डेली न्यूज़ (17 Jun, 2021)



FAO सम्मेलन का 42वाँ सत्र

प्रिलिम्स के लिये:

FAO सम्मेलन, किसान रेल, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज

मेन्स के लिये: 

FAO सम्मेलन के 42वें सत्र के महत्त्वपूर्ण बिंदु

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के 42वें सत्र को संबोधित किया।

  • यह सम्मेलन हर दो वर्ष में होता है यह FAO का सर्वोच्च शासी निकाय है।
  • यह संगठन की नीतियों को निर्धारित करता है और उनके बजट को मंज़ूरी देता है तथा सदस्यों को खाद्य और कृषि मुद्दों पर सिफारिशें करता है।

प्रमुख बिंदु:

कोविड-19 महामारी के दौरान खाद्य सुरक्षा के लिये भारत के प्रयास:

  • खाद्यान्न का उच्च उत्पादन: भारत ने वर्ष 2020-21 के दौरान 305 मिलियन टन खाद्यान्न निर्यात के साथ-साथ वैश्विक खाद्य सुरक्षा में योगदान करते हुए अब तक का उच्च उत्पादन दर्ज किया।
  • किसान रेल: इसे जल्दी खराब होने वाली बागवानी उपज, दूध और डेयरी उत्पाद सहित आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन केंद्रों से बड़े शहरी बाज़ारों तक परिवहन के लिये पेश किया गया था।
  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज: इस योजना के तहत 810 मिलियन लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान किया गया और इसे आगे भी जारी रखा गया है जिसमें श्रमिकों को नवंबर, 2021 तक लाभान्वित किया जाएगा।
  • पीएम किसान योजना: किसानों को आय सहायता प्रदान करने के लिये इसके तहत 10 करोड़ से अधिक किसानों के बैंक खातों में 1,37,000 करोड़ रुपए से अधिक राशि भेजी गई है।

जलवायु परिवर्तन और कृषि योजनाएँ:

  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): इसे वर्ष 2015 में जल संसाधनों के मुद्दों को संबोधित करने और एक स्थायी समाधान प्रदान करने के लिये शुरू किया गया था जो ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ की परिकल्पना करती है।
  • हरित भारत मिशन: इसे वर्ष 2014 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) की छत्रछाया में लॉन्च किया गया था, जिसका प्राथमिक उद्देश्य भारत के घटते वन आवरण की रक्षा, पुनर्स्थापना और उसमें वृद्धि करना था।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC): इसे क्लस्टर मिट्टी के नमूनों का विश्लेषण करने और किसानों को उनकी भूमि की उर्वरता की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करने के मुख्य उद्देश्य के साथ लॉन्च किया गया था।
  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): इसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और भारत की राज्य सरकारों के संयोजन के साथ जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं तथा प्रौद्योगिकियों के अनुकूलन का व्यापक रूप से लाभ उठाने के लिये निष्पादित किया गया था।
  • बारानी क्षेत्र विकास (RAD): यह उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तनशीलता से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) पर केंद्रित है।
  • कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF): इसका उद्देश्य किसानों को जलवायु सुगमता और किसानों को आय के एक अतिरिक्त स्रोत के लिये कृषि फसलों के साथ-साथ बहुउद्देश्यीय पेड़ लगाने हेतु प्रोत्साहित करना है, साथ ही अन्य बातों के साथ-साथ लकड़ी आधारित फीडस्टॉक को बढ़ाना है। 
  • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति कृषि को लचीला बनाने के लिये तकनीकों का विकास, प्रदर्शन और प्रसार करने हेतु सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (NMSA) प्रारंभ किया गया।
  • उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCDNER): यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, यह NMSA के तहत एक उप-मिशन है, जिसका उद्देश्य प्रमाणित जैविक उत्पादन को वैल्यू चेन मोड में विकसित करना है।

अन्य कदम:

  • हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, नीली क्रांति, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मूल्य समर्थन प्रणाली।

खाद्य और कृषि संगठन:

  • FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी से बचने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्त्व करती है।
  • वर्ष 1945 में FAO की स्थापना की वर्षगाँठ को चिह्नित करने के लिये हर वर्ष 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है।
  • यह रोम (इटली) में स्थित संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सहायता संगठनों में से एक है। इसकी सहयोगी संस्थाएँ विश्व खाद्य कार्यक्रम और कृषि विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) हैं।
  • उठाए गए कदम:
    • विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (GIAHS) दुनिया भर में रेगिस्तानी टिड्डी की स्थिति पर नज़र रखती है।
    • कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन या CAC संयुक्त एफएओ/डब्ल्यूएचओ खाद्य मानक कार्यक्रम के कार्यान्वयन के संबंध में सभी मामलों के लिये ज़िम्मेदार निकाय है।
    • खाद्य और कृषि के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि।
  • प्रमुख प्रकाशन:
    • विश्व मत्स्य पालन और जलीय कृषि राज्य (SOFIA)।
    • ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड फॉरेस्ट्स।
    • विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण राज्य (SOFI)।
    • खाद्य और कृषि राज्य (SOFA)।
    • स्टेट ऑफ एग्रीकल्चरल कमोडिटी मार्केट्स (SOCO)।
    • विश्व खाद्य मूल्य सूचकांक।
  • भारत और FAO:
    • FAO अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष जो वर्ष 2016 में मनाया गया था और वर्ष 2023 को बाजरा के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित करने के लिये भारतीय प्रस्ताव का समर्थन करता है।
    • भारत ने FAO की 75वीं वर्षगाँठ (16 अक्तूबर, 2020) को चिह्नित करने के लिये 75 रुपए मूल्यवर्ग का सिक्का जारी किया।

स्रोत-पीआईबी


भारत में सीप्लेन सेवाओं के लिये समझौता ज्ञापन

प्रिलिम्स के लिये

सी-प्लेन सेवा, सागरमाला सी-प्लेन सेवाएँ 

मेन्स के लिये 

सीप्लेन सेवाओं का विकास : आवश्यकता एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

बंदरगाह, नौवहन तथा जलमार्ग मंत्रालय और नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने भारत में सी-प्लेन सेवाओं के विकास के लिये समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु

समझौता ज्ञापन (MoU) के बारे में:

  • इस समझौता ज्ञापन में भारत के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर सी-प्लेन सेवाओं के गैर-अधिसूचित/अधिसूचित प्रचालन की परिकल्पना की गई है।
  • नागरिक उड्डयन मंत्रालय की पहल आरसीएस-उड़ान (Regional Connectivity Scheme-Ude Desh Ka Aam Nagrik) के एक हिस्से के रूप में सी-प्लेन सेवाओं को विकसित किया जाएगा।
  • यह जहाज़रानी मंत्रालय वाटरफ्रंट एयरोड्रोम तथा अन्य आवश्यक बुनियादी ढाँचे की पहचान और विकास करेगा।
  • नागरिक उड्डयन मंत्रालय बिडिंग प्रक्रिया के माध्यम से संभावित एयरलाइन ऑपरेटरों का चयन करेगा। इसमें नौवहन मंत्रालय द्वारा पहचाने गए स्थान और मार्गों को भी शामिल किया जाएगा।

लाभ:

  • यह समझौता ज्ञापन भारत में नए जल हवाई अड्डों के विकास और नए सी-प्लेन मार्गों के संचालन में तेज़ी लाने में मदद करेगा।
  • यह न केवल समुद्री विमानों के माध्यम से पर्यावरण के अनुकूल परिवहन को बढ़ावा देकर पूरे देश में सहज संपर्क को बढ़ाएगा बल्कि पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा देगा।
  • इससे स्थानीय स्तर पर पर्यटन और होटल व्यवसाय में वृद्धि होगी और स्थानीय लोगों को रोज़गार भी मिलेगा।
  • जल हवाई अड्डों की स्थापना प्रस्तावित स्थलों पर वर्तमान सामाजिक आधारभूत सुविधाओं (स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, सामुदायिक आवास आदि) के स्तर में वृद्धि में योगदान देगी।

उड़ान योजना के बारे में:

  • ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (उड़ान) योजना को वर्ष 2016 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना के रूप में लॉन्च किया गया था।
  • इस योजना का उद्देश्य क्षेत्रीय मार्गों पर किफायती तथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य और लाभदायक उड़ानों की शुरुआत करना है, ताकि छोटे शहरों में भी आम आदमी के लिये सस्ती उड़ानें शुरू की जा सकें।
  • यह योजना मौजूदा हवाई-पट्टी और हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के माध्यम से देश के गैर-सेवारत और कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डों को कनेक्टिविटी प्रदान करने की परिकल्पना करती है। यह योजना 10 वर्षों की अवधि के लिये संचालित की जाएगी।
    • कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डे वे हैं, जहाँ एक दिन में एक से अधिक उड़ान नहीं भरी जाती, जबकि गैर-सेवारत हवाई अड्डे वे हैं जहाँ से कोई भी उड़ान नहीं भारी जाती है।
  • चयनित एयरलाइंस को केंद्र, राज्य सरकारों और हवाई अड्डा संचालकों द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है, ताकि वे गैर-सेवारत और कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डों पर सस्ती उड़ानें उपलब्ध करा सकें।

उड़ान 4.1 के बारे में:

  • उड़ान 4.1 मुख्यतः छोटे हवाई अड्डों, विशेष तौर पर हेलीकॉप्टर और सी-प्लेन मार्गों को जोड़ने पर केंद्रित है।
  • सागरमाला विमान सेवा के तहत कुछ नए मार्ग प्रस्तावित किये गए हैं।

सागरमाला सीप्लेन सेवाएँ:

  • यह बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय के तहत एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है।
  • इस परियोजना को भावी एयरलाइन ऑपरेटरों के माध्यम से एक विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) ढाँचे के तहत शुरू किया जा रहा है।
  • इस परियोजना को सागरमाला विकास कंपनी लिमिटेड (Sagarmala Development Company Ltd- SDCL) के माध्यम से लागू किया जाएगा जो कि बंदरगाह, जहाज़रानी और जलमार्ग मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
  • दूरदराज़ के स्थानों तक कनेक्टिविटी और आसान पहुँच प्रदान करने के लिये SDCL सी-प्लेन संचालन शुरू करके पूरे भारत में विशाल समुद्र तट और कई जल निकायों/नदियों की क्षमता का लाभ उठाने की योजना तलाश रहा है।
    • सी-प्लेन संचालन के लिये कई गंतव्यों की परिकल्पना की गई है। सी-प्लेन टेक-ऑफ और लैंडिंग हेतु आस-पास के जल निकायों का उपयोग करेंगे और इस तरह उन स्थानों को किफायती तरीके से जोड़ेंगे क्योंकि सी-प्लेन संचालन के लिये रनवे और टर्मिनल बिल्डिंग जैसे पारंपरिक हवाई अड्डे के बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता नहीं होती है।
  • मार्गों को सरकार की सब्सिडी वाली उड़ान योजना के तहत संचालित किया जा सकता है।

स्रोत: पीआईबी


जल शक्ति अभियान-II

प्रिलिम्स के लिये:

जल शक्ति अभियान-II, विश्व जल दिवस

मेन्स के लिये:

भारत में जल संसाधन की स्थिति

चर्चा में क्यों?

जल शक्ति मंत्री ने सभी सांसदों से आग्रह किया है कि वे अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों और राज्यों में चल रहे "जल शक्ति अभियान: कैच द रेन" अभियान का समर्थन करें ।

  • इस तरह के हस्तक्षेप से ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्रोत की स्थिरता सुनिश्चित होगी और मंत्रालय द्वारा लागू किये जा रहे जल जीवन मिशन को मज़बूती मिलेगी।

प्रमुख बिंदु:

  • विश्व जल दिवस (22 मार्च 2021) के अवसर पर इसे इस अभियान की थीम- ‘“कैच द रेन व्हेयर इट फॉल्स, व्हेन इट फॉल्स" विषय के साथ शुरू किया गया था।
  • इसमें देश के सभी ज़िलों के सभी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
    • वर्ष 2019 के जल शक्ति अभियान- I ने देश के 256 ज़िलों के 2836 ब्लॉकों में से केवल 1592 जल संकट वाले ब्लॉकों को कवर किया है।
  • जल शक्ति मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय जल मिशन, इसके कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी है।
  • ग्रामीण विकास विभाग के मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना) के तहत 14,000 करोड़ रुपए का जल संरक्षण संबंधी कार्य चल रहा है।

लक्ष्य:

  • अभियान का उद्देश्य मानसून की शुरुआत से पहले कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं का निर्माण, मौजूदा तालाबों और जल निकायों को पुनर्जीवित करके नए जल निकायों का निर्माण, चेक डैम का प्रावधान, आर्द्रभूमि और नदियों का कायाकल्प करके वर्षा जल का दोहन करना है।
  • देश में सभी जल निकायों को जियो टैगिंग करके और इस डेटा का उपयोग करके वैज्ञानिक एवं डेटा-आधारित जिला स्तरीय जल संरक्षण योजना बनाने के लिये एक डेटा-बेस बनाने की भी योजना है।

जल संरक्षण के लिये अन्य पहलें:

  • जल जीवन मिशन:
    • जल शक्ति मंत्रालय के तहत इस पहल का उद्देश्य ग्रामीण भारत के हर घर में पाइप से पानी की पहुँच सुनिश्चित करना है।
    • भारत सरकार ने प्रत्येक ग्रामीण परिवार अर्थात् ‘हर घर नल से जल’ (HGNSJ) को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) को जल जीवन मिशन (JJM) में पुनर्गठित करने के साथ ही इसमें सम्मिलित किया है।
  • जल जीवन मिशन (शहरी):
    • बजट 2021-22 में सतत् विकास लक्ष्य- 6 (स्वच्छ पानी और स्वच्छता)) के अनुसार सभी वैधानिक कस्बों में कार्यात्मक नलों के माध्यम से सभी घरों में पानी की आपूर्ति का सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने हेतु आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत जल जीवन मिशन (शहरी) की घोषणा की गई थी।
  • राष्ट्रीय जल मिशन:
    • यह एकीकृत जल संसाधन विकास और प्रबंधन के माध्यम से पानी के संरक्षण, अपव्यय को कम करने और राज्यों के भीतर अधिक समान वितरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • नीति आयोग का समग्र जल प्रबंधन सूचकांक:
    • जल के प्रभावी उपयोग के उद्देश्य से नीति आयोग ने समग्र जल प्रबंधन सूचकांक विकसित किया है।
  • अटल भूजल योजना:
    • यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसका मूल्य सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल के सतत् प्रबंधन के उद्देश्य के साथ 6,000 करोड़ रुपए है।
    • इसमें जल उपयोगकर्ता संघों के गठन, जल बजट, ग्राम-पंचायत-वार जल सुरक्षा योजनाओं की तैयारी और कार्यान्वयन आदि के माध्यम से लोगों की भागीदारी की परिकल्पना की गई है।

स्रोत-पीआईबी


UAPA की सीमाओं का निर्धारण: दिल्ली उच्च न्यायालय

प्रिलिम्स के लिये

गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967

मेन्स के लिये

UAPA की आवश्यकता, इसकी प्रासंगिकता और आलोचना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के एक मामले में छात्र कार्यकर्त्ताओं को जमानत दे दी है।

  • इस निर्णय के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिनियम की धारा-15 की ‘अस्पष्ट’ सीमाओं को पुनः परिभाषित किया।

प्रमुख बिंदु

उच्च न्यायालय का निर्णय

  • आतंकवादी गतिविधि की सीमा
    • सामान्य दंडात्मक अपराधों को अधिनियम के तहत ‘आतंकवादी गतिविधि’ की व्यापक परिभाषा में शामिल नहीं किया जा सकता है।
      • ऐसा करके उच्च न्यायालय ने राज्य के लिये किसी व्यक्ति पर UAPA लागू करने हेतु सीमा निर्धारित कर दी है।
    • आतंकवादी गतिविधि की सीमा एक सामान्य अपराध के प्रभाव से परे होनी चाहिये और इसमें केवल कानून-व्यवस्था या सार्वजनिक व्यवस्था में अशांति पैदा करने संबंधी गतिविधियों को शामिल नहीं किया जाना चाहिये।
      • इसके तहत ‘आतंकवाद’ की परिभाषा में उन गतिविधियों को शामिल किया जाना चाहिये, जिनसे निपटने के लिये एजेंसियाँ सामान्य कानूनों के तहत सक्षम नहीं हैं।
  • गैर-कानूनी गतिविधियों को परिभाषित करते समय सावधानी
    • देश भर के विभिन्न न्यायालयों को UAPA की धारा 15 में प्रयुक्त निश्चित शब्दों और वाक्यांशों को उनके पूर्ण शाब्दिक अर्थों में नियोजित करते समय सावधानी बरतनी चाहिये, साथ ही उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिये कि पारंपरिक और जघन्य अपराध किस प्रकार आतंकवाद से अलग हैं।
      • UAPA की धारा 15 ‘आतंकवादी कृत्यों’ को परिभाषित करती है और इसके लिये कम-से-कम पाँच वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा का प्रावधान करती है। यदि आतंकवादी कृत्य के परिणामस्वरूप किसी की मृत्यु हो जाती है, तो सज़ा मृत्यु या आजीवन कारावास है।
      • न्यायालय ने उल्लेख किया कि किस प्रकार स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने ‘करतार सिंह बनाम पंजाब राज्य’ वाद (1994) में एक अन्य आतंकवाद विरोधी कानून ‘आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1987’ (1995 में व्यपगत) के दुरुपयोग के विरुद्ध इसी तरह की चिंता ज़ाहिर की थी।
  • UAPA लागू करने का उद्देश्य
    • इस अधिनियम को लागू करने का एकमात्र उद्देश्य आतंकवादी गतिविधि को सीमित करने और ‘भारत की रक्षा’ पर गंभीर प्रभाव डालने वाले मामलों से निपटना होना चाहिये।.
    • इस अधिनियम का उद्देश्य और इरादा सामान्य प्रकार के अपराधों को कवर करना नहीं था, चाहे वे कितने भी गंभीर, असाधारण या जघन्य ही क्यों न हों।
  • विरोध प्रदर्शन का अधिकार
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सरकारी और संसदीय कार्यों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन करना पूर्णतः वैध है और यद्यपि इस तरह के विरोध प्रदर्शनों के शांतिपूर्ण और अहिंसक होने की उम्मीद होती है, किंतु ऐसी स्थिति में भी प्रदर्शनकारियों के लिये कानून की सीमा को आघात पहुँचाना कोई असामान्य घटना नहीं है।
    • न्यायालय के मुताबिक, विरोध के संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद-19) और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा कुछ धुंधली होती दिख रही है।

निर्णय का महत्त्व

  • यह पहला उदाहरण है जब किसी न्यायालय ने उन मामलों में व्यक्तियों के विरुद्ध UAPA के कथित दुरुपयोग की बात कही है, जो ज़ाहिर तौर पर ‘आतंकवाद’ की श्रेणी में नहीं आते हैं।
    • मार्च में संसद में गृह मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2019 में UAPA के तहत कुल 1126 मामले दर्ज किये गए, जबकि वर्ष 2015 में इनकी संख्या 897 ही थी।

गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967

  • UAPA को वर्ष 1967 में पारित किया गया था। इसका उद्देश्य भारत में गैर-कानूनी गतिविधियों का प्रभावी रोकथाम सुनिश्चित करना है।
    • गैरकानूनी गतिविधि किसी व्यक्ति या संघ द्वारा भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को बाधित करने के उद्देश्य से की गई किसी भी कार्रवाई को संदर्भित करती है।
  • यह अधिनियम केंद्र सरकार को पूर्ण शक्ति प्रदान करता है, जिसके माध्यम से यदि केंद्र सरकार किसी गतिविधि को गैर-कानूनी मानती है तो वह आधिकारिक राजपत्र के माध्यम से इसकी घोषणा कर उसे अधिनियम के तहत अपराध बना सकती है। 
    • इसमें अधिकतम सज़ा के तौर पर मृत्युदंड और आजीवन कारावास का प्रावधान हैं।
  • यह अधिनियम भारतीय और विदेशी दोनों नागरिकों पर लागू होता है। यह अपराधियों पर एकसमान रूप से ही लागू होता है, भले ही वह अपराध भारत के बाहर किसी विदेशी भूमि पर ही क्यों न किया गया हो।
  • UAPA के तहत जाँच एजेंसी गिरफ्तारी के बाद अधिकतम 180 दिनों में चार्जशीट दाखिल कर सकती है और न्यायालय को सूचित करने के बाद उस अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है।
  • वर्ष 2004 में किये गए संशोधन के तहत आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न संगठनों पर प्रतिबंध लगाने हेतु अपराधों की सूची में ‘आतंकवादी कृत्यों’ को भी शामिल कर लिया गया, जिसके पश्चात् कुल 34 संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
    • वर्ष 2004 तक ‘गैर-कानूनी’ गतिविधियों के तहत अलगाव और अधिग्रहण संबंधित कृत्यों को ही शामिल किया जाता था।
  • अगस्त, 2019 में संसद ने अधिनियम में प्रदान किये गए कुछ विशिष्ट आधारों पर किसी विशिष्ट व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में नामित करने हेतु गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 को मंज़ूरी दी।
    • यह अधिनियम मामले की जाँच के दौरान ‘राष्ट्रीय जाँच एजेंसी’ (NIA) के महानिदेशक को संपत्ति की ज़ब्ती या कुर्की करने की मंज़ूरी देने का अधिकार देता है।
    • यह अधिनियम NIA के इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों को राज्य में DSP या ASP या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी से संबंधित मामलों के अतिरिक्त आतंकवाद के सभी मामलों की जाँच करने का अधिकार देता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


युद्ध इतिहास के अवर्गीकरण संबंधी नीति

प्रिलिम्स के लिये

युद्ध इतिहास के अवर्गीकरण संबंधी हालिया नीति

मेन्स के लिये

युद्ध इतिहास के अवर्गीकरण के संबंध में नीति की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय रक्षा मंत्री ने रक्षा मंत्रालय (MoD) के युद्ध एवं ऑपरेशन संबंधी इतिहास के संग्रह, अवर्गीकरण (Declassification), संकलन और प्रकाशन पर एक नीति को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

आधिकारिक रिकॉर्ड की आवश्यकता

  • युद्ध एवं ऑपरेशन संबंधी इतिहास का समय पर प्रकाशन आम-जनमानस को घटनाओं का सटीक विवरण प्रदान करेगा, अकादमिक शोध के लिये प्रामाणिक सामग्री प्रदान करेगा और निराधार अफवाहों को रोकेगा।
  • किसी भी युद्ध और ऑपरेशन से सीखे गए सबक का विश्लेषण करने और भविष्य की गलतियों को रोकने के लिये ‘के. सुब्रह्मण्यम’ की अध्यक्षता वाली कारगिल समीक्षा समिति (2019) ने एक स्पष्ट नीति के साथ युद्ध इतिहास को लिखे जाने की आवश्यकता की सिफारिश की थी। 
  • कारगिल संघर्ष के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर मंत्रियों के एक समूह (2001) की सिफारिशों में भी एक आधिकारिक युद्ध इतिहास की वांछनीयता का उल्लेख किया गया था।

नीति के प्रावधान

  • रिकॉर्ड का स्थानांतरण: रक्षा मंत्रालय के तहत प्रत्येक संगठन जैसे- तीनों सेवाएँ (थल सेना, वायु सेना और नौसेना), एकीकृत रक्षा कर्मचारी, असम राइफल्स और तटरक्षक बल आदि को युद्ध संबंधी और ऑपरेशन संबंधी विभिन्न रिकॉर्ड्स जैसे- युद्ध डायरी, कार्यवाही पत्र और ऑपरेशन रिकॉर्ड बुक आदि को रक्षा मंत्रालय के इतिहास विभाग को उचित रखरखाव, अभिलेखीय और इतिहास लेखन हेतु स्थानांतरित करना होगा। 
    • इतिहास विभाग युद्ध और संचालन इतिहास के संकलन, अनुमोदन और प्रकाशन के दौरान विभिन्न विभागों के साथ समन्वय के लिये उत्तरदायी होगा।
  • समिति का गठन: युद्ध और ऑपरेशन इतिहास के संकलन के लिये यह नीति, रक्षा मंत्रालय के संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में एक समिति के गठन का प्रावधान करती है, जिसमें आवश्यकता के अनुसार, तीनों सेवाओं, विदेश मंत्रालय (MEA), गृह मंत्रालय (MHA) और अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ देश के प्रमुख सैन्य इतिहासकार भी शामिल हो सकते हैं।
  • समयसीमा: यह नीति युद्ध और ऑपरेशन इतिहास के संकलन एवं प्रकाशन के संबंध में स्पष्ट समयसीमा निर्धारित करती है।
    • युद्ध और ऑपरेशन के पूरा होने के दो वर्ष के भीतर समिति का गठन किया जाना अनिवार्य है।
    • इसके पश्चात् आगामी तीन वर्ष के भीतर अभिलेखों का संग्रह और संकलन पूरा किया जाना चाहिये तथा उसे सभी संबंधित हितधारकों को भेजा जाना चाहिये।
    • नीति के अनुसार, सभी अभिलेखों को सामान्यतः 25 वर्षों में अवर्गीकृत किया जाएगा।
    • 25 वर्ष से अधिक पुराने अभिलेखों का अभिलेखीय विशेषज्ञों द्वारा मूल्यांकन किया जाना चाहिये और युद्ध/ऑपरेशन इतिहास संकलित होने के बाद उन्हें भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिये।
  • अभिलेखों के अवर्गीकरण का उत्तरदायित्व: अभिलेखों के अवर्गीकरण (Declassification) का उत्तरदायित्व पब्लिक रिकॉर्ड एक्ट 1993 और पब्लिक रिकॉर्ड रूल्स 1997 में निर्दिष्ट संगठनों को सौंपा गया है।
  • आंतरिक उपयोग: युद्ध और ऑपरेशन से संबंधित संकलित इतिहास को सर्वप्रथम प्रारंभिक पाँच वर्ष के भीतर केवल आंतरिक उपयोग के लिये ही प्रयोग किया जाएगा और इसके पश्चात् समिति विषय की संवेदनशीलता को देखते हुए उसे पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से सार्वजनिक करने का निर्णय ले सकती है।

पुराने युद्ध संबंधी दस्तावेज़ों का अवर्गीकरण:

  • वर्ष 1962 के युद्ध और ऑपरेशन ब्लूस्टार जैसे युद्धों और ऑपरेशन्स से संबंधित दस्तावेज़ों का अवर्गीकरण (Declassification) स्वचालित नहीं होता है, बल्कि नई नीति के तहत गठित समिति द्वारा मामले की संवेदनशीलता के आधार निर्णय लिया जाएगा।

स्रोत: द हिंदू


हुमायूँ का मकबरा: मुगल वास्तुकला

प्रिलिम्स के लिये: 

हुमायूँ का मकबरा, ASI

मेन्स के लिये: 

मुगलकालीन वास्तुकला की विशेताएँ और उदाहरण

चर्चा में क्यों?

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) ने अधिसूचित किया कि हुमायूँ के मकबरे सहित देश भर के सभी केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारक, स्थल और संग्रहालय 16 जून, 2021 से आगंतुकों के लिये खोल दिये हैं।

  • दिल्ली स्थित हुमायूँ का मकबरा महान मुगल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है।
  • संस्कृति मंत्रालय के तहत कार्यरत ASI, पुरातातात्त्विक अनुसंधान और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।

प्रमुख बिंदु:

हुमायूँ का मकबरा:

Humayun-Tomb

  • संदर्भ:
    • इस मकबरे का निर्माण वर्ष 1570 में हुआ था। यह मकबरा विशेष सांस्कृतिक महत्त्व का है क्योंकि यह भारतीय उपमहाद्वीप का पहला उद्यान-मकबरा था।
      • इसकी अनोखी सुंदरता को अनेक प्रमुख वास्‍तुकलात्‍मक नवाचारों से प्रेरित कहा जा सकता है, जो एक अतुलनीय ताजमहल के निर्माण में प्रवर्तित हुआ।
    • इसका निर्माण हुमायूँ के पुत्र महान सम्राट अकबर के संरक्षण में किया गया था।
    • इसे 'मुगलों का शयनागार' भी कहा जाता है क्योंकि इसके कक्षों में 150 से अधिक मुगल परिवार के सदस्य दबे हुए हैं।
    • हुमायूँ का मकबरा चारबाग (कुरान के स्वर्ग की चार नदियों के साथ चार चतुर्भुज उद्यान) का एक उदाहरण है, जिसमें चैनल शामिल हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने वर्ष 1993 में इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी।

मुगल वास्तुकला:

  • संदर्भ:
    • यह एक इमारत शैली है जो 16वीं सदी के मध्य से 17वीं सदी के अंत तक मुगल सम्राटों के संरक्षण में उत्तरी और मध्य भारत में फली-फूली।
    • मुगल काल ने उत्तरी भारत में इस्लामी वास्तुकला के एक महत्त्वपूर्ण पुनरुद्धार को चिह्नित किया। मुगल बादशाहों के संरक्षण में फारसी, भारतीय और विभिन्न प्रांतीय शैलियों को गुणवत्ता और शोधन कार्यों के लिये संरक्षण दिया गया था।
    • यह विशेष रूप से उत्तर भारत में इतना व्यापक हो गई कि इसे इंडो-सरसेनिक शैली के औपनिवेशिक वास्तुकला में भी देखा जा सकता है।
  • महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ:
    • मिश्रित वास्तुकला: यह भारतीय, फारसी और तुर्की स्थापत्य शैली का मिश्रण था।
    • विविधता: विभिन्न प्रकार की इमारतें, जैसे- राजसी द्वार (प्रवेश द्वार), किले, मकबरे, महल, मस्जिद, सराय आदि इसकी विविधता थी।
    • भवन निर्माण सामग्री: इस शैली में अधिकतर लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर का प्रयोग किया जाता था।
    • विशेषता: इस शैली में विशिष्ट विशेषताएँ हैं जैसे- मकबरे की चारबाग शैली, स्पष्ट बल्बनुमा गुंबद, कोनों पर पतले बुर्ज, चौड़े प्रवेश द्वार, सुंदर सुलेख, अरबी और स्तंभों तथा दीवारों पर ज्यामितीय पैटर्न एवं स्तंभों पर समर्थित महल हॉल आदि थी।
      • मेहराब, छतरी और विभिन्न प्रकार के गुंबद भारत-इस्लामी वास्तुकला में बेहद लोकप्रिय हो गए तथा मुगलों के शासन के तहत इसे और विकसित किया गया।
  • उदाहरण:
    • ताजमहल:
      • शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में वर्ष 1632-1653 के बीच इसका निर्माण कराया था।
      • यूनेस्को ने वर्ष 1983 में ताजमहल को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी। यह आगरा में स्थित है।
    • लाल किला:
      • वर्ष 1618 में शाहजहाँ ने इसका निर्माण तब कराया जब उसने राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने का फैसला किया। यह मुगल शासकों का निवास स्थान था।
      • यूनेस्को ने इसे वर्ष 2007 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया था।
    • जामा मस्जिद:
      • इसका निर्माण दिल्ली में शाहजहाँ द्वारा किया गया था। इसका निर्माण कार्य वर्ष 1656 में पूरा हुआ था।
    • बादशाही मस्जिद:
      • इसका निर्माण औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान हुआ। वर्ष 1673 मेंइसके पूरा होने के समय यह विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद थी। यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में स्थित है।

स्रोत: द हिंदू


दक्षिण-पश्चिम मानसून

प्रिलिम्स के लिये:

चक्रवात यास, अंतः ऊष्णकटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र

मेन्स के लिये:

समय पूर्व मानसून का कारण और प्रभाव, दक्षिण-पश्चिम मानसून और इसे प्रभावित करने वाले कारक 

चर्चा में क्यों?

निर्धारित समय से दो दिन देरी से केरल तट पर पहुँचने के बाद दक्षिण पश्चिम मानसून दक्षिण प्रायद्वीपीय और मध्य भारत के कुछ क्षेत्रों में जल्दी पहुँच गया है।

प्रमुख बिंदु:

कारण:

  • मई माह में बंगाल की खाड़ी में विकसित चक्रवात यास ने अंडमान सागर के ऊपर महत्त्वपूर्ण दक्षिण-पश्चिम मानसूनी पवनों को लाने में मदद की।
    • नियमानुसार दक्षिण अंडमान समुद्र पर अपने आगमन के लगभग दस दिन बाद मानसून  सबसे पहले केरल में दस्तक देता है।
  • केरल में देरी से प्रवेश के बाद इसकी गति में वृद्धि मुख्य रूप से अरब सागर से तेज़ पश्चिमी पवनों और बंगाल की उत्तरी खाड़ी के ऊपर एक कम दबाव प्रणाली के गठन के कारण हुई, जो वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार पर स्थित है।
  • महाराष्ट्र और केरल के बीच बनी एक अपतटीय द्रोणिका ने मानसून को कर्नाटक, गोवा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात में जल्दी पहुँचने में मदद की है।

आगे की स्थिति:

  • उत्तर-पश्चिम भारत में मानसून तभी सक्रिय होता है जब मानसून की धाराएँ या तो अरब सागर से या बंगाल की खाड़ी से इस क्षेत्र में प्रवेश करती हैं। चूँकि इस घटना के जल्द घटित होने की संभावना नहीं है, अतः मानसून की प्रगति धीमी रहेगी।
  • साथ ही मध्य अक्षांश की पश्चिमी पवनों की एक धारा उत्तर पश्चिमी भारत की ओर प्रवाहित हो रही है, जो आने वाले दिनों में मानसून की प्रगति में बाधा उत्पन्न करेगी।

समय पूर्व मानसून और वर्षा की मात्रा:

  • किसी क्षेत्र में मानसून के आगमन के दौरान प्राप्त वर्षा की मात्रा या मानसून की प्रगति पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • उदाहरण के लिये मानसून ने वर्ष 2014 में 42 दिन और वर्ष 2015 में 22 दिन में पूरे देश को कवर किया। इतनी अलग श्रेणियों के साथ भी भारत में दोनों वर्षों के दौरान कम वर्षा दर्ज की गई।

ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसलों पर प्रभाव:

  • मध्य और उत्तरी भारत में मानसून के जल्दी आने से किसानों को धान, कपास, सोयाबीन और दलहन जैसी ग्रीष्म ऋतु में बोई जाने वाली फसलों की बुवाई में तेज़ी लाने में मदद मिलेगी और फसल की पैदावार भी बढ़ सकती है।

जलवायु परिवर्तन के संकेत:

  • देश के विभिन्न हिस्सों में प्रत्येक वर्ष मानसून की शुरुआत समय से पहले या देर से हो सकती है। मानसून की जटिलता को देखते हुए इन बदलावों को आमतौर पर सामान्य माना जाता है।
  • हालाँकि जलवायु विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के संकेत के रूप में चार महीनों (जून-सितंबर) के दौरान कम समय के भीतर एक क्षेत्र में तीव्र वर्षा या लंबे समय तक शुष्क मौसम को चरम मौसमी घटनाओं को जोड़ा है।

भारत में मानसून:

संदर्भ:

  • भारत की जलवायु को 'मानसून' प्रकार के रूप में वर्णित किया गया है। एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्य रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है।
  • भारत के कुल 4 मौसमी भागों में से मानसून 2 भागों में व्याप्त है, अर्थात्:
    • दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम - दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्राप्त वर्षा मौसमी है, जो जून और सितंबर के मध्य होती है।
    • मानसून का निवर्तन- अक्तूबर और नवंबर माह को मानसून की वापसी या मानसून का निवर्तन के लिये जाना जाता है।

Arabian-Sea

दक्षिण-पश्चिम मानसून के गठन को प्रभावित करने वाले कारक:

  • भूमि और जल के अलग-अलग तापमान के कारण भारत के भूभाग पर कम दाब बनता है जबकि आसपास की समुद्री सतह पर तुलनात्मक रूप से उच्च दाब का विकास होता है।
  • ग्रीष्म ऋतु में गंगा के मैदान के ऊपर अंतः ऊष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Inter Tropical Convergence Zone- ITCZ) की स्थिति में बदलाव (यह विषुवत वृत्त पर स्थित एक निम्नदाब वाला क्षेत्र है। इसे कभी -कभी मानसूनी गर्त भी कहते हैं)।
  • हिंद महासागर के ऊपर लगभग 20° दक्षिणी अक्षांश पर अर्थात् मेडागास्कर के पूर्व में उच्च दबाव वाले क्षेत्र की उपस्थिति पाई जाती है। इस उच्च दबाव वाले क्षेत्र की तीव्रता और स्थिति भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।
  • तिब्बत का पठार ग्रीष्मकाल के दौरान तीव्र रूप से गर्म हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पवन की प्रबल ऊर्ध्वाधर धाराएँ पैदा होती हैं और तिब्बत के पठार की सतह पर निम्न दाब का निर्माण होता है।
  • पश्चिमी जेट धारा का हिमालय के उत्तर की ओर विस्थापित होना और गर्मियों के दौरान भारतीय प्रायद्वीप पर उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम की उपस्थिति भी भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।
  • अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO): आमतौर पर जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी दक्षिण प्रशांत महासागर में उच्च दबाव का क्षेत्र बनता होता है तो उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिंद महासागर में निम्न दबाव का विकास होता है। लेकिन कुछ वर्षों में दबाव की स्थिति में उलटफेर होता है और पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में दबाव कम होता है। दबाव की स्थिति में यह आवधिक परिवर्तन SO के रूप में जाना जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


परमाणु शस्त्रागार का वैश्विक विस्तार: SIPRI रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये

परमाणु शस्त्रागार का वैश्विक विस्तार, SIPRI रिपोर्ट, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट 

मेन्स के लिये  

परमाणु शस्त्रागार का वैश्विक विस्तार और इससे संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित SIPRI इयरबुक (SIPRI Yearbook) 2021 के अनुसार, विश्व स्तर पर तैयार और तैनात परमाणु हथियारों की संख्या में वृद्धि हुई है। 

  • SIPRI इयरबुक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute- SIPRI) द्वारा जारी की जाती है जो अंतर्राष्ट्रीय आयुध और संघर्ष पर शोध करता है।
  • SIPRI "ईयरबुक 2021" हथियारों, निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की वर्तमान स्थिति का आकलन करता है।

प्रमुख बिंदु

नौ परमाणु शस्त्र संपन्न देश:

  • अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इज़राइल तथा उत्तरी कोरिया विश्व के 9 परमाणु हथियार संपन्न देश हैं।
    • इन देशों के पास वर्ष 2021 की शुरुआत में अनुमानित 13,080 परमाणु हथियार थे।
    • रूस और अमेरिका के पास कुल मिलाकर 90% से अधिक वैश्विक परमाणु हथियार हैं और साथ ही वे व्यापक और महँगे आधुनिकीकरण कार्यक्रम भी चल रहे हैं।
      • अमेरिका और रूस दोनों ने न्यू स्टार्ट (New START) संधि के विस्तार को मंज़ूरी दे दी है।
  • चीन के परमाणु शस्त्रागार में वर्ष 2020 की शुरुआत में 320 से ऊपर 350 वॉरहेड शामिल थे।
    • चीन की स्थिति एक महत्त्वपूर्ण आधुनिकीकरण और परमाणु हथियार सूची के विस्तार के बीच स्थित है।
  • वर्ष 2021 की शुरुआत में भारत के पास 156 परमाणु हथियार हैं, जो कि पिछले वर्ष (2020) की शुरुआत में 150 थे, वहीं पाकिस्तान के पास पिछले वर्ष 160 थे जो अब 165 हो गए हैं।
    • भारत और पाकिस्तान नई प्रौद्योगिकियों एवं क्षमताओं की तलाश कर रहे हैं जो परमाणु सीमा के तहत एक-दूसरे की रक्षा को खतरनाक रूप से कमज़ोर करती हैं।
  • पारदर्शिता का निम्न स्तर: परमाणु शस्त्रागार की स्थिति और परमाणु-सशस्त्र राज्यों की क्षमताओं पर उपलब्ध विश्वसनीय जानकारी की  स्थिति भी काफी भिन्न है। 

सबसे बड़ा सैन्य खर्च:

  • वर्ष 2020 में कुल खर्च में वृद्धि काफी हद तक संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन (क्रमशः पहले और दूसरे सबसे बड़े खर्च करने वाले) के व्यय पैटर्न से प्रभावित थी।
  • वर्ष 2020 में 72.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के खर्च में 2.1% की वृद्धि हुई, जिसने भारत को विश्व में तीसरे सबसे बड़े सैन्य ऋणदाता के रुप में स्थान दिया।

प्रमुख हथियारों के आयातक:

  • SIPRI ने वर्ष 2016-20 में 164 राज्यों को प्रमुख हथियारों के आयातक के रूप में पहचाना।
  • पाँच सबसे बड़े हथियार आयातक देश थे- सऊदी अरब, भारत, मिस्र, ऑस्ट्रेलिया एवं चीन और कुल हथियारों के आयात में इनका हिस्सा 36% था।
  • क्षेत्रवार: वर्ष 2016-20 के दौरान प्रमुख हथियारों की आपूर्ति की सबसे बड़ी मात्रा प्राप्त करने वाला क्षेत्र एशिया और ओशिनिया था, जो वैश्विक कुल आपूर्ति का 42% था, इसके बाद मध्य पूर्व का स्थान है जिसे 33% हिस्सा प्राप्त हुआ।

प्रमुख हथियारों के आपूर्तिकर्त्ता:

  • वर्ष 2016-20 के दौरान पाँच सबसे बड़े आपूर्तिकर्त्ताओं संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, फ्राँस, जर्मनी और चीन का प्रमुख हथियारों के निर्यात में हिस्सा 76% था।

सशस्त्र संघर्ष के हालिया उदाहरण:

  • कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच क्षेत्रीय संघर्ष। वर्ष 2020 में स्थिति बड़े पैमाने पर सशस्त्र हिंसा की अपेक्षा निम्न स्तर की यथास्थिति में वापस आ गई।
  • जून 2020 में पाँच दशकों में पहली बार कश्मीर के विवादित पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन और भारत के बीच सीमा तनाव घातक हो गया।
  • नवंबर 2020 में उत्तरी इथियोपिया के टाइग्रे क्षेत्र (Tigray Region) में संघीय सरकारी बलों और टाइग्रे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट के बीच एक नया सशस्त्र संघर्ष छिड़ गया, जिसमें हज़ारों लोग मारे गए और 46,000 से अधिक शरणार्थियों को पूर्वी सूडान में भागने के लिये मजबूर होना पड़ा। 

परमाणु हथियार

इसके बारे में:

  • परमाणु हथियार एक उपकरण है जिसे परमाणु विखंडन, परमाणु संलयन या दोनों के संयोजन के परिणामस्वरूप विस्फोटक तरीके से ऊर्जा जारी करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • विखंडन हथियारों को आमतौर पर परमाणु बम के रूप में जाना जाता है, और संलयन हथियारों को थर्मोन्यूक्लियर बम या सामान्यतः हाइड्रोजन बम के रूप में संदर्भित किया जाता है।
  • 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में हुए बम धमाकों में इनका इस्तेमाल किया गया।

परमाणु प्रसार और परीक्षण को रोकने वाली संधियाँ

  • परमाणु हथियारों के अप्रसार पर संधि (NPT)।
  • वायुमंडल के बाहरी अंतरिक्ष में और पानी के नीचे परमाणु हथियार परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने वाली संधि जिसे आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि (Partial Test Ban Treaty- PTBT) के रूप में भी जाना जाता है।
  • व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty- CTBT) पर वर्ष 1996 में हस्ताक्षर किये गए थे, लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हुई है।
  • परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि (TPNW) जो 22 जनवरी, 2021 को लागू हुई।

अन्य संबंधित पहलें:

  • परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह, मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था, बैलिस्टिक मिसाइल प्रसार के खिलाफ हेग आचार संहिता और वासेनर अरेंजमेंट।

भारत का परमाणु हथियार कार्यक्रम:

  • भारत ने मई 1974 में अपने पहले परमाणु उपकरण का परीक्षण किया और परमाणु हथियारों के अप्रसार संधि (NPT) और व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) दोनों से बाहर है।
  • हालाँकि भारत का अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ एक सुविधा-विशिष्ट सुरक्षा उपाय समझौता है और उसे परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) से छूट मिली है जो इसे वैश्विक नागरिक परमाणु प्रौद्योगिकी वाणिज्य में भाग लेने की अनुमति देता है।
  • इसे वर्ष 2016 में मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) में वर्ष 2017 में वासेनर अरेंजमेंट और वर्ष 2018 में ऑस्ट्रेलिया समूह में एक सदस्य के रूप में शामिल किया गया था।
  • भारत ने परमाणु हथियारों के पहले प्रयोग नहीं करने की अपनी आधिकारिक प्रतिबद्धता को बनाए रखा है।

स्रोत: द हिंदू