्राज्यों में से एक बनाया।
  • व्यावसायिक महत्त्व:
    • बालीयात्रा का अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तत्त्वों के अलावा एक महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक आयाम है।
      • यह एक ऐसा समय है जब लोग ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से लेकर स्थानीय कारीगर उत्पादों तक सब कुछ तुलनात्मक रूप से कम कीमतों पर खरीदते हैं।
      • ज़िला प्रशासन नीलामी के माध्यम से व्यापारियों को 1,500 से अधिक स्टालों का आवंटन करता है और मेले में 100 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार होने का अनुमान है।

कलिंग का दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़ाव:

  • उत्पत्ति-बंदरगाहों का विकास: कलिंग साम्राज्य (वर्तमान ओडिशा) अपने गौरवशाली समुद्री इतिहास के लिये जाना जाता है। कलिंग की भौगोलिक स्थिति के कारण इस क्षेत्र में 4वीं और 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बंदरगाहों का विकास देखा गया था।
    • कुछ प्रसिद्ध बंदरगाहों, ताम्रलिपती, माणिकपटना, चेलितालो, पालूर और पिथुंडा ने भारत को समुद्र के माध्यम से अन्य देशों के साथ जुड़ने की अनुमति दी। जल्द ही कलिंग के श्रीलंका, जावा, बोर्नियो, सुमात्रा, बाली और बर्मा के साथ व्यापार संबंध स्थापित हुए।
      • बाली ने चार द्वीपों का एक हिस्सा बनाया, जिन्हें सामूहिक रूप से सुवर्णद्वीप कहा जाता था, इसे आज इंडोनेशिया के नाम से जाना जाता है।
  • कलिंग के जहाज़: कलिंग ने 'बोइता' नामक बड़ी नौकाओं का निर्माण किया और इनकी मदद से उसने इंडोनेशियाई द्वीपों के साथ व्यापार किया।
    • बंगाल की खाड़ी को कभी कलिंग सागर के रूप में जाना जाता था क्योंकि यह इन जहाज़ों से घिरा हुआ था।
  • समुद्री मार्गों पर कलिंगं के प्रभुत्व को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि कालिदास ने अपने रघुवंश में कलिंग के राजा को 'समुद्र के भगवान' के रूप में संदर्भित किया था
  • इंडोनेशिया के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान: कलिंग के लोग अक्सर बाली द्वीप के साथ व्यापार करते थे। वस्तुओं के व्यापार ने विचारों और विश्वासों के आदान-प्रदान को भी जन्म दिया।
  • ओडिया व्यापारियों ने बाली में बस्तियों का गठन किया और इसकी संस्कृति एवं नैतिकता को प्रभावित किया जिससे इस क्षेत्र में हिंदू धर्म का विकास हुआ।
    • हिंदू धर्म बाली अवधारणाओं के साथ अच्छी तरह से मिश्रित है और आज भी, 'बाली हिंदू धर्म' की अधिकांश आबादी में प्रचलित है।
      • वे शिव, विष्णु, गणेश और ब्रह्मा जैसे विभिन्न हिंदू देवताओं की पूजा करते हैं।
      • शिव को पीठासीन देवता माना जाता था और बुद्ध के बड़े भाई माने जाते थे।
    • बाली के लोग शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा जैसे हिंदू त्योहार भी मनाते हैं।
      • बाली में मनाया जाने वाला 'मसकापन के तुकड़' उत्सव ओडिशा में बालीयात्रा उत्सव के समान है। दोनों को उनके पूर्वजों की याद में मनाया जाता है।

BURMA

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बन रिमूवल मैकेनिज़्म हेतु अनुशंसाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

कार्बन क्रेडिट, पेरिस समझौता, ऊर्जा संरक्षण।

मेन्स के लिये:

कार्बन रिमूवल मैकेनिज़्म और संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

COP 27  में संयुक्त राष्ट्र के तहत कार्बन-व्यापार तंत्र के लिये कार्बन रिमूवल को शामिल करने की सिफारिशों पर चिंता व्यक्त की गई।

  • नागरिक समाज समूहों के अनुसार, कार्बन रिमूवल पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री लक्ष्य के अनुरूप नहीं है।

पेरिस समझौते के संबंधित प्रावधान:

  • अनुच्छेद 2.1:
    • वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के अनुच्छेद 2.1 का उद्देश्य बढ़ते तापमान को "पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे" रखना है, जबकि 1.5 डिग्री सेल्सियस की अधिक महत्त्वाकांक्षी सीमा की ओर "प्रयास करना" है।
  • अनुच्छेद 6.4:
    • यह देशों को स्वेच्छा से अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये सहयोग करने की अनुमति देने हेतु संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत एक तंत्र स्थापित करता है।
      • एक देश जिसने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके क्रेडिट अर्जित किया है, वह अपने जलवायु लक्ष्य को पूरा करने में मदद के लिये उन्हें दूसरे देश को बेच सकता है।
    • अनुच्छेद 6.4 के तहत एक पर्यवेक्षी निकाय का भी गठन किया गया है जिसे कार्बन रिमूवल पर सिफारिशें करने का काम सौंपा गया है, जिसमें रिपोर्टिंग, निगरानी और प्रौद्योगिकी तथा सामाजिक प्रभावों पर चिंताओं को दूर करना शामिल है।

कार्बन निष्कासन

  • परिचय:
    • 'कार्बन निष्कासन' का अर्थ है वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाना। यह भूमि-आधारित हो सकता है जैसे वनीकरण या पुनर्वनीकरण, प्रत्यक्ष वायु अवशोषण (जहाँ बड़ी मशीनें CO2 को अवशोषित करती हैं), बिना जुताई वाली कृषि और अन्य प्रथाओं का उपयोग करके मृदा कार्बन पृथक्करण, जैव ईंधन से कार्बन को अलग करना आदि।
  • महासागर-आधारित निष्कासन:
    • महासागरों में प्राकृतिक रूप से कार्बन डाइऑक्साइड के भंडारण की विशाल क्षमता है। यह वातावरण से कार्बन निष्कासन की त्वरित प्रक्रिया है।
      • आयरन जैसे पोषक तत्त्व फाइटोप्लैंकटन के बीच प्रकाश संश्लेषण को बढ़ा सकते हैं, जो तब कार्बन को अपनी प्रक्रिया में शामिल करते हैं। शेष अखाद्य प्लैंकटन नीचे तक डूब जाते हैं और कार्बन को नीचे दबा देते हैं।
    • कुछ महासागर आधारित निष्कासनों में शामिल हैं, समुद्र में लोहा (समुद्री उर्वरक ) फैलाकर CO2 को पंप करना या पोषक तत्त्वों से भरपूर जल को गहराई से सतह तक पंप करना और कार्बन को समुद्र की गहराई तक ले जाने के लिये सतह के जल को नीचे की ओर पंप करना।
  • कार्बन निष्कासन के संदर्भ में पर्यवेक्षी निकाय की सिफारिशें:
    • पर्यवेक्षी निकाय ने भूमि-आधारित, और इंजीनियरिंग-आधारित दृष्टिकोणों के तहत कार्यप्रणालियों का प्रस्ताव दिया है, जैसे 'निष्कासन' के लिये प्रत्यक्ष वायु का अवशोषण और समुद्र में उर्वरीकरण।

कार्बन निष्कासन  के समक्ष चुनौतियाँ:

  • पर्यवेक्षी निकाय के अनुच्छेद 6.4 द्वारा प्रदान की गई सिफारिशें स्वदेशी लोगों के अधिकारों के उल्लंघन का कारण बन सकती हैं।
    • खराब तरीके से लागू वनीकरण या अन्य दृष्टिकोण स्वदेशी लोगों की स्थानीय आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
  • सिफारिशें प्रत्येक गतिविधि की आवश्यकताओं, जोखिमों और निहितार्थों सहित हटाने के प्रकारों के बीच अंतर नहीं करती हैं।
  • ये सिफारिशें "संभावित रूप से जियोइंजीनियरिंग योजनाओं के लिये दरवाज़े खोल सकती हैं जो पेरिस समझौते की अखंडता को कम करने तथा दुनिया को 1.5 डिग्री सेल्सियस से आगे बढ़ने के रास्ते पर स्थापित करने का जोखिम उठाती हैं।
  • भूमि-आधारित निष्कासन के आधार पर क्रेडिट जारी करना एक समस्या है क्योंकि ये पारिस्थितिक तंत्र स्थायी नहीं हैं। उदाहरण के लिये जलवायु परिवर्तन से प्रेरित जंगल की आग से उनका सफाया हो सकता है।
  • गहरे महासागरों में अधिक CO2 डंप करने के प्रभाव ज्ञात नहीं हैं और लोहे के निषेचन के साथ अधिक कार्बन और पोषक तत्त्वों को गहरे समुद्र में ले जाया जाता है, जो भविष्य में एक खतरा हो सकता है।
  • समुद्र की सतह के नीचे समुद्री जीवों द्वारा कार्बन को तोड़ा जाएगा जिस कारण गहरे समुद्र अधिक अम्लीय हो सकते हैं।

सुझाव:

  • CoP 27 के वैज्ञानिकों ने समुद्र आधारित कार्बन निष्कासन पर नैतिक अनुसंधान के लिये एक आचार संहिता का आह्वान किया है।
  • यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कार्बन बाज़ार को सही तरीके से संगठित किया जाए जिससे स्थानिक आबादी के साथ एक न्यूनतम लाभ-साझा किया जा सके।
  • कार्बन बाज़ारों में समावेशिता महत्त्वपूर्ण है; कुछ स्वदेशी लोग अपनी सतत् विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने हेतु वित्तीय प्रोत्साहन प्राप्त करने के लिये बाज़ार तंत्र में भाग लेना चाहते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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