डेली न्यूज़ (15 Dec, 2020)



मिरिस्टिका स्वैम्प ट्रीफ्रॉग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केरल के त्रिशूर ज़िले में पहली बार मिरिस्टिका स्वैम्प ट्रीफ्रॉग (Myristica Swamp Treefrog) को देखा गया।

Frog

मुख्य बिंदु

  • वैज्ञानिक नाम: मर्कुराना मिरिस्टिकापालुस्ट्रिस (Mercurana  Myristicapalustris)
  • विषय में:
    • यह पश्चिमी घाट का स्थानिक है।
    • यह दुर्लभ वानस्पतिक (Arborea) प्रजाति (पेड़ों के बीच या अंदर रहने वाली) है।
    • ये प्रजनन के मौसम के दौरान केवल कुछ हफ्तों के लिये सक्रिय रहते हैं।
  • अद्वितीय प्रजनन व्यवहार:
    • अन्य मेंढकों के विपरीत इनका प्रजनन मौसम मानसून से पहले मई में शुरू होता है और मानसून के पूरी तरह से सक्रिय होने से पूर्व ही जून में समाप्त हो जाता है।
    • प्रजनन मौसम की समाप्ति से पहले मादा और नर मेंढक एक साथ वन भूमि पर उतरते हैं।
    • मादा मिट्टी खोदती है और उथले कीचड़ में अंडे देती है। प्रजनन या अंडे देने के बाद वे पेड़ की ऊँची कैनोपियों (Canopies) में वापस आ जाते हैं और अगले प्रजनन के मौसम तक वहीँ रहते हैं।

मिरिस्टिका स्वैम्प के बारे में

  • मिरिस्टिका स्वैम्प (Myristica swamp) उष्णकटिबंधीय जंगलों में मीठे पानी का दलदली क्षेत्र होता है जिसमें मिरिस्टिका पेड़ों की बहुलता होती है।
    • मिरिस्टिका के पेड़ पृथ्वी पर पाए जाने वाले फूलों के पौधों में सबसे आदिम (Primitive) हैं।
    • इन सदाबहार और जल-सहिष्णु पेड़ों की जड़ें गहरी होती हैं जो इनको स्थूल, काली तथा गीली जलोढ़ मिट्टी में खड़े रहने में मदद करती हैं।
    • ये पेड़ अपने बंद कैनोपी (Canopy) की वजह से काफी घने जंगल का निर्माण करते हैं।
  • यह दलदल आमतौर पर घाटियों में पाए जाते हैं, जिसके कारण मानसूनी बारिश के दौरान वहाँ बाढ़ का खतरा रहता है।

महत्त्व:

  • अनुसंधान और अध्ययन: इन दलदलों को प्राचीन जीवन के जीवित संग्रहालयों के रूप में माना जाता है जो पौधों के विकास पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने में मदद कर सकते हैं।
  • चरम घटनाओं की जाँच: इन दलदलों की उच्च जल-विभाजक क्षमता (Watershed Value) होती है। मानवीय हस्तक्षेप के कारण इनकी जल धारण क्षमता कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बारिश के मौसम में बाढ़ और कटाव की स्थिति उत्पन्न होती है तथा शेष वर्ष सूखा रहता है।
  • निवास स्थान: यह उभयचर, सरीसृप और स्तनधारियों सहित अकशेरुकीय और कशेरुक प्रजातियों की समृद्ध विविधता के लिये निवास स्थान प्रदान करते हैं।
    • अनुमान है कि संपूर्ण केरल की आर्द्रभूमियों में 23% तितलियाँ, 50% से अधिक उभयचर और 20% से अधिक सरीसृप तथा पक्षी रहते हैं।
  • कार्बन पृथक्करण: इनमें गैर-दलदली वनों की तुलना में कार्बन को स्टोर (Carbon Sequestration) करने की अधिक क्षमता होती है। ये कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं और कृषि, वानिकी तथा अन्य भूमि उपयोगों द्वारा उत्सर्जित कार्बन को स्टोर कर सकते हैं।

वर्तमान स्थिति:

  • अध्ययनों से पता चला है कि पश्चिमी घाट के दलदली क्षेत्र में पतली टहनियों वाली झाड़ियों और घासों का अतिक्रमण है, अब देश में इस दलदल का क्षेत्र 200 हेक्टेयर से भी कम बचा हुआ है।
  • पश्चिमी घाट के मिरिस्टिका स्वैम्प खंडित स्वरूप (Fragment) में हैं, इसके निवास स्थल का एक बड़ा हिस्सा केरल में है।
  • पिछले 18,000 से 50,000 वर्षों (Late Pleistocene Period) में जलवायु परिवर्तन के कारण  भारतीय उपमहाद्वीप (कर्नाटक एवं गोवा में कुछ भाग को छोड़कर) से यह असाधारण आर्द्रभूमि लगभग गायब हो गई है।

स्रोत: द हिंदू


सैन इसिड्रो आंदोलन: क्यूबा

चर्चा में क्यों?

सैन इसिड्रो आंदोलन (San Isidro Movement- MSI) की शुरुआत दो वर्ष पूर्व हुई थी और अब यह राष्ट्र के भीतर और बाहर दोनों जगह क्यूबा के असंतुष्टों के लिये एक मंच बन गया है।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • सैन इसिड्रो आंदोलन (MSI), डिक्री 349 के माध्यम से कलात्मक कार्यों को लेकर राज्य सेंसरशिप का विरोध करने के लिये दो वर्ष पहले (वर्ष 2018) शुरू किया गया था।
    • डिक्री 349 एक ऐसा कानून है, जो क्यूबा की सरकार को ऐसी सांस्कृतिक गतिविधि को प्रतिबंधित करने के लिये शक्तियाँ देता है, जिसे उसने मंज़ूरी नहीं दी थी।
  • इस डिक्री के खिलाफ विरोध के लिये कलाकार, कवि, पत्रकार और कार्यकर्ता सैन इसिड्रो में एकत्र हुए, यह एक श्वेत-बहुमत वाला इलाका है जो हवाना के सबसे गरीब और सांस्कृतिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है।

वर्तमान स्थिति का कारण:

  • MSI के एक एफ्रो-क्यूबन सदस्य रैपर डेनिस सोलिस को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिये जाने के कारण क्यूबा में व्यापक विरोध प्रदर्शन और हड़ताल की स्थिति बन गई।

वैश्विक परिदृश्य:

  • विभिन्न राष्ट्रों की सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों जैसे- एमनेस्टी इंटरनेशनल ने क्यूबा में मानवाधिकारों को लेकर चिंता जाहिर की है।
  • कई देशों में क्यूबा के प्रवासियों ने आंदोलन के समर्थन में रैलियाँ निकालीं।

क्यूबा सरकार का रुख:

  • क्यूबा सरकार का आरोप है कि यह आंदोलन संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वित्तपोषित है और इसका उपयोग राज्य की कानून व्यवस्था को भंग करने के लिये किया जा रहा है।

Cuba

भारत-क्यूबा संबंध

  • क्यूबा के साथ भारत घनिष्ठ, मधुर और ऐतिहासिक संबंध साझा करता है और दोनों देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्य हैं।
  • वर्ष 1959 में क्यूबा-अर्जेंटीना के गुरिल्ला कमांडर अर्नेस्टो चे ग्वेरा ने भारत का राजनयिक दौरा किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू ने उनका स्वागत किया था।
  • वर्ष 2019 में भारत ने क्यूबा के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा में पेश किये गए प्रस्तावों का समर्थन किया
  •  वर्ष 2019 में भारत के राष्ट्रपति की क्यूबा यात्रा के दौरान भारत और क्यूबा जैव प्रौद्योगिकी, होम्योपैथी तथा चिकित्सा की पारंपरिक प्रणाली के क्षेत्रों में सहयोग करने पर सहमत हुए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रवासी श्रमिकों का डेटाबेस

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने देश भर के सभी प्रवासी श्रमिकों का एक डेटाबेस बनाने का निर्णय लिया है, जिसमें अनौपचारिक क्षेत्र के प्रवासी श्रमिक भी शामिल होंगे।

  • अपने मूल निवास स्थान से दूर आंतरिक (देश के भीतर) अथवा अंतर्राष्ट्रीय (विभिन्न देशों में) सीमाओं के पार लोगों की आवाजाही को प्रवासन कहते हैं। अब तक भारत में प्रवासन से संबंधित आँकड़ों के लिये वर्ष 2011 की जनगणना का प्रयोग किया जाता है।
  • जनगणना के आँकड़ों की मानें तो भारत में वर्ष 2011 में कुल 45.6 करोड़ (कुल जनसंख्या का 38 प्रतिशत) प्रवासी थे, जबकि वर्ष 2001 की जनगणना में यह संख्या 31.5 करोड़ (कुल जनसंख्या का 31 प्रतिशत) थी। 

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 में प्रवासी श्रमिकों को नियुक्त करने वाले सभी प्रतिष्ठानों का पंजीकृत होना अनिवार्य किया गया है, साथ ही प्रवासी श्रमिकों को काम देने वाले ठेकेदारों के लिये भी लाइसेंस लेना आवश्यक है।
  • यदि इस कानून का सही ढंग से कार्यान्वयन किया जाता तो इसके माध्यम से अलग-अलग राज्यों में कार्यरत प्रवासी श्रमिकों से संबंधित डेटा आसानी से उपलब्ध हो सकता था और इससे राज्य सरकारों को प्रवासी श्रमिकों के लिये कल्याण योजनाएँ बनाने में काफी सहायता मिलती।
    • हालाँकि इस कानून का सही ढंग से कार्यान्वयन न होने के कारण केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के पास प्रवासी श्रमिकों से संबंधित कोई भी विस्तृत रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। 
  • कोरोना वायरस महामारी के मद्देनज़र प्रवासी श्रमिकों और अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों का एक विस्तृत डेटाबेस बनाना काफी महत्त्वपूर्ण हो गया है।

गृह राज्य वापस लौटे श्रमिकों की आजीविका के लिये सरकार के हालिया प्रयास:

  • कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने कुशल श्रमिकों को आजीविका के अवसर खोजने में सहायता प्रदान करने के लिये असीम (ASEEM) पोर्टल लॉन्च किया है।
    • असीम (ASEEM) पोर्टल का पूर्ण रूप 'आत्मनिर्भर कुशल कर्मचारी-नियोक्ता मानचित्रण (Aatamanirbhar Skilled Employee-Employer Mapping) है।
    • भारत के विभिन्न राज्यों से अपने घरों को वापस लौटे श्रमिकों तथा वंदे भारत मिशन के तहत स्वदेश लौटे भारतीय नागरिकों, जिन्होंने ‘कौशल कार्ड’ में पंजीकरण कराया है, के डेटाबेस को भी इस पोर्टल के साथ एकीकृत किया गया है।  
  • राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने एक ऑनलाइन डैशबोर्ड ‘राष्‍ट्रीय प्रवासी सूचना प्रणाली’ (NMIS) को विकसित किया है। 
    • यह ऑनलाइन पोर्टल प्रवासी कामगारों के बारे में केंद्रीय कोष बनाएगा और उनके मूल स्‍थानों तक उनकी यात्रा को सुचारु बनाने के लिये अंतर-राज्‍यीय संचार/समन्वय में मदद करेगा।
  • महाराष्ट्र सरकार ने महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक अनिश्चितता को देखते हुए रोज़गार की तलाश कर रहे लोगों और नियोक्ताओं के लिये ‘महाजॉब्स’ नाम से एक पोर्टल लॉन्च किया है।
  • आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोज़गार अभियान
    • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई यह योजना स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने और औद्योगिक इकाइयों के साथ साझेदारी कर 1.25 करोड़ ऐसे प्रवासी कामगारों को रोज़गार के अवसर प्रदान करने पर ज़ोर देती है, जिन्होंने कोरोना वायरस महामारी के कारण रोज़गार खो दिया है। 
      • राज्य सरकार ने पहले ही श्रमिकों के कौशल के मानचित्रण का कार्य पूरा कर लिया है, ताकि उनकी विशेषज्ञता के अनुसार उन्हें रोज़गार उपलब्ध कराया जा सके।
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ‘प्रवासन आयोग’ के गठन को मंज़ूरी दी है, जिसे मुख्यतः प्रवासी श्रमिकों के कौशल का मानचित्रण और श्रमिकों का कल्याण सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा गया है।

प्रवासन के कारण

  • प्रवासन एक वैश्विक घटना है, जो न केवल आर्थिक कारकों से, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे कई अन्य कारकों से भी प्रभावित होती है। प्रवासन के सभी कारकों को प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारकों के व्यापक वर्गीकरण के तहत शामिल किया जा सकता है।
    • प्रतिकर्ष कारक (Push Factor): प्रतिकर्ष कारक वे होते हैं, जो एक व्यक्ति को अपने सामान्य निवास स्थान को छोड़ने और किसी अन्य स्थान पर प्रवास करने के लिये मजबूर करते हैं, जैसे- बेरोज़गारी, राजनीतिक उपद्रव और महामारी आदि।
    • अपकर्ष कारक (Pull Factor): अपकर्ष कारक उन कारकों को इंगित करते हैं, जो प्रवासियों को किसी एक क्षेत्र विशिष्ट (गंतव्य) में आने के लिये आकर्षित करते हैं, जैसे- काम के बेहतर अवसर और रहन-सहन की अच्छी दशाएँ आदि।

Push-pull-factors

प्रवासन का पैटर्न

  • आंतरिक प्रवासन को मूल एवं  गंतव्य के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। 
    • ग्रामीण-ग्रामीण, ग्रामीण-शहरी, शहरी-ग्रामीण और शहरी-शहरी
  • प्रवासन को वर्गीकृत करने का दूसरा तरीका है:
    • अंतर्राज्यीय और आतंरिक-राज्य
  • वर्ष 2011 तक उत्तर प्रदेश और बिहार अंतर्राज्यीय प्रवासियों के सबसे बड़ा स्रोत थे, जबकि महाराष्ट्र और दिल्ली प्रवासियों के सबसे बड़े अभिग्राही (Receiver) राज्य थे। इस अवधि तक उत्तर प्रदेश के लगभग 83 लाख एवं बिहार के 63 लाख निवासी या तो अस्थायी अथवा स्थायी रूप से अन्य राज्यों में चले गए थे।

डेटाबेस की योजना

  • प्रवासी श्रमिकों का नवीन डेटाबेस तैयार करने के लिये मौजूदा सरकारी योजनाओं- जैसे मनारेगा और एक देश-एक राशन कार्ड आदि के डेटाबेस के उपयोग की योजना बनाई गई है।
  • इस डेटाबेस में मौजूदा सरकारी योजनाओं के तहत न आने वाले असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का विवरण अलग से शामिल किया जाएगा।

मुद्दे

  • आतंरिक-राज्य प्रवासन से संबंधित डेटा का अभाव
    • इस डेटाबेस को लेकर हो रही संपूर्ण वार्ता अंतर्राज्यीय प्रवासन पर ही केंद्रित है, जबकि आतंरिक-राज्य प्रवासन पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में प्रवासियों के दोनों समूहों को शामिल करने के लिये डेटाबेस के दायरे का विस्तार करने की आवश्यकता है।
  • नियोजित की परिभाषा में विसंगति
    • देश में प्रवासन का विस्तार नियोजित की परिभाषा पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिये राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण और जनगणना द्वारा उपयोग की जाने वाली परिभाषाओं में काफी अंतर है।
    • ऐसे में हमें रोज़गार और नियोजित के लिये एक व्यापक परिभाषा विकसित करने की आवश्यकता है।
  • प्रौद्योगिकी संबंधी बाधाएँ
    • नए डेटाबेस को राज्य स्तर के मौजूदा डेटाबेस के साथ मिलाना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि सभी स्तरों पर डेटा स्टोरेज के सॉफ्टवेयर्स और स्ट्रक्चर काफी अलग होंगे।
      • आधार-डेटाबेस का प्रयोग करने से सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • श्रमिकों के पंजीकरण पर स्पष्टता का अभाव
    • पंजीकरण की प्रक्रिया में अभी तक किसी भी प्रकार का उल्लेख नहीं किया गया है कि यह प्रक्रिया पूर्णतः स्वैच्छिक होगी अथवा सरकारी संस्थाओं द्वारा पूरी की जाएगी।
  • पोर्टेबिलिटी की समस्या 
    • सरकारों को राज्यों में इस डेटाबेस के उपयोग की पोर्टेबिलिटी के मुद्दे की जाँच करनी होगी।

अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979

  • यह अधिनियम अंतर्राज्यीय प्रवासियों के रोज़गार और उनकी सेवा शर्तों को विनियमित करने का प्रयास करता है।
  • यह अधिनियम उन सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है, जिन्होंने दूसरे राज्यों के पाँच या उससे अधिक प्रवासी कामगारों को रोज़गार प्रदान किया है अथवा उन्होंने बीते 12 महीनों में किसी भी दिन पाँच या अधिक प्रवासी कामगार नियुक्त किये हों।
    • यह अधिनियम उन ठेकेदारों पर भी लागू होता है, जिन्होंने 5 अथवा उससे अधिक अंतर्राज्यीय कामगारों को नियोजित किया है।
  • यह अधिनियम ऐसे सभी प्रतिष्ठानों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाता है। कोई भी नियोक्ता संबंधित प्राधिकरण से पंजीकरण प्रमाणपत्र के बिना अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों को नियुक्त नहीं कर सकता है।
    • अधिनियम में यह भी कहा गया है कि वे सभी ठेकेदार जो किसी एक राज्य के श्रमिकों को किसी दूसरे राज्य में नियुक्त करते हैं, उन्हें इस कार्य के लिये लाइसेंस प्राप्त करना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 (National Family Health Survey- NFHS-5) 2019-20 के पहले चरण के आँकड़े जारी किये गए हैं।

  • सभी NFHS का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (International Institute for Population Sciences- IIPS) मुंबई के समन्वय से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के नेतृत्व में किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान इसके लिये नोडल एजेंसी है।
    • IIPS की स्थापना सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट, भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र (UN) के संयुक्त प्रयोजन के तहत वर्ष 1956 में की गई थी तथा यह एशिया और प्रशांत क्षेत्र में विकासशील देशों हेतु जनसंख्या अध्ययन में प्रशिक्षण और अनुसंधान के लिये प्रमुख संस्थान है।
  • COVID-19 महामारी के कारण सर्वेक्षण के चरण 2 में (शेष राज्यों को शामिल करते हुए) देरी देखी गई तथा इसके परिणाम मई 2021 में उपलब्ध कराए जाने की उम्मीद है।

प्रमुख बिंदु:

  • सर्वेक्षण के संबंध में:
  • NFHS-5 ने 2014-19 के दौरान डेटा को इकठ्ठा किया और इसकी धारणा/अंतर्निहित वस्तु NFHS-4 (2015-16) के समान है ताकि समय के साथ तुलना की जा सके और इससे एक बदलाव भी हो।
  • यह 30 सतत विकास लक्ष्यों (SDG) जिन्हें देश को वर्ष 2030 तक हासिल करना है, को तय करने के लिये एक निर्देशक का काम करता है।
  • NFHS-5 में कुछ नए विषय जैसे- पूर्व स्कूली शिक्षा, दिव्यांगता, शौचालय की सुविधा, मृत्यु पंजीकरण, मासिक धर्म के दौरान स्नान करने की पद्धति और गर्भपात के तरीके एवं कारण आदि शामिल हैं।
  • वर्ष 2019 में पहली बार NFHS-5 ने उन महिलाओं और पुरुषों के प्रतिशत का विवरण एकत्र करने' का प्रयास किया, जिन्होंने कभी इंटरनेट का उपयोग किया है।

डेटा विश्लेषण:

  • देश भर के कई राज्यों में बाल कुपोषण का उच्च स्तर दर्ज किया गया, जबकि उन्होंने कार्यप्रणाली में बदलाव के चलते स्वच्छता, ईंधन व पीने योग्य जल तक बेहतर पहुँच प्रदान की।
    • नवीनतम डेटा राज्यों में महामारी से पहले की स्वास्थ्य स्थिति को दर्शाता है।
  • कई राज्यों में बच्चों (5 वर्ष से कम आयु) के चार प्रमुख मैट्रिक्स कुपोषण मापदंडों में अल्प सुधार या निरंतर परिवर्तन देखा गया है।
    • इन चार प्रमुख मेट्रिक्स- चाइल्ड स्टंटिंग, चाइल्ड वेस्टिंग, कम वज़न वाले बच्चों की हिस्सेदारी और बाल मृत्यु दर के आधार पर कई राज्यों में या तो सुधार या निरंतर बदलाव देखा गया है।
    • इन मेट्रिक्स के डेटा का उपयोग कई वैश्विक सूचकांकों जैसे कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स आदि में भी किया जाता है।

चाइल्ड स्टंटिंग:

  • सबसे आश्चर्यजनक परिवर्तन चाइल्ड स्टंटिंग में हुआ है, जो गंभीर कुपोषण की स्थिति को दर्शाता है और इस श्रेणी के अंतर्गत 5 वर्ष से कम उम्र के वे बच्चे आते हैं जिनकी लंबाई आयु के अनुपात में कम होती है।
  • स्टंटिंग किसी भी अन्य कारक की तुलना में एक बच्चे के संज्ञानात्मक और शारीरिक विकास पर लंबे समय तक प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
  • तेलंगाना, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में चाइल्ड स्टंटिंग का स्तर उच्च देखा गया है।

चाइल्ड वेस्टिंग:

  • इस श्रेणी के अंतर्गत 5 वर्ष से कम उम्र के वे बच्चे आते हैं जिनका वज़न उनकी लंबाई के अनुपात में कम होता है।
  • भारत में हमेशा चाइल्ड वेस्टिंग का उच्च स्तर रहा है।
    • चाइल्ड वेस्टिंग में कमी किये जाने के बजाय, इसमें तेलंगाना, केरल, बिहार, असम और जम्मू-कश्मीर में वृद्धि देखी गई है तथा महाराष्ट्र तथा पश्चिम बंगाल में स्थिरता की स्थिति है।

कम वज़न वाले बच्चों की हिस्सेदारी:

  • कम वज़न वाले बच्चों के अनुपात में गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, असम और केरल जैसे बड़े राज्यों में वृद्धि हुई है।

बाल मृत्यु दर:

  • नवजात शिशु मृत्यु दर (प्रति 1000 जीवित जन्मे शिशुओं मे से एक वर्ष या इससे कम उम्र में मरने वाले शिशुओं की संख्या) तथा 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर लगभग स्थिर बनी हुई है।
  • NFHS-3 (2005-05) और NFHS-4 के बीच मृत्यु दर में कम वृद्धि हुई थी। NFHS-5 और NFHS-4 के बीच पाँच वर्षों का अंतर है फिर भी कई राज्यों में बहुत कम वृद्धि देखी गई है।
  • महाराष्ट्र में बाल मृत्यु दर मूल रूप से NFHS-4 के समान है और बिहार में यह पाँच वर्षों में सिर्फ 3% कम हो पाई है।
  • बाल मृत्यु के 60% से अधिक मामलों का कारण बाल कुपोषण माना जाता है, जो कि एक प्रमुख समस्या है और इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

इंटरनेट के उपयोग में शहरी-ग्रामीण लैंगिक अंतराल:

  • कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में इंटरनेट के उपयोग के संबंध में शहरी-ग्रामीण अंतराल के साथ-साथ लैंगिक विभाजन भी मौजूद है।
    • औसतन ग्रामीण भारत में 10 में से 3 और शहरी भारत में 10 में से 4 से भी कम महिलाएँ ऐसी हैं जिन्होंने इंटरनेट का उपयोग शायद ही किया हो।
  • सामान्य आँकड़े: औसतन 62.66% पुरुषों की तुलना में 42.6% महिलाओं ने शायद ही कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया हो।
  • शहरी भारत में: औसतन 73.76% पुरुषों की तुलना में 56.81% महिलाओं ने शायद ही कभी इंटरनेट का उपयोग किया है।
  • ग्रामीण भारत में: ग्रामीण भारत में 55.6% पुरुषों की तुलना में 33.94% महिलाओं ने शायद ही कभी इंटरनेट का उपयोग किया। 
    • ग्रामीण भारत में ऐसी महिलाओं का प्रतिशत कम है जिन्होंने कभी इंटरनेट का उपयोग किया हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


बाल विवाह और महामारी

चर्चा में क्यों?

चाइल्डलाइन इंडिया द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक महामारी और उसके कारण लागू किया गया देशव्यापी लॉकडाउन मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह के नए कारक साबित हुए हैं।

प्रमुख बिंदु

चाइल्डलाइन इंडिया रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • रिपोर्ट की मानें तो मध्य प्रदेश में नवंबर 2019 से मार्च 2020 के बीच बाल विवाह के 46 मामले दर्ज किये गए थे, जबकि अप्रैल 2020 से जून 2020 तक देशव्यापी लॉकडाउन के केवल तीन महीनों में यह आँकड़ा 117 तक पहुँच गया।
  • मार्च 2020 से जून 2020 के बीच लॉकडाउन के पहले चार महीनों में समग्र भारत में बाल विवाह के कुल 5,214 मामले दर्ज हुए थे।

कारण

  • आयु घटक
    • शिक्षा का अधिकार अधिनियम केवल 14 वर्ष की आयु तक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाता है। शोध से ज्ञात होता है कि यदि किसी बच्चे को 15 वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ना पड़ता है तो कम उम्र में उसकी शादी होने की संभावना काफी प्रबल हो जाती है।
      • कम आयु की लड़कियों के लिये लड़कों की तुलना में बाल विवाह का खतरा अधिक होता है।
  • असुरक्षा
    • भारत की कानून व्यवस्था अभी भी लड़कियों और महिलाओं के लिये एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं, जिसके कारण कई माता-पिता कम उम्र में ही अपनी लड़की की शादी करवा देते हैं।
  • शिक्षा का अभाव
    • लड़कियों को प्रायः सीमित आर्थिक भूमिका में देखा जाता है। महिलाओं का काम घर तक ही सीमित रहता है और उसे भी कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है।
    • इसके अलावा दहेज भी एक बड़ी समस्या है। इस तथ्य के बावजूद कि भारत में दहेज को पाँच दशक पूर्व ही प्रतिबंधित कर दिया गया है, दूल्हे और/या उसके परिवार द्वारा दहेज की मांग करना एक आम प्रथा बनी हुई है।

महामारी के दौरान बाल विवाह में वृद्धि क्यों?

  • महामारी के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक संकट ने गरीब अभिभावकों को अपने बच्चों खासतौर पर लड़कियों का विवाह जल्द-से-जल्द करने के लिये मजबूर कर दिया है।
  • स्कूल बंद होने के कारण बच्चों मुख्यतः लड़कियों की सुरक्षा का मुद्दा भी उनके विरुद्ध हिंसा और बाल विवाह का एक प्रमुख कारण है।

प्रभाव

  • बाल विवाह ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस या HIV जैसे यौन संचारित संक्रमणों की उच्च दर से जुड़ा हुआ है।
  • बाल विवाह प्रजनन क्षमता को बढ़ाकर जनसंख्या वृद्धि में योगदान देता है और ऐसी स्थिति में यदि शिक्षा गुणवत्ता परक न हो, रोज़गार के अवसर सीमित हों, स्वास्थ्य एवं आर्थिक सुरक्षा के साधन उपलब्ध न हों तो अत्यधिक आबादी एक अभिशाप का रूप धारण कर सकती है। 
  • कम आयु में विवाह करने वाले बच्चे प्रायः विवाह के दायित्त्वों को समझने में असमर्थ होते हैं जिसके कारण प्रायः परिवार के सदस्यों के बीच समन्वय का अभाव देखा जाता है।

बाल वधू पर प्रभाव

  • अधिकारों का हनन
    • कम आयु में विवाह करने से लड़कियाँ अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित हो जाती हैं। 'बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन' (UNCRC) में उल्लिखित बुनियादी अधिकारों में शिक्षा का अधिकार और दुष्कर्म तथा यौन शोषण जैसे मानसिक अथवा शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार आदि शामिल हैं।
  • सामाजीकरण का आभाव
    • घरेलू ज़िम्मेदारियों के कारण प्रायः बाल वधुओं को अपनी शिक्षा छोड़नी पड़ती है। ऐसा माना जाता है कि यदि घर की महिला शिक्षित होती है तो वह अपने पूरे परिवार को शिक्षित करती है, किंतु यदि वह अशिक्षित है तो उसके बच्चों को भी शिक्षा प्राप्ति के अवसर कम ही  मिलते हैं।
  • महिला सशक्तीकरण में बाधा
    • चूँकि बाल वधू अपनी शिक्षा पूरी करने में सक्षम नहीं होती हैं, वह प्रायः परिवार के अन्य सदस्यों पर आश्रित रहती है, जो लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक बड़ी बाधा है।
  • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे
    • बाल विवाह का बाल वधुओं के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वे न तो शारीरिक रूप से और न ही मानसिक रूप किसी की पत्नी अथवा किसी की माता बनने के लिये तैयार होती हैं।
    • शोध के मुताबिक, 15 वर्ष से कम आयु की लड़कियों में मातृ मृत्यु का जोखिम सबसे अधिक रहता है।
    • इसके अलावा बाल वधुओं पर हृदयाघात, मधुमेह, कैंसर, और स्ट्रोक आदि का खतरा 23 प्रतिशत अधिक होता है। साथ ही वे मानसिक विकारों के प्रति भी काफी संवेदनशील होती हैं।

बाल विवाह रोकने हेतु सरकार के प्रयास

  • वर्ष 1929 का बाल विवाह निरोधक अधिनियम भारत में बाल विवाह की कुप्रथा को प्रतिबंधित करता है।
  • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के तहत महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 वर्ष और 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
    • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 को  बाल विवाह निरोधक अधिनियम (1929) की कमियों को दूर करने के लिये लागू किया गया था।
  • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मातृत्व की आयु, मातृ मृत्यु दर और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मुद्दों की जाँच करने के लिये एक समिति का गठन किया है। यह समिति गर्भावस्था, प्रसव और उसके पश्चात् माँ और बच्चे के चिकित्सीय स्वास्थ्य एवं पोषण के स्तर के साथ विवाह की आयु और मातृत्व के सहसंबंध की जाँच करेगी। यह समिति जया जेटली की अध्यक्षता में गठित की गई है।
  • बाल विवाह जैसी कुप्रथा का उन्मूलन सतत् विकास लक्ष्य-5 (SDG-5) का हिस्सा है।  यह लैंगिक समानता प्राप्त करने तथा सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्‍त बनाने से संबंधित है।

चाइल्डलाइन फाउंडेशन

  • यह भारत में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है जो बच्चों के लिये चाइल्डलाइन नामक एक टेलीफोन हेल्पलाइन संचालित करता है।
  • यह भारत में बच्चों की मदद के लिये नि:शुल्क आपातकालीन फोन सेवा है, जो चौबीसों घंटे उपलब्ध है।
  • चाइल्डलाइन फाउंडेशन 18 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के अधिकारों के संरक्षण की दिशा में कार्य करता है। यह गैर-सरकारी संगठन मुख्य तौर पर गरीब वर्ग के बच्चों और लड़कियों के हित में कार्य करता है।
    • यह बच्चों की सुरक्षा में शामिल एजेंसियों का सबसे बड़ा नेटवर्क भी है।

स्रोत: द हिंदू


इज़राइल-भूटान संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इज़राइल ने भूटान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये हैं।

  • दोनों देशों के बीच संबंधों में यह प्रगति संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्त्व में ज़राइल और मोरक्को द्वारा आपसी संबंध सामान्य करने की सहमति के दो दिन बाद सामने आई है।

Israel Bhutan

प्रमुख बिंदु

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • इज़राइल ने वर्ष 1982 से भूटान के मानव संसाधन विकास का समर्थन किया है विशेष रूप से कृषि विकास के क्षेत्र में जिसके चलते भूटान के सैकड़ों युवा लाभान्वित हुए हैं।
  • औपचारिक संबंधों की कमी के बावजूद दोनों देशों ने सौहार्दपूर्ण संबंधों को कायम रखा।
  • इज़राइल ने वर्ष 2010 में भूटान में एक अल्पकालिक अनिवासी राजदूत की नियुक्ति की थी।
  • इज़राइल की एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट कोऑपरेशन MASHAV ने वर्ष 2013 से अब तक भूटान के सैकड़ों युवाओं को प्रशिक्षित किया है।

नवीनतम विकास:

  • दोनों देशों ने एक औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किया है और विभिन्न क्षेत्रों में साथ मिलकर काम करने पर सहमति व्यक्त की है।
  • यद्यपि दोनों पक्ष थिम्पू (भूटान की राजधानी) और तेल अवीव (इज़राइल की राजधानी) में अपने दूतावास स्थापित नहीं करेंगे तथापि दिल्ली स्थित अपने मिशनों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ समन्वय स्थापित करेंगे।

महत्त्व:

  • राजनयिक संबंधों की स्थापना से जल प्रबंधन, प्रौद्योगिकी, मानव संसाधन विकास, कृषि विज्ञान तथा आपसी हित के अन्य क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग हेतु नए मार्ग प्रशस्त होंगे।
  • उदाहरण के लिये भूटान पर्यटन के लिये बाहरी लोगों की संख्या को सीमित करता है लेकिन अब इज़राइल के पर्यटकों के लिये इसके मार्ग खुले रहेंगे।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा पर्यटन के माध्यम से दोनों देशों के बीच संबंधों को और अधिक मज़बूती प्रदान की जा सकेगी।

भूटान के विदेश संबंध: 

  • भारत की भूमिका: भूटान के अब तक के विदेशी संबंधों का आधार अधिकांशतः भारत का मार्गदर्शन रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत तथा भूटान के बीच आधिकारिक राजनयिक संबंधों की स्थापना वर्ष 1949 में हुई थी।
    • भारत और भूटान के बीच द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना वर्ष 1949 की भारत-भूटान मैत्री संधि पर आधारित है।
    • संधि के अनुच्छेद 2 ने भूटान की विदेश नीति का मार्गदर्शन करने में भारत को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान की थी। इसलिये वर्ष 2007 में इस संधि में कुछ परिवर्तन किये गए थे। नई संधि के अनुसार, भूटान तब तक हथियारों का आयात कर सकता है जब तक कि इससे भारतीय हितों को क्षति न पहुँचे और सरकार अथवा व्यक्तियों द्वारा इन हथियारों का पुनः निर्यात न किया जाए।
  • वर्ष 1971 में यह संयुक्त राष्ट्र (UN) का सदस्य बना।
    • हालाँकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों में से किसी के साथ भी इसके राजनयिक संबंध नहीं हैं।
  • वर्ष 2007 तक भूटान के औपचारिक संबंध केवल विश्व के 22 देशों के साथ थे लेकिन वर्ष 2008 के चुनावों के बाद भूटान की सरकार ने पाँच वर्षों में 31 देशों के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर कर अपने राजनयिक संबंधों में तेज़ी से वृद्धि की।
  • वर्तमान में लगभग 53 देशों और यूरोपीय संघ के साथ भूटान के राजनयिक संबंध हैं।
    • हाल ही में भूटान ने जर्मनी के साथ भी राजनयिक संबंध स्थापित किये हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


‘राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस, 2020’

चर्चा में क्यों?

ऊर्जा दक्षता और संरक्षण में भारत की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा प्रतिवर्ष 14 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस’ (National Energy Conservation Day) का आयोजन किया जाता है।

  • इस अवसर पर राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार वितरित किये जाते हैं।

प्रमुख बिंदु:

ऊर्जा संरक्षण:

  •  इसके तहत ऐसा कोई भी व्यवहार शामिल होता है जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा खपत में कमी की जाती है।
    • कमरे से बाहर निकलते समय लाइट बंद करना और एल्युमीनियम के डिब्बों को रिसाइकल करना दोनों ही ऊर्जा संरक्षण के उदाहरण हैं।
  • यह ‘ऊर्जा दक्षता’ शब्द से अलग है, जिसका आशय ऐसी प्रद्योगिकियों के प्रयोग से है जिनमें  समान कार्य करने के लिये अपेक्षाकृत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 
    • प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) या कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लाइट (CFL) बल्ब का प्रयोग,  जिनमें प्रकाश की समान मात्रा उत्पन्न करने के लिये तापदीप्त प्रकाश बल्ब की तुलना में कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है,  यह ऊर्जा दक्षता का एक उदाहरण है
  • भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता को कम करने के उद्देश्य से 2001 में ‘ऊर्जा संरक्षण अधिनियम’ को लागू किया गया था। 
    • ‘ऊर्जा संरक्षण अधिनियम’ के कार्यान्वयन को सुनिश्चित  करने  लिये वर्ष  2002 में केंद्रीय स्तर पर एक वैधानिक निकाय के रूप में 'ऊर्जा दक्षता ब्यूरो' (Bureau of Energy Efficiency- BEE) की स्थापना की गई थी।
      • यह केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत कार्य करता है।   
  • वर्ष 2013-2030 के बीच भारत की ऊर्जा मांग दोगुनी होने का अनुमान है (लगभग 1500 मिलियन टन तेल के समतुल्य)।

ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001: यह अधिनियम ऊर्जा संरक्षण हेतु कई कार्यों के लिये नियामकीय अधिदेश प्रदान करता है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • उपकरण और यंत्रों का मानक निर्धारण और उनकी लेबलिंग।
  • वाणिज्यिक भवनों के लिये ऊर्जा संरक्षण भवन कोड।
  •  ऊर्जा गहन उद्योगों के लिये ऊर्जा की खपत के मानदंड।

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार:

  • ये पुरस्कार भारत सरकार के प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों द्वारा उद्योगों, भवनों, परिवहन और संस्थानों के साथ-साथ ऊर्जा कुशल निर्माताओं को उनके द्वारा ऊर्जा संरक्षण में नवाचार और अन्य  उपलब्धियों को पहचान/ मान्यता देने के लिये दिये जाते हैं।
  • यह पुरस्कार पहली बार 14 दिसंबर, 1991 को दिया गया था, जिसे (14 दिसंबर) पूरे देश में "राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस" के रूप में मनाया जाता है।

ऊर्जा संरक्षण और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिये योजनाएँ:

  • केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा BEE के माध्यम से कई नीतियों और योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, जैसे-  ‘प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार योजना’, ‘मानक और लेबलिंग कार्यक्रम’, ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता और मांग पक्ष प्रबंधन।  
  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार योजना (Perform Achieve and Trade or PAT Scheme): 
    • PAT ऊर्जा गहन उद्योगों की ऊर्जा दक्षता सुधार में लागत प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये एक बाज़ार आधारित तंत्र है
      • इसके तहत ऊर्जा बचत के प्रमाणीकरण के माध्यम से ऊर्जा दक्षता सुधार में लागत प्रभावशीलता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है 
      • यह ‘संवर्द्धित ऊर्जा दक्षता पर राष्ट्रीय मिशन’ (NMEEE) का हिस्सा है जो ‘जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना’ (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है। 
  • मानक और लेबलिंग कार्यक्रम (Standards and Labeling Programme):
    • इस योजना की शुरुआत वर्ष 2006 में की गई थी। वर्तमान में इस कार्यक्रम के तहत एयर कंडीशनर (फिक्स्ड / वेरिएबल स्पीड), सीलिंग फैन, कलर टेलीविज़न, कंप्यूटर, डायरेक्ट कूल रेफ्रीजरेटर, डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर, घरेलू गैस स्टोव, जनरल पर्पज़ इंडस्ट्रियल मोटर, एलईडी लैंप, एग्रीकल्चर पंप सेट आदि के मानक निर्धारण और लेबलिंग का कार्य किया जाता है   
    • यह उपभोक्ता को ऊर्जा की बचत के बारे में एक सूचित विकल्प (Informed Choice) प्रदान करता है और इस प्रकार संबंधित उत्पाद की लागत बचत क्षमता भी प्रदान करता है 
  • ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC):
    • इसे नए व्यावसायिक भवनों के लिये वर्ष 2007 में विकसित किया गया था 
    • ECBC 100 किलोवॉट (kW) के संयोजित लोड या 120 kVA (किलोवोल्ट-एम्पीयर) और उससे अधिक की अनुबंधित मांग वाले नए वाणिज्यिक भवनों के लिये न्यूनतम ऊर्जा मानक निर्धारित करता है  
    • BEE ने इमारतों के लिये एक स्वैच्छिक स्टार रेटिंग कार्यक्रम भी विकसित किया है जो एक इमारत के वास्तविक प्रदर्शन [इमारत के अपने क्षेत्रफल में ऊर्जा के उपयोग के संदर्भ में kWh/sq. m/year में व्यक्त)] पर आधारित है 
  • मांग पक्ष प्रबंधन (Demand Side Management- DSM):
    • DSM का आशय इलेक्ट्रिक मीटर के ग्राहक-पक्ष को प्रभावित करने वाले उपायों के  चयन, नियोजन और उनके कार्यान्वयन से है
    • गौरतलब है कि ग्रामीण और कृषि खपत के लिये हरित ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु गोवा में भारत की पहली अभिसरण परियोजना (Convergence Project) को शुरू करने की तैयारी की जा रही है 

वैश्विक प्रयास:

  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA): 
    • यह सुरक्षित और स्थायी भविष्य के लिये ऊर्जा नीतियों को दिशा देने हेतु विश्व भर के देशों के साथ काम करती है।
    • वर्तमान में भारत को IEA में सहयोगी सदस्य के रूप में मान्यता दी गई है।
    • IEA और ‘ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड’ (EESL) ने भारत सरकार की उजाला योजना  पर एक केस स्टडी जारी की है, जो ऊर्जा दक्ष प्रकाश व्यवस्था के कई लाभों को रेखांकित करती है।
  • सस्टेनेबल एनर्जी फॉर आल [Sustainable Energy for All (SEforALL)]: 
    • यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो जलवायु पर पेरिस समझौते के अनुरूप सतत विकास लक्ष्य-7 (वर्ष 2030 तक सभी के सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा की पहुँच) की उपलब्धि की दिशा में तेज़ी से कार्रवाई करने के लिये संयुक्त राष्ट्र और सरकार के नेताओं , निजी क्षेत्र, वित्तीय संस्थानों और नागरिक समाज  के साथ साझेदारी में काम करता है।
  • पेरिस समझौता  (Paris Agreement):
    • यह जलवायु परिवर्तन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसका लक्ष्य पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से कम, अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है।
    • पेरिस समझौते के तहत भारत ने वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा तीव्रता (प्रति यूनिट जीडीपी के लिये खर्च ऊर्जा इकाई) को वर्ष 2005 की तुलना में 33-35% कम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
  • मिशन इनोवेशन (Mission Innovation-MI): 
    • यह स्वच्छ ऊर्जा नवाचार में तेज़ी लाने के लिये 24 देशों और यूरोपीय आयोग (यूरोपीय संघ की ओर से) की एक वैश्विक पहल है।
    • भारत इसके सदस्य देशों में से एक है।

आगे की राह: 

  • नागरिकों के आरामदायक वातानुकूलित स्थानों में काम करने और जीवन के अन्य कार्यों में आसानी के लिये अधिक-से-अधिक उपकरणों के प्रयोग के कारण ऊर्जा की खपत में कई गुना वृद्धि होना स्वाभाविक है। ऐसे में भविष्य की ऊर्जा मांग पर अंकुश लगाने हेतु ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों के माध्यम से ऊर्जा उपयोग के व्यवहार को बदलना बहुत आवश्यक है।
  • भारत में निर्माण क्षेत्र के सभी खंडों में ‘लगभग शून्य ऊर्जा भवन’ (NZEB) कार्यक्रम के विस्तार पर ज़ोर देना बहुत आवश्यक है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रति यूनिट क्षेत्र में कम ऊर्जा उपयोग के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु पारंपरिक इमारतों के लिये एक रूपरेखा विकसित करना है।
  • इसके अलावा विद्युत अधिनियम में संशोधन के माध्यम से भारतीय विद्युत क्षेत्र में नीतिगत स्तर पर कई बड़े बदलावों की तैयारी की जा रही है। राजस्व हानि, हैवी ट्रांसमिशन, वितरण हानि और बिजली की खपत की निगरानी आदि जैसे मुद्दों के समाधान के लिये स्मार्ट मीटर की स्थापना एक  प्रभावी पहल हो सकती है। तीव्र गति से स्मार्ट मीटरों की स्थापना भारत को बड़े पैमाने पर ऊर्जा दक्षता हस्तक्षेप को लागू करने में सहायता कर सकती है।
  • एक ऊर्जा कुशल जीवन-शैली अपनाने से भारत को ऊर्जा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिये एक सकारात्मक प्रेरणा मिलेगी। ऊर्जा दक्षता हस्तक्षेप कम कार्बन संक्रमण हेतु सबसे अधिक लागत प्रभावी साधनों में से एक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस