भारत ऑस्ट्रेलिया समूह में शामिल
चर्चा में क्यों?
19 जनवरी, 2018 को भारत औपचारिक रूप से ऑस्ट्रेलिया समूह का सदस्य बन गया है। भारत इस समूह का सदस्य बनने वाला 43वाँ सदस्य है।
क्या है ऑस्ट्रेलिया समूह (Australia Group-AG)?
- ऑस्ट्रेलिया ग्रुप उन देशों का सहकारी और स्वैच्छिक समूह है जो सामग्रियों, उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के निर्यात को नियंत्रित करते हैं ताकि, रासायनिक और जैविक हथियारों (Chemical and Biological Weapons-CBW) के विकास या अधिग्रहण में इनका प्रयोग ना किया जा सके।
- इसका यह नाम इसलिये है क्योंकि ऑस्ट्रलिया ने यह समूह बनाने के लिये पहल की थी और वही इस संगठन के सचिवालय का प्रबंधन देखता है।
- ईरान-इराक युद्ध (1984) में जब इराक ने रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया, (1925 जेनेवा प्रोटोकॉल का उल्लंघन) तब रासायनिक व जैविक हथियारों के आयात-निर्यात और प्रयोग पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये 1985 में इस समूह का गठन किया गया।
- ऑस्ट्रेलिया समूह का मुख्य उद्देश्य रासायनिक तथा जैविक हथियारों की रोकथाम हेतु नियम निर्धारित करना है। ऑस्ट्रेलिया समूह इन हथियारों के निर्यात पर नियंत्रण रखने के अलावा 54 विशेष प्रकार के यौगिकों के प्रसार पर नियंत्रण रखता है।
- ऑस्ट्रेलिया समूह के सभी सदस्य रासायनिक हथियार सम्मेलन (Chemical Weapons Convention-CWC) और जैविक हथियार सम्मेलन (Biological Weapons Convention-BWC) का अनुसमर्थन करते हैं।
अन्य निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाएँ
ये अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाएँ सामूहिक विनाश के हथियारों (Weapon of Mass Destruction) के प्रसार और उनके वितरण के साधनों की रोकथाम के लिये कार्य करती हैं।
मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (Missile Technology Control Regime-MTCR)
- अप्रैल 1987 में जी-7 देशों सहित 12 विकसित देशों ने मिलकर आण्विक हथियार से युक्त प्रक्षेपास्त्रों के प्रसार को रोकने के लिये एक समझौता किया था, जिसे MTCR कहा गया।
- 26 जून, 2016 को भारत MTCR का पूर्ण सदस्य बना था।
- वर्तमान में एमटीसीआर 35 देशों का एक समूह है और चीन तथा पाकिस्तान इसके सदस्य नहीं हैं। फ्राँस, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका, इटली और कनाडा इसके संस्थापक सदस्यों में रहे हैं।
- स्वैच्छिक एमटीसीआर का उद्देश्य बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र तथा अन्य मानव रहित आपूर्ति प्रणालियों के विस्तार को सीमित करना है, जिनका रासायनिक, जैविक और परमाणु हमलों में उपयोग किया जा सकता है।
वासेनार अरेंजमेंट (Wassenaar Arrangement-WA)
- इसकी स्थापना जुलाई 1996 में वासेनार (नीदरलैंड्स) में की गई थी। इसका मुख्यालय वियना (ऑस्ट्रिया) में है।
- दिसंबर 2017 में 42वें सदस्य के रूप में भारत इसमें शामिल हुआ था।
- परंपरागत हथियारों और दोहरे उपयोग वाली वस्तु और प्रौद्योगिकी के निर्यात पर नियंत्रण रखना और परमाणु प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के दुरुपयोग जैसे- सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में इस्तेमाल को रोकना इसके प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं।
परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group-NSG)
- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह 48 देशों का समूह है।
- इसका गठन 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के प्रतिक्रियास्वरूप किया गया था।
- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह परमाणु प्रौद्योगिकी और हथियारों के वैश्विक निर्यात पर नियंत्रण रखता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये ही किया जाए।
- परमाणु हथियार बनाने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की आपूर्ति से लेकर नियंत्रण तक सभी इसी के दायरे में आते हैं।
- भारत द्वारा इसकी सदस्यता प्राप्त करने के प्रयासों को चीन द्वारा बाधित किया जा रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं से जुड़ने के लाभ
- परमाणु अप्रसार क्षेत्र में देश का कद बढ़ने के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को हासिल करने में भी मदद मिलेगी।
- भारत दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं और तकनीकों को हासिल कर पाएगा।
- 48 सदस्यों वाले परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह के लिये भारत की दावेदारी मज़बूत होगी।
- परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं करने के बावजूद भारत अप्रसार के क्षेत्र में अपनी पहचान बना पाएगा और अप्रसार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को वैश्विक पहचान मिलेगी।
- चीन AG, MTCR और WA का सदस्य नहीं है। इस प्रकार इनकी सदस्यता प्राप्त कर लेना अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारत की रणनीतिक विजय है।
- अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और गैर-प्रसार के वैश्विक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।