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डेली न्यूज़

  • 15 Nov, 2022
  • 41 min read
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शासन व्यवस्था

डेटा स्थानीयकरण

प्रिलिम्स के लिये:

डेटा प्रोटेक्शन, पर्सनल डेटा, प्राइवेसी, पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, डेटा स्थानीयकरण, अन्य संबंधित कानून

मेन्स के लिये:

डेटा स्थानीयकरण: लाभ, संबंधित चिंताएँ, भारत में प्रावधान, उठाए जाने योग्य कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) ने सीमा-पार हस्तांतरण के दौरान डेटा की सुरक्षा के लिये अर्थव्यवस्थाओं हेतु डेटा स्थानीयकरण के महत्त्व पर प्रकाश डाला।

  • UNCTAD ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि वैश्विक व्यापार के लिये इंटरनेट का उपयोग करने वाले व्यवसायों की उत्तरजीविता दर उन लोगों की तुलना में अधिक है जो ऐसा नहीं करते हैं।

डेटा स्थानीयकरण:

  • डेटा स्थानीयकरण का अभिप्राय देश की क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर महत्त्वपूर्ण और गैर-महत्त्वपूर्ण डेटा (Critical data/non-critical data) का संग्रहण है।
  • स्थानीयकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है हमारे स्वयं के डेटा पर हमारा नियंत्रण है जो देश को गोपनीयता, सूचना लीक होने, पहचान की चोरी, सुरक्षा आदि समस्याओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी बनाता है।
    • इसने विभिन्न देशों को अपने स्वयं के स्टार्टअप विकसित करने, स्थानीय रूप से विकसित होने और अपनी भाषा में विकसित होने में भी मदद की है।

डेटा स्थानीयकरण के लाभ:

  • गोपनीयता और संप्रभुता की रक्षा:
    • नागरिकों के डेटा को सुरक्षित करता है और विदेशी निगरानी से डेटा गोपनीयता तथा डेटा संप्रभुता प्रदान करता है।
    • डेटा स्थानीयकरण के पीछे मुख्य उद्देश्य देश के नागरिकों और निवासियों की व्यक्तिगत तथा वित्तीय जानकारी को विदेशी निगरानी से बचाना है
  • कानूनों और जवाबदेही की निगरानी:
    • डेटा तक निरंकुश पर्यवेक्षीय पहुँच भारतीय कानून प्रवर्तन को बेहतर निगरानी सुनिश्चित करने में मदद करेगी।
    • डेटा स्थानीयकरण के परिणामस्वरूप डेटा के अंतिम उपयोग के बारे में Google, Facebook आदि जैसी फर्मों की अधिक जवाबदेही होगी।
  • जांँच में आसानी:
    • भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों को जांँच में आसानी प्रदान करके राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करता है क्योंकि उन्हें वर्तमान में डेटा तक पहुँच प्राप्त करने के लिये पारस्परिक कानूनी सहायता संधियों (MLAT) पर भरोसा करने की आवश्यकता है।
      • MLAT सरकारों के बीच समझौते हैं जो उन देशों में से कम-से-कम एक में होने वाली जांँच से संबंधित सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करते हैं।
      • भारत ने 45 देशों के साथ पारस्परिक कानूनी सहायता संधि (MLAT) पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • अधिकार क्षेत्र  तथा संघर्षों में कमी:
    • यह स्थानीय सरकारों और नियामकों को आवश्यकता पड़ने पर डेटा मांगने का अधिकार क्षेत्र प्रदान करेगा।
    • यह सीमा पार डेटा साझाकरण और डेटा उल्लंघन के मामले में न्याय वितरण में देरी के कारण अधिकार क्षेत्र के संघर्ष को कम करता है।
  • रोज़गार में वृद्धि:
    • स्थानीयकरण के कारण डेटा सेंटर उद्योगों को लाभ होने की उम्मीद है जिससे भारत में रोज़गार का सृजन होगा।

डेटा स्थानीयकरण से हानि:

  • निवेश:
    • कई स्थानीय डेटा केंद्रों को बनाए रखने से बुनियादी ढाँचे में निवेश अधिक हो सकता है और वैश्विक कंपनियों के लिये लागत उच्च हो सकती है।
  • खंडित (Fractured) इंटरनेट:
    • स्प्लिंटरनेट, इसके तहत संरक्षणवादी नीति का डोमिनो प्रभाव अन्य देशों को भी इसका अनुसरण करने के लिये प्रेरित कर सकता है।
  • सुरक्षा की कमी:
    • भले ही डेटा देश में संग्रहीत हो, फिर भी एन्क्रिप्शन की (Key) राष्ट्रीय एजेंसियों की पहुँच से बाहर हो सकती है।
  • आर्थिक विकास पर प्रभाव:
    • ज़बरन डेटा स्थानीयकरण व्यवसायों और उपभोक्ताओं दोनों के लिये अक्षमता उत्पन्न कर सकता है।
    • इससे लागत में भी वृद्धि हो सकती है और डेटा-निर्भरता वाली सेवाओं की उपलब्धता में भी कमी आ सकती है।

डेटा स्थानीयकरण मानदंड:

  • भारत में:
    • श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट:
      • व्यक्तिगत डेटा की कम से कम एक प्रति को भारत में स्थित सर्वर पर संग्रहीत करने की आवश्यकता होगी।
      • देश के बाहर स्थानांतरण को सुरक्षा उपायों के अधीन करने की आवश्यकता होगी।
      • महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा केवल भारत में संग्रहीत और संसाधित किया जाएगा।
    • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019:
      • व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री द्वारा 11 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में पेश किया गया था।
      • आमतौर पर इसे "गोपनीयता विधेयक" के रूप में जाना जाता है, इसका उद्देश्य व्यक्तिगत डेटा (जो कि व्यक्ति की पहचान कर सकता है) के संग्रह, संचालन और प्रक्रिया को विनियमित करके व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना है।
      • वर्ष 2022 में भारत सरकार ने संसद से व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक वापस ले लिया है क्योंकि सरकार एक नए विधेयक के माध्यम से देश में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये ऑनलाइन स्पेस को विनियमित करने हेतु “व्यापक कानूनी ढाँचे” पर विचार कर रही है।
    • मसौदा राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति ढाँचा:
      • इसके तहत डेटा स्थानीयकरण के साथ-साथ स्थानीयकरण नियमों के अनिवार्य होने से पूर्व उद्योग जगत को समायोजित करने के लिये दो साल की सनसेट (Sunset) अवधि का भी सुझाव दिया।
      • डेटा स्थानीयकरण को प्रोत्साहित करने और डेटा केंद्रों को बुनियादी ढाँचे का दर्जा देने के लिये प्रोत्साहन का प्रस्ताव।
    • ओसाका ट्रैक का बहिष्कार:
      • G20 शिखर सम्मेलन वर्ष 2019 में, भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था पर ओसाका ट्रैक का बहिष्कार किया। ओसाका ट्रैक ने उन कानूनों के निर्माण का प्रयास किया जो देशों के बीच डेटा प्रवाह और डेटा स्थानीयकरण को हटाने की अनुमति देंगे।
    • चीनी मोबाइल ऐप्स पर प्रतिबंध:
  • वैश्विक:
    • कनाडा और ऑस्ट्रेलिया अपने स्वास्थ्य डेटा को बहुत सावधानी से संरक्षित करते हैं।
    • चीन ने अपनी सीमाओं के भीतर सभी सर्वर में सख्त डेटा स्थानीयकरण को अनिवार्य किया है।
    • यूरोपीय संघ (EU) ने जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (GDPR) लागू किया था जो निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में से एक के रूप में शामिल है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय स्तर पर कोई एकल डेटा संरक्षण कानून नहीं है। हालाँकि, इसमें स्वास्थ्य देखभाल के लिये , भुगतान के लिये HIPAA (स्वास्थ्य बीमा पोर्टेबिलिटी और जवाबदेही अधिनियम 1996) जैसे व्यक्तिगत कानून हैं, ।
    • कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौते भी मौजूद हैं। इनमें समान डेटा संरक्षण मानदंडों और सीमा-पार डेटा हस्तांतरण और डेटा स्थानीयकरण के प्रति प्रतिबद्धताओं के लिये प्रतिबद्ध देश शामिल हैं, उदाहरण के लिये, डेटा के वैध विदेशी उपयोग (क्लाउड) अधिनियम (2018), ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप के लिये व्यापक और प्रगतिशील समझौता (2018), डिजिटल अर्थव्यवस्था समझौता (DEA), (2020), आदि हैं।

आगे की राह

  • डेटा स्थानीयकरण के लिये नीति निर्माण के लिये एक एकीकृत दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है।
  • भारत की सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाओं (ITeS) और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) उद्योगों के हितों पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है, जो सीमा-पार डेटा प्रवाह पर फल-फूल रहे हैं।
  • उल्लंघन या खतरे के मामले में भारतीय कानून एजेंसियों द्वारा डेटा तक पहुँच, निजी विचार और पसंद पर तथा न ही किसी अन्य देश की लंबी कानूनी प्रक्रियाओं पर जो भारत में उत्पन्न डेटा को होस्ट करता है, निर्भर नहीं हो सकती है।
    • सूत्रों के अनुसार, कानून प्रवर्तन की कमी भारत और ब्रिटेन के बीच हालिया मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में समस्या पैदा कर रही है।
  • बैंकों, दूरसंचार कंपनियों, वित्तीय सेवा प्रदाताओं, प्रौद्योगिकी प्लेटफार्मों, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों, ई-कॉमर्स कंपनियों और सरकार सहित सभी भागीदारों को यह सुनिश्चित करने में ज़िम्मेदार भूमिका निभाने की आवश्यकता है कि निर्दोष नागरिकों को नुकसान उठाने के आघात से न गुजरना पड़े।

स्रोत: द  हिंदू


भारतीय राजनीति

नौवीं अनुसूची

प्रिलिम्स के लिये:

आरक्षण, सर्वोच्च न्यायालय, संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951।

मेन्स के लिये:

संविधान की नौवीं अनुसूची।

चर्चा में क्यों:

हाल ही में झारखंड विधानसभा ने पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण तथा स्थानीय व्यक्ति विधेयक नामक दो विधेयकों को मंज़ूरी दे दी है।

  • हालाँकि इन विधेयकों का क्रियान्वन केंद्र सरकार इन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिये संशोधन के बाद किया जा सकेगा।

 विधेयक

  • झारखंड पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022:
    • इसके माध्यम से आरक्षण का दायरा 77% तक बढ़ जाएगा।
    • इसके तहत आरक्षित श्रेणी के भीतर अनुसूचित जातियों को 10-12%; ओबीसी को पूर्व के 14 % के बजाय 27%, अनुसूचित जनजातियों को पूर्व के 26% के बढ़ाकर 28% और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) को 10% का कोटा प्रदान किया जाएगा।
  • झारखंड स्थानीय व्यक्ति विधेयक, 2022:
    • इसका उद्देश्य स्थानीय निवासियों को उनकी भूमि पर नदियों, झीलों, मत्स्य पालन के स्थानीय विकास में उनकी हिस्सेदारी में; स्थानीय पारंपरिक और सांस्कृतिक तथा वाणिज्यिक उद्यमों में; कृषि ऋणग्रस्तता पर अधिकार या कृषि ऋण का लाभ उठाने; भूमि रिकॉर्ड के रखरखाव एवं संरक्षण में; या उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिये; निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में रोज़गार में; या राज्य में व्यापार और वाणिज्य के लिये "कुछ अधिकार, लाभ व अधिमान्य उपचार " प्रदान करना है।
  • नौवीं अनुसूची में शामिल करने की आवश्यकता:
    • 77% आरक्षण वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय निर्धारित 50% की सीमा को पार करता है।
    • हालाँकि, नौवीं अनुसूची में एक कानून रखने से यह न्यायिक समीक्षा ससुरक्षित हो जाता है।
    • इससे पहले, तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (शैक्षणिक संस्थानों में सीटों तथा राज्य के तहत सेवाओं में नियुक्तियों या पदों का आरक्षण) अधिनियम, 1993 ने राज्य सरकार में कॉलेजों एवं रोजगारों में 69% सीटें आरक्षित की थीं।
  •  नौवीं अनुसूची:
    • इस अनुसूची में केंद्रीय और राज्य कानूनों को शामिल किया गया है जिसे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है और इसको संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1951 द्वारा जोड़ा गया था।
    • पहले संशोधन में अनुसूची में 13 कानून जोड़े गए। वर्तमान में इसमें 284 विषयों को शामिल किया है।
  • इसका गठन अनुच्छेद 31B द्वारा किया गया था, जिसे अनुच्छेद 31A के साथ सरकार द्वारा कृषि सुधार से संबंधित कानूनों की रक्षा करने और जमींदारी प्रथा को समाप्त करने के लिये लाया गया था।
    • जबकि अनुच्छेद 31A कानूनों के 'वर्गों (Classes)' को सुरक्षा प्रदान करता है, अनुच्छेद 31B विशिष्ट कानूनों या अधिनियमों का संरक्षण करता है।
    • जबकि अनुसूची के तहत संरक्षित अधिकांश कानून कृषि/भूमि के मुद्दों से संबंधित हैं, इसके अलावा सूची में अन्य विषय शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 31B में एक पूर्वव्यापी संचालन भी है, जिसका अर्थ है कि यदि कानूनों को असंवैधानिक घोषित किये जाने के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो उन्हें उनके प्रारंभ के बाद से अनुसूची में शामिल माना जाता है और इस प्रकार वे कानून मान्य है।
  • हालाँकि अनुच्छेद 31B न्यायिक समीक्षा से बाहर है, सर्वोच्च न्यायालय ने अतीत में कहा है कि नौवीं अनुसूची के तहत भी कानून जाँच के लिये खुले होंगे यदि वे मौलिक अधिकारों या संविधान की मूल संरचनका उल्लंघन करते हैं।

नौवीं अनुसूची के कानून और न्यायिक जाँच:

  • केशवानंद भारती वनाम केरल राज्य (1973): न्यायालय ने गोलकनाथ फैसले को बरकरार रखा और "भारतीय संविधान की मूल संरचना" की एक नई अवधारणा पेश की और कहा कि, "संविधान के सभी प्रावधानों में संशोधन किया जा सकता है लेकिन वे संशोधन जो संविधान के सार या मूल ढाँचे को निरस्त या समाप्त कर सकेंगे, जैसे जिसमें मौलिक अधिकार शामिल हैं उनको न्यायालय द्वारा रद्द किया जा सकता है"।
  • वामन राव वनाम भारत संघ (1981): इस महत्त्वपूर्ण निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि "वे संशोधन जो 24 अप्रैल, 1973 से पहले संविधान में किये गए थे (जिस तारीख को केशवानंद भारती में निर्णय दिया गया था) वैध और संवैधानिक हैं लेकिन जो निर्दिष्ट तिथि के बाद किये गए थे उन्हें संवैधानिकता के आधार पर चुनौती दी जा सकती है।
  • आई. आर. कोएल्हो वनाम तमिलनाडु राज्य (2007): यह माना गया था कि प्रत्येक कानून को अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत परीक्षण किया जाना चाहिये यदि यह 24 अप्रैल, 1973 के बाद लागू हुआ है।
    • इसके अलावा न्यायालय ने अपने पिछले फैसलों को बरकरार रखा और घोषित किया कि किसी भी अधिनियम को चुनौती दी जा सकती है और न्यायपालिका द्वारा जाँच के लिये खुला है यदि यह संविधान की मूल संरचना के अनुरूप नहीं है।
    • साथ ही यह भी कहा गया कि यदि नौवीं अनुसूची के तहत किसी कानून की संवैधानिक वैधता को पहले बरकरार रखा गया है, तो भविष्य में इसे फिर से चुनौती नहीं दी जा सकती है।

आगे की राह:

  • यद्यपि आरक्षण आवश्यक है लेकिन कार्यपालिका या विधायिका द्वारा किसी भी आकस्मिक अथवा तर्कहीन नीतिगत पहल को बढ़ावा देने से रोकने के लिये न्यायिक समीक्षा का भी प्रावधान होना चाहिये।
  • इस विषय पर विभिन्न हितधारकों को शामिल करके आरक्षण नीति में किसी भी खामी या कमियों को दूर किया जाना चाहिये। अभी आवश्यकता है कि आरक्षण नीति को खत्म करने या सीमित करने संबंधी किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के बजाय इस विवादास्पद नीति पर एक तर्कसंगत रूपरेखा विकसित की जानी चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. भारत की संसद किसी कानून विशेष को भारत के संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल सकती है।
  2. नौवीं अनुसूची में डाले गए किसी कानून की वैधता का परीक्षण किसी न्यायालय द्वारा नहीं किया जा सकता एवं उसके उपर कोई निर्णय भी नहीं किया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


प्रश्न. किस प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भारत के संविधान में नौवीं अनुसूची को पुर:स्थापित किया गया था?

(a) जवारहलाल नेहरू
(b) लाल बहादुर शास्त्री
(c) इंदिरा गाँधी
(d) मोरारजी देसाई

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. कोहिलो मामले में क्या अभिनिर्धारित किया गया था? इस संदर्भ में, क्या आप कह सकते हैं कि न्यायिक पुनर्विलोकन संविधान के बुनियादी अभिलक्षणों में प्रमुख महत्त्व का है? (2016)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-नॉर्वे संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

नॉर्वे की भौगोलिक स्थिति, भारत-नॉर्वे संबंध

मेन्स के लिये:

भारत-नॉर्वे संबंध का इतिहास, भारत-नॉर्वे संबंधों में सामयिक विकास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत में नॉर्वे के राजदूत ने बताया है कि भारत और नॉर्वे के बीच द्विपक्षीय व्यापार विगत दो वर्षों में दोगुना होकर 2 बिलियन डॉलर हो गया है।

Norway

 भारत-नॉर्वे संबंधों में सहयोग के आगामी क्षेत्र:

  • नॉर्वे दुनिया भर में पाँच वर्षों में अपने जलवायु निवेश कोष से 1 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा, भारत में कितना धन निवेश किया जाएगा, इसका निर्धारण परियोजनाओं के आधार पर किया जाएगा।
  • नॉर्वे पवन ऊर्जा से संबंधित परियोजनाओं के लिये राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के साथ काम कर रहा है।
    • हालाँकि, भारत में समस्या यह है कि इस परियोजना को व्यवहार्य बनाने के लिये सबसे उपयुक्त राज्य तमिलनाडु और गुजरात हैं।
  • नॉर्वे भारत के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि पर्याप्त देश हांगकांग कन्वेंशन की पुष्टि कर सकें। यह एक बाध्यकारी अन्तर्राष्ट्रीय कानूनी साधन होगा।

नॉर्वे-भारत संबंध का इतिहास:

  • इतिहास:
    • वर्ष 1947 में इन देशों में संबंध की स्थापना के बाद से भारत और नॉर्वे के बीच आपसी संबंध सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण रहे हैं।
    • भारत में नॉर्वे का पहला वाणिज्य दूतावास(कांसुलेट) कोलकाता और मुंबई में क्रमशः वर्ष 1845 और वर्ष 1857 में स्थापित हुआ।
    • मत्स्य पालन पर ज़ोर देने के साथ विकास सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 1952 में "इंडिया फंड" की स्थापना की गई थी।
    • उसी वर्ष नॉर्वे ने नई दिल्ली में अपना दूतावास स्थापित किया।
    • नॉर्वे ने मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), वासेनर अरेंजमेंट (WA) और ऑस्ट्रेलिया समूह (AG) के निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं के लिये भारत की सदस्यता का समर्थन किया है।
    • भारत ने वर्ष 1986 में नॉर्वे के साथ दोहरा कराधान अपवंचन समझौता (DTAA) पर हस्ताक्षर किया, जिसे फरवरी 2011 में संशोधित किया गया।

घटनाक्रम:

  • नॉर्वे का महावाणिज्य दूतावास:
    • मुंबई में वर्ष 2015 में दोबारा महावाणिज्य दूतावास खोल दिया गया।
      • यह 1970 से बंद था।
      • यह नॉर्वे सरकार के आधिकारिक व्यापार प्रतिनिधि इनोवेशन नॉर्वे से जुड़ा था, जिसका कार्यालय अब मुंबई और नई दिल्ली दोनों जगह है।
  • भारत रणनीति:
    • दिसंबर 2018 में, नॉर्वे सरकार ने एक नई 'भारत रणनीति' शुरू की। यह रणनीति वर्ष 2030 तक नॉर्वे की स्पष्ट प्राथमिकताएँ निर्धारित करती है और द्विपक्षीय सहयोग को विकसित करने के लिये नये सिरे से प्रोत्साहन देती है।
      • भारत रणनीति पाँच विषयगत प्राथमिकताओं को रेखांकित करती है:
        • लोकतंत्र और विधि आधारित विश्व व्यवस्था
        • महासागर
        • ऊर्जा
        • जलवायु और पर्यावरण
      • अनुसंधान, उच्च शिक्षा और वैश्विक स्वास्थ्य
      • इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये नॉर्वे अधिकारियों, व्यापार सहयोग और अनुसंधान सहयोग के बीच राजनीतिक संपर्क तथा सहयोग पर केंद्रित है।
      • इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये, नॉर्वे राजनीतिक संपर्क और अधिकारियों के बीच सहयोग, व्यावसायिक सहयोग तथा अनुसंधान सहयोग पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • ब्लू इकोनॉमी पर टास्क फोर्स:
    • वर्ष 2020 में, सतत् विकास के लिये ब्लू इकोनॉमी पर भारत-नॉर्वे टास्क फोर्स को दोनों देशों द्वारा संयुक्त रूप से शामिल किया गया था। इस टास्क फोर्स को वर्ष 2019 की शुरुआत में नॉर्वे के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान लॉन्च किया गया था।
    • टास्क फोर्स का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संयुक्त पहल को विकसित करना और उनका पालन करना है
    • यह नॉर्वे और भारत दोनों से उच्चतम स्तर पर प्रासंगिक हितधारकों को जुटाने और मंत्रालयों तथा एजेंसियों के बीच निरंतर प्रतिबद्धता एवं प्रगति सुनिश्चित करने का भी इरादा रखता है।
  • नॉर्वे के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा:
    • 2019 में, नॉर्वे के प्रधान मंत्री ने भारत का दौरा किया और कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए।
    • प्रधानमंत्री ने रायसीना डायलॉग में उद्घाटन भाषण दिया और भारत-नॉर्वे व्यापार शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया।
  • आर्थिक संबंध:
    • वर्ष 2019 तक, 100 से अधिक नॉर्वे की कंपनियों ने भारत में स्वयं को स्थापित किया।
      • अन्य 50 का प्रतिनिधित्व एजेंटों द्वारा किया जाता है।
      • नॉर्वेजियन पेंशन फंड ग्लोबल संभवतः भारत के सबसे बड़े एकल विदेशी निवेशकों में से एक है। वर्ष 2019 में, इसका निवेश 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • नॉर्वे से भारत में निर्यात जिसमें अलौह धातु, गैस प्राकृतिक निर्मित, प्राथमिक रूप में प्लास्टिक, कच्चे खनिज, रासायनिक सामग्री और उत्पाद शामिल हैं।
    • भारत से नॉर्वे को निर्यात की मुख्य वस्तुओं में परिधान और सहायक उपकरण, कपड़ा धागे, धातु, चावल और विविध विनिर्मित वस्तुएँ शामिल हैं।
  • विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग:
    • नॉर्वे के पास दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा वाणिज्यिक जहाज़ बेड़ा है और पर्यावरण के साथ-साथ प्रतिस्पर्धी कारणों से आधुनिक बेड़े को बनाए रखने के लिये जहाज़ का पुनर्चक्रण महत्वपूर्ण था। नॉर्वे "जहाज़ पुनर्चक्रण और जहाज़ निर्माण" गतिविधियों में भारत के साथ घनिष्ठ रूप से सहयोग कर रहा है।
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास और चेन्नई में पवन ऊर्जा संस्थान तथा नॉर्वे के संस्थानों के बीच अकादमिक सहयोग मौजूद है।
    • नॉर्वे की कंपनी पिकल ताजमहल जैसे भारतीय स्मारकों के लिये डिजिटल संग्रह बनाने में शामिल थी। कंपनी ऐतिहासिक स्मारकों गुजरात में धौलावीरा और मध्य प्रदेश में भीमबेटका गुफाओं के डिजिटलीकरण में भी शामिल थी

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय

प्रिलिम्स के लिये:

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS), अनुसूचित जनजाति

मेन्स के लिये:

भारतीय समाज के वंचित वर्गों के छात्रों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये पहल, चुनौतियांँ और समाधान।

चर्चा में क्यों?

सरकार अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों के लिये 740 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) स्थापित करने पर ज़ोर दे रही है।

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS):

  • EMRS पूरे भारत में ST के लिये मॉडल आवासीय स्कूल बनाने की एक योजना है।
    • इसकी शुरुआत वर्ष 1997-98 में हुई थी।
    • इसे जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • इस योजना का उद्देश्य जवाहर नवोदय विद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों के समान स्कूलों का निर्माण करना है, जिसमें खेल तथा कौशल विकास में प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा स्थानीय कला एवं संस्कृति के संरक्षण के लिये विशेष अत्याधुनिक सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • EMR स्कूल CBSE पाठ्यक्रम का पालन करता है।
  • वर्ष 2018-19 मेें, EMRS योजना के पुनरुद्धार को कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया था।
    • चूंँकि नए दिशानिर्देश लागू किये गए हैं, इसलिये जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने 2021-22 तक लक्षित 452 स्कूलों में से 332 को मंज़ूरी दी है।
    • नवंबर 2022 तक, कुल 688 स्कूलों को मंज़ूरी दी गई है, जिनमें से 392 कार्यात्मक हैं।
    • 688 में से 230 ने निर्माण कार्य पूरा कर लिया है और 234 निर्माणाधीन हैं, 32 स्कूल अभी भी भूमि अधिग्रहण के मुद्दों के कारण अटके हुए हैं।

पुराने दिशा-निर्देश:

  • हालाँकि केंद्र सरकार ने एक निश्चित संख्या में प्रारंभिक EMRS को मंज़ूरी दी थी, राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ज़रूरत पड़ने पर नए स्कूलों की मंज़ूरी लेने के लिये ज़िम्मेदार थे।
    • इन स्कूलों के लिये वित्तपोषण अनुच्छेद 275 (1) के तहत अनुदान से आना था और दिशानिर्देशों में यह अनिवार्य था कि जब तक राज्य, केंद्र द्वारा स्वीकृत स्कूलों का निर्माण पूरा नहीं कर लेते, वे नए स्कूलों के लिये वित्त के हकदार नहीं होंगे।
  • प्रत्येक EMRS के लिये 20-एकड़ भूखंडों की बुनियादी आवश्यकताओं के अलावा, दिशा-निर्देशों में कोई मानदंड नहीं था कि EMRS कहाँ स्थापित किया जा सकता है, इसे राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ दिया गया।

नए दिशा-निर्देश:

  • वर्ष 2018-19 में नए दिशानिर्देशों ने केंद्र सरकार को स्कूलों को मंज़ूरी देने और उनका प्रबंधन करने की अधिक शक्ति दी।
  • जनजातीय छात्रों के लिये राष्ट्रीय शिक्षा सोसाइटी (NESTS) की स्थापना की गई और उसे स्टेट एजुकेशन सोसाइटी फॉर ट्राइबल स्टूडेंट्स (SESTS) का प्रबंधन सौंपा गया, जो व्यावहारिक स्तर पर EMRS को प्रबंधित करेगा।
  • इन नए दिशानिर्देशों ने प्रत्येक आदिवासी उप-ज़िले में एक EMRS स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया और उन्हें स्थापित करने के लिये एक "जनसंख्या मानदंड" पेश किया।
    • प्रति उप-ज़िले में एक EMRS स्थापित किया जाएगा जिसमें कम से कम 20,000-अनुसूचित जनजाति (ST) की आबादी है और यह उस क्षेत्र की कुल आबादी का 50% होना चाहिये।
  • EMRS स्थापित करने के लिये न्यूनतम आवश्यक भूमि माप 20 एकड़ से घटाकर 15 एकड़ कर दी गई थी।

चुनौतियाँ:

  • 15 एकड़ क्षेत्र की आवश्यकता:
    • स्थायी समिति की रिपोर्ट के अनुसार, 15 एकड़ क्षेत्र की आवश्यकता भूमि की पहचान करने और अधिग्रहण (विशेषकर पहाड़ी इलाकों, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों और पूर्वोत्तर में) को मुश्किल बना रही है
  • जनसंख्या मानदंड:
    • स्थायी समिति ने पाया किया कि जनसंख्या मानदंड के कारण जनजातीय आबादी के कम घनत्त्व वाले क्षेत्र EMRS का लाभ नहीं ले पा रहे हैं।
    • कभी-कभी, जब जनसंख्या मानदंड पूरे होते हैं तो 15 एकड़ के भूखंड उपलब्ध नहीं हो पाते हैं।
  • शिक्षकों की कमी:
    • NESTS की स्थापना के बावजूद शिक्षकों की कमी थी।
    • हालांँकि नए दिशा-निर्देशों ने NETS को शिक्षक भर्ती के लिए उपाय सुझाने की अनुमति दी, लेकिन उन्होंने राज्यों के लिये उनका पालन करना कभी अनिवार्य नहीं किया।
      • इससे शिक्षकों की गुणवत्ता में असमानता, पर्याप्त भर्ती नहीं होने के साथ खर्च बचाने के लिये बड़ी संख्या में स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती संविदात्मक रूप से हुई है।
    • जुलाई 2022 तक सभी कार्यात्मक EMRS में NESTS द्वारा अनुशंसित 11,340 शिक्षकों के मुकाबले 4,000 से भी कम शिक्षक थे। 

आगे की राह

  • भूमि क्षेत्रफल और जनसंख्या मानदंड के संबंध में दिशा-निर्देशों में ढील दी जानी चाहिये जिससे कम जनजातीय आबादी वाले क्षेत्र भी EMRS योजना का लाभ उठा सके।
  • शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिये NESTS को स्कूल प्रबंधन पर अधिक नियंत्रण दिया जाना चाहिये।
  • साथ ही राज्यों के लिये शिक्षक भर्ती के बारे में अनिवार्य दिशा-निर्देश जारी किये जाने चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

छोटे मत्स्यन जहाज़ों की निगरानी परियोजनाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

सी विजिल अभ्यास, भारत की तटीय प्रबंधन परियोजनाएँ

मेन्स के लिये:

तटीय सुरक्षा, तटीय रेखा को सुरक्षित करने के लिये भारत की परियोजनाएँ, सी विजिल अभ्यास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यह निष्कर्ष देखा गया है कि भारत के तट पर छोटे मत्स्यन जहाज़ों की निगरानी करने के लिये शुरू की गई परियोजनाएँ प्रभावशाली हैं।

छोटे मत्स्यन जहाज़ों की निगरानी परियोजनाएँ:

  • स्वचालित पहचान प्रणाली:
    • मुंबई में वर्ष 2008 के आतंकवादी हमलों के बाद 20 मीटर से ऊपर के सभी जहाज़ों के लिये स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS) अनिवार्य कर दी गई थी।
    • तटीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों को देखने के लिये स्थापित समुद्री और तटीय सुरक्षा को मज़बूत करने हेतु राष्ट्रीय समिति द्वारा निर्णय लिया गया था।
    • हालाँकि, 20 मीटर से कम वाले जहाज़ों के लिये, कई कारणों से इस प्रक्रिया में देरी हुई है।
  • व्हीकल मैनेजमेंट सिस्टम:
    • व्हीकल मैनेजमेंट सिस्टम (VMS) में अत्याधुनिक विशेषताएँ हैं और यह दो-तरफा संचार को सक्षम बनाती है। वाणिज्यिक उत्पादन के लिये इस प्रौद्योगिकी को चार कंपनियों को सौंप दिया गया है।
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सहयोग से पिछले वर्ष गुजरात और तमिलनाडु के तटों पर उनके एक संचार उपग्रह पर परीक्षण किया गया था।
  • ReALCraft:
    • ऑनलाइन ReALCraft (मत्स्य पालन शिल्प का पंजीकरण और लाइसेंसिंग) के निर्माण से भारत में बड़ी संख्या में मछली पकड़ने वाले जहाज़ों के सत्यापन कार्य और निगरानी करने में काफी आसानी हुई है।
  • बायोमेट्रिक पहचान पत्र:
    • समुद्र में मछली पकड़ने वाले जहाज़ चालक दल की पहचान का बायोमेट्रिक सत्यापन करने के लिये अधिकांश मछुआरों को बायोमेट्रिक पहचान पत्र और समुद्री सुरक्षा एजेंसियों को समग्र कार्ड रीडर जारी किये गए हैं।
  • इंडो-पैसिफिक मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (IPMDA):
    • गहन समुद्रों में मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (MDA) के समग्र प्रयासों के हिस्से के रूप में, क्वाड समूह ने टोक्यो शिखर सम्मेलन 2022 में "डार्क शिपिंग" को ट्रैक करने और हिंद-प्रशांत में तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों - प्रशांत द्वीप समूह, दक्षिण पूर्व एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में विभिन्न गतिविधियों की व्यापक और अधिक सटीक समुद्री निगरानी हेतु इंडो-पैसिफिक मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (IPMDA) नामक महत्त्वाकांक्षी पहल की घोषणा की है।

अभ्यास सी विजिल (Sea Vigil):

  • परिचय:
  • वर्ष 2022 का संस्करण :
    • अभ्यास सी विजिल-22 भारत की मज़बूती और कमज़ोरियों का वास्तविक मूल्यांकन प्रदान करने के साथ समुद्री तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को और मज़बूत करने में मदद करेगा।
    • यह अभ्यास पूरे भारत में तटीय सुरक्षा तंत्र की सक्रियता पर प्रकाश डालेगा । इसे भारतीय नौसेना द्वारा तटरक्षक बल और समुद्री गतिविधियों से संलग्न अन्य मंत्रालयों के समन्वय से आयोजित किया जा रहा है।
    • यह अभ्यास पूरे 7,516 किलोमीटर के समुद्र तट और भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र के साथ किया जाएगा और इसमें मछली पकड़ने और तटीय समुदायों सहित अन्य समुद्री हितधारकों के साथ सभी तटीय राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल किया जाएगा
  • महत्त्व:
    • सी विजिल और TROPEX एक साथ समुद्री सुरक्षा चुनौतियों के पूरे स्पेक्ट्रम को कवर करेंगे, जिसमें शांति से संघर्ष तक संक्रमण शामिल है।
    • यह समुद्री सुरक्षा और तटीय रक्षा के क्षेत्र में देश की तैयारियों का आकलन करने के लिये शीर्ष स्तर पर अवसर प्रदान करता है।

स्रोत: द हिंदू


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