भारतीय अर्थव्यवस्था
खुदरा मुद्रास्फीति में वृद्धि
प्रीलिम्स के लिये:मुद्रास्फीति, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मेन्स के लिये:खुदरा मुद्रास्फीति में वृद्धि के कारण एवं प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’ (Ministry of Statistics & Programme Implementation- MoSPI) द्वारा जारी किये गए नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत की ‘खुदरा मुद्रास्फीति’ (Retail Inflation) वृद्धि दर जून के महीने में 6.09% के स्तर पर पहुँच गई है।
प्रमुख बिंदु:
- भारत में खुदरा मुद्रास्फीति दर को ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (Consumer Price Index-CPI) के आधार पर मापा जाता है।
- यह खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन की माप करता है।
- यह चयनित वस्तुओं एवं सेवाओं के खुदरा मूल्यों के स्तर में समय के साथ बदलाव को मापता है, जिस पर उपभोक्ता अपनी आय खर्च करते हैं।
- CPI का आधार वर्ष 2012 है।
- सरकार द्वारा कोरोना महामारी की रोकथाम के चलते देशव्यापी ‘लॉकडाउन’ के कारण अप्रैल और मई माह के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति दर के आंकड़ें जारी नहीं किये गए हैं।
- हालांकि, अप्रैल में CPI आँकड़ों को मार्च महीने के आँकड़ों के आधार पर संशोधित कर 5.84% कर दिया गया था।
- मई माह में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (Consumer Food Price Index-CFPI)का स्तर 9.20 % था।
- सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक को मुद्रास्फीति (Inflation) की दर को 4% (2% ऊपर या नीचे) पर रखने का निश्चित किया गया है।
- CPI के महँगाई दर के आँकड़े रिज़र्व बैंक के मध्यम अवधि लक्ष्य 4% के ऊपर अर्थात खुदरा मुद्रास्फीति दर भारतीय रिज़र्व बैंक के मार्जिन से 6%अधिक हो गई है।
खुदरा मुद्रास्फीति दर:
- जब एक निश्चित अवधि में वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य में वृद्धि के कारण मुद्रा के मूल्य में गिरावट दर्ज़ की जाती है तो उसे मुद्रास्फीति कहते हैं।
- मुद्रास्फीति को जब प्रतिशत में व्यक्त करते हैं तो यह महंगाई दर या खुदरा मुद्रास्फीति दर कहलाती है।
- सरल शब्दों में कहें तो यह कीमतों में उतार-चढ़ाव की रफ्तार को दर्शाती है।
खुदरा मुद्रास्फीति दर में वृद्धि के कारण:
- खाद्यान पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के कारण खुदरा मुद्रास्फीति दर में वृद्धि देखी गई है ।
- मुख्य रूप से दालों तथा अन्य खाद्य उत्पादों की कीमतों में वृद्धि के कारण खुदरा मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई है जो जून में 16.68 प्रतिशत बढ गई है।
- मांस और मछली उत्पादों पर 16.22 %की वृद्धि, तेल एवं वसा उत्पादों पर 12.27 %की वृद्धि तथा मसालों की कीमतों पर 11.74 % की वृद्धि देखी गई है।
संभावित प्रयास:
अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को कम करके, उत्पादन में वृद्धि दर को बढ़कर, उत्पादों का आयात करके तथा उत्पादन तकनीक में सुधार कर उत्पादों की लागत कम करके कुछ ऐसे प्रयास हैं जिनके माध्यम से खुदरा मुद्रास्फीति दर को नियंत्रित किया जा सकता है ।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर विवाद
प्रीलिम्स के लिये:श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास और इसकी अवस्थिति मेन्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायलय ने केरल के तिरुवनंतपुरम में प्रसिद्ध श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रशासन में त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार के अधिकारों को बरकरार रखा है।
प्रमुख बिंदु:
- इस संबंध में न्यायालय ने कहा कि प्रथागत कानून के अनुसार, अंतिम शासक की मृत्यु के बाद भी, शबैत अधिकार अर्थात मंदिर से संबंधित मामलों के प्रबंधन करने का अधिकार परिवार के शेष सदस्यों के साथ बना रहता है।
- गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से विश्व के सबसे धनी मंदिरों में से एक के रूप में पहचाने जाने वाले श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर को लेकर सरकार और त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार के सदस्यों के बीच चल रही दशकों पुरानी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई है।
मंदिर के प्रबंधन का इतिहास:
- वर्ष 1949 में त्रावणकोर और कोचीन की रियासत तथा भारत सरकार के बीच इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन (Instrument of Accession-IOA) यानी किसी रियासत के देश में शामिल होने के लिखित पत्र पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके अनुसार श्री
- पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन का अधिकार ‘त्रावणकोर के शासक’ में निहित था।
- वर्ष 1956 में नए केरल राज्य का निर्माण कर दिया गया, किंतु मंदिर का प्रबंधन अभी भी पूर्ववर्ती राजशाही परिवार द्वारा ही किया जाता रहा।
- वर्ष 1971 में सरकार ने संविधान संशोधन के माध्यम से ‘प्रिवी पर्स’ (एक भुगतान, जो शाही परिवारों को भारत के साथ विलय के बाद दिया जाता था) को समाप्त कर दिया।
- जुलाई, 1991 में त्रावणकोर के अंतिम शासक की मृत्यु हो गई और मंदिर का प्रबंधन अंतिम शासक की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई उत्रेदम थिरुनल मार्तण्ड वर्मा के पास चला गया।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर
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क्या है विवाद?
- वर्ष 2007 में उत्रेदम थिरुनल मार्तण्ड वर्मा ने दावा किया कि मंदिर का खजाना त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार की संपत्ति है।
- इस दावे पर आपत्ति जताते हुए कई मुकदमे दायर किये गए और केरल की एक निचली अदालत ने दोषियों के विरुद्ध निषेधाज्ञा पारित कर दी।
- वहीं उत्रेदम थिरुनल मार्तण्ड वर्मा और कुछ अन्य लोग इस मामले को केरल उच्च न्यायालय के समक्ष लेकर गए, न्यायालय ने सभी मामलों की एक साथ सुनाई की और इस विषय पर विचार किया कि क्या त्रावणकोर के अंतिम शासक के छोटे भाई,
- वर्ष 1991 में अंतिम शासक की मृत्यु के बाद ‘त्रावणकोर के शासक’ होने का दावा कर सकते हैं अथवा नहीं।
- वर्ष 2011 में केरल उच्च न्यायालय ने शाही परिवार के विरुद्ध निर्णय देते हुए मंदिर के मामलों का प्रबंधन करने के लिये एक बोर्ड के गठन का आदेश पारित कर दिया।
सर्वोच्च न्यायलय का निर्णय:
- केरल उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई, याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वप्रथम सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक
- लगा दी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हालिया निर्णय में वर्ष 2011 के केरल उच्च न्यायलय के निर्णय को खारिज करते हुए कहा कि एक शासक की मृत्यु से शाही परिवार की मंदिर की विरासत प्रभावित नहीं होती है।
- वर्ष 2011 में केरल उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि वर्ष 1991 में त्रावणकोर के अंतिम शासक की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी मंदिर पर किसी भी अधिकार का दावा नहीं कर सकते थे, किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च
- न्यायालय के इस तर्क को खारिज कर दिया।
- यह स्वीकार करते हुए कि प्रसिद्ध श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर एक ‘सार्वजनिक मंदिर’ है, सर्वोच्च न्यायालय ने भविष्य में इसके पारदर्शी प्रशासन के लिये कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं-
- न्यायालय ने तिरुवनंतपुरम ज़िला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक प्रशासनिक समिति के गठन का निर्देश दिया है।
- इस प्रशासनिक समिति में अन्य सदस्यों के तौर पर ट्रस्टी (शाही परिवार) द्वारा नामित व्यक्ति, मंदिर का मुख्य थानथ्री अथवा पुजारी, राज्य सरकार द्वारा नामित व्यक्ति और केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा नामित व्यक्ति शामिल होंगे।
- इसके अलावा न्यायालय ने नीतिगत मामलों पर प्रशासनिक समिति को सलाह देने के लिये एक अन्य समिति गठित करने का भी आदेश दिया है। इस समिति की अध्यक्षता केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा की जाएगी।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, इन समितियों का प्राथमिक कार्य मंदिर के खजाने और संपत्ति का संरक्षण करना होगा।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ:
- गौरतलब है कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर वर्ष 2011 में अपने भूमिगत तहखानों में आभूषण, जवाहरात और अन्य कीमती सामान के रूप में 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक के खजाने की खोज के बाद चर्चा में आया था।
- तभी से इस विषय पर एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है कि इस मंदिर पर किसका स्वामित्त्व है और इसका संरक्षण किसके द्वारा किया जाना चाहिये।
- त्रावणकोर रियासत के पूर्ववर्ती शाही परिवार ने सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का स्वागत किया है, वहीं केरल सरकार ने भी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को स्वीकार करने की बात की है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, ‘यह दुनिया का सबसे धनी मंदिर माना जाता है और यहाँ के स्थानीय श्रद्धालु चाहते थे कि इस मंदिर का प्रबंधन शाही परिवार द्वारा किया जाए, इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय मुख्यतः श्रद्धालुओं के पक्ष में दिया है।’
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त की गई पाँच सदस्यीय समिति आगामी समय में मंदिर के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
नए वाहन पंजीकरण के लिये FATag विवरण
प्रीलिम्स के लिये:FASTag, वाहन पोर्टल, NPCI, NIC, NETC मेन्स के लिये:फास्टैग तथा उसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने नए वाहनों का पंजीकरण करते वक्त और राष्ट्रीय परमिट के तहत चलने वाले वाहनों को फिटनेस प्रमाण पत्र जारी करते समय भी फास्टैग (FASTag) विवरण दर्ज करने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु
- इससे सुगम आवाजाही/पारगमन की सुविधा के साथ-साथ COVID-19 नियंत्रण का कार्य भी होगा।
- FASTag भुगतान के लिये इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से कोविड-19 के प्रसार को रोकने में मदद मिलेगी क्योंकि इससे टोल प्लाजा पर किये जाने वाले नकद भुगतान से बचा जा सकता है।
- MoRTH ने राष्ट्रीय सूचना केंद्र (NIC) को निर्देशित किया है कि वह वाहन (VAHAN) पोर्टल पर इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह डिवाइस का विवरण सुनिश्चित करे।
- VAHAN पोर्टल के साथ राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह (NETC) को पूरी तरह से जोड़ दिया गया है।
- VAHAN पोर्टल: वाहन पंजीकरण सेवा को ऑनलाइन संचालित करने हेतु पोर्टल है।
- राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह: इसे राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा वर्ष 2016 में FASTag का उपयोग करके टोल प्लाजा पर इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह के लिये विकसित किया गया था।
फास्टैग क्या है?
- फास्टैग एक रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) कार्ड होता है जिसे वाहन की विंडस्क्रीन पर लगाया जाता है।
- वाहनों को रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) कार्ड के रूप में एक रेडियो फ्रीक्वेंसी टैग (Radio Frequency Tag) जारी किया जाता है।
- प्रत्येक टोल प्लाज़ा पर एक RFID रीडर लगा होता है जो एक सेंसर के रूप में कार्य करता है और रेडियो फ्रीक्वेंसी द्वारा कार्ड की वैधता एवं धनराशि की जाँच करता है।
- यदि कार्ड में धनराशि उपलब्ध है तो टोल शुल्क का भुगतान स्वतः ही कार्ड से हो जाता है और वाहन टोल पर रुके बिना वहाँ से गुज़र जाता है।
- 1 दिसंबर, 2019 से देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थित टोल फ्री प्लाज़ा पर सभी लेन को ‘फास्टैग लेन’ (FASTag Lanes) घोषित कर दिया गया है।
- राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दर निर्धारण एवं संग्रह) नियम, 2008 के अनुसार टोल प्लाज़ा में फास्टैग लेन केवल फास्टैग उपयोगकर्त्ताओं की आवाजाही के लिये आरक्षित होती है। इस नियम के अंतर्गत प्रावधान है कि गैर-फास्टैग उपयोगकर्त्ताओं द्वारा फास्टैग लेन से गुज़रने पर उनसे दोहरा शुल्क वसूला जाता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
सतत् विकास लक्ष्यों की स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा
प्रीलिम्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्य, संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच मेन्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भारत की भूमिका, SDGs का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग ने सतत् विकास, 2020 को लेकर डिजिटल माध्यम से आयोजित संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (United Nations High-level Political Forum-HLPF) पर दूसरी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (Voluntary National Review-VNR) जारी की है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि भारत के अलावा बांग्लादेश, जॉर्जिया, केन्या, मोरक्को, नेपाल, नाइज़र, नाइजीरिया और युगांडा जैसे अन्य देश ने भी अपनी-अपनी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR) प्रस्तुत की।
भारत की दूसरी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR):
- इस प्रस्तुति में एक लघु फिल्म भी शामिल थी जिसमें दूसरी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR) को तैयार करने के प्रक्रियात्मक पहलुओं को समझाया गया था और सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के कुछ क्षेत्रों में भारत की प्रमुख प्रगति के बारे में भी बताया गया था।
- इस अवसर पर नीति आयोग के CEO अमिताभ कांत ने कहा कि ‘आयोग दीर्घकालिक बदलाव लाने और SDG लक्ष्यों पर प्रगति में तेज़ी लाने के लिये मौजूदा प्रयासों को दुरुस्त करने और एक नई पहल शुरू करने के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं।
- नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत की गई दूसरी स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR) के अनुसार, भारत में विश्व आबादी का छठवाँ हिस्सा निवास करता है, जिसके कारण भारत वर्ष 2030 एजेंडा की सफलता के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
- नीति आयोग की इस समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि भारत वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहता है तो उसे अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का अतिरिक्त 6.2 प्रतिशत खर्च करने की आवश्यकता है, साथ ही भारत को अपनी सांख्यिकीय प्रणाली के उन्नयन, निगरानी तंत्र में सुधार और सभी हितधारकों को और अधिक सक्षम बनाने की दिशा में भी कार्य करना होगा।
- इसके अतिरिक्त यह सुनिश्चित करना भी काफी महत्त्वपूर्ण है कि बजट आवंटन SDG प्राथमिकताओं के साथ संरेखित हो।
स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR) का महत्त्व:
- यह समीक्षा स्वैच्छिक और सदस्य देशों द्वारा स्वयं की जाती है। इसका उद्देश्य एजेंडा को लागू करने में मिली सफलताओं और चुनौतियों समेत इस संबंध में प्राप्त सभी अनुभवों को साझा करने की सुविधा प्रदान करना है।
- किसी देश द्वारा VNR तैयार करने की प्रक्रिया उससे संबंधित विभिन्न साझीदारों के लिये एक मंच प्रदान करती है, जिसमें विभिन्न हितधारकों की भागीदारी शामिल होती है।
- गौरतलब है कि नीति आयोग ने वर्ष 2017 में भारत का पहला स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR) तैयार किया और उसे इसी मंच पर प्रस्तुत किया गया था।
उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच (HLPF):
- उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच (HLPF) 17 सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में प्रगति की निरंतरता और समीक्षा के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मंच है।
- संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद (United Nations Economic and Social Council) के तत्वाधान में संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (HLPF) की जुलाई माह में आठ दिनों के लिये वार्षिक बैठक होती है।
- यह मंच सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु यह आवश्यक मार्गदर्शन और सिफारिशें प्रदान करता है।
सतत् विकास का अर्थ?
सतत् विकास लक्ष्य?
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स्रोत: पी.आई.बी
कृषि
धान-कृषि की निगरानी के लिये एप: पैडी वॉच
प्रीलिम्स के लिये:पैडी वॉच, ग्रुप ऑन अर्थ ऑब्ज़र्वेशन, GEOSS कार्यक्रम मेन्स के लिये:कृषि की वास्तविक समय निगरानी |
चर्चा में क्यों?
'यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी' (University of Sydney) तथा अन्य कुछ संस्थाओं के शोधकर्त्ता एक साथ मिलकर चावल के खेतों की 'वास्तविक-समय निगरानी मंच' (Real-time Monitoring Platform) के रूप में पैडी वॉच (Paddy watch) नामक एक एप विकसित कर रहे हैं।
प्रमुख बिंदु:
- यह परियोजना 'गूगल अर्थ' (Google Earth) और 'ग्रुप ऑन अर्थ ऑब्ज़र्वेशन' (Group on Earth Observations- GEO) के सहयोग से शुरू की गई है।
- एप के विकास में भारत, चीन, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देश भी सहयोग कर रहे हैं।
पैडी वॉच (Paddy watch):
- यह धान के खेत की 'वास्तविक समय पर निगरानी' करने वाला प्रथम एप है, जो धान के रोपण तथा कटाई की मात्रा के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करेगा।
- किसी फसल मौसम में कितनी धान की फसल का रोपण किया गया है, इसकी सटीक और अद्यतित जानकारी एप पर उपलब्ध होगी।
- इसके लिये 'गूगल अर्थ' के माध्यम से वास्तविक समय पर 'भू-उपयोग' का डेटा प्राप्त किया जाएगा जिसका एप निर्माण में सहयोगी देशों जैसे भारत, चीन, मलेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम में क्षेत्र आधारित अवलोकनों के द्वारा सत्यापित किया जाएगा।
एप का महत्त्व:
- सटीक जानकारी:
- एप के माध्यम से धान की रोपाई और काटे गए धान के बारे में सटीक और नवीनतम जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
- किसी फसल मौसम में चावल की फसल के अंतर्गत कितना कृषि क्षेत्र है, इसकी वास्तविक समय में निगरानी की जा सकेगी।
- खाद्य एवं जल सुरक्षा:
- 'गूगल अर्थ' और 'क्लाउड कंप्यूटिंग' तकनीक का उपयोग करके फसल की पैदावार और पानी की खपत का पूर्वानुमान किया जा सकेगा। संभावित उपज तथा जल उपयोग का पूर्वानुमान लगाने से ‘खाद्य सुरक्षा’ एवं ‘जल सुरक्षा’ का प्रबंधन करने में मदद मिलेगी।
- संयुक्त राष्ट्र के 'सतत विकास लक्ष्य'- 2 अर्थात 'ज़ीरो हंगर' (Zero Hunger) को प्राप्त करने में मदद करेगा।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन:
- धान के खेत मीथेन; जो की एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। एप के माध्यम से इस ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन तथा प्रभाव की निगरानी करने में मदद मिलेगी
- डिजिटल कृषि (Digital Agriculture):
- फसल की पैदावार और पानी की खपत का अनुमान लगाने के लिये एप द्वारा ‘डीप-लर्निंग तकनीक’ का प्रयोग किया जाएगा
- खेत से उपभोक्ता तक कृषि उत्पादन को एकीकृत करने के लिये डिजिटल तकनीक का उपयोग करना ही डिजिटल कृषि है।
- ये डिजिटल तकनीक कृषि क्षेत्र में वास्तविक समय पर सूचना देने का कार्य करती हैं। जिससे अधिक सटीक निर्णय लेने तथा उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलती है।
पृथ्वी अवलोकन पर समूह (Group on Earth Observations- GEO):
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स्रोत: डाउन टू अर्थ
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 14 जुलाई, 2020
भारत की पहली ई-लोक अदालत
हाल ही में COVID -19 प्रकोप के कारण प्रतिबंधित न्यायिक कार्य के बीच छत्तीसगढ़ में भारत की पहली राज्य स्तरीय ई-लोक अदालत की शुरुआत की गई। इसका उद्घाटन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी. आर. रामचंद्र मेनन द्वारा किया गया। इस दौरान राज्य के विभिन्न स्थानों पर लगभग 195 खंडपीठों का गठन किया गया और एक दिन में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कुल 2270 मामलों का निपटारा किया गया। आँकड़ों के अनुसार, रायपुर में कुल मामलों में से सबसे अधिक 515 मामले सुलझाए गए। ध्यातव्य है कि ई-लोक अदालत की यह नवीन अवधारणा, न्यायिक प्रणाली के लिये खासतौर पर मौजूदा COVID-19 के समय में काफी मददगार साबित हो सकती है। लोक अदालतें ऐसे मंच या फोरम होते हैं जहाँ मामलों का सौहार्दपूर्ण तरीके से निपटारा किया जाता है। यह सामान्य न्यायालयों से अलग होता है, क्योंकि यहाँ विवादित पक्षों के बीच परस्पर समझौते के माध्यम से विवादों का समाधान किया जाता है। हम कह सकते हैं कि मौजूदा लोक अदालतों की संकल्पना गांवों में लगने वाली पंचायतों पर आधारित हैं। लोक अदालतों का आयोजन राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा अन्य हितधारकों के साथ मिल कर किया जाता है। लोक अदालतों में सभी दीवानी मामले, वैवाहिक विवाद, नागरिक मामले, भूमि विवाद, मज़दूर विवाद, संपत्ति बँटवारे संबंधी विवाद, बीमा और बिजली संबंधी विवादों का निपटारा किया जाता है। विधि के तहत ऐसे अपराध जिनमें राजीनामा नहीं हो सकता तथा ऐसे मामले जहाँ संपत्ति का मूल्य एक करोड़ रुपए से अधिक है, का निपटारा लोक अदालतों में नहीं हो सकता है।
रोको-टोको अभियान
कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण को सीमित करने के लिये मध्यप्रदेश सरकार ने रोको-टोको अभियान (Roko -Toko Campaign) की शुरुआत की है, यह अभियान मुख्य रूप से उन लोगों के लिये संचालित किया जा रहा है, जो घर से बाहर जाते समय मास्क का प्रयोग नहीं करते हैं। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में सभी सार्वजनिक स्थानों पर मास्क का उपयोग करना अनिवार्य है। अब इस अभियान के तहत राज्य के चयनित स्वैच्छिक संगठन उन लोगों को मास्क प्रदान करेंगे जो सार्वजनिक स्थानों पर मास्क नहीं पहनते हैं और उन लोगों से इस संबंध में प्रति मास्क 20 रुपए का शुल्क भी वसूला जाएगा। इस संबंध में सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, ज़िला कलेक्टर इस कार्य के लिये ज़िले के स्वैच्छिक संगठनों का चयन करेगा। चयन करते समय स्वैच्छिक संगठन में उपलब्ध व्यक्तियों की संख्या, विश्वसनीयता और दक्षता को ध्यान में रखा जाएगा। दिशा-निर्देशों के अनुसार, ज़िला कलेक्टर ही इन स्वैच्छिक संगठनों को मास्क के वितरण के लिये उपयुक्त स्थान उपलब्ध कराएंगे। सभी चयनित संगठनों को 'जीवन शक्ति योजना' के तहत बनाए गए 100 मास्क प्रदान किये जाएंगे।
आंद्रेज़ डूडा
हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनावों में पोलैंड के मौजूदा राष्ट्रपति आंद्रेज़ डूडा (Andrzej Duda) लगातार दूसरी बार पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिये राष्ट्रपति के तौर पर चुने गए हैं। पोलैंड के रूढ़िवादी विचारों वाले दल के आंद्रेज़ डूडा को चुनावों में कुल 50.21 प्रतिशत मत प्राप्त हुए, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 48.79 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं। गौरतलब है कि पोलैंड मध्य यूरोप में स्थित एक देश है। यह पश्चिम में जर्मनी, दक्षिण में चेक गणराज्य और स्लोवाकिया, पूर्व में बेलारूस और यूक्रेन तथा उत्तर में रूस और बाल्टिक सागर से घिरा है। पोलैंड की आबादी 38.5 मिलियन से अधिक है और लगभग 312,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में रहती है। उल्लेखनीय है कि पोलैंड यूरोपियन यूनियन (EU) का छठा सबसे बड़ा देश है और यह वर्ष 2004 में इसमें शामिल हुआ है। भारत और पोलैंड ने वर्ष 1954 में राजनयिक संबंध स्थापित किये थे, जिससे वर्ष 1957 में पोलैंड में भारतीय दूतावास के उद्घाटन का मार्ग प्रशस्त हुआ। दोनों देशों की वैचारिक धारणाओं में काफी अधिक समानता है, जो कि मुख्य तौर पर उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नस्लवाद के विरोध पर आधारित है।
भारत का सबसे व्यापारिक भागीदार अमेरिका
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, अमेरिका लगातार दूसरी बार वित्तीय वर्ष 2019-20 में भी भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार देश बना रहा, जो कि दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों को दर्शाता है। संबंधित आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 में अमेरिका और भारत के बीच 88.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार किया गया, जो कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में 87.96 बिलियन डॉलर था, इस प्रकार बीते वर्ष के मुकाबले वर्ष 2019-20 में भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय व्यापार में बढ़ोतरी देखने को मिली है। अमेरिका उन चुनिंदा देशों में से एक है, जिनके साथ भारत का व्यापार अधिशेष है। गौरतलब है कि अमेरिका वित्तीय वर्ष 2018-19 में चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार देश बना था। आँकड़ों के अनुसार, चीन वित्तीय वर्ष 2013-14 से लेकर वित्तीय वर्ष 2017-18 तक भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार देश था। ध्यातव्य है कि बीते दिनों चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे में कमी देखने को मिली थी और वित्तीय वर्ष 2019-20 में यह घटकर 48.66 बिलियन डॉलर पर पहुँच गया है, जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 53.56 बिलियन डॉलर था।