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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पर्सपेक्टिव: भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में नया युग

  • 28 Nov 2022
  • 13 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश के पहले निजी तौर पर विकसित रॉकेट, विक्रम-एस को श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से एक सब-ऑर्बिटल मिशन में सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था, जो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक नए युग का प्रतीक है।

  • मिशन प्रारंभ अंतरिक्ष प्रक्षेपण बाजार में निजी उद्यम की बेहतर शुरुआत का प्रतीक है।

विक्रम एस क्या है?

  • पृष्ठभूमि: रॉकेट को भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा विकसित किया गया है। इसका नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है।
  • प्रयुक्त प्रौद्योगिकी: यह एकल-चरण उप-कक्षीय प्रक्षेपण यान है जो तीन ग्राहक पेलोड ले जाएगा।
    • उप-कक्षीय उड़ानें वे वाहन हैं जो कक्षीय वेग की तुलना में धीमी गति से यात्रा कर रहे हैं - जिसका अर्थ है कि यह बाहरी अंतरिक्ष तक पहुंचने के लिये इनकी गति पर्याप्त है लेकिन पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा में बने रहने के लिये इनकी गति पर्याप्त नहीं है।
    • इसे कार्बन मिश्रित संरचनाओं और 3डी-मुद्रित घटकों सहित उन्नत तकनीकों का उपयोग करके बनाया गया है।
  • महत्व: यह अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों की विक्रम श्रृंखला में अधिकांश तकनीकों का परीक्षण और सत्यापन करने में मदद करेगा।
    • स्काईरूट तीन अलग-अलग विक्रम रॉकेट संस्करणों पर काम कर रहा है।
    • विक्रम-I 480 किलोग्राम पेलोड के साथ लॉन्च कर सकता है, जबकि विक्रम-II को 595 किलो के साथ ऐसा करने के लिये डिज़ाइन किया गया है और विक्रम-III में 815 किलोग्राम के साथ 500 किमी कम झुकाव वाली कक्षा (Low Inclination Orbit) प्रक्षेपण क्षमता है।

प्रारंभ मिशन क्या है?

  • प्रारंभ मिशन का उद्देश्य तीन पेलोड को अंतरिक्ष में ले जाना है, जिसमें 2.5 किलोग्राम का पेलोड शामिल है जिसे कई देशों के छात्रों द्वारा विकसित किया गया है।
  • आरंभ मिशन और विक्रम-एस रॉकेट हैदराबाद स्थित स्टार्टअप द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र) के व्यापक समर्थन से विकसित किये गए थे।

अंतरिक्ष क्षेत्र में विकास क्यों महत्वपूर्ण है?

  • जलवायु-संबंधी मुद्दों का मुकाबला: अधिक सुरक्षित और प्रभावी साधनों के माध्यम से कनेक्टिविटी को मजबूत करने और जलवायु से संबंधित प्रभावों का मुकाबला करने के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना फायदेमंद होगा।
    • उपग्रह मौसम के पूर्वानुमान पर अधिक सटीक जानकारी प्रदान करते हैं और किसी क्षेत्र की जलवायु और रहने की क्षमता में दीर्घकालिक रुझानों का आकलन (और रिकॉर्ड) करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, वे भूकंप, सूनामी, बाढ़, जंगल की आग, खनन आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बारे में वास्तविक समय में निगरानी और पूर्व-चेतावनी समाधान के रूप में भी काम कर सकते हैं।
  • कनेक्टिविटी के संदर्भ में: कनेक्टिविटी के लिये, उपग्रह संचार अधिक दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच सकता है जहां पारंपरिक नेटवर्क के लिये भारी पूरक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होगी।
  • इस प्रकार यह तर्क दिया जाता है कि इस क्षेत्र में निवेश से अन्य क्षेत्रों में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भारत की स्थिति

  • वर्ष 2021 तक स्पेसटेक एनालिटिक्स के अनुसार, भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उद्योग में छठा सबसे बड़ा देश है, जिसके पास दुनिया की अंतरिक्ष-तकनीक कंपनियों का 3.6% हिस्सा है। स्पेस-टेक इकोसिस्टम में सभी कंपनियों में यू.एस. का हिस्सा 56.4% है।
  • अन्य प्रमुख देशों में यूके (6.5%), कनाडा (5.3%), चीन (4.7%) और जर्मनी (4.1%) शामिल हैं।
  • भारतीय अंतरिक्ष उद्योग का मूल्य वर्ष 2019 में $7 बिलियन था और वर्ष 2024 तक $50 बिलियन तक बढ़ने की संभावना है। देश की असाधारण विशेषता इसकी लागत-प्रभावशीलता (Cost-Effectiveness) है।
  • भारत को अपने पहले प्रयास में मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाला पहला देश होने का गौरव प्राप्त है। इसकी लागत पश्चिमी मानकों की तुलना में $75 मिलियन कम है।

अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों की क्या आवश्यकता है?

  • क्षेत्र को विस्तार देने के लिये:
    • इसरो केंद्र द्वारा वित्त पोषित है और इसका वार्षिक बजट लगभग 15,000 करोड़ रु है एवं इसमें से अधिकांश का उपयोग रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण में किया जाता है।
    • भारत में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का आकार छोटा है। क्षेत्र को विस्तार देने के लिये, निजी क्षेत्र का बाजार में प्रवेश करना अनिवार्य है।
    • इसरो इससे जुड़ी सभी निजी क्षेत्र की कंपनियों से रॉकेट और उपग्रह बनाने जैसे ज्ञान और प्रौद्योगिकी को साझा करने की योजना बना रहा है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, रूस - सभी के पास बोइंग, स्पेसएक्स, एयरबस, वर्जिन गैलेक्टिक आदि जैसे बड़े खिलाड़ियों के साथ अंतरिक्ष उद्योग हैं।

निजी क्षेत्र में सुधार:

  • इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र हमेशा शामिल रहा है। लेकिन यह पूरी तरह से केवल पुर्जों और छोटे सिस्टम के निर्माण में शामिल रहा है। रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण में सक्षम होने के लिये उद्योगों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।

संबंधित पहलें

  • अंतरिक्ष में:
    • भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने के लिये निजी कंपनियों को समान अवसर प्रदान करने के लिये IN-SPACE लॉन्च किया गया था।
    • यह इसरो और अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भाग लेने या भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के बीच एकल-बिंदु इंटरफ़ेस के रूप में कार्य करता है।
  • न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL):
    • इसे बजट 2019 में घोषित किया गया। इसका लक्ष्य भारतीय उद्योग भागीदारों के माध्यम से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये इसरो द्वारा वर्षों से किये गए अनुसंधान और विकास का उपयोग करना है।

सार्वजनिक निजी भागीदारी का महत्व क्या है?

  • निवेश का स्रोत: लंबी अवधि में निजी क्षेत्र की भागीदारी, जैसा कि अन्य वाणिज्यिक क्षेत्रों के साथ माना जाता है, उस क्षेत्र में निवेश और विशेषज्ञता को बढ़ावा देने में मदद करता है जो पूंजी-गहन क्षेत्र है और उच्च प्रौद्योगिकी की मांग करता है।
  • निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा: अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार उपग्रहों, प्रक्षेपणों और अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं में निजी कंपनियों को " खेल का मैदान समान" (level playing field)रूप से प्रदान करने के इरादे से किये गए थे।
  • सुविधाएँ और क्षमताएँ: केंद्रीय विचार निजी क्षेत्र के लिये एक अनुमानित नीति और नियामक वातावरण तैयार करना था और अतिरिक्त रूप से इसरो की सुविधाओं और संपत्तियों तक पहुंच प्रदान करना था ताकि उनकी क्षमता में सुधार हो सके।
  • नवाचार: निजी खिलाड़ी अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों और सेवाओं के विकास के लिये आवश्यक नवाचार ला सकते हैं। इसके अतिरिक्त, इन सेवाओं की मांग भारत और दुनिया भर में बढ़ रही है, अधिकांश क्षेत्रों में उपग्रह डेटा, इमेजरी और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
  • इसके अलावा इसरो को इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये वर्तमान स्तर से 10 गुना अधिक विस्तार करना होगा। उद्योग के अनुमानों के अनुसार, भारत में वर्तमान में 40+ स्टार्ट-अप अंतरिक्ष और उपग्रह परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं और यह संख्या बढ़ने की संभावना है।

आगे की राह

  • एक नई नीति की आवश्यकता है जो सभी इच्छुक पक्षों के साथ रॉकेट और उपग्रहों के निर्माण जैसे ज्ञान और प्रौद्योगिकी को साझा करके भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र के इसरो के एकाधिकार को समाप्त करे।
  • भारत के पास दुनिया के सबसे अच्छे अंतरिक्ष कार्यक्रमों में से एक होने के साथ, अंतरिक्ष में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देने का कदम भारत को वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक बड़ा खिलाड़ी बना देगा।
  • अंतरिक्ष में एफडीआई विदेशी खिलाड़ियों को भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में उद्यम करने की अनुमति देगा। यह भारतीय राष्ट्रीय और विदेशी भंडार में योगदान देगा, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अनुसंधान नवाचारों को बढ़ावा देगा।
  • इसके अलावा, भारतीय अंतरिक्ष गतिविधि विधेयक की शुरूआत निजी खिलाड़ियों को अंतरिक्ष क्षेत्र का एक अभिन्न अंग बनने के बारे में अधिक स्पष्टता प्रदान करेगी।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)  

प्रारंभिक परीक्षा

 प्र. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

इसरो द्वारा लॉन्च किया गया 'मंगलयान':

  1. इसे मार्स ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है।
  2. संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत को मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला दूसरा देश बना दिया।
  3. भारत को पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की कक्षा में अपना अंतरिक्ष यान बनाने में सफल होने वाला एकमात्र देश बना दिया।

 उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2 और 3
 (C) केवल 1 और 3
 (D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (C)


मुख्य परीक्षा

प्र. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा?  (वर्ष 2019)

प्र. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।  इस प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की है? (वर्ष 2016)

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