गेहूँ और दालों के भंडारण पर सीमा
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य सुरक्षा, आवश्यक वस्तु अधिनियम (ECA), 1955, IMD, मुद्रास्फीति, PDS,OMSS मेन्स के लिये:गेहूँ और दालों के भंडारण पर सीमा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने समग्र खाद्य सुरक्षा का प्रबंधन करने तथा जमाखोरी एवं बेबुनियाद अनुमान लगाने की प्रथा को रोकने के लिये व्यापारियों, थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, वृहत शृंखला वाले खुदरा विक्रेताओं तथा प्रसंस्करणकर्त्ताओं द्वारा रखने योग्य गेहूँ के स्टॉक/भंडारण पर सीमाएँ निर्धारित की हैं।
- मंत्रालय ने इन्ही कारणों से आवश्यक वस्तु अधिनियम (ECA), 1955 को लागू करके तूर और उड़द दाल पर भी भंडारण सीमा लगा दी है।
सीमा निर्धारण का कारण:
- गेहूँ उत्पादन से संबंधित चिंताएँ:
- फरवरी 2023 में बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और उच्च तापमान के कारण कुल गेहूँ उत्पादन को लेकर स्वाभाविक चिंता जताई गई।
- कम उत्पादन से कीमतें बढ़ती हैं, जो सरकार की खरीद कीमतों से अधिक हो सकती हैं तथा आपूर्ति स्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।
- शुरुआती अनुमान की तुलना में गेहूँ खरीद में संभावित 20% की कमी के संकेत हैं।
- ओलावृष्टि के कारण मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लगभग 5.23 लाख हेक्टेयर गेहूँ की फसल को नुकसान होने का अनुमान है।
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने प्रजनन वृद्धि अवधि के दौरान उच्च तापमान के कारण गेहूँ की फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव की चेतावनी दी थी।
- फरवरी 2023 में बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और उच्च तापमान के कारण कुल गेहूँ उत्पादन को लेकर स्वाभाविक चिंता जताई गई।
- तूर एवं उड़द के लिये ECA 1955 लागू करना:
- कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के प्रमुख तूर उत्पादक राज्यों के कुछ हिस्सों में अत्यधिक वर्षा और जल जमाव की स्थिति के कारण वर्ष 2021 की तुलना में खरीफ बुवाई में धीमी प्रगति के बीच जुलाई 2022 के मध्य से तूर की कीमतों में वृद्धि हुई है।
- किसी भी अवांछित मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये सरकार घरेलू एवं विदेशी बाज़ारों में दालों की समग्र उपलब्धता और नियंत्रित कीमतों को सुनिश्चित करने हेतु पूर्व-निर्धारित कदम उठा रही है।
गेहूँ की स्टॉक सीमा के संबंध में शासनादेश:
- कीमतों को स्थिर करने के लिये स्टॉक सीमा का अधिरोपण:
- व्यापारियों/थोक विक्रेताओं के लिये अनुमत स्टॉक सीमा 3,000 मीट्रिक टन निर्धारित है, इसके साथ ही खुदरा विक्रेताओं के लिये प्रत्येक बिक्री केंद्र पर 10 मीट्रिक टन होने के साथ बड़ी शृंखला के खुदरा विक्रेताओं के लिये सभी डिपो (संयुक्त) पर 3,000 मीट्रिक टन तक निर्धारित की गई है।
- प्रसंस्करण इकाइयों को उनकी वार्षिक स्थापित क्षमता का 75% तक स्टॉक करने की अनुमति है।
- खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के पोर्टल पर संस्थाओं को नियमित रूप से अपने स्टॉक की स्थिति घोषित करने की आवश्यकता होती है।
- सीमा से अधिक स्टॉक होने की स्थिति में निर्धारित सीमा के अंतर्गत लाने के लिये अधिसूचना जारी करने की समय-सीमा 30 दिन है।
- OMSS के माध्यम से गेहूँ की बिक्री:
- सरकार ने ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) के माध्यम से 15 लाख टन गेहूँ बेचने का निर्णय लिया है।
- गेहूँ मिलों, निजी व्यापारियों, थोक खरीदारों और गेहूँ उत्पादकों द्वारा ई-नीलामी के माध्यम से बेचा जाएगा।
- नीलामी 10 से 100 मीट्रिक टन के थोक मूल्य के लिये आयोजित की जाएगी, जिसमें कीमतों और मांग के आधार पर अधिक-से अधिक नीलामी की संभावना होगी।
- कीमतों को कम करने के लिये चावल की बिक्री हेतु भी इसी तरह की योजना पर विचार किया जा रहा है।
शासनादेश का उद्देश्य:
- कीमतों के स्थिरीकरण हेतु:
- प्राथमिक उद्देश्य बाज़ार में गेहूँ की कीमतों को स्थिर करना है। गेहूँ आपूर्ति शृंखला में शामिल विभिन्न संस्थाओं पर स्टॉक सीमा लागू कर सरकार का उद्देश्य जमाखोरी और सट्टेबाज़ी को रोकना तथा गेहूँ की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करना और कीमतों को स्थिर करना है।
- वहनीयता:
- सरकार का इरादा कीमतों को स्थिर करके उपभोक्ताओं हेतु गेहूँ को और अधिक किफायती बनाना है।
- OMSS द्वारा केंद्र के माध्यम से गेहूँ के वितरण से खुदरा मूल्यों पर नियंत्रण बनाए रखने से गेहूँ आम लोगों हेतु सस्ता होगा।
- आपूर्ति की कमी को रोकना तथा खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना:
- स्टॉक सीमा की निगरानी और प्रबंधन के साथ ही सरकार का उद्देश्य मांग को पूरा करने के लिये गेहूँ की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित कर बिक्री से संबंधित कमियों को दूर करना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से समाज के कमज़ोर वर्गों को गेहूँ उपलब्ध कराना है।
आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955:
- पृष्ठभूमि:
- ECA अधिनियम, 1955 ऐसे समय में बनाया गया था जब देश खाद्यान्न उत्पादन के लगातार निम्न स्तर के कारण खाद्य पदार्थों की कमी का सामना कर रहा था।
- तत्कालीन भारत अपनी खाद्य ज़रूरतों की पूर्ति के लिये आयात और सहायता (जैसे PL-480 के तहत अमेरिका से गेहूँ का आयात) पर निर्भर था।
- भारत ने वर्ष 1954 में अमेरिका के साथ सरकारी कृषि व्यापार विकास सहायता के तहत खाद्य सहायता प्राप्त करने के लिये एक दीर्घकालिक सार्वजनिक कानून (PL) 480 समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- खाद्य पदार्थों की जमाखोरी और कालाबाज़ारी को रोकने के लिये वर्ष 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम लाया गया था।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य ECA 1955 का उपयोग कर केंद्र द्वारा विभिन्न प्रकार की वस्तुओं में व्यापार हेतु राज्य सरकारों को नियंत्रण प्रदान करना है ताकि मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाया जा सके।
- आवश्यक वस्तु:
- आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में आवश्यक वस्तुओं की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है। धारा 2 (A) में कहा गया है कि "आवश्यक वस्तु" का अर्थ अधिनियम की अनुसूची में निर्दिष्ट वस्तु है।
- केंद्र की भूमिका:
- अधिनियम केंद्र सरकार को अनुसूची में किसी वस्तु को जोड़ने या हटाने का अधिकार देता है।
- केंद्र यदि संतुष्ट है कि जनहित में ऐसा करना आवश्यक है, तो राज्य सरकारों के परामर्श से किसी वस्तु को आवश्यक रूप में अधिसूचित कर सकता है।
- प्रभाव:
- किसी वस्तु को आवश्यक घोषित करके सरकार उस वस्तु के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित कर सकती है तथा स्टॉक सीमा लगा सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये: (2013)
इनमें से कौन-सी खरीफ फसलें हैं? (a) केवल 1 और 4 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. फसल प्रणाली में गेहूँ और चावल की उपज में गिरावट के प्रमुख कारण क्या हैं? इस प्रणाली में फसलों की उपज को स्थिर करने हेतु फसल विविधीकरण किस प्रकार सहायक है? (2017) |
स्रोत: द हिंदू
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो
प्रिलिम्स के लिये:दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (DSPE), भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, भ्रष्टाचार निवारण पर संथानम समिति मेन्स के लिये:CBI और सिफारिशों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने घोषणा की है कि उसने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (Delhi Special Police Establishment- DSPE) अधिनियम, 1946 की धारा 6 के तहत केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है।
- मिज़ोरम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल, झारखंड, पंजाब और मेघालय ने मार्च 2023 तक CBI को दी गई अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो:
- CBI की स्थापना गृह मंत्रालय के एक संकल्प द्वारा की गई थी और बाद में इसे कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया, जो वर्तमान में एक संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य कर रहा है।
- इसकी स्थापना की सिफारिश भ्रष्टाचार निवारण पर बनी संथानम समिति ने की थी।
- CBI, DSPE अधिनियम, 1946 के तहत काम करती है। यह न तो संवैधानिक है और न ही वैधानिक निकाय है।
- यह रिश्वतखोरी, सरकारी भ्रष्टाचार, केंद्रीय कानूनों के उल्लंघन, बहु-राज्य संगठित अपराध और बहु-एजेंसी या अंतर्राष्ट्रीय मामलों से संबंधित मामलों की जाँच करता है।
भारत में CBI की कार्यप्रणाली:
- पूर्व अनुमति का प्रावधान:
- CBI को केंद्र सरकार और उसके अधिकारियों में संयुक्त सचिव एवं उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों द्वारा किये गए किसी अपराध का परीक्षण या जाँच करने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अवैध घोषित किया, साथ ही दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम की धारा 6A के आधार को वैध माना, जो संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारियों को भ्रष्टाचार के मामलों में CBI द्वारा प्रारंभिक जाँच का सामना करने से भी सुरक्षा प्रदान करता है, यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन था।
- सीबीआई के लिये सामान्य सहमति सिद्धांत:
- CBI के लिये राज्य सरकार की सहमति विशिष्ट या "सामान्य" मामले में हो सकती है।
- आमतौर पर राज्यों द्वारा अपने राज्यों में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की निर्बाध जाँच में CBI की सहायता प्राप्त करने के लिये सामान्य सहमति दी जाती है।
- यह अनिवार्य रूप से डिफॉल्ट के रूप में सहमति है, जिसका अर्थ है कि CBI पहले से दी गई सहमति के आधार पर जाँच प्रारंभ कर सकती है।
- सामान्य सहमति के अभाव में CBI को प्रत्येक व्यक्तिगत मामले में छोटी-छोटी कार्रवाई करने से पहले राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होगी।
CBI के सामने चुनौतियाँ:
- स्वायत्तता का अभाव:
- इसके कामकाज़ में राजनीतिक हस्तक्षेप, प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
- संसाधन की कमी:
- CBI को बुनियादी संरचना, पर्याप्त जनशक्ति और आधुनिक उपकरणों की कमी का भी सामना करना पड़ता है।
- साक्ष्य प्राप्त करने के संदिग्ध तरीकों और नियम पुस्तिका का पालन करने में अधिकारियों की विफलता से संबंधित ऐसे कई मामले हैं।
- कानूनी सीमाएँ:
- यह एजेंसी वर्तमान में पुराने कानून के तहत कार्य करती है, जो समकालीन चुनौतियों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करते हैं।
- परिणामस्वरूप इसके अधिकार क्षेत्र में अस्पष्टता, पारदर्शिता का अभाव एवं अपर्याप्त जवाबदेही सहित कई मुद्दे सामने आए हैं।
- प्रक्रियात्मक विलंब:
- लंबी कानूनी और अदालती प्रक्रियाएँ CBI के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती हैं।
- तलाशी लेने हेतु वारंट प्राप्त करने, बयान दर्ज करने और न्यायालय में साक्ष्य पेश करने में अधिक समय लगने के कारण जाँच पूरी करने तथा सज़ा निर्धारित करने में भी विलंब हो सकता है।
CBI में संस्थागत सुधारों की आवश्यकता:
- स्वतंत्रता और स्वायत्तता:
- CBI को केंद्र सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण से पृथक एक स्वतंत्र जाँच एजेंसी के रूप में स्थापित करना।
- राजनीतिक अथवा नौकरशाही प्रभावों के अनुचित हस्तक्षेप के बिना जाँच करने के लिये कार्यात्मक स्वायत्तता सुनिश्चित करना।
- CBI की स्वायत्तता और निष्पक्षता की रक्षा के लिये कानूनी प्रावधानों को मज़बूत करना।
- क्षेत्राधिकार और समन्वय:
- राज्य पुलिस बलों के साथ संघर्ष से बचने के लिये अधिकार क्षेत्र की सीमाओं का स्पष्ट होना और सुचारु समन्वय सुनिश्चित करने तथा प्रभावी जाँच के लिये राज्य एजेंसियों के साथ सहयोग एवं सूचना साझा करने की व्यवस्था सुनिश्चित करना।
- कानूनी ढाँचा:
- जाँच संबंधी शक्तियों को बढ़ाने के लिये मौजूदा कानूनों की समीक्षा और अद्यतन करना, जाँच तकनीकों को वैधानिक समर्थन प्रदान करना तथा जाँच एवं परीक्षण में तेज़ी लाने के लिये कानूनी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
- तकनीकी उन्नयन:
- डिजिटल फोरेंसिक, डेटा विश्लेषण और अपराध की गंभीरता तय करने के लिये CBI को आधुनिक उपकरणों से लैस करने के लिये उन्नत प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
CBI को लेकर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- कोलगेट मामला:
- वर्ष 2013 में न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने CBI को "अपने मालिक की आवाज़ में बोलने वाला एक पिंजरे का तोता” (a caged parrot speaking in its master’s voice) बताया।
- CBI बनाम CBI मामला:
- CBI बनाम CBI मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि CBI के निदेशक को हटाने/छुट्टी पर भेजने की शक्ति, चयन समिति में निहित है, न कि केंद्र सरकार के पास।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला तब सुनाया जब CBI निदेशक ने बिना उसकी मर्जी के उसे छुट्टी पर भेजने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी थी।
आगे की राह
- वैधानिक समर्थन:
- कई समितियों ने सुचारु कामकाज़ और परिचालन स्वायत्तता सुनिश्चित करने हेतु CBI को वैधानिक दर्जा देने का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए उपायों में बिना किसी बाहरी प्रभाव के जाँच शुरू करने, चार्जशीट दाखिल करने और मामलों पर मुकदमा चलाने का अधिकार देना शामिल है।
- मुखबिर का संरक्षण:
- CBI के भीतर मुखबिरों की सुरक्षा, पारदर्शिता सुनिश्चित करने, भ्रष्टाचार को उजागर करने और गोपनीय रिपोर्टिंग तंत्र के माध्यम से प्रतिशोध से कदाचार की रिपोर्ट करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा हेतु कानून में प्रावधान शामिल किये जाने चाहिये।
- क्षमता निर्माण:
- नए कानून के लिये CBI कर्मियों के कौशल, ज्ञान और समझ को बढ़ाने हेतु नियमित प्रशिक्षण एवं पेशेवर विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिये जिससे वे जटिल मामलों को प्रभावी ढंग से संभालने में सक्षम हो सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. एक राज्य-विशेष के अंदर प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर करने तथा जाँच करने के केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सी.बी.आई.) के क्षेत्राधिकार पर कई राज्य प्रश्न उठा रहे है। हालाँकि सी.बी.आई. जाँच के लिये राज्यों द्वारा दी गई सहमति को रोके रखने की शक्ति आत्यंतिक नहीं है। भारत के संघीय ढाँचे के विशेष संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2021) |
स्रोत: द हिंदू
एक देश एक आँगनवाड़ी कार्यक्रम
प्रिलिम्स के लिये:आँगनवाड़ी कार्यक्रम, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MoWCD), सरकारी ई-मार्केट (GeM), पोषण अभियान (समग्र पोषण के लिये प्रधानमंत्री की व्यापक योजना), PM पोषण शक्ति निर्माण (PM-POSHAN), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (NFSA), मिड-डे मील, सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0, NHRM मेन्स के लिये:भारत में पोषण के मुद्दों से निपटने के लिये एक राष्ट्र एक आँगनवाड़ी कार्यक्रम का प्रभाव, छिपी हुई भुखमरी के मुद्दों हेतु स्थानीय और विविध समाधान की आवश्यकता है। |
चर्चा में क्यों?
पोषण ट्रैकर एप पर 'एक देश एक आँगनवाड़ी' कार्यक्रम के लिये 57,000 से अधिक प्रवासी श्रमिकों ने पंजीकरण कराया है।
- पोषण एप प्रवासी श्रमिकों को मोबाइल फोन पर पोषण ट्रैकर एप का उपयोग कर अपने संबंधित स्थानों से नर्सरी तक पहुँचने की अनुमति देगा।
पोषण ट्रैकर एप:
- महिला और बाल विकास मंत्रालय (MoWCD) ने पोषण ट्रैकर नामक एक एप्लीकेशन लॉन्च किया है।
- पोषण ट्रैकर प्रबंधन एप्लीकेशन आँगनवाड़ी केंद्र की गतिविधियों का 360 डिग्री दृश्य प्रदान करता है।
- एप आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं द्वारा किये गए कार्यों को डिजिटाइज़ और स्वचालित करके कुशल सेवा वितरण की सुविधा प्रदान करता है।
- कामगारों को उनके काम में सहयोग देने के लिये गवर्नमेंट ई-मार्केट (GeM) के माध्यम से खरीदे गए स्मार्टफोन उपलब्ध कराए गए हैं।
- इसके अतिरिक्त प्रत्येक राज्य में एक नामित व्यक्ति को तकनीकी सहायता प्रदान करने और नए पोषण ट्रैकर एप्लीकेशन को डाउनलोड करने तथा उसका उपयोग करने से संबंधित किसी भी मुद्दे को हल करने के लिये नियुक्त किया गया है।
- जिन प्रवासी श्रमिकों ने अपने मूल राज्य में पंजीकरण कराया है, वे एप के माध्यम से प्रदान की जाने वाली योजनाओं और सेवाओं का उपयोग करने के लिये अपने वर्तमान निवास स्थान के निकटतम आँगनवाड़ी केंद्रों में जा सकते हैं।
एप की उपलब्धियाँ
- वर्ष 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत के बाद से अब तक कुल 10 करोड़ 6 लाख लाभार्थी इस एप पर पंजीकृत हो चुके हैं।
- 11-14 वर्ष के आयु वर्ग में स्कूल छोड़ने वाली बालिकाओं की संख्या में विगत कुछ वर्षों में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
- पूर्वोत्तर और आकांक्षी ज़िलों में 22.40 लाख किशोरियों की पहचान की गई है, जिन्हें इस नई योजना के तहत कवर किया जाएगा, जो अब पोषण 2.0 के दायरे में आती है।
- छह वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिये उम्र के हिसाब से टेक-होम राशन की व्यवस्था की जा रही है।
पोषण अभियान:
- परिचय:
- पोषण अभियान (समग्र पोषण के लिये प्रधानमंत्री की व्यापक योजना) को राजस्थान के झुंझुनू ज़िले में 8 मार्च, 2018 को प्रधानमंत्री द्वारा लॉन्च किया गया था।
- उद्देश्य:
- बच्चों (0- 6 वर्ष) में स्टंटिंग को रोकना और कम करना।
- बच्चों (0-6 वर्ष) में अल्प-पोषण (कम वज़न प्रसार) को रोकना और कम करना।
- छोटे बच्चों (6-59 महीने) में एनीमिया के प्रसार को कम करना।
- 15-49 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं और किशोरियों में एनीमिया के प्रसार को कम करना।
- लो बर्थ वेट (LBW) कम करना।
आँगनवाड़ी:
- आँगनवाड़ी सेवाएँ (अब सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 के रूप में नामित) राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा कार्यान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
- यह छह सेवाओं का पैकेज प्रदान करती है, अर्थात् (i) पूरक पोषण (ii) स्कूल-पूर्व अनौपचारिक शिक्षा (iii) पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा (iv) प्रतिरक्षण (v) स्वास्थ्य जाँच और (vi) रेफरल सेवाएँ।
- यह देश भर में आँगनवाड़ी केंद्रों के मंच के माध्यम से सभी पात्र लाभार्थियों अर्थात् 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वाली माताओं को सेवाएँ प्रदान करता है।
- इनमें से तीन सेवाएँ नामतः प्रतिरक्षण, स्वास्थ्य जाँच और रेफरल सेवाएँ स्वास्थ्य से संबंधित हैं और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना के माध्यम से प्रदान की जाती हैं।
अन्य संबद्ध पहलें:
- एनीमिया मुक्त भारत अभियान
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)
- पीएम पोषण शक्ति निर्माण (पीएम-पोषण)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
CBIC ने नेशनल टाइम रिलीज़ स्टडी (NTRS) 2023 रिपोर्ट जारी की
प्रिलिम्स के लिये:नेशनल टाइम रिलीज़ स्टडी (NTRS), विश्व सीमा शुल्क संगठन (WCO), कार्गो रिलीज़ समय मेन्स के लिये:भारत में TFA और सीमा पार व्यापार पर इसका प्रभाव, भारत में व्यापार करने में आसानी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने नेशनल टाइम रिलीज़ स्टडी (NTRS) 2023 रिपोर्ट जारी की है, जो भारत में विभिन्न बंदरगाहों पर कार्गो रिलीज़ समय को मापती है।
- इस रिपोर्ट का उद्देश्य राष्ट्रीय व्यापार सुविधा कार्य योजना (NTFAP) लक्ष्यों की दिशा में की गई प्रगति का आकलन करना, विभिन्न व्यापार सुविधा पहलों के प्रभाव की पहचान करना और रिलीज़ समय में अधिक तीव्रता से कमी लाने हेतु चुनौतियों की पहचान करना है।
- यह अध्ययन 1 से 7 जनवरी, 2023 की नमूना अवधि के आधार पर आयोजित किया गया था, जिसमें वर्ष 2021 और वर्ष 2022 की समान अवधि के दौरान निष्पादन की तुलना की गई थी।
- अध्ययन में शामिल बंदरगाहों, एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स (ACC), अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (ICD) एवं एकीकृत चेक पोस्ट (ICP) का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये प्रविष्टि बिलों का लगभग 80% तथा देश में दाखिल किये गए शिपिंग बिलों का 70% हैं।
कार्गो रिलीज़ का समय:
- कार्गो रिलीज़ समय को सीमा शुल्क स्टेशन पर कार्गो के आगमन से आयात के मामले में घरेलू निकासी हेतु इसके आउट-ऑफ-चार्ज तक और सीमा शुल्क स्टेशन पर कार्गो के आगमन से निर्यात के मामले में वाहक के अंतिम प्रस्थान तक लगने वाले समय के रूप में परिभाषित किया गया है।
- कार्गो रिलीज़ समय व्यापार दक्षता और व्यापार करने में आसानी का एक प्रमुख संकेतक है, क्योंकि यह सीमा शुल्क प्रक्रियाओं एवं सीमा पार व्यापार में शामिल अन्य नियामक प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता को दर्शाता है।
- विश्व सीमा शुल्क संगठन (World Customs Organization- WCO) द्वारा अनुशंसित एक प्रदर्शन माप उपकरण, टाइम रिलीज़ स्टडी (TRS) का उपयोग करके कार्गो रिलीज़ समय को मापा जाता है।
NTRS 2023 की मुख्य विशेषताएँ
- आयात निर्गमन समय में सुधार:
- विगत वर्षों की तुलना में औसत आयात निर्गमन समय में सुधार दिखा है।
- ICD के लिये निर्गमन समय में 20% की कमी, ACC के लिये 11% की कमी और वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में बंदरगाहों में 9% की कमी देखी गई।
- बंदरगाहों के लिये पूर्ण रूप से आयात निर्गमित करने का समय 85 घंटे और 42 मिनट है, ICD के लिये 71 घंटे और 46 मिनट है, ACC के लिये 44 घंटे और 16 मिनट है और ICP के लिये 31 घंटे और 47 मिनट है।
- मानक विचलन का कम माप आयातित कार्गो के शीघ्र निर्गमन को अधिक सुनिश्चित करता है।
- 'पाथ टू प्राप्टनेस' की पुन: पुष्टि:
- NTRS 2023 के निष्कर्ष त्रिस्तरीय 'पाथ टू प्राप्टनेस' सामरिक नीति के महत्त्व की पुष्टि करते हैं।
- इस रणनीति में आगमन-पूर्व प्रसंस्करण हेतु आयात दस्तावेज़ो की अग्रिम फाइलिंग, कार्गो की जोखिम-आधारित सुविधा तथा विश्वसनीय ग्राहक कार्यक्रम- अधिकृत आर्थिक ऑपरेटरों के लाभ शामिल हैं।
- कार्गो जो 'पाथ टू प्रॉम्प्टनेस' के तहत सभी तीन विशेषताओं को शामिल करते हैं जिसमें सभी बंदरगाह श्रेणियों में राष्ट्रीय व्यापार सुविधा कार्य योजना (NTFAP) अपने निर्गमन समय पर लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
- निर्यात निर्गमन समय पर फोकस:
- NTRS 2023 ने निर्यात के लिये निर्गमन समय को मापने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है।
- अध्ययन नियामक मंज़ूरी (निर्गमन सीमा शुल्क) और भौतिक निकासी के बीच अंतर की पहचान करता है।
- नियामक मंज़ूरी लेट एक्सपोर्ट ऑर्डर (LEO) के अनुदान के साथ पूरी की जाती है, जबकि भौतिक मंज़ूरी रसद प्रक्रियाओं के पूरा होने तथा माल के साथ वाहक के प्रस्थान पर होती है।
NTRS 2023 के लिये सूचना स्रोत:
NTRS 2023 विभिन्न स्रोतों से एकत्र किये गए डेटा पर आधारित है, जैसे कि ICEGATE पोर्टल, बंदरगाह प्राधिकरण, सीमा शुल्क के बिचौलिये और इसमें भाग लेने वाली सरकारी संस्थाएँ (PGA)।
- NTRS 2023 में विभिन्न हितधारकों, जैसे- निर्यातकों, आयातकों, व्यापार संघों और वाणिज्य मंडलों से प्राप्त प्रतिक्रिया भी शामिल है।
- NTRS 2023 को WCO TRS कार्यप्रणाली के साथ संरेखित किया गया है और इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन भी किया जाता है।
NTRS 2023 के लाभ:
- NTRS 2023 भारत में विभिन्न बंदरगाहों पर कार्गो रिलीज़ समय प्रदर्शन का व्यापक और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन प्रदान करता है।
- NTRS 2023 वैश्विक मानकों के विरुद्ध सुधार और बेंचमार्किंग के क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता करता है।
- NTRS 2023 व्यापार क्षमता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने वाले व्यापार सुगमता उपायों के साक्ष्य आधारित नीति निर्माण एवं कार्यान्वयन का समर्थन करता है।
- NTRS 2023, NTFAP लक्ष्यों को प्राप्त करने और विश्व व्यापार संगठन व्यापार सुविधा समझौते के अंतर्गत भारत की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में योगदान देता है।
राष्ट्रीय व्यापार सुविधा कार्य योजना (National Trade Facilitation Action Plan- NTFAP):
- NTFAP का उद्देश्य भारत में WTO के व्यापार सुविधा समझौते (TFA) के प्रावधानों को लागू करना है।
- TFA सीमा पार व्यापार के लिये सीमा शुल्क प्रक्रियाओं और मानदंडों के सरलीकरण पर केंद्रित है।
- कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय व्यापार सुविधा समिति (NCTF) द्वारा NTFAP तैयार किया गया था।
- इसमें भारत के नीतिगत उद्देश्यों के अनुरूप कार्यान्वयन के लिये समय-सीमा के साथ 90 से अधिक विशिष्ट गतिविधियाँ शामिल हैं।
- NTFAP में अग्रिम आयात दस्तावेज़ फाइलिंग, जोखिम-आधारित कार्गो सुविधा, विश्वसनीय ग्राहक कार्यक्रम, अवसंरचना उन्नयन, विधायी मुद्दे, आउटरीच कार्यक्रम और एजेंसी समन्वय जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- NTFAP व्यापार लागत कम करता है, दक्षता में वृद्धि करता है, साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण का समर्थन करता है और भारत की TFA प्रतिबद्धताओं को पूरा करता है।
लाॅजिस्टिक से संबंधित पहलें:
- पीएम गति शक्ति योजना
- माल का बहुविध परिवहन अधिनियम, 1993
- पीएम गति शक्ति योजना
- मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क
- लीड्स (LEADS) रिपोर्ट
- डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर
- सागरमाला प्रोजेक्ट्स
- भारतमाला परियोजना
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड:
- यह वित्त मंत्रालय के तहत राजस्व विभाग का एक हिस्सा है।
- GST लागू होने के बाद वर्ष 2018 में सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज़ एंड कस्टम्स (CBEC) का नाम बदलकर CBIC कर दिया गया।
- यह सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, केंद्रीय GST (CGST) और एकीकृत GST (IGST) के लेवी तथा संग्रह से संबंधित नीति तैयार करने के कार्यों से संबंधित है।
- GST कानून में (i) केंद्रीय वस्तु और सेवा कर अधिनियम, 2017 (ii) राज्य वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 (iii) केंद्रशासित प्रदेश वस्तु तथा सेवा कर अधिनियम, 2017 (iv) एकीकृत वस्तु और सेवा कर अधिनियम, 2017 (v) वस्तु तथा सेवा कर (राज्यों को मुआवज़ा) अधिनियम, 2017 शामिल हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारत और पाकिस्तान के विशेष दूतों ने तालिबान के साथ वार्ता में भाग लिया
प्रिलिम्स के लिये:ओस्लो समझौता, वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी मेन्स के लिये:भारत-अफगानिस्तान संबंध: महत्त्व और आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
नॉर्वे सरकार द्वारा ओस्लो शांति सम्मेलन के अवसर पर वार्ता में गतिरोध को समाप्त करने के प्रयास में तालिबान के प्रतिनिधियों ने इस सप्ताह भारतीय और पाकिस्तानी विशेष दूतों एवं अधिकारियों के साथ-साथ अन्य अंतर्राष्ट्रीय राजनयिकों से मुलाकात की।
ओस्लो समझौता:
- ओस्लो समझौता इज़रायल और फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (PLO) के बीच समझौते की एक कड़ी है जो ओस्लो प्रक्रिया की शुरुआत को चिह्नित करती है। यह एक शांति प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को हल करना है।
- ओस्लो प्रक्रिया-ओस्लो, नॉर्वे में गुप्त वार्ताओं के बाद प्रारंभ हुई, जिसके परिणामस्वरूप PLO द्वारा इज़रायल की मान्यता और फिलिस्तीनी लोगों के प्रतिनिधि के रूप में इज़रायल द्वारा मान्यता और द्विपक्षीय वार्ताओं में भागीदार के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
- ओस्लो प्रथम समझौता (1993):
- वाशिंगटन, डीसी में हस्ताक्षर किये गए।
- वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में फिलिस्तीन के अंतरिम स्वशासन व्यवस्था के लिये एक रूपरेखा प्रस्तुत की और आगे की वार्ताओं के लिये एक समय सारिणी भी निर्धारित की गई।
- ओस्लो द्वितीय समझौता (1995):
- वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर अंतरिम समझौते को आमतौर पर ओस्लो द्वितीय समझौता के रूप में जाना जाता है।
भारत के लिये अफगानिस्तान का महत्त्व:
- मध्य एशिया का प्रवेश द्वार: अफगानिस्तान मध्य एशियाई गणराज्यों (CAR) का प्रवेश द्वार है, जो प्राकृतिक संसाधनों और भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के लिये संभावित बाज़ारों में समृद्ध हैं।
- पाकिस्तान और चीन के प्रति संतुलन: एक स्थिर और मैत्रीपूर्ण अफगानिस्तान भारत को पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद, उग्रवाद और कट्टरपंथ के खतरों को रोकने में मदद कर सकता है।
- भारत की सॉफ्ट पावर सहायता में भागीदार: भारत ने अफगानिस्तान में विभिन्न परियोजनाओं, जैसे सड़कों, बाँधों, स्कूलों, अस्पतालों, संसद भवन आदि में $ 3 बिलियन से अधिक का निवेश किया है।
- भारत अफगानिस्तान को छात्रवृत्ति, प्रशिक्षण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मानवीय सहायता भी प्रदान करता है।
- सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंध: दोनों देश बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, सूफीवाद और मुगल साम्राज्य की एक सांस्कृतिक विरासत को साझा करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई समेत कई अफगान नेताओं ने भारत में पढ़ाई की है।
तालिबान के अधिग्रहण का भारत के हितों पर प्रभाव:
- सुरक्षा संबंधी खतरे:
- तालिबान को पाकिस्तान के जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे भारत विरोधी आतंकवादी समूहों के प्रतिनिधि और समर्थक के रूप में देखा जाता है।
- तालिबान चीन के समीप भी है, जो इस क्षेत्र में भारत का सामरिक प्रतिद्वंद्वी है।
- प्रभाव:
- भारत का तालिबान के साथ कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था परंतु पिछली सरकार और उसके संस्थानों में भारी निवेश किया था।
- भारत ने अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशियाई गणराज्यों तक अपनी पहुँच भी खो दी, जो इसकी कनेक्टिविटी और ऊर्जा परियोजनाओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा था।
- व्यापार और विकास:
- तालिबान ने पाकिस्तान के माध्यम से कार्गो की आवाजाही बंद कर दी है एवं अफगानिस्तान में भारत की सहायता और परियोजनाओं के भविष्य पर अनिश्चितता पैदा कर दी है।
- भारत ने अफगानिस्तान में बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का योगदान दिया था।
- मानवीय संकट:
- हज़ारों अफगानी, जिन्होंने भारत के साथ काम किया है अथवा जिनका भारत के साथ पारिवारिक संबंध है, तालिबान द्वारा दमन के कारण शरण तथा सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।
- भारत ने काबुल से अपने नागरिकों और अफगान सहयोगियों को वापस लाने के लिये ऑपरेशन देवी शक्ति नामक एक निकासी मिशन शुरू किया है।
स्थिति पर नियंत्रण के भारत के प्रयास:
- संतुलित दृष्टिकोण अपनाना: मानवाधिकारों, आतंकवाद और अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए अत्यधिक संरेखण अथवा टकराव से बचने के लिये भारत को अफगानिस्तान के साथ संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
- भारत व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी जैसे सामान्य हित के क्षेत्रों पर भी ध्यान दे सकता है।
- अफगान सुलह का समर्थन: भारत, अफगानिस्तान में एक समावेशी और प्रतिनिधि सरकार के प्रयासों का सक्रिय रूप से समर्थन कर सकता है। जिसमें एक समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया की वकालत करना शामिल है, जो देश में सभी जातीय एवं धार्मिक समूहों के हितों को समायोजित करता है।
- क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ संबंध: भारत को अपने प्रयासों का समन्वय करने और अफगानिस्तान में स्थिरता के लिये एक सामूहिक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने हेतु क्षेत्रीय खिलाड़ियों, विशेष रूप से पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाना चाहिये।
- इसमें सामान्य मामलों को दूर करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये ईरान, रूस तथा मध्य एशियाई देशों के साथ सहयोग करना शामिल है।
- विकास सहायता पर ध्यान: बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ, शिक्षा एवं मानवीय सहायता प्रदान करके अफगानिस्तान के विकास में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- तालिबान के अधिग्रहण के बावजूद भारत उन विकास पहलों का समर्थन करना जारी रख सकता है जो प्रत्यक्ष रूप से अफगान लोगों को लाभान्वित करते हैं, जैसे कि बुनियादी ढाँचा विकास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और क्षमता निर्माण।
- अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को मज़बूत करना: भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC/सार्क) जैसे क्षेत्रीय संगठनों सहित अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ मिलकर काम करना चाहिये, ताकि अफगानिस्तान में उभरती स्थिति को सामूहिक रूप से उजागर किया जा सके। सहयोगात्मक प्रयास देश में अधिक स्थिर तथा सुरक्षित वातावरण को आकार देने में मदद कर सकते हैं।