डेली न्यूज़ (18 Jul, 2020)



पूर्वोत्तर राज्यों में परिसीमन प्रक्रिया में नई बाधाएँ

प्रीलिम्स के लिये:

परिसीमन आयोग, चुनाव आयोग

मेन्स के लिये:

परिसीमन और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम से संबंधित प्रश्न 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में चुनाव आयोग से जुड़े एक पूर्व कानूनी सलाहकार ने पूर्वोत्तर के चार राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, असम और नगालैंड के लिये परिसीमन आयोग गठित किये जाने के केंद्र सरकार के निर्णय को असंवैधानिक और अवैध बताया है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि देश में पिछले परिसीमन (वर्ष 2002-08) के दौरान पूर्वोत्तर के इन चार राज्यों को परिसीमन की प्रक्रिया से बाहर रखा गया था।
  • मार्च, 2020 में केंद्र सरकार द्वारा पूर्वोत्तर के चार राज्यों और जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा सीटों के निर्धारण के लिये परिसीमन आयोग की स्थापना की गई थी।
  • उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई को इस आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। 
  • चुनाव आयोग के पूर्व कानूनी सलाहकार के अनुसार, ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950’ (Public Representation Act, 1950) की धारा 8A में स्पष्ट किया गया है कि पूर्वोत्तर के चार राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर या नागालैंड) में परिसीमन की प्रक्रिया चुनाव आयोग द्वारा संचालित की जाएगी।
  • अतः परिसीमन आयोग द्वारा इन चार राज्यों में परिसीमन की प्रक्रिया न्यायालय में अमान्य घोषित कर दी जाएगी, जिससे भारी सार्वजनिक धन की बर्बादी होगी। 

परिसीमन प्रक्रिया से बाहर रखने का कारण?

  • पिछली परिसीमन प्रक्रिया (2002-08) के दौरान अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैंड के कई संगठनों ने परिसीमन प्रक्रिया के दौरान वर्ष 2001 की जनगणना को आधार के रूप में प्रयोग किये जाने को गुवाहाटी उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
  • असम से एक सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल ने तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री से मिलकर परिसीमन की प्रक्रिया को स्थगित करने की मांग की, क्योंकि उस समय तक ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (National Register of Citizens - NRC) के आँकड़ों को अद्यतन/अपडेट नहीं किया गया था।

परिसीमन अधिनियम, 2002 में संशोधन: 

  • 14 जनवरी, 2008 को ‘परिसीमन अधिनियम, 2002’ में संशोधन करते हुए राष्ट्रपति को इन राज्यों में परिसीमन विलंबित करने की शक्ति प्रदान की गई।   
  • 8 फरवरी, 2008 राष्ट्रपति द्वारा इन चार राज्यों में परिसीमन स्थगित करने का आदेश जारी किया गया।
  • इसके पश्चात संसद द्वारा इन चार राज्यों में परिसीमन के लिये अलग आयोग की स्थापना करने के स्थान पर चुनाव आयोग (Election commission) के माध्यम से परिसीमन प्रक्रिया को पूरा करने का निर्णय लिया गया। 

  • इस विचार को वैधानिक मान्यता देने के लिये ‘जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950’ में ‘धारा-8A’ को जोड़ दिया गया।  

    • संसद का यह फैसला इस तथ्य से प्रेरित था कि पूर्व में भी निर्वाचन आयोग को  निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं के निर्धारण का अधिकार दिया गया था।  

    • उदाहरण के लिये- वर्ष 1991-92 में दिल्ली में 70 विधानसभा सीटों का परिसीमन और वर्ष 2000 में उत्तराखंड में 70 विधानसभा सीटों का परिसीमन।  

निर्वाचन सीटों की संख्या पर परिसीमन का प्रभाव:   

  • वर्ष 2002 में संविधान के 84वें संशोधन के माध्यम से परिसीमन के तहत वर्ष 2026 तक किसी भी राज्य में लोकसभा और विधान सभा निर्वाचन सीटों की संख्या में परिवर्तन किये जाने पर रोक लगा दी गई थी। 
  • वस्तुतः परिसीमन के पश्चात भी पूर्वोत्तर के चार राज्यों में निर्वाचन सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं होगा। 
  • प्रस्तावित परिसीमन प्रक्रिया के तहत राज्यों में सिर्फ निर्वाचन सीटों की सीमाओं और संबंधित राज्य में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति की आरक्षित सीटों को पुनः निर्धारित किया जा सकता है।

परिसीमन (Delimitation): 

  • परिसीमन से तात्पर्य किसी राज्य में समय के साथ जनसंख्या में हुए बदलाव के अनुरूप  विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है।

उद्देश्य:  

  • परिसीमन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के समान खंडों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करना है।
  • अनुसूचित वर्ग के लोगों के हितों की रक्षा के लिये आरक्षित सीटों का निर्धारण भी परिसीमन की प्रक्रिया के तहत ही किया जाता है।
  • परिसीमन की प्रक्रिया में नवीनतम जनगणना के आँकड़ों का प्रयोग किया जाता है। 

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission):

  • परिसीमन आयोग को सीमा आयोग (Boundary Commission) के नाम से भी जाना जाता है। 
  • प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है। 
  • परिसीमन अधिनियम के लागू होने के बाद केंद्र सरकार  द्वारा परिसीमन आयोग की नियुक्ति की जाती है और यह संस्था/निकाय निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर काम करती है।

परिसीमन आयोग की संरचना: 

  • सामन्यतः परिसीमन आयोग की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
  • इसके साथ ही इस आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और संबंधित राज्य के निर्वाचन आयुक्त भी शामिल होते हैं।

कार्य: 

  • जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का निर्धारण करना।
  • अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोगों की संख्या के आधार पर आरक्षित सीटों का निर्धारण किया जाता है। 
    • देश की स्वतंत्रता के पश्चात पहली बार परिसीमन की प्रक्रिया वर्ष 1950-51 में निर्वाचन आयोग के सहयोग से राष्ट्रपति द्वारा संपन्न कराई गई थी। 
    • वर्ष 1952 में परिसीमन अधिनियम के लागू होने के बाद वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोग के द्वारा देश में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी की गई।
    • वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया।   

स्रोत:  द इंडियन एक्सप्रेस


हरियाणा की समय पूर्व रिहाई संबंधी नीति

प्रीलिम्स के लिये

CrPC की धारा 433-A, अनुच्छेद 72, अनुच्छेद 161 

मेन्स के लिये 

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान की शक्तियों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने समय पूर्व रिहाई से संबंधित हरियाणा सरकार की नीति की वैधता के विषय को एक बड़ी खंडपीठ को हस्तांतरित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2019 में संस्थापित हरियाणा सरकार की नीति के अनुसार, हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए पुरुष कैदियों को 75 वर्ष की आयु होने और कम-से-कम 8 वर्ष की सज़ा पूरी करने के पश्चात् रिहा कर कर दिया जाएगा।
  • इससे पूर्व न्यायालय ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर अपनी नीति के संबंध में स्पष्टीकरण देने के लिये कहा था।

विवाद

  • गौरतलब है कि न्यायालय एक हत्या के दोषी (आजीवन कारावास की सज़ा) के एक मामले पर सुनवाई कर रहा था, जो कि राज्य द्वारा गठित एक क्षमा नीति (Remission Policy) के लागू होने के पश्चात् 8 वर्ष की सज़ा पूरी होने पर रिहा हो गया था।
  • अब न्यायालय की बड़ी खंडपीठ इस तथ्य की जाँच करेगी कि हरियाणा सरकार की यह नीति आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 433-A के विपरीत है अथवा नहीं।
    • उल्लेखनीय है कि आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 433-A के अनुसार, यदि किसी दोषी को उम्र कैद की सज़ा हुई है तो उसे कारावास से तब तक रिहा नहीं किया जा सकता है, जब तक वह कम-से-कम 14 वर्ष की सज़ा पूरी न कर ले।
    • इस प्रकार हरियाणा सरकार द्वारा बनाई गई नीति स्पष्ट तौर पर CrPC की धारा 433-A का उल्लंघन करती है।
  • इसके अलावा इस नीति का प्रयोग करते हुए मामले से संबंधित कोई भी तथ्य अथवा सामग्री राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई, इस प्रकार राज्यपाल को अपराध की गंभीरता, अपराध करने का तरीका और समाज पर इसके प्रभाव जैसे पहलुओं पर विचार करने का अवसर नहीं मिला, जबकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद-161 राज्य के राज्यपाल को ही क्षमादान की शक्ति प्रदान करता है।
    • इस प्रकार हरियाणा सरकार की क्षमा नीति (Remission Policy) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 का भी उल्लंघन करती है।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और अनुच्छेद 161 के तहत भारतीय राष्ट्रपति और राज्य के राज्यपाल को अपराध के लिये दोषी करार दिये गए व्यक्ति को क्षमादान देने अर्थात् दंडादेश का निलंबन, प्राणदंड स्थगन, राहत और माफी प्रदान करने का अधिकार दिया गया है।
  • गौरतलब है कि राष्ट्रपति को संघीय विधि के विरुद्ध दंडित व्यक्ति के मामले में, सैन्य न्यायालय द्वारा दंडित व्यक्ति के मामले में और मृत्यदंड पाए हुए व्यक्ति के मामले में क्षमादान देने का अधिकार है।
  • वहीं राज्य के राज्यपाल को दंडादेश को निलंबित करने, दंड अवधि को कम करने एवं दंड का स्वरूप बदलने का अधिकार प्राप्त है।
  • ध्यातव्य है कि क्षमादान का उद्देश्य किसी निर्दोष व्यक्ति को न्यायालय की गलती के कारण दंडित होने से बचाना है।

स्रोत:  इंडियन एक्सप्रेस


अमेरिका-भारत रणनीति ऊर्जा भागीदारी

प्रीलिम्स के लिये:

अमेरिका-भारत रणनीति ऊर्जा भागीदारी, AsiaEDGE पहल, सोलर डेकाथलॉन® इंडिया, RAISE पहल

मेन्स के लिये:

अमेरिका-भारत रणनीति ऊर्जा भागीदारी

चर्चा में क्यों?

हाल ही अमेरिकी ऊर्जा सचिव और भारत के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री द्वारा 'अमेरिका-भारत रणनीतिक ऊर्जा भागीदारी' (Strategic Energy Partnership- SEP) की एक आभासी (Virtual) बैठक की सह-अध्यक्षता की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • इस आभासी बैठक के आयोजन का मुख्य उद्देश्य; दोनों देशों के बीच ऊर्जा सुरक्षा प्रगति की समीक्षा करना, प्रमुख उपलब्धियों पर प्रकाश डालना और सहयोग के नवीन क्षेत्रों में प्राथमिकताओं का निर्धारण करना था।
  • अमेरिका-भारत के द्विपक्षीय संबंधों में ऊर्जा के रणनीतिक महत्त्व को मान्यता देते हुए  अप्रैल 2018 में रणनीतिक ऊर्जा भागीदारी (SEP) को स्थापित किया गया। 
  • SEP की स्थापना का उद्देश्य दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक ऊर्जा साझेदारी का निर्माण करना तथा सरकार-से-सरकार के बीच सहयोग एवं उद्योगों के बीच बेहतर जुड़ाव की दिशा में मज़बूत मंच का निर्माण करना था।

India-America

सहयोग के चार प्राथमिक स्तंभ

(Four Primary Pillars of Cooperation):

  • अमेरिका-भारत रणनीतिक ऊर्जा भागीदारी में सहयोग के चार प्राथमिक स्तंभ का निर्धारण किया गया है: 
    • पॉवर और ऊर्जा दक्षता;
    • तेल और गैस;
    • नवीकरणीय ऊर्जा;
    • सतत् विकास।
  • इन चार स्तंभों के माध्यम से दोनों देश स्वच्छ, सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा की उपलब्धता, पावर ग्रिड और वितरण का आधुनिकीकरण करने, पर्यावरण प्रदर्शन में सुधार जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करते हैं।

SEP के तहत उपलब्धियाँ और प्राथमिकताएँ:

पॉवर और ऊर्जा दक्षता:

पॉवर सिस्टम का आधुनिकीकरण: 

  • दोनों देश स्मार्ट ग्रिड में नई तकनीकों के एकीकरण पर सहयोग कर रहे हैं जैसे विद्युत वितरण क्षेत्र आधुनिकीकरण, स्मार्ट मीटरों की तैनाती आदि।

'उन्नत स्वच्छ ऊर्जा-अनुसंधान के लिये भागीदारी' (PACE-R):

  • दोनों देश 'उन्नत स्वच्छ ऊर्जा-अनुसंधान के लिये भागीदारी' (Partnership to Advance Clean Energy-Research- PACE-R) के माध्यम से विद्युत ग्रिड के लचीलापन और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये संयुक्त अनुसंधान और विकास (R&D) का नेतृत्व कर रहे हैं।

सुपर क्रिटिकल CO2 (sCO2) विद्युत चक्र और कार्बन भंडारण:

  • sCO2 कार्बन डाइऑक्साइड की एक तरल अवस्था है जिसके लिये क्रिटिकल ताप और दाब का होना महत्त्वपूर्ण होता है। 
  • सुपर क्रिटिकल CO2 (sCO2) बिजली चक्रों और कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (Carbon Capture, Utilization and Storage- CCUS) सहित विद्युत उत्पादन अनुसंधान के नवीन क्षेत्रों में सहयोग की शुरुआत की गई।

स्मार्ट ग्रिड नॉलेज सेंटर:

  • स्मार्ट ग्रिड के लिये निर्माण के लिये 'ग्लोबल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' के रूप में' भारत में ‘स्मार्ट ग्रिड नॉलेज सेंटर’ की स्थापना पर सहमति बनी है।

RAISE पहल:

  • ‘यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट’ (USAID) और 'ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड' (EESL) द्वारा वायु गुणवत्ता में सुधार के लिये RAISE (Retrofit of Air Conditioning to Improve Air Quality for Safety and Efficiency) पहल की शुरुआत की गई है। 

तेल और गैस;

रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार:

  • ‘रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार' (Strategic Petroleum Reserves) के क्षेत्र में सहयोग के लिये समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding- MOU) पर हस्ताक्षर।
  • अमरीका के रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों में भारत के तेल भंडारण की संभावना पर भी चर्चा की गई।

हाइड्रोजन टास्क फोर्स:

  • अक्षय ऊर्जा और जीवाश्म ईंधन स्रोतों से हाइड्रोजन का उत्पादन करने में सहायक प्रौद्योगिकियों के विकास के लिये ‘हाइड्रोजन टास्क फोर्स का गठन। 

नवीकरणीय ऊर्जा:

'सोलर डेकाथलॉन® इंडिया':

  • वर्ष 2021 में भारत के पहले 'सोलर डेकाथलॉन® इंडिया' (Solar Decathlon® India) पर सहयोग के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर। 

स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी:

  • उन्नत स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विकास के लिये संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रमों पर सहमति बनी है। 
  • सतत् जैव ईंधन (मुख्यत: बायोइथेनॉल) के उत्पादन और उपयोग पर संयुक्त गतिविधियों और सूचना विनिमय के माध्यम से सहयोग पर सहमति व्यक्त की है।

AsiaEDGE पहल: 

  • SEP के माध्यम से ‘AsiaEDGE पहल’ में भी सहयोग किया जाता है। AsiaEDGE पहल  भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक मज़बूत ऊर्जा भागीदार के रूप में भारत को मान्यता प्रदान करता है।
  • AsiaEDGE (ऊर्जा के माध्यम से विकास और वृद्धि को बढ़ाना); अमेरिका द्वारा प्रारंभ एक पहल है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और बढ़ती समृद्धि को सुनिश्चित करने के लिये मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक का समर्थन करती है।

सतत् विकास:

  • दोनों देश ऊर्जा डेटा प्रबंधन; ऊर्जा मॉडलिंग और कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों के संवर्द्धन में क्षमता निर्माण की दिशा में मिलकर कार्य कर रहे हैं।

भारत एनर्जी मॉडलिंग फोरम:

  • इस दिशा में USAID और नीति आयोग ने मिलकर 'भारत एनर्जी मॉडलिंग फोरम' (India Energy Modeling Forum) का शुभारंभ किया।

ऊर्जा में दक्षिण एशिया महिला प्लेटफ़ॉर्म:

  • USAID ने पॉवर सेक्टर पर केंद्रित ‘ऊर्जा में दक्षिण एशिया महिला’ (South Asia Women in Energy- SAWIE) प्लेटफॉर्म लॉन्च किया। भारत-अमेरिका दोनों देश मिलकर तकनीकी स्तंभों में लिंग-केंद्रित गतिविधियों को शामिल करने के लिये कार्य कर रहे हैं।

निष्कर्ष:

  • वर्तमान में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों के कारण भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये न केवल अपने ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण अपितु ऊर्जा के आयात के विविधीकरण पर भी बल दे रहा है। अमेरिका-भारत रणनीति ऊर्जा भागीदारी न केवल बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों से साम्यता रखती है अपितु भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।    

स्रोत: पीआईबी


काज़ीरंगा नेशनल पार्क और असम की बाढ़

प्रीलिम्स के लिये

काज़ीरंगा नेशनल पार्क की अवस्थिति

मेन्स के लिये 

काज़ीरंगा के पारिस्थितिकी तंत्र में बाढ़ की भूमिका

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में असम एक भयंकर बाढ़ का सामना कर रहा है, जिससे राज्य में भारी पैमाने पर नुकसान हुआ है। आँकड़ों के अनुसार, इस दौरान अब तक कुल 73 लोगों की मृत्यु हो चुकी है और राज्य के लगभग 40 लाख लोग इससे प्रभावित हुए हैं। अनुमान के अनुसार, वर्तमान में काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व का लगभग 85 फीसदी हिस्सा जलमग्न है। 

प्रमुख बिंदु

  • असम की इस भयावह बाढ़ से काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व में कुल 125 जानवरों को सुरक्षित बचाया जा चुका है, जबकि इस दौरान कुल 86 जानवरों की मृत्यु हो गई है, जिसमें गैंडे, हिरन और जंगली सूअर आदि शामिल हैं।
  • हालाँकि कई विशेषज्ञ असम में आने वाली वार्षिक बाढ़ को काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व के अस्तित्त्व के लिये आवश्यक मानते हैं।

काज़ीरंगा के पारिस्थितिकी तंत्र में बाढ़ की भूमिका

  • गौरतलब है कि असम पारंपरिक रूप से एक बाढ़ प्रवण (Flood Prone)  क्षेत्र है, और ब्रह्मपुत्र नदी तथा कार्बी आंगलोंग (Karbi Anglong) पहाड़ियों के बीच स्थित काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व भी इसका अपवाद नहीं है।
  • विशेषज्ञों के बीच यह आम सहमति है कि काज़ीरंगा और उसके पारिस्थितिकी तंत्र के लिये बाढ़ काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • ध्यातव्य है कि काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व का पारिस्थितिकी तंत्र एक नदी आधारित पारिस्थितिकी तंत्र है, न कि ठोस भू-भाग आधारित पारिस्थितिकी तंत्र, जिसके कारण यह पानी के बिना जीवित नहीं रह सकता है।
  • बाढ़ की पुनःपूर्ति (Replenish) वाली प्रकृति काज़ीरंगा के जल निकायों को फिर से भरने और इसके परिदृश्य को बनाए रखने में मदद करती है, जो कि आर्द्रभूमि (Wetlands), घास के मैदान और अर्द्ध-सदाबहार जंगलों का मिश्रण है।
  • गौरतलब है कि बाढ़ का पानी मछलियों के प्रजनन में भी काफी महत्त्वपूर्ण होता है। इन्ही मछलियों को पानी ब्रह्मपुत्र नदी की ओर ले जाता है, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि काजीरंगा, ब्रह्मपुत्र नदी को मछलियों की आपूर्ति भी करता है।
  • बाढ़ का पानी इस क्षेत्र में अवांछित पौधों जैसे-जलकुंभी (Water Hyacinth) आदि से छुटकारा पाने में भी मदद करता है।
  • काजीरंगा नेशनल पार्क के वन क्षेत्र में भारतीय गैंडों (Indian Rhinoceros) की सबसे अधिक आबादी निवास करती है, ऐसे में इस क्षेत्र में घास के मैदानों को बनाए रखना काफी महत्त्वपूर्ण है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इस क्षेत्र में बाढ़ न आए तो यह एक वुडलैंड (Woodland) बन जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त कई विशेषज्ञ क्षेत्र में आने वाली इन बाढ़ों को प्राकृतिक चयन का एक तरीका भी मानते हैं, अक्सर जानवरों की एक बड़ी संख्या विशेष तौर पर वृद्ध और कमज़ोर जानवर बाढ़ का सामना नहीं कर पाते और उनकी मृत्यु हो जाती है, जबकि ताकतवर और युवा जानवर ही बाढ़ से बच पाते हैं।

काज़ीरंगा: समस्या के रूप में बाढ़ 

  • काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व में कार्यरत विशेषज्ञों के अनुसार, पहले इस तरह की भयानक बाढ़ 10 वर्षों में एक बार आती थी, जबकि अब इस तरह की बाढ़ प्रत्येक 2 वर्ष में एक बार आ जाती है, जिससे इस क्षेत्र को व्यापक पैमाने पर नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।
  • अनुमान के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और निर्वनीकरण जैसे कारकों के कारण इस क्षेत्र में बाढ़ तेज़ी से विनाशकारी होती जाएगी।
  • वर्ष 2018 को छोड़कर, वर्ष 2016 से वर्ष 2020 के बीच आई सभी बाढ़ें विनाशकारी और भयानक प्रकृति की थीं, अर्थात इनमें काज़ीरंगा नेशनल पार्क और टाइगर रिज़र्व का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा जलमग्न हो गया था, इन बाढ़ों के कारण सैकड़ों जानवरों की मृत्यु हो गई थी और हज़ारों जानवर घायल हो गए थे।
  • यद्यपि पशु प्राकृतिक रूप से स्वयं को बाढ़ के अनुकूल ढाल लेते हैं, किंतु जब पानी एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाता है, तो जानवरों को कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों में सुरक्षित स्थान की ओर जाना पड़ता है। 
    • गौरतलब है कि पहले काज़ीरंगा नेशनल पार्क से कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों पर जाना काफी आसान था, किंतु अब इस कार्य के लिये जानवरों को राष्ट्रीय राजमार्ग 37 (NH-37) को पार करना पड़ता है, जिसके कारण कई बार जानवर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।
  • जानकारों के अनुसार, इस क्षेत्र में कुल 9 वन्यजीव गलियारे भी हैं, किंतु वे सदैव भारी यातायात के कारण बंद रहते हैं। 
  • नतीजतन, पार्क से बाहर निकलने वाले जानवरों की या तो राष्ट्रीय राजमार्ग पर तेज रफ्तार वाहनों के कारण मृत्यु हो जाती है या फिर शिकारी उनकी भेद्यता का लाभ उठाकर उन्हें मार देते हैं।
    • हालाँकि बीते कुछ वर्षों में सतर्क निगरानी के कारण जानवरों की मृत्यु की संख्या में कमी आई है। 

आस-पास के गाँवों पर बाढ़ का प्रभाव

  • अनुमान के अनुसार, असम की बाढ़ से काज़ीरंगा नेशनल पार्क के दक्षिणी छोर पर स्थित लगभग 75 में से 25 गाँव मौजूदा बाढ़ से काफी अधिक प्रभावित हुए हैं।
  • अक्सर बाढ़ के कारण जानवर अपना रास्ता भटकर मानवीय क्षेत्र में पहुँच जाते हैं, जिसके कारण पशु-मानव संघर्ष में वृद्धि होती है।

काज़ीरंगा में बाढ़ से निपटने के उपाय

  • अक्सर बाढ़ आने से लगभग एक माह पूर्व ही बाढ़ से निपटने की तैयारी शुरू हो जाती है, राज्य के अधिकारी केंद्रीय जल आयोग से प्राप्त अपडेट का ट्रैक रखते हैं और अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र सहायक नदियों के जल स्तर की निगरानी करते हैं।
  • बाढ़ आने की स्थिति में इस क्षेत्र का प्रशासन, पार्क प्राधिकरण, गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और स्थानीय समुदाय बाढ़ से निपटने की स्थिति में मिलकर कार्य करते हैं।
  • इसके अलावा बाढ़ के दौरान किसी भी प्रकार के रोग के प्रकोप से बचने के लिये प्रत्येक वर्ष टीकाकरण अभियान भी आयोजित किया जाता है।
  • इस क्षेत्र में समय-समय पर शिकार करने और वन्यजीवों को नुकसान पहुँचाने के संबंध में जागरुकता पैदा करने के लिये शिविरों का आयोजन किया जाता है।
  • साथ ही इस क्षेत्र में जब बाढ़ आती है तो राष्ट्रीय राजमार्ग-37 पर धारा 144 लागू कर दी जाती है और गतिसीमा (Speed Limits) जैसे नियम लागू कर दिये जाते हैं। 

आगे की राह

  • विशेषज्ञ मानते हैं कि इस क्षेत्र में जानवरों की रक्षा के लिये पशु गलियारों को सुरक्षित करने और कार्बी आंगलोंग (Karbi Anglong) पहाड़ियों में आवागमन के लिये एक सुरक्षित मार्ग बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • अप्रैल 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने पार्क की दक्षिणी सीमा और काज़ीरंगा नेशनल पार्क से बहने वाली सभी नदियों के आस-पास सभी प्रकार के खनन और संबंधित गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था।

स्रोत:  इंडियन एक्सप्रेस


बासमती चावल को GI टैग देने की मांग

प्रीलिम्स के लिये:

 GI टैग, अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ, APEDA, WTO, IPR से संबंधित मुद्दे 

मेन्स के लिये

भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) या ‘जीआई टैग’ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  मध्य प्रदेश  सरकार द्वारा केंद्र सरकार से राज्य के 13 ज़िलों में उत्पादित बासमती चावल के लिये भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) या ‘जीआई टैग’ (GI Tag) प्राप्त करने के बढ़ते दबाव के बाद ‘अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ’ (All India Rice Exporters’ Association- AIREA) ने केंद्र सरकार से बासमती चावल की प्रतिष्ठा को संरक्षित और सुरक्षित करने की मांग की है।

प्रमुख बिंदु:  

  • भारत के अतिरिक्त विश्व के किसी भी अन्य देश (पाकिस्तान में 18 ज़िलों को छोड़कर) में बासमती चावल का उत्पादन नहीं किया जाता है।   
  • AIREA के अनुसार,  यदि  मध्य प्रदेश  को बासमती चावल की  ‘जीआई सूची’ (GI List) में शामिल किया जाता है, तो यह न केवल भारतीय बासमती की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाएगा, बल्कि राष्ट्रीय हित को भी प्रभावित करेगा।

क्या है ‘जीआई टैग’ (GI Tag)?     

  • ‘कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण’ (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority- APEDA) के अनुसार, जीआई टैग को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता  है।
  • जीआई टैग ऐसे कृषि, प्राकृतिक या एक निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है, जो एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होता है और जिसके कारण इसमें अद्वितीय विशेषताओं और गुणों का समावेश होता है।  
  • भौगोलिक संकेत बौद्धिक संपदा अधिकारों का हिस्सा हैं, जो ‘औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय’ (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) का तहत आते हैं।
  • भारत में, भौगोलिक संकेतक के पंजीकरण को ‘माल के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999’ ('Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act,1999') द्वारा विनियमित किया जाता है।
    • यह अधिनियम 13 सितंबर, 2003 को प्रभाव में आया था।
    • इसका विनियमन भौगोलिक पंजीयक रजिस्ट्रार (Registrar of Geographical Indications) द्वारा किया जाता है। 
    • भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री का मुख्यालय चेन्नई (तमिलनाडु) में स्थित है।
    • एक भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष की अवधि के लिये वैध होता है। 

बासमती चावल को ‘जीआई टैग’:

  • मई 2010 में APEDA द्वारा हिमालय की तलहटी से नीचे सिंधु-गंगा के मैदान (Indo-Gangetic Plains-IGP) में स्थित क्षेत्र में उत्पादित बासमती चावल के लिये यह प्रमाण पत्र प्राप्त किया था।
    • इसमें 7 राज्यों [हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पश्चिमी यूपी के 26 जिले) और दिल्ली]  के क्षेत्र शामिल हैं। 
  • APEDA के अनुसार,  लंबे अनाज और सुगंधित चावल के रूप में सिंधु-गंगा क्षेत्र में बासमती चावल की उत्पत्ति और इसकी प्रतिष्ठा का जिक्र लोक कथाओं, परंपराओं के साथ वैज्ञानिक, पाक साहित्य (Culinary literature), राजनीतिक और ऐतिहासिक अभिलेखों में पाया जाता है।
  • मध्य प्रदेश राज्य मध्य भारत पठार क्षेत्र में आता है और इस राज्य में बासमती चावल की प्रजातियों की खेती की शुरुआत इसी इस सदी के पहले दशक के मध्य के आसपास ही  हुई थी।
  •  मध्य प्रदेश का दवा है कि राज्य में उत्पादित बासमती चावल में IGP क्षेत्र के बासमती चावल के जैसी ही विशेषताएँ और गुण हैं।
  • साथ ही राज्य के अनुसार, राज्य के 13 ज़िलों में लगभग 80 हज़ार किसान बासमती चावल की खेती करते हैं, जिससे राज्य से प्रतिवर्ष लगभग 3000 करोड़ रुपए के बासमती चावल का निर्यात किया जाता है।

 मध्य प्रदेश  को बासमती चावल की ‘जीआई सूची' में जोड़ने में बाधाएँ:

  • AIREA के अनुसार, विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) के ‘बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं’ (Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) या ट्रिप्स समझौते के तहत जीआई टैग अर्जित करने के लिये किसी उत्पाद की केवल भौतिक विशेषताएँ (Physical attributes) पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि भौगोलिक क्षेत्र (Geographic Region) से जुड़ी प्रतिष्ठा आवश्यक और अनिवार्य है।
  • ‘माल भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999’  के अनुसार,  किसी उत्पाद की जीआई मान्यता के लिये उसका भौगोलिक प्रतिष्ठा से जुड़ा होना बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।      
  • वर्तमान में बासमती चावल के संदर्भ में देश के मात्र 7 राज्यों को ही यह प्रतिष्ठा प्राप्त है।   
  • यद्यपि मध्य प्रदेश उत्पादित चावल की प्रजाति में सभी आवश्यक (या पारंपरिक रूप से बासमती चावल उगाए जाने के लिये प्रचलित क्षेत्रों से बेहतर) विशेषताएँ मौजूद हो सकते हैं, परंतु इसे फिर भी बासमती के समान पात्रता नहीं दी जा सकती। 

अन्य प्रयास:

  • मध्य प्रदेश द्वारा केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के अतिरिक्त मद्रास उच्च न्यायालय में एक अपील दायर दी गई थी,  जिसे फरवरी, 2020 में रद्द कर दिया गया था।
  • इससे पहले वर्ष 2006 में ‘बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड’ (Intellectual Property Appellate Board- IPBA) ने APEDA के पक्ष में फैसला सुनाया था, जो मध्य प्रदेश को जीआई टैग दिये जाने जा समर्थन नहीं करता  है।            
  • इन निर्णयों के बाद भी मध्य प्रदेश द्वारा अलग-अलग माध्यमों और मंचों से से यह माँग लगातार उठाई जाती रही है।
  • यहाँ तक कि मध्य प्रदेश के कुछ व्यापारियों ने अपने राज्य में उत्पादित चावल को बेचने के लिये पैकेजिंग पर IGP की तस्वीरों का प्रयोग करते हैं, यद्यपि मध्य प्रदेश IGP क्षेत्र से काफी बाहर है।

 मध्य प्रदेश को जीआई सूची में शामिल करने के प्रभाव:

  • निर्यातकों के अनुसार, मध्य प्रदेश को इस सूची में शामिल करने के परिणाम बहुत ही क्षतिकारक हो सकते हैं।
  • भारत के लिये अब तक ‘बासमती’ नाम को अन्य कई देशों (जो बासमती के अपने संस्करणों के साथ सामने आते रहे हैं) के अतिक्रमण से बचाए रखने की लड़ाई बहुत ही कठिन रही है।
  • केवल जीआई टैग के कारण ही बासमती चावल को बचाए रखने में सफलता प्राप्त हो सकी है क्योंकि यह क्योंकि यह भारत के IGP क्षेत्र और पाकिस्तान के पंजाब के 18 ज़िलों में पुराने समय से उगाया जाता रहा है।  
  • इस निर्विवाद तथ्य के बल पर ही भारत दुनिया भर में इससे जुड़े विवादों को जीतने में सफल हुआ है।
  • यदि मध्य प्रदेश को शामिल करने की अनुमति दी जाती है, तो यह 1995 से भारतीय बासमती को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिये APEDA के प्रयासों को निरर्थक बना देगा।
  • बासमती चावल की पहचान को बचाए रखने के लिये APEDA द्वारा वर्ष 1995 से लेकर आजतक लगभग 50 देशों के खिलाफ 1,000 से अधिक कानूनी कार्रवाइयाँ की गई हैं। 
  • APEDA के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, यदि मध्य प्रदेश को इस सूची में शामिल किया जाता है तो पाकिस्तान भी तुरंत पूरे देश में बासमती की खेती प्रारंभ कर देगा और इससे चीन को भी लाभ होगा।
  • साथ ही वे सभी 50 से अधिक देश जिन्हें अपने चावलों को बासमती से मिलते-जुलते नाम रखने पर प्रतिबंधित किया गया है, वे भी इस निर्णय का दुरुपयोग प्रारंभ कर देंगे।

निष्कर्ष:

बासमती चावल देश के 7 राज्यों में लगभग 20 लाख से अधिक किसानों की आय एक महत्त्वपूर्ण स्रोत होने के साथ-साथ इन क्षेत्रों के सांस्कृतिकऔर आर्थिक विकास का हिस्सा रहा है। ऐसे में यदि बासमती चावल की प्रतिष्ठा को क्षति होती है तो इन किसानों के परिवारों के लिये एक बड़ी चुनौती बन सकती है। 

आगे की राह:

  • जीआई टैग प्राप्त बासमती चावल के क्षेत्रफल के विस्तार के समय इसे जुड़े आर्थिक हितों के साथ अन्य पहलुओं को देखना भी बहुत आवश्यक है।
  • जीआई टैग प्राप्त बासमती चावल से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए सरकार द्वारा कृषि विशेषज्ञों, निजी संस्थाओं और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर मध्य प्रदेश में उत्पादित चावल पर उचित मूल्य प्रदान कराने के प्रचार-प्रसार से जुड़े प्रयासों को बढ़ावा दिया जा सकता है।  

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 जुलाई, 2020

यू तिरोट सिंग सियाम

17 जुलाई, 2020 को मेघालय में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाने वाले पहले खासी शासक और स्वतंत्रता सेनानी यू तिरोट सिंग सियाम (U Tirot Sing Syiem) की 185वीं पुण्यतिथि पर शिलांग में श्रद्धांजलि अर्पित की गई। ‘यू तिरोट सिंग सियाम’ न केवल मेघालय के, बल्कि संपूर्ण भारत के महान स्‍वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं। ध्यातव्य है कि यू तिरोट सिंग सियाम एक खासी प्रमुख और देश के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। वे नोंगखलाव (Nongkhlaw) के शासक थे, जो कि मेघालय की खासी पहाड़ियों में एक क्षेत्र है। वर्ष 1829 में ब्रिटिश सरकार ने यू तिरोट सिंग सियाम से खासी पहाड़ियों में सड़क निर्माण के संबंध में अनुमति मांगी और इसके बदले में उन्हें क्षेत्र में मुक्त व्यापार जैसी कई सुविधाएँ प्रदान करने का वादा किया गया, किंतु ब्रिटिश सरकार ने अपने कुछ वादे पूरे नहीं किये, जिसके परिणामस्वरूप यू तिरोट सिंग सियाम ने ब्रिटिश अधिकारियों को इस क्षेत्र से वापस चले जाने का आदेश दे दिया, पर जब ब्रिटिश अधिकारियों ने उनकी बात पर गौर नहीं किया तो अंततः 4 अप्रैल, 1829 को यू तिरोट सिंग सियाम के नेतृत्त्व में खासी सेना ने ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला बोल दिया, जिसमें दो ब्रिटिश अधिकारी मारे गए। ब्रिटिश सरकार ने तुरंत जवाबी करवाई की और यू तिरोट सिंग सियाम की सेना ब्रिटिश सेना की आधुनिक सैन्य क्षमता के समक्ष ज़्यादा समय तक टिक नहीं सकी, किंतु इसके बावजूद यू तिरोट सिंग सियाम और उनके सैनिकों ने लगभग चार वर्ष तक ब्रिटिश सेना के साथ गुरिल्ला युद्ध जारी रखा। जनवरी 1833 में यू तिरोट सिंग सियाम को ब्रिटिश सेना द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और सुनवाई के बाद उन्हें ढाका (बांग्लादेश) की जेल भेज दिया गया, जहाँ 17 जुलाई, 1835 को उनकी मृत्यु हो गई।

पीएम स्‍वनिधि एप

रेहड़ी-पटरी तथा फेरी लगाने वाले दुकानदारों को आसानी से लघु ऋण की सुविधा देने हेतु प्रधानमंत्री स्‍ट्रीट वेंडर्स आत्‍मनिर्भर निधि (पीएम स्‍वनिधि) योजना का मोबाइल एप जारी किया गया है। पीएम स्‍वनिधि मोबाइल एप का उद्देश्‍य छोटे दुकानदारों के लिये ऋण आवेदन की प्रक्रिया को आसान बनाना और संबंधित संस्‍थानों तक सरल पहुँच प्रदान करना है। इस मोबाइल एप के माध्यम से योजना को बेहतर तरीके से लागू करने में मदद मिलेगी और लघु ऋण तक छोटे दुकानदारों की पहुँच आसान होगी। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) की शुरुआत छोटे दुकानदारों और फेरीवालों (Street Venders) को आर्थिक रूप से सहयोग प्रदान करने हेतु की गई थी। इस योजना के तहत छोटे दुकानदार 10,000 रुपए तक के ऋण के लिये आवेदन कर सकते हैं। ऋण प्राप्त करने के लिये आवेदकों को किसी प्रकार की ज़मानत या कोलैट्रल (Collateral) की आवश्यकता नहीं होगी। इस योजना के तहत प्राप्त हुई पूंजी को चुकाने के लिये एक वर्ष का समय दिया जाएगा, विक्रेता इस अवधि के दौरान मासिक किश्तों के माध्यम से ऋण का भुगतान कर सकेंगे। आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय के अनुसार, योजना की शुरुआत से अब तक कुल 154,000 से अधिक छोटे दुकानदार कार्यशील पूंजी ऋण के लिये आवेदन कर चुके हैं। इनमें से 48 हज़ार से अधिक दुकानदारों का ऋण मंज़ूर हो चुका है।

जयगाँव-पसाखा व्यापार मार्ग 

हाल ही में भारत और भूटान द्वारा पश्चिम बंगाल में जयगाँव (भारत) और भूटान के पासाखा के बीच एक नया व्यापार मार्ग खोला गया। यह नया व्यापार मार्ग मौजूदा COVID-19 महामारी के दौर में दोनों देशों के संबंधों खास तौर पर व्यापार संबंधों को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। साथ ही इस नए मार्ग के खुलने से पहले से मौजूदा मार्ग पर वाहनों के दबाव को कम किया जा सकेगा। गौरतलब है कि भारत और भूटान के बीच राजनयिक संबंधों की शुरुआत वर्ष 1968 में थिम्पू (Thimphu) में भारत के प्रतिनिधि की नियुक्ति के साथ हुई थी, हालाँकि वर्ष 1949 में ही दोनों देशों के मध्य मित्रता और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किये गए थे। भारत-भूटान व्यापार और पारगमन समझौता, 1972 (India-Bhutan Trade and Transit Agreement,1972) दोनों देशों के मध्य मुक्त-व्यापार प्रणाली की स्थापना करता है, इस समझौते को अंतिम बार वर्ष 2016 में नवीनीकृत किया गया था। ध्यातव्य है कि भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच कुल 9228 करोड़ रुपए का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था, जिसमें भारत से भूटान को होने वाला निर्यात 6011 करोड़ रुपए तथा भूटान से भारत को होने वाला निर्यात 3217 करोड़ रुपए दर्ज किया गया था।

Bhutan

साइबर सुरक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिये भारत-इज़राइल समझौता

हाल ही में भारत और इज़राइल ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण तेज़ी से हो रहे  डिजिटलीकरण के बीच साइबर खतरों से निपटने में सहयोग के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। यह समझौता दोनों पक्षों के बीच साइबर सुरक्षा को लेकर सहयोग को मज़बूत करने और साइबर खतरों से संबंधित सूचना के आदान-प्रदान के दायरे को विस्तृत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस समझौते के अंतर्गत साइबर सुरक्षा पर वार्ता, क्षमता निर्माण में सहयोग और साइबर सुरक्षा से संबंधित सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान के लिये एक रूपरेखा निर्धारित की गई है। गौरतलब है कि जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इज़राइल यात्रा के दौरान साइबर सुरक्षा को सहयोग के एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया था और अगले वर्ष इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) की भारत यात्रा के दौरान दोनों पक्षों के बीच इस विषय को लेकर एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किये गए थे। वर्ष 2018 के समझौते को दोनों देशों के साइबर सुरक्षा संबंधों का आधार माना जाता है, जबकि हालिया समझौता इस दिशा में दूसरा महत्त्वपूर्ण कदम है।