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मिशन चंद्रयान एवं GSLV मार्क III

  • 17 Jul 2019
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेख शामिल हैं। इस आलेख में भारत के मिशन चंद्रयान तथा इसमें प्रयोग होने वाले GSLV मार्क III प्रक्षेपण यान के बारे में चर्चा की गई है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

भारत में पिछले कुछ समय से इसरो और अंतरिक्ष को लेकर काफी चर्चा की जा रही है। इस चर्चा का मुख्य कारण भारत का बहुप्रतीक्षित चंद्रयान-2 अभियान है। इस अभियान के तहत भारत पहली बार चंद्रमा की सतह पर रोवर उतारने जा रहा है, किंतु इस अभियान को तकनीकी खामी के चलते अंतिम समय में रोक दिया गया। यह तकनीकी समस्या प्रमोचन यान Geosynchronous Satellite Launch Vehicle-GSLV मार्क IIIसे संबंधित बताई गई है, जिसके माध्यम से इसे प्रक्षेपित किया जाना था। इस प्रमोचन यान के तरल हाइड्रोजन ईंधन में गड़बड़ी आने का अनुमान लगाया गया है। किसी भी अंतरिक्ष अभियान को लॉन्च करने के लिये निश्चित समय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है भारत का यह अभियान अब तकनीकी खामी को दूर करने के पश्चात् निश्चित समय पर ही भेजा जा सकेगा।

अंतरिक्ष अभियान में समय की भूमिका महत्त्वपूर्ण क्यों?

चंद्रयान-2 अभियान के विमोचन के लिये जुलाई माह की 15 एवं 16 तारीख को सुनिश्चित किया गया था। किंतु तकनीकी खामी के कारण इसे कुछ समय के लिये टाल दिया गया है। इन खामियों को ठीक करने में कुछ दिन का समय लगेगा। इसके बावज़ूद इस अभियान को लॉन्च करने में और अधिक समय लगने की संभावना है। इसकी महत्त्वपूर्ण वजह चंद्रमा की लॉन्च समय सीमा (Launch WIndow) है। लॉन्च विंडो का अर्थ किसी भी अंतरिक्ष मिशन को भेजने के सही समय से है ताकि मिशन को अन्य समस्याओं से सुरक्षित किया जा सके। यह ध्यान देने योग्य है कि चंद्रमा पर लगभग 28 दिन (पृथ्वी दिवस के अनुरूप) में आधा समय दिन एवं आधे समय में रात्रि होती है। किसी भी मिशन की सक्रियता को बढ़ाने के लिये यह आवश्यक होता है कि कोई अभियान ऐसे समय में विमोचित किया जाए कि यान के उपकरणों के लिये उचित प्रकाश की व्यवस्था बनी रहे, जिससे उपकरण निर्बाध रूप से संचालित हो सकें। साथ ही निश्चित समय इसलिये भी आवश्यक है ताकि चंद्रयान-2 पर पृथ्वी से नज़र रखी जा सके और यान की स्थिति के अनुसार चंद्रमा पर उसे उतारने का समय निर्धारित किया जा सके। पृथ्वी से चंद्रयान-2 के प्रक्षेपित होने तथा चंद्रमा पर यान के उतरने के मध्य में 54 दिनों का नियोजित समय अंतराल है। किंतु यान को चंद्रमा पर उतारने के निर्णय के लिये सीमित समय होता है, इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि यान को सही समय पर प्रक्षेपित किया जाए ताकि निश्चित समय पर यान को चंद्रमा पर उतारा जा सके। इस प्रकार की लॉन्च विंडो चंद्रमा के संदर्भ में प्रत्येक माह उपलब्ध होती है, अतः ऐसा माना जा रहा है कि यदि राकेट ईंधन से संबंधित खामियों को समय पर दूर कर लिया जाता है तो चंद्रयान-2 का प्रमोचन अगले माह किया जा सकता है।

GSLV मार्क III की आवश्यकता

भारत पिछले तीन दशक में PSLV तकनीक में महारत हासिल कर चुका है। वर्ष 1990 के पश्चात् सिर्फ इसकी दो उड़ाने ही असफल हुई हैं। किंतु PSLV की भार उठाने की क्षमता सीमित होती है। अतः भारत को अपने भारी पेलोड को अंतरिक्ष में स्थापित करने तथा बड़े अभियानों को अंजाम देने के लिये सक्षम प्रक्षेपण यान की आवश्यकता महसूस की जाती रही है।

उपर्युक्त ज़रूरतों को ध्यान में रखकर भारत ने GSLV प्रमोचन यान का विकास किया है। इस प्रकार के यानों में विभिन्न प्रकार के ईधनों का उपयोग किया जाता है, जिससे यान को बड़ी मात्रा में प्रणोदन (Thrust) प्राप्त होता है। इससे इसकी भार वहन करने की क्षमता PSLV से कहीं अधिक हो जाती है, साथ ही पेलोड को सुदूर अंतरिक्ष तक भेजने में आसानी होती है। उदाहरण के लिये चंद्रयान-2 का भार चार हजार किग्रा. है, जिसको GSLV के सबसे उन्नत वर्जन मार्क III द्वारा प्रक्षेपित किया जाना है। इस वर्जन में क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग किया गया है।

क्रायोजेनिक तकनीक

क्रायोजेनिक तकनीक अत्यधिक निम्न तापमान से संबंधित जटिल तकनीक है, किंतु मार्क III जैसे भारी प्रमोचन यानों के लिये आवश्यक है। थ्रस्ट प्रदान करने के लिये हाइड्रोजन सबसे अच्छा ईंधन माना जाता है, किंतु हाइड्रोजन प्राकृतिक रूप में गैसीय अवस्था में पाया जाता है। इस अवस्था में इसको नियंत्रित करना मुश्किल होता है, इसलिये इसको तरल अवस्था में परिवर्तित करके उपयोग किया जाता है। तरल अवस्था में हाइड्रोजन के उपयोग के लिये शून्य से 250 डिग्री सेल्सियस कम तापमान की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की तकनीक में ऑक्सीजन का भी उपयोग तरल रूप में किया जाता है। ऑक्सीजन को तरल अवस्था में उपयोग करने के लिये शून्य से 90 डिग्री सेल्सियस कम तापमान की ज़रूरत होती है। इस स्थिति में अन्य पदार्थों को इन गैसों के साथ एक इंजन में उपयोग करना बेहद जटिल प्रक्रिया है।

भारत के लिये GSLV तकनीक के विकास का इतिहास तीन दशक पुराना है। आरंभ में भारत ने 1980 के दशक में अमेरिका से यह तकनीक प्राप्त करने का प्रयास किया, किंतु अमेरिका के इनकार के पश्चात् भारत को स्वदेशीकरण की ओर मुड़ना पड़ा। लेकिन भारतीय प्रयास आशा के अनुरूप नहीं रहे तथा भारत ने रूस से क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन अमेरिकी दबाव के कारण भारत को रूस से यह तकनीक नहीं मिल पाई। इसके पश्चात् भारत ने स्वयं क्रायोजेनिक तकनीक के निर्माण का प्रयास तिरुवनंतपुरम के LPSC (Liquid Propulsion Systems Centre) केंद्र में आरंभ किया। वर्ष 2014 में भारत को इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त हुई और इसके पश्चात् वर्ष 2017 तथा वर्ष 2018 में दो बार मार्क III प्रमोचन यान का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया। वर्तमान में इसरो का चंद्रयान-2 मिशन इस प्रमोचन यान द्वारा भेजा जाने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण मिशन है।

GSLV

GSLV मार्क- III

  • GSLV मार्क III इसरो द्वारा विकसित किया गया उच्च प्रणोदन क्षमता वाला यान है। इसके द्वारा भारत के 4 टन श्रेणी के भू-तुल्यकालिक उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया जा सकेगा। इस प्रकार भारत उपग्रह प्रक्षेपण के मामले में पूर्णतः आत्मनिर्भर हो जाएगा।
  • GLSV मार्क III की ऊँचाई 43.43 मी. और लिफ्ट ऑफ़ मास 640 टन है। इसमें तीन चरण हैं, जिनमें स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन ‘CE-20’ का प्रयोग किया जाएगा।
  • हाल ही में नवंबर 2018 में GSAT-29 संचार उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिये GSLV मार्क-III D2 प्रक्षेपण यान का उपयोग किया गया था।
  • इसरो के पास वर्तमान में केवल 2.2 टन वज़न तक के पेलोड को लॉन्च करने की क्षमता है और इससे ज़्यादा वज़न के प्रक्षेपण हेतु उसे विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • GSLV मार्क-3 भारत का सबसे शक्तिशाली प्रमोचन यान होगा जो चार टन वज़नी संचार उपग्रहों को 36,000 किलोमीटर ऊँचाई वाली भू-स्थिर (Geosynchronous) कक्षा में स्थापित कर सकेगा। ज्ञातव्य है कि वर्तमान में GSLV मार्क-II की क्षमता लगभग 2 टन है।
  • GSLV मार्क III की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें भारतीय क्रायोजेनिक इंजन के तीसरे चरण का उपयोग किया गया है तथा वर्तमान GSLV की तुलना में इसमें उच्च पेलोड ले जाने की क्षमता है।

चंद्रयान-2 अभियान

भारत के महत्त्वाकांक्षी अभियान चंद्रयान-2 मिशन के लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कराने की योजना है।इसकी सफल लैंडिंग के साथ ही भारत चंद्रमा की सतह पर पहुँचने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले सोवियत रूस, अमेरिका तथा चीन सफलतापूर्वक अपने अभियानों को अंजाम दे चुके हैं। इस मिशन के तहत चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाया जाएगा। ध्यातव्य है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी मिलने की संभावना के दावे किये जाते रहे हैं।

चंद्रयान-2 अभियान को श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया जाना है। यह (चंद्रमा के लिये भारत का दूसरा मिशन) पूरी तरह से स्वदेशी मिशन है। इस मिशन में तीन घटक हैं- ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान)। GSLV मार्क-III चंद्रयान-2 आर्बिटर और लैंडर को धरती की कक्षा में स्थापित करेगा, जिसके बाद उसे चंद्रमा की कक्षा में पहुँचाया जाएगा। चंद्रयान-2 के चंद्रमा की कक्षा में पहुँचने के बाद लैंडर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा और रोवर को तैनात करेगा। रोवर पर लगाए गए उपकरण चंद्रमा की सतह का अवलोकन करेंगे और डेटा भेजेंगे, जो चंद्रमा की मिट्टी के विश्लेषण के लिये उपयोगी होगा।

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव

  • यह दुनिया का पहला यान है जो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जा रहा है। इससे पहले चीन के चांग'ई-4 यान ने दक्षिणी ध्रुव से कुछ दूरी पर लैंडिंग की थी।
  • अब तक यह क्षेत्र वैज्ञानिकों के लिये अनभिज्ञ है।
  • चंद्रमा के अन्य हिस्सों की तुलना में यहाँ पर अधिक छाया होने के कारण इस क्षेत्र में बर्फ के रूप में पानी होने की संभावना अधिक है।
  • यदि चंद्रयान-2 यहाँ पर बर्फ की खोज कर लेगा तो भविष्य में यहाँ मानव के रुकने लायक व्यवस्था करने की संभावनाएँ बढ़ जाएंगी। साथ ही यहाँ बेस कैम्प बनाए जा सकेंगे और अंतरिक्ष में नई खोज का रास्ता खुलेगा।

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निष्कर्ष

मिशन चंद्रयान-2 भारत की अंतरिक्ष दौड़ में बेहद महत्त्वपूर्ण माना जा रहा रहा है। ध्यातव्य है कि इससे पहले इस तरह का मिशन सिर्फ 3 देशों द्वारा ही सफलतापूर्वक पूर्ण किया जा सका है। इस मिशन के लिये GSLV के मार्क III वर्जन का उपयोग किया जाना था, किंतु इसमें खामी आने से मिशन स्थगित कर दिया गया है। ज्ञात हो कि भारत की निकट भविष्य में मानव को अंतरिक्ष में भेजने की योजना है, साथ ही भारत भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र का अधिक वाणिज्यिक उपयोग करना चाहता है। भारत के उपर्युक्त कार्यक्रम एवं संभावनाएँ काफी हद तक GSLV के मार्क III पर निर्भर हैं।

अतीत में चंद्रमा पर भेजे गए अभियानों के असफल होने की दर लगभग 50 प्रतिशत रही है। कुछ समय पूर्व ही इज़राइल का चंद्रमा पर यान उतारने का मिशन असफल हो चुका है। किसी भी देश के लिये ऐसे अभियानों का सफल होना उनके भविष्य के कार्यक्रमों पर प्रश्नचिह्न लगा देता है। ऐसे में भारत द्वारा समय रहते मिशन को स्थगित कर देना एक सराहनीय कदम माना जाना चाहिये, क्योंकि मिशन का स्थगित होना मिशन की असफलता का द्योतक नहीं है। कभी-कभी दो कदम आगे बढ़ने के लिये एक कदम पीछे हटना पड़ता है। इसरो का यह निर्णय आने वाले समय में भारत की अंतरिक्ष में संभावनाओं के लिये महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।

प्रश्न: मिशन चंद्रयान-2 का स्थगन चर्चा में है। इस मिशन के आलोक में इसमें उपयोग होने वाले प्रमोचन यान GSLV मार्क III पर प्रकाश डालिये।

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