इन्फोग्राफिक्स
आंतरिक सुरक्षा
चिकित्सा उपकरण और मैलवेयर
प्रिलिम्स के लिये:चिकित्सा उपकरण और मैलवेयर, रैनसमवेयर, साइबर हमले, ट्रोजन हॉर्स, साइबर सुरक्षित भारत, साइबर स्वच्छता केंद्र। मेन्स के लिये:चिकित्सा उपकरणों पर मैलवेयर हमलों के प्रभाव और उपाय। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कुछ विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ऑक्सीमीटर, हियरिंग एड, ग्लूकोमीटर और पेसमेकर जैसे सामान्य चिकित्सा उपकरणों को रैनसमवेयर में बदला जा सकता है।
- उद्योग विशेषज्ञ इस खतरे को पहचानते हुए किसी भी संभावित हानि को रोकने हेतु तत्काल प्रभाव से केंद्र सरकार के हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।
- यह चेतावनी भारत के शीर्ष तृतीयक देखभाल अस्पतालों पर हुए रैनसमवेयर हमलों के तुरंत बाद आई है, जिसके कारण दिल्ली के एम्स और सफदरजंग जैसे बड़े अस्पतालों के मेडिकल रिकॉर्ड को हैक कर लिया गया था।
चिंताएँ:
- डेटा उल्लंघन:
- चिकित्सा प्रौद्योगिकी उपकरणों के बढ़ते उपयोग और इन उपकरणों में पर्याप्त साइबर सुरक्षा के अभाव ने स्वास्थ्य सेवा उद्योग में डेटा उल्लंघनों तथा साइबर हमलों के संबंध में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- ऐसे उपकरण आमतौर पर इंटरनेट, मोबाइल फोन, सर्वर और क्लाउड से जुड़े होने के कारण हमलों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- सनफार्मा (विश्व की चौथी सबसे बड़ी जेनरिक दवा कंपनी और एक भारतीय बहुराष्ट्रीय निगम) को हाल के साइबर हमलों में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के साथ लक्षित किया गया था।
- सुभेद्य आबादी:
- भारत चिकित्सा उपकरणों हेतु विश्व के शीर्ष 20 बाज़ारों में से एक है, चिकित्सा उपकरण क्षेत्र के वर्ष 2025 तक 50 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँचने का अनुमान है। हालाँकि, तेज़ आर्थिक विकास, बढ़ती मध्यम वर्ग की आय तथा चिकित्सा उपकरणों के बाज़ार में प्रवेश ने आबादी को साइबर खतरों के प्रति संवेदनशील बना दिया है।
- अपर्याप्त प्रणालियाँ:
- इसके अलावा भारतीय स्वास्थ्य सेवा उद्योग में एक केंद्रीकृत डेटा संग्रह तंत्र का अभाव है, जो डेटा भ्रष्टाचार की सटीक लागत निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण बनाता है।
- इसके बावजूद यह स्पष्ट है कि डेटा न्यू ऑयल बन गया है और साइबर हमलों से एक महत्त्वपूर्ण खतरे से प्रभावित हो रहा है।
ऐसे साइबर खतरों से निपटना:
- विशेषज्ञों के साथ परामर्श: सरकार को उन चुनौतियों की पहचान करने हेतु उद्योग विशेषज्ञों के साथ परामर्श करना चाहिये जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
- कर्मचारी प्रशिक्षण: कर्मचारियों को फ़िशिंग ईमेल को पहचानने एवं उससे बचने के तरीके हेतु प्रशिक्षित किया जाना चाहिये, जिसका उपयोग आमतौर पर रैंसमवेयर हमलों को शुरू करने हेतु किया जाता है।
- डेटा संरक्षण एक रॉकेटिंग साइंस नहीं है, लेकिन इसके लिये कानूनी एवं तकनीकी सक्षमता, पर्याप्त संसाधनों के आवंटन तथा व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण में शामिल सभी पेशेवरों के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
- नियमित सॉफ्टवेयर अपडेट: नियमित सॉफ्टवेयर अपडेट उन कमज़ोरियों को दूर करने में मदद कर सकते हैं जिनका हैकर फायदा उठा सकते हैं।
- अभिगम नियंत्रण: चिकित्सा उपकरणों तक केवल अधिकृत कर्मियों की पहुँच को सीमित करने से अनधिकृत व्यक्तियों को उपकरणों तक पहुँचने तथा उन्हें मैलवेयर से संक्रमित करने से रोका जा सकता है।
- एन्क्रिप्शन: चिकित्सा उपकरणों पर डेटा को अनधिकृत पहुँच से बचाने हेतु एन्क्रिप्शन का उपयोग किया जा सकता है।
- नेटवर्क सेगमेंटेशन: नेटवर्क को विभाजित करने से मैलवेयर को एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस में प्रसारित होने से रोकने में मदद मिल सकती है।
साइबर खतरों के प्रमुख प्रकार:
- रैंसमवेयर: यह मैलवेयर का एक रूप है जहाँ पहले कंप्यूटर के डेटा को हाईजैक किया जाता है और फिर इसे पुनर्स्थापित करने के लिये पैसे की मांग (आमतौर पर बिटकॉइन के रूप में) संबंधी संदेश पोस्ट किया जाता है।
- ट्रोजन हॉर्स : कंप्यूटर प्रोग्राम के अंदर छुपा एक दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर प्रोग्राम होता है। यह किसी वैध प्रोग्राम जैसे- किसी स्क्रीन सेवर के अंदर छुपकर कंप्यूटर में प्रवेश करता है।
- जब उपयोगकर्ता संभवतः प्रोग्राम निष्पादित करता है, तो ट्रोजन के अंदर मैलवेयर का उपयोग सिस्टम में किसी और तरीके से प्रवेश करने के लिये किया जा सकता है जिसके माध्यम से हैकर्स कंप्यूटर या नेटवर्क में प्रवेश कर सकते हैं।
- क्लिकज़ैकिंग: यह इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को दुर्भावनापूर्ण सॉफ्टवेयर वाले लिंक पर क्लिक करने या अनजाने में सोशल मीडिया साइटों पर निजी जानकारी साझा करने के लिये लुभाने का कृत्य है।
- डिनायल ऑफ सर्विस (DOS) अटैक: किसी सेवा को बाधित करने के उद्देश्य से कई कंप्यूटरों और मार्गों से वेबसाइट जैसी किसी विशेष सेवा को ओवरलोड करने का जानबूझकर कर किया जाने वाला कृत्य।
- मैन इन मिडिल अटैक: इस तरह के हमले में दो पक्षों के बीच संदेशों को पारगमन के दौरान ‘इंटरसेप्ट’ किया जाता है।
- क्रिप्टो ज़ैकिंग: क्रिप्टो ज़ैकिंग शब्द क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित है। क्रिप्टो ज़ैकिंग तब होता है जब हमलावर क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के लिये किसी दुसरे के कंप्यूटर का उपयोग करते हैं।
- ज़ीरो डे वल्नेरेबिलिटी : ज़ीरो डे वल्नेरेबिलिटी मशीन/नेटवर्क के ऑपरेटिंग सिस्टम या एप्लीकेशन सॉफ़्टवेयर में व्याप्त ऐसा दोष है जिसे डेवलपर द्वारा ठीक नहीं किया गया है, ऐसे हैकर द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है जो इसके बारे में जानता है।
- ब्लूबगिंग: यह हैकिंग का एक रूप है जो हैकर्स को खोजे जा सकने योग्य चालू ब्लूटूथ कनेक्शन के माध्यम से डिवाइस तक पहुँच प्रदान करता है। एक बार किसी डिवाइस या फोन के ब्लूबग हो जाने के बाद, हैकर उसके कॉल सुन सकता है, संदेश पढ़ सकता है और संदेश भी भेज सकता है तथा संपर्कों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है।
साइबर सुरक्षा से संबंधित पहलें:
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C)
- भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-IN)
- साइबर सुरक्षित भारत
- साइबर स्वच्छता केंद्र
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वय केंद्र (NCCC)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में, किसी व्यक्ति के साइबर बीमा कराने पर, निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022) |
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत ने LIGO के निर्माण को मंज़ूरी दी
प्रिलिम्स के लिये:गुरूत्वीय तरंगें, लीगो-इंडिया प्रोजेक्ट। मेन्स के लिये:लीगो-इंडिया प्रोजेक्ट का महत्त्व और लाभ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने सात वर्ष की सैद्धांतिक मंज़ूरी के बाद ‘लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी (LIGO)’ परियोजना के निर्माण को मंज़ूरी दी।
- इसे परमाणु ऊर्जा विभाग और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान प्रतिष्ठान तथा कई अन्य राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर बनाया जाएगा।
लीगो-इंडिया प्रोजेक्ट (LIGO-India Project):
- परिचय:
- परियोजना का उद्देश्य ब्रह्मांड के गुरूत्वीय तरंगों का पता लगाना है।
- भारतीय लीगो में लंबवत रूप से 4 किलोमीटर लंबे दो निर्वात कक्ष होंगे, जो विश्व में सबसे संवेदनशील इंटरफेरोमीटर का गठन करते हैं।
- इसके वर्ष 2030 से शुरू होने उम्मीद है।
- अवस्थिति:
- यह मुंबई से लगभग 450 किमी पूर्व में महाराष्ट्र के हिंगोली ज़िले में स्थित होगा।
- राजस्थान और मध्य प्रदेश में दो अन्य स्थलों की उपयुक्तता जाँच के बाद स्थान का चयन किया गया था।
- यह मुंबई से लगभग 450 किमी पूर्व में महाराष्ट्र के हिंगोली ज़िले में स्थित होगा।
- उद्देश्य और महत्त्व:
- यह नियोजित नेटवर्क का पाँचवाँ नोड होगा तथा भारत को एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रयोग में शामिल करेगा।
- यह भारत को एक अद्वितीय प्लेटफ़ॉर्म बना देगा जो क्वांटम और ब्रह्मांड के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सीमाओं को एक साथ लाता है।
- लीगो-इंडिया के लाभ:
- भारत को सबसे प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रयोगों में से किसी एक को अभिन्न अंग बनाने के अतिरिक्त, लीगो-इंडिया परियोजना से भारतीय विज्ञान को कई लाभ होंगे।
- वेधशाला से खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी में उल्लेखनीय प्रगति के साथ-साथ भारतीय अनुसंधान और प्रौद्योगिकी को महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय निहितार्थ वाले क्षेत्रों में आगे बढ़ने की उम्मीद है।
गुरुत्त्वाकर्षण तरंगें
- गुरुत्वाकर्षण तरंगों को पहली बार वर्ष 1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने “जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी” में प्रस्तावित किया था, जो गुरुत्वाकर्षण के कार्य करने के बारे में बताता है।
- ये तरंगें बड़े पैमाने पर खगोलीय पिंडों, जैसे कि ब्लैक होल या न्यूट्रॉन स्टार्स के संचलन से उत्पन्न होती हैं, और अंतरिक्ष-समय के माध्यम से बाहर की ओर फैलती हैं।
लीगो
- परिचय : लीगो, गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने वाली प्रयोगशालाओं का एक अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क है।
- लीगो को दूरी में परिवर्तन को मापने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिससे प्रोटॉन की लंबाई की तुलना में छोटे परिमाण के कई क्रमों को मापा जा सकता है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों की अत्यंत कम शक्ति के कारण ऐसे उच्च परिशुद्धता उपकरणों की आवश्यकता होती है जो उनकी पहचान को बहुत मुश्किल बनाते हैं।
- गुरुत्वीय तरंगों की पहली खोज:
- अमेरिका में LIGO ने पहली बार वर्ष 2015 में गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाया जिस कारण वर्ष 2017 में इसे भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।
- ये गुरुत्वीय तरंगें दो ब्लैक होल के विलय से उत्पन्न हुई थीं, जो 1.3 अरब वर्ष पहले सूर्य के द्रव्यमान का लगभग 29 और 36 गुना थे।
- ब्लैक होल का विलय कुछ सबसे मज़बूत गुरुत्वीय तरंगों का स्रोत है।
- अमेरिका में LIGO ने पहली बार वर्ष 2015 में गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाया जिस कारण वर्ष 2017 में इसे भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।
- ऑपरेशनल LIGO:
- संयुक्त राज्य अमेरिका (हैनफोर्ड और लिविंगस्टन में) के अतिरिक्त, इस तरह की गुरुत्वीय तरंग वेधशालाएँ वर्तमान में इटली (वर्गो) और जापान (कागरा) में क्रियाशील हैं।
- गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने के लिये विश्व भर में चार तुलनीय डिटेक्टरों को एक साथ संचालित करने की आवश्यकता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका (हैनफोर्ड और लिविंगस्टन में) के अतिरिक्त, इस तरह की गुरुत्वीय तरंग वेधशालाएँ वर्तमान में इटली (वर्गो) और जापान (कागरा) में क्रियाशील हैं।
- कार्य तंत्र:
- LIGO में 4-किमी-लंबे दो निर्वात कक्ष होते हैं, जो एक दूसरे के समकोण पर स्थित होते हैं और इनके अंतिम छोर पर दर्पण लगा होता हैं।
- जब प्रत्येक कक्ष में प्रकाश पुँज एक साथ छोड़े जाते हैं, तो उनका प्रवर्तन एक ही समय में होता है।
- हालाँकि, गुरुत्वीय तरंग आने की स्थिति में एक कक्ष का आकार लंबवत हो जाता है जबकि दूसरे में सिकुड़न/संकुचन को मिलता है, इस कारण प्रतिबिंबित होने वाली प्रकाश किरणों में एक चरणीय विसंगति (Phase Difference) हो जाती है।
- इस विसंगति/अंतर का पता लगाने से गुरुत्वीय तरंग की उपस्थिति की पुष्टि होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. हाल ही में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से अरबों प्रकाश-वर्ष दूर विशालकाय ‘ब्लैकहोलों’ के विलय का प्रेक्षण किया। इस प्रेक्षण का क्या महत्व है? (2019) (a) ‘हिग्स बोसॉन कणों’ का अभिज्ञान हुआ। उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। |
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
स्कूली शिक्षा के लिये प्री-ड्राफ्ट राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा
प्रिलिम्स के लिये:स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, मॉड्यूलर बोर्ड परीक्षा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की विशेषताएँ, भारत में शिक्षा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे, शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा का प्री-ड्राफ्ट संस्करण जारी किया और विभिन्न हितधारकों से प्रतिक्रिया की मांग की है।
- यह प्री-ड्राफ्ट भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व प्रमुख के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्त्व वाली एक समिति द्वारा तैयार किया गया था।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा:
- परिचय:
- NCF, नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के प्रमुख घटकों में से एक है, यह NEP 2020 के निहित उद्देश्यों, सिद्धांतों और दृष्टिकोण की सहायता से इस परिवर्तन को सक्षम बनाता है और इसे सक्रिय करता है।
- NCF में पूर्व में वर्ष 1975, 1988, 2000 और 2005 में संशोधन हुए हैं, यदि प्रस्तावित संशोधन को कार्यान्वित कर दिया जाता है तो यह इसका पाँचवाँ संस्करण होगा।
- NCF के चार खंड:
- स्कूली शिक्षा के लिये NCF
- बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा के लिये NCF (आधारभूत चरण)
- अध्यापक शिक्षण के लिये NCF
- प्रौढ़ शिक्षा के लिये NCF
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करना है, जैसा कि NEP 2020 में शिक्षाशास्त्र सहित पाठ्यक्रम में सकारात्मक बदलावों की परिकल्पना की गई थी।
- साथ ही भारत के संविधान द्वारा परिकल्पित एक समान, समावेशी और बहुल समाज को साकार करने के उद्देश्य के अनुरूप सभी बच्चों हेतु उच्चतम गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना है।
स्कूली शिक्षा हेतु NCF:
- परिचय:
- स्कूल शिक्षा हेतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढाँचा (NCF-SE) NEP 2020 के दृष्टिकोण पर आधारित तथा इसके कार्यान्वयन को सक्षम बनाने हेतु विकसित किया गया है।
- NCF-SE का निर्माण NCERT द्वारा किया जाएगा। प्रमुख पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए अब से NCF-SE दस्तावेज़ पर दोबारा गौर किया जाएगा तथा इसे प्रत्येक 5-10 वर्ष में अद्यतन किया जाएगा।
- उद्देश्य:
- NCFSE भारत में पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों एवं शिक्षण प्रथाओं को विकसित करने के लिये एक दिशानिर्देश के रूप में कार्य करता है।
- इसके उद्देश्यों में रटने (पुनरावृत्ति द्वारा याद रखना) को सीखने से स्थानांतरित करना, शिक्षा को वास्तविक जीवन की स्थितियों से जोड़ना, परीक्षाओं को अधिक लचीला बनाना तथा पाठ्यपुस्तकों से परे पाठ्यक्रम को समृद्ध करना शामिल है।
- NCFSE का उद्देश्य सीखने को सुखद, बाल-केंद्रित एवं आत्मनिर्भर बनाना और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना है। यह माध्यमिक विद्यालय के छात्रों को परामर्श देने हेतु दिशा-निर्देश प्रदान करता है तथा सभी आयु-समूहों हेतु अनिवार्य है।
स्कूली शिक्षा हेतु प्री-ड्राफ्ट राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा:
- परिचय:
- रूपरेखा में 3 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों हेतु पाठ्यक्रम ढाँचे को शामिल किया गया है तथा छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों, विशेषज्ञों, विद्वानों एवं पेशेवरों से प्रतिक्रिया मांगी गई है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- 6 प्रमाणों के माध्यम से सीखना:
- प्रत्यक्ष, पाँच इंद्रियों के माध्यम से धारणा के रूप में व्याख्या की गई;
- अनुमान, जो नए निष्कर्षों पर पहुँचने हेतु अनुमानों का उपयोग करता है;
- उपमान, जो सादृश्य और तुलना के माध्यम से सीखना;
- अर्थोत्पत्ति, जिसमें परिस्थितिजन्य निहितार्थ के माध्यम से सीखना शामिल है,
- अनुपलब्धि, जिसमें गैर-अस्तित्त्व की धारणा शामिल है,
- शब्द, शब्द के माध्यम से एक व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से सभी वास्तविकताओं के केवल एक अंश को जान सकता है"
- नैतिक विकास हेतु पंचकोश विकास:
- भारतीय शिक्षा प्रणाली एक समग्र दृष्टिकोण पर ज़ोर देती है जो बच्चों में नैतिक विकास, सांस्कृतिक समझ और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देती है।
- यह पाँच गुना विकास दृष्टिकोण के माध्यम से प्राप्त किया जाता है जिसमें योग, संतुलित आहार और सांस्कृतिक गतिविधियाँ जैसे पारंपरिक अभ्यास शामिल हैं।
- भारतीय इतिहास की शिक्षाएँ:
- भारतीय इतिहास शिक्षा, राष्ट्रीय अस्मिता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिये, गांधीवादी और सबाल्टर्न आंदोलनों के विशेष संदर्भ के साथ, ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के महत्त्वपूर्ण चरणों की पहचान और व्याख्या करती है।
- सांस्कृतिक विविधता और आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिये बौद्ध धर्म, जैन धर्म और वैदिक दर्शन सहित विभिन्न धार्मिक तथा दार्शनिक परंपराओं की अवधारणाओं को समझना।
- कक्षा 2 तक कोई परीक्षा नहीं:
- यह प्रस्तावित करता है कि स्पष्ट परीक्षण और परीक्षा कक्षा 2 तक के बच्चों के लिये उपयुक्त मूल्यांकन उपकरण नहीं हैं और बच्चे पर अतिरिक्त बोझ डालने से बचने के लिये केवल कक्षा 3 से ही लिखित परीक्षा शुरू करने की सिफारिश करता है।
- माध्यमिक स्तर के लिये पाठ्यक्रम:
- कक्षा 10 के प्रमाणन के लिये, छात्रों को मानविकी, गणित और कंप्यूटिंग, व्यावसायिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, कला शिक्षा, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान और अंतःविषयक क्षेत्रों से दो आवश्यक पाठ्यक्रम लेने होंगे।
- कक्षा 11 और 12 में, छात्रों को अधिक दृढ़ रूप से जोड़ने के लिये समान विषयों में पसंद-आधारित पाठ्यक्रमों की पेशकश की जाएगी।
- माध्यमिक चरण के इस चरण को सेमेस्टर में विभाजित किया जाएगा और प्रत्येक विकल्प आधारित पाठ्यक्रम एक सेमेस्टर का होगा।
- छात्रों को कक्षा 12 उत्तीर्ण करने के लिये 16 पसंद-आधारित पाठ्यक्रमों को पूरा करना होगा।
- वर्ष के अंत में एकल परीक्षा के विपरीत मॉड्यूलर बोर्ड परीक्षा की पेशकश की जाएगी, और परिणाम प्रत्येक परीक्षा के संचयी परिणाम पर आधारित होगा।
- कला एवं अंतःविषयक क्षेत्र:
- कला शिक्षा में संगीत, नृत्य, रंगमंच, मूर्तिकला, पेंटिंग, सेट डिज़ाइन और पटकथा लेखन शामिल होगा, जबकि अंतःविषयक क्षेत्रों में भारत का ज्ञान, परंपराओं तथा भारतीय ज्ञान प्रणालियों के अभ्यास शामिल होंगे।
- 6 प्रमाणों के माध्यम से सीखना:
- महत्त्व :
- स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत में बच्चों की शिक्षा के लिये एक रोडमैप प्रदान करता है, जिसमें स्कूली शिक्षा के विभिन्न चरणों के साथ कई शिक्षाप्रद दृष्टिकोण और सीखने-सिखाने की सामग्री शामिल है।
- यह संरचना सामग्री, भाषा सीखना, अकादमिक दृष्टिकोण, दार्शनिक आधार, उद्देश्य एवं महामारी दृष्टिकोण सहित भारतीय मूल्यों और उनके "सुदृढ़ता" को शामिल करने के महत्त्व पर जोर देता है।
शैक्षणिक सुधारों से संबंधित अन्य सरकारी पहलें
- प्रौद्योगिकी वर्धित शिक्षा पर राष्ट्रीय कार्यक्रम
- सर्व शिक्षा अभियान
- प्रज्ञाता
- मध्याह्न भोजन योजना
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- पीएम श्री स्कूल
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
- परिचय :
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत में शिक्षा सुधार के लिये एक व्यापक रूपरेखा है जिसे वर्ष 2020 में अनुमोदित किया गया था, जिसका उद्देश्य शिक्षा के लिये एक समग्र एवं बहु-विषयक दृष्टिकोण प्रदान करके भारत की शिक्षा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाना है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की विशेषताएँ :
- स्कूल पूर्व से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा का सार्वभौमीकरण।
- छात्रों के संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक विकास पर आधारित एक नई शैक्षणिक और पाठ्यचर्या संरचना का परिचय।
- प्राथमिक शिक्षा में मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक कौशल के विकास पर जोर।
- शिक्षा में अनुसंधान और विकास पर अधिक ध्यान।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 सतत विकास लक्ष्य-4 (2030) के अनुरूप है। यह भारत में शिक्षा प्रणाली के पुनर्गठन और पुनर्स्थापन पर केंद्रित है। इस कथन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2020) |
स्रोत:द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
द लैंग्वेज फ्रेंडशिप ब्रिज: ICCR
प्रिलिम्स के लिये:लैंग्वेज फ्रेंडशिप ब्रिज, ICCR, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, साझा सांस्कृतिक विरासत। मेन्स के लिये:द लैंग्वेज फ्रेंडशिप ब्रिज प्रोजेक्ट को लागू करने में चुनौतियां और अवसर। |
चर्चा में क्यों?
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) ने 'द लैंग्वेज फ्रेंडशिप ब्रिज' नामक एक परियोजना की परिकल्पना की है, जिसका उद्देश्य उन पड़ोस में सांस्कृतिक पदचिह्न का विस्तार करना है जिनके साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध हैं।
- इस परियोजना का उद्देश्य भारत को अपने महाकाव्यों और शास्त्रीय के साथ-साथ समकालीन साहित्य का इन भाषाओं में अनुवाद करने में सक्षम बनाना है ताकि दोनों देशों के लोग उन्हें पढ़ सकें।
प्रोजेक्ट के बारे में:
- परिचय:
- यह परियोजना म्यांँमार, श्रीलंका, उज़्बेकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों में बोली जाने वाली भाषाओं में विशेषज्ञों का एक पूल तैयार करेगी ताकि बेहतर लोगों से लोगों के आदान-प्रदान की सुविधा मिल सके।
- यह इनमें से प्रत्येक देश की आधिकारिक भाषाओं में पाँच से 10 लोगों को प्रशिक्षित करेगा।
- अब तक, ICCR ने 10 भाषाओं पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें कज़ाख, उज़्बेक, भूटानी, घोटी (तिब्बत में बोली जाने वाली), बर्मी, खमेर (कंबोडिया में बोली जाने वाली), थाई, सिंहली और बहासा (इंडोनेशिया और मलेशिया दोनों में बोली जाने वाली) भाषाएँ शामिल हैं।
- हालाँकि कई विश्वविद्यालय और संस्थान इन भाषाओं में पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। परंतु केवल कुछ विश्वविद्यालय और संस्थान ही ICCR सूची की 10 भाषाओं में से कोई भी पढ़ाते हैं।
- उदाहरण के लिये, सिंहली भाषा, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और रक्षा मंत्रालय के अधीन विदेशी भाषा स्कूल (SFL) में पढ़ाया जाता है।
- महत्त्व:
- यह परियोजना भारत की विदेश नीति और सांस्कृतिक कूटनीति के लिये महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह इन देशों के साथ भारत के सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करने में मदद करेगी।
- इन देशों की आधिकारिक भाषाओं में भाषा विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करने से भारत अधिक प्रभावी ढंग से संवाद करने एवं अपने पड़ोसियों के साथ मज़बूत सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध बनाने में सक्षम होगा।
- यह वर्तमान भू-राजनीतिक संदर्भ में भी विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिये अपने पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना चाहता है।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देकर, भारत इन देशों के बीच मज़बूत संबंध बना सकता है, जो इस क्षेत्र में चीनी आर्थिक और रणनीतिक पहलों के नकारात्मक प्रभाव का मुकाबला करने में मदद कर सकते हैं।
ICCR
- ICCR विदेश मंत्रालय के तहत भारत सरकार का एक स्वायत्त संगठन है।
- यह अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से सांस्कृतिक व्यवहार को बढ़ावा देता है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1950 में भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने की थी।
- ICCR को वर्ष 2015 से विदेशों में स्थित भारतीय मिशनों/केंद्रों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उत्सव को सुविधाजनक बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
- ICCR ने प्रतिष्ठित भारतविद् पुरस्कार, विश्व संस्कृत पुरस्कार, विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार और गिसेला बॉन पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों की स्थापना की है, जो विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान के लिये विदेशी नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं।
चुनौतियाँ:
- इसकी प्रमुख चुनौतियों में से एक इन भाषाओं को पढ़ाने के लिए भारत में बुनियादी ढाँचे और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है। इन भाषाओं को प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए इस परियोजना के तहत भाषा केंद्रों की स्थापना और शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के क्रम में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी।
- इसके अतिरिक्त इस परियोजना के तहत विभिन्न देशों में इन भाषाओं का अध्ययन करने वाले भारतीय छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता होगी।
- इसके अलावा इस परियोजना के तहत अन्य भाषाओं को शामिल करने की चुनौती का भी सामना करना पड़ सकता है क्योंकि ऐसे कई पड़ोसी देश हैं जिनसे भारत के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध हैं तथा उन देशों की भाषाएँ वर्तमान में इस परियोजना में शामिल नहीं हैं।
आगे की राह:
- इस परियोजना में कई चुनौतियाँ होने के बावजूद इससे भारत के लिए अपने पड़ोसियों के साथ अपने सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को गहरा करने एवं इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने जैसे अवसर प्राप्त होते हैं।
- विशेषज्ञों का मानना है कि ICCR की भाषाओं की सूची के विस्तार किये जाने आवश्यकता है, क्योंकि भारत के अन्य पड़ोसी देशों के साथ सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों में भी वृद्धि देखी जा रही है।
- उदाहरण के लिये, चिकित्सा पर्यटन के उदय के साथ, तुर्की, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और मालदीव जैसे देशों से लोगों की यात्राओं को सुविधाजनक बनाने के लिये अनुवादकों तथा दुभाषियों की आवश्यकता होती है।
- इस ज़रूरत को पूरा करने के लिये जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जल्द ही पश्तो में एक पाठ्यक्रम की शुरूआत करेगा।