डेली न्यूज़ (16 May, 2022)



विश्व स्वास्थ्य संगठन में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक कोविड शिखर सम्मेलन, कोविड-19, ट्रिप्स, WHO।

मेन्स के लिये:

वैश्विक कोविड शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दूसरे वैश्विक कोविड वर्चुअल शिखर सम्मेलन को संबोधित किया, जहाँ उन्होंने WHO से संबंधित सुधारों पर ज़ोर दिया।

  • भारत सरकार ने इस वर्ष (2021-22) G20 और BRICS जैसे बहुपक्षीय मंचों पर WHO में सुधार की आवश्यकता को बार-बार दोहराया है। WHO में सुधारों के लिये भारत के आह्वान का समर्थन विशेष रूप से कोविड-19 महामारी से प्रारंभिक रूप से निपटने के बाद दुनिया भर के देशों द्वारा किया गया है।

भारत द्वारा सुझाए गए सुधार:

  • अंतर्राष्ट्रीय चिंता संबंधी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल’ (Public Health Emergency of International Concern- PHEIC) घोषणा प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाना:
    • PHEIC की घोषणा करने के लिये स्पष्ट मापदंडों के साथ वस्तुनिष्ठ मानदंड तैयार करने की आवश्यता है।
    • घोषणा प्रक्रिया में पारदर्शिता और तत्परता पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
    • PHEIC का तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जो:
      • गंभीर, अचानक, असामान्य या अप्रत्याशित हो।
      • प्रभावित राज्य की राष्ट्रीय सीमा से परे सार्वजनिक स्वास्थ्य के निहितार्थ हो।
      • जिसमें तत्काल अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की आवश्यकता हो।
  • वित्तपोषण:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यक्रम संबंधी गतिविधियों के लिये अधिकांश वित्तपोषण अतिरिक्त बजटीय योगदान से आता है, जो स्वैच्छिक प्रकृति के होते हैं और इन्हें सामान्य रूप से निर्धारित किया जाता है। WHO को इन फंडों के उपयोग में बहुत कम लचीलापन प्राप्त है।
    • यह सुनिश्चित करने किया जाना चाहिये’ कि अतिरिक्त बजटीय या स्वैच्छिक योगदान की आवश्यकता कहाँ सबसे अधिक है। WHO के पास उन क्षेत्रों में इसके उपयोग के लिये आवश्यक लचीलापन है। 
    • WHO के नियमित बजट को बढ़ाने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि विकासशील देशों पर भारी वित्तीय बोझ आरोपित किये बिना WHO की अधिकांश मुख्य गतिविधियों को इससे वित्तपोषित किया जा सके।
  • वित्तपोषण तंत्र और जवाबदेही ढाँचे की पारदर्शिता सुनिश्चित करना:
    • ऐसा कोई सहयोगी तंत्र नहीं है जिसमें सदस्य राज्यों के परामर्श से वास्तविक परियोजनाओं और गतिविधियों पर निर्णय लिया जाता है तथा वित्तीय मूल्य एवं सदस्य राज्यों की प्राथमिकताओं के अनुसार परियोजनाएँ संचालित की जा रही हैं या उनमें हो रही असामान्य देरी के संबंध में न ही कोई समीक्षा होती है। 
    • मज़बूत और सुरक्षित वित्तीय जवाबदेही ढाँचे की स्थापना से वित्तीय प्रवाह में अखंडता बनाए रखने में मदद मिलेगी।
    • बढ़ी हुई जवाबदेही को देखते हुए डेटा रिपोर्टिंग और वित्त के वितरण के संबंध में उचित पारदर्शिता सुनिश्चित किये जाने की भी आवश्यकता है।
  • WHO और सदस्य राज्यों की प्रतिक्रिया क्षमता में वृद्धि:
    • IHR 2005 के कार्यान्वयन ने सदस्य राज्यों के बुनियादी स्वास्थ्य ढाँचे में महत्त्वपूर्ण कमियों को उजागर किया है। यह कोविड-19 महामारी से निपटने में उनकी क्षमता को देखते हए और अधिक स्पष्ट हो गया है।
    • यह आवश्यक है कि WHO द्वारा अपने सामान्य कार्यों के तहत की जाने वाली कार्यक्रम संबंधी गतिविधियों में IHR 2005 के तहत उन आवश्यक सदस्य राज्यों में क्षमता निर्माण को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जहाँ सदस्य राज्यों द्वारा की गई IHR 2005 पर स्व-रिपोर्टिंग के आधार पर कमी पाई जाती है।
  • WHO के प्रशासनिक ढाँचे में सुधार:
    • एक तकनीकी संगठन होने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन में अधिकांश कार्य स्वतंत्र विशेषज्ञों से बनी तकनीकी समितियों द्वारा किये जाते हैं। साथ ही इसके अलावा बीमारी के प्रकोप से जुड़े बढ़ते जोखिमों को देखते हुए WHO स्वास्थ्य आपात स्थिति कार्यक्रम (WHE) के प्रदर्शन के लिये ज़िम्मेदार स्वतंत्र निरीक्षण और सलाहकार समिति (IOAC) की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
    • WHO से मिलने वाली तकनीकी सलाह और सिफारिशों के आधार पर कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार राज्यों के लिये WHO के कामकाज में सदस्य राज्यों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
    • सदस्य राज्यों द्वारा प्रभावी पर्यवेक्षण सुनिश्चित करने हेतु कार्यकारी बोर्ड की स्थायी समिति जैसे विशिष्ट तंत्र को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • IHR के कार्यान्वयन में सुधार:  
    • अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (International Health Regulations- IHR) 2005 के तहत स्व-रिपोर्टिंग सदस्य राज्यों का एक दायित्व है। यद्यपि IHR के कार्यान्वयन की समीक्षा स्वैच्छिक है।
      • IHR (2005) एक बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय कानूनी समझौते का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें WHO के सभी सदस्य राज्यों सहित विश्व भर के 196 देश शामिल हैं।
      • इन विनियमों का उद्देश्य गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों (जिनमें एक देश से दूसरे देश में प्रसारित होने तथा मानव जाति के समक्ष जोखिम उत्पन्न करने की संभावना हो) को रोकने और उन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की मदद करना है।
    • IHR कार्यान्वयन की समीक्षा स्वैच्छिक आधार पर जारी रहनी चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढाने के लिये प्राथमिकताएँ निर्धारित करना भी महत्त्वपूर्ण है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को विकासशील देशों के उन क्षेत्रों में सहायता हेतु निर्देशित किया जाना चाहिये जिनकी पहचान IHR के क्रियान्वयन में आवश्यक क्षमता की कमी वाले क्षेत्र के रूप में की गई है।
  • चिकित्सीय सुविधाओं, टीके और निदान तक पहुँच:  
    • यह महसूस किया गया है कि दोहा घोषणा के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये ट्रिप्स (TRIPS) समझौतों में प्रदान की गई छूट, कोविड-19 महामारी जैसे संकटों से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं हो सकती है।
    • कोविड-19 महामारी का मुकाबला करने के लिये सभी साधनों तक उचित, वहनीय और समान पहुँच सुनिश्चित करना आवश्यक है और इस प्रकार उनके आवंटन हेतु एक रूपरेखा तैयार करने की आवश्यकता है।
  • संक्रामक रोगों और महामारी के प्रबंधन हेतु वैश्विक ढाँचे का निर्माण:
    • यह आवश्यक हो गया है कि अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों, अवसंरचनात्मक तैयारी, मानव संसाधन और परीक्षण एवं निगरानी प्रणाली जैसी प्रासंगिक स्वास्थ्य प्रणालियों की क्षमताओं के संदर्भ में सदस्य राज्यों का समर्थन किया जाए तथा तथा इस संदर्भ में एक निगरानी तंत्र की स्थापना की जाए।
    • महामारी की संभावना वाले संक्रामक रोगों के लिये तैयारी और प्रतिक्रिया के संदर्भ में देशों की क्षमता में वृद्धि की जानी चाहिये, जिसमें प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य पर मार्गदर्शन तथा स्वास्थ्य आपात के लिये आर्थिक उपायों पर एक बहु-विषयक दृष्टिकोण (जिसमें स्वास्थ्य व प्राकृतिक विज्ञान के साथ-साथ सामाजिक विज्ञान भी शामिल है) का समावेश हो।
  • महामारी प्रबंधन हेतु वैश्विक भागीदारी की आवश्यकता:
    • नए इन्फ्लुएंज़ा विषाणुओं के कारण मानव जाति में रोगों के अत्यधिक प्रसार के जोखिम की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में वैश्विक समुदाय द्वारा तत्काल इस समस्या के समाधान हेतु साहसिक प्रयास किये जाने और हमारी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में सतर्कता एवं तैयारियाँ सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है।
    • वैश्विक महामारी की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया संबंधी क्षमता में सुधार तथा भविष्य में ऐसी किसी भी महामारी का सामना करने की हमारी क्षमता को मज़बूती प्रदान करना वैश्विक भागीदारी का प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


फिनलैंड और स्वीडन की नाटो सदस्यता

प्रिलिम्स के लिये:

नाटो, ईयू, बाल्टिक सागर, रूस की अवस्थिति।

मेन्स के लिये:

रूस-यूक्रेन संकट, नाटो, नाटो-रूस डायनेमिक्स।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में फिनलैंड और स्वीडन ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल होने के लिये रुचि दिखाई है।

Finland

स्वीडन और फिनलैंड नाटो के सदस्य क्यों नहीं हैं?

  • फिनलैंड: 
    • यह इस तरह के गठबंधनों से दूर रहा है क्योंकि हमेशा अपने पड़ोसी रूस के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहता था।
    • लंबे समय तक नाटो में शामिल न होने या पश्चिम के बहुत करीब आने का विचार फ़िनलैंड के लिये अस्तित्व की बात थी।
    • हालाँकि धारणा में बदलाव और नाटो में शामिल होने के लिये भारी समर्थन यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद आया।
  • स्वीडन: 
    • फिनलैंड जिसके नीतिगत स्वरूप में अस्तित्व का मामला था, के विपरीत स्वीडन वैचारिक कारणों से संगठन में शामिल होने का विरोध करता रहा है।
    • नाटो का सदस्य होने से इन राष्ट्रों को "अनुच्छेद 5" के तहत सुरक्षा गारंटी मिलेगी।

सदस्यता का अर्थ और नाटो को लाभ:

सुरक्षा की गारंटी:

  • नाटो सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है, जिसका तात्पर्य ‘एक या अधिक सदस्यों पर आक्रमण सभी सदस्य देशों पर आक्रमण माना जाता है। ज्ञातव्य है कि यह नाटो के अनुच्छेद 5 में निहित है।
  • नाटो का सदस्य होने से इन राष्ट्रों को "अनुच्छेद 5" के तहत सुरक्षा गारंटी मिलेगी।
  • गठबंधन की स्थिति को मज़बूत करना:
    • फिनलैंड की भौगोलिक स्थिति उसके पक्ष में है यदि एक बार यह नाटो का सदस्य बन जाता है तो नाटो और रूस की साझा सीमाओं की लंबाई दोगुनी हो जाएगी और यह बाल्टिक सागर में नाटो के गठबंधन की स्थिति को भी मज़बूती प्रदान करेगा।
  • रूस कीआक्रामकता का विरोध:
    • अधिक संप्रभु शक्तियों द्वारा पश्चिम का पक्ष लेना और उसकी ताकत बढ़ाना रूस के लिये  प्रतिकूल साबित हो सकता है।
    • यदि स्वीडन और फिनलैंड नाटो में शामिल होते हैं, विशेषकर इन परिस्थितियों में "इस कदम  से रूस को इस बात आभास होगा कि युद्ध उसके लिये प्रतिकूल परिस्थिति पैदा कर सकता है और यह कदम पश्चिमी एकता, संकल्प व सैन्य तैयारियों को और मज़बूती प्रदान  कर सकता है"।

रूस और अन्य देशों की प्रतिक्रिया:

  • रूस:
    • रूस ने स्वीडन और फिनलैंड द्वारा नाटो की सदस्यता ग्रहण करने की घोषणा करने पर सैन्य शक्ति के इस्तेमाल की धमकी दी और उसके इस कदम के परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी।
  • यूरोपीय देश और अमेरिका:
    • यूरोपीय राष्ट्रों और संयुक्त राज्य अमेरिका ने फिनलैंड के इस कदम का स्वागत किया है।
    • नॉर्वे और डेनमार्क ने कहा है कि वे नाटो की सदस्यता जल्द ही ग्रहण कर सकते हैं।
    • अमेरिका ने कहा कि सदस्यता को औपचारिक रूप से स्वीकार किये जाने तक वह किसी भी आवश्यक रक्षा सहायता प्रदान करने या किसी भी चिंता को दूर करने के लिये तैयार है।
  • तुर्की:
    • तुर्की ने फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने का विरोध किया है।
    • तुर्की सरकार ने दावा किया कि वह पश्चिमी गठबंधन में अपनी सदस्यता का इस्तेमाल दोनों देशों द्वारा सदस्यता स्वीकार करने के कदमों को वीटो करने के लिये कर सकता है।
    • तुर्की सरकार ने कुर्द आतंकवादियों और अन्य समूहों जिन्हें आतंकवादी समूह के रूप में घोषित किया गया है,स्वीडन और अन्य स्कैंडिनेवियाई देशों द्वारा इस समूहों को समर्थन प्रदान करने का आरोप लगाते हुए इस कदम की आलोचना की है।

NATO क्या है?

  • यह सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा अप्रैल 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा स्थापित एक सैन्य गठबंधन है।
  • वर्तमान में इसमें 30 सदस्य देश शामिल हैं।
    • इसके मूल सदस्य बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्राँस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका थे।
    • मूल हस्ताक्षरकर्त्ताओं में शामिल थे- ग्रीस और तुर्की (1952), पश्चिम जर्मनी (1955, 1990 से जर्मनी के रूप में), स्पेन (1982), चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड (1999), बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया तथा स्लोवेनिया (2004), अल्बानिया एवं क्रोएशिया (2009), मोंटेनेग्रो (2017) व नॉर्थ मैसेडोनिया (2020)।
    • फ्राँस वर्ष 1966 में नाटो की एकीकृत सैन्य कमान से अलग हो गया लेकिन संगठन का सदस्य बना रहा, इसने वर्ष 2009 में नाटो की सैन्य कमान में अपनी स्थिति पुनः दर्ज की।
  • मुख्यालय: ब्रुसेल्स, बेल्जियम।
  • एलाइड कमांड ऑपरेशंस का मुख्यालय: मॉन्स, बेल्जियम। 

NATO के उद्देश्य: 

  • नाटो का मूल और स्थायी उद्देश्य राजनीतिक एवं सैन्य साधनों द्वारा अपने सभी सदस्यों की स्वतंत्रता तथा सुरक्षा की गारंटी प्रदान करना है।
    • राजनीतिक उद्देश्य: नाटो लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देता है और सदस्य देशों को समस्याओं को हल करने, आपसी विश्वास कायम करने तथा दीर्घावधि में संघर्ष को रोकने के लिये रक्षा एवं सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर परामर्श व सहयोग करने में सक्षम बनाता है।
    • सैन्य उद्देश्य: नाटो विवादों के शांतिपूर्ण समाधान हेतु प्रतिबद्ध है। राजनयिक प्रयास विफल होने की स्थिति में इसके पास संकट-प्रबंधन हेतु अभियान चलाने के लिये सैन्य शक्ति मौजूद है।
      • ये ऑपरेशन नाटो की संस्थापक संधि के सामूहिक रक्षा खंड- वाशिंगटन संधि के अनुच्छेद 5 या संयुक्त राष्ट्र के जनादेश के तहत अकेले या अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से किये जाते हैं।
      • अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए 9/11 के हमलों के बाद नाटो ने अनुच्छेद 5 को केवल एक बार 12 सितंबर, 2001 को लागू किया है।

आगे की राह 

  • जैसे ही फिनलैंड नाटो में शामिल होता है, रूस-फिनलैंड सीमा पर और अधिक संख्या में रूसी सैनिकों की तैनाती करनी पड़ सकती है।
  • फिनलैंड और रूस 1,300 किमी. की सीमा साझा करते हैं तथा फिनलैंड (और संभावित रूप से स्वीडन की भी) की नाटो सदस्यता के खिलाफ रूस की कार्रवाई फिनलैंड तथा संभावित रूप से स्वीडन की सीमा पर सैन्य तैनाती पर निर्भर हो सकती है।
  • हो सकता है फिनलैंड के लोग तत्काल सैन्य नियोजन का विकल्प न चुनें और अपनी नाटो सदस्यता का उपयोग वे संभवतः रूस के लिये एक संकेत के रूप में करना चाहते हैं, लेकिन यदि वे लगातार खतरा महसूस करते हैं, तो संपूर्ण सैन्य नियोजन का विकल्प भी चुन सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


गगनयान मिशन के लिये HS200 सॉलिड रॉकेट बूस्टर

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने गगनयान कार्यक्रम के लिये ह्यूमन-रेटेड सॉलिड  रॉकेट बूस्टर (HS200) का स्थैतिक परीक्षण पूरा किया है।

HS200 सॉलिड रॉकेट बूस्टर:

  • बूस्टर इंजन जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Mk-III (GSLV Mk-III) रॉकेट का हिस्सा है जो भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जाएगा।
    • गगनयान मिशन के लिये उपयोग किये जाने वाले GSLV Mk-III रॉकेट में दो HS200 बूस्टर होंगे जो लिफ्ट-ऑफ के लिये इसे थ्रस्ट प्रदान करेंगे। 
    • HS200 3.2 मीटर के व्यास के साथ एक 20 मीटर लंबा सॉलिड बूस्टर है और ठोस प्रणोदक का उपयोग करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा परचालित बूस्टर है।
  • HS200 उपग्रह प्रक्षेपण यान GSLV Mk-III के S200 रॉकेट बूस्टर का ह्यूमन-रेटेड संस्करण है, जिसे LVM3 के नाम से जाना जाता है।
    • चूँकि गगनयान एक चालित (Crewed) मिशन है, इसलिये GSLV Mk-III में 'ह्यूमन रेटिंग' की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये इसकी विश्वसनीयता और सुरक्षा बढ़ाई जाएगी। 
  • S200 मोटर- LVM3 लॉन्च व्हीकल का पहला चरण जिसे 4,000 किलोग्राम उपग्रहों को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट(GEO) में पहुँचाने के लिये डिज़ाइन किया गया था और इसे स्ट्रैप-ऑन रॉकेट बूस्टर का आकार दिया गया था।
  • प्रक्षेपण यान के पहले चरण का यह पूर्ण-अवधि परीक्षण गगनयान कार्यक्रम उद्देश्य की प्राप्ति के क्रम में एक मील का पत्थर है।
  • HS200 बूस्टर का डिज़ाइन और विकास केरल के तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) में पूरा किया गया था तथा प्रणोदक का निर्माण श्रीहरिकोटा में हुआ था।
  • LVM-3 के तीन प्रणोदन चरणों में से ह्यूमन-रेटेड संस्करण दूसरे चरण के हैं  जिन्हें तरल प्रणोदक के साथ L110-G के रूप में जाना जाता है और क्रायोजेनिक प्रणोदक के साथ तीसरा चरण C25-G योग्यता के अंतिम चरण में है, जिसमें स्थैतिक फायरिंग के साथ परीक्षण शामिल है।

भू-तुल्यकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV):

  • GSLV एक अधिक शक्तिशाली रॉकेट है, जो भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में अधिक ऊँचाई तक ले जाने में सक्षम है। जीएसएलवी रॉकेटों ने अब तक 18 मिशनों को अंजाम दिया है, जिनमें से चार विफल रहे हैं।
  • यह 10,000 किलोग्राम के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा तक ले जा सकता है।
  • स्वदेश में विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS)- ‘GSLV Mk-II’ के तीसरे चरण का निर्माण करता है।
  • Mk-III संस्करणों ने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो को अपने उपग्रहों को लॉन्च करने हेतु पूरी तरह से आत्मनिर्भर बना दिया है।
    • इससे पहले भारत अपने भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिये ‘यूरोपीय एरियन प्रक्षेपण यान’ पर निर्भर था।
    • GSLV Mk-III चौथी पीढ़ी तथा तीन चरण का प्रक्षेपण यान है जिसमें चार तरल स्ट्रैप-ऑन हैं। स्वदेशी रूप से विकसित सीयूएस जो कि उड़ने में सक्षम है, GSLV Mk-III के तीसरे चरण का निर्माण करता है।
    • रॉकेट में दो ठोस मोटर स्ट्रैप-ऑन (S200) के साथ एक तरल प्रणोदक कोर चरण (L110) और एक क्रायोजेनिक चरण (C-25) के साथ तीन चरण शामिल हैं।

गगनयान मिशन:

  • परिचय: 
    • गगनयान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का एक मिशन है।
    • गगनयान, शेड्यूल के तहत (वर्ष 2023 में लॉन्च किया जाएगा):
      • तीन अंतरिक्ष अभियानों को कक्षा में भेजा जाएगा।
      • इन तीन अभियानों में से 2 मानवरहित होंगे, जबकि एक मानव युक्त मिशन होगा।
    • मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम, जिसे ऑर्बिटल मॉड्यूल कहा जाता है, में एक महिला सहित तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री होंगे।
    • यह मिशन 5-7 दिनों की अवधि में पृथ्वी से 300-400 किमी. की ऊँचाई पर लो अर्थ ऑर्बिट में पृथ्वी का चक्कर लगाएगा।
  • पेलोड:
    • पेलोड में शामिल होंगे:
      • क्रू मॉड्यूल- मानव को ले जाने वाला अंतरिक्षयान।
      • सर्विस मॉड्यूल- दो तरल प्रणोदक इंजनों द्वारा संचालित।
    • यह आपातकालीन निकास और आपातकालीन मिशन अबोर्ट व्यवस्था से लैस होगा।
  • प्रमोचन:
    • गगनयान के प्रमोचन हेतु तीन चरणों वाले GSLV Mk-III का उपयोग किया जाएगा जो भारी उपग्रहों के प्रमोचन में सक्षम है। उल्लेखनीय है कि GSLV Mk-III को प्रमोचन वाहन मार्क-3 (Launch Vehicle Mark-3 or LVM-3) भी कहा जाता है।
  • रूस में प्रशिक्षण:
    • जून 2019 में इसरो के मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र तथा रूस सरकार के स्वामित्व वाली Glavkosmos ने भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण हेतु एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये, जिसमें उम्मीदवारों के चयन में रूस का समर्थन, चयनित यात्रियों का चिकित्सीय परीक्षण तथा अंतरिक्ष प्रशिक्षण शामिल हैं।
    • अंतरिक्ष यात्री के रूप में चयनित उम्मीदवार सोयुज़ (Soyuz) मानव युक्त अंतरिक्षयान की प्रणालियों का विस्तार से अध्ययन करेंगे, साथ ही Il-76MDK विमान में अल्पकालिक भारहीनता मोड में प्रशिक्षित होंगे।
      • सोयुज़ एक रूसी अंतरिक्षयान है जो लोगों को अंतरिक्ष स्टेशन पर ले जाने तथा वापस लाने और अन्य सामग्रियों की आपूर्ति का कार्य करता है।
      • Il-76MDK एक सैन्य परिवहन विमान है जिसे विशेष रूप से प्रशिक्षु अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष पर्यटकों की परवलयिक उड़ानों के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • महत्त्व:
    • यह देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के स्तर को बढ़ाने तथा युवाओं को प्रेरित करने में मदद करेगा।
      • गगनयान मिशन में विभिन्न एजेंसियों, प्रयोगशालाओं, उद्योगों और विभागों को शामिल किया जाएगा।
    • यह औद्योगिक विकास में सुधार करने में मदद करेगा।
      • सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ाने हेतु किये जा रहे सुधारों के क्रम में हाल ही में एक नए संगठन IN-SPACe के गठन की घोषणा की है।
    • यह सामाजिक लाभों के लिये प्रौद्योगिकी के विकास में मदद करेगा।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
      • कई देशों के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS) पर्याप्त नहीं हो सकता है क्योंकि क्षेत्रीय पारिस्थितिक तंत्र को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है, अतः गगनयान मिशन क्षेत्रीय ज़रूरतों- खाद्य, जल एवं ऊर्जा सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  • भारत की अन्य आगामी परियोजनाएंँ:
    • चंद्रयान-3 मिशन: भारत ने चंद्रयान-3 नामक नए चंद्रमा मिशन की योजना बनाई है। जिसके प्रक्षेपण (Launch ) की संभावना अगस्त 2022 तक है।
    • शुक्रयान मिशन: इसरो भी शुक्र के लिये एक मिशन की योजना बना रहा है, जिसे अस्थायी रूप से शुक्रयान कहा जाता है।

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान के संदर्भ में,निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. PSLVs पृथ्वी संसाधनों की निगरानी के लिये उपयोगी उपग्रहों को लॉन्च करते हैं, जबकि GSLVs को मुख्य रूप से संचार उपग्रहों को लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  2. PSLVs द्वारा प्रक्षेपित उपग्रह पृथ्वी पर किसी विशेष स्थान से देखने पर आकाश में उसी स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर प्रतीत होते हैं।
  3. GSLV Mk-III एक चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जिसमें पहले और तीसरे चरण में ठोस रॉकेट मोटर्स का उपयोग किया गया है; दूसरे व चौथे चरण में तरल रॉकेट इंजन का उपयोग किया जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1 
(B) 2 और 3
(C) 1 और 2 
(D) केवल 3

उत्तर: (A)

  • पीएसएलवी भारत की तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है। पीएसएलवी पहला लॉन्च वाहन है जो तरल चरण (Liquid Stages) से सुसज्जित है। इसका उपयोग मुख्य रूप से निम्न पृथ्वी की कक्षाओं में विभिन्न उपग्रहों विशेष रूप से भारतीय उपग्रहों की रिमोट सेंसिंग शृंखला को स्थापित करने के लिये किया जाता है। यह 600 किमी. की ऊचाई के सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षाओं में 1,750 किलोग्राम तक का पेलोड ले सकता है।
  • जीएसएलवी को मुख्य रूप से भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इनसैट) को स्थापित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, यह दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज एवं बचाव कार्यों जैसी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इसरो द्वारा प्रक्षेपित बहुउद्देशीय भू-स्थिर उपग्रहों की एक शृंखला है। यह उपग्रहों को अत्यधिक दीर्घवृत्तीय जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में स्थापित करता है। अत: कथन 1 सही है।
  • भू-तुल्यकालिक कक्षाओं में उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर प्रतीत होते हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है।

प्रश्न. हाल ही में खबरों में रही 'ग्रीस्ड लाइटनिंग-10 (GL-10)' क्या है? (2016)

(A) नासा द्वारा परीक्षण किया गया विद्दुत विमान।
(B) जापान द्वारा डिज़ाइन किया गया सौर ऊर्जा से चलने वाला दो सीटों वाला विमान।
(C) चीन द्वारा शुरू की गई अंतरिक्ष वेधशाला।
(D) इसरो द्वारा डिज़ाइन किये गए पुन: प्रयोज्य रॉकेट।

उत्तर: (A)

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स


भारत में क्रूज़ पर्यटन की संभावना

प्रिलिम्स के लिये:

फिक्की, लाइटहाउस, पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय महायोजना, स्वदेश दर्शन योजना, नमामि गंगे परियोजना।

मेन्स के लिये:

भारत में क्रूज़ पर्यटन की संभावना और संबंधित पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पहला अतुल्य भारत अंतर्राष्ट्रीय क्रूज़ सम्मेलन, 2022 आयोजित किया गया।

  • भारत, पर्यटन उद्योग को गति देने के लिये राष्ट्रीय पर्यटन नीति पर कार्य कर रहा है।

भारत अंतर्राष्ट्रीय क्रूज़ सम्मेलन, 2022:

  • सम्मेलन का आयोजन संयुक्त रूप से पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय तथा भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI) द्वारा किया गया है।
  • दो दिवसीय इस कार्यक्रम में कुछ प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की गई: 
    • भारत को एक क्रूज़ हब के रूप में विकसित करने के लिये रणनीतियाँ, नीतिगत पहल और बंदरगाह बुनियादी ढाँचे, नदी क्रूज पर्यटन की क्षमता तथा महामारी के बाद की दुनिया में प्रौद्योगिकी की भूमिका।

भारत में क्रूज़ पर्यटन की क्या संभावनाएँ हैं?

  • परिचय: 
    • बढ़ती मांग और प्रयोज्य आय से प्रेरित भारतीय क्रूज़ बाज़ार की अगले दशक में 10 गुना बढ़ने की क्षमता है।
    • भारत एक शानदार क्रूज़ गंतव्य है, इसकी 7,500 किमी. लंबी तटरेखा के साथ भारत के कई आकर्षण और विशाल नदी प्रणालियों का दुनिया के सामने अनावरण किया जाना बाकी है।
    • भारत सरकार अपनी क्षमता का एहसास कर भारत को महासागर और नदी परिभ्रमण दोनों के लिये अत्याधुनिक बुनियादी ढाँचे के साथ एक वैश्विक क्रूज़ हब के रूप में स्थापित करने के लिये दृढ़ संकल्पित है।
    • भारत में वैश्विक हितधारकों ने क्रूज़ पर्यटन को बढ़ावा देने में गहरी दिलचस्पी दिखाई है। उचित बुनियादी ढाँचे के साथ आधुनिक तकनीक को अपनाने से भारत निश्चित रूप से दुनिया के शीर्ष पर्यटन स्थलों में से एक बन जाएगा।
  • उद्देश्य: 
    • भारत का लक्ष्य क्रूज़ यात्री यातायात को वर्तमान के 0.4 मिलियन से बढ़ाकर 4 मिलियन करना है।
    • आने वाले वर्षों में क्रूज़ पर्यटन की आर्थिक क्षमता 110 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।

संबंधित पहल:

  • टास्क फोर्स:
    • सरकार ने क्रूज़ पर्यटन के विकास हेतु एक टास्क फोर्स का गठन किया है।
    • देश में क्रूज़ पर्यटन के विकास हेतु एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में टास्क फोर्स की मदद करने के लिये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को शामिल करते हुए एक उच्च स्तरीय सलाहकार समिति की स्थापना की घोषणा की गई है।
  • तटीय गंतव्य सर्किट (Coastal Destination Circuits): 
    • 'क्रूज़ की मांग को सक्रिय करने हेतु चार थीम आधारित तटीय गंतव्य सर्किट विकसित किये गए हैं।
    • चार थीम आधारित तटीय गंतव्य सर्किट हैं:
      • गुजरात तीर्थ यात्रा
      • पश्चिम तट - सांस्कृतिक और दर्शनीय पर्यटन
      • दक्षिण तट - आयुर्वेदिक वेलनेस टूर्स
      • पूर्वी तट - विरासत पर्यटन
  • प्रकाश स्तंभ:
    • तटीय पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु प्रकाश स्तंभ और द्वीप विकास का कार्य भी किया जा रहा है।
      • क्रूज पर्यटन का अन्य संभावित क्षेत्र है- रिवर क्रूज़ या अंतर्देशीय क्रूज़ जिसे खोजा जा सकता है।
  • मैरीटाइम विज़न दस्तावेज़ 2030:
    • सांस्कृतिक पर्यटन,आयुर्वेद पर्यटन, तटीय पर्यटन, नदी क्रूज़ पर्यटन आदि पर ध्यान देने के  उद्देश्य से ‘मैरीटाइम विज़न डॉक्यूमेंट 2030’ तैयार किया गया है। 
      • महामारी के बाद भारत में पर्यटन क्षेत्र पुनरुत्थान के साथ बढ़ रहा है और क्रूज़ पर्यटन ने साल-दर-साल 35% की वृद्धि दर्ज की है।
  • बंदरगाहों का उन्नयन और आधुनिकीकरण:
    • बंदरगाहों का उन्नयन और आधुनिकीकरण का कार्य देश के सात प्रमुख बंदरगाहों पर किया जा रहा है, जिसमें मुंबई में बनने वाला ‘न्यू इंटरनेशनल क्रूज़ टर्मिनल’ भी शामिल है, जिसकी कुल लागत लगभग 495 करोड़ रुपए है।
    • न्यू इंटरनेशनल क्रूज़ टर्मिनल प्रतिवर्ष 200 जहाज़ो और दस लाख यात्रियों को संभालने की क्षमता से युक्त होगा।
    • इसी तरह के बुनियादी ढाँचे का उन्नयन गोवा, न्यू मैंगलोर, कोच्चि, चेन्नई, विशाखापत्तनम और कोलकाता में हो रहा है।
  • पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय महायोजना:
  • स्वदेश दर्शन योजना:
    • स्वदेश दर्शन योजना के माध्यम से विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 648.80 करोड़ रुपए के तटीय विषयगत सर्किट के तहत 10 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है।
  • नमामि गंगे परियोजना:
    • सरकार ने विशाल नमामि गंगे परियोजना के माध्यम से नदियों को स्वच्छ और पुनर्जीवित करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं, जो नदी आधारित पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा दे सकती है।
  • अन्य:
    • बुनियादी ढांँचे के उन्नयन, बंदरगाह शुल्क के युक्तिकरण, बेदखली शुल्क को हटाने, क्रूज़ ज़हाज़ों को प्राथमिकता देने, ई-वीज़ा सुविधाएंँ प्रदान करने आदि सहित कई पहलें की गई हैं।

भारत में क्रूज बाज़ार की स्थिति:

  • विश्व स्तर पर नदी क्रूज़ बाज़ार पिछले कुछ वर्षों में लगभग 5% की दर से बढ़ा है तथा वर्ष 2027 तक क्रूज़ बाज़ार के लगभग 37% होने की उम्मीद है।
  • यूरोप दुनिया में नदी क्रूज़ ज़हाज़ों के लगभग 60% हिस्से के साथ विकास कर रहा है, यूरोप डेन्यूब और चीन यांग्त्ज़ी नदियों के साथ वैश्विक स्तर पर नदी क्रूज़ बाज़ार पर हावी है।

स्रोत: पी.आई.बी.


क्रिप्टोकरेंसी के कारण ‘डॉलरीकरण’

प्रिलिम्स के लिये:

आरबीआई, डॉलरीकरण और डी-डॉलरीकरण, क्रिप्टोकरेंसी, फॉरेक्स रिज़र्व।

मेन्स के लिये:

क्रिप्टोकरेंसी के कारण डॉलरीकरण, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने संसदीय पैनल को बताया कि क्रिप्टोकरेंसी अर्थव्यवस्था के हिस्से का "डॉलरीकरण" कर सकती है जो भारत के संप्रभु हित के खिलाफ होगा।

डॉलरीकरण:

  • डॉलरीकरण मुद्रा प्रतिस्थापन का रूप है, जहांँ डॉलर का उपयोग किसी देश की स्थानीय मुद्रा के अतिरिक्त या उसके स्थान पर किया जाता है।
    • यद्यपि कई अर्थव्यवस्थाएंँ काफी हद तक डॉलरीकृत हैं फिर भी केवल लाइबेरिया और पनामा जैसे टैक्स हेवन देशों को सही अर्थों में 'डॉलरीकृत' के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
  • वास्तव में दो-तिहाई डॉलर संयुक्त राज्य अमेरिका जो कि इसे जारी करता है, के बाहर रखे जाते हैं।
    • बोलीविया जैसे देश जो अति मुद्रास्फीति के शिकार हुए हैं, का भी डॉलरीकरण हो गया है, यहाँ 80% से अधिक मुद्रा का उपयोग डॉलर के रूप में किया जा रहा है।

डी-डॉलरीकरण:

  • यह वैश्विक बाज़ारों में डॉलर के प्रभुत्व को कम करने के लिये संदर्भित है। यह अमेरिकी डॉलर को मुद्रा के रूप में प्रतिस्थापित करने की एक प्रक्रिया है जिसका उपयोग निम्न हेतु किया जाता है:
    • व्यापारिक तेल और/या अन्य वस्तुएंँ
    • विदेशी मुद्रा भंडार हेतु अमेरिकी डॉलर ख़रीदना
    • द्विपक्षीय व्यापार समझौते
    • डॉलर मूल्यवर्ग की संपत्ति
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में डॉलर की प्रभुत्वशाली भूमिका अमेरिका को अन्य अर्थव्यवस्थाओं पर असंगत प्रभाव रखने का अवसर देती है। अमेरिका लंबे समय से अपने विदेश नीति लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये प्रतिबंधों को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करता रहा है।
    • डी-डॉलरीकरण विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों को भू-राजनीतिक जोखिमों से बचाने की भावना से प्रेरित है, जहाँ एक आरक्षित मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर की स्थिति को आक्रामक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

डॉलरीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:

  • अपनी मौजूदा मुद्रास्फीति की समस्याओं के बावजूद भारत काफी हद तक डॉलरीकरण से बहुत दूर है।
    • हालाँकि कुछ शोध पत्रों के अनुसार, भारतीय निर्यात-आयात (EXIM) लेन-देन में डॉलर का दबदबा है।
  • भारतीय आयात और निर्यात दोनों ही गतिविधियाँ लगभग 86% डॉलर में ही की जाती हैं।
  • भारत, अमेरिका को 15% निर्यात और वहाँ से केवल 5% ही आयात करता है।
    • यह दर्शाता है कि विदेशों में डॉलर की लोकप्रियता के भय से कुछ देश अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिये अपनी मुद्राओं का उपयोग करते हैं।

संबंधित चिंताएंँ:

  • वित्तीय प्रणाली की स्थिरता के लिये चुनौतिँयाँ:
    • उच्च डॉलरीकरण वाली अर्थव्यवस्थाओं के केंद्रीय बैंक बिना शक्ति के निकाय बन जाते हैं।
    • क्रिप्टोकरेंसी में विनिमय का माध्यम बनने तथा घरेलू और सीमा पार वित्तीय लेन-देन में रुपए को प्रतिस्थापित करने की क्षमता है।
      • यही कारण है कि आरबीआई ने इसका विरोध किया है तथा भारतीय वित्त मंत्रालय ने भारत में आधिकारिक तौर पर इसे 'अनुमति' दिये बिना 30% क्रिप्टो टैक्स लगाकर उसका समर्थन किया है।
    • इस कदम का उद्देश्य भारतीय रुपए से आभासी संपत्ति को खरीदने से रोकना है, जो विदेशी संस्थाओं के स्वामित्व में होगी, जिन्हें यहाँ कर अधिकारियों द्वारा ट्रैक नहीं किया जा सकता है।
    • कर/टैक्स उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होता है जो क्रिप्टो की माइनिंग केवल इसे पाने के लिये करते हैं बल्कि यह उन पर लागू होता है जो इसे प्राप्त करने या इसमें व्यापार करने के लिये भारतीय रुपए को खर्च करते हैं।
  • देश के वित्तीय क्षेत्र के लिये खतरा:
    • आतंक के वित्तपोषण, मनी लॉन्ड्रिंग और मादक पदार्थों की तस्करी के लिये इस्तेमाल होने के अलावा क्रिप्टो देश की वित्तीय प्रणाली की स्थिरता हेतु एक बड़ा खतरा है।
  • बैंकिंग प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव:
    • इसका बैंकिंग प्रणाली पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि आकर्षक संपत्ति होने के कारण लोग अपनी मेहनत की कमाई को इन मुद्राओं में निवेश कर सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप बैंकों के पास उधार देने के लिये संसाधनों की कमी हो सकती है।
      • भारत में अनुमानित रूप से 15 मिलियन से 20 मिलियन क्रिप्टो निवेशक हैं, जिनकी कुल क्रिप्टो होल्डिंग लगभग 5.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।

आगे की राह

  • अमेरिकी डॉलर अभी भी व्यापार के लिये पसंदीदा मुद्रा है क्योंकि कोई अन्य मुद्रा पर्याप्त रूप से तरल नहीं है। अगर किसी मुद्रा मे तरलता है भी तो राष्ट्रों में यह आशंका बनी रहती है कि कहीं वह मुद्रा अमेरिकी डॉलर का प्रतिरूप न बन जाए।
  • विश्व केवल व्यवस्था में परिवर्तन नहीं चाहता जहाँ अमेरिका के बजाय अब किसी दूसरे देश के वैसे ही छल-कपट भोगने पड़ें। आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि मुद्रा बाज़ार में विविधता लाई जाए जहाँ कोई एक मुद्रा आधिपत्य का दावा न करे।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स


गतिशक्ति संचार पोर्टल

प्रिलिम्स के लिये:

गतिशक्ति संचार पोर्टल, गतिशक्ति योजना।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, गतिशक्ति संचार पोर्टल का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संचार मंत्रालय ने केंद्रीकृत मार्ग का अधिकार (RoW) अनुमोदन के लिये "गतिशक्ति संचार" पोर्टल का शुभारंभ किया है।

‘गतिशक्ति संचार’ पोर्टल:

  • परिचय: पोर्टल को राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन की परिकल्पना क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है, जो प्रत्येक नागरिक को मुख्य उपयोगिता के रूप में ब्रॉडबैंड बुनियादी ढाँचा, मांग पर प्रशासन और सेवाएँ तथा विशेष रूप से हमारे देश के नागरिकों को डिजिटल सशक्तीकरण प्रदान करेंगे।
  • उद्देश्य: पोर्टल दूरसंचार बुनियादी ढाँचे के कार्यों के लिये "व्यवसाय करने में सुगमता" के उद्देश्य हेतु एक प्रवर्तक के रूप में कार्य करेगा।

महत्त्व:

  •   5G नेटवर्क की समय पर शुरुआत: विभिन्न सेवा और अवसंरचना प्रदाताओं के आरओडब्ल्यू अनुप्रयोगों का समय पर निपटान, त्वरित बुनियादी ढाँचे के निर्माण को सक्षम करेगा जो 5G नेटवर्क की समय पर शुरुआत के लिये भी एक प्रवर्तक होगा।
    • यह पोर्टल देश भर में केंद्रीकृत मार्ग का अधिकार (RoW) अनुमोदनों की प्रभावी निगरानी के लिये राज्य और ज़िलेवार लंबित स्थिति को दर्शाने वाले एक शक्तिशाली डैशबोर्ड से भी सुसज्जित है।
  •  दूरसंचार सेवाओं की बेहतर गुणवत्ता: इसके परिणामस्वरुप: 
    • अधिक ऑप्टिकल फाइबर केबल को तेज़ी से बिछाने और इस प्रकार फाइबराइज़ेशन में तेज़ी आएगी।
    • टॉवर घनत्व में वृद्धि होगी जो कनेक्टिविटी को बढ़ाएगी और विभिन्न दूरसंचार सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करेगी
    • दूरसंचार टावरों के फाइबराइज़ेशन में वृद्धि, इस प्रकार देश भर में बेहतर ब्रॉडबैंड गति सुनिश्चित होगी।
  • देश का सशक्तीकरण: इस पोर्टल से देश के 'आत्मनिर्भर' अभियान को बढ़ावा मिलने की आशा है, जो हमारे देश को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने के लिये सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है।
  • ग्रामीण और शहरी भारत दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण: यह निर्बाध डिजिटल पहुँच, सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी और किफायती, परिवर्तनकारी एवं टिकाऊ प्रौद्योगिकी के आधार पर सभी के लिये डिजिटल समावेशन सुनिश्चित करेगा।

PM गतिशक्ति योजना: 

  • परिचय: 
    • वर्ष 2021 में भारत सरकार ने लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिये समन्वित और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के निष्पादन हेतु महत्त्वाकांक्षी गति शक्ति योजना या ‘नेशनल मास्टर प्लान फॉर मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी प्लान’ लॉन्च किया।
  • उद्देश्य: 
    • ज़मीनी स्तर पर काम में तेज़ी लाना, लागत में कमी और रोज़गार पैदा करने पर ध्यान देने के साथ-साथ आगामी चार वर्षों में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की एकीकृत योजना एवं कार्यान्वयन सुनिश्चित करना
    • गतिशक्ति योजना के तहत वर्ष 2019 में शुरू की गई 110 लाख करोड़ रुपए की राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन को समाहित किया जाएगा।
    • लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती के अलावा इस योजना का उद्देश्य कार्गो हैंडलिंग क्षमता को बढ़ाना और व्यापार को बढ़ावा देने हेतु बंदरगाहों पर टर्नअराउंड समय को कम करना है।
    • इसका लक्ष्य 11 औद्योगिक गलियारे और दो नए रक्षा गलियारे (एक तमिलनाडु में तथा दूसरा उत्तर प्रदेश में) बनाना भी है। 
    • इसके तहत सभी गाँवों में 4G कनेक्टिविटी का विस्तार किया जाएगा। साथ ही गैस पाइपलाइन नेटवर्क में 17,000 किलोमीटर की क्षमता जोड़ने की योजना बनाई जा रही है।
    • यह वर्ष 2024-25 के लिये सरकार द्वारा निर्धारित महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की लंबाई को 2 लाख किलोमीटर तक विस्तारित करना, 200 से अधिक नए हवाई अड्डों, हेलीपोर्ट और वाटर एयरोड्रोम का निर्माण करना शामिल है।

Gati-Shakti-Master-Plan

राष्ट्रीय ब्रॉडबैंड मिशन: 

  • परिचय: इसकी स्थापना वर्ष 2019 में दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा की गई थी। 
  • उद्देश्य: देश भर में विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिये सार्वभौमिक एवं समान पहुँच की सुविधा प्रदान करना।  
    • इस परिकल्पना को पूरा करने के लिये यह ज़रूरी है कि देश भर में डिजिटल संचार अवसंरचना के सुचारू और कुशल परिनियोजन को सुगम बनाकर इसे बुनियादी ढाँचे का आधार बनाया जाए। 
    • "गतिशक्ति संचार" पोर्टल राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति-2 में परिकल्पित "सभी के लिये ब्रॉडबैंड" के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु एक मज़बूत तंत्र प्रदान करेगा।