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डेली न्यूज़

  • 11 Feb, 2023
  • 35 min read
इन्फोग्राफिक्स

विज्ञान में महिलाओं और बालिकाओं का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

International-Day-of-Women-and-Girls-in-Science


भूगोल

हिमनद झील के फटने से बाढ़

प्रिलिम्स के लिये:

बाढ़, हिमालय, NDMA, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली।

मेन्स के लिये:

ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में हिमनद झील के फटने से बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood -GLOF) के संबंध में एक नया शोध प्रकाशित हुआ है, अनुमान है कि इस आपदा से विश्व स्तर पर लाखों लोग खतरे में है।

  • विनाशकारी बाढ़ वाले संभावित हॉटस्पॉट की पहचान करने की दिशा में यह पहला वैश्विक प्रयास है। यह अध्ययन हिमनद झीलों और इनके आसपास रहने वाली बड़ी आबादी की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिये किया गया था।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु: 

  • सुभेद्यता: 
    • हिमनद झीलों के कारण उत्पन्न विनाशकारी बाढ़, जो अचानक उनके प्राकृतिक बाँधों को क्षति पहुँचा सकती है, लगभग 15 मिलियन लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकती है।
    • एशिया और दक्षिण अमेरिका के पर्वतीय देश सबसे अधिक जोखिम में हैं।
      • विश्व स्तर पर सुभेद्य आबादी का अधिकांश हिस्सा, जो कि 9.3 मिलियन (62%) है, उच्च पर्वतीय एशिया (HMA) क्षेत्र में स्थित है।
      • एशिया में लगभग दस लाख लोग एक हिमाच्छादित झील के केवल 10 किमी. के दायरे में रहते हैं।
    • भारत, पाकिस्तान, पेरू और चीन में रहने वाले लोग भी जोखिम में (विश्व स्तर पर) हैं।
  • सबसे जोखिमपूर्ण बेसिन: 
    • सबसे खतरनाक हिमनद बेसिन पाकिस्तान (खैबर पख्तूनख्वा बेसिन), पेरू (सांता बेसिन) और बोलिविया (बेनी बेसिन) में हैं जिनमें क्रमशः 1.2 मिलियन, 0.9 मिलियन और 0.1 मिलियन लोग रहते हैं जो GLOF के प्रभावों से प्रभावित हो सकते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के कारण एंडीज़ (दक्षिणी अमेरिका) के हिमनदों में पिछले 20 वर्षों में तेज़ी से गिरावट आई है।
  • भारत के लिये खतरा: 
    • हिमालय में 25 हिमनद झीलों और जल निकायों में वर्ष 2009 के बाद से जल प्रसार क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है।
    • भारत, चीन और नेपाल में पानी के प्रसार में 40% की वृद्धि हुई है, जिससे सात भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है।
      • इनमें से छह हिमालयी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश हैं: जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, असम और अरुणाचल प्रदेश।
    • GLOF की तीव्रता के साथ शुरुआत और उच्च निर्वहन का मतलब है कि डाउनस्ट्रीम आबादी विशेष रूप से स्रोत झील के 10-15 किमी. के भीतर स्थित आबादी के लिये प्रभावी ढंग से चेतावनी देने और प्रभावी कार्रवाई हेतु पर्याप्त समय नहीं मिल पाता है।
  • प्रभाव: 
    • यह बाढ़ काफी तीव्र होती है तथा कई मामलों में इतनी शक्तिशाली होती है कि यह कई ढाँचों को नष्ट कर देती है।
    • यह लोगों के जीवन, आजीविका और क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे को विनाशकारी रूप से खतरे में डालती है।
  • सुझाव: 
    • इन अत्यधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में अधिक तीव्र चेतावनी और आपातकालीन कार्रवाई को सक्षम बनाने के लिये निकासी अभ्यास एवं समुदायों तक पहुँच के अन्य उपायों के साथ-साथ पूर्व चेतावनी प्रणाली के डिज़ाइन में भी सुधार की आवश्यकता है।

हिमनद झील के फटने से बाढ़ (GLOF): 

  • परिचय: 
    • हिमनद झील के फटने से आने वाली बाढ़ विनाशकारी होती है, यह स्थिति तब उत्पन्न होती है  जब हिमनद झील का बाँध कमज़ोर हो जाता है और जल तेज़ प्रवाह के साथ बहने लगता है।
    • इस प्रकार की बाढ़ आमतौर पर ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने, भारी वर्षा, झील में पानी के बढ़ने के कारण आती है।
    • फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली ज़िले में फ्लैश फ्लड देखा गया, जिसके बारे में संदेह है कि यह GLOF के कारण हुआ था। 
  • कारण:  
    • बाढ़ की इन घटनाओं के लिये कई कारकों को ज़िम्मेदार माना जा सकता है, जिसमें ग्लेशियर के आकार में परिवर्तन, झील के जल स्तर में परिवर्तन और भूकंप शामिल हैं।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण  हिंदू-कुश हिमालय के अधिकांश हिस्सों में ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नई ग्लेशियर झीलों का निर्माण हो रहा है, जो कि GLOF का प्रमुख कारण है।

हिमनद झील की बाढ़ से निपटने हेतु NDMA के दिशा-निर्देश: 

  • संभावित खतरनाक झीलों की पहचान:
    • स्थानीय दौरे, पूर्व की घटनाओं, झील/बाँध और आस-पास की भू-तकनीकी विशेषताओं तथा अन्य भौतिक स्थितियों के आधार पर संभावित खतरनाक झीलों की पहचान की जा सकती है। 
  • तकनीक का उपयोग: 
    • मानसून के महीनों के दौरान नई झील संरचनाओं समेत जल निकायों में आने वाले स्वतः परिवर्तनों का पता लगाने के लिये सिंथेटिक-एपर्चर रडार इमेज़री (एक प्रकार का रडार जो द्वि-आयामी छवियों के निर्माण में सहायता करता है) के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है। 
  • संभावित बाढ़ को कम करना: 
    • जल की मात्रा को कम करने हेतु जल के नियंत्रित बहाव की दिशा में परिवर्तन, पम्पिंग या जल की निकासी और मोराइन बाधा के माध्यम से या बाँध के नीचे सुरंग बनाना।
  • निर्माण गतिविधि के लिये समान संहिता:
    • संवेदनशील क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास, निर्माण और उत्खनन के लिये एक व्यापक ढाँचा विकसित किया जाना चाहिये।
    • हिमनद झील के फटने से बाढ़ (GLOF) के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में भूमि उपयोग नियोजन के लिये प्रक्रियाओं को मान्यता दिये जाने की आवश्यकता है। 
  • अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) में सुधार करना:
    • भारत समेत विश्व के लगभग सभी देशों में GLOF से संबंधित अर्ली वार्निंग सिस्टम (EWS) की संख्या बहुत कम है।
    • हिमालयी क्षेत्र में GLOF को लेकर पूर्व चेतावनी के लिये सेंसर और निगरानी आधारित तकनीकी प्रणालियों के तीन उदाहरण मौजूद हैं, जिसमें से दो नेपाल में तथा एक चीन में है।
  • स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित करना:
    • आपातकालिक स्थिति में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (National Disaster Response Force- NDRF), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) और थल सेना जैसे विशेष बलों का प्रयोग करने के साथ-साथ स्थानीय श्रम-शक्ति को भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
    • यह देखा गया है कि 80 प्रतिशत से अधिक खोज और बचाव कार्य स्थानीय समुदाय द्वारा राज्य मशीनरी तथा विशेष खोज एवं बचाव टीमों के हस्तक्षेप से पूर्व किया जाता है।
    • इस प्रणाली के तहत स्थानीय टीमें आपातकालीन आश्रयों की योजना बनाने और स्थापित करने, राहत पैकेज वितरित करने, लापता लोगों की पहचान करने तथा भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, पानी की आपूर्ति आदि ज़रूरतों को पूरा करने में भी सहायता कर सकती हैं।
  • व्यापक अलार्म सिस्टम: 
    • पारंपरिक अलार्म सिस्टम के स्थान पर स्मार्टफोन का उपयोग करने वाली आधुनिक संचार तकनीक प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

क्रोनी कैपिटलिज़्म

प्रिलिम्स के लिये:

क्रोनी कैपिटलिज़्म, संसदीय समिति, भारत का मुख्य न्यायाधीश (CJI), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), भ्रष्टाचार विरोधी कानून, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व,

मेन्स के लिये:

क्रोनी कैपिटलिज़्म से संबद्ध मुद्दे, क्रोनी कैपिटलिज़्म को संबोधित करने के उपाय।

चर्चा में क्यों?  

अडानी-हिंडनबर्ग (Adani-Hindenburg) मुद्दे पर संसद में विपक्ष द्वारा क्रोनी कैपिटलिज़्म का आरोप लगाते हुए संयुक्त संसदीय समिति या भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा नामित समिति द्वारा जाँच की मांग की जा रही है।

क्रोनी कैपिटलिज़्म  

  • परिचय:  
    • क्रोनी कैपिटलिज़्म एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था का वर्णन करने के लिये किया जाता है जिसमें राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों के साथ करीबी संबंध रखने वाले व्यक्ति या व्यवसाय बाज़ार में अनुचित लाभ हासिल करने के लिये अपने राजनीतिक संबंधों का उपयोग करते हैं।
    • द इकोनॉमिस्ट इंडिया द्वारा प्रकाशित क्रोनी कैपिटलिज़्म इंडेक्स 2021 में 7वें स्थान पर था, जहाँ देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में क्रोनी सेक्टर की संपत्ति 8% थी।
  • क्रोनी कैपिटलिज़्म से संबंधित मुद्दे:
    • मार्केटप्लेस में अनुचित लाभ: क्रोनी कैपिटलिज़्म भ्रष्टाचार को जन्म दे सकता है क्योंकि व्यवसाय अक्सर सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देकर बाज़ार में अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिये अपने राजनीतिक संबंधों का उपयोग करते हैं।
      • यह कानून के शासन को कमज़ोर करने की साथ ही सरकारी संस्थानों में जनता के विश्वास को खत्म कर सकता है।
    • विकृत बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा: जब कुछ व्यवसायों को उनके राजनीतिक संबंधों के माध्यम से अनुचित लाभ दिया जाता है, तो यह बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा को विकृत कर देता है और छोटे व्यवसायों एवं उद्यमियों के लिये सफलता प्राप्त करना कठिन हो जाता है। 
      • इससे कुछ व्यक्तियों या निगमों के हाथों में धन और शक्ति का संकेद्रण हो सकता है।
    • नवाचार में गिरावट: बड़े व्यवसायों की प्रमुख स्थिति अक्सर प्रतिस्पर्द्धा को खत्म कर देती है और उन्हें अपने उत्पादों/सेवाओं को आगे बढ़ाने या सुधारने के लिये हतोत्साहित करती है। 
      • यह समग्र अर्थव्यवस्था में नवाचार को खत्म सकता है और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में गिरावट ला सकता है।
    • सरकार और अर्थव्यवस्था के प्रति जनता में अविश्वास: व्यापक रूप से क्रोनी कैपिटलिज़्म सरकारी संस्थानों और आर्थिक व्यवस्था में जनता के विश्वास को कम कर सकता है।
      • इससे नीति निर्माताओं के लिये सुधारों को लागू करना और व्यवसायों को प्रभावी ढंग से संचालित करना मुश्किल हो सकता है।

भारत द्वारा क्रोनी कैपिटलिज़्म से संबंधित मुद्दों का समाधान: 

  • पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार: भारत ओपन डेटा पहल, नियामक एजेंसियों की स्वतंत्रता में वृद्धि और सरकारी अनुबंधों एवं सब्सिडी की पारदर्शिता में सुधार जैसे उपायों को लागू करके अपनी राजनीतिक तथा आर्थिक प्रणालियों में पारदर्शिता व जवाबदेही में सुधार कर सकता है।
  • प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना: भारत छोटे व्यवसायों और उद्यमियों के लिये प्रवेश की बाधाओं को कम करके प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित कर सकता है, जैसे कि लालफीताशाही को कम करना एवं नियमों को सुव्यवस्थित करना।
  • इससे नए प्रवेशकों के लिये स्थापित व्यवसायों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना और कुछ व्यक्तियों अथवा निगमों के हाथों में धन एवं शक्ति के केंद्रीकरण को कम करना आसान हो सकता है
    • कॉर्पोरेट नैतिक उत्तरदायित्त्व की ओर: भारत यह सुनिश्चित करने के उपायों को लागू करके ज़िम्मेदार व्यवसाय प्रथाओं को बढ़ावा दे सकता है कि कोई भी व्यवसाय कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्त्व और स्थिरता संबंधी पहलों के अनुसार नैतिक तथा स्थायी रूप से कार्य करें।
    • इससे आर्थिक व्यवस्था में जनता के विश्वास में वृद्धि हो सकती है और यह व्यवसायों को समग्र रूप से समाज के सर्वोत्तम हित में कार्य करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
    • ज़िम्मेदार राजनीतिक व्यवहार को प्रोत्साहित करना: भारत राजनीतिक चंदा/दान और पैरवी गतिविधियों की पारदर्शिता बढ़ाकर ज़िम्मेदार राजनीतिक व्यवहार को बढ़ावा दे सकता है।
    • इससे भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि निर्वाचित अधिकारियों को उनके कार्यों के लिये जवाबदेह ठहराया जाए।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


भूगोल

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने जम्मू-कश्मीर में लिथियम की खोज की

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, लिथियम भंडार और इसका महत्त्व

मेन्स:

खनिज और ऊर्जा संसाधन

चर्चा में क्यों? 

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने पहली बार केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के सलाल-हैमाना क्षेत्र में 5.9 मिलियन टन से अधिक के लिथियम के अनुमानित भंडार (G3) की खोज की है।

‘अनुमानित’ (Inferred) संसाधन: 

  • "अनुमानित" संसाधन से तात्पर्य उस खनिज संसाधन से है जिसकी मात्रा, गुणवत्ता और खनिज संरचना का केवल अस्थायी रूप से मूल्यांकन किया जाता है।
  • यह आउटक्रॉप्स, ट्रेंच, पिट्स, वर्किंग्स और ड्रिल होल जैसे स्थानों से एकत्रित जानकारी पर आधारित है जो सीमित अथवा अनिश्चित गुणवत्ता के हो सकते हैं और भूवैज्ञानिक साक्ष्य से कम विश्वसनीयता के भी हो सकते हैं।
  • यह आरक्षित/संसाधनों के लिये संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय फ्रेमवर्क वर्गीकरण- 1997 के ठोस ईंधन और खनिज वस्तुओं (UNFC-1997) के वर्गीकरण पर आधारित है।

UNFC-1997:

  • UNFC-1997 ठोस ईंधन और खनिज वस्तुओं के भंडार और संसाधनों के वर्गीकरण एवं रिपोर्टिंग के लिये एक प्रणाली है तथा यह भंडार और संसाधनों की रिपोर्टिंग हेतु एक मानकीकृत, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रणाली प्रदान करता है।
    • इसे यूरोप के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग द्वारा विकसित किया गया है।
  • यह खनिज और ऊर्जा संसाधनों की रिपोर्टिंग में पारदर्शिता एवं निरंतरता को बढ़ावा देता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि भूवैज्ञानिक, इंजीनियरिंग और आर्थिक जानकारी का लगातार उपयोग किया जाए।
    • यह देशों और संबद्ध क्षेत्रों के बीच भंडार एवं संसाधन डेटा की तुलना करने हेतु एक आधार प्रदान करता है जिसका उपयोग दुनिया भर की सरकारों, उद्योग तथा वित्तीय संस्थानों द्वारा व्यापक स्तर पर किया जाता है।
  • UNFC-1997 के अनुसार, किसी भी खनिज भंडार की खोज के चार चरण होते हैं: 
    • परीक्षण (G4) 
    • प्राथमिक अन्वेषण (G3) 
    • सामान्य अन्वेषण (G2) 
    • विस्तृत अन्वेषण (G1) 

लिथियम: 

  • परिचय:  
    • लिथियम (Li), जिसे रिचार्जेबल बैटरी की उच्च मांग के कारण कभी-कभी 'व्हाइट गोल्ड' के नाम से भी जाना जाता है, एक नरम और चाँदी जैसी-सफेद धातु है।
  • निकासी: 
    • भंडार के प्रकार के आधार पर लिथियम को विभिन्न तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है, आमतौर पर बड़े आकार के ब्राइन पूलों के सौर वाष्पीकरण द्वारा अथवा अयस्क के हार्ड-रॉक निष्कर्षण द्वारा।
  • उपयोग: 
    • लिथियम EV, लैपटॉप, मोबाइल आदि की बैटरी में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रोकेमिकल सेल का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
    • इसका उपयोग थर्मोन्यूक्लियर प्रतिक्रियाओं में भी किया जाता है।
    • इसका उपयोग एल्युमीनियम और मैग्नीशियम के साथ मिश्र धातु बनाने, उनकी क्षमता में सुधार करने और उन्हें हल्का बनाने के लिये किया जाता है। 
      • मैग्नीशियम-लिथियम मिश्र धातु का उपयोग कवच (Armor) बनाने के लिये किया जाता है।
    • एल्युमीनियम-लिथियम मिश्र धातु का उपयोग एयरक्राफ्ट, उच्च क्षमता वाली  साइकिलों के फ्रेम और हाई-स्पीड ट्रेनों में किया जाता है।
  • प्रमुख वैश्विक लिथियम भंडार:
    • चिली> ऑस्ट्रेलिया> अर्जेंटीना लिथियम रिज़र्व वाले शीर्ष देश हैं।
    • लिथियम त्रिकोण : चिली, अर्जेंटीना, बोलीविया।
  • भारत में लिथियम भंडार:
    • प्रारंभिक सर्वेक्षण में दक्षिणी कर्नाटक के मांड्या ज़िले में सर्वेक्षण की गई भूमि के एक छोटे से हिस्से में 14,100 टन के अनुमानित लिथियम भंडार का पता चला।
    • अन्य संभावित साइटें: 
      • राजस्थान, बिहार, आंध्र प्रदेश में मीका बेल्ट।
      • ओडिशा और छत्तीसगढ़ में पेगमेटाइट बेल्ट।
      • गुजरात में कच्छ का रण।

भारत वर्तमान में अपनी लिथियम की मांग को कैसे पूरा करता है?

  • भारत वर्तमान में लिथियम सेल और बैटरी के लिये आयात पर निर्भर है। वित्त वर्ष 2017 और वित्त वर्ष 2020 के बीच 165 करोड़ से अधिक लिथियम बैटरी का भारत में आयात होने का अनुमान है, जिसका अनुमानित आयात बिल 3.3 बिलियन डॉलर से अधिक है।
  • लिथियम सोर्सिंग समझौतों को सुरक्षित करने के देश के प्रयासों को चीन से आयात के खिलाफ एक पहल के रूप में देखा जाता है, जो कच्चे माल और सेल दोनों का प्रमुख स्रोत है।
  • भारत को लिथियम मूल्य शृंखला में देरी से प्रवेश करने वाले के रूप में जाना जाता है, यह ऐसे समय में प्रवेश कर रहा है जब EV क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण व्यवधान आने की उम्मीद है।
  • ली-आयन प्रौद्योगिकी में कई सुधारों की संभावना के साथ वर्ष 2023 को बैटरी प्रौद्योगिकी के लिये महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।

खोज का महत्त्व:

  • लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता:
    • भारत ने वर्ष 2070 तक अपने उत्सर्जन को शुद्ध शून्य तक कम करने का संकल्प लिया है, जिसके लिये इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरी में एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में लिथियम की उपलब्धता की आवश्यकता है।
    • सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने अनुमान लगाया है कि देश को वर्ष 2030 तक 27 GW ग्रिड-स्केल बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम की आवश्यकता होगी, जिसके लिये भारी मात्रा में लिथियम की आवश्यकता होगी।
  • वैश्विक कमी को संबोधित करना:
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने EV और रिचार्जेबल बैटरी की बढ़ती मांग के कारण वैश्विक लिथियम की कमी की चेतावनी दी है, जो वर्ष 2050 तक 2 बिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
    • कुछ ही स्थानों पर संसाधनों की सघनता के कारण लिथियम की आपूर्ति के संदर्भ में विश्व संकट का सामना का रहा है, दुनिया के 54% लिथियम भंडार अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली में पाए जाते हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA) का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक दुनिया को लिथियम की कमी का सामना करना पड़ सकता है। 

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI):

  • वर्तमान में GSI खान मंत्रालय से संबद्ध कार्यालय है। इसकी स्थापना वर्ष 1851 में मुख्य रूप से रेलवे के लिये कोयला भंडार खोजने हेतु की गई थी।
  • समय के साथ यह भू-विज्ञान सूचना के भंडार के रूप में विकसित हुआ है और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के भू-वैज्ञानिक संगठन का दर्जा भी प्राप्त किया है।
  • इसका मुख्यालय कोलकाता में है और इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय लखनऊ, जयपुर, नागपुर, हैदराबाद, शिलाँग और कोलकाता में स्थित हैं। प्रत्येक राज्य की एक राज्य इकाई होती है।
  • केंद्रीय भूवैज्ञानिक प्रोग्रामिंग बोर्ड (Central Geological Programming Board- CGPB) भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण का एक महत्त्वपूर्ण मंच है जो संपर्क हेतु सुविधा प्रदान करता है और कार्य के दोहराव से बचाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से धातुओं का कौन-सा युग्म क्रमशः सबसे हल्की और सबसे भारी धातु का वर्णन करता है? (2008)

(a) लिथियम और पारा
(b) लिथियम और ऑस्मियम
(c) एल्युमीनियम और ऑस्मियम
(d) एल्युमीनियम और पारा

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • हल्की धातुएँ कम परमाणु भार वाली होती हैं, जबकि भारी तत्त्वों का आमतौर पर उच्च परमाणु भार होता है।
  • ऑस्मियम एक कठोर धत्त्विक तत्त्व है जिसमें सभी ज्ञात तत्त्वों का घनत्व सबसे अधिक होता है। ऑस्मियम का परमाणु भार 190.2 u है और इसका परमाणु क्रमांक 76 है।
  • लिथियम का परमाणु क्रमांक 3 और परमाणु भार 6.941u सबसे हल्का ज्ञात धातु है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

हरित ऊर्जा और रोज़गार

प्रिलिम्स के लिये:

नवीकरणीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा।

मेन्स के लिये:

हरित ऊर्जा और रोज़गार।

चर्चा में क्यों? 

एक अध्ययन के अनुसार, भारत के सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्रों ने 52,700 नए श्रमिकों के लिये रोज़गार सृजित किया है, जो वित्तीय वर्ष 2021-22 से आठ गुना अधिक है।

  • यह अध्ययन ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW), प्राकृतिक संसाधन रक्षा परिषद भारत (एनआरडीसी इंडिया) तथा स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स (SCGJ) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था।

अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ?

  • आँकड़े: 
    • लगभग 99% नए कार्यबल (52,100 कर्मचारी) सौर ऊर्जा क्षेत्र में कार्यरत थे, जिसमें पवन ऊर्जा क्षेत्र में बहुत कम वृद्धि (600 नए कर्मचारी) दर्ज की गई थी।
    • भारत के सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्रों ने संयुक्त रूप से वित्तीय वर्ष 2022 में 1,64,000 श्रमिकों को रोज़गार प्रदान किया है, जो वित्तीय वर्ष 2021 से 47% की वृद्धि को दर्शाता है। इस कार्यबल का 84% सौर ऊर्जा क्षेत्र में है।
    • हालाँकि पॉलीसिलिकॉन, इनगट, वेफर्स और सेल बनाने जैसे अपस्ट्रीम मैन्युफैक्चरिंग सेगमेंट में प्रशिक्षित श्रमिकों की "भारी कमी" रही है। वर्तमान में रोज़गार का एक बड़ा हिस्सा सोलर मॉड्यूल्स को असेंबल करने में लगा हुआ है।
      • यह सेगमेंट हाल ही में लॉन्च की गई 19,500 करोड़ रुपए (2.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की ‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ ( Production-Linked Incentive- PLI scheme) योजना पर केंद्रित है, जो 65 GW घरेलू विनिर्माण क्षमता को लक्षित करता है।
  • संभावना: 
    • यदि ये रुझान नए ऑन-ग्रिड सौर (238 GW) और पवन (101 GW) क्षमता जारी रखते हैं, तो संभावित रूप से लगभग 3.4 मिलियन अस्थायी और स्थायी रोज़गार सृजित किये जा सकते हैं।
  • अनुशंसाएँ:
    • स्किलिंग प्रोग्राम को सौर मॉड्यूल और बैटरी निर्माण तथा हाइब्रिड परियोजनाओं जैसे क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाली नई आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिये।

भारत में हरित ऊर्जा की क्षमता और चुनौतियाँ क्या हैं?

  • संभावना: 
    • भारत में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन हैं, जिनमें सौर, पवन, पनबिजली और बायोमास शामिल हैं, जिनका नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के लिये उपयोग किया जा सकता है।
    • इसके अलावा भारत की तेज़ी से बढ़ती आबादी और अर्थव्यवस्था ऊर्जा की भारी मांग पैदा करती है, जिसे हरित ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके आंशिक रूप से पूरा किया जा सकता है।
  • संभावित लाभ:
    • उत्सर्जन में कमी: हरित ऊर्जा स्रोतों का उपयोग वातावरण में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की मात्रा को काफी कम कर सकता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी।
    • ऊर्जा सुरक्षा: भारत आयातित तेल और प्राकृतिक गैस पर बहुत अधिक निर्भर है, जो इसे कीमतों में आई गिरावट एवं आपूर्ति में व्यवधान के प्रति संवेदनशील बनाता है। हरित ऊर्जा स्रोत इस निर्भरता को कम कर सकते हैं तथा ऊर्जा सुरक्षा बढ़ा सकते हैं।
    • ग्रामीण विद्युतीकरण: भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बिजली नहीं है और विकेंद्रीकृत हरित ऊर्जा स्रोतों, जैसे कि सौर पैनल एवं छोटे पैमाने की पवन टर्बाइनों द्वारा प्रदान की जा सकती है।
    • रोज़गार: हरित ऊर्जा क्षेत्र में भारत में लाखों नए रोज़गार विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन, ऊर्जा दक्षता और ग्रिड एकीकरण जैसे क्षेत्रों में सृजित किये जाने की क्षमता है।
  • चुनौतियाँ: 
    • लागत:  हाल के वर्षों में भले ही नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की लागत में कमी आई है, फिर भी वे कोयले और प्राकृतिक गैस जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की तुलना में अधिक महँगे हैं।
    • ग्रिड एकीकरण: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को मौजूदा ऊर्जा ग्रिड में एकीकृत करना विशेष रूप से विद्युत उत्पादन में उतार-चढ़ाव के प्रबंधन एवं ग्रिड स्थिरता सुनिश्चित करने के संदर्भ में चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • निवेश की कमी: हालाँकि भारत में हरित ऊर्जा क्षेत्र में निवेश में हाल ही में वृद्धि हुई है, फिर भी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश की कमी है, जो इस क्षेत्र के विकास एवं रोज़गार सृजन की क्षमता को सीमित करती है।
    • कुशल कार्यबल: हरित ऊर्जा क्षेत्र में काम करने हेतु आवश्यक प्रशिक्षण और अनुभव वाले कुशल श्रमिकों की कमी है, जो क्षेत्र की विकास क्षमता को सीमित कर सकती है।
    • भूमि अधिग्रहण: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं हेतु भूमि अधिग्रहण एक चुनौती हो सकती है, क्योंकि इसके लिये स्थानीय समुदायों के सहयोग एवं सहमति की आवश्यकता होती है, जो परिवर्तन के प्रति प्रतिरोधी हो सकते हैं।

आगे की राह 

  • भारत में हरित ऊर्जा की पर्याप्त क्षमता है, लेकिन देश को उस क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिये चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है।
    • सही नीतियों, निवेश और प्रशिक्षण के अवसरों के साथ भारत में हरित ऊर्जा क्षेत्र आर्थिक विकास को आगे बढाने, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने तथा ऊर्जा सुरक्षा में सुधार करने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।
  • आवश्यक निवेश और प्रशिक्षण के अवसर प्रदान करने के लिये सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों का सहयोग आवश्यक है।
    • सरकार कर संबंधी राहत प्रदान कर सब्सिडी और अन्य लाभ प्रदान करके निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित कर सकती है।
    • साथ ही निजी क्षेत्र की कंपनियाँ श्रमिकों को हरित ऊर्जा क्षेत्र में सफल होने के लिये आवश्यक कौशल हासिल करने में मदद के लिये प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रम आयोजित  कर सकती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न:  

प्रश्न. परंपरागत ऊर्जा की कठिनाईयों को कम करने के लिये भारत की ‘हरित ऊर्जा पट्टी’ पर एक लेख लिखिये। (2013)

स्रोत: द हिंदू


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