भारतीय राजनीति
विध्वंसक अभियानों के खिलाफ कानून
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 300 A, 44वांँ संशोधन, UDHR, अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 21, ICESCR, मौलिक अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय, बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980), विशाका बनाम राजस्थान राज्य (1997), पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ ( 2017)। मेन्स के लिये:विध्वंसक अभियानों के खिलाफ कानून, निर्णय और मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
देश पिछले कुछ हफ्तों से विध्वंस अभियान का उन्माद देख रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300A में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "कानून के अधिकार के बिना किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा"।
- बुलडोज़र के माध्यम से त्वरित 'न्याय' सुनिश्चित करने का विचार उत्तर प्रदेश में उत्पन्न हुआ। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के विरोध में उत्तर प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने में कथित रूप से शामिल लोगों से हर्जाना वसूलने के आदेश पारित किये।
- राज्य सरकार का दावा है कि ये विध्वंस, अवैध अतिक्रमण के जवाब में हैं।
- हालाँकि तथ्य यह है कि ये मनमाने ढंग से विध्वंस एक विशेष समुदाय के कथित दंगाइयों के खिलाफ किये जा रहे हैं और इसका उद्देश्य दंगों में शामिल लोगों को सामूहिक रूप से सज़ा देना है।
- राज्य सरकार का दावा है कि ये विध्वंस, अवैध अतिक्रमण के जवाब में हैं।
विध्वंस अभियान कैसे समस्याग्रस्त:
- पर्याप्त आवास का अधिकार:
- आवास का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
- ICESCR:
- आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वार्ता (ICESCR) का अनुच्छेद 11.1 "पर्याप्त भोजन, कपड़े और आवास सहित अपने एवं अपने परिवार के लिये पर्याप्त जीवन स्तर, रहने की स्थिति में निरंतर सुधार के लिये सभी के अधिकार" को मान्यता देता है।
- इसके अलावा अनुच्छेद 11.1 के तहत पर्याप्त आवास के अधिकार जैसे इन अधिकारों की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये देश "उचित कदम" उठाने के लिये बाध्य हैं।
- ICESCR के तहत मान्यता प्राप्त अधिकारों को राज्यों द्वारा केवल तभी प्रतिबंधित किया जा सकता है जब कानून द्वारा इन अधिकारों की प्रकृति के अनुकूल और पूरी तरह से समाज के सामान्य कल्याण को बढ़ावा देने के लिये सीमाएँ निर्धारित की जाती हैं।
- हालाँकि वाचा में दिये गए अधिकारों जैसे पर्याप्त आवास के अधिकार पर लगाए गए किसी भी प्रतिबंध से इन अधिकारों का हनन नहीं हो सकता है।
- ICESCR इन्हें विशेष रूप से अनुच्छेद 5 में मान्यता देता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून की रूपरेखा:
- यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून ढाँचे के तहत एक अच्छी तरह से प्रलेखित अधिकार भी है, जो भारत पर बाध्यकारी है।
- उदाहरण के लिये मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि "हर किसी को अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर को बनाए रखने का अधिकार है, जिसमें भोजन, कपड़ा, आवास तथा चिकित्सा शामिल है।
- इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय कानून किसी व्यक्ति के संपत्ति के अधिकार में मनमाने हस्तक्षेप को भी प्रतिबंधित करता है।
- उदाहरण के लिये UDHR के अनुच्छेद 12 में कहा गया है कि "किसी की भी गोपनीयता, परिवार, घर या पत्राचार के साथ मनमाने ढंग से हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, न ही उसके सम्मान एवं प्रतिष्ठा पर हमला किया जाएगा"।
- अनुच्छेद 12 यह भी निर्धारित करता है कि "हर किसी को इस तरह के हस्तक्षेप या हमलों के खिलाफ कानून के तहत संरक्षण का अधिकार है"।
- यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून ढाँचे के तहत एक अच्छी तरह से प्रलेखित अधिकार भी है, जो भारत पर बाध्यकारी है।
- ICCPR:
- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र (ICCPR) के अनुच्छेद 17 में यह भी प्रावधान है कि प्रत्येक व्यक्ति को एकल एवं सामूहिक रूप से संपत्ति का अधिकार है और किसी को भी उसकी संपत्ति से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जाएगा।
- इस प्रकार किसी व्यक्ति की संपत्ति में मनमाना हस्तक्षेप करना ICCPR के नियमों का घोर उल्लंघन है।
- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र (ICCPR) के अनुच्छेद 17 में यह भी प्रावधान है कि प्रत्येक व्यक्ति को एकल एवं सामूहिक रूप से संपत्ति का अधिकार है और किसी को भी उसकी संपत्ति से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जाएगा।
संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम निर्णय 1985, (Olga Tellis vs Bombay Municipal Corporation judgment in 1985):
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि फुटपाथ पर रहने वालों को बिना तर्क के बल प्रयोग कर तथा उन्हें समझाने का मौका दिये बिना बेदखल करना असंवैधानिक है।
- यह उनके आजीविका के अधिकार (Right to Livelihood) का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि फुटपाथ पर रहने वालों को बिना तर्क के बल प्रयोग कर तथा उन्हें समझाने का मौका दिये बिना बेदखल करना असंवैधानिक है।
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978):
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे की व्याख्या करते हुए कहा कि "कानून की उचित प्रक्रिया" "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" का एक अभिन्न अंग है, यह समझाते हुए कि ऐसी प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और उचित एवं तर्कसंगत होनी चाहिये।
- यदि कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया काल्पनिक, दमनकारी और मनमानी प्रकृति की है तो इसे प्रक्रिया बिल्कुल नहीं माना जाना चाहिये तथा इस प्रकार अनुच्छेद 21 की सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जाएगा।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे की व्याख्या करते हुए कहा कि "कानून की उचित प्रक्रिया" "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" का एक अभिन्न अंग है, यह समझाते हुए कि ऐसी प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और उचित एवं तर्कसंगत होनी चाहिये।
- नगर निगम, लुधियाना बनाम इंद्रजीत सिंह (2008):
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि नगरपालिका कानून के तहत नोटिस देने का अधिकार प्रदान किया जाता है, तो इस अधिकार का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिये।
- देश के सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि कोई भी प्राधिकरण बिना नोटिस दिये तथा कब्ज़ा करने वालों को सुनवाई का अवसर दिये बिना, अवैध निर्माणों हेतु भी सीधे विध्वंस कार्य नही़ कर सकता है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय ने बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980), विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) जैसे मामलों में तथा हाल ही में प्रसिद्ध पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) में इस सिद्धांत को निर्धारित किया है कि संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों को पढ़ा और उनकी व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिये जो अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के साथ उनकी अनुरूपता को बढ़ाएगा।
आगे की राह
- यह उचित समय है कि भारत की संवैधानिक व्यवस्था के संरक्षक के रूप में न्यायपालिका कार्य करे और कार्यपालिका शक्ति के बेलगाम प्रयोग पर आवश्यक रोक लगाए।
- न्यायालयों को राष्ट्रवादी-लोकलुभावन विमर्श का मुकाबला करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानून का उपयोग करना चाहिये।
- आपराधिक कृत्य के दंडात्मक परिणाम के रूप में विध्वंस अभियान का औचित्य पूरी तरह से आपराधिक न्याय के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है।
- विध्वंस अभियानों का संचालन एक प्रतिशोधी उपाय के रूप में यहांँ तक कि हिंसा को रोकने के लिये घोषित उद्देश्य के साथ तोड़-फोड़ करना कानून के शासन के सिद्धांत का उल्लंघन है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्षो के प्रश्न:प्रश्न. भारत के संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के अधिकार की रक्षा करता है? (2019) (a) अनुच्छेद 19 उत्तर: (b) व्याख्या:
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स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
बायोमास को-फायरिंग
प्रिलिम्स के लिये:बायोमास और इसके लाभ, डीकार्बोनाइज़ेशन, ग्रीनहाउस गैस। मेन्स के लिये:बायोमास को-फायरिंग, महत्त्व और चुनौतियांँ। |
चर्चा में क्यों?
कृषि अवशेषों से निर्मित बायोमास पटियों (पैलेट) की कमी के चलते ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले के साथ बायोमास की सह-फायरिंग/को-फायरिंग हेतु विद्युत मंत्रालय द्वारा दिये गए निर्देश के कार्यान्वयन की गति धीमी हुई है।
- केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने फरवरी 2022 में केंद्रीय बज़ट पेश करते हुए देश के प्रत्येक ताप विद्युत संयंत्र में 5-10% को-फायरिंग अनिवार्य कर दी थी।
- बायोमास पेलट एक लोकप्रिय प्रकार का बायोमास ईंधन है, जो आमतौर पर लकड़ी के अवशेष, कृषि बायोमास, वाणिज्यिक घास और वानिकी अवशेषों से बनाया जाता है।
बायोमास:
- परिचय:
- बायोमास पौधे या पशु अपशिष्ट है जिसे विद्युत या ऊष्मा उत्पन्न करने के लिये ईधन के रूप में जलाया जाता है। उदाहरण लकड़ी, फसलें और जंगलों, यार्डों या खेतों से निकलने वाले अपशिष्ट।
- बायोमास हमेशा से देश के लिये महत्त्वपूर्ण एवं लाभदायक ऊर्जा स्रोत रहा है।
- लाभ:
- यह नवीकरणीय, व्यापक रूप से उपलब्ध, कार्बन-तटस्थ है और इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रोज़गार प्रदान करने की क्षमता है।
- यह दृढ़ रूप से ऊर्जा प्रदान करने में भी सक्षम है। देश में कुल प्राथमिक ऊर्जा उपयोग का लगभग 32% अभी भी बायोमास से ही प्राप्त होता है तथा देश की 70% से अधिक आबादी अपनी ऊर्जा आवश्यता हेतु इस पर निर्भर है।
- बायोमास विद्युत और सह उत्पादन कार्यक्रम:
- परिचय:
- इस कार्यक्रम को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है।
- कार्यक्रम के तहत बायोमास के कुशल उपयोग के लिये चीनी मिलों में खोई आधारित सह उत्पादन और बायोमास विद्युत उत्पादन शुरू किया गया है।
- विद्युत उत्पादन के लिये उपयोग की जाने वाली बायोमास सामग्री में चावल की भूसी, पुआल, कपास के डंठल, नारियल के गोले, सोया भूसी, डी-ऑयल केक, कॉफी अपशिष्ट, जूट अपशिष्ट, मूंँगफली के छिलके आदि शामिल हैं।
- उद्देश्य:
- ग्रिड विद्युत उत्पादन हेतु देश के बायोमास संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिये प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
- परिचय:
बायोमास को-फायरिंग:
- परिचय:
- बायोमास को-फायरिंग कोयला थर्मल संयंत्रों में बायोमास के साथ ईंधन के एक हिस्से को प्रतिस्थापित करने की विधि है।
- बायोमास को-फायरिंग द्वारा उच्च दक्षता वाले कोयला बॉयलरों में बायोमास को आंशिक स्थानापन्न ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
- कोयले को जलाने के लिये डिज़ाइन किये गए बॉयलरों में कोयले और बायोमास का एक साथ दहन किया जाता है। इस उद्देश्य हेतु मौजूदा कोयला विद्युत संयंत्र का आंशिक रूप से पुनर्निर्माण और पुनर्संयोजित किया जाना है।
- को-फायरिंग एक कुशल और स्वच्छ तरीके से बायोमास को बिजली में बदलने और बिजली संयंत्र के ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने का एक विकल्प है।
- बायोमास को-फायरिंग कोयले को डीकार्बोनाइज़ करने के लिये विश्व स्तर पर स्वीकृत एक लागत प्रभावी तरीका है।
- भारत एक ऐसा देश है जहांँ आमतौर पर बायोमास को खेतों में जला दिया जाता है, जो आसानी से उपलब्ध एक बहुत ही सरल समाधान का उपयोग करके स्वच्छ कोयले की समस्या को हल करने के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।
- महत्त्व:
- बायोमास को-फायरिंग फसल अवशेषों को खुले में जलाने से होने वाले उत्सर्जन को रोकने का एक प्रभावी तरीका है; यह कोयले का उपयोग करके बिजली उत्पादन की प्रक्रिया को भी डीकार्बोनाइज करता है।
- कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में बायोमास के साथ 5-7% कोयले को प्रतिस्थापित करने से 38 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की बचत हो सकती है।
- यह जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्सर्जन में कटौती करने में मदद कर सकता है, कुछ हद तक कृषि पराली जलाने की भारत की बढ़ती समस्या का समाधान कर सकता है, ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार पैदा करते हुए कचरे के बोझ को कम कर सकता है।
- भारत में अधिक बायोमास उपलब्धता के साथ-साथ कोयले से चलने वाली क्षमता में तेजी से वृद्धि हुई है।
- बायोमास को-फायरिंग फसल अवशेषों को खुले में जलाने से होने वाले उत्सर्जन को रोकने का एक प्रभावी तरीका है; यह कोयले का उपयोग करके बिजली उत्पादन की प्रक्रिया को भी डीकार्बोनाइज करता है।
- चुनौतिंयांँ:
- कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में बायोमास के साथ 5-7% कोयले को प्रतिस्थापित करने से 38 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की बचत हो सकती है, लेकिन मौजूदा बुनियादी ढांँचा इसे वास्तविकता में बदलने के लिये पर्याप्त मज़बूत नहीं है।
- को-फायरिंग के लिये प्रतिदिन लगभग 95,000-96,000 टन बायोमास पैलेट की आवश्यकता होती है, लेकिन देश में 228 मिलियन टन अतिरिक्त कृषि अवशेष उपलब्ध होने के बावजूद भारत की पैलेट निर्माण क्षमता वर्तमान में 7,000 टन प्रतिदिन है।
- यह बड़ा अंतर उपयोगिता को मौसमी उपलब्धता और बायोमास पैलेट की अविश्वसनीय आपूर्ति के कारण है।
- बायोमास पैलेट को संयंत्र स्थलों पर लंबे समय तक संग्रहीत करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वे वायु से नमी को जल्दी अवशोषित करते हैं, जिससे उन्हें को-फायरिंग के लिये बेकार कर दिया जाता है।
- कोयले के साथ दहन के लिये केवल 14% नमी वाले पैलेट का उपयोग किया जा सकता है।
अन्य संबंधित पहल:
- कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास के उपयोग पर राष्ट्रीय मिशन
- कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज
- कोल बेनिफिकेशन
आगे की राह
- बिजली संयंत्रों में पैलेट निर्माण और को-फायरिंग के इस व्यवसाय मॉडल में किसानों की आंतरिक भूमिका सुनिश्चित करने के लिये प्लेटफॉर्मों की स्थापना की आवश्यकता है।
- प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बिना को-फायरिंग क्षमता का दोहन करने के लिये उभरती अर्थव्यवस्थाओं को प्रौद्योगिकी और नीति तैयार करने की आवश्यकता है।
- मिट्टी और जल संसाधनों की सुरक्षा, जैवविविधता, भूमि आवंटन और कार्यकाल, खाद्य कीमतों सहित जैव ऊर्जा के लिये स्थिरता संकेतकों को नीतिगत उपायों में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
वृक्ष-प्रत्यारोपण
प्रिलिम्स के लिये:सीएजी, वृक्ष प्रत्यारोपण पद्धति। मेन्स के लिये:संरक्षण, पर्यावरण पर वृक्ष प्रत्यारोपण की विफलता का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor-General of India- CAG) ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में बताया है कि बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC), महाराष्ट्र द्वारा प्रतिरोपित पौधों में से केवल 54% ही जीवित बचे हैं।
- लेखापरीक्षा से पता चला कि मुंबई में प्रतिरोपित पौधों में से जीवित पौधों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत (80%) से काफी कम था।
प्रमुख बिंदु
वृक्ष प्रत्यारोपण के बारे में:
- प्रत्यारोपण या रीप्लांटिंग (Replanting) एक कृषि क्षेत्र या बगीचे में पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने की प्रक्रिया है।
- वृक्ष प्रत्यारोपण के माध्यम से पौधों को लंबे समय तक बढ़ने हेतु मौसम के अनुकूल ढालना है।
- पौधों की खेती पहले घर के अंदर की जा सकती है और मौसम अनुकूल होने पर उन्हें बाहर स्थांतरित कर दिया जाता है।
- ट्री स्पेड मशीन (Tree Spade Machine) एक विशेष प्रकार की मशीन है जो बड़े पौधों के प्रत्यारोपण को यंत्रीकृत करती है।
- बड़े वृक्षों की रूट बॉल को खोदने, लपेटने या बॉक्सिंग कर उन्हें ट्रक द्वारा परिवहन करने की आवश्यकता हो सकती है।
- अक्तूबर 2020 में दिल्ली सरकार ने शहर में विकास कार्यों के कारण पेड़ों की कटाई को रोकने के लिये एक वृक्ष प्रत्यारोपण नीति को मंज़ूरी दी।
- इस नीति के तहत संबंधित एजेंसियों को परियोजनाओं से प्रभावित 80% पेड़ों को एक नए स्थान पर ट्रांसप्लांट करने के लिये कहा गया है।
- इस नीति के तहत 10 पौधे लगाए जाने के साथ-साथ जड़ से खोदकर निकाले गए पेड़ को काटने के बजाय किसी अन्य स्थान पर वैज्ञानिक रूप से प्रत्यारोपित किया जाना है।
वृक्ष प्रत्यारोपण के लाभ:
- युवा पौधों को परिपक्व होने तक बीमारियों और कीटों से बचाने के लिये यह एक अच्छी विधि है।
- इस विधि से पौधे की सीधी रोपाई करके बीजों के अंकुरण की समस्या से बचा जा सकता है।
- यह अपेक्षाकृत सुविधाजनक लेकिन कम किफायती तकनीक है।
- खरीदे गए पौधे को तुरंत ज़मीन में या कंटेनर में उगाने के लिये लगाने से हमारे बागवानी कार्यों का एक बोझिल चरण समाप्त हो जाता है।.
- कई पार्कों और झीलों के किनारों को परिपक्व पेड़ों को प्रत्यारोपित करके तुरंत हरियालीयुक्त किया जा सकता है।
- पौधों की तुलना में परिपक्व पेड़ बहुत अधिक पारिस्थितिकी सेवाएंँ प्रदान करते हैं।
- विकास परियोजनाओं के कारण पुराने पेड़ों का प्रत्यारोपण उन्हें बचाने में मदद कर सकता है।
वृक्ष प्रत्यारोपण से जुड़ी चिंताएंँ:
- CAG ने अपनी रिपोर्ट में प्रतिरोपित वृक्षों के कम जीवित रहने की दर के बारे में कुछ चिंताओं का उल्लेख किया है।
- प्रत्यारोपित वृक्षों के मामले में उचित सुरक्षा और रखरखाव की कमी देखी जाती है।
- वृक्ष प्रतिरोपण की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिये उचित अवसंरचना उपलब्ध नहीं है।
- BMC,s द्वारा नियुक्त ठेकेदारों द्वारा किये गए वृक्षारोपण की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है।
- CAG के अनुसार, प्रतिरोपण में उपयोग की जाने वाली पद्धति अवैज्ञानिक है।
- एक और समस्या यह है कि सभी प्रकार के वृक्षों का प्रत्यारोपण नहीं किया जा सकता है। पीपल, गूलर, सेमल एवं शीशम प्रत्यारोपण के प्रति सहनशील हैं, जबकि ढाक, पलाश, अर्जुन, शहतूत तथा झिलमिल जैसे वृक्ष नहीं
- मूसला जड़ प्रणाली वाले किसी भी वृक्ष को प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इनकी जड़ मिट्टी में गहराई तक जाती है और बिना क्षति के इसे अलग करना संभव नहीं है।
- मृदा का प्रकार भी प्रत्यारोपण से पहले एक महत्त्वपूर्ण कारक है। दिल्ली रिज पर उगने वाला पेड़ यमुना बाढ़ के मैदान में मृदा के लिये अनुकूल नहीं होगा, क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र अलग है।
आगे की राह
- पेड़ों के प्रत्यारोपण की पूरी प्रक्रिया की उत्पादकता और दक्षता में सुधार के लिये संबंधित प्राधिकारी द्वारा उचित दंड प्रक्रियाओं को अपनाया जाना चाहिये।
- BMC द्वारा अनुचित वृक्षारोपण करने वाले ठेकेदारों पर 5.1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है।
- नागरिक प्राधिकरण को उचित वृक्ष प्रत्यारोपण के लिये एजेंसियों को अनुभवी बागवानों को नियुक्त करने का आदेश देना चाहिये।
- पेड़ों के अस्तित्व में सुधार हेतु बेहतर बुनियादी ढांँचे के लिये तकनीकी नवाचार प्राथमिक चिंता का विषय है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
आंतरिक सुरक्षा
SIPRI इयरबुक 2022
प्रिलिम्स के लिये:रिपोर्ट की मुख्य बातें मेन्स के लिये:सैन्य खर्च और संबंधित चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) द्वारा ‘SIPRI ईयरबुक 2022’ रिपोर्ट जारी की गई, जो हथियारों, निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की वर्तमान स्थिति का आकलन करती है।
SIPRI :
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जो युद्ध, आयुध, हथियार नियंत्रण व नि:शस्त्रीकरण में अनुसंधान के लिये समर्पित है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1966 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुई थी।
- यह नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया एवं जागरूक नागरिकों को पारदर्शी स्रोतों के आधार पर डेटा, डेटा विश्लेषण एवं सिफारिशें प्रदान करता है।
मुख्य बिंदु:
- परमाणु हथियार:
- वैश्विक परिदृश्य:
- नौ परमाणु हथियार संपन्न देश- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांँस, चीन, भारत, पाकिस्तान, इज़रायल और डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (उत्तर कोरिया) - अपने परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण जारी रखे हैं, हालांँकि जनवरी 2021 और जनवरी 2022 के बीच परमाणु हथियारों की कुल संख्या में थोड़ी गिरावट आई है, लेकिन संभवतः अगले दशक में यह संख्या बढ़ेगी।
- भारत:
- जनवरी 2022 तक भारत के पास 160 परमाणु हथियार थे और ऐसा लगता है कि यह अपने परमाणु शस्त्रागार का विस्तार कर रहा है।
- परमाणु हथियार मिसाइल या टारपीडो के विस्फोटक सिर होते हैं जो परमाणु ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
- भारत का परमाणु भंडार जनवरी 2021 में 156 से बढ़कर जनवरी 2022 में 160 हो गया।
- जनवरी 2022 तक भारत के पास 160 परमाणु हथियार थे और ऐसा लगता है कि यह अपने परमाणु शस्त्रागार का विस्तार कर रहा है।
- चीन:
- जनवरी 2021 की तरह ही जनवरी 2022 में भी चीन के पास 350 परमाणु हथियार थे।
- भारत अपने परमाणु शस्त्रागार पर आधिकारिक डेटा साझा नहीं करता है।
- जनवरी 2021 की तरह ही जनवरी 2022 में भी चीन के पास 350 परमाणु हथियार थे।
- रूस और अमेरिका के पास कुल मिलाकर 90% से अधिक परमाणु हथियार हैं।
- वैश्विक परिदृश्य:
- प्रमुख हथियारों के आयातक:
- SIPRI ने 2016-20 में 164 राज्यों को प्रमुख हथियारों के आयातक के रूप में चिह्नित किया।
- देशवार:
- पांँच सबसे बड़े हथियार आयातक सऊदी अरब, भारत, मिस्र, ऑस्ट्रेलिया और चीन थे, जो कुल हथियारों के आयात का 36% हिस्सा आयात करते थे।
- क्षेत्रवार:
- 2016-20 में प्रमुख हथियारों की आपूर्ति की सबसे बड़ी मात्रा प्राप्त करने वाला क्षेत्र एशिया और ओशिनिया था, जो वैश्विक कुल आपूर्ति का 42% था, इसके बाद मध्य-पूर्व जिसने 33% हथियार प्राप्त किये।
- प्रमुख हथियारों के आपूर्तिकर्त्ता:
- वर्ष 2016 से वर्ष 2020 में पाच सबसे बड़े आपूर्तिकर्त्ता देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, फ्रांँस, जर्मनी और चीन की प्रमुख हथियारों के निर्यात में कुल 76% हिस्सेदारी रही।
परमाणु कूटनीति में महत्त्वपूर्ण कदम:
- परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW):
- आवश्यक 50 देशों का अनुसमर्थन प्राप्त करने के बाद जनवरी 2021 में परमाणु हथियार निषेध (Treaty on the Prohibition of Nuclear Weapons- TPNW) संधि लागू हुई।
- न्यू स्टार:
- यूएस-रूस हथियार नियंत्रण समझौता न्यू स्टार्ट संधि को पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया था।
- संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA):
- संयुक्त राज्य अमेरिका के पुनः ईरान परमाणु समझौते, संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) के अनुपालन में लौटने पर बातचीत की शुरुआत में पुनः शामिल होना।
- परमाणु हथियारों के अप्रसार पर संधि:
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के परमाणु-सशस्त्र स्थायी सदस्यों (P5) ने परमाणु हथियारों के अप्रसार पर 1968 की संधि के तहत अप्रसार, निरस्त्रीकरण और हथियार नियंत्रण समझौतों एवं प्रतिज्ञाओं के साथ-साथ अपने दायित्वों का पालन करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
परमाणु कूटनीति में बाधाएँ:
- सभी P5 सदस्य अपने परमाणु शस्त्रागार का विस्तार या आधुनिकीकरण करना जारी रखे हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपनी सैन्य रणनीतियों में परमाणु हथियारों के महत्त्व को बढ़ा रहे हैं।
- रूस ने यूक्रेन में युद्ध के संदर्भ में संभावित परमाणु हथियारों के उपयोग के बारे में खुली धमकी भी दी है।
- युद्ध के कारण द्विपक्षीय रूस-यूएसए रणनीतिक स्थिरता वार्ता रुक गई है और कोई भी अन्य परमाणु- संपन्न राज्य हथियार नियंत्रण वार्ता को नहीं मान रहा है।
- इसके अलाव, UNSC के P5 सदस्यों ने TPNW के विरोध में आवाज़ उठाई है और JCPOA वार्ता अभी तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँची है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सेवा वितरण आकलन 2021
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सेवा वितरण आकलन 2021, दरबार संचालन की परंपरा मेन्स के लिये:सेवा वितरण, सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग, कुशल प्रशासन |
चर्चा में क्यों?
कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सेवा वितरण आकलन 2021 (National e-Governance Service Delivery Assessment- NeSDA 2021) का दूसरा संस्करण जारी किया हैे।
- जम्मू-कश्मीर ई-गवर्नेंस सेवाओं के वितरण में भारत के सभी केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे ऊपर है, जिसने इसे सालाना लगभग 200 करोड़ रुपए बचाने में सक्षम बनाया है, यह दो राजधानी शहरों- जम्मू और श्रीनगर के बीच वार्षिक दरबार संचालन के दौरान फाइलों की आवाजाही पर खर्च किया गया था।
NeSDA 2021:
- परिचय:
- डिजिटल सरकार को उत्कृष्ट बनाने के लिये प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत विभाग (DARPG) द्वारा राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस सेवा वितरण आकलन (NeSDA) पहल शुरू की गई है।
- UNDESA ई-गवर्नमेंट सर्वे (UN ई-गवर्नमेंट सर्वे 2020, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा वर्ष 2001 से) के ऑनलाइन सेवा सूचकांक (Online Service Index- OSI) के आधार पर अगस्त 2018 में NeSDA की शुरुआत की गई थी।
- यह NeSDA का दूसरा संस्करण है, पहला संस्करण 2019 में लॉन्च किया गया था।
- NeSDA फ्रेमवर्क:
- इस फ्रेमवर्क में छह क्षेत्रों को शामिल किया गया है अर्थात् वित्त, श्रम और रोज़गार, शिक्षा, स्थानीय सरकार तथा उपयोगिताएँ, समाज कल्याण (कृषि एवं स्वास्थ्य सहित) व पर्यावरण (अग्नि सहित) क्षेत्र।
- फ्रेमवर्क इन छह क्षेत्रों में G2B (गवर्नमेंट टू बिज़नेस) और G2C (गवर्नमेंट टू सिटिज़न) प्रावधानों के तहत सेवाओं को कवर करता है।
- NeSDA 2021 के दौरान राज्य/संघ राज्य क्षेत्र स्तर पर अतिरिक्त 6 अनिवार्य सेवाओं और केंद्रीय मंत्रालय स्तर पर 4 सेवाओं का मूल्यांकन किया जाएगा।
- NeSDA फ्रेमवर्क ने मुख्य रूप से सभी सेवा पोर्टलों (राज्य / केंद्रशासित प्रदेश और केंद्रीय मंत्रालय के सेवा पोर्टल) का 7 प्रमुख मापदंडों पर मूल्यांकन किया। NeSDA 2021 में अतिरिक्त 6 मापदंडों को शामिल करने के लिये फ्रेमवर्क को विस्तृत किया गया है।
- मूल्यांकन किये गए पोर्टलों को दो श्रेणियों में से एक में वर्गीकृत किया गया था।
- राज्य/केंद्रशासित प्रदेश/केंद्रीय मंत्रालय पोर्टल, संबंधित सरकार का नामित पोर्टल जो सूचना और सेवा लिंक के लिये सिंगल विंडो एक्सेस प्रदान करता है, पहली श्रेणी है।
- दूसरी श्रेणी में राज्य/संघ राज्य क्षेत्र/केंद्रीय मंत्रालय सेवा पोर्टल शामिल हैं जो सेवाओं के डिजिटल वितरण पर ध्यान केंद्रित करते हैं और सेवा से संबंधित जानकारी प्रदान करते हैं।
- इस फ्रेमवर्क में छह क्षेत्रों को शामिल किया गया है अर्थात् वित्त, श्रम और रोज़गार, शिक्षा, स्थानीय सरकार तथा उपयोगिताएँ, समाज कल्याण (कृषि एवं स्वास्थ्य सहित) व पर्यावरण (अग्नि सहित) क्षेत्र।
- NeSDA 2021 का आकलन:
- केंद्रीय मंत्रालय के 6 पोर्टल के स्कोर में सुधार हुआ है, जबकि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में, राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों के 28 पोर्टल में एवं राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सेवा के 22 पोर्टल के स्कोर में सुधार हुआ है।
- राज्य/संघ राज्य क्षेत्र पोर्टल की श्रेणी में समूह A राज्यों में केरल शीर्ष पर, जबकि क्रमशः तमिलनाडु और पंजाब ने सबसे ज़्यादा प्रगति की है।
- समूह B राज्यों में ओडिशा शीर्ष पर है एवं उसके बाद उत्तर प्रदेश और बिहार का स्थान आता है।
- पूर्वोत्तर राज्यों में क्रमशः नगालैंड, मेघालय और असम शीर्ष पर हैं।
- केंद्रशासित प्रदेशों में जम्मू-कश्मीर शीर्ष पर है, उसके बाद क्रमशः अंडमान और निकोबार, पुद्दुचेरी, दिल्ली व चंडीगढ़ का स्थान आता है।
- जम्मू और कश्मीर दरबार संचालन:
- 30 जून, 2021 को जम्मू और कश्मीर में दरबार संचालन के रूप में जानी जाने वाली 149 वर्ष पुरानी परंपरा का अंत हो गया। दरबार मूव एक द्विवार्षिक अभ्यास था जिसमें सरकार श्रीनगर और जम्मू की दो राजधानियों में से प्रत्येक में छह-छह महीने तक काम करती हैं।
- राजधानियों को बदलने की परंपरा की शुरुआत वर्ष 1872 में महाराजा रणबीर सिंह ने की थी।
- दरबार संचालन की समाप्ति के कारण हुई शासन सुविधा क्षतिपूर्ति को पूरा करने हेतु जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश की सरकार तथा भारत सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर दोनों के लिये ई-गवर्नेंस और अलग सचिवालय पर ध्यान केंद्रित किया।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
जल जीवन मिशन
प्रिलिम्स के लिये:जल जीवन मिशन (ग्रामीण और शहरी) मेन्स के लिये:ग्रामीण भारत के विकास में जल जीवन मिशन का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने घोषणा की कि 50% से अधिक ग्रामीण घरों में नल के पानी की आपूर्ति की जा रही है।
जल जीवन मिशन:
- परिचय:
- वर्ष 2019 में लॉन्च किया गया यह मिशन वर्ष 2024 तक ‘कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन’ (FHTC) के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर पानी की आपूर्ति की परिकल्पना करता है।
- जल जीवन मिशन का उद्देश्य जल को आंदोलन के रूप में विकसित करना है, ताकि इसे लोगों की प्राथमिकता बनाया जा सके।
- यह मिशन ‘जल शक्ति मंत्रालय’ के अंतर्गत आता है।
- उद्देश्य:
- यह मिशन मौजूदा जल आपूर्ति प्रणालियों और पानी के कनेक्शन की कार्यक्षमता सुनिश्चित करता है; पानी की गुणवत्ता की निगरानी एवं परीक्षण के साथ-साथ सतत् कृषि को भी बढ़ावा देता है।
- यह संरक्षित जल के संयुक्त उपयोग; पेयजल स्रोत में वृद्धि, पेयजल आपूर्ति प्रणाली, धूसर जल उपचार और इसके पुन: उपयोग को भी सुनिश्चित करता है।
- विशेषताएँ:
- जल जीवन मिशन (JJM) स्थानीय स्तर पर पानी की मांग और आपूर्ति पक्ष के एकीकृत प्रबंधन पर केंद्रित है।
- वर्षा जल संचयन, भू-जल पुनर्भरण और पुन: उपयोग के लिये घरेलू अपशिष्ट जल के प्रबंधन जैसे अनिवार्य उपायों हेतु स्थानीय बुनियादी ढाँचे का निर्माण विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों/योजनाओं के साथ अभिसरण में किया जाता है।
- यह मिशन जल के सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है तथा मिशन के प्रमुख घटक के रूप में व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार शामिल हैं।
- कार्यान्वयन:
- जल समितियाँ ग्राम जल आपूर्ति प्रणालियों की योजना, क्रियान्वयन, प्रबंधन, संचालन और रखरखाव करती हैं।
- इनमें 10-15 सदस्य होते हैं, जिनमें कम-से-कम 50% महिला सदस्य एवं स्वयं सहायता समूहों के अन्य सदस्य, मान्यता प्राप्त सामाजिक और स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा), आंँगनवाड़ी, शिक्षक आदि शामिल होते हैं।
- समितियाँ सभी उपलब्ध ग्राम संसाधनों को मिलाकर एक बारगी ग्राम कार्ययोजना तैयार करती हैं। योजना को लागू करने से पहले इसे ग्राम सभा द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
- जल समितियाँ ग्राम जल आपूर्ति प्रणालियों की योजना, क्रियान्वयन, प्रबंधन, संचालन और रखरखाव करती हैं।
- फंडिंग पैटर्न:
- केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग पैटर्न हिमालय तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये 90:10, अन्य राज्यों के लिये 50:50 है जबकि केंद्रशासित प्रदेशों के मामलों में शत प्रतिशत योगदान केंद्र द्वारा किया जाता है।
JJM की प्रगति :
- JJM डैशबोर्ड के अनुसार, 10 जून, 2022 तक देश भर में लगभग 9.65 करोड़ घरों (50.38%) के पास नल के पानी के कनेक्शन हैं।
- राज्य स्तर पर गोवा, तेलंगाना और हरियाणा ने राज्य के सभी परिवारों को 100% नल कनेक्टिविटी प्रदान की है।
- पुद्दूचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन व दीव जैसे केंद्रशासित प्रदेशों ने भी 100% घरों को नल के जल के कनेक्शन प्रदान किये हैं।
- 90% से अधिक कार्यात्मक घरेलू शौचालय कवरेज (FHTC) वाले राज्य हैं- पंजाब (99.72%), गुजरात (95.91%), हिमाचल प्रदेश (93.05%) और बिहार (92.74%)।
- सबसे कम FHTC वाले राज्य हैं- राजस्थान (24.87%), छत्तीसगढ़ (23.10%), झारखंड (20.57%) और उत्तर प्रदेश (13.86%)।
जल जीवन मिशन (शहरी)
वित्तीय वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में सतत् विकास लक्ष्य-6 (SDG-6) के अनुसार, सभी शहरों में कार्यात्मक नल के माध्यम से घरों में पानी आपूर्ति की सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करने हेतु केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत जल जीवन मिशन (शहरी) योजना की घोषणा की गई है।
- यह जल जीवन मिशन (ग्रामीण) का पूरक है जिसके तहत वर्ष 2024 तक कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) के माध्यम से सभी ग्रामीण घरों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर जल की आपूर्ति की परिकल्पना की गई है।
- जल जीवन मिशन (शहरी) का उद्देश्य:
- नल और सीवर कनेक्शन तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- जल निकायों का पुनरुत्थान।
- चक्रीय जल अर्थव्यवस्था की स्थापना।