आंतरिक सुरक्षा
अर्जुन मेन बैटल टैंक ‘MK-1A’
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने स्वदेशी रूप से विकसित ‘अर्जुन मेन बैटल टैंक’ (MBT) ‘MK-1A’ भारतीय सेना को सौंप दिया है।
प्रमुख बिंदु
परिचय
- लॉन्च: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा ‘अर्जुन मेन बैटल टैंक’ परियोजना की शुरुआत वर्ष 1972 में की गई थी तथा लड़ाकू वाहन अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान (CVRDE) को इसकी प्रमुख प्रयोगशाला के रूप में नामित किया गया था।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य बेहतर फायर पावर, उच्च गतिशीलता और उत्कृष्ट सुरक्षा के साथ एक अत्याधुनिक टैंक बनाना है।
अर्जुन टैंक की विशेषताएँ
- ‘अर्जुन मेन बैटल टैंक’ में स्वदेशी रूप से विकसित 120mm राइफल और आर्मर पियर्सिंग फिन-स्टैबिलाइज़्ड डिस्करिंग सबोट (FSAPDS) युद्धोपकरण शामिल हैं।
- FSAPDS प्रत्यक्ष शूटिंग रेंज में सभी ज्ञात टैंकों को नष्ट करने में सक्षम है।
- इसमें एक कंप्यूटर-नियंत्रित एकीकृत अग्नि नियंत्रण प्रणाली भी है।
- अर्जुन टैंक में गौण युद्धक हथियारों में एंटी-पर्सोनल लक्ष्यों (सॉफ्ट लक्ष्य यानी अपेक्षाकृत कम सुरक्षित लक्ष्य) के लिये 7.62mm मशीन गन और एंटी-एयरक्राफ्ट तथा ज़मीनी लक्ष्यों के लिये 12.7mm मशीन गन का प्रयोग किया गया है।
Mk1A और MkII
- अर्जुन ‘Mk1’ के विकास के बाद इसके उन्नत संस्करण यथा- ‘Mk1A’ तथा ‘MkII का विकास किया गया है।
- अर्जुन ‘Mk1’, जिसमें बेहतर मारक क्षमता और ट्रांसमिशन सिस्टम शामिल है, ने वर्ष 2019 में अपना अंतिम एकीकरण परीक्षण पूरा किया था और इसके उत्पादन के लिये मंज़ूरी दे दी गई है।
- अर्जुन ‘MkII’ इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर और हाई-पावर लेज़र के साथ एक हल्के वज़न वाला फ्यूचरिस्टिक मेन बैटल टैंक (FMBT) है।
‘Mk1A’ की विशेषता
- ‘Mk1A’ संस्करण में पूर्व के संस्करण पर 14 प्रमुख अपग्रेड विशेषताएँ शामिल हैं। डिज़ाइन के अनुसार, इसमें मिसाइल फायरिंग क्षमता भी मौजूद है।
- हालाँकि सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इस नवीनतम संस्करण में 54.3 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है, जबकि पूर्व के संस्करण में 41 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री का प्रयोग किया गया था।
- नव विकसित ‘कंचन’ मॉड्यूलर आर्मर, इस टैंक को सभी प्रकार के टैंक-रोधी युद्धोपकारणों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- ‘कंचन’ का निर्माण ‘डिफेंस मेटैलर्जिकल रिसर्च लेबोरेटरी’ (DMRL)- एक DRDO प्रयोगशाला द्वारा किया गया है, जो कि DRDO की एक प्रयोगशाला है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)
- DRDO भारत के लिये एक विश्व स्तरीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधार स्थापित करने की दिशा में कार्य करता है और इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी प्रणाली एवं समाधान प्रस्तुत कर भारत के सशस्त्र बलों को निर्णायक बढ़त प्रदान करना है।
- DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय संचार मंत्रालय ने अवांछित वाणिज्यिक संचार (UCC) की शिकायतों और वित्तीय धोखाधड़ी (विशेष रूप से डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में) के मामलों से निपटने के लिये डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) को एक नोडल एजेंसी के रूप में स्थापित करने का निर्णय लिया है।
- DIU के अलावा सभी 22 लाइसेंस सेवा क्षेत्र स्तरों पर ‘टेलीकॉम एनालिटिक्स फॉर फ्रॉड मैनेजमेंट एंड कंज़्युमर प्रोटेक्शन’ (TAFCOP) का विकास किया जाएगा।
- यह ‘दूरसंचार वाणिज्यिक संचार ग्राहक वरीयता विनियम’ (TCCCPR), 2018 का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करेगा, जो भारत में 'अवांछित वाणिज्यिक संचार' (UCC) को विनियमित करने के लिये एक संशोधित नियामक ढाँचा प्रदान करता है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय (HC) ने भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) को आदेश दिया कि वह अवांछित वाणिज्यिक संचार (UCC) पर अंकुश लगाने के लिये वर्ष 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी किये गए विनियमन के "पूर्ण और सख्त" कार्यान्वयन को सुनिश्चित करे।
- इससे पहले नवंबर 2020 में TRAI ने भारत संचार निगम लिमिटेड, वोडाफोन आइडिया और रिलायंस जियो इन्फोकॉम जैसी दूरसंचार कंपनियों द्वारा अप्रैल 2020 से जून 2020 के बीच अपने नेटवर्क पर होने वाले UCC को नियंत्रित करने के लिये पर्याप्त उपाय न करने के कारण उन पर 30 करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया था।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिये अपनी वार्षिक रिपोर्ट में पिछले एक वर्ष में क्रेडिट और डेबिट कार्ड के दुरुपयोग, पहचान की क्लोनिंग और स्पैम से संबंधित 220 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की बात कही। DIU इस खतरे को कम कर सकता है।
डिजिटल इंटेलिजेंस यूनिट (Digital Intelligence Unit):
- उद्देश्य:
- दूरसंचार संसाधनों से जुड़ी किसी भी धोखाधड़ी की गतिविधि की जाँच में विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों, वित्तीय संस्थानों और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के बीच समन्वय स्थापित करना।
- महत्त्व:
- अवांछित वाणिज्यिक संचार (UCC) की जाँच:
- UCC का मुद्दा दूरसंचार मंत्रालय के साथ-साथ भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के लिये चिंता का प्रमुख विषय रहा है। UCC को रोकने के निर्देशों का पालन नहीं करने के कारण समय-समय पर दूरसंचार ऑपरेटरों पर जुर्माना लगाया गया है।
- शिकायतों का प्रभावी निवारण:
- शिकायतों के प्रभावी निवारण के लिये DIU के अलावा एक वेब और मोबाइल एप के साथ-साथ एक एसएमएस-आधारित प्रणाली विकसित की जाएगी।
- डिजिटल इकोसिस्टम के प्रति विश्वास बढ़ाना:
- डीआईयू प्रणाली डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के प्रति लोगों के विश्वास को मज़बूत करेगी और वित्तीय डिजिटल लेन-देन (मुख्य रूप से मोबाइल से संबंधित) को अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय बनाएगी, जिसके परिणामस्वरूप डिजिटल इंडिया को बढ़ावा मिलेगा।
- ओवर-द-टॉप (OTT) सेवाओं पर UCC:
- TRAI ओवर-द-टॉप (OTT) सेवाओं के माध्यम से किये जाने वाले अवांछित वाणिज्यिक संचार से निपटने के लिये एक परामर्श पत्र प्रस्तुत करने वाला है। हालाँकि वर्तमान में लॉन्च की गई प्रणालियाँ ओवर-द-टॉप (OTT) सेवा प्रदाताओं जैसे-व्हाट्सएप पर UCC के मुद्दे को संबोधित नहीं करती हैं।
- दूरसंचार वाणिज्यिक संचार ग्राहक वरीयता विनियम, 2018 ने दूरसंचार पारिस्थितिकी तंत्र के सभी हितधारकों के लिये मानदंडों को सख्त किया है, ताकि उपयोगकर्त्ताओं को अवांछित कॉल या एसएमएस के खिलाफ शिकायत करने की सुविधा मिल सके। हालाँकि यूसीसी के मामले में OTT सेवा प्रदाता अब तक इन नियमों की पहुँच से बाहर हैं।
- अवांछित वाणिज्यिक संचार (UCC) की जाँच:
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण
(Telecom Regulatory Authority of India):
सांविधिक निकाय:
- TRAI की स्थापना वर्ष 1997 में 'भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997' द्वारा की गई थी
उद्देश्य:
- दूरसंचार सेवाओं के लिये टैरिफ के निर्धारण/संशोधन सहित दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करना।
- एक निष्पक्ष और पारदर्शी नीति वातावरण प्रदान करना जो सभी को सामान स्तर पर भागीदारी के अवसर के साथ निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा की सुविधा देता है।
हालिया संशोधन :
- वर्ष 2000 में 'दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण (Dispute Settlement and Appellate Tribunal- TDSAT) की स्थापना के लिये ट्राई अधिनियम में संशोधन किया गया थ और इसके साथ ही अधिनिर्णय तथा विवाद निस्तारण से जुड़े TRAI के कार्यों को TDSAT को सौंप दिया गया।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भुवन पोर्टल
चर्चा में क्यों?.
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और ‘मैप माई इंडिया’ ने एक स्वदेशी भू-स्थानिक पोर्टल “भुवन' को प्रारंभ करने के लिये आपस में भागीदारी की है।
- यह भारत में लागू भू-स्थानिक क्षेत्र से संबंधित नए दिशा-निर्देशों के अनुरूप है।
प्रमुख बिंदु:
भू-स्थानिक पोर्टल ‘भुवन':
- यह एक प्रकार का वेब पोर्टल है, जिसका उपयोग इंटरनेट के माध्यम से भौगोलिक जानकारी (भू-स्थानिक जानकारी) और अन्य संबंधित भौगोलिक सेवाओं (प्रदर्शन, संपादन, विश्लेषण आदि) को खोजने और उनका उपयोग करने के लिये किया जाता है।
सहयोग:
- इस पोर्टल के अंतर्गत मैप माई इंडिया का डेटाबेस इसरो के ‘उच्च-अंतः उपग्रह कैटालॉग’ और पृथ्वी अवलोकन संबंधी डेटा के साथ जुड़ेगा जो इसरो के उपग्रहों के माध्यम से प्राप्त होता है।
- पृथ्वी से संबंधित प्रेक्षण डेटासेट, नेविगेशन इन इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC), वेब सर्विसेज़ और ‘मैप माई इंडिया’ में उपलब्ध एपीआई (एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस) का प्रयोग करके एक संयुक्त भू-स्थानिक पोर्टल तैयार किया जा सकेगा।
- एपीआई एक सॉफ्टवेयर मध्यस्थ है जो दो एप्लीकेशंस (Applications) को एक-दूसरे से जोड़ने की अनुमति देता है।
- यह एक कंप्यूटिंग इंटरफेस है जो कई सॉफ्टवेयर मध्यस्थों के बीच संबंधों को परिभाषित करता है।
पोर्टल का महत्त्व:
- शुद्ध मानचित्रण:
- यह पोर्टल भारत सरकार से उपलब्ध जानकारी के अनुसार, देश की वास्तविक सीमाओं को दर्शाएगा।
- निजता की रक्षा:
- विदेशी मानचित्र एप्स के बजाय ‘मैप माई इंडिया’ के एप्लीकेशन का उपयोग कर उपयोगकर्त्ता अपनी गोपनीयता की बेहतर ढंग से सुरक्षा कर सकते हैं।
- विदेशी सर्च इंजन और कंपनियाँ फ्री मानचित्र पेश करने का दावा करती हैं, परंतु वास्तव में वे विज्ञापन के साथ एक उपयोगकर्त्ता को लक्षित कर एवं उपयोगकर्त्ता की गोपनीयता पर हमला कर उसकी अवस्थिति और निजी जानकारी संबंधी डेटा की नीलामी करके पैसा कमाते हैं। ‘मैप माई इंडिया’ में विज्ञापन का ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
- आत्मनिर्भर भारत: एक भारतीय पोर्टल होने के नाते यह सरकार के आत्मनिर्भर मिशन को मज़बूती प्रदान करेगा।
- ‘मैप माई इंडिया’
- यह एक भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनी है जो डिजिटल मानचित्र संबंधी डेटा, टेलीमैटिक्स सेवाओं, ग्लोबल इंफॉर्मेशन सिस्टम और कृत्रिम बुद्धिमता संबंधी सेवाएँ प्रदान करती है।
- यह ‘गूगल मैप’ का एक विकल्प है, जिसमें 7.5 लाख भारतीय गाँव और 7,500 शहर शामिल हैं।
- डेटाबेस:
- इसके डेटाबेस में 63 लाख किमी. का एक सड़क नेटवर्क है और संस्था का दावा है कि यह देश का सबसे विस्तृत डिजिटल मानचित्र डेटाबेस है।
- प्रयोग:
- भारत में लगभग सभी वाहन निर्माता जो ‘बिल्ट-इन नेविगेशन सिस्टम’ प्रदान करते हैं, वे ‘मैप माई इंडिया’ का उपयोग कर रहे हैं।
- अन्य प्रयास:
- 'मूव' नामक एप भी ‘रियल टाइम ट्रैफिक अपडेट’ और नेविगेशन सुविधा प्रदान करता है।
नेविगेशन इन इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC)
- यह एक भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित किया गया है।
- IRNSS में आठ उपग्रह हैं, इसके अंतर्गत भूस्थैतिक कक्षा में तीन उपग्रह और भू-समकालिक कक्षा में पाँच उपग्रह शामिल हैं।
- यह स्थापित और लोकप्रिय अमेरिकी ‘ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम’ (Global Positioning System- GPS) की तरह ही काम करता है, लेकिन यह उप-महाद्वीप के लगभग 1,500 किलोमीटर क्षेत्र को ही कवर करता है।
- इसे मोबाइल टेलीफोन मानकों के समन्वय के लिये वैश्विक संस्था ‘3rd जनरेशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट’ (3GPP) द्वारा प्रमाणित किया गया है।
उद्देश्य:
- इसका मुख्य उद्देश्य भारत और उसके पड़ोसियों को विश्वसनीय नेविगेशन सुविधाएँ और समय सबंधी सेवाएँ प्रदान करना है।
संभावित उपयोग :
- स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन
- आपदा प्रबंधन
- वाहन ट्रैकिंग और पोत प्रबंधन (विशेष रूप से खनन और परिवहन क्षेत्र के लिये)
- मोबाइल फोन के साथ संयोजन
- सटीक समय (एटीएम और पावर ग्रिड हेतु)
- मैपिंग और जियोडेटिक डेटा
अन्य वैश्विक नेवीगेशनल प्रणालियाँ:
- बाइडू (चीन)
- गैलीलियो (यूरोप)
- ग्लोनास (रूस)
- क्वासी-ज़ेनिथ सैटेलाइट (जापान)
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
सड़क दुर्घटनाओं पर विश्व बैंक की रिपोर्ट
हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री द्वारा ‘ट्रैफिक क्रैश इंजरी एंड डिसएबिलिटीज़: द बर्डन ऑन इंडिया सोसाइटी’ (Traffic Crash Injuries And Disabilities: The Burden on India Society) शीर्षक से विश्व बैंक (World Bank) की रिपोर्ट जारीकी गई है।
- इस रिपोर्ट को एनजीओ- सेव लाइफ फाउंडेशन (Save Life Foundation) के सहयोग से तैयार किया गया है।
- सर्वेक्षण में शामिल किये गए आँकड़ों को भारत के चार राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु और महाराष्ट्र से एकत्र किया गया था।
प्रमुख बिंदु:
सड़क दुर्घटना के कारण मृत्यु के वैश्विक आँकड़े:
- सड़क यातायात के कारण चोटिल (Road Traffic Injuries- RTIs) होना मृत्यु का आठवाँ प्रमुख कारण है।
- सड़क दुर्घटना मृत्यु दर (Road Crash Fatality Rate) उच्च आय वाले देशों की तुलना में निम्न आय वाले देशों में तीन गुना अधिक है ।
भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतें:
- सड़क दुर्घटनाओं के कारण विश्व भर में होने वाली कुल मौतों में से 11% मौतें भारत में होती हैं, जो कि विश्व में सर्वाधिक है।
- प्रतिवर्ष लगभग 4.5 लाख सड़क दुर्घटनाएँ होती हैं, जिसमें 1.5 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
सड़क दुर्घटनाओं के आर्थिक प्रभाव:
- अनुमानित आर्थिक नुकसान सकल घरेलू उत्पाद ( Gross Domestic Product- GDP) का 3.14%, है जो कि देश में सड़क दुर्घटनाओं की पर्याप्त रिपोर्टिंग की कमी को दर्शाता है।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) का अनुमान -
- सड़क दुर्घटनाओं की सामाजिक-आर्थिक लागत सकल घरेलू उत्पाद के 0.77% के बराबर है।
- सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों में से 76.2% लोग 18-45 वर्ष की आधारभूत कार्यशील आयु (Prime Working-Age) वर्ग के हैं।
सामाजिक प्रभाव:
- परिवारों पर भार:
- सड़क दुर्घटना तथा इससे होने वाली मृत्यु ने व्यक्तिगत स्तर पर जहाँ आर्थिक दृष्टि से मज़बूत परिवारों के गंभीर वित्तीय बोझ में वृद्धि की है वहीं उन परिवारों को कर्ज़ लेने के लिये बाध्य किया है जो पहले से ही गरीब हैं।
- सड़क दुर्घटना के कारण होने वाली मृत्यु की वजह से गरीब परिवारों की लगभग सात माह की घरेलू आय कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित परिवार गरीबी और कर्ज़ के चक्र में फँस जाता है।
- संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (VRUs):
- संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (Vulnerable Road Users- VRUs) वर्ग द्वारा दुर्घटनाओं के बड़े बोझ को सहन किया जाता है। देश में सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों और गंभीर चोटों के कुल मामलों में से आधे से अधिक हिस्सेदारी VRUs वर्ग की है।
- VRUs वर्ग में सामान्यत: गरीब विशेष रूप से कामकाज़ी उम्र के पुरुष जिनके द्वारा सड़क का उपयोग किया जाता है, को शामिल किया जाता है।
- अनौपचारिक क्षेत्र की गतिविधियों में आकस्मिक श्रमिकों के रूप में कार्यरत दैनिक वेतन पर कार्य करने वाले श्रमिक और कर्मचारी, नियमित गतिविधियों में लगे श्रमिकों की तुलना में सड़क दुर्घटना के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- भारत में संवेदनशील वर्ग को कम संवेदनशील वर्ग के साथ सडक साझा करने के लिये बाध्य किया जाता है। अत: ऐसी स्थिति में एक व्यक्ति की आय पर उसके द्वारा उपयोग किये जाने परिवहन खर्च का प्रत्यक्ष भार पड़ता है।
- संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (Vulnerable Road Users- VRUs) वर्ग द्वारा दुर्घटनाओं के बड़े बोझ को सहन किया जाता है। देश में सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों और गंभीर चोटों के कुल मामलों में से आधे से अधिक हिस्सेदारी VRUs वर्ग की है।
लिंग विशिष्ट प्रभाव
- गरीब और अमीर दोनों ही पीड़ित परिवारों की महिलाएँ घर की ज़िम्मेदारी/भार उठाने हेतु अक्सर अतिरिक्त कार्य करती हैं, उनके द्वारा ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करने के उद्देश्य से घरेलू गतिविधियों में अधिक योगदान दिया जाता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, दुर्घटना के बाद घरेलू आय में कमी आने के कारण लगभग 50% महिलाएंँ बुरी तरह प्रभावित हुईं।
- लगभग 40% महिलाओं द्वारा दुर्घटना के कारण अपने कार्य को परिवर्तित किया गया, जबकि लगभग 11% महिलाओं द्वारा वित्तीय संकट से निपटने हेतु अतिरिक्त कार्य किया गया।
- ग्रामीण-शहरी विभाजन:
- निम्न आय वाले शहरी (29.5%) और उच्च आय वाले ग्रामीण परिवारों (39.5%) की तुलना में निम्न-आय वाले ग्रामीण परिवारों (56%) की आय में काफी अधिक गिरावट देखी गई।
वैश्विक स्तर पर उठाए गए कदम:
- सड़क सुरक्षा पर ब्रासीलिया घोषणा (2015):
- ब्राज़ील में आयोजित दूसरे वैश्विक उच्च-स्तरीय सम्मेलन में सड़क सुरक्षा हेतु घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये गए थे। इस घोषणापत्र पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये हैं।
- देशों ने वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्य 3.6 (Sustainable Development Goal 3.6) अर्थात् वैश्विक मौतों की संख्या और सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली चोटों की संख्या को आधा करने की योजना बनाई है।
- सड़क सुरक्षा हेतु दशक:
- संयुक्त राष्ट्र ( United Nations- UN) ने वर्ष 2011-2020 को सड़क सुरक्षा हेतु कार्रवाई के दशक के रूप में घोषित किया है।
- संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सड़क सुरक्षा सप्ताह:
- इसका आयोजन हर दो वर्ष में किया जाता है। इसके पाँचवें संस्करण (6-12 मई, 2019 से आयोजित) में सड़क सुरक्षा के लिये मज़बूत नेतृत्व की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
- अंतर्राष्ट्रीय सड़क मूल्यांकन कार्यक्रम (iRAP):
- यह सुरक्षित सड़कों के माध्यम से लोगों की जान बचाने हेतु समर्पित एक पंजीकृत अनुदान है।
भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019:
- यह अधिनियम यातायात उल्लंघन, दोषपूर्ण वाहन, नाबलिकों द्वारा वाहन चलाने आदि के लिये दंड की मात्रा में वृद्धि करता है।
- यह अधिनियम मोटर वाहन दुर्घटना हेतु निधि प्रदान करता है जो भारत में कुछ विशेष प्रकार की दुर्घटनाओं पर सभी सड़क उपयोगकर्त्ताओं को अनिवार्य बीमा कवरेज प्रदान करता है।
- अधिनियम एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड को मंज़ूरी प्रदान करता है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा एक अधिसूचना के माध्यम से स्थापित किया जाना है।
- यह मदद करने वाले व्यक्तियों के संरक्षण का भी प्रावधान करता है।
आगे की राह:
- जीवन को सुरक्षित करने तथा पीड़ितों और उनके परिवारों की जिंदगी को वापस पटरी पर लाने के उद्देश्य से सुधार हेतु नीति-उन्मुख दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें तत्काल वित्तीय, चिकित्सा और कानूनी सहायता प्रदान करना शामिल है।
- जिन क्षेत्रों में तत्काल सुधार की आवश्यकता है, उनमें दुर्घटना के बाद आपातकालीन देखभाल और प्रोटोकॉल, बीमा कवरेज और मुआवज़ा प्रणाली शामिल है।
- मौजूदा सुरक्षा प्रणाली में नीति निर्माताओं और संबंधित राज्य सरकारों को पूर्ण नीति निर्धारण को प्राथमिकता देने एवं सड़क सुरक्षा हेतु बेहतर प्रदर्शन के उद्देश्य से स्थायी समाधान उन्मुख, समावेशी उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।
स्रोत: पी.आई.बी
शासन व्यवस्था
भू-स्थानिक क्षेत्र का उदारीकरण
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) द्वारा भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र (Geo-Spatial Sector) हेतु नए दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं, जो मौजूदा प्रोटोकॉल को निष्क्रिय कर इस क्षेत्र को प्रतिस्पर्द्धा हेतु अधिक उदार बनाते हैं।
प्रमुख बिंदु:
भू-स्थानिक आँकड़ा:
- भू-स्थानिक आँकड़ों में पृथ्वी की सतह पर मौजूद वस्तुओं, घटनाओं आदि के विषय से संबंधित आँकड़े शामिल होते हैं।
- ये आँकड़े स्थिर और अस्थिर दोनों वस्तुओं का हो सकते हैं, जैसे- सड़क का स्थान, भूकंप की घटना, गतिशील वाहन, पैदल यात्री की चाल, संक्रामक रोग का प्रसार आदि।
- इससे निम्नलिखित के बारे में जानकारी प्राप्त होगी:
- अवस्थिति (Location)
- विशेषता (Attribute- वस्तु, घटना या संबंधित घटनाओं की विशेषताएँ),
- समय (time)
- भू-स्थानिक डेटा के उपयोग के परिणामस्वरूप पिछले दशक में खाद्य वितरण, ई-कॉमर्स, मौसम जैसे विभिन्न एप्स की वजह से दैनिक जीवन में वृद्धि देखी गई है।
भू-स्थानिक क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:
- सख्त प्रतिबंध:
- वर्तमान विधि के अंतर्गत भू-स्थानिक डेटा के संग्रहण, भंडारण, उपयोग, बिक्री, प्रसार और मानचित्रण पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है।
- नवीनीकरण:
- इस नीति का नवीनीकरण दशकों से नहीं किया गया था, जिसके कारण इसे लेकर आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चिंताएँ बनी हुई थीं।
- सरकार द्वारा संचालित:
- इस क्षेत्र में अभी तक भारत सरकार और सरकार द्वारा संचालित एजेंसियों जैसे कि भारतीय सर्वेक्षण विभाग (Survey of India) का प्रभुत्व है। निजी कंपनियों को भू-स्थानिक डेटा एकत्र करने, तैयार करने व प्रसारित करने के लिये सरकार के विभिन्न विभागों जैसे- रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय आदि से अनुमति लेने की आवश्यकता होती है।
नई नीति:
- खुली पहुँच:
- भारत के सभी संस्थाओं को सुरक्षा से संबंधित आँकड़ों को छोड़कर भू-स्थानिक आँकड़ों और सेवाओं तक खुली पहुँच प्रदान की जाएगी।
- हटाए गए प्रतिबंध:
- भारतीय निगमों और अन्वेषकों पर से प्रतिबंधों को हटा लिया गया है। इन्हें अब भारतीय क्षेत्र का डिजिटल भू-स्थानिक आँकड़े इकट्ठा करने और मैप तैयार कर उनके प्रकाशन, अद्यतन आदि से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।
- इन्हें सुरक्षा मंज़ूरी, लाइसेंस आदि की भी ज़रूरत नहीं होगी।
भू-स्थानिक आँकड़ों के विनियमन का कारण:
- विलंबित परियोजनाएँ:
- विशेष रूप से मिशन मोड वाली परियोजनाओं को लाइसेंस या अनुमति प्राप्त करने में महीनों लग जाते हैं, जिससे इन परियोजनाओं को पूरा करने में देरी होती है।
- अविनियमन, सुरक्षा कारणों से अनुमति लेने की आवश्यकता को भी समाप्त कर देता है। भारतीय कंपनियाँ अब आत्म-सत्यापन कर सकती हैं।
- आँकड़ों का अभाव
- देश में बुनियादी ढाँचे, विकास, व्यवसाय आदि के लिये आँकड़ों की भारी कमी है, जिससे नियोजन में बाधा उत्पन्न होती है।
- अकेले भारत सरकार को पूरे देश की उच्च सटीकता के साथ मैपिंग करने में दशकों लग सकते हैं।
- इसलिये सरकार को भू-स्थानिक क्षेत्र में भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित करने और इस क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता महसूस हुई।
- बदलती आवश्यकताएँ:
- रणनीतिक कारणों, आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चिंताओं की वजह से भू-स्थानिक आँकड़ों पर नियंत्रण दशकों से एक प्राथमिकता थी, इस प्राथमिकता में पिछले 15 वर्षों में बदलाव देखा गया है।
- प्रारंभ में सुरक्षा से जुड़े भू-स्थानिक आँकड़ों को इकट्ठा करने का विशेषाधिकार रक्षा बलों और सरकार को प्राप्त था।
- प्रारंभ में भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) मैपिंग व्यवस्था अल्पविकसित थी। कारगिल युद्ध में आँकड़ों के लिये सरकार को विदेशी स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ा। इसके बाद सरकार को स्वदेशी स्रोत की आवश्यकता महसूस हुई, अतः सरकार द्वारा इसमें भारी निवेश किया गया।
- बुनियादी ढाँचा विकास, प्राकृतिक आपदा, कृषि, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक विकास, बिजली, जल, परिवहन, संचार, स्वास्थ्य (बीमारियों, रोगियों, अस्पतालों आदि की ट्रैकिंग) आदि क्षेत्रों में सरकार के लिये भू-स्थानिक आँकड़ों की आवश्यकता अनिवार्य हो गई है।
- ग्लोबल पुश:
- भू-स्थानिक आँकड़े आम नागरिकों के जीवन को प्रभावित करते हैं, जिससे इनकी वैश्विक मांग है।
- भू-स्थानिक आँकड़े वैश्विक प्लेटफॉर्मों पर भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं, जिससे अन्य देशों में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध आँकड़ों का विनियमन मुश्किल हो जाता है।
अविनियमन का प्रभाव:
- बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्धा:
- सरकार, प्रणाली को उदार बनाकर वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा के लिये भारतीय कंपनियों को योजनाएँ तैयार करने तथा प्रशासन के लिये अधिक सटीक आँकड़े उपलब्ध कराएगी।
- नए रोज़गार:
- इन आँकड़ों का उपयोग स्टार्टअप और व्यवसाय विशेष रूप से ई-कॉमर्स तथा भू-स्थानिक आधारित एप अब अपनी समस्याओं को हल करने में कर सकते हैं, जिसे इन क्षेत्रों में रोज़गार में वृद्धि होगी।
- भारतीय कंपनियाँ स्वदेशी एप विकसित कर सकेंगी।
- बढ़ी हुई सार्वजनिक-निजी भागीदारी:
- इस क्षेत्र के खुलने से भारत सरकार के साथ विभिन्न क्षेत्रीय परियोजनाओं पर काम करने वाली डेटा संग्रह कंपनियों की सार्वजनिक-निजी भागीदारी में वृद्धि होने की भी संभावना है।
- बढ़ा हुआ निवेश:
- सरकार को भू-स्थानिक क्षेत्र में निवेश, विदेशी कंपनियों और देशों को आँकड़ों के निर्यात में वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2020
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ द्वारा जारी ‘भ्रष्टाचार बोध सूचकांक’ (CPI) में भारत छह पायदान खिसककर 180 देशों में 86वें स्थान पर आ गया है।
- वर्ष 2019 में भारत 180 देशों में 80वें स्थान पर था।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल
- ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1993 में बर्लिन (जर्मनी) में की गई थी।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य नागरिक उपायों के माध्यम से वैश्विक भ्रष्टाचार का मुकाबला करना और भ्रष्टाचार के कारण उत्पन्न होने वाली आपराधिक गतिविधियों को रोकने हेतु कार्रवाई करना है।
- इसके प्रकाशनों में वैश्विक भ्रष्टाचार बैरोमीटर और भ्रष्टाचार बोध सूचकांक शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु
परिचय
- सूचकांक के तहत कुल 180 देशों को उनकी सार्वजनिक व्यवस्था में मौजूद भ्रष्टाचार के कथित स्तर पर विशेषज्ञों और कारोबारियों द्वारा दी गई राय के अनुसार रैंक दी जाती है।
- इस सूचकांक में 0 से 100 तक के स्तर का पैटर्न उपयोग किया जाता है, जहाँ 0 का अर्थ सबसे कम भ्रष्टाचार और 100 का अर्थ सर्वाधिक भ्रष्ट से है।
- भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2020 विश्व भर में भ्रष्टाचार की स्थिति की एक गंभीर छवि प्रस्तुत करता है। सूचकांक के मुताबिक, विश्व के अधिकांश देशों ने बीते एक दशक में भ्रष्टाचार से निपटने की दिशा में कोई प्रगति नहीं की है, वहीं दो-तिहाई से अधिक देशों का स्कोर 50 से नीचे है और सभी देशों का औसत स्कोर 43 है।
- इसके अलावा भ्रष्टाचार न केवल कोरोना वायरस के विरुद्ध वैश्विक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है, बल्कि यह लोकतंत्र पर भी निरंतर संकट उत्पन्न करता है।
शीर्ष प्रदर्शन
- भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2020 के तहत शीर्ष देशों में डेनमार्क (स्कोर: 88) और न्यूज़ीलैंड (स्कोर: 88) हैं, जिनके बाद फिनलैंड, सिंगापुर, स्वीडन और स्विट्ज़रलैंड का स्थान है, जिसमें सभी ने 85 स्कोर प्राप्त किया है।
खराब प्रदर्शन
- सूचकांक में 180 देशों की सूची में दक्षिण सूडान (12) और सोमालिया (12) को निम्न स्थान प्राप्त हुआ है, इसके बाद सीरिया (14), यमन (15) और वेनेज़ुएला (15) का स्थान है।
क्षेत्र विशिष्ट
- सबसे अधिक स्कोर करने वाले क्षेत्रों में पश्चिमी यूरोप और यूरोपीय संघ शामिल हैं, जिनका औसत स्कोर 66 है।
- सबसे कम स्कोर करने वाले क्षेत्रों में उप-सहारा अफ्रीका (32) तथा पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया (36) शामिल हैं।
भारत संबंधी आँकड़े
- वर्ष 2020 के सूचकांक में भारत का कुल स्कोर 40 है, जबकि वर्ष 2019 में यह 41 था।
- भारत ने भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों में काफी कम प्रगति हासिल की है, यद्यपि सरकार द्वारा इस दिशा में कई प्रतिबद्धताएँ प्रकट की गई हैं, किंतु उन प्रतिबद्धताओं का कोई विशिष्ट प्रभाव देखने को नहीं मिला है।
भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य और कोरोना वायरस
- भ्रष्टाचार, सार्वजनिक व्यय को आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं से दूर कर देता है। वे देश जहाँ भ्रष्टाचार का स्तर काफी अधिक होता है, वहाँ न तो आर्थिक विकास पर ध्यान दिया जाता है और न ही स्वास्थ्य पर पर्याप्त खर्च किया जाता है।
- भ्रष्टाचार का उच्च स्तर, निम्न सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल कवरेज और शिशु तथा मातृत्त्व मृत्यु दर, कैंसर, मधुमेह, श्वसन और हृदय संबंधी रोगों से होने वाली मौतों की उच्च दर से जुड़ा हुआ है।
- भ्रष्टाचार, संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की दिशा में उपस्थित बड़ी बाधाओं में से एक है तथा कोरोना वायरस महामारी ने उन लक्ष्यों को प्राप्त करना और भी कठिन बना दिया है।
- कोरोना वायरस केवल एक स्वास्थ्य या आर्थिक संकट नहीं है, बल्कि यह एक भ्रष्टाचार संकट भी है, जिसमें निष्पक्ष और न्यायसंगत वैश्विक प्रतिक्रिया के अभाव के कारण अनगिनत लोगों ने अपना जीवन गँवा दिया है।
- महामारी ने प्रणाली में मौजूद कमज़ोर निरीक्षण और अपर्याप्त पारदर्शिता जैसी कमियों को उजागर किया है। उन देशों में जहाँ भ्रष्टाचार का स्तर काफी अधिक है, COVID-19 महामारी के प्रबंधन में लोकतांत्रिक नियम-कानूनों का काफी उल्लंघन हुआ है।
- सरकारों द्वारा संसदों को निलंबित करने, सार्वजनिक जवाबदेही तंत्र को समाप्त करने और असंतुष्टों के विरुद्ध हिंसा भड़काने के लिये महामारी का उपयोग किया जा रहा है।
सिफारिशें
- निरीक्षण संस्थानों को मज़बूत किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपलब्ध संसाधन लोगों तक पहुँच सकें। भ्रष्टाचार-रोधी प्राधिकरणों और निरीक्षण संस्थानों के पास अपने उत्तरदायित्त्वों को पूरा करने के लिये पर्याप्त धन, संसाधन और स्वतंत्रता होनी चाहिये।
- अनुचित प्रथाओं पर रोक लगाने, हितों के टकराव क्षेत्रों की पहचान करने और उचित मूल्य निर्धारित करने के लिये पारदर्शी करार प्रणाली सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- लोकतंत्र की रक्षा के लिये आवश्यक है कि सरकारों को जवाबदेह बनाने में नागरिक समूहों और मीडिया को सक्षम बनाया जाए।
- प्रासंगिक डेटा का प्रकाशन किया जाना चाहिये और सूचना तक पहुँच की गारंटी दी जानी चाहिये, ताकि जनता को आसान, सुलभ और समय पर सार्थक जानकारी मिलती रहे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय बजट 2021-22 की प्रस्तुति के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment- FPI) बढ़ने के कारण सेंसेक्स में 11.36% की वृद्धि हुई है।
- सेंसेक्स, जिसे S&P और BSE सेंसेक्स सूचकांक के रूप में जाना जाता है, भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का बेंचमार्क इंडेक्स है।
- स्टॉक एक निवेश है जो किसी कंपनी के शेयर या आंशिक स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करता है। निगम अपने व्यवसायों को संचालित करने के लिये धन जुटाने हेतु स्टॉक (बिक्री) जारी करते हैं।
प्रमुख बिंदु:
अंतर्वाह का कारण:
- बढ़ी हुई तरलता:
- शेयर बाज़ार में यह वृद्धि वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट के प्रभाव से हुई है, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था में तरलता (बाज़ार में धन की आपूर्ति) को प्रभावित किया है, वहीं निजीकरण के लाभ में वृद्धि हुई है।
- कई सुधार जैसे- शेयरधारकों के अधिकारों की रक्षा और व्यापार करने में आसानी प्रदान करना आदि भी प्रमुख कारक बनकर उभरे हैं।
- पोस्ट कोविड रिकवरी:
- उबरती हुई अर्थव्यवस्था के साथ भारत पश्चिमी दुनिया (जो कोविड-19 और संबंधित लॉकडाउन की दूसरी लहर के साथ संघर्ष कर रहे हैं) की तुलना में विकसित देशों के निवेशकों के लिये एक विश्वसनीय गंतव्य के रूप में दिखता है।
विभिन्न क्षेत्रों में निवेश:
- प्रदर्शन क्षेत्र
- निजी बैंकों, फास्ट-मूविंग कंज़्यूमर गुड्स (Fast-Moving Consumer Goods) और इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (Information Technology- IT) जैसे क्षेत्रों में विदेशी प्रवाह देखा गया है, क्योंकि इन भारतीय कंपनियों ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए लॉकडाउन प्रतिबंधों के हटने के बाद उल्लेखनीय वृद्धि की है।
- वर्ष 2020 में फार्मा क्षेत्र एक पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरा और इस क्षेत्र ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।
- संभावित गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) के कारण बैंकिंग शेयरों में गिरावट आई है। अब FPI द्वारा की गई मांग से बैंकिंग शेयरों में फिर से वृद्धि हुई है।
लाभ:
- विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि:
- भारत में बढ़ते निवेश प्रवाह से विदेशी मुद्रा भंडार (forex Reserve) में वृद्धि होगी, जिससे भारत के पास भविष्य में अत्यधिक तरलता और बढ़ते वित्तीय घाटे जैसी समस्या से निपटने के लिये एक विकल्प मौजूद रहेगा।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश
विदेशी पूंजी:
- लगभग सभी अर्थव्यवस्थाओं के लिये एफपीआई और एफडीआई दोनों ही वित्तपोषण के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) समूह द्वारा किसी एक देश के व्यवसाय या निगम में स्थायी हितों को स्थापित करने के इरादे से किया गया निवेश होता है।
- उदाहरण: निवेशक कई तरह से FDI कर सकते हैं जैसे- किसी अन्य देश में एक सहायक कंपनी की स्थापना, एक मौजूदा विदेशी कंपनी के साथ अधिग्रहण या विलय, एक विदेशी कंपनी के साथ एक संयुक्त उद्यम साझेदारी शुरू करना आदि।
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में प्रतिभूतियाँ और विदेशी निवेशकों द्वारा निष्क्रिय रूप से रखी गई अन्य वित्तीय संपत्तियाँ शामिल हैं। यह निवेशक को वित्तीय परिसंपत्तियों में सीधे स्वामित्व प्रदान नहीं करता है और बाज़ार की अस्थिरता के आधार पर अपेक्षाकृत तरल है।
- उदाहरण: स्टॉक, बॉण्ड, म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड, अमेरिकन डिपॉज़िटरी रिसिप्ट (एडीआर), ग्लोबल डिपॉज़िटरी रिसिप्ट (जीडीआर) आदि।
FPI से संबंधित अन्य विवरण:
- FPI किसी देश के पूंजी खाते का हिस्सा होता है और यह उस देश के भुगतान संतुलन (BOP) की स्थिति को प्रदर्शित करता है।
- बीओपी सामान्यतया एक वर्ष की समयावधि के दौरान किसी देश के शेष विश्व के साथ हुए सभी मौद्रिक लेन-देनों के लेखांकन का विवरण होता है।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा वर्ष 2014 के नए एफपीआई विनियमों की जगह वर्ष 2019 में नया एफपीआई विनियम लाया गया।
- FPI को प्रायः "हॉट मनी" (Hot Money) कहा जाता है क्योंकि इसमें अर्थव्यवस्था में संकट के शुरूआती संकेतों के साथ ही पलायन करने की प्रवृत्ति होती है। FPI अधिक तरल और अस्थिर है फलतः यह FDI की तुलना में जोखिम पूर्ण है।
एफडीआई और एफपीआई के बीच अंतर
मापदंड |
FDI |
FPI |
परिभाषा |
यह एक समूह द्वारा किसी एक देश के व्यवसाय या निगम में स्थायी हितों को स्थापित करने के इरादे से किया गया निवेश होता है। |
FPI किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा किसी दूसरे देश की कंपनी में किया गया वह निवेश है, जिसके तहत वह संबंधित कंपनी के शेयर या बाॅण्ड खरीदता है अथवा उसे ऋण उपलब्ध कराता है। |
निवेश में भूमिका |
सक्रिय निवेशक |
निष्क्रिय निवेशक |
प्रकार |
प्रत्यक्ष निवेश |
अप्रत्यक्ष निवेश |
नियंत्रण का अधिकार |
उच्च नियंत्रण |
बहुत कम नियंत्रण |
अवधि |
दीर्घकालिक निवेश |
अल्पकालिक निवेश |
परियोजनाओं का प्रबंधन |
कुशल |
तुलनात्मक रूप में कम कुशल |
किया जाने वाला निवेश |
बाह्य देशों की भौतिक संपत्ति में |
बाह्य देशों की वित्तीय आस्तियों में |
प्रवेश और निकास |
जटिल |
अपेक्षाकृत कठिन |
संचालन |
धन, प्रौद्योगिकी और अन्य संसाधनों के लिये विदेशी मुद्रा का स्थानांतरण |
बाह्य देशों में पूंजी प्रवाह |
शामिल जोखिम |
स्थिर |
अस्थिर |