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शासन व्यवस्था
हिरासत में मौत
प्रिलिम्स के लिये:मौलिक अधिकार, भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता मेन्स के लिये:हिरासत में होने वाली मौतों का कारण, पुलिसिंग में सुधार, तकनीक और पूछताछ, हिरासत में होने वाली मौतों को निम्नीकृत करने हेतु उपाय |
चर्चा में क्यों?
गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs- MHA) के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में हिरासत में सबसे अधिक (80) मौतें गुजरात में हुई हैं।
हिरासत में मौत:
- परिचय:
- हिरासत में होने वाली मौतें या ‘कस्टडियल डेथ’ (Custodial Deaths) से तात्पर्य है पुलिस हिरासत में अथवा मुकदमे की सुनवाई के दौरान न्यायिक हिरासत में अथवा कारावास की सज़ा के दौरान व्यक्तियों की मृत्यु। इसके कई कारण हो सकते हैं, जिसमें बल का अत्यधिक प्रयोग, लापरवाही अथवा अधिकारियों द्वारा दुर्व्यवहार शामिल है।
- भारत के विधि आयोग के अनुसार, गिरफ्तार किये गए अथवा हिरासत में लिये गए व्यक्ति के खिलाफ लोक सेवक द्वारा किया गया अपराध हिरासत में हिंसा (Custodial Violence) के समान है।
- भारत में हिरासत में मौत के मामले:
- वर्ष 2017-2018 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत के कुल 146 मामले सामने आए।
- वर्ष 2018-2019 में 136
- वर्ष 2019-2020 में 112
- वर्ष 2020-2021 में 100
- वर्ष 2021-2022 में 175
- पिछले पाँच वर्षों में हिरासत में सबसे अधिक मौतें गुजरात (80) में दर्ज की गई हैं, इसके बाद महाराष्ट्र (76), उत्तर प्रदेश (41), तमिलनाडु (40) और बिहार (38) का स्थान है।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission- NHRC) ने 201 मामलों में मौद्रिक राहत और एक मामले में अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की है।
- वर्ष 2017-2018 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत के कुल 146 मामले सामने आए।
हिरासत में होने वाली मौतों के संभावित कारण:
- मज़बूत कानून का अभाव:
- भारत में अत्याचार विरोधी कानून नहीं है और अभी तक हिरासत में हिंसा का अपराधीकरण नहीं किया गया है, साथ ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर भ्रम की स्थिति है।
- संस्थागत चुनौतियाँ:
- संपूर्ण कारावास प्रणाली स्वाभाविक रूप से अपारदर्शी बनी हुई है।
- भारत बहुप्रतीक्षित कारावास सुधार सुनिश्चित करने में भी विफल रहा है और यह खराब परिस्थितियों, भीड़भाड़, जनशक्ति की भारी कमी तथा कारावास में नुकसान के खिलाफ न्यूनतम सुरक्षा से प्रभावित होती रही हैं।
- अत्यधिक बल का प्रयोग:
- हाशिये पर जी रहे समुदायों को लक्षित करने तथा आंदोलनों में भाग लेने वाले अथवा विचारधाराओं का प्रचार करने वाले लोगों को राज्य अपनी शासन व्यवस्था के विपरीत मानता है, उन्हें नियंत्रित करने के लिये अत्यधिक बल प्रयोग के साथ-साथ अत्याचार करता है।
- लंबी न्यायिक प्रक्रिया:
- न्यायालयों द्वारा अपनाई जाने वाली लंबी, खर्चीली औपचारिक प्रक्रियाएँ गरीबों और कमज़ोर लोगों को हतोत्साहित करती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुपालन का अभाव:
- हालाँकि भारत ने वर्ष 1997 में उत्पीड़न के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र अभिसमय पर हस्ताक्षर किये हैं, परंतु इसका अनुसमर्थन किया जाना अभी भी बाकी है।
- जबकि हस्ताक्षर करना केवल संधि में निर्धारित दायित्त्वों को पूरा करने के लिये देश के प्रयोजन को इंगित करता है, दूसरी ओर, यह अनुसमर्थन, प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये कानूनों और तंत्रों के प्रभाव में लाए जाने पर ज़ोर देता है।
- अन्य कारक:
- चिकित्सा उपेक्षा अथवा चिकित्सीय देख-रेख का अभाव और यहाँ तक कि आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि।
- कानून प्रवर्तन अधिकारियों का खराब प्रशिक्षण अथवा जवाबदेही की कमी।
- सुधारक केंद्रों की अपर्याप्तता अथवा दयनीय स्थिति।
- कैदी की स्वास्थ्य अथवा मौजूदा चिकित्सीय स्थिति जिनका हिरासत में रहते हुए पर्याप्त रूप से समाधान या इलाज नहीं किया गया।
हिरासत के संबंध में उपलब्ध प्रावधान:
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 21:
- अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन अथवा व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा"।
- अत्याचार से सुरक्षा प्रदान करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत एक मौलिक अधिकार है।
- अनुच्छेद 22:
- अनुच्छेद 22 "कुछ मामलों में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण" प्रदान करता है।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत परामर्श का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है।
- अनुच्छेद 21:
- राज्य सरकार की भूमिका:
- भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं।
- मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना प्राथमिक रूप से संबंधित राज्य सरकार का उत्तरदायित्त्व है।
- केंद्र सरकार की भूमिका:
- केंद्र सरकार समय-समय पर सलाह जारी करती है और उसने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (PHR),1993 को भी अधिनियमित किया है।
- इसमें लोक सेवकों द्वारा कथित मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच के लिये NHRC और राज्य मानवाधिकार आयोगों की स्थापना का प्रावधान है।
- कानूनी प्रावधान:
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC):
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 41 को वर्ष 2009 में संशोधित किया गया था ताकि सुरक्षा उपायों को इसमें शामिल किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि गिरफ्तारी एवं पूछताछ के लिये हिरासत में लेने हेतु उचित आधार एवं दस्तावेज़ी प्रक्रियाएँ हों, कानूनी प्रतिनिधित्त्व के माध्यम से सुरक्षा उपलब्ध हो ताकि गिरफ्तारी परिवार, मित्र और जनता के लिये पारदर्शी हो सके।
- भारतीय दंड संहिता:
- भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 330 और 331 में ज़बरन कबूलनामे हेतु क्षति पहुँचाने को लेकर सज़ा का प्रावधान है।
- कैदियों के खिलाफ हिरासत में यातना के अपराध को IPC की धारा 302, 304, 304A और 306 के तहत लाया जा सकता है।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत संरक्षण:
- अधिनियम की धारा 25 में प्रावधान है कि पुलिस के सामने किये गए कबूलनामे को न्यायालय में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- अधिनियम की धारा 26 में प्रावधान है कि व्यक्ति द्वारा पुलिस के समक्ष किया गया कबूलनामा व्यक्ति के खिलाफ साबित नहीं किया जा सकता है जब तक कि यह मजिस्ट्रेट के समक्ष नहीं किया जाता है।
- भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861:
- पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 7 और 29 उन पुलिस अधिकारियों की बर्खास्तगी, दंड या निलंबन का प्रावधान करती है जो अपने कर्तव्यों के निर्वहन में लापरवाही करते हैं या ऐसा करने में अयोग्य हैं।
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC):
आगे की राह
- अत्याचार तथा क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड की रोकथाम सहित मानवाधिकार कानूनों एवं विनियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना।
- बल के उचित प्रयोग तथा संदिग्धों को नियंत्रित करने के गैर-खतरनाक तरीकों पर कानून प्रवर्तन अधिकारियों के लिये व्यापक और प्रभावी प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन।
- मौत के कारणों का पता लगाने तथा ज़िम्मेदार पक्षों को जवाबदेह ठहराने के लिये हिरासत में हुई सभी मौतों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. मौत की सज़ा को कम करने में राष्ट्रपति द्वारा देरी का उदाहरण सार्वजनिक बहस के तहत न्याय से इनकार के रूप में सामने आए हैं। क्या ऐसी याचिकाओं को स्वीकार/अस्वीकार करने के लिये राष्ट्रपति के लिये कोई समय निर्दिष्ट होना चाहिये? विश्लेषण कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2014) प्रश्न. भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) सबसे प्रभावी हो सकता है जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने वाले अन्य तंत्रों द्वारा पर्याप्त रूप से समर्थित किया जाता है। उपर्युक्त अवलोकन के आलोक में मानवाधिकार मानकों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने में न्यायपालिका एवं अन्य संस्थानों के प्रभावी पूरक के रूप में NHRC की भूमिका का आकलन कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2014) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
ChatGPT-संचालित व्हाट्सएप चैटबॉट
प्रिलिम्स के लिये:जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, गूगल का बार्ड, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। मेन्स के लिये:ChatGPT-संचालित व्हाट्सएप चैटबॉट और संबद्ध चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय (MeitY) की भाषिनी (BHASHINI) भारतीय किसानों को विभिन्न सरकारी योजनाओं के बारे में जानने में मदद के लिये ChatGPT- संचालित व्हाट्सएप चैटबॉट पर काम कर रही है।
- भाषिनी- भारत के लिये भाषा इंटरफेस (BHASHINI- BHASHa INterface for India) भारत का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के नेतृत्त्व वाला भाषा अनुवाद मंच है।
- व्हाट्सएप चैटबॉट के लॉन्च में अभी समय लग सकता है क्योंकि ChatGPT वर्तमान में अंग्रेज़ी में इनपुट पर निर्भर है और स्थानीय भाषाओं के लिये समर्थन सीमित है।
उद्दिष्ट विशेषताएँ:
- यह उपयोगकर्त्ताओं को वॉयस नोट्स के ज़रिये सवाल भेजने की सुविधा प्रदान करेगा।
- एक उपयोगकर्त्ता बस वॉयस नोट्स का उपयोग करके एक प्रश्न पूछ सकता है और ChatGPT द्वारा उत्पन्न आवाज़-आधारित प्रतिक्रिया प्राप्त कर सकता है।
- चैटबॉट भारत की ग्रामीण और कृषक आबादी को ध्यान में रखते हुए विकसित किया जा रहा है जो अधिकांशतः सरकारी योजनाओं तथा सब्सिडी पर निर्भर करता है।
- इसके संभावित उपयोगकर्त्ता भाषाओं की एक विस्तृत शृंखला का उपयोग करते हैं, जिससे एक भाषा मॉडल बनाना महत्त्वपूर्ण हो जाता है जो उन्हें सफलतापूर्वक पहचान और समझ सके।
- इससे भारत में कई किसानों को मदद मिलेगी जो स्मार्टफोन पर टाइपिंग नहीं कर सकते हैं।
- ChatGPT संचालित व्हाट्सएप चैटबॉट अंग्रेज़ी, हिंदी, तमिल, तेलुगू, मराठी, बांग्ला, कन्नड़, ओडिया और असमिया सहित 12 भाषाओं में उपलब्ध होगा।
- इस चैटबॉट का उपयोग करने वाले अधिकांश लोग अंग्रेज़ी नहीं जानते होंगे, अतः इसके निराकरण के लिये सरकार की भाषा दान पहल का उपयोग किया जाएगा।
- भाषिनी परियोजना के हिस्से के रूप में भाषा दान कई भारतीय भाषाओं हेतु भाषा इनपुट क्राउडसोर्स करने की एक पहल है। यह नागरिकों से उनकी अपनी भाषा को डिजिटल रूप से समृद्ध करने हेतु डेटा का एक खुला भंडार बनाने में मदद करने का आह्वान करती है।
मॉडल से संबंधित चिंताएँ:
- ChatGPT, गूगल के बार्ड जैसे जनरेटिव AI मॉडल के जवाब हमेशा सटीक नहीं हो सकते हैं।
- हाल ही में बार्ड के कारण जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप में तथ्यात्मक त्रुटि देखी गई। इस त्रुटि का पता चलने के बाद कंपनी के शेयरों में 100 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई।
- अपने वर्तमान परीक्षण चरण में व्हाट्सएप चैटबॉट केवल सरकारी योजनाओं आदि के बारे में सरल प्रश्नों का उत्तर दे सकता है।
- यह मुख्य रूप से ChatGPT की वर्तमान सीमितता के कारण है, तथ्य की बात यह है कि यह वास्तविक समय/रियल टाइम में इंटरनेट से जानकारी इकट्ठा नहीं कर सकता है।
- ChatGPT के भाषा मॉडल को एक डेटासेट पर प्रशिक्षित किया गया था जिसमें केवल वर्ष 2021 तक की जानकारी शामिल है।
- हालाँकि यह जल्द ही बदल सकता है। हाल ही में Microsoft ने अपने सर्च इंजन बिंग के एक नए संस्करण की घोषणा की, जो उसी AI तकनीक के उन्नत संस्करण द्वारा संचालित है जो ChatGPT को संचालित करता है।
- यह सुविधा GPT 3.5, OpenAI द्वारा बनाया गया AI भाषा मॉडल है जो ChatGPT को शक्ति प्रदान करता है, के एक अद्यतन संस्करण द्वारा संचालित होगी।
- इसने इसे "प्रोमेथियस मॉडल" के रूप में संदर्भित किया और दावा किया कि यह पूछे जाने वाले प्रश्नों के एनोटेट, अप-टू-डेट उत्तर प्रदान करने में GPT 3.5 से अधिक सक्षम था।
ChatGPT:
- परिचय:
- ChatGPT GPT (जनरेटिव प्री-ट्रेन ट्रांसफार्मर) का एक प्रकार है जो OpenAI द्वारा विकसित एक बड़े पैमाने पर तंत्रिका नेटवर्क-आधारित भाषा प्रारूप है।
- GPT मॉडल को मानव जैसा टेक्स्ट उत्पन्न करने के लिये बड़ी मात्रा में टेक्स्ट डेटा पर प्रशिक्षित किया जाता है।
- यह विभिन्न विषयों पर प्रतिक्रियाएँ दे सकता है, जैसे प्रश्नों का उत्तर देना, स्पष्टीकरण प्रदान करना और संवाद में भाग लेना।
- ChatGPT "अनुवर्ती प्रश्नों" का उत्तर देने के साथ "अपनी गलतियों को स्वीकार कर सकता है, गलत धारणाओं को चुनौती दे सकता है, साथ ही अनुचित अनुरोधों को अस्वीकार कर सकता है।"
- चैटबॉट को रेनफोर्समेंट लर्निंग फ्रॉम ह्यूमन फीडबैक (RLHF) का उपयोग करके भी प्रशिक्षित किया गया था।
- उपयोग:
- इसका उपयोग वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों जैसे डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन सामग्री निर्माण, ग्राहक सेवा प्रश्नों का उत्तर देने या जैसा कि कुछ उपयोगकर्त्ताओं ने पाया है कि डीबग कोड में मदद करने के लिये भी किया जा सकता है।
- बॉट मनुष्य के बोलने की शैलियों की नकल करते हुए प्रश्नों की एक बड़ी शृंखला का जवाब दे सकता है।
- इसे बुनियादी ई-मेल, पार्टी नियोजन सूचियों, सीवी और यहाँ तक कि कॉलेज निबंध और होमवर्क के प्रतिस्थापन के रूप में देखा जा रहा है।
- जैसा कि उदाहरणों से पता चला है, इसका उपयोग कोड लिखने के लिये भी किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस निम्नलिखित में से प्रभावी रूप से क्या कर सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि और इसके प्रभाव: WMO
प्रिलिम्स के लिये:WMO, जलवायु संकट, ग्लोबल वार्मिंग, तटीय पारिस्थितिक तंत्र। मेन्स के लिये:वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि और इसके प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की “वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि और इसके प्रभाव” रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर भारत, चीन, बांग्लादेश एवं नीदरलैंड समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण सबसे अधिक प्रभावित होने वाले देश हैं।
- समुद्र के स्तर में वृद्धि लगभग सभी महाद्वीपों के कई बड़े शहरों के अस्तित्व के लिये खतरा है।
- इनमें शंघाई, ढाका, बैंकॉक, जकार्ता, मुंबई, मापुटो, लागोस, काहिरा, लंदन, कोपेनहेगन, न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स, ब्यूनस आयर्स और सैंटियागो शामिल हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- मौजूदा स्थिति और अनुमान:
- वर्ष 2013 और 2022 के बीच वैश्विक औसत समुद्र-स्तर 4.5 मिमी./वर्ष था और वर्ष 1971 के बाद से ही मानवीय गतिविधियों को इस वृद्धि का मुख्य कारक माना जाता रहा है।
- वर्ष 1901 और 2018 के बीच वैश्विक औसत समुद्र-स्तर में 0.20 मीटर की वृद्धि हुई।
- वर्ष 1901 और 1971 के बीच 1.3 मिमी./वर्ष।
- वर्ष 1971 और 2006 के बीच 1.9 मिमी./वर्ष
- वर्ष 2006 से 2018 के बीच 3.7 मिमी./वर्ष।
- यदि ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाता है, तब भी समुद्र के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
- समुद्र स्तर के संदर्भ में एक डिग्री का हर अंश मायने रखता है। यदि तापमान में 2 डिग्री की वृद्धि होती है, तो स्तर में यह वृद्धि दोगुनी हो सकती है तथा तापमान में और वृद्धि होने से समुद्र के स्तर में तेज़ी से वृद्धि उसी के अनुरूप होगी।
- वर्ष 2013 और 2022 के बीच वैश्विक औसत समुद्र-स्तर 4.5 मिमी./वर्ष था और वर्ष 1971 के बाद से ही मानवीय गतिविधियों को इस वृद्धि का मुख्य कारक माना जाता रहा है।
- समुद्र स्तर की वृद्धि में योगदानकर्त्ता:
- तापीय विस्तार ने वर्ष 1971-2018 के दौरान समुद्र के जल स्तर में 50% की वृद्धि दर्ज की है, जिसका कारण है- ग्लेशियरों की बर्फ में 22%का नुकसान, आइसशीट में 20% का नुकसान और भूमि-जल भंडारण में 8% की गिरावट।
- वर्ष 1992-1999 और वर्ष 2010-2019 के मध्य बर्फ की परत के नुकसान की दर चार गुना बढ़ गई। वर्ष 2006-2018 के दौरान वैश्विक स्तर पर समुद्र के स्तर में वृद्धि के लिये एक साथ आइसशीट और ग्लेशियर का बड़े पैमाने पर नुकसान इसके प्रमुख कारक रहे।
- प्रभाव:
- 2-3 डिग्री सेल्सियस के मध्य निरंतर उष्मन स्तर पर ग्रीनलैंड और पश्चिम अंटार्कटिक की बर्फ की चादरें लगभग पूरी तरह से और अपरिवर्तनीय रूप से कई सहस्राब्दियों में विलुप्त हो जाएंगी, जिससे समुद्र के जल स्तर में कई मीटर की वृद्धि होने की संभावना है।
- समुद्र के स्तर में वृद्धि से तटीय पारिस्थितिक तंत्र और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, भूजल लवणीकरण, बाढ़ तथा तटीय बुनियादी ढाँचे को नुकसान होने की आशंका है जो आजीविका, बस्तियों, स्वास्थ्य, कल्याण, भोजन, विस्थापन एवं जल सुरक्षा व सांस्कृतिक मूल्यों के लिये जोखिम का कारण बन सकता है।
भारत के लिये परिदृश्य:
- समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर:
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, पिछली शताब्दी (1900-2000) के दौरान भारतीय तट के साथ समुद्र का स्तर लगभग 1.7 मिमी./वर्ष की दर से औसतन बढ़ रहा था।
- समुद्र के स्तर में 3 सेंटीमीटर की वृद्धि से समुद्र 17 मीटर तक अंतर्देशीय हो सकता है। भविष्य में 5 सेमी./दशक की दर से समुद्र का विस्तार एक शताब्दी में 300 मीटर भूमि पर हो सकता है।
- भारत अधिक संवेदनशील है:
- भारत समुद्र स्तर में वृद्धि के बढ़ते प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील है।
- हिंद महासागर के स्तर में आधी वृद्धि जल के आयतन में विस्तार के कारण होती है क्योंकि महासागर तेज़ी से गर्म हो रहा है।
- ग्लेशियर के पिघलने का उतना अधिक योगदान नहीं है।
- सतह के गर्म होने के मामले में हिंद महासागर सबसे तेज़ी से गर्म होने वाला महासागर है।
- प्रभाव:
- भारत हमारी तटरेखा के साथ जटिल चरम घटनाओं का सामना कर रहा है। समुद्र के गर्म होने से अधिक नमी एवं गर्मी के कारण चक्रवात तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
- बाढ़ की घटनाएँ इसलिये भी बढ़ जाती हैं क्योंकि तूफान के बढ़ने से समुद्र स्तर में दशक-दर-दशक तेज़ी से वृद्धि हो रही है।
- चक्रवातों के कारण पहले की तुलना में अधिक बारिश हो रही है। सुपर साइक्लोन अम्फान (2020) के कारण बड़े पैमाने पर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है और खारे जल से दसियों किलोमीटर अंतर्देशीय क्षेत्र जलमग्न हो गया।
- समय के साथ सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ सिकुड़ सकती हैं तथा खारे जल के प्रसार के साथ बढ़ते समुद्र स्तर से उनके विशाल डेल्टा का बड़ा हिस्सा निर्जन होने की संभावना देखी जा रही है।
सिफारिशें:
- जलवायु संकट को संबोधित करने तथा असुरक्षा के मूल कारणों के प्रति हमारी समझ को व्यापक बनाने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने और पूर्व चेतावनी प्रणाली में सुधार के लिये ज़मीनी स्तर पर लचीलेपन के प्रयासों को सक्रिय रूप से समर्थन देना अनिवार्य है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO):
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) 192 देशों की सदस्यता वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है।
- भारत, विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य देश है।
- इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई है, जिसे वर्ष 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस के बाद स्थापित किया गया था।
- 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO, मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), जल विज्ञान तथा इससे संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान हेतु संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी है।
- WMO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (मुख्य परीक्षा, 2017) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
उपसभापति की अनुपस्थिति
प्रिलिम्स के लिये:स्पीकर और डिप्टी स्पीकर की स्थिति, संसद के पीठासीन अधिकारियों के लिये प्रावधान। मेन्स के लिये:डिप्टी स्पीकर का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र से जवाब मांगा है, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2019 से 17वीं (वर्तमान) लोकसभा के लिये उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं करना "संविधान की मूल भावना के खिलाफ" है।
- राजस्थान, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और झारखंड सहित पाँच राज्यों की विधानसभाओं में भी यह पद खाली पड़ा है।
संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 93 कहता है कि लोकसभा पद रिक्त होते ही अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में सेवा के लिये दो सदस्यों को नियुक्त करेगी। हालाँकि यह समय-सीमा निर्दिष्ट नहीं करता है।
- अनुच्छेद 178 में किसी राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिये संबंधित स्थिति शामिल है।
विषय पर विभिन्न दृष्टिकोण:
- विशेषज्ञ:
- विशेषज्ञ बताते हैं कि अनुच्छेद 93 और 178 दोनों में "होगा” (Shall) शब्द का उपयोग किया गया है, यह दर्शाता है कि संविधान के तहत स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चुनाव अनिवार्य है।
- संघ सरकार:
- सरकार का तर्क है कि डिप्टी स्पीकर के लिये "तत्काल आवश्यकता" नहीं है क्योंकि सदन में सामान्य रूप से "विधेयक पारित किये जा रहे हैं और चर्चा हो रही है"।
- इसके अलावा विभिन्न दलों से चुने गए नौ सदस्यों का एक पैनल है जो सभापति को सदन चलाने में सहायता करने के लिये अध्यक्ष के रूप में कार्य कर सकता है।
क्या न्यायपालिका मामले में हस्तक्षेप कर सकती है?
- अनुच्छेद 122 के अनुसार, "संसद में किसी भी कार्यवाही की वैधता प्रक्रिया में कथित अनियमितता के आधार पर उसे न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता।"
- न्यायालय आमतौर पर संसद के प्रक्रियात्मक आचरण में हस्तक्षेप नहीं करता है। हालाँकि विशेषज्ञों का तर्क है कि न्यायालय के पास कम-से-कम यह जाँच करने का अधिकार है कि डिप्टी स्पीकर के पद के लिये कोई चुनाव क्यों नहीं हुआ है क्योंकि संविधान में "जितनी जल्दी हो सके" चुनाव की परिकल्पना की गई है।
उपाध्यक्ष के संबंध में प्रावधान:
- निर्वाचन:
- लोकसभा में उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियमों के नियम 8 द्वारा शासित होता है।
- उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा द्वारा अध्यक्ष के चुनाव के ठीक बाद अपने सदस्यों में से किया जाता है। उपाध्यक्ष के चुनाव की तिथि अध्यक्ष द्वारा निर्धारित की जाती है।
- निर्धारित समय-सीमा:
- उपाध्यक्ष का चुनाव आमतौर पर दूसरे सत्र में होता है तथा सामान्यतः वास्तविक एवं अपरिहार्य बाधाओं के कारण इसमें और देरी नहीं होती है।
- कार्यकाल की अवधि और पदमुक्ति:
- अध्यक्ष की तरह ही उपाध्यक्ष भी आमतौर पर लोकसभा के कार्यकाल (5 वर्ष) तक अपने पद पर बना रहता है।
- उपाध्यक्ष निम्नलिखित तीन मामलों में अपना पद पहले खाली कर सकता है:
- यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है।
- यदि वह अध्यक्ष को पत्र लिखकर इस्तीफा दे देता है।
- यदि उसे लोकसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाता है। ऐसा प्रस्ताव उपाध्यक्ष को 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है।
- उपाध्यक्ष की स्थिति:
- अनुच्छेद 95 के अनुसार, उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उसके कर्तव्यों का निर्वहन करता है और सदन की बैठक से अध्यक्ष के अनुपस्थित रहने की स्थिति में उपाध्यक्ष उसके स्थान पर कार्य करता है। दोनों ही मामलों में वह अध्यक्ष की सभी शक्तियों का प्रयोग करता है।
- उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का अधीनस्थ नहीं होता है। वह सीधे सदन के प्रति उत्तरदायी होता है। नतीजतन यदि उनमें से कोई भी इस्तीफा देना चाहता है, तो उन्हें अपना इस्तीफा सदन को प्रस्तुत करना होगा, जिसका अर्थ है कि अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को इस्तीफा देता है।
उपाध्यक्ष की आवश्यकता:
- निरंतरता बनाए रखना: जब भी अध्यक्ष अनुपस्थित होता है या अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है तो उपाध्यक्ष कार्यालय की निरंतरता बनाए रखता है।
- सदन का प्रतिनिधित्त्व: यदि अध्यक्ष त्यागपत्र दे देता है तो वह अपना त्यागपत्र उपसभापति को सौंप देता है।
- यदि उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तो महासचिव त्यागपत्र प्राप्त करता है और सदन को इसकी सूचना देता है। लोकसभा के पीठासीन अधिकारियों हेतु नियमों के अनुसार राजपत्र और बुलेटिन में इस्तीफा अधिसूचित किया जाता है।
- विपक्ष को मज़बूत करना: वर्ष 2011 से उपसभापति का पद विपक्षी दल को देने की परंपरा रही है।
- हालाँकि संवैधानिक रूप से उपसभापति विपक्ष या बहुमत दल से हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (D) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न. लोकसभा अध्यक्ष के पद के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b)
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
जापान की ग्लोबल साउथ तक पहुँच
प्रिलिम्स के लिये:G7 एजेंडा, G20 शिखर सम्मेलन, शीत युद्ध, जलवायु परिवर्तन, इंडो-पैसिफिक। मेन्स के लिये:जापान की ग्लोबल साउथ तक पहुँच। |
चर्चा में क्यों?
जापान ने ग्लोबल साउथ को G7 एजेंडे में सबसे ऊपर लाने की पहल की है।
- जापान हिरोशिमा में G7 शिखर सम्मेलन, 2023 की मेज़बानी कर रहा है। भारत इस वर्ष के G-20 शिखर सम्मेलन में ग्लोबल साउथ की आवाज़ बनना चाहता है, ऐसे में दिल्ली और टोक्यो के बीच वैश्विक राजनीतिक सहयोग के लिये कई नई संभावनाएँ हैं।
ग्लोबल साउथ:
- ग्लोबल साउथ शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर उन देशों के संदर्भ में होना शुरू हुआ जो औद्योगीकरण के दौर से बाहर रह गए थे और पूंजीवादी एवं साम्यवादी देशों के साथ विचारधारा का टकराव रखते थे, जिसे शीत युद्ध ने प्रबल किया था।
- इसमें अधिकांशतः एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देश शामिल हैं।
- इसके अलावा वैश्विक उत्तर या ‘ग्लोबल नॉर्थ’ को अनिवार्य रूप से अमीर और गरीब देशों के बीच एक आर्थिक विभाजन द्वारा परिभाषित किया गया है।
- ‘ग्लोबल नॉर्थ’ मोटे तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों को संदर्भित करता है।
- बड़ी आबादी, समृद्ध संस्कृतियों और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के कारण ‘ग्लोबल साउथ’ एक महत्त्वपूर्ण भूभाग है।
- इसके अतिरिक्त गरीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने के लिये ग्लोबल साउथ को समझना महत्त्वपूर्ण है।
ग्लोबल साउथ से संबद्ध मुद्दे:
- गरीबी और असमानता:
- ग्लोबल साउथ के कई देश अत्यधिक गरीबी से जूझ रहे हैं, इसे कुपोषण, शिक्षा तक पहुँच की कमी और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल जैसे कई मुद्दों के रूप में देखा जा सकता है।
- ग्लोबल साउथ को अक्सर देशों के भीतर और देशों के बीच असमानताओं के रूप में चिह्नित किया जाता है। उदाहरण के लिये शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बीच या विभिन्न जातीय या सामाजिक आर्थिक समूहों के बीच संपत्ति तथा संसाधनों तक पहुँच में असमानताएँ।
- पर्यावरणीय चुनौतियाँ:
- ग्लोबल साउथ के कई देश विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति संवेदनशील हैं। इन मुद्दों का स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य एवं कल्याण पर अत्यधिक प्रभाव पड़ सकता है।
- राजनैतिक अस्थिरता:
- ग्लोबल साउथ के कुछ देशों में राजनीतिक अस्थिरता प्रमुख मुद्दों में से एक है, जिसमें सत्ता परिवर्तन और गृह युद्ध से लेकर भ्रष्टाचार तथा कमज़ोर शासन तक की चुनौतियाँ शामिल हैं।
- बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और स्वास्थ्य की कमी:
- कई देश अपनी आबादी हेतु गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, यह आर्थिक अवसरों को सीमित कर सकता है और गरीबी एवं असमानता को बनाए रख सकता है।
- स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे भी एक प्रमुख चिंता का विषय है, जहाँ गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सीमित या न के बराबर हो सकती है। इससे संक्रामक रोगों, कुपोषण और पुरानी स्थितियों सहित कई स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
जापान का ग्लोबल साउथ तक पहुँचने का उद्देश्य:
- जापान को यूक्रेन जैसे प्रभावों का डर:
- जापान ने अपनी विदेश और सुरक्षा नीतियों में परवर्तन किया है क्योंकि उसे यूक्रेन जैसे प्रभावों का डर है।
- उत्तर कोरिया से लंबे समय से खतरा और चीन से बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के बीच यूक्रेन युद्ध ने जापान को अपनी रक्षा नीति में व्यापक सुधार के लिये प्रेरित किया है।
- कूटनीति और रक्षा:
- जापान का मानना है कि यूक्रेन में संघर्ष ने उसे कूटनीति और रक्षा के महत्त्व का एहसास कराया है।
- रक्षा क्षमताओं को कूटनीति द्वारा समर्थित होना चाहिये तथा इन क्षमताओं को मज़बूत करने से हमारे कूटनीतिक प्रयास और अधिक प्रेरक बनेंगे।
- पश्चिम की उपेक्षा:
- पश्चिम ने हाल के दशकों में ग्लोबल साउथ के साथ राजनीतिक जुड़ाव की उपेक्षा की है।
- शीत युद्ध में पश्चिम ने ग्लोबल साउथ में रणनीतिक प्रभाव के लिये रूस के साथ जमकर प्रतिस्पर्द्धा की थी।
- सोवियत संघ के पतन के बाद G7 ने ग्लोबल साउथ के नेताओं को हल्के में लिया और संवाद करने के बजाय सिर्फ उन्हें व्याख्यान देना पसंद किया।
- बदले में इसने विकासशील विश्व में चीन और रूस को संबंधों की दिशा निर्धारित करने का स्वतंत्र अवसर प्रदान किया।
- पश्चिम ने हाल के दशकों में ग्लोबल साउथ के साथ राजनीतिक जुड़ाव की उपेक्षा की है।
भारत के लिये आगे की राह
- ग्लोबल साउथ के समर्थन के लिये विकासशील विश्व के भीतर निकृष्ट क्षेत्रीय राजनीति के साथ अधिक सक्रिय भारतीय जुड़ाव की आवश्यकता होगी।
- भारत को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिये कि ग्लोबल साउथ एक एकजुट इकाई के रूप में कार्य नहीं करता है और इसका एक भी सामान्य लक्ष्य नहीं है। धन और शक्ति, ज़रूरतों एवं क्षमताओं के मामले में आज दक्षिणी देशों में बहुत भिन्नता है।
- यह विकासशील विश्व के विभिन्न क्षेत्रों और समूहों के अनुरूप भारतीय नीति की मांग करता है।
- भारत पुराने वैचारिक मतभेदों पर ध्यान देने के बजाय व्यावहारिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करके उत्तर और दक्षिण के बीच एक सेतु बनने के लिये उत्सुक है। यदि भारत इस महत्त्वाकांक्षा को प्रभावी नीति में बदल सकता है, तो सार्वभौमिक तथा विशेष लक्ष्यों की एक साथ प्राप्ति की दिशा में कोई विरोधाभास नहीं होगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह में G20 के सभी चार सदस्य देश हैं? (a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर: (a) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. 'उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में भारत द्वारा प्राप्त नव भूमिका के कारण उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घकाल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है। विस्तार से समझाइये। (2019) |