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जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बन कैप्चर और यूटिलाइज़ेशन टेक्नोलॉजीज़

  • 25 Feb 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

CCUS टेक्नोलॉजीज, पेरिस समझौता।

मेन्स के लिये:

CCUS टेक्नोलॉजी एवं इसके अनुप्रयोग, वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन, पर्यावरण क्षरण, संरक्षण।

चर्चा में क्यों? 

रेडबौड विश्वविद्यालय द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, अधिकांश कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइज़ेशन एंड स्टोरेज (Carbon Capture and Utilisation and Storage- CCUS) टेक्नोलॉजीज़ जो वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित कर इसे ईंधन या अन्य मूल्यवान उत्पादों में परिवर्तित करती है, वर्ष 2050 तक विश्व को शुद्ध शून्य उत्सर्जन/नेट ज़ीरो  एमिशन (Net Zero Emissions) के लक्ष्य तक पहुंँचाने में विफल हो सकती हैं।

  • अध्ययन में बताया गया है कि इन प्रणालियों में से अधिकांश ऊर्जा गहन हैं जिसके परिणामस्वरूप उत्पन्न उत्पाद वातावरण में CO2 का उत्सर्जन कर सकते हैं।
  • 'नेट ज़ीरो उत्सर्जन' से तात्पर्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHGs) उत्पादन और वायुमंडल के बाह्य क्षेत्र के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच एक समग्र संतुलन प्राप्त करना है।

प्रमुख बिंदु 

CCUS के बारे में:

  • कार्बन कैप्चर, यूटिलाइज़ेशन और स्टोरेज (CCUS) में फ्लू गैस (चिमनियों या पाइप से निकलने वाली गैसें) और वातावरण से CO2 को हटाने के तरीकों एवं प्रौद्योगिकियों को शामिल किया गया है। इसके बाद CO2 को उपयोग करने के लिये उसका पुनर्चक्रण तथा सुरक्षित और स्थायी भंडारण विकल्पों का निर्धारण किया जाता है।
  •  CO2 को CCUS का उपयोग करके ईंधन (मीथेन और मेथनॉल), रेफ्रिजरेंट और निर्माण संबंधित सामग्री में परिवर्तित किया जाता है।
    • संचय की गई गैस का उपयोग सीधे आग बुझाने वाले यंत्रों, फार्मा, खाद्य और पेय उद्योगों के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में भी किया जाता है।
  • CCUS प्रौद्योगिकियाँ नेट ज़ीरो लक्ष्यों को पूरा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, जिसमें भारी उद्योगो से उत्सर्जित कार्बन से निपटने और वातावरण से कार्बन को हटाने से संबंधित कुछ समाधान शामिल है।
  • CCUS को वर्ष 2030 तक देशों को अपने उत्सर्जन को आधा करने तथा वर्ष 2050 तक नेट ज़ीरो के लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण उपकरण माना जाता है।
    • यह ग्लोबल वार्मिंग को 2 °C (डिग्री सेल्सियस) तक सीमित रखने के लिये पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने हेतु महत्त्वपूर्ण है, साथ ही पूर्व-औद्योगिक स्तरों पर 1.5 डिग्री सेल्सियस के लिये बेहतर भूमिका निभा सकती है।

CCUS के अनुप्रयोग:

  • जलवायु परिवर्तन को कम करना:  CO2 उत्सर्जन की दर को कम करने के लिये वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और ऊर्जा कुशल प्रणालियों को अपनाने के बावजूद जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को सीमित करने के लिये वातावरण में CO2  की संचयी मात्रा को कम करने की आवश्यकता है।
  • कृषि: ग्रीनहाउस वातावरण में फसल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये पौधों और मिट्टी जैसे बायोजेनिक स्रोतों से CO2  का संचय किया जा सकता है।
  • औद्योगिक उपयोग: पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुकूल निर्माण सामग्री के लिये स्टील निर्माण प्रक्रिया का एक औद्योगिक उपोत्पाद (स्टील स्लैग के साथ CO2  का संयोजन)।
  • बढ़ी हुई तेल रिकवरी: CCU प्रौद्योगिकी का उपयोग पहले से ही भारत में किया जा रहा है। उदाहरण के लिये ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन ने CO2  को इंजेक्ट करके एन्हांस्ड ऑयल रिकवरी (EOR) हेतु इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

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सीसीयूएस से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • महँगा: कार्बन कैप्चर में सॉर्बेंट्स का विकास शामिल है जो प्रभावी रूप से ग्रिप गैस या वातावरण में मौजूद CO2 के संयोजन से हो सकता है, यह अपेक्षाकृत महँगी प्रक्रिया है।
  • पुनर्नवीनीकृत CO2 की कम मांग: CO2 को व्यावसायिक महत्त्व के उपयोगी रसायनों में परिवर्तित करना या CO2 का उपयोग तेल निष्कर्षण या क्षारीय औद्योगिक कचरे के उपचार के लिये करना, इस ग्रीनहाउस गैस के मूल्य में वृद्धि कर देगा।
  • CO2 की विशाल मात्रा की तुलना में मांग सीमित है, इसे वातावरण से हटाने की आवश्यकता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के हानिकारक पर्यावरणीय प्रभावों को कम किया जा सके।

आगे की राह

  • कार्बन के भंडारण के लिये कोई भी व्यवहार्य प्रणाली प्रभावी एवं लागत प्रतिस्पर्द्धी, दीर्घकालिक भंडारण के रूप में स्थिर एवं पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिये।
  • देशों को उन चुनिंदा तकनीकों पर ज़ोर देना चाहिये, जो अधिक निवेश आकर्षित कर सकती हैं।
  • कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइज़ेशन के माध्यम से उत्पादित मेथनॉल जैसे सिंथेटिक ईंधन के साथ पारंपरिक ईंधन को प्रतिस्थापित करना केवल तभी एक सफल शमन रणनीति होगी, जब CO2  को कैप्चर करने और इसे सिंथेटिक ईंधन में बदलने के लिये स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग किया जाएगा।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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