डेली न्यूज़ (17 Jan, 2022)



ई-गवर्नेंस 2021 पर 24वांँ राष्ट्रीय सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

ई-गवर्नेंस पर राष्ट्रीय सम्मेलन

मेन्स के लिये:

ई-गवर्नेंस की अवधारणा एवं शासन में इसके लाभ, ई-गवर्नेंस से संबंधित विभिन्न सम्मेलन, ई-गवर्नेंस को सुविधाजनक बनाने हेतु सरकार द्वारा उठाए गए कदम।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG) तथा  इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY), भारत सरकार ने तेलंगाना सरकार के सहयोग से 24वें ई-गवर्नेंस राष्ट्रीय सम्मेलन ( National Conference on e-Governance- NCeG)-2021 का आयोजन किया।

  • DARPG प्रशासनिक सुधारों के साथ-साथ सामान्य रूप से राज्यों और विशेष रूप से केंद्र सरकार की एजेंसियों से संबंधित लोगों की शिकायतों के निवारण हेतु भारत सरकार की नोडल एजेंसी है।

प्रमुख बिंदु 

  •  24वें राष्ट्रीय सम्मेलन के बारे में:
    • यह सम्मेलन ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने के लिये कुछ नवीनतम तकनीकों पर आधारित विचारों के रचनात्मक आदान-प्रदान के लिये एक मंच प्रदान करता है।
    • दो दिवसीय सम्मेलन में आयोजित सत्रों के दौरान गहन विचार-विमर्श के बाद ई-गवर्नेंस समापन में ’हैदराबाद घोषणा’ (Hyderabad Declaration) को स्वीकार किया गया।
      • घोषणा का उद्देश्य नागरिकों और सरकारों को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से करीब लाना तथा प्रौद्योगिकी के उपयोग के द्वारा नागरिक सेवाओं को परिवर्तित करना है।
    • सम्मेलन ने संकल्प लिया कि भारत सरकार और राज्य सरकारें निम्नलिखित में सहयोग करेंगी:
      • आधार, यूपीआई, डिजिलॉकर, उमंग (यूनिफाइड मोबाइल एप्लीकेशन फॉर न्यू-एज गवर्नेंस), ई-हस्ताक्षर और सहमति रूपरेखा सहित इंडिया स्टैक की कलाकृतियों का लाभ उठाकर प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से नागरिक सेवाओं में बदलाव।
      • संबद्ध सेवाओं हेतु ओपन इंटर-ऑपरेबल आर्किटेक्चर को अपनाकर स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि आदि प्रमुख सामाजिक क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्तर के सार्वजनिक डिजिटल प्लेटफॉर्म का तेजी से कार्यान्वयन करना।
      • सरकारी संस्थाओं के भीतर डेटा साझा करने की सुविधा के लिये डेटा गवर्नेंस ढांँचे का संचालन करना और नकारात्मक सूची को छोड़कर सभी डेटा को  data.gov.in पर उपलब्ध कराना।
      • सामाजिक अधिकारिता के लिये उभरती हुई प्रौद्योगिकी जैसे- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन, 5जी, ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी आदि के उचित उपयोग को प्रोत्साहन देना।
      • भविष्य की प्रौद्योगिकियों को लेकर कुशल संसाधनों के एक बड़े पूल के निर्माण के माध्यम से भारत को उभरती हुई प्रौद्योगिकी का वैश्विक केंद्र बनाना।
      • महामारी जैसे व्यवधानों का सामना करने के लिये मज़बूत तकनीकी समाधानों के साथ लचीला सरकारी बुनियादी ढाँचा सुनिश्चित करना।
      • जन शिकायतों के निर्बाध निवारण हेतु सभी राज्य/ज़िला पोर्टलों को केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली (सीपीजीआरएएमएस) के साथ एकीकृत करना।
      • ई-गवर्नेंस परिदृश्य में सुधार के लिये एमईआईटीवाई (MeITY) के सहयोग से राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सर्विस डिलीवरी असेसमेंट (एनईएसडीए) 2021 को अपनाया जाएगा।
  • थीम: "महामारी के बाद वर्ल्ड में डिजिटल गवर्नेंस"
  • राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस पुरस्कार 2021:
    • ई-गवर्नेंस से संबंधित पहलों के कार्यान्वयन को मान्यता देने के लिये उद्घाटन सत्र के दौरान राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस पुरस्कार 2021 प्रदान किये गए हैं।
    • केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों, ज़िलों, स्थानीय निकायों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों को पुरस्कार योजना की 6 श्रेणियों के तहत 26 पुरस्कार प्रदान किये गए।
  • ये पुरस्कार वर्ष 2003 से दिये जा रहे हैं।

ई-गवर्नेंस:

  • परिचय:
    • इसे सरकार द्वारा सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के उपयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ताकि सरकारी सेवाएँ, सूचना का आदान-प्रदान और विभिन्न स्टैंडअलोन सिस्टम तथा सेवाओं का एकीकरण किया जा सके।
    • ई-गवर्नेंस के माध्यम से नागरिकों और व्यवसायों को सुविधाजनक, कुशल और पारदर्शी तरीके से सरकारी सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।
  • ई-गवर्नेंस में सहभागिता के प्रकार
    • सरकार-से-सरकार (G2G):
      • इसमें सरकार के भीतर यानी केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकारों के बीच या एक ही सरकार की विभिन्न शाखाओं के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है।
    • सरकार-से-नागरिक (G2C): 
      • इसमें नागरिकों के पास एक मंच होता है जिसके माध्यम से वे सरकार के साथ बातचीत कर सकते हैं और सरकार द्वारा दी जाने वाली विभिन्न सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच प्राप्त कर सकते हैं।
    • सरकार-से-व्यापार (G2B):
      • व्यवसायों को दी जाने वाली सरकार की सेवाओं के संबंध में व्यवसाय, सरकार के साथ निर्बाध रूप से बातचीत करने में सक्षम हैं।
    • सरकार-से-कर्मचारी (G2E):
      • सरकार और उसके कर्मचारियों के बीच वार्ता एक कुशल और त्वरित तरीके से होती है।
  • उद्देश्य:
    • सरकार, नागरिकों और व्यवसायों के लिये शासन का समर्थन एवं सरलीकरण करना।
    • कुशल सार्वजनिक सेवाओं और लोगों, व्यवसायों और सरकार के बीच प्रभावी वार्ता के माध्यम से समाज की ज़रूरतों एवं अपेक्षाओं को पूरा करते हुए सरकारी प्रशासन को अधिक पारदर्शी व जवाबदेह बनाना।
    • सरकार में भ्रष्टाचार को कम करना।
    • सेवाओं और सूचनाओं का त्वरित प्रशासन सुनिश्चित करना।
    • व्यापार की कठिनाइयों को कम करने के लिये तत्काल जानकारी प्रदान करना और ई-व्यवसाय द्वारा डिजिटल संचार को सक्षम करना।
  • चुनौतियाँ
    • कंप्यूटर साक्षरता की कमी: भारत एक विकासशील देश है और अधिकांश नागरिकों में कंप्यूटर साक्षरता का अभाव है जो ई-गवर्नेंस की प्रभावशीलता में बाधा डालता है।
    • पहुँच की कमी: देश के कुछ हिस्सों में इंटरनेट या यहाँ तक कि कंप्यूटर तक पहुँच की भारी कमी ई-गवर्नेंस हेतु चुनौतीपूर्ण है।
    • मानव संपर्क का नुकसान: ई-गवर्नेंस के परिणामस्वरूप मानव-से-मानव के बीच संपर्क में कमी आती है। जैसे-जैसे प्रणाली अधिक यंत्रीकृत होती जाती है, लोगों के बीच अंतःक्रिया कम हो जाती है।
    • डेटा चोरी का जोखिम: यह व्यक्तिगत डेटा की चोरी और रिसाव के जोखिम को जन्म देता है।
    • लचर प्रशासन: ई-गवर्नेंस एक ढीले और लचर प्रशासन को बढ़ावा देता है। सेवा प्रदाता आसानी से ‘सर्वर डाउन’ या ‘इंटरनेट काम नहीं कर रहा है’ आदि जैसे तकनीकी आधार पर सेवा प्रदान नहीं करने का बहाना बन सकते हैं।
  • भारतीय संदर्भ में ई-गवर्नेंस:
    • भारत में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर बड़ी संख्या में ई-गवर्नेंस पहलें शुरू की गई हैं।
    • वर्ष 2006 में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत विभाग द्वारा राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP) तैयार की गई थी, जिसका उद्देश्य सभी सरकारी सेवाओं को आम आदमी के लिये सुलभ बनाना, दक्षता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है। आम आदमी की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सस्ती कीमत पर ऐसी सेवाएँ प्रदान करना।
    • NeGP ने कई ई-गवर्नेंस पहलों को सक्षम किया है::
      • डिजिटल इंडिया, आधार, myGov.in, (नए जमाने के शासन के लिये एकीकृत मोबाइल एप्लिकेशन) ऐप, डिजिटल लॉकर, PayGov, भूमि अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण।
        • myGov.in एक राष्ट्रीय नागरिक जुड़ाव मंच है, जहाँ लोग विचारों को साझा कर सकते हैं और नीति और शासन के मामलों में शामिल हो सकते हैं।
        • PayGov सभी सार्वजनिक और निजी बैंकों को ऑनलाइन भुगतान की सुविधा प्रदान करता है।

आगे की राह

  • ग्रामीण क्षेत्रों में ई-शासन की पहल ज़मीनी हकीकत की पहचान और विश्लेषण करके की जानी चाहिये।
  • सरकार को विभिन्न हितधारकों अर्थात नौकरशाहों, ग्रामीण जनता, शहरी जनता, निर्वाचित प्रतिनिधियों, आदि के लिये उचित, व्यवहार्य, विशिष्ट और प्रभावी क्षमता निर्माण तंत्र के विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • ई-गवर्नेंस से संबंधित सेवाओं के वितरण को बढ़ाने में क्लाउड कंप्यूटिंग की एक बड़ी भूमिका है। क्लाउड कंप्यूटिंग न केवल लागत में कमी लाने का एक उपकरण है, बल्कि नई सेवाओं को प्रदान करने में सक्षम होने के साथ ही शिक्षा प्रणाली में सुधार और नई नौकरियों / अवसरों के सृजन में भी मदद करता है।
  • मेघराज- जीआई क्लाउड सही दिशा में एक कदम है। इस पहल का उद्देश्य सरकार के आईसीटी खर्च को कम करते हुए देश में ई-सेवाओं के वितरण में तेज़ी लाना है।
  • क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से ई-गवर्नेंस भारत जैसे विविधतापूर्ण राष्ट्र के लिये अत्यंत प्रासंगिक है।
  • ई-गवर्नेंस सेवाएँ भारत में गति पकड़ रही हैं, लेकिन सार्वजनिक जागरूकता बढाने और डिजिटल डिवाइड को कम करने की आवश्यकता है।
  • ई-गवर्नेंस उपायों की सफलता काफी हद तक हाई-स्पीड इंटरनेट की उपलब्धता पर निर्भर करती है, और निकट भविष्य में 5-जी तकनीक का देशव्यापी प्रसार हमारे संकल्प को मज़बूत करेगा।

स्रोत-पी.आई.बी


राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार 2021

प्रिलिम्स के लिये:

नेशनल स्टार्टअप अवार्ड्स, स्टार्टअप इंडिया इनिशिएटिव

मेन्स के लिये:

भारत में स्टार्टअप और स्टार्टअप से संबंधित चुनौतियाँ, स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कार 2021 का दूसरा संस्करण प्रस्तुत किया है।

  • यह भी घोषणा की गई है कि स्टार्टअप संस्कृति को देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में ले जाने के लिये 16 जनवरी (स्टार्टअप इंडिया इनिशिएटिव 2016 में इसी दिन शुरू किया गया था) को राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
  • उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने कर प्रोत्साहन प्रमाण पत्र के लिये ब्लॉकचैन-सक्षम सत्यापन के साथ  'डिजिलॉकर सक्षम डीपीआईआईटी स्टार्टअप मान्यता प्रमाण पत्र' भी लॉन्च किया है।

स्टार्टअप इंडिया पहल:

  • इसे 2016 में लॉन्च किया गया था, यह देश में नवाचार के पोषण और नवोदित उद्यमियों को अवसर प्रदान करने हेतु एक मज़बूत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की परिकल्पना प्रस्तुत करता है।
  • यह निम्नलिखित तीन क्षेत्रों पर केंद्रित है:
    • सरलीकरण और हैंडहोल्डिंग।
    • वित्तपोषण सहायता और प्रोत्साहन। 
    • उद्योग-अकादमी भागीदारी और इन्क्यूबेशन।

प्रमुख बिंदु

  • डिज़ाइन:
    • उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT), वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय।
  • उद्देश्य:
    • ऐसे उत्कृष्ट स्टार्टअप्स और इकोसिस्टम एनेबलर्स को पहचानना व पुरस्कृत करना जो नवोन्मेषी उत्पादों या समाधानों एवं स्केलेबल उद्यमों का निर्माण कर रहे हैं, जिनमें रोज़गार सृजन या धन सृजन की उच्च क्षमता शामिल है, जो मापन योग्य सामाजिक प्रभाव का प्रदर्शन करते हैं।
  • वर्ष 2021 का पुरस्कार:
    • पुरस्कार के दूसरे संस्करण में 15 क्षेत्रों और 49 उप-क्षेत्रों में आवेदन आमंत्रित किये गए।
    • इस पुरस्कार के वर्ष 2021 के संस्करण ने भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और कोविड-19 महामारी से निपटने हेतु राष्ट्रीय प्रयासों की प्रशंसा करने के लिये असाधारण स्टार्टअप्स को भी सम्मानित किया।
      • सभी आवेदकों का मूल्यांकन छह व्यापक मानकों- नवाचार, मापनीयता, आर्थिक प्रभाव, सामाजिक प्रभाव, पर्यावरणीय प्रभाव और समावेशिता एवं विविधता के आधार पर किया गया था।
  • पुरस्कार:
    • विजेता स्टार्टअप संस्थापकों को 5 लाख रुपए का नकद पुरस्कार और संबंधित सार्वजनिक प्राधिकरणों एवं कॉरपोरेट्स के समक्ष अपने समाधान प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा। इनक्यूबेटर और एक्सेलेरेटर को जीत की राशि के रूप में 15 लाख रुपए मिलेंगे।
      • 1 इनक्यूबेटर और 1 एक्सेलेरेटर के साथ 46 स्टार्टअप को पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

भारत में स्टार्टअप की स्थिति:

  • परिचय:
    • वर्तमान में भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारितंत्र है (स्टार्टअप की संख्या के अनुसार) जहाँ वर्ष 2010 में 5000 स्टार्टअप्स की तुलना में वर्ष 2020 में 15,000 से अधिक स्टार्टअप्स की स्थापना हुई। 
    • इस स्टार्टअप पारितंत्र के अंतर्निहित प्रवर्तकों में स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुँच, क्लाउड कंप्यूटिंग, एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (APIs) और एक राष्ट्रीय भुगतान स्टैक शामिल हैं।  
    • इसके अतिरिक्त, कोविड-19 महामारी के बीच भारत में केवल वर्ष 2021 में ही इतनी संख्या में यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स (1 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य वाले स्टार्टअप) सामने आए हैं, जितने वर्ष 2011-20 की पूरी दशकीय अवधि में भी नहीं आए थे। 
    • हालाँकि, अभी भी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं जो भारत में स्टार्टअप्स की वास्तविक क्षमता को साकार करने में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
  • अन्य संबंधित पहलें:
    • स्टार्टअप इकोसिस्टम के आधार पर राज्यों की रैंकिंग: यह एक विकसित मूल्यांकन उपकरण है जिसका उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के समर्थन के लिये समग्र रूप से अपने स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
    • SCO स्टार्टअप फोरम: पहली बार शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) स्टार्टअप फोरम को सामूहिक रूप से स्टार्टअप इकोसिस्टम को विकसित करने और सुधारने के लिये अक्तूबर 2020 में लॉन्च किया गया था।
    • प्रारंभ: 'प्रारंभ' (Prarambh) शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया भर के स्टार्टअप्स और युवा विचारों को नए नवाचारों व आविष्कारों को एक साथ आने के लिये एक मंच प्रदान करना है।
    • स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना: इसका उद्देश्य स्टार्टअप्स के प्रोटोटाइप का विकास, प्रूफ ऑफ कांसेप्ट, उत्पाद परीक्षण, बाज़ार में प्रवेश हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
    • फिशरीज़ स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज: मत्स्य पालन विभाग, मत्स्य पालन, पशुपालन व डेयरी मंत्रालय स्टार्टअप इंडिया के सहयोग से वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने फिशरीज़ स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज का उद्घाटन किया।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत-रूस: ‘PASSEX’ अभ्यास

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-रूस PASSEX अभ्यास, आईएनएस कोच्चि, जायद तलवार, अल-मोहद अल-हिंदी, प्रोजेक्ट 15A

मेन्स के लिये:

भारत के लिये रूस का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत का आईएनएस ‘कोच्चि’ और रूस के जहाज़ ‘अंतर्राष्ट्रीय पैसेज अभ्यास’ (PASSEX) में शामिल हुए।

  • पूर्व-नियोजित समुद्री अभ्यासों के विपरीत ‘पैसेज सैन्य अभ्यास’ अवसर के अनुसार कभी भी आयोजित किया जा सकता है।
  • इससे पूर्व भारतीय नौसेना के जहाज़ों ने अमेरिकी नौसेना के साथ भी ‘PASSEX’ का आयोजन किया था।

Passex

प्रमुख बिंदु

  • भारत के लिये रूस का महत्व:
    • हिंद महासागर क्षेत्र में:
      • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) के एक संवाद भागीदार के रूप में रूस के शामिल होने से हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में संतुलन बनाने और वैज्ञानिक एवं अनुसंधान प्रयासों पर एक संभावित समुद्री सुरक्षा संरचना सहित भारत के साथ सहयोग के लिये कई सारे अवसर खुल गए हैं।
    • आर्कटिक क्षेत्र में: आर्कटिक क्षेत्र में भारत के वैज्ञानिक, पर्यावरण, वाणिज्यिक एवं रणनीतिक हित हैं और रूसी आर्कटिक संभावित रूप से भारत के ऊर्जा सुरक्षा उद्देश्यों को संबोधित कर सकता है।
    • हाइड्रोकार्बन: रूस के पास दुनिया में सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार है, जो वर्तमान उत्पादन दरों के तहत लगभग 80 वर्षों तक के लिये पर्याप्त है।
    • सामरिक खनिज: रूसी आर्कटिक में कोबाल्ट, तांबा, हीरा, सोना, लोहा, निकल, प्लैटिनम, उच्च मूल्य वाले दुर्लभ तत्त्व, टाइटेनियम, वैनेडियम और ज़िरकोनियम के विशाल भंडार भी हैं।
      • आर्कटिक में रूस के निकल तथा कोबाल्ट उत्पादन का 90%, तांबे का 60% और प्लैटिनम धातुओं का 96% से अधिक का उत्पादन होता है।
      • भारतीय दुर्लभ भू-भंडार हल्के अंशों में अधिक समृद्ध हैं और भारी मात्रा में कम हैं।
      • सामरिक उद्योगों में उपयोग किये जाने वाले अधिकांश दुर्लभ भू-उत्पाद जैसे- पवन टरबाइन तथा इलेक्ट्रिक वाहनों सहित विभिन्न स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये रक्षा, फाइबर ऑप्टिक संचार, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा भी महत्त्वपूर्ण हैं।
      • इसलिये रूसी आर्कटिक में दुर्लभ पृथ्वी और सामरिक खनिजों में भारत की महत्त्वपूर्ण कमियों को कम करने की क्षमता है।
    • उत्तरी समुद्री मार्ग: भारतीय बंदरगाहों को उत्तरी समुद्री मार्ग या एनएसआर से कोई लाभ नहीं होता है और यह रॉटरडैम के लिये वर्तमान मार्ग से अधिक लंबा है।
      • हालांँकि NSA में सहयोग के अन्य रास्ते भी हैं।
      • रूस ने अन्य बातों के साथ-साथ NSA के जल में साल भर, सुरक्षित, अबाधित और लागत प्रभावी नौवहन सुनिश्चित करने की घोषणा की है।
      • भारत ने रूस के साथ साझेदारी करने की अपनी इच्छा का संकेत देते हुए कहा है कि "भारत और रूस भी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व वाणिज्य हेतु NSA को खोलने में भागीदार होंगे"। इसके जवाब में राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि रूस NSA में भारत के हितों का स्वागत करता है।
    • सुदूर पूर्व में रूस: रूस सुदूर पूर्व या RFE में प्राकृतिक संसाधनों में समृद्ध है।
      • देश के सभी कोयला भंडारों और हाइड्रो-इंजीनियरिंग संसाधनों का लगभग एक तिहाई भाग इस क्षेत्र में उपलब्ध है। इस क्षेत्र के वन रूस के कुल वन क्षेत्र का लगभग 30% हैं।
      • NSR सहित RFE के विकास में भारत के सहयोग का दोनों देशों ने समर्थन किया है।
      • वर्ष 2019 में ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम (Eastern Economic Forum- EEF) को संबोधित करते हुए भारत ने RFE के विकास में और योगदान देने हेतु 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट की घोषणा की थी।
  • भारत और रूस के अन्य अभ्यास:

 INS कोच्चि

  • यह कोलकाता-श्रेणी के स्टील्थ गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक का स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किया गया दूसरा जहाज़ है, जिसे भारतीय नौसेना के लिये प्रोजेक्ट 15A के कोड नाम के तहत बनाया गया था।
  • इसका निर्माण मुंबई में मझगाँव डॉक लिमिटेड (एमडीएल) द्वारा किया गया था और बाद में व्यापक समुद्री परीक्षणों से गुज़रने के बाद वर्ष 2015 में इसे भारतीय नौसेना सेवाओं में शामिल किया गया था। .
  • इससे पहले इसने कई अन्य नौसैनिक सेवाओं में भाग लिया, जिनमें शामिल हैं:
    • जायद तलवार: यह भारतीय और संयुक्त अरब अमीरात नौसेना के बीच एक द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास है।
    • 'अल-मोहद अल-हिंदी': भारत और सऊदी अरब ने अपना पहला नौसेना संयुक्त अभ्यास शुरू किया।
    • भारत- यूएस पासेक्स

स्रोत- पी.आई.बी


दुर्लभ मृदा तत्त्व

प्रिलिम्स के लिये:

दुर्लभ मृदा तत्त्व और उनका महत्त्व

मेन्स के लिये:

दुर्लभ मृदा तत्त्व, भारत में अपने उत्पादन को बढ़ाने के लिये क्षमताओं को विकसित और कदम उठाए जाने की जरूरत है

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने  दुर्लभ मृदा तत्त्व आपूर्ति पर चीन के कथित "चोकहोल्ड” (Chokehold) को समाप्त करने के उद्देश्य से एक कानून का प्रस्ताव दिया है।

  • विधेयक का उद्देश्य "दुर्लभ मृदा तत्त्व आपूर्ति व्यवधानों के खतरे से अमेरिका की रक्षा करना और इन तत्त्वों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना तथा चीन पर इसकी निर्भरता को कम करना है।”
  • कानून के तहत वर्ष 2025 तक दुर्लभ पृथ्वी खनिजों के "रणनीतिक रिज़र्व" के निर्माण की आवश्यकता होगी।
    • इस रिज़र्व को आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति में एक वर्ष के लिये सेना की तकनीकी क्षेत्र और अन्य आवश्यक बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों का जवाब देने का काम सौंपा जाएगा।

rare-earth-metals

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • यह 17 दुर्लभ धातु तत्त्वों का समूह है। इसमें आवर्त सारणी में मौजूद 15 लैंथेनाइड और इसके अलावा स्कैंडियम तथा अट्रियम शामिल हैं, जो लैंथेनाइड्स के समान ही भौतिक एवं रासायनिक गुण प्रदर्शित करते हैं।
    • 17 रेयर अर्थ मेटल्स में सीरियम (Ce), डिस्प्रोसियम (Dy), एर्बियम (Er), यूरोपियम (Eu), गैडोलिनियम (Gd), होल्मियम (Ho), लैंथेनम (La), ल्यूटेटियम (Lu), नियोडिमियम (Nd) प्रेजोडायमियम (Pr), प्रोमेथियम (Pm), समैरियम (Sm), स्कैंडियम (Sc), टेरबियम (Tb), थुलियम (Tm), येटरबियम (Yb) और इट्रियम (Y) शामिल हैं।
    • इन खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, ल्यूमिनसेंट व विद्युत रासायनिक गुण विद्यमान होते  हैं और इस प्रकार उपभोक्ता द्वारा इनका इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर एवं नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा, आदि सहित कई आधुनिक तकनीकों में उपयोग किया जाता है।
    • यहांँ तक ​​कि भविष्य की प्रौद्योगिकियों में भी इन REE की आवश्यकता होती है (उदाहरण के लिये  उच्च तापमान सुपरकंडक्टिविटी, हाइड्रोकार्बन अर्थव्यवस्थाहेतु  हाइड्रोजन का सुरक्षित भंडारण और परिवहन, पर्यावरण ग्लोबल वार्मिंग एवं ऊर्जा दक्षता से संबंधित मुद्दों आदि में)।
    • उन्हें 'दुर्लभ मृदा' (Rare Earth) कहा जाता है क्योंकि पहले उन्हें तकनीकी रूप से उनके ऑक्साइड रूपों से निकालना मुश्किल था।
    • वे कई खनिजों में विद्यमान होते हैं लेकिन आमतौर पर कम सांद्रता में इन्हें किफायती तरीके से परिष्कृतकिया जाता है।
  • दुर्लभ मृदा तत्त्वों के लिये भारत की वर्तमान नीति:
    • भारत में अन्वेषण का कार्य खान ब्यूरो और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किया जाता है। खनन और प्रसंस्करण अतीत में कुछ छोटे निजी कम्पनियों द्वारा किया गया है, लेकिन वर्तमान में यह आईआरईएल (इंडिया) लिमिटेड (पूर्व में इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड), परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा किया जाता है।
    • भारत ने आईआरईएल जैसे सरकारी निगमों को प्राथमिक खनिजों पर एकाधिकार प्रदान किया है जिसमें शामिल REEs हैं: कई तटीय राज्यों में पाए जाने वाले मोनाजाइट समुद्र तटीय रेत।
    • इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) दुर्लभ पृथ्वी ऑक्साइड (कम लागत, कम-प्रतिफल वाली अपस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का उत्पादन करती है, इन्हें उन विदेशी फर्मों को बेचती है, जो धातुओं को निकालते हैं और अंतिम उत्पादों (उच्च लागत, उच्च-प्रतिफल वाली डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाएँ) का निर्माण करते हैं।
    • IREL का फोकस मोनाजाइट से निकाले गए थोरियम को परमाणु ऊर्जा विभाग को उपलब्ध कराना है।
  • चीन का एकाधिकार:
    • चीन ने समय के साथ रेयर अर्थ धातुओं पर वैश्विक प्रभुत्व हासिल कर लिया है, यहाँ तक ​​कि एक बिंदु पर इसने दुनिया की 90% रेयर अर्थ धातुओं का उत्पादन किया था।
    • वर्तमान में हालाँकि यह 60% तक कम हो गया है और शेष अन्य देशों द्वारा उत्पादन किया जाता है, जिसमें क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका) देश शामिल हैं।
    • वर्ष 2010 के बाद जब चीन ने जापान, अमेरिका और यूरोप की  रेयर अर्थ्स शिपमेंट पर रोक लगा दी, तो एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में छोटी इकाइयों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया एवं अमेरिका में उत्पादन इकाइयाँ शुरू की गई।
    • फिर भी संसाधित रेयर अर्थ धातुओं का प्रमुख हिस्सा चीन के पास है।
  • चीन पर भारी निर्भरता (भारत और विश्व):
    • भारत में रेयर अर्थ तत्त्वों का दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा भंडार है, जो ऑस्ट्रेलिया से लगभग दोगुना है, लेकिन यह चीन से अपनी अधिकांश रेयर अर्थ धातुओं की ज़रूरतों को तैयार रूप में आयात करता है।
    • वर्ष 2019 में अमेरिका ने अपने रेयर अर्थ खनिजों का 80% चीन से आयात किया, जबकि यूरोपीय संघ को इसकी आपूर्ति का 98% चीन से मिलता है।

आगे की राह

  • भारत को दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के लिये एक नया विभाग (Department for Rare Earths- DRE) बनाने की ज़रूरत है, जो इस क्षेत्र में व्यवसायों के लिये एक नियामक और प्रवर्तक की भूमिका निभाएगा।
    • वर्तमान में खनन और प्रसंस्करण बड़े पैमाने पर आईआरईएल (इंडिया) लिमिटेड के हाथों में केंद्रित है, जो परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत एक सार्वजनिक उपक्रम है।
  • भारतीय कंपनियों को भारतीय बाज़ार में आरईई और फीड वैल्यू एडेड उत्पादों की संभावना के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में ऐसे एक्सप्लोरेशन व्यवसाय बनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • इस क्षेत्र की अधिकांश सरकारों की खनन और अन्वेषण के अनुकूल नीतियाँ व निवेश का स्वागत है। इस क्षेत्र में भारत के मज़बूत ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक और प्रवासी संबंध हैं जो सदियों से चले आ रहे व्यापार एवं प्रवास के दौरान विकसित हुए हैं।
  • भारत वैश्विक आपूर्ति संकटों के खिलाफ बफर के रूप में रणनीतिक रिज़र्व का निर्माण करते हुए क्वाड जैसे समूहों के साथ सीधे साझेदारी करने के लिये अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय कर सकता है।

स्रोत- द हिंदू


अर्द्धचालकों के लिये डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव

प्रिलिम्स के लिये:

डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव, सेमीकंडक्टर्स/अर्द्धचालक, सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग

मेन्स के लिये:

भारत में अर्द्धचालक और उनका भविष्य, घटक एवं डीएलआई योजना का महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय  (MeitY) ने अपनी डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव ( Design Linked Incentive- DLI) योजना के तहत 100 घरेलू सेमीकंडक्टर चिप डिज़ाइन फर्मों, स्टार्ट-अप और सूक्ष्म, लघु एवं  मध्यम उद्यमों (Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs) से आवेदन आमंत्रित किये हैं।

  • DLI योजना देश में सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम के विकास के लिये  MeitY के व्यापक कार्यक्रम का हिस्सा है।
  • हाल ही में  वैश्विक स्तर पर अर्द्धचालकों के उपयोग में एकाएक व्यापक कमी आई है।

अर्द्धचालक/सेमीकंडक्टर्स:

  • एक कंडक्टर और इन्सुलेटर के मध्य विद्युत चालकता में मध्यवर्ती क्रिस्टलीय ठोस का कोई भी वर्ग।
  • अर्द्धचालकों को डायोड, ट्रांजिस्टर और एकीकृत सर्किट सहित विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। इस तरह के उपकरणों को उनकी कॉम्पैक्टनेस, विश्वसनीयता, बिजली दक्षता और कम लागत  के कारण व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जाता है।
  • असतत घटकों के रूप में, उन्हें सॉलिड स्टेट लेज़र सहित बिजली उपकरणों, ऑप्टिकल सेंसर और प्रकाश उत्सर्जक में उपयोग किया जाता है।

प्रमुख बिंदु 

  • डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव योजना के बारे में:
    • DLE योजना के तहत घरेलू कंपनियों, स्टार्टअप्स और एमएसएमई को वित्तीय प्रोत्साहन तथा डिज़ाइन इंफ्रास्ट्रक्चर में मदद प्रदान की जाएगी।
    • यह मदद अगले पाँच साल के लिये एकीकृत सर्किट (आईसी), चिपसेट, सिस्टम ऑन  चिप्स (एसओसी), सिस्टम और आईपी कोर्स, सेमीकंडक्टर लिंक्ड डिज़ाइन के विकास एवं डिप्लॉयमेंट के विभिन्न चरणों में प्रदान की जाएगी।
  • पात्रता:
    • योजना के तहत प्रोत्साहन का दावा करने वाले स्वीकृत आवेदकों को अपनी घरेलू स्थिति (अर्थात, इसमें पूंजी का 50% से अधिक लाभकारी रूप से निवासी भारतीय नागरिकों और/या भारतीय कंपनियों के स्वामित्व में हो) बनाए रखने के लिये तीन साल की अवधि हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा
    • योजना के तहत प्रोत्साहन के वितरण की पात्रता हेतु एक आवेदक को सीमा और उच्चतम सीमा को पूरा करना होगा।
      • एक समर्पित पोर्टल भी उपलब्ध कराया गया है।
  • लक्ष्य:
    • सेमीकंडक्टर डिज़ाइन में शामिल कम-से-कम 20 घरेलू कंपनियों का पोषण करना और उन्हें अगले 5 वर्षों में 1500 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार हासिल करने की सुविधा प्रदान करना।
  • दृष्टिकोण:
    • डीएलआई योजना राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के उत्पादों की पहचान करने और उनके पूर्ण या निकट स्वदेशीकरण व परिनियोजन के लिये रणनीतियों को लागू करने हेतु एक वर्गीकृत और पूर्व दृष्टिकोण अपनाएगी, जिससे रणनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में आयात प्रतिस्थापन एवं मूल्यवर्द्धन की दिशा में कदम उठाए जाएंगे।
  • नोडल एजेंसी:
  • डीएलआई के घटक: इस योजना के तीन घटक हैं- चिप डिज़ाइन अवसंरचना समर्थन, उत्पाद डिज़ाइन लिंक्ड प्रोत्साहन और परिनियोजन लिंक्ड प्रोत्साहन:
    • चिप डिजाइन इन्फ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट: इसके तहत सी-डैक अत्याधुनिक डिज़ाइन इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे ईडीए टूल्स, आईपी कोर और MPW (मल्टी प्रोजेक्ट वफर फैब्रिकेशन) की मेज़बानी के लिये इंडिया चिप सेंटर की स्थापना करेगा और पोस्ट-सिलिकॉन सत्यापन के लिये समर्थित कंपनियों तक इसकी पहुँच की सुविधा प्रदान करेगा।
    • उत्पाद डिज़ाइन लिंक्ड प्रोत्साहन: इसके तहत अर्द्धचालक की डिज़ाइन में लगे अनुमोदित आवेदकों को वित्तीय सहायता के रूप में प्रति आवेदन 15 करोड़ रुपये की सीमा के अधीन पात्र व्यय के 50% तक की क्षतिपूर्ति प्रदान की जाएगी।
    • डिप्लॉयमेंट लिंक्ड इंसेंटिव: इसके तहत 5 वर्षों में शुद्ध बिक्री कारोबार के 6% से 4% की प्रोत्साहन राशि और 30 करोड़ रुपए प्रति आवेदन की सीमा के अधीन उन अनुमोदित आवेदकों को प्रदान की जाएगी जिनके इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसी), चिपसेट, सिस्टम ऑन चिप्स के लिये सेमीकंडक्टर डिज़ाइन ( SoCs), सिस्टम और IP कोर एवं सेमीकंडक्टर लिंक्ड डिज़ाइन इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में तैनात किये गए हैं।
  • संबंधित पहल:
    • सेमीकंडक्टर फैब्स और डिस्प्ले फैब्स हेतु:
      • सरकार सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले फैब्रिकेशन इकाइयों की स्थापना के लिये परियोजना लागत के 50% तक की वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
    • सेमी-कंडक्टर लेबोरेटरी (SCL):
      • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) सेमी-कंडक्टर लेबोरेटरी(SCL) के आधुनिकीकरण तथा व्यवसायीकरण हेतु आवश्यक कदम उठाएगा।
    • कंपाउंड सेमीकंडक्टर्स: 
      • सरकार योजना के तहत स्वीकृत इकाइयों को पूंजीगत व्यय की 30 प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान करेगी।
    • इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन:
      • सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले के उत्पादन की एक सतत् प्रणाली विकसित करने हेतु दीर्घकालिक रणनीतियों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक विशेष और स्वतंत्र "इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM)" स्थापित किया जाएगा। 
    • उत्पादन-सह प्रोत्साहन

प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC):

  • ‘प्रगत संगणन विकास केंद्र’ यानी सी-डैक आईटी, इलेक्ट्रॉनिक्स और संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) का प्रमुख अनुसंधान और विकास संगठन है।
  • भारत का पहला सुपर कंप्यूटर ‘PARAM 8000’ स्वदेशी रूप से (वर्ष 1991 में) प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC) द्वारा ही बनाया गया था।

स्रोत: पी.आई.बी.


विशेष विवाह अधिनियम 1954

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954, मौलिक अधिकार

मेन्स के लिये:

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954, के.एस. पुट्टस्वामी बनाम यूओआई (2017), निजता का अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश में अंतर-धार्मिक विवाहों को नियंत्रित करने वाले कानून, विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।

  • वर्ष 2021 में इसके कई प्रावधानों को रद्द करने के लिये याचिकाएँ दायर की गईं।

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954:

  • विशेष विवाह अधिनियम भारत में अंतर-धार्मिक एवं अंतर्जातीय विवाह को पंजीकृत करने एवं मान्यता प्रदान करने हेतु बनाया गया है।
  • यह एक नागरिक अनुबंध के माध्यम से दो व्यक्तियों को अपनी शादी विधिपूर्वक करने की अनुमति देता है।
  • अधिनियम के तहत किसी धार्मिक औपचारिकता के निर्वहन की आवश्यकता नहीं होती।
  • इस अधिनियम में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन और बौद्ध विवाह शामिल हैं।
  • यह अधिनियम न केवल विभिन्न जातियों और धर्मों के भारतीय नागरिकों पर बल्कि विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है।

वर्तमान याचिका के बारे में:

  • SMA की धारा 5 में इस कानून के तहत शादी करने वाले व्यक्ति को इच्छित विवाह की सूचना देने की आवश्यकता होती है।
  • धारा 6(2) के मुताबिक, इसे विवाह अधिकारी के कार्यालय में एक विशिष्ट स्थान पर चिपका दिया जाना चाहिये।
  • धारा 7(1) किसी भी व्यक्ति को नोटिस के प्रकाशन के 30 दिनों के भीतर विवाह पर आपत्ति करने की अनुमति देती है, ऐसा न करने पर धारा 7(2) के तहत विवाह संपन्न किया जा सकता है।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले इन प्रावधानों के कारण कई अंतर-धार्मिक जोड़ों ने अधिनियम की धारा 6 और 7 को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी।

प्रमुख बिंदु

  • अंतर-धार्मिक विवाह
    • अंतर-धार्मिक विवाह का आशय अलग-अलग धार्मिक आस्थाओं वाले दो व्यक्तियों के बीच वैवाहिक संबंध से है।
    • एक अलग धर्म में शादी करना किसी वयस्क के लिये अपनों व्यक्तिगत पसंद का मामला है।
  • अंतर-धार्मिक विवाह से संबंधित मुद्दे:
    • माना जाता है कि अंतर-र्धार्मिक विवाह के तहत पति-पत्नी (ज़्यादातर महिलाएँ) में से किसी एक का जबरन धर्मांतरण होता है।
    • मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, गैर-मुस्लिम से शादी करने के लिये धर्म परिवर्तन ही एकमात्र तरीका है।
    • हिंदू धर्म केवल एक विवाह की अनुमति देता है और जो लोग दूसरी शादी करना चाहते हैं वे दूसरा रास्ता अपनाते हैं।
    • ऐसे विवाहों से पैदा हुए बच्चों के जाति निर्धारण के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है।
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 समाज के पिछड़ेपन के अनुकूल नहीं है।
    • उच्च न्यायालय द्वारा अंतर-र्धार्मिक विवाह को रद्द करने के संदर्भ में अनुच्छेद 226 की वैधता पर बहस चल रही है।
      • अनुच्छेद 226: रिट जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति।
  • अंतर-धार्मिक विवाहों से संबंधित कानूनों पर विचार करते समक्ष चुनौतियाँ:
    • मौलिक अधिकारों के विरुद्ध: किसी व्यक्ति को विवाह के चुनाव में कानून का हस्तक्षेप उसके मौजूदा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है जैसे:
      • समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14)।
      • स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19)।
      • धर्म की स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 25 व अनुच्छेद 21)।
    • धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध: भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता को प्रमुख सिद्धांतों में शामिल किया गया है।
      • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
      • इसलिये भारत में अंतर-धार्मिक विवाहों की अनुमति है क्योंकि संविधान किसी भी व्यक्ति को अन्य धर्म को अपनाने का अधिकार प्रदान करता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों के साथ भिन्नता:
      • सर्वोच्च न्यायालय  ने शफीन जहान बनाम अशोक केएम (2018) मामले में अनुच्छेद 21 के एक भाग के रूप में अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार को बरकरार रखा है।
        • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, संविधान प्रत्येक व्यक्ति की जीवन-शैली या विश्वास का पालन करने की क्षमता को सुरक्षित करता है जिसका वह पालन करना चाहता है।
        • इसलिये अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
      • इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय में के.एस. पुट्टस्वामी बनाम यूओआई (2017) के फैसले ने "पारिवारिक जीवन के चुनाव के अधिकार" को मौलिक अधिकार के रूप में माना है।
    • पितृसत्तात्मक: इससे पता चलता है कि कानून की जड़ें पितृसत्तात्मक हैं, जिसमें महिलाओं को माता-पिता एवं सामुदायिक नियंत्रण में रखा जाता है और यहाँ तक की जीवन के निर्णय लेने के अधिकार से वंचित किया जाता है, अगर वे निर्णय उनके अभिभावकों को स्वीकार्य न हो।

आगे की राह

  • किसी भी कानून को शामिल करने से बचने के लिये मानसिक और सामाजिक स्तर पर विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की स्वीकृति होनी चाहिये।
  • अधिकारों का शोषण नहीं होना चाहिये, केवल विवाह हेतु धर्म परिवर्तन करना बिल्कुल भी बुद्धिमानी नहीं है।

स्रोत: द हिंदू