अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-बांग्लादेश परिवहन कनेक्टिविटी का महत्त्व: विश्व बैंक
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक की रिपोर्ट "कनेक्टिंग टू थ्राइव: चैलेंजेज़ एंड अपॉर्च्युनिटीज़ ऑफ ट्रांसपोर्ट इंटीग्रेशन इन ईस्टर्न साउथ एशिया" में कहा गया है कि भारत और बांग्लादेश के बीच निर्बाध परिवहन कनेक्टिविटी बांग्लादेश तथा भारत की राष्ट्रीय आय को क्रमशः 17% और 8% तक बढ़ाने की क्षमता रखती है। ।
- रिपोर्ट में बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौते (MVA) का विश्लेषण किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
विभिन्न मुद्दे:
- व्यापार:
- दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार में बांग्लादेश के व्यापार का लगभग 10% और भारत के व्यापार का मात्र 1% हिस्सा है।
- उच्च टैरिफ, पैरा-टैरिफ और नॉन टैरिफ बाधाएँ भी प्रमुख व्यापार बाधाओं के रूप में मौजूद हैं। बांग्लादेश और भारत में टैरिफ का औसत वैश्विक औसत के दोगुने से अधिक है।
- दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार में बांग्लादेश के व्यापार का लगभग 10% और भारत के व्यापार का मात्र 1% हिस्सा है।
- सीमा पारगमन संबंधी जटिलता:
- परिवहन एकीकरण में कमी बांग्लादेश और भारत के बीच की सीमा को दुर्गम बनाता है। भारत-बांग्लादेश के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण सीमा चौकी पेट्रापोल-बेनापोल को पार करने में कई दिन लगते हैं।
- इसके विपरीत पूर्वी अफ्रीका सहित दुनिया के अन्य क्षेत्रों में सीमाओं को पार करने में लगने वाला समय छह घंटे से भी कम है।
- परिवहन एकीकरण में कमी बांग्लादेश और भारत के बीच की सीमा को दुर्गम बनाता है। भारत-बांग्लादेश के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण सीमा चौकी पेट्रापोल-बेनापोल को पार करने में कई दिन लगते हैं।
- पूर्वोत्तर की अलग स्थिति:
- भारतीय ट्रकों को बांग्लादेश से होकर जाने की अनुमति नहीं है। भारत का उत्तर-पूर्व क्षेत्र देश के बाकी हिस्सों से अलग-थलग है और केवल 27 किलोमीटर चौड़े सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से जुड़ा हुआ है, जिसे "चिकन नेक" भी कहा जाता है। इस कारण परिवहन मार्ग बहुत लंबा और महँगा है।
बेहतर कनेक्टिविटी के लाभ:
- वास्तविक आय में वृद्धि:
- बांग्लादेश के सभी ज़िले एकीकरण से लाभान्वित होंगे तथा पूर्वी ज़िलों की वास्तविक आय में बड़ा लाभ होगा।
- बांग्लादेश के सीमावर्ती राज्य जैसे उत्तर-पूर्व में असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा तथा पश्चिम में पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे दूर स्थित राज्यों को भी सहज कनेक्टिविटी का अधिक आर्थिक लाभ मिलेगा।
- निर्यात में वृद्धि:
- बांग्लादेश से भारत को किये जाने वाले निर्यात में 297% की वृद्धि और भारत से बांग्लादेश को किये जाने वाले निर्यात में 172% की वृद्धि होगी।
- सामरिक महत्त्व:
- भौगोलिक रूप से बांग्लादेश की अवस्थिति इसे भारत, नेपाल, भूटान और अन्य पूर्वी एशियाई देशों के लिये एक रणनीतिक प्रवेश द्वार बनाती है। क्षेत्रीय व्यापार, पारगमन और रसद नेटवर्क में सुधार करके बांग्लादेश एक आर्थिक महाशक्ति बन सकता है।
महत्त्वपूर्ण सिफारिशें:
- MVA को सशक्त बनाना:
- चालक के लाइसेंस और वीज़ा नियमों में सामंजस्य बिठाना।
- एक कुशल क्षेत्रीय पारगमन सुविधा की स्थापना।
- व्यापार और परिवहन दस्तावेज़ों को युक्तिसंगत एवं डिजिटल बनाना।
- व्यापार मार्गों के चयन प्रक्रिया को उदार बनाना।
- क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में सुधार:
- क्षेत्रीय गलियारों के साथ कोर परिवहन और रसद अवसंरचना ढाँचे की प्रभावी क्षमता में विस्तार करना।
- परिवहन सेवा बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना।
- भूमि पत्तन और समुद्री पत्तनों पर आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी के बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
- बांग्लादेश और भारत में ‘ऑफ-बॉर्डर कस्टम क्लीयरेंस’ सुविधाएँ विकसित करना।
- स्थानीय समुदायों का एकीकरण:
- स्थानीय बाज़ारों को क्षेत्रीय गलियारों से जोड़ना।
- निर्यात-उन्मुख मूल्य शृंखलाओं में रसद संबंधी बाधाओं को दूर करना।
- वृहत् समुदाय और घरेलू स्तर पर निर्यात-उन्मुख कृषि मूल्य शृंखलाओं में महिलाओं की भागीदारी में सुधार करना।
बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल मोटर वाहन समझौता:
BBIN:
- इस समझौते को यात्री, व्यक्तिगत व माल ढुलाई वाहनों के यातायात नियमन हेतु अमल में लाया गया है।
- इस समझौते का मुख्य उद्देश्य इस उप क्षेत्र में सड़क यातायात को सुरक्षित, आर्थिक और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल बनाना है।
- वर्ष 2015 में बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल के बीच भूटान की राजधानी थिंपू में BBIN मोटर वाहन समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- समझौते के अनुसार, सदस्य देश अन्य देशों में पंजीकृत वाहनों को कुछ नियमों और शर्तों के तहत अपने क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति देंगे। सीमा शुल्क और अन्य शुल्क का निर्धारण संबंधित देशों द्वारा किया जाएगा तथा इन्हें द्विपक्षीय एवं त्रिपक्षीय मंचों पर अंतिम रूप दिया जाएगा।
- MVA के कार्यान्वयन में देरी हुई है क्योंकि देश कुछ प्रावधानों पर स्पष्टीकरण चाहते हैं।
- उद्देश्य:
- व्यक्तियों और सामानों की सीमा पार आवाजाही को सुविधाजनक बनाकर लोगों को सहज संपर्क प्रदान करना और आर्थिक संपर्क बढ़ाना।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
कालाज़ार उन्मूलन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बिहार के मुज़फ्फरपुर ज़िले में कालाज़ार (Kala-Azar) या आँत के लीशमैनियासिस (Visceral Leishmaniasis) के नए मामले सामने आए हैं। ये मामले वर्ष 2022 तक राज्य में इस बीमारी के उन्मूलन के प्रयासों पर गंभीर संदेह व्यक्त करते हैं।
- बिहार वर्ष 2010 से कालाज़ार उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त करने में चार बार चूक गया है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Health Programme) के अंतर्गत इस बीमारी के उन्मूलन की पहली समय-सीमा वर्ष 2010 थी, जिसे बाद में वर्ष 2015, वर्ष 2017 और वर्ष 2020 तक तीन बार बढ़ाया गया।
प्रमुख बिंदु
कालाज़ार या लीशमैनियासिस:
- आँत का लीशमैनियासिस, जिसे कालाज़ार के रूप में भी जाना जाता है, में बुखार, वज़न में कमी, प्लीहा और यकृत में सूजन आदि लक्षण देखे जाते हैं।
- यदि बीमारी का इलाज नहीं किया जाता है तो विकासशील देशों में मृत्यु दर 2 साल के भीतर ही 100% तक पहुँच सकती है।
- यह एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Disease) है जिससे भारत सहित लगभग 100 देश प्रभावित हैं।
- NTD संचारी रोगों का एक विविध समूह है जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय स्थितियों वाले 149 देशों में व्याप्त हैं।
- यह लीशमैनिया (Leishmania) नामक एक परजीवी के कारण होता है जो बालू मक्खियों (Sand Flies) के काटने से फैलता है।
- लीशमैनियासिस के तीन प्रकार हैं:
1. आँत का लीशमैनियासिस: यह शरीर के कई अंगों को प्रभावित करता है और यह रोग का सबसे गंभीर रूप है।
2. त्वचीय (Cutaneous) लीशमैनियासिस: यह बीमारी त्वचा के घावों का कारण बनती है और यह बीमारी का आम रूप है।
3. श्लेष्मत्वचीय (Mucocutaneous) लीशमैनियासिस: यह बीमारी त्वचा एवं श्लैष्मिक घावों का कारण है। - भारत में आमतौर पर कालाज़ार के नाम से जाना जाने वाला आँत का लीशमैनियासिस 95% से अधिक मामलों में इलाज़ न किये जाने पर घातक हो सकता है।
समय-सीमा में चूक का कारण:
- निर्देशन का अभाव: उन्मूलन कार्यक्रमों में उचित निर्देशन की कमी के कारण कालाज़ार की साल-दर-साल वापसी होती रहती है।
- व्यापक गरीबी: यहाँ के ज़्यादातर गरीब जो दलितों, अन्य पिछड़े समुदायों और मुसलमानों से संबंधित हैं, मुख्य रूप से इस बीमारी के शिकार हैं।
गिरावट की प्रवृत्ति: हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में बिहार में कालाज़ार के मामलों में गिरावट आई है।
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, जहाँ वर्ष 2010 में 23,084 मामले देखे गए थे, वहीं वर्ष 2020 तक ये मामले गिरकर 2,712 रह गए।
राष्ट्रीय कालाज़ार उन्मूलन कार्यक्रम
- भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (National Health Mission), 2002 में वर्ष 2010 तक कालाज़ार उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसे वर्ष 2015 में संशोधित किया गया।
- भारत ने उच्च राजनीतिक प्रतिबद्धता के साथ निरंतर गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र से कालाज़ार का उन्मूलन करने के लिये बांग्लादेश और नेपाल के साथ एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
- भारत में कालाज़ार उन्मूलन के अंतर्गत उप-ज़िला स्तर पर प्रति 10,000 जनसंख्या में 1 मामले का लक्ष्य रखा गया।
- वर्तमान में इस कार्यक्रम से संबंधित सभी गतिविधियों को राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Vector Borne Disease Control Programme) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है जो वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये एक अम्ब्रेला कार्यक्रम है तथा इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत रखा गया है।
राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम
- यह भारत में छह वेक्टर जनित बीमारियों (मलेरिया, डेंगू, लिम्फैटिक फाइलेरिया, कालाज़ार, जापानी इंसेफेलाइटिस और चिकनगुनिया) की रोकथाम तथा नियंत्रण के लिये केंद्रीय नोडल एजेंसी है।
- यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
कृषि
राजा भूमिबोल विश्व मृदा दिवस - 2020 पुरस्कार
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) को खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) द्वारा प्रतिष्ठित "राजा भूमिबोल विश्व मृदा दिवस पुरस्कार” (King Bhumibol World Soil Day Award) - 2020 प्रदान किया गया।
- FAO ने ICAR को यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मान वर्ष 2020 में विश्व मृदा दिवस (World Soil Day) के अवसर पर “मृदा क्षरण रोको, हमारा भविष्य बचाओ” विषय पर “मृदा स्वास्थ्य जागरूकता” में योगदान के लिये देने की घोषणा की थी।
प्रमुख बिंदु
राजा भूमिबोल विश्व मृदा दिवस पुरस्कार के विषय में:
- इस पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 2018 में की गई थी। यह उन व्यक्तियों या संस्थानों को दिया जाता है जो सफलतापूर्वक और प्रभावशाली तरीके से विश्व मृदा दिवस समारोह का आयोजन कर मृदा संरक्षण के विषय में जागरूकता बढ़ाते हैं।
- यह पुरस्कार थाईलैंड के साम्राज्य द्वारा प्रायोजित है, जिसे थाईलैंड के राजा भूमिबोल अदुल्यादेज (King Bhumibol Adulyadej) द्वारा मृदा प्रबंधन, खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन के महत्त्व के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये की गई आजीवन प्रतिबद्धता के चलते उनके नाम पर रखा गया है।
- इस पुरस्कार के पूर्व विजेताओं में प्रैक्टिकल एक्शन इन बांग्लादेश- 2018 और कोस्टा रिकान सॉयल साइंस सोसायटी (AACS)- 2019 शामिल हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद:
- यह भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग हेतु एक स्वायत्तशासी संस्था है।
- इसकी स्थापना 16 जुलाई, 1929 को की गई थी, जिसे पहले इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (Imperial Council of Agricultural Research) के नाम से जाना जाता था।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- यह परिषद बागवानी, मात्स्यिकी और पशु विज्ञान सहित कृषि के क्षेत्र में समन्वयन, मार्गदर्शन और अनुसंधान प्रबंधन एवं शिक्षा के लिये भारत का एक सर्वोच्च निकाय है।
मृदा क्षरण:
- मृदा क्षरण का अर्थ मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक दशा में गिरावट से है और यह स्थिति सामान्यतः कृषि, औद्योगिक या शहरी उद्देश्यों के लिये मृदा के अनुचित उपयोग या खराब प्रबंधन के कारण उत्पन्न होती है।
- इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की हानि, मिट्टी की उर्वरता और संरचनात्मक स्थिति में गिरावट, क्षरण, लवणता में प्रतिकूल परिवर्तन आदि हो सकता है।
- मिट्टी का क्षरण भोजन, चारा आदि के लिये बढ़ती आबादी की मांग को पूरा करने हेतु भूमि पर अत्यधिक दबाव के कारण होता है।
- ये प्रक्रियाएँ सामाजिक असुरक्षा के चलते कृषि उत्पादकता को कम करती हैं।
- जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग मृदा क्षरण का प्रमुख कारण हो सकता है।
- विभिन्न मानवीय गतिविधियाँ जैसे- बड़े पैमाने पर नहरों से सिंचाई और दोषपूर्ण भूमि के उपयोग के कारण लवण, बाढ़, सूखा, कटाव तथा जलभराव के माध्यम से तीव्र मृदा क्षरण की स्थिति उत्पन्न होती है।
- मृदा क्षरण के अन्य कारण हैं:
- वनों की कटाई
- अत्यधिक चराई
- कृषि संबंधी गतिविधियाँ
- वनस्पतियों का घरेलू प्रयोजन के लिये अत्यधिक दोहन
ग्लिंका विश्व मृदा पुरस्कार
- यह पुरस्कार भी FAO द्वारा प्रदान किया जाता है। यह एक वार्षिक पुरस्कार है, जिसे दुनिया के सबसे अधिक दबाव वाले पर्यावरणीय मुद्दों को हल करने के लिये समर्पित व्यक्तियों को दिया जाता है।
- यह उन व्यक्तियों और संगठनों को दिया जाता है, जो अपने नेतृत्व और गतिविधियों द्वारा मृदा प्रबंधन को बढ़ावा तथा मृदा संसाधनों के संरक्षण में योगदान दे रहे हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन और रूस ने अंतरिक्ष सहयोग में एक नए युग की शुरुआत को चिह्नित करते हुए चंद्रमा की सतह पर एक अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (International Lunar Research Station- ILRS) बनाने हेतु सहमति व्यक्त की है।
- रूस अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) जो कि निवास करने योग्य एक कृत्रिम उपग्रह है, का हिस्सा है। यह पृथ्वी की निम्न कक्षा में मानव निर्मित सबसे बड़ी संरचना है।
प्रमुख बिंदु:
अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (ILRS)
- ILRS के बारे में:
- ILRS दीर्घकालिक स्वायत्त संचालन (Long-Term Autonomous Operation) क्षमता के साथ एक व्यापक वैज्ञानिक प्रयोग का आधार है।
- इस स्टेशन को चंद्र सतह और/या चंद्र की कक्षा में बनाया जाएगा जो चंद्र अन्वेषण, चंद्र आधारित अवलोकन, बुनियादी वैज्ञानिक प्रयोग और तकनीकी सत्यापन जैसी वैज्ञानिक अनुसंधान गतिविधियों को अंजाम देगा।
- सिद्धांत:
- रूस और चीन द्वारा आपसी परामर्श, संयुक्त निर्माण तथा साझा लाभों के सिद्धांत का पालन किया जाएगा।
- दोनों देशों द्वारा ILRS में शामिल होने वाले इच्छुक देशों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों को व्यापक सहयोग एवं सुविधा प्रदान की जाएगी।
- महत्त्व:
- ILRS वैज्ञानिक अनुसंधान के आदान-प्रदान और मानवीय अन्वेषण को मज़बूती प्रदान करेगा तथा शांतिपूर्ण उद्देश्यों हेतु बाह्य अंतरिक्ष के उपयोग को बढ़ावा देगा।
चंद्रमा से संबंधित अन्य कार्यक्रम:
- नासा का आर्टेमिस कार्यक्रम: इससे पहले वर्ष 2020 में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) ने अपने आर्टेमिस प्रोग्राम हेतु एक रूपरेखा का प्रकाशन किया, जिसके तहत वर्ष 2024 तक अगले पुरुष और प्रथम महिला को चंद्रमा की सतह पर भेजने की योजना है।
- गेटवे अंतरिक्ष में मानव और वैज्ञानिक अन्वेषण का समर्थन करने हेतु चंद्रमा के चारों ओर एक आउटपोस्ट है।
- यूएई का राशिद मिशन:
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) द्वारा वर्ष 2024 में राशिद (Rashid) नाम के एक मानव रहित अंतरिक्षयान को चंद्रमा पर भेजने का फैसला किया गया है
- चीन के चांग ई-4 और चांग ई-5 मिशन:
- चांग ई -4 मिशन (Chang’e-4 Mission) चीन द्वारा चंद्रमा की दूरी का पता लगाने हेतु प्रथम अन्वेषण/जांँच है।
- चांग ई-5 मिशन (Chang’e-5 mission) चंद्रमा की उत्पत्ति और निर्माण के बारे में वैज्ञानिकों को और अधिक जानने में मदद करने हेतु चंद्रमा पर नमूने एकत्र करेगा।
भारतीय पहल:
- चंद्रयान- 3:
- भारत चंद्रयान- 3 मिशन पर कार्य कर रहा है जो चंद्रयान- 2 मिशन की अगली कड़ी है। यह संभवतः चंद्रमा की सतह पर एक और सॉफ्ट -लैंडिंग का प्रयास करेगा।
- अंतरिक्ष स्टेशन:
- भारत का उद्देश्य पृथ्वी की निचली कक्षा में माइक्रोग्रैविटी प्रयोगों (Microgravity Experiments) के संचालन से 5-7 वर्षों में अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना है।
चंद्रमा:
चंद्रमा से संबंधित तथ्य:
- चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है और सौरमंडल का पांँचवाँ सबसे बड़ा चंद्रमा भी है।
- चंद्रमा की उपस्थिति हमारे ग्रहों के कंपनों को शांत कर जलवायु को स्थिरता प्रदान करती है।
- पृथ्वी से चंद्रमा की कुल दूरी 3,85,000 किलोमीटर है।
- चंद्रमा का वातावरण अत्यधिक विरल है जिसे एक्सोस्फीयर (Exosphere) कहा जाता है।
- चंद्रमा की पूरी सतह ज्वालामुखी उद्गारों के प्रभाव और गड्ढों से भरी हुई है।
- पृथ्वी और चंद्रमा आपस में अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। पृथ्वी और चंद्रमा की घूर्णन गति में इतनी समानता है कि हमें हर समय चंद्रमा का केवल एक हिस्सा ही दिखाई देता है।
चंद्रमा के अध्ययन का कारण:
- पृथ्वी की उत्पत्ति के पूर्व कारणों को समझना:
- चंद्रमा की उत्पत्ति के साक्ष्य पृथ्वी से प्राप्त अवशेषों में मिलते हैं। पृथ्वी की प्रारंभिक संरचना के साक्ष्य चंद्रमा की धूल की परतों के मध्य छिपे हो सकते हैं।
- इसके अलावा पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत के संभावित संकेत भी चंद्रमा पर मिलते हैं।
- पृथ्वी पर भूकंपीय गतिविधि को समझना :
- चंद्रमा के अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिल सकती है कि सतह पर कम तरल पानी के साथ पृथ्वी पर भूकंपीय गतिविधियाँ कितनी बार हो सकती हैं, जैसे कि प्रमुख हिम युगों के समय या पृथ्वी के शुरुआती इतिहास के समय देखा जाता है, जब सतह तरल महासागरों को संरक्षित करने हेतु बहुत गर्म थी।
- पृथ्वी के वायुमंडल की संरचना:
- चंद्रमा से पृथ्वी की चमक को मापकर वैज्ञानिकों द्वारा इस बात का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है कि पृथ्वी स्वयं कितनी चमकती है, यहाँ तक कि पृथ्वी के वायुमंडल की संरचना का भी पता लगाया जा सकता है।
- ज्वार-भाटा, ऋतु एवं जलवायु को समझना:
- ज्वार-भाटा और ऋतु परिवर्तन के क्रम को समझने हेतु चंद्रमा के द्रव्यमान, आकार और कक्षीय गुणों को मापना आवश्यक है।
- पृथ्वी और चंद्रमा के मध्य इन ज्वारीय और कक्षीय अंतः क्रियाओं का अध्ययन, पृथ्वी की जलवायु पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों को समझने हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: फाइनेंशियल एक्सप्रेस
आंतरिक सुरक्षा
INS करंज
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय नौसेना की तीसरी स्टील्थ स्कॉर्पीन क्लास (प्रोजेक्ट -75) पनडुब्बी INS करंज को नौसेना डॉकयार्ड मुंबई में कमीशन किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- पूर्व आईएनएस करंज (एक रूसी मूल की पनडुब्बी) को वर्ष 1969 में रीगा में कमीशन किया गया था। इसने वर्ष 2003 (34 वर्ष) तक राष्ट्र की सेवा की।
- नवीन INS करंज पश्चिमी नौसेना कमान के पनडुब्बी बेड़े का हिस्सा होगी।
- माना जाता है कि इसका नाम (करंज) करंजा द्वीप (जिसे उरण द्वीप भी कहा जाता है) से लिया गया है, जो कि रायगढ़ ज़िले का एक शहर है तथा मुंबई हार्बर के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
- भारतीय नौसेना का एक बेस नवी मुंबई के पास उरण में है।
प्रोजेक्ट 75:
- यह भारतीय नौसेना का एक कार्यक्रम है जिसमें छह स्कॉर्पीन क्लास पनडुब्बियों के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है।
- निर्माण के विभिन्न चरणों में रक्षा उत्पादन विभाग (रक्षा मंत्रालय) और भारतीय नौसेना द्वारा समर्थन दिया जाता है।
- मझगाँव डॉकयार्ड लिमिटेड (MDL) अक्तूबर 2005 में हस्ताक्षरित एक 3.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सौदे के तहत फ्राँस के नेवल ग्रुप से प्रौद्योगिकी सहायता के साथ छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का निर्माण कर रही है।
- MDL भारत में अग्रणी जहाज़ निर्माण यार्ड और एकमात्र पनडुब्बी निर्माता है।
प्रोजेक्ट-75 की अन्य पनडुब्बियाँ:
- दो पनडुब्बियों कलवरी और खांदेरी को भारतीय नौसेना में कमीशन किया गया है।
- चौथी स्कॉर्पीन, वेला ने अपने समुद्री परीक्षणों की शुरुआत की है।
- पाँचवीं स्कॉर्पीन वागीर को नवंबर 2020 में लॉन्च किया गया था।
- छठी और आखिरी पनडुब्बी, वाग्शीर जल्द ही तैयार हो जाएगी।
स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन:
- प्रोजेक्ट-75 स्कॉर्पीन क्लास की पनडुब्बियाँ डीज़ल-इलेक्ट्रिक प्रणोदन प्रणाली द्वारा संचालित हैं।
- स्कॉर्पीन सबसे परिष्कृत पनडुब्बियों में से एक है, जो एंटी-सरफेस शिप वारफेयर, एंटी-सबमरीन वारफेयर, खुफिया जानकारी एकत्र करने, बारूदी सुरंग बिछाने और क्षेत्र की निगरानी सहित विविध मिशन संचलित करने में सक्षम है।
- स्कॉर्पीन पारंपरिक रूप से संचालित पनडुब्बी (डीजल-इलेक्ट्रिक) है, जिसका वज़न 1,500 टन है और यह 300 मीटर की गहराई तक जा सकती है।
- जुलाई 2000 में रूस से खरीदे गए INS सिंधुशास्त्र के बाद से लगभग दो दशकों में स्कॉर्पीन श्रेणी नौसेना की पहली आधुनिक पारंपरिक पनडुब्बी शृंखला है।
- नौसेना अपनी क्षमता बढ़ाने के लिये सभी स्कॉर्पीन पनडुब्बियों पर ‘एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन’ (AIP) मॉड्यूल स्थापित करना चाह रही है।
आगे की राह:
- INS करंज के कमीशंड होने के साथ ही भारत ने एक ‘सबमरीन बिल्डिंग नेशन’ के रूप में अपनी स्थिति को और मज़बूत किया है। MDL की युद्धपोत और पनडुब्बी बिल्डर्स के रूप में अपनी प्रतिष्ठा है। यह पूरी तरह से ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के प्रति सरकार की मौजूदा गति के साथ तालमेल है।
स्रोत- पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
नेशनल एम्प्लॉयबिलिटी थ्रू अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम
चर्चा में क्यों?
नेशनल एम्प्लॉयबिलिटी थ्रू अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम (NETAP) ने वर्ष 2021 (जनवरी-जून 2021) के लिये ‘अप्रेंटिसशिप आउटलुक रिपोर्ट’ का नवीनतम संस्करण जारी किया है।
- अप्रेंटिसशिप का आशय एक ऐसे कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम से है, जिसमें एक व्यक्ति किसी कंपनी में एक प्रशिक्षु के रूप में कार्य करता है और अल्प अवधि के लिये क्लासरूम (थ्योरी) प्रशिक्षण लेता है, जिसके बाद वह ऑन-द-जॉब (व्यावहारिक) प्रशिक्षण प्राप्त करता है।
प्रमुख बिंदु
नेशनल एम्प्लॉयबिलिटी थ्रू अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम (NETAP)
- इसकी स्थापना वर्ष 2014 में शत-प्रतिशत नियोक्ता द्वारा वित्तपोषित सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के रूप में की गई थी।
- कार्यक्रम का शुभारंभ कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय तथा टीमलीज़ कौशल विश्वविद्यालय (गुजरात) द्वारा किया गया था।
- इस कार्यक्रम की शुरुआत अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) के राष्ट्रीय रोज़गार संवर्द्धन मिशन के अनुरूप हुई है।
- NETAP की संरचना अप्रेंटिसशिप अधिनियम, 1961 की चुनौतियों से पार पाने के लिये की गई थी।
- NETAP ने आगामी 10 वर्षों के लिये प्रतिवर्ष 2 लाख अप्रेंटिस नियुक्त करने का प्रस्ताव दिया है। यह कार्यक्रम अपने अंतिम चरण में दुनिया का सबसे बड़ा अप्रेंटिसशिप कार्यक्रम होगा।
- यह बेरोज़गार युवाओं को काम के दौरान ही व्यावहारिक कौशल प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगा और साथ ही उनकी आजीविका का भी एक महत्त्वपूर्ण स्रोत होगा।
राष्ट्रीय रोज़गार संवर्द्धन मिशन
- यह AICTE और भारत सरकार द्वारा संयुक्त रूप से शुरू की गई एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
- 2013 में पेश किये गए NEEM का उद्देश्य ऐसे किसी भी व्यक्ति की रोज़गार क्षमता बढ़ाने हेतु व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करना है:
- जो या तो किसी भी तकनीकी या गैर-तकनीकी स्ट्रीम में स्नातक/डिप्लोमा कर रहा है, या
- जिसने डिग्री या डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की पढ़ाई छोड़ दी है।
- इस मिशन के तहत ऐसा कोई भी पंजीकृत व्यक्ति प्रशिक्षु हो सकता है, जिसकी न्यूनतम शिक्षा दसवीं कक्षा तक है और जिसकी आयु 16 से 40 वर्ष के बीच है।
- मिशन के तहत कुल 23 उद्योगों को सूचीबद्ध किया गया है, जहाँ एक प्रशिक्षु को नामांकन किया जा सकता है। इसमें ऑटोमोबाइल उद्योग, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और हार्डवेयर, खाद्य प्रसंस्करण, स्वास्थ्य सेवा तथा वित्तीय क्षेत्र आदि शामिल हैं।
- इसके तहत प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से पंजीकृत कंपनियों या पंजीकृत उद्योगों में प्रति वर्ष कम-से-कम 10,000 छात्रों का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
अप्रेंटिसशिप आउटलुक रिपोर्ट- प्रमुख निष्कर्ष
- भारत का अप्रेंटिसशिप इकोसिस्टम: भारत में तकरीबन 41 प्रतिशत नियोक्ता प्रशिक्षुओं को काम पर रखने के इच्छुक हैं, जबकि 58 प्रतिशत उद्यम इस वर्ष अपने प्रशिक्षुओं की मात्रा को बढ़ाना चाहते हैं।
- अग्रणी शहर: रिपोर्ट के मुताबिक, चेन्नई अप्रेंटिसशिप के लिये सबसे अनुकूल शहर के रूप में उभरा है।
- ऐसे शहरों जहाँ मेट्रो सेवा नहीं है, की श्रेणी में अहमदाबाद और नागपुर को अप्रेंटिसशिप के लिये सबसे अनुकूल शहर माना गया है।
- अग्रणी क्षेत्र: रिपोर्ट में विनिर्माण, ऑटोमोबाइल और खुदरा क्षेत्र को अप्रेंटिसशिप के लिये अग्रणी क्षेत्र बताया गया है।
- महिलाओं का अप्रेंटिसशिप के प्रति सकारात्मक रुझान: समग्र रूप से पिछले वर्ष की तुलना में महिला प्रशिक्षुओं को वरीयता देने की दर में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- यह रुझान बंगलूरू, मुंबई और कोलकाता में काफी प्रबल दिखाई दिया।
महत्त्व
- अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2041 तक भारत की कार्यशील जनसंख्या में काफी अधिक वृद्धि होगी। इससे अर्थव्यवस्था में रोज़गार सृजन की आवश्यक दर पर काफी अधिक प्रभाव पड़ेगा।
- आँकड़े बताते हैं कि सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के कारण देश में 5वीं और 8वीं कक्षा के बाद लगभग 3 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। ऐसे में अप्रेंटिसशिप, विद्यालयी शिक्षा की कमी को पूरा करने और कार्यबल में कौशल-अंतर को कम करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण तंत्र साबित हो सकता है।
अप्रेंटिसशिप से संबंधित अन्य पहलें
- अप्रेंटिसशिप अधिनियम, 1961
- ‘स्कीम फॉर हायर एजुकेशन यूथ इन अप्रेंटिसशिप एंड स्किल्स’ अथवा ‘श्रेयस’
- राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्द्धन योजना (NAPS)
- औद्योगिक मूल्य संवर्द्धन हेतु कौशल सुदृढ़ीकरण (स्ट्राइव)
- ‘युवाह: जनरेशन अनलिमिटेड’ पहल
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा निधि
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर (Health and Education Cess) से प्राप्त होने वाली राशि से स्वास्थ्य क्षेत्र हेतु एक ‘सिंगल नॉन लैप्सेबल रिज़र्व फंड’ (Single Non-Lapsable Reserve Fund) के रूप में ‘प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा निधि’ (Pradhan Mantri Swasthya Suraksha Nidhi- PMSSN) बनाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है।
- वित्त अधिनियम, 2007 की धारा 136-बी के तहत स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर की वसूली की जाती है।
प्रमुख बिंदु:
प्रधानमंत्री सुरक्षा निधि (PMSSN) की मुख्य विशेषताएंँ:
- यह सार्वजनिक खाते में स्वास्थ्य क्षेत्र हेतु एक ‘सिंगल नॉन लैप्सेबल रिज़र्व फंड’ है।
- स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर से प्राप्त राशि में से स्वास्थ्य का अंश ‘प्रधानमंत्री सुरक्षा निधि’ (PMSSN) में भेजा जाएगा।
- PMSSN में भेजी गई इस राशि का इस्तेमाल स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण योजनाओं में किया जाएगा: -
- आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY)
- आयुष्मान भारत-स्वास्थ्य एवं देखभाल केंद्र (AB-HWCs)
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन।
- प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY)
- स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों एवं आकस्मिक विपत्ति में तैयारी एवं प्रतिक्रिया।
- कोई भी अन्य भावी कार्यक्रम/योजना जिसका लक्ष्य एसडीजी की दिशा में प्रगति हासिल करना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के तहत तय लक्ष्यों को प्राप्त करना।
- PMSSN का प्रशासन और रखरखाव का कार्य स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health & Family Welfare- MoHFW) को सौंपा गया है।
- किसी भी वित्तीय वर्ष में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की उक्त योजनाओं का व्यय प्रारंभिक तौर पर PMSSN से लिया जाएगा तथा बाद में सकल बजट सहायता (Gross Budgetary Support- GBS) से प्राप्त किया जाएगा।
PMSSN का लाभ:
- इसका मुख्य लाभ यह होगा कि निर्धारित संसाधनों की उपलब्धता से सार्वभौमिक और वहनीय स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंँच प्रदान की जा सकेगी और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा सकेगा कि किसी भी वित्तीय वर्ष के अंत में इसके लिये निर्धारित राशि समाप्त न हो।
स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च का महत्त्व:
- विकास में सुधार: आर्थिक दृष्टि से देखें तो बेहतर स्वास्थ्य से उत्पादकता में सुधार होता है तथा असामयिक मौत, लंबे समय तक चलने वाली अपंगता और जल्द अवकाश लेने के कारण होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
- अधिक अवसरों की उपलब्धता: जनसंख्या की जीवन आकांक्षा (Life Expectancy) में एक अतिरिक्त वर्ष बढ़ने से सकल घरेलू उत्पाद में प्रति व्यक्ति 4 प्रतिशत की वृद्धि होती है। स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश करने से लाखों रोज़गार सृजित होंगे। खासतौर से महिलाओं के लिये क्योंकि स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की ज़रूरत बढ़ने पर उनके लिये नई नौकरियों का सृजन होगा।
स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर:
- वित्त मंत्री द्वारा वर्ष 2018 के बजट भाषण में आयुष्मान भारत योजना की घोषणा करते हुए मौजूदा 3% शिक्षा उपकर को 4% स्वास्थ्य और शिक्षा उपकर में बदलने की घोषणा की गई थी।
- इसे भारत में ग्रामीण परिवारों की शैक्षिक और स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से एकत्रित किया जाता है।
उपकर
- उपकर (Cess), उत्पाद शुल्क और व्यक्तिगत आयकर जैसे सामान्य करों तथा शुल्कों से अलग कर के ऊपर लगने वाला कर है जो आमतौर पर विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु लगाया जाता है।
- केंद्र सरकार को करों (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों), अधिभार, शुल्क, उपकर, लेवी आदि के माध्यम से राजस्व जुटाने का अधिकार है।
- सामान्यतः जनता द्वारा भुगतान किया जाने वाला उपकर, उनके कर देयता में जोड़ा जाता है, जो कुल कर भुगतान के हिस्से के रूप में अदा किया जाता है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-270 के तहत उपकर को उन करों के विभाज्य पूल (Divisible Pool of Taxes) के दायरे से बाहर रखने की अनुमति दी गई है जिन्हें केंद्र सरकार को राज्यों के साथ साझा करना अनिवार्य है।
- उपकर का उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद इस पर रोक लगा दी जाती है। अन्य करों (जिन्हें अन्य भारतीय राज्यों के साथ साझा किया जाता है) के विपरीत उपकर के माध्यम से प्राप्त होने वाली संपूर्ण राशि केंद्र सरकार के पास जमा की जाती है।
- सरकार द्वारा स्वच्छ भारत उपकर (वर्ष 2017 में समाप्त) को स्वच्छता गतिविधियों के लिये लगाया गया था।
- अधिभार और उपकर के बीच अंतर:
- अधिभार (Surcharge) मौजूदा कर पर लगाया गया अतिरिक्त शुल्क या कर है। यह मुख्यतः व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट आयकर पर लगाया जाता है।
- अधिभार और उपकर दोनों राज्य सरकारों के साथ साझा करने योग्य नहीं होते हैं। अधिभार को भारत की संचित निधि (Consolidated Fund) में रखा जा सकता है तथा किसी अन्य कर की तरह खर्च किया जा सकता है। उपकर को CFI में एक अलग निधि के रूप में रखा जाना चाहिये, जिसे केवल विशिष्ट उद्देश्य के लिये खर्च किया जाता है।
- अधिभार पर चर्चा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 270 और अनुच्छेद 271 के अंतर्गत की जाती है।
- उपकर के विपरीत अधिभार सामान्यतः सरकार के लिये राजस्व का एक स्थायी स्रोत होता है।