डेली न्यूज़ (11 Jun, 2022)



थाईलैंड ने मारिजुआना को किया वैध

प्रिलिम्स के लिये:

गाँजा/भाँग/मारिजुआना, स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ 

मेन्स के लिये:

मारिजुआना की खेती और उसके उपयोग को वैधता प्रदान करना 

चर्चा में क्यों? 

थाइलैंड में अब गाँजा रखना और उसकी खेती करना अपराध की श्रेणी में नहीं माना जाएगा क्योंकि हाल ही में वहाँ की सरकार ने इसे वैध घोषित कर दिया है। हालाँकि सार्वजनिक तौर पर धूम्रपान के रूप में इसका उपयोग अभी भी वर्जित है। 

  • दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित थाईलैंड, जो कि मादक पदार्थों/ड्रग्स से संबंधित सख्त कानूनों के लिये जाना जाता है, इस प्रकार का कदम उठाने वाला एशिया का पहला देश बन गया है 
  • वर्ष भर उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले थाईलैंड का भाँग/गाँजा/कैनबिस के साथ एक लंबा इतिहास रहा है, जिसे स्थानीय लोग आमतौर पर पारंपरिक औषधियों के रूप में इस्तेमाल करते हैं। 

प्रमुख बिंदु 

  • सरकार के इस कदम का उद्देश्य कैनबिस के व्युत्पन्नों विशेष रूप से हल्के यौगिक CBD (Cannabidiol) का उपयोग कर स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े बाज़ार के एक बड़े हिस्से पर अपने पड़ोसी देशों की तुलना में अधिक आकर्षक स्थिति प्राप्त करना है। साथ ही एक अन्य उद्देश्य विश्व की कुछ सबसे अधिक भीड़भाड़ वाली जेलों से भीड़ को कम करना है। 
    • इसका तात्पर्य यह है कि सैद्धांतिक रूप से इस पौधे की खेती (किसी भी मात्रा में) को अब पूरी तरह से वैध कर दिया गया है जिसके चलते अब पुलिस द्वारा केवल मारिजुआना रखने के लिये लोगों को गिरफ्तार करने की संभावना नहीं है। 
  • सरकार यह भी उम्मीद कर रही है कि स्थानीय भाँग के व्यापार को विकसित करने से कृषि और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। 
  • इससे लोगों एवं राज्य को गाँजा और भाँग से आय अर्जित करने का अवसर मिलेगा। 

मारिजुआना: 

  • परिचय: 
    • मारिजुआना कैनबिस के पौधे से प्राप्त मन:प्रभावी/साइकोएक्टिव औषधि है जिसका उपयोग चिकित्सा, मनोरंजक और धार्मिक उद्देश्यों के लिये किया जाता है। 
      • कैनबिस का उपयोग धूम्रपान, वाष्पीकरण, भोजन के साथ या अर्क के रूप में किया जा सकता है। 
    • यह मानसिक और शारीरिक प्रभाव पैदा करता है, जैसे कि "उच्च" या "कठोर" भावना, धारणा में सामान्य परिवर्तन एवं भूख को बढ़ाना। 
    • अल्पकालिक दुष्प्रभावों के संदर्भ में अल्पकालिक स्मृति (Short-Term Memory) में कमी, शुष्क मुँह, लड़खड़ाना, लाल आँखें और मानसिक विक्षेप या चिंता की भावनाएँ शामिल हो सकती हैं। 
    • दीर्घकालिक दुष्प्रभावों में लत, मानसिक क्षमता में कमी और उन बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याएंँ शामिल हो सकती हैं जिनकी माताओं ने गर्भावस्था के दौरान कैनबिस का उपयोग किया था। 
  • भारत में विनियमन: 
    • कैनबिस को राज्य के उत्पाद शुल्क विभागों द्वारा नियंत्रित किया जाता था और वर्ष 1985 तक कानूनी रूप से बेचा जाता था। 
    • 1985 में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोएक्टिव सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम के तहत उत्पादन, कब्ज़े, बिक्री/खरीद, परिवहन, अंतर-राज्यीय आयात/निर्यात या किसी अन्य रूप से कैनबिस की केंद्रीय स्तर की व्यावसायिक खेती को दंडनीय बनाया गया है। इस अधिनियम में तीन बार संशोधन किया गया है- 1988, 2001 और 2014 में। 
    • जबकि हल्के यौगिक CBD (Cannabidiol) तेल निर्माण को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत लाइसेंस प्राप्त है, जिसे कानूनी रूप से इस्तेमाल और बेचा जा सकता है। कुछ भारतीय वेबसाइट्स इसे बेचती हैं लेकिन इसे खरीदने के लिये चिकित्सीय निर्देश की आवश्यकता होती है। 
    • इसी प्रकार आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी में उपयोग के लिये भाँग, गाँजा और चरस को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 में सूचीबद्ध किया गया है। 

मारिजुआना वैधीकरण और अपराधीकरण के पहलू: 

  • वैधीकरण 
    • अपराध पर अंकुश: 
      • प्राप्त साक्ष्य के अनुसार, नशीले पदार्थों के कानून को सख्ती से लागू करने से नशीले पदार्थों की तस्करी शृंखला के सबसे कमज़ोर सदस्यों को निशाना बनाया जाता है। 
      • निषेध उत्पादक संघों को मज़बूत करता है, अतः उन्हें लक्षित किया जाना चाहिये क्योंकि बड़े उत्पादक संघ और तस्कर कानून प्रवर्तन तंत्र की पहुंँच से लगातार बचते रहते हैं। 
      • नशीली दवाओं के उपयोगकर्त्ताओं और फुटकर आपूर्तिकर्त्ताओं (Street-Level Suppliers) से जेल भरना आपराधिक न्याय प्रणाली पर दबाव बढ़ाता है। 
    • सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व: 
      • भारत में कैनबिस के उपयोग के प्रमाण वैदिक काल से मिलते हैं। अथर्ववेद में 'भाँग' के पौधे को प्रकृति के पाँच पवित्र, संकट से राहत देने वाले पौधों में से एक के रूप में उल्लेख मिलता है। होली के त्योहार के दौरान कैनबिस का सेवन आज भी उत्सव का एक अभिन्न अंग है। 
      • औपनिवेशिक भारत में कैनबिस की व्यापक खपत को देखते हुए इंडियन हेम्प ड्रग्स कमीशन ने वर्ष 1894 में निर्धारित किया कि इसका उपयोग बहुत प्राचीन है और इसे धार्मिक स्वीकृति भी प्राप्त है, अतः कमीशन ने सीमित मात्रा में इसके सेवन को हानिरहित माना।  
      • कमीशन ने इसके सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध न लगाने की अनुशंसा की क्योंकि उनका मानना था कि यह उपभोक्ताओं के मध्य अन्य अधिक हानिकारक मादक पदार्थों के सेवन को बढ़ावा दे सकता है। 
      • वर्ष 1985 में जब NDPS अधिनियम लागू किया गया, उससे पहले कैनबिस के अनेक रूप जैसे- भाँग, चरस और गाँजा को विभिन्न राज्य उत्पाद शुल्क विभागों द्वारा नियंत्रित किया जाता था और कानूनी रूप से लाइसेंस प्राप्त दुकानों द्वारा इसका विक्रय जाता था। 
    • शराब की तुलना में कम स्वास्थ्य जोखिम: 
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार, कैनबिस के उपयोग से सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम शराब और तंबाकू से उत्पन्न होने वाले जोखिम की तुलना में कम गंभीर थे जो कि कानूनी रूप से वैध हैं। 
    • व्यापार और आर्थिक संभावनाएँ: 
      • कानूनी रूप से वैध मारिजुआना बाज़ार वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का है और वर्ष 2021 तक 31 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। 
      • कैनबिस से बनने वाला कपड़ा उच्च गुणवत्ता वाला होता है। मारिजुआना एक तकनीकी फाइबर के रूप में भी अत्यधिक उपयुक्त है। भारत में इस क्षेत्र में काम करने वाले कई स्टार्टअप भी हैं जैसे- मुंबई स्थित ‘द बॉम्बे हेम्प कंपनी’ (BOHECO)। 
  • अपराधीकरण: 
    • मारिजुआना मनोविकृति का कारण बनता है: 
      • मारिजुआना इसके उपयोगकर्त्ताओं में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ा सकता है। मारिजुआना में उपस्थित टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल (THC) मनोविकृति का कारण बनता है। 
      • जो लोग इसे किशोरावस्था या छोटी उम्र में उपयोग करते हैं, उनमें बाद में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के विकसित होने की अधिक संभावना होती है। कुछ मामलों में यह लोगों को मिचली, सुस्ती, भूलने की बीमारी, तनावग्रस्त या भ्रमित भी कर सकता है। 
    • मारिजुआना का उपयोग दवा के रूप में: 
      • कैनबिस का एक नशे की लत के रूप में बहुत अधिक प्रयोग किया गया है। उत्पादकों द्वारा इसके सीबीडी के स्तर में कमी तथा टीएचसी के स्तर में वृद्धि की गई है। 
      • एक संवेदनशील व्यक्ति जो अधिक खतरनाक पदार्थों का सेवन करता है, उसके द्वारा मारिजुआना का उपयोग दवा के रूप मे किया जाता है। एक अध्ययन में यह पाया गया कि मारिजुआना का उपयोग करने वाले 45% लोगों द्वारा अन्य 'हार्ड' दवाओं का भी उपयोग किया जाता है। 
    • मारिजुआना अंगों को नुकसान पहुँचाता है: 
      • WHO ने मारिजुआना की खपत से जुड़ी कई बीमारियों को सूचीबद्ध किया है, जिनमें संज्ञानात्मक कामकाज़, श्वसन, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों में सूजन आदि शामिल हैं। 
    • विनियमों को लागू करने मे कठिनाई: 
      • यदि मारिजुआना किसी फार्मेसी पर दवाई की पर्ची के साथ उपलब्ध होता है (जैसे अमेरिका) तो सरकार यह कैसे सुनिश्चित करेगी कि इसे मनोरंजक उद्देश्य के लिये नहीं खरीदा गया है। यह कफ-सिरप और इनहेलेंट में स्वतंत्र रूप से सुलभ है तथा लोगो द्वारा नशे के लिये इसका लगातार प्रयोग किया जाता है। 

आगे की राह 

  • इसे प्रतिबंधित करने और अवैध रूप से निर्मित करने से न तो बाज़ार में मारिजुआना (गाँजे) की उपलब्धता एवं न ही लोगों द्वारा इसके उपयोग को रोका जा सका है। 
  • मारिजुआना के संभावित जोखिम बताते हैं कि इस दवा को कानूनी रूप से विनियमित करना क्यों आवश्यक है। एक अनियंत्रित आपराधिक बाज़ार के हाथों में मारिजुआना के व्यापार को छोड़ने के बजाय इसे दवा के रूप में सक्षम किसानों द्वारा सुरक्षित रूप से उत्पादित तथा उपयुक्त सुविधाओं के साथ परीक्षण किया जाना चाहिये, साथ ही प्रतिष्ठित और लाइसेंस प्राप्त विक्रेताओं द्वारा बेचा जाना चाहिये। 
  • विनियमन भांग के खरीदारों को यह जानने की अनुमति देता है कि किसका उपभोग कर रहे हैं तथा वे खरीदे गए मारिजुआना में THC स्तर के अनुसार अपने उपभोग को नियंत्रित कर सकते हैं। 
  • मारिजुआना की बिक्री पर कर लगाने से राज्य को राजस्व प्राप्त होगा तथा एकत्र किये गए कर का उपयोग लोगों को शराब और तंबाकू पर सार्वजनिक जानकारी प्रदान करने जैसे- मारिजुआना के ज़ोखिमों के बारे में शिक्षित करने पर खर्च किया जा सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


NSIL को इन-ऑर्बिट संचार उपग्रहों का हस्तांतरण

प्रिलिम्स के लिये:

इसरो, एनएसआईएल।  

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष क्रांति की आवश्यकता और इससे संबंधित उठाए गए कदम। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत सरकार ने न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) को 10 इन-ऑर्बिट संचार उपग्रहों के हस्तांतरण को मंज़ूरी प्रदान की है। 

  • GSAT-7 और 7A को छोड़कर पूरी GSAT शृंखला NSIL को हस्तांतरित की जाएगी तथा इस तरह डाउनस्ट्रीम सैटकॉम कारोबार विकसित करने की इच्छुक कंपनियों को इसे हस्तातंरित किया जाएगा। नई संचार उपग्रह (CMS) शृंखला पहले से ही NSIL द्वारा संचालित है 
  • NSIL की अधिकृत शेयर पूंजी को 1,000 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 7,500 करोड़ रुपए किये जाने की भी मंजूरी प्रदान की गई है। 

संभावित लाभ: 

  • वांछित वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करना:  
    • NSIL को इन परिसंपत्तियों का हस्तांतरण कंपनी को पूंजी गहन कार्यक्रमों/परियोजनाओं को साकार करने हेतु वांछित वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करेगा और इस तरह अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में रोज़गार की संभावना एवं इस प्रौद्योगिकी स्पिन-ऑफ की पेशकश को बढ़ावा देगा। 
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में घरेलू गतिविधि को बढ़ावा देना: 
    • इस मंज़ूरी से घरेलू आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलने और वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में भारत के एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करने की संभावना है। 
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में व्यापार करने में सुविधा: 
    • सिंगल-विंडो ऑपरेटर के रूप में काम करने वाली NSIL अंतरिक्ष क्षेत्र में व्यापार सुगमता को बढ़ावा देगी 
      • NSIL बोर्ड को अब उपग्रह संचार क्षेत्र में बाज़ार की गतिशीलता और वैश्विक प्रवृत्तियों के अनुसार ट्रांसपोंडरों का मूल्य निर्धारण करने का अधिकार होगा। 
      • NSIL अपनी आंतरिक नीतियों और दिशा-निर्देशों के अनुसार क्षमता प्रदान करने तथा आवंटित करने के लिये भी अधिकृत है। 
        • अंतरिक्ष क्षेत्र के सुधारों के अंतर्गत NSIL को व्यापक वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों को शुरू करने और एक पूर्ण उपग्रह संचालक के रूप में कार्य करने के लिये अधिकृत किया गया था।

अंतरिक्ष सुधारों के चार स्तंभ: 

  • निजी क्षेत्र को नवाचार की स्वतंत्रता की अनुमति देना। 
  • सरकार सक्षमकर्त्ता की भूमिका निभा रही है: 
    • भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) का गठन: इसका गठन भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को एकीकृत करने के उद्देश्य से किया गया है 
  • भविष्य के लिये युवाओं को तैयार करना:
    • हाल ही में एटीएल स्पेस चैलेंज, 2021 लॉन्च किया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों को एक स्वतंत्र मंच प्रदान किया जा सके, जहाँ वे डिजिटल युग से संबंधित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी समस्याओं को हल करने हेतु स्वयं को नवाचार के लिये सक्षम बना सकें। 
  • अंतरिक्ष क्षेत्र को आम आदमी की प्रगति के लिये एक संसाधन के रूप में देखना: 
    • विकास परियोजनाओं की निगरानी उपग्रह इमेजिंग द्वारा की जा रही है, फसल बीमा योजना और आपदा प्रबंधन योजना के दावों के निपटान में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है तथा नाविक प्रणाली मछुआरों की मदद कर रही है। 

न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): 

  • परिचय: 
    • NSIL भारत सरकार का एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है। 
    • इसकी स्थापना वर्ष 2019 में अंतरिक्ष विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में हुई थी। 
    • NSIL भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की वाणिज्यिक शाखा है, जिसकी प्राथमिक ज़िम्मेदारी भारतीय उद्योगों को उच्च प्रौद्योगिकी से संबंधित अंतरिक्ष गतिविधियों को शुरू करने में सक्षम बनाना है। 
    • मुख्यालय: इसका मुख्यालय बंगलूरू में है 
  • मिशन: 
    • पृथ्वी अवलोकन और संचार अनुप्रयोगों के लिये उपग्रहों का स्वामित्व और अंतरिक्ष-आधारित सेवाएंँ प्रदान करना। 
    • उपग्रहों का निर्माण और मांग के अनुसार उन्हें लॉन्च करना। 
    • ग्राहक को संबंधित उपग्रह के लिये प्रक्षेपण सेवाएंँ प्रदान करना। 
    • भारतीय उद्योग के माध्यम से प्रक्षेपण वाहनों का निर्माण करना और उपग्रहों को ग्राहकों की आवश्यकता के अनुसार लॉन्च करना। 
    • वाणिज्यिक आधार पर पृथ्वी अवलोकन और संचार उपग्रहों से संबंधित अंतरिक्ष आधारित सेवाएंँ। 
    • भारतीय उद्योग के माध्यम से उपग्रह निर्माण। 
    • भारतीय उद्योग को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण। 

विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. PSLVs पृथ्वी संसाधनों की निगरानी के लिये उपयोगी उपग्रहों को लॉन्च करते हैं, जबकि GSLVs को मुख्य रूप से संचार उपग्रहों को लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 
  2. PSLVs द्वारा प्रक्षेपित उपग्रह पृथ्वी पर किसी विशेष स्थान से देखने पर आकाश में उसी स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर प्रतीत होते हैं। 
  3. GSLV Mk-III एक चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जिसमें पहले और तीसरे चरण में ठोस रॉकेट मोटर्स का उपयोग होता है; दूसरे व चौथे चरण में तरल रॉकेट इंजन का उपयोग किया जाता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल  2 और 3 
(c) केवल 1 और 2 
(d) केवल 3 

उत्तर: (a) 

व्याख्या: 

  • PSLV भारत की तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है। यह तरल अवस्था से युक्त पहला भारतीय लॉन्च व्हीकल है। 
  • इसका उपयोग मुख्य रूप से पृथ्वी की निम्न कक्षाओं में विभिन्न उपग्रहों (विशेष रूप से उपग्रहों की भारतीय रिमोट सेंसिंग शृंखला) को स्थापित करने के लिये किया जाता है। यह 600 किमी. की ऊंँचाई के सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षाओं में 1,750 किलोग्राम तक का पेलोड ले जा सकता है। 
  • GSLV को मुख्य रूप से भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली या इन्सैट को स्थापित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज एवं बचाव कार्यों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इसरो द्वारा लॉन्च किये गए बहुउद्देशीय भू-स्थिर उपग्रहों की एक शृंखला है। यह उपग्रहों को अंडाकार जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित करता है। अत: कथन 1 सही है। 
  • भू- तुल्यकालिक कक्षाओं में उपग्रह आकाश में एक ही स्थिति में स्थायी रूप से स्थिर प्रतीत होते हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है। 
  • GSLV-Mk III एक चौथी पीढ़ी, चार तरल स्ट्रैप-ऑन के साथ तीन चरण लॉन्च वाहन है। स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS), जो उड़ान सिद्ध है, GSLV MK III के तीसरे चरण का निर्माण करता है। यह 4-5 टन के उपग्रहों को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में ले जाने में सक्षम है। रॉकेट में दो ठोस मोटर स्ट्रैप-ऑन (S200), एक तरल प्रणोदक कोर चरण (L110) तथा एक क्रायोजेनिक चरण (C-25) के साथ तीन चरण हैं। अत: कथन 3 सही नहीं है।  
  • अतः विकल्प (A) सही है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


वर्मिन जानवरों की हत्या

प्रिलिम्स के लिये:

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, वर्मिन, वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021। 

मेन्स के लिये:

विभिन्न वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 का योगदानवर्मिन जानवरों की हत्या पारिस्थितिकी तंत्र की खाद्य शृंखला के लिये गंभीर खतरा पैदा करती है। 

चर्चा में क्यों? 

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को दिसंबर 2021 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन करने के लिये संसद में पेश किया गया था। 

  • संशोधन का मूल उद्देश्य परिस्थितियों में परिवर्तन के अनुसार, अधिनियम को संरेखित करना और वर्मिन/पीड़क जानवरों की हत्या के उचित समाधान के अनुकरण का प्रयास करना है। 

वर्मिन: 

  • वर्मिन मूल रूप से समस्याग्रस्त या हानिकारक जानवर हैं क्योंकि वे मनुष्यों, फसलों, पशुओं या संपत्ति के लिये खतरा होते हैं। 
  • प्रजातियांँ जिन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची V में रखा गया है, उन्हें वर्मिन के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 
    • उदाहरण: कौवे, फल चमगादड़, चूहे जिनका स्वतंत्र रूप से शिकार किया जा सकता है। 
  • अधिनियम वर्मिन शब्द को परिभाषित नहीं करता है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 62 केंद्र सरकार को किसी भी जंगली जानवर को वर्मिन घोषित करने की शक्ति प्रदान करती है। 
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I और अनुसूची II में शामिल जंगली जानवरों की प्रजातियों को वर्मिन घोषित नहीं किया जा सकता है। 
    • एक जानवर को किसी भी निर्दिष्ट क्षेत्र और  निर्दिष्ट अवधि के लिये वर्मिन के रूप में घोषित किया जा सकता है। 
  • मानव-वन्यजीव संघर्षों को रोकने के लिये अतीत में कई राज्यों ने हाथी, भारतीय साही, बोनट मकाक, लंगूर और भौंकने वाले हिरण सहित विभिन्न जानवरों को वर्मिन घोषित करने के लिये याचिका दायर की है। 
  • केंद्र ने हिमाचल प्रदेश में रीसस बंदर, उत्तराखंड में जंगली सूअर और बिहार में नीलगाय को वर्मिन घोषित किया है। 

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: 

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, साथ ही जंगली जानवरों, पौधों एवं उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन व नियंत्रण के लिये कानूनी ढांँचा प्रदान करता है। 
  • अधिनियम में पौधों और जानवरों की अनुसूचियों को भी सूचीबद्ध किया गया है जिनकी सरकार द्वारा सुरक्षा व निगरानी की जाती है। 
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में वर्तमान में छह अनुसूचियांँ हैं जो जानवरों और पौधों को अलग-अलग सुरक्षा प्रदान करती हैं। 
  • अनुसूची I और अनुसूची II के भाग II में सूचीबद्ध नस्लों एवं वर्ग के जानवरों को सर्वोच्च सुरक्षा मिलती है। उदाहरण के लिये हिमालयन ब्राउन बीयर, भारतीय हाथी, गोल्डन गेकोस, अंडमान टील, हॉर्नबिल्स, ब्लैक कोरल, अमारा ब्रूसी तथा कई अन्य। इनके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड निर्धारित किया गया है। 
  • अनुसूची III और अनुसूची IV में सूचीबद्ध नस्लों और वर्ग के जानवर भी सुरक्षित हैं, उदाहरण के लिये बार्किंग हिरण, बाज़, किंगफिशर, कछुआ आदि, लेकिन दंड तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। 
  • अनुसूची V में वे जानवर शामिल हैं जिनका शिकार किया जा सकता है। उदाहरण के लिये कौआ, चूहे और मूषक, फल चमगादड़ आदि। 
  • अनुसूची VI में वर्णित पौधों, पेड़ों और फसलों की खेती एवं रोपण से प्रतिबंधित कर दिया गया है। उदाहरण के लिये कूठ, रेड वांडा, पिचर प्लांट आदि। 

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 के माध्यम से संभावित परिवर्तन: 

  • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 एक महत्तवपूर्ण संशोधन के रूप में अनुसूचियों की संख्या को छह से घटाकर चार कर दिया गया है। 
    • अनुसूची I में उन प्रजातियों को शामिल किया जाएगा जिन्हें उच्चतम स्तर के संरक्षण की आवश्यकता है। 
  •  अनुसूची II में उन प्रजातियों को शामिल किया जाएगा जिन्हें कम संरक्षण की आवश्यकता है 
  • जबकि अनुसूची III में पौधों को शामिल किया जाएगा। 
  • यह अनुसूची V को पूरी तरह से समाप्त करने का प्रावधान करता है। यह वर्मिन प्रजातियों को किसी भी प्रकार की अनुसूची से बाहर करता है। वर्मिन शब्द उन छोटे जानवरों को संदर्भित करता है जो बीमारियों का प्रसार और खाद्य पदार्थों को दूषित/हानि पहुँचाते हैं। 
  • यह CITES (अनुसूचित प्रजातियों) के तहत परिशिष्टों में सूचीबद्ध प्रजातियों के लिये एक नए कार्यक्रम को शामिल करता है। 
  • केंद्र सरकार को किसी भी प्रजाति को वर्मिन प्रजाति के रूप में घोषित करने का अधिकार होगा। 
  • इस प्रकार किसी भी प्रजाति को वर्मिन प्रजाति कि श्रेणी में रखना आसान हो जाता है। 
  • यह परिवर्तन संभावित रूप से स्तनधारियों की 41 प्रजातियों, 864 पक्षियों, 17 सरीसृपों और उभयचरों एवं 58  से अधिक कीड़ों की प्रजातियों को प्रभावित कर सकता है। 

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 की आवश्यकता:  

  • बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष ने जानवरों और मनुष्यों दोनों के लिये खतरा पैदा कर दिया है। 
    • फसल/पशुधन क्षति के रूप में ऐसी घटनाएँ देश के विभिन्न भागों से व्यापक रूप से रिपोर्ट की जाती हैं। 
      • हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग द्वारा वर्ष 2016 में जंगली जानवरों, विशेष रूप से बंदरों के कारण 184.28 करोड़ रुपए की फसल की हानि दर्ज की गई 
  • वर्ष 2017 के बाद से तमिलनाडु में जंगली जानवरों द्वारा कृषि को नुकसान पहुँचाने की 7,562 घटनाएँ दर्ज की गईं हैं। 

कीट और पारिस्थितिक असंतुलन का इतिहास: 

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में उल्लिखित जेनेसिस वर्मिन की श्रेणी औपनिवेशिक काल की है जो  न्यूनतम वैज्ञानिक आधारों पर वर्गीकृत है 
    • ट्यूडर वर्मिन अधिनियम अवांछनीय जानवरों और कृषि को हानि पहुँचाने वाले कीटों को  समाप्त करने का प्रावधान करता है। 
  • अनाज संरक्षण अधिनियम, 1532, वर्मिन अधिनियमों में से एक था जिसमें वार्मिन की श्रेणी में शामिल  प्रजातियों की एक आधिकारिक सूची जारी की गई 
    • उल्लू, ऊदबिलाव, लोमड़ी, हेजहॉग और अन्य संबंधित जानवरों को मनुष्यों के साथ भोजन के प्रतिद्वंदी के रूप में माना जाता है। 
  • वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर भारत सरकार ने एक व्यापक वर्मिन आबादी को समाप्त करने की अनुमति दे दी है। 
    • उदाहरण के लिये हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रत्येक वर्मिन बंदर को मारने पर 500-700 रुपए देने की घोषणा की है। 
  • सरकार के इस रवैये से गंभीर पारिस्थितिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 
  • बड़े पैमाने पर वर्मिन जानवरों को मारे जाने से क्षेत्र की खाद्य शृंखला में शून्यता/निर्वात की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है। 
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने के घातक तरीके लक्षित प्रजातियों को तो खतरे में डालते ही हैं साथ ही अक्सर गैर-लक्षित जानवरों के लिये भी घातक सिद्ध होते हैं। 
    • वर्ष 2016 में कृषि को हुए नुकसान के कारण कर्नाटक सरकार द्वारा जंगली सूअर की हत्या को वैध किये जाने के बाद कर्नाटक के नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान में घोंघे की संख्या में वृद्धि हुई। 
    • जंगली सूअरों को पकड़ने के लिये लगाए गए जालों में बाघ, तेंदुआ और भालू (सभी अनुसूची I जानवर) जैसी प्रजातियाँ भी फँंस गईं थीं। 
  • हिमाचल प्रदेश सरकार ने वर्ष 2020 के बाद से अब तक रीसस मकाक को चार बार वर्मिन घोषित किया है जिसके परिणामस्वरूप इसकी आबादी में अंततः 33.5% की कमी आई है। 
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन के गैर-घातक तरीकों को घातक तरीकों की तुलना में अधिक प्रभावी बताया गया है। 
  • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सामूहिक हत्या वास्तविक समस्या को संबोधित नहीं करती है। 

मानव-वन्यजीव संघर्षों में वृद्धि का कारण: 

  • मानव-वन्यजीव संघर्षों में वृद्धि का मुख्य कारण आवास क्षति और अतिक्रमण है। 
  • विकास परियोजनाओं, औद्योगीकरण और कृषि विस्तार ने वन क्षेत्र को काफी कम कर दिया है। 
  • इससे अंततः जंगली जानवर कृषि बस्तियों के निकट आने को विवश हुए जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्याएँ उत्पन्न हुईं। 

आगे की राह 

  • मानव-वन्यजीव संघर्षों को कम करने के लिये किसी जानवर को 'वर्मिन' घोषित करना न तो स्थायी  और न ही प्रभावी समाधान है। 
  • नतीजतन, फसल क्षति की मात्रा पर एक डेटाबेस बनाए रखने और संघर्ष पैटर्न का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने तथा समस्या पैदा करने वाले जानवरों की गणना किये जाने की तत्काल आवश्यकता है। 
  • डेटा के बिना लिये गए अवैज्ञानिक और अचानक निर्णयों से पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैवविविधता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


चीन का तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन

प्रिलिम्स के लिये:

तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन, भारत का अर्थ ऑब्जर्वेटरी उपग्रह, ध्रुवीय उपग्रह, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन।  

मेन्स के लिये:

अंतरिक्ष कार्यक्रम, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में तकनीकी नवाचार का योगदान। 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में चीन की रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष स्टेशन परियोजना ने अपने अंतिम चरण को पूरा किया, इसके साथ ही चीन  के तीन अंतरिक्ष यात्रियों ने तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन के ऑर्बिट मॉड्यूल में प्रवेश कर लिया है। 

  • इन्हें  शेनझोउ-14 अंतरिक्षयान द्वारा निर्धारित कक्षा में भेजा गया। 
    • शेनझोउ-1 से 4 अंतरिक्ष उड़ानें, मानव रहित अंतरिक्ष उड़ान मिशन थीं। 
    • शेनझोउ-5 से 14 अंतरिक्ष उड़ानें, मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान मिशन हैं। 
  • अंतरिक्ष स्टेशन एक अंतरिक्षयान है जो चालक दल के सदस्यों की सहायता करने में सक्षम है, जिसे अंतरिक्ष में एक विस्तारित अवधि के लिये और अन्य अंतरिक्षयानों के डॉकिंग के लिये निर्मित किया गया है। 

तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन: 

  • तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन चीनी अंतरिक्ष स्टेशन है जिसे पृथ्वी से 340 से 450 किलोमीटर के बीच लो अर्थ ऑर्बिट में बनाया गया है। 
    • यह चीन के मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम का हिस्सा और देश का पहला दीर्घकालिक अंतरिक्ष स्टेशन है। 
  • चीन कम-से-कम दस वर्षों के लिये अपने नए तियांगोंग मल्टी-मॉड्यूल अंतरिक्ष  स्टेशन का संचालन करने जा रहा है। 
  • चीन ने वर्ष 2021 में अपने स्थायी अंतरिक्ष स्टेशन के लिये "तियानहे" या "हार्मनी ऑफ द हेवन्स" नामक एक मानव रहित मॉड्यूल लॉन्च किया, जिसके वर्ष 2022 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है। 
  • तियानहे कोर मॉड्यूल तियांगोंग स्पेस स्टेशन मॉड्यूल को लॉन्च करने वाला पहला मॉड्यूल है। 

China_Space_station

चीन का मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम: 

  • चीनी सरकार ने 1992 में "तीन-चरण" पद्धति का उपयोग करके एक मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया, जिसे चीन के मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम के रूप में जाना जाता है। 
    • पहला चरण: बुनियादी मानव अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में महारत हासिल करने के लिये मानवयुक्त अंतरिक्षयान लॉन्च करना। 
    • दूसरा चरण: अनुसंधान एवं विकास में तकनीकी सफलता हासिल करने के लिये स्पेस लैब्स लॉन्च करना और लंबे समय तक मानव-प्रवृत्त उपयोग को सामान्य पैमाने पर समायोजित करना। 
    • तीसरा चरण: बड़े पैमाने पर लंबे समय तक मानव-प्रवृत्त उपयोग को समायोजित करने के लिये चीन के अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण करना। 
  • इसका प्रबंधन चीन के मानवयुक्त अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा किया जाता है। 

चीन के लिये इस लॉन्च का महत्त्व: 

  • रूस और अमेरिका के बाद चीन तीसरा ऐसा देश है जिसने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा है तथा अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण किया है। 
  • चीनी अंतरिक्ष स्टेशन (CSS) भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशनों के लिये प्रतियोगी होने की उम्मीद है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) कई देशों की एक सहयोगी परियोजना है। 
    • ISS इतिहास की सबसे जटिल अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग परियोजना है तथा मानव द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित सबसे बड़ी संरचना है। 

भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन कार्यक्रम: 

  • परिचय: 
    • भारत वर्ष 2030 तक अमेरिका, रूस और चीन के सर्वोत्कृष्ट अंतरिक्ष क्लब में शामिल होकर अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन शुरू करने योजना बना रहा है। 
    • भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Indian Space Station), जिसका भार लगभग 20 टन होगा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की तुलना में बहुत हल्का होगा। इसका प्रयोग माइक्रो ग्रेविटी (Microgravity) से संबंधित परीक्षणों में किया जाएगा, न कि अंतरिक्ष यात्रा के लिये। 
    • इस परियोजना के प्रारंभिक चरण के अंतर्गत अंतरिक्ष यात्री इसमें लगभग 20 दिनों तक रह सकेंगे। यह परियोजना गगनयान मिशन के विस्तार के रूप में होगी। 
    • यह अंतरिक्ष स्टेशन लगभग 400 किमी. की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा करेगा। 
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (Space Docking experiment- Spadex) पर काम कर रहा है। 
      • “स्‍पेस डॉकिंग तकनीक का तात्पर्य अंतरिक्ष में दो अंतरिक्षयानों को जोड़ने की तकनीक से है। यह एक ऐसी तकनीक है जिसकी सहायता से मानव को एक अंतरिक्षयान से दूसरे अंतरिक्षयान में भेज पाना संभव होता है। अतः स्‍पेस डॉकिंग अंतरिक्ष स्‍टेशन के संचालन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।” 
  • महत्त्व: 
    • अंतरिक्ष स्टेशन सार्थक वैज्ञानिक डेटा (विशेष रूप से जैविक प्रयोगों के लिये) एकत्र करने के लिये आवश्यक है। 
    • अन्य अंतरिक्ष वाहनों पर उपलब्ध वैज्ञानिक अध्ययनों की तुलना में अधिक संख्या और लंबे समय तक वैज्ञानिक अध्ययन हेतु मंच प्रदान करने के लिये (जैसे कि गगनयान मनुष्यों और प्रयोगों को माइक्रोग्रैविटी में कुछ दिनों के लिये ही ले जाएगा)। 
    • अंतरिक्ष स्टेशनों का उपयोग लंबी अवधि की अंतरिक्ष उड़ान के मानव शरीर पर प्रभावों का अध्ययन करने के लिये किया जाता है। 

स्रोत: द हिंदू 


जलवायु आपदाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र निधि अपर्याप्त: ऑक्सफैम

प्रिलिम्स के लिये:  

ऑक्सफैम इंटरनेशनल, जलवायु वित्त, पक्षकारों का सम्मेलन। 

मेन्स के लिये:  

ऑक्सफैम इंटरनेशनल रिपोर्ट ऑन क्लाइमेट फाइनेंस। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र को जलवायु संबंधी आपदाओं (सूखा, बाढ़ या वनाग्नि) के दौरान निम्न आय वाले देशों को मानवीय सहायता प्रदान करने में सक्षम होने के लिये 20 वर्ष पहले की तुलना में आठ गुना अधिक जलवायु वित्त की आवश्यकता है। 

ऑक्सफैम इंटरनेशनल: 

  • ऑक्सफैम इंटरनेशनल का गठन वर्ष 1995 में हुआ था जो स्वतंत्र गैर-सरकारी संगठनों का एक समूह है। 
  • "ऑक्सफैम" नाम ब्रिटेन में वर्ष 1942 में स्थापित ‘अकाल राहत के लिये ऑक्सफोर्ड सहायता समिति’ (Oxford Committee for Famine Relief) से लिया गया है। 
    • इस समूह ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ग्रीस में भूख से पीड़ित महिलाओं और बच्चों के लिये भोजन की आपूर्ति हेतु अभियान चलाया। 
  • इसका उद्देश्य वैश्विक गरीबी और अन्याय को कम करने के लिये कार्य क्षमता को बढ़ाना है। 
  • ऑक्सफैम का अंतर्राष्ट्रीय सचिवालय नैरोबी (केन्या) में स्थित है। 

िष्कर्ष: 

  • वर्ष 2000-02 तकं संयुक्त राष्ट्र ने मानवीय सहायता के रूप 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अपील की थी तथा वर्ष 2019-2021 तक की गई अपील राशि औसतन 15.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई जो अभूतपूर्व 819% वृद्धि को दर्शाता है।  
  • धनी देशों द्वारा पिछले पाँच वर्षों में संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई अपील की 54% की पूर्ति की गई है, जिससे इन देशों को 28-33 बिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा हुआ है। 
  • निम्न आय वाले देशों में लोग जलवायु से संबंधित आपदाओं के प्रभावों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं, चाहे वह सूखा, बाढ़ या वनाग्नि कुछ भी हो, क्योंकि ये आपदाएँ गरीबी एवं मौत के आँकड़ों को और अधिक प्रभावित करती हैंं। 
  • भारी वित्तीय बोझ के अलावा जलवायु संकट के कारण होने वाली क्षति में स्वास्थ्य, जैव विविधता एवं स्वदेशी ज्ञान की हानि, लिंग संबंधी मुद्दे तथा अन्य संबंधित कारक शामिल हैं। 
  • संयुक्त राष्ट्र को मानवीय सहायता के लिये आवश्यक प्रत्येक 2 अमेरिकी डॉलर की तुलना में अमीर देश केवल 1 अमेरिकी डॉलर ही प्रदान करते हैं। 
  • यह इस तथ्य के बावजूद है कि पृथ्वी पर 1% सबसे अमीर लोग ही सबसे गरीब लोगों की तुलना में दोगुना कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं। 
  • अफगानिस्तान, बुर्किना फासो, बुरुंडी, चाड, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, हैती, केन्या, नाइज़र, सोमालिया, दक्षिण सूडान और जिम्बाब्वे उन दस देशों में शामिल हैं, जिन्हें जलवायु वित्त की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। 
  • अमीर लोग जलवायु जोखिमों से कम प्रभावित होते हैं और मौसमी आपदाओं से सुरक्षा के मामले सक्षम होते हैं। वे अधिक सुरक्षित स्थानों पर रहते हैं और उनके पास इन सब से बचाव के लिये अधिक संपत्ति होती है। गरीब लोगों के पास कम सुरक्षा होती है, इसलिये उन्हें अधिक नुकसान उठाना पड़ता है, जो समय के साथ बढ़ता जाता है। 
  • एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2030 तक नुकसान और क्षति की आर्थिक लागत 290-580 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सीमा तक बढ़ जाएगी। 

अनुशंसाएँ: 

  • जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और उसकी लागत का भुगतान ज़िम्मेदारी के आधार पर होना चाहिये न कि चैरिटी के आधार पर। 
  • अमीर देशों, अमीर लोगों और बड़े निगमों जिन्हें जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिये, को इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिये भुगतान करना चहिये। 
  • अमीर देशों से वित्त के नवीन स्रोतों को आकर्षित करने के लिये एक सुविधा की स्थापना की आवश्यकता है, जिसे वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) में पार्टियों के 26वें सम्मेलन (CoP26) में विकसित देशों द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था। 
  • CoP27 में सरकारों को नुकसान और क्षतिपूरक वित्त को जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के वैश्विक भंडार स्रोत का एक मुख्य तत्त्व बनाने के लिये सहमत होना चाहिये। 

जलवायु वित्त: 

  • परिचय: 
    • जलवायु वित्त ऐसे स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है, जो सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों से प्राप्त किया गया हो। यह ऐसे शमन एवं अनुकूलन कार्यों का समर्थन करता है जो जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्याओं का निराकरण करेंगे। 
      • न्यूनीकरण के लिये जलवायु वित्त की आवश्यकता है, क्योंकि उत्सर्जन को उल्लेखनीय रूप से कम करने हेतु बड़े पैमाने पर निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है। 
      • यह अनुकूलन के लिये भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रतिकूल प्रभावों के अनुकूल होने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। 

जलवायु वित्त के सिद्धांत:  

  • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत: 
    • 'प्रदूषक भुगतान सिद्धांत' का आशय आमतौर पर एक स्वीकृत प्रथा है, जिसके अनुसार प्रदूषण उत्पन्न करने वालों को मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने हेतु इसे प्रबंधित करने की लागत वहन करनी चाहिये। 
    • यह सिद्धांत भूमि, जल और वायु को प्रभावित करने वाले प्रदूषण के अधिकांश विनियमन को मज़बूती प्रदान करता है जिसे औपचारिक रूप से वर्ष 1992 के रियो घोषणा के रूप में जाना जाता है। 
    • इसे विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये भी लागू किया गया है जो जलवायु परिवर्तन का कारण बनते हैं। 
  • समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्व तथा संबंधित क्षमताएँ (CBDR–RC): 
  • अतिरिक्त जलवायु वित्त आवश्यक: 
    • जलवायु परिवर्तन गतिविधियों के लिये विकास की ज़रूरतों हेतु धन के विचलन से बचने के लिये मौजूदा प्रतिबद्धताओं के लिये अतिरिक्त जलवायु वित्त होना चाहिये। 
    • इसमें सार्वजनिक जलवायु वित्त का उपयोग और निजी क्षेत्र द्वारा निवेश शामिल हैं। 
  • पर्याप्तता और सावधानी:  
    • UNFCCC के तहत घोषित लक्ष्य के रूप में जलवायु परिवर्तन के कारणों को रोकने या कम करने हेतु एहतियाती उपाय करने, वैश्विक तापमान को यथासंभव सीमा के भीतर रखने हेतु पर्याप्त कोष का होना ज़रूरी है। 
    • आवश्यक जलवायु निधियों से राष्ट्रीय अनुमानों में पर्याप्तता का एक बेहतर स्तर प्राप्त किया जा सकता है, इससे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) के संबंध में नियोजित निवेश में मदद मिलेगी। 
  • पूर्वानुमान: 
    • जलवायु वित्त के निरंतर प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये जलवायु वित्त पूर्वानुमान योग्य होना चाहिये। 
    • यह कार्य बहु-वर्षीय, मध्यम अवधि के वित्तपोषण चक्र (3-5 वर्ष) के माध्यम से किया जा सकता है। 
    • यह देश के राष्ट्रीय अनुकूलन और शमन प्राथमिकताओं को बढ़ाने के लिये पर्याप्त निवेश कार्यक्रम की अनुमति देता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ  


इस्लामिक सहयोग संगठन

प्रिलिम्स के लिये:  

इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी), संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद। 

मेन्स के लिये:  

भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, एक संगठन के रूप में ओआईसी के साथ भारत का संबंध। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) ने पैगंबर मुहम्मद पर दो भारतीयों द्वारा की गई टिप्पणियों की आलोचना की। 

  • विदेश मंत्रालय ने OIC की टिप्पणियों को खारिज करते हुए कहा कि नागरिकों द्वारा व्यक्त किये गए विचार भारत सरकार के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। 
  • इससे पहले भारत ने कर्नाटक हिजाब विवाद के बीच सांप्रदायिक सोच रखने के लिये OIC की आलोचना की थी। 

इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC): 

  • परिचय: 
    • यह संगठन दुनिया भर में मुस्लिम जगत की सामूहिकता का प्रतिनिधित्व करता है। 
    • इसका गठन सितंबर 1969 में मोरक्को के रबात में हुए ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन के दौरान किया गया था, जिसका लक्ष्य वर्ष 1969 में एक 28 वर्षीय ऑस्ट्रेलियाई द्वारा येरुशलम में अल-अक्सा मस्जिद में आगजनी की घटना के बाद इस्लामिक मूल्यों को सुरक्षा प्रदान करना था। 
  • सदस्य: 
    • इसके सदस्य देशों की संख्या 57 है। 
  • उद्देश्य: 
    • OIC सदस्य राज्यों के बीच एकजुटता स्थापित करना 
    • कब्ज़े वाले किसी भी सदस्य राज्य की पूर्ण संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की बहाली का समर्थन करना। 
    • इस्लाम का संरक्षण करना, इसकी रक्षा करना तथा इसकी निंदा का विरोध करना। 
    • मुस्लिम समाजों में बढ़ते असंतोष को रोकना और यह सुनिश्चित करने के लिये काम करना कि सदस्य राज्य संयुक्त राष्ट्र महासभा, मानवाधिकार परिषद और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एकजुट रहें। 
  • मुख्यालय: जेद्दाह (सऊदी अरब) 
    • संगठन ने विवादित शहर यरूशलेम के 'मुक्त' होने के बाद स्थायी रूप से अपने मुख्यालय को पूर्वी येरुशलम में स्थानांतरित करने की योजना बनाई है। 
    • इसके अलावा यह 'युद्ध अपराधों' और अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के लिये इज़रायल को ज़िम्मेदार ठहराता है। 
  • OIC चार्टर: 
    • संगठन एक चार्टर का पालन करता है जो इसके उद्देश्यों, सिद्धांतों और संचालन तंत्र को निर्धारित करता है। 
    • इसे पहली बार 1972 में अपनाया गया, विकासशील देशों की उभरती परिस्थितियों के अनुरूप चार्टर को कई बार संशोधित किया गया है। 
    • वर्तमान चार्टर मार्च 2008 में सेनेगल के डकार में अपनाया गया था। 
    • इसमें निहित है कि सभी सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों के लिये खुद को प्रतिबद्ध करने के साथ-साथ इस्लामी शिक्षाओं और मूल्यों से निर्देशित और प्रेरित किया जाए। 

OIC

OIC की कार्य-प्रणाली: 

  • सदस्यता: 
    • मुस्लिम बाहुल्य संयुक्त राष्ट्र के सदस्य इस संगठन में शामिल हो सकते हैं। 
    • OIC की विदेश मंत्रियों की परिषद में पूर्ण सहमति के साथ सदस्यता की पुष्टि की जाती है। 
    • पर्यवेक्षक का दर्ज़ा प्राप्त करने के लिये भी समान प्रावधान लागू होते हैं। 
  • निर्णय प्रक्रिया: 
    • संगठन में सभी निर्णय लेने के लिये दो-तिहाई सदस्य देशों की उपस्थिति और पूर्ण सहमति के साथ परिभाषित गणपूर्ति की आवश्यकता होती है।  
    • यदि आम सहमति नहीं बन पाती है, तो निर्णय उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा किया जाता है। 
    • विदेश मंत्रियों की परिषद मुख्य निर्णय लेने वाली संस्था है और OIC की सामान्य नीतियों को कैसे लागू किया जाए, इस पर निर्णय लेने के लिये वार्षिक बैठक होती है। 
      • ये सामान्य हित के मामलों पर निर्णय और संकल्प लेते हैं, उनकी प्रगति की समीक्षा करते हैं, कार्यक्रमों व उनके बजट पर विचार ंकरने के साथ ही उनका अनुमोदन करते हैं, सदस्य राज्यों कि समस्या वाले विशिष्ट मुद्दों पर विचार करते हैं तथा एक नया अंग या समिति स्थापित करने की सिफारिश करते हैं। 
  • वित्त: 
    • OIC को सदस्य देशों द्वारा उनकी राष्ट्रीय आय के अनुपात में वित्तपोषित किया जाता है। 
      • किसी सदस्य के मतदान के अधिकार तब निलंबित कर दिये जाते हैं जब उनका बकाया पिछले दो वर्षों के लिये उनके द्वारा देय योगदान की राशि के बराबर या उससे अधिक हों 
      • सदस्य को वोट देने की अनुमति केवल तभी दी जाती है जब विदेश मंत्रियों की परिषद संतुष्ट हो कि यह विफलता सदस्यों के नियंत्रण से परे स्थितियों के कारण है। 
  • इस्लामिक शिखर सम्मेलन: 
    • यह राजाओं और देश के प्रमुखों द्वारा गठित है जिनके पास संगठन से संबंधित सर्वोच्च अधिकार हैं। 
    • प्रत्येक तीन वर्ष में यह संगठन विचार-विमर्श करता है, नीतिगत निर्णय लेता है, संगठन से संबंधित मुद्दों पर मार्गदर्शन प्रदान करता है और सदस्य देशों से संबंधित महत्तवपूर्ण मुद्दों पर विचार करता है। 
  • विदेश मंत्रियों की परिषद: 
    • विदेश मंत्रियों की परिषद मुख्य निर्णय लेने वाली संस्था है और OIC की सामान्य नीतियों को कैसे लागू किया जाए, इस पर निर्णय लेने के लिये वार्षिक बैठक करती है। 
      • वे सामान्य हित के मामलों पर निर्णय एवं संकल्प लेते हैं, उनकी प्रगति की समीक्षा करते हैं, कार्यक्रमों तथा उनके बजट पर विचार व अनुमोदन करते हैं, सदस्य राज्यों को परेशान करने वाले विशिष्ट मुद्दों पर विचार करते हैं और किसी नए अंग या समिति की स्थापना की सिफारिश करते हैं। 
  • स्थायी समितियाँ: 
    • OIC के पास सूचना एवं सांस्कृतिक मामलों, आर्थिक एवं वाणिज्यिक मामलों, वैज्ञानिक एवं तकनीकी पहल और येरुशलम के लिये सहयोग हेतु स्थायी समितियाँ भी हैं। 

OIC की आलोचना: 

  • मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को प्राथमिकता: 
    • OIC 'विंडो ड्रेसिंग' के लिये एक आधार बन गया है, जो अपने सदस्य राज्यों के लोगों के मानवाधिकारों के उल्लंघन की बजाय फिलिस्तीन या म्यांँमार जैसे देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों के मामले में अधिक रुचि रखता है। 
  • मानवाधिकार उल्लंघनों की जांँच करने में अक्षम: 
    • मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांँच करने या हस्ताक्षरित संधियों और घोषणाओं के माध्यम से अपने निर्णयों को लागू करने के लिये निकाय के पास शक्ति एवं संसाधनों की कमी है। 
  • कुरान के मूल्यों के आसपास केंद्रित: 
    • संगठन उन्हीं विवादों की मध्यस्थता तक सीमित है जहांँ दोनों पक्ष मुस्लिम हैं। 
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि संगठन कुरान के मूल्यों के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जो इसे एक योग्य मध्यस्थ बनाता है। 
  • सहकारी उद्यम स्थापित करने में विफल: 
    • OIC अपने सदस्यों के बीच एक सहकारी उद्यम स्थापित करने में विफल रहा है, जो या तो पूंजी-समृद्ध एवं श्रम की कमी वाले देश या श्रम-समृद्ध और पूंजी दुर्लभ वाले देश हैं। 
    • यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति या आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता के रूप में विकसित नहीं हो सका है। 

OIC के साथ भारत के संबंध: 

  • दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मुस्लिम समुदाय वाले देश के रूप में भारत को वर्ष 1969 में रबात में संस्थापक सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था, लेकिन पाकिस्तान के इशारे पर अपमानजनक तरीके से भारत को बाहर कर दिया गया। 
  • भारत कई कारणों से अब तक इस संगठन से दूर रहा: 
    • भारत एक ऐसे संगठन में शामिल नहीं होना चाहता था जो धर्म के आधार पर गठित हो। 
    • साथ ही ज़ोखिम था कि सदस्य देशों के साथ व्यक्तिगत तौर पर द्विपक्षीय संबंधों में सुधार से वह एक समूह के दबाव में आ जाएगा, खासकर कश्मीर जैसे मुद्दों पर। 
  • वर्ष 2018 में विदेश मंत्रियों के शिखर सम्मेलन के 45वें सत्र में मेज़बान बांग्लादेश ने सुझाव दिया कि भारत, जहाँ दुनिया के 10% से अधिक मुसलमान रहते हैं, को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया जाना चाहिये, लेकिन पाकिस्तान द्वारा प्रस्ताव का विरोध किया गया। 
  • संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे शक्तिशाली सदस्यों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के बाद भारत समूह के किसी भी बयान पर भरोसा करने के लिये आश्वस्त है। 
    • भारत ने लगातार इस बात को रेखांकित किया है कि जम्मू-कश्मीर "भारत का अभिन्न अंग है और यह भारत का आंतरिक मामला है" तथा इस मुद्दे पर OIC का कोई अधिकार नहीं है। 
  • वर्ष 2019 में भारत ने OIC के विदेश मंत्रियों की बैठक में "गेस्ट ऑफ ऑनर" के रूप में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की। 
    • इस पहले निमंत्रण को भारत के लिये एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया, विशेष रूप से ऐसे समय में जब पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ गया था। 

यूपीएससी सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न: 

प्र. संयुक्त राष्ट्र महासभा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022) 

  1. UN महासभा, गैर-सदस्य राज्यों को प्रेक्षक स्थिति प्रदान कर सकती है। 
  2. अंत:सरकारी संगठन UN महासभा में प्रेक्षक स्थिति पाने का प्रयत्न कर सकते हैं। 
  3. UN महासभा में स्थायी प्रेक्षक UN मुख्यालय में मिशन बनाए रख सकते हैं। 

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं? 

(a) केवल 1 और 2 
(b)  केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d)  1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 

व्याख्या: 

  • संयुक्त राष्ट्र के गैर-सदस्य राज्य, जो एक या अधिक विशिष्ट एजेंसियों के सदस्य हैं, स्थायी पर्यवेक्षक के दर्जे के लिये आवेदन कर सकते हैं। 
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा गैर-सदस्य राज्यों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और अन्य संस्थाओं को स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा दे सकती है। अतः कथन 1 और 2 सही हैं। 
  • एक स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा विशुद्ध रूप से अभ्यास पर आधारित होता है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर में इसके लिये कोई प्रावधान नहीं है। 
  • इस प्रणाली की शुरुआत वर्ष 1946 में हुई, जब महासचिव ने संयुक्त राष्ट्र में एक स्थायी पर्यवेक्षक के रूप में स्विस सरकार के पद को स्वीकार किया। 
  • धीरे-धीरे कुछ राज्यों द्वारा पर्यवेक्षकों को आगे रखा गया जो बाद में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बन गए इनमें ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, इटली और जापान शामिल थे। 10 सितंबर, 2002 को स्विट्ज़रलैंड संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना। 
  • स्थायी पर्यवेक्षकों के पास अधिकांश बैठकों और प्रासंगिक दस्तावेज़ों तक निशुल्क पहुँच होती है। 
  • कई क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी महासभा के कार्य और वार्षिक सत्रों में पर्यवेक्षक रहे हैं। 
  • स्थायी पर्यवेक्षक संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में महासभा के सत्रों और कार्यों में भाग ले सकते हैं तथा मिशनों को जारी रख सकते हैं। अतः कथन 3 सही है। 

स्रोत: द हिंदू