अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-भूटान साझेदारी
- 31 Aug 2019
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस आलेख में भारत-भूटान संबंधों की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय थिंपू यात्रा ने भारत और भूटान के बीच एक दीर्घकालिक परंपरा की पूर्ति की, जहाँ दोनों देशों के प्रमुख अपने कार्यकाल के आरंभ में ही प्राथमिकता से एक-दूसरे के देशों की यात्रा करते रहे हैं। इस यात्रा में भारतीय प्रधानमंत्री ने 720 मेगावाट के मांगड़ेचू (Mangdechhu) जलविद्युत संयंत्र का भी उद्घाटन किया। दोनों देशों का संबंध वास्तव में पारंपरिक निकटता पर आधारित है जिसे आज के विश्व में अद्वितीय ही माना जा सकता है। दोनों देशों के बीच खुली सीमाएँ, विदेश नीति के संबंध में निकटता और सभी रणनीतिक मुद्दों पर नियमित रूप से खुला संवाद इस रिश्ते की बानगी हैं जिसने पिछले कई दशकों से अपनी निरंतरता बनाए रखी है। रणनीतिक मुद्दों पर भारत को भूटान का मुखर समर्थन अंतर्राष्ट्रीय मंचों और संयुक्त राष्ट्र में भारत के लिये बड़ा संबल रहा है। इसी प्रकार भूटान का नेतृत्व भारत पर खतरों का विरोध करने में कभी पीछे नहीं रहा है। वर्ष 2003 में उल्फा (ULFA) विद्रोहियों को भूटान से बाहर धकेलने में पूर्व राजा के प्रयासों या हाल ही में डोकलाम पठार पर चीनी सैनिकों के विरुद्ध भारत के रुख के समर्थन से इसकी पुष्टि होती है।
भारत-भूटान: प्राकृतिक मित्र
भौगोलिक एवं सांस्कृतिक कारकों के आधार पर भारत एवं भूटान के संबंध प्राचीन काल से ही अटूट रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत-भूटान के बीच संबंधों में अधिक प्रगाढता आई। वर्ष 1949 में दोनों देशों के मध्य मित्रता और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किये गये। इस संधि ने भारत-भूटान के मध्य द्विपक्षीय संबंधों की नींव रखी। इस संधि से भूटान के विदेश संबंधों और उसकी रक्षा का दायित्त्व भारत पर आ गया। इस संधि को वर्ष 2007 में संशोधित किया गया जिसमें भारत द्वारा भूटान को स्वतंत्र विदेश नीति के निर्धारण के लिये प्रेरित किया गया। वर्ष 1968 में भूटान के साथ भारत के राजनयिक संबंधों की शुरुआत हुई। पिछले वर्ष ही इन राजनयिक संबंधों के 50 वर्ष पूर्ण हुए हैं।
जल विद्युत के क्षेत्र में सहयोग
भारत-भूटान के मध्य संबंधों का सबसे मज़बूत आधार जलविद्युत क्षेत्र में सहयोग रहा है। भारत के आर्थिक सहयोग से भूटान की शुरुआती तीन जलविद्युत परियोजनाएँ- कुरीछू (60 मेगावाट), चूखा (336 मेगावाट), ताला (170 मेगावाट) वर्तमान में कार्यशील हैं और इनसे उत्पादित जलविद्युत को भारत द्वारा खरीदा जाता है। वर्ष 2009 में दोनों देशों ने एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये जिसमें यह सहमति बनी कि भारत वर्ष 2020 तक भूटान को 10 हज़ार मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता के निर्माण में सहयोग कर उसकीअधिशेष बिजली को आयात करेगा। इसके बाद भारत ने भूटान के पुनातसंगछू (1,200 मेगावाट), वांगछु (570 मेगावाट) खोलांगचू और हाल में मांगड़ेचू (720 मेगावाट) पनबिजली परियोजनाओं में सहायता की है। हाल में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा मांगड़ेचू परियोजना का उद्घाटन किया गया है। इस परियोजना से भूटान की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने में सहायता मिलेगी तथा अधिशेष ऊर्जा को भारत द्वारा आयात कर लिया जाएगा।
सहयोग के अन्य क्षेत्र
- भूटान ने अपने सांस्कृतिक मूल्यों के कारण आर्थिक विकास के स्थान पर सतत् विकास पर बल दिया है। किंतु इससे कुछ क्षेत्रों में भूटान तकनीकी रूप से पिछड़ गया है। भूटान को ऐसे क्षेत्रों में भारत से सहयोग की अपेक्षा है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि भूटान की अवस्थिति आपदा प्रवण क्षेत्र की है। ऐसे में भारत द्वारा उपग्रह तकनीक के माध्यम से भूटान की सहायता विभिन्न बचाव अभियानों, दूर संचार को बढ़ावा देने आदि में किया जा सकता है। आपदा के अतिरिक्त शिक्षा, प्रशिक्षण, टेलीमेडिसिन जैसे विषयों में भी उपग्रह तकनीक के माध्यम से भूटान को सहयोग प्रदान किया जा सकता है। भारत और भूटान के बीच यह निर्णय हुआ है कि इसरो भूटान में एक ग्राउंड स्टेशन का निर्माण करेगा। भारत ने इससे पहले भी भूटान को व्यक्तिगत स्तर पर सार्कसैटेलाइट का लाभ देने का प्रस्ताव किया था।
- पिछले कई दशकों से भूटान के युवा भारत में शिक्षा के लिये आते रहे हैं। वर्तमान में भी भारत में भूटान के लगभग 4000 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। हाल ही में संपन्न प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा में शिक्षा के क्षेत्र में अधिक सहयोग बढ़ाने का प्रयास किया गया। इस संदर्भ में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भूटान के एक विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को संबोधित किया गया, साथ ही भारत के IIT मुंबई और दिल्ली को भूटान के शिक्षण संस्थानों के साथ सहयोग करने की भी पेशकश की गई।
- भारतीय प्रधानमंत्री ने भारतीय रूपे कार्ड को भूटान में लॉन्च किया है। भारत का प्रयास भूटान में ऑनलाइन भुगतान प्रणाली को मज़बूत करना है। इसके अतिरिक्त भारत डिजिटल तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी भूटान के साथ सहयोग बढ़ाने के लिये प्रयासरत है। प्रायः भारत में भूटानी छात्र बुद्धिज़्म की ही शिक्षा लेते रहे हैं ऐसे छात्रों को तकनीक तथा विज्ञान के क्षेत्र में भी शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रेरित करने की आवश्यकता है।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1949 की संधि के पश्चात् भूटान की सुरक्षा का दायित्त्व भारत पर है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत के विभिन्न प्रतिरक्षा संस्थानों में भूटान के सैन्य बलों के अधिकारियों का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रतिरक्षा क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों जैसे- शिक्षा, कौशल विकास, स्वास्थ्य, पर्यटन आदि में भी भूटानी नागरिकों को भारत में प्रशिक्षण दिया जा सकता है।
- दोनों देशों के बीच लगभग 9,000 करोड़ रुपये का द्विपक्षीय व्यापार है। भूटान अपने कुल आयात के 80 प्रतिशत से अधिक का आयात भारत से करता है और भूटान के कुल निर्यात का 85 प्रतिशत से अधिक का निर्यात भारत को किया जाता है। भूटान की तीन-चौथाई बिजली भारत को निर्यात की जाती है।
- देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की मज़बूती के लिये एक आवश्यक पक्ष दोनों देशों के लोगों के मध्य आपसी मेलजोल का होना है। इसके लिये भूटान-भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को आवागमन के लिये खुला रखा गया है। वर्तमान में भारत के लगभग 60 हज़ार लोग भूटान के जलविद्युत तथा विनिर्माण उद्योग में कार्यरत हैं। इसके अलावा 8 हज़ार से 10 हज़ार लोग प्रतिदिन काम के सिलसिले में भूटान आवागमन करते है।
डोकलाम विवाद
भूटान और चीन के बीच डोकलाम एक विवादित क्षेत्र है, भारत का कहना है कि यह क्षेत्र भूटान का है। चीनी सैनिक इस क्षेत्र में अक्सर घुस आते हैं जिससे भारत के रणनीतिक हित प्रभावित होते हैं। डोकलाम में स्थित ट्राईजंक्शन वह बिंदु है, जहाँ भारत (सिक्किम), भूटान और चीन (तिब्बत) की सीमाएँ मिलती हैं। यह ट्राईजंक्शन ही इस विवाद की जड़ है। भारत का दावा है कि यह बटांग ला क्षेत्र में है, जबकि चीन का दावा है कि यह दक्षिण में 6.5 किमी. दूर जिमोचेन में है। दोनों के दावे ब्रिटेन और चीन के बीच 1890 में हुई कलकत्ता संधि की प्रतिस्पर्द्धात्मक व्याख्याओं पर आधारित हैं। वर्ष 2012 में भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों के बीच हुए समझौते के अनुसार, दोनों पक्ष तब तक यथास्थिति बनाए रखेंगे, जब तक उनके प्रतिस्पर्द्धी दावे को तीसरे पक्ष (भूटान) से परामर्श कर सुलझा नहीं लिया जाता।
संबंधों को लेकर चुनौतियाँ एवं भूटान की आशंका
- भूटान की नियोजित अर्थव्यवस्था के लिये भारत की सहायता, भारत द्वारा भूटान के लिये प्रमुख राजस्व अर्जक जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण और उत्पादित बिजली की खरीद आदि ने दोनों देशों के संबंध के लिये एक सहजीवी और पारस्परिक रूप से लाभकारी आधार प्रदान किया है। भारत द्वारा अपनी बिजली खरीद नीति में अचानक परिवर्तन करने, बिजली दरों के प्रति कठोर रवैया अपनाने, भूटान को राष्ट्रीय बिजली ग्रिड में शामिल होने का अवसर न देने तथा बांग्लादेश जैसे तीसरे देशों के साथ भूटान के व्यापार पर आपत्ति जैसे मुद्दों ने दोनों देशों के संबंध में तनाव उत्पन्न किया है।
- वर्तमान में दोनों देशों के मध्य व्यापार संतुलन में भारत के पक्ष में है तथा भूटान पर अत्यधिक भारतीय ऋण है। इसके अतिरिक्त भारत भूटान को आर्थिक सहायता देता रहा है। भूटान इस ऋण को कम करना चाहता है, साथ ही व्यापार को संतुलित करना चाहता है। इसके लिये जलविद्युत क्षेत्र में सहयोग को अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है तथा आर्थिक सहयोग को अधिक विविधता लाने भी आवश्यकता है।
- भूटान, भारत की सुरक्षा के लिये अत्यधिक संवेदनशील है क्योंकि यह पूर्वोत्तर राज्यों को भारत के मुख्य भाग से जोड़ने वाले क्षेत्र सिलीगुड़ी गलियारे के निकट है।
- भारत से बहुत अधिक व्यापार परिवहन और पर्यटन को भूटान अपने पर्यावरण के लिये खतरे के रूप में देखता है। बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल समूह के बीच एक मोटर वाहन समझौते (MVA) की भारत की योजना को भूटान ने अवरुद्ध कर रखा है, जबकि भारतीय पर्यटकों पर प्रवेश शुल्क लगाने के भूटानी प्रस्ताव से भी भारत के साथ मतभेद की स्थिति उभर सकती है। अतीत में भूटानी छात्र शिक्षा के लिये केवल भारत पर ही निर्भर थे लेकिन हाल के वर्षों में युवा भूटानियों ने ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और थाईलैंड के शिक्षा स्थलों में अधिक रुचि दिखाई है।
- भारत को चीन के रवैये के प्रति सचेत रहना होगा जो भूटान को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है। चीन और अमेरिका के उच्च-स्तरीय भूटान दौरों से इसकी पुष्टि होती है। विविध विकल्पों के इस विश्व में यह भारत और भूटान के सर्वोत्तम हित में होगा कि वे एक-दूसरे की चिंताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता से संबोधित करें।
- वर्तमान में भूटान में संसदीय लोकतंत्र स्थापित हो गया है तथा बहुदलीय चुनाव प्रणाली भी आरंभ हो गई है। इसलिये भूटान के राजनीतिक दल चीन के साथ भी संबंधों को मज़बूत बनाने की पहल कर सकते हैं।
निष्कर्ष
भूटान के साथ भारत के रिश्ते भौगोलिक-सांस्कृतिक कारकों के चलते सदाबहार रहे हैं। विदेश नीति से लेकर प्रतिरक्षा तक विभिन्न मामलों में भारत सदैव भूटान के साथ खड़ा रहा। भारत के कुछ ही ऐसे मित्र देश हैं जो भारत के हितों को अपने हित के साथ जोड़कर देखते हैं, भूटान भी एक ऐसा ही देश है। दीर्घकाल की राजशाही के पश्चात् भूटान में लोकतंत्र स्थापित हुआ है तथा 21वीं सदी में बदलते विश्व के साथ भूटान के लोगों की आकांक्षाओं में वृद्धि हुई है। कुछ ऐसे मुद्दे रहे हैं जहाँ भारत का रुख भूटान को लेकर उचित नहीं माना गया है, तो वही दूसरी ओर चीन भी पूरी क्षमता से भूटान के साथ राजनयिक संबंधों को शुरू करने का प्रयास कर रहा है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि भूटान की अवस्थिति चीन के साथ भारत को एक बफर क्षेत्र के रूप में लाभ पहुँचाती है। भूटान भी अपनी जनांकिकी और पर्यावरण की सततता को लेकर सजग है। उपरोक्त चुनौतियों को देखते हुए भारत को भूटान के साथ संबंधों में गहराई बनाए रखने के लिये सजग रहना चाहिये। हालाँकि भारत के प्रधानमंत्री की हाल ही में संपन्न भूटान यात्रा इन्हीं संबंधों को आगे बढ़ाने के प्रयास के रूप में देखी जा सकती है।
प्रश्न: भारत-भूटान संबंधों के परिप्रेक्ष्य में भारतीय प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा के क्या निहितार्थ हैं? चर्चा कीजिये।