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डेली न्यूज़

  • 10 Dec, 2019
  • 32 min read
सामाजिक न्याय

टाइफाइड कॉनज्युगेट वैक्सीन

प्रीलिम्स के लिये

टाइफाइड कॉनज्युगेट वैक्सीन, सालमोनेला टाईफी तथा एक्सडीआर (XDR) टाइफाइड क्या है?

मेन्स के लिये

यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज की दिशा में टाइफाइड कॉनज्युगेट वैक्सीन की भूमिका

चर्चा में क्यों?

भारत की हैदराबाद स्थित दवा निर्माता कंपनी भारत बायोटेक (Bharat Biotech) द्वारा टाइफाइड के उपचार के लिये विकसित की गई टाइफाइड कॉनज्युगेट वैक्सीन (Typhoid Conjugate Vaccine-TCV) अन्य वैक्सीनों की तुलना में अधिक कारगर पाई गई।

मुख्य बिंदु:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने वर्ष 2018 में इस वैक्सीन के सफल परीक्षण के बाद टाइफाइड से प्रभावित देशों में छह माह से ऊपर के शिशु तथा 16 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिये TCV के वाणिज्यिक प्रयोग की अनुशंसा की थी।
  • इस वैक्सीन का क्लिनिकल परीक्षण (Clinical Trial) नेपाल में 10,000 बच्चों पर किया गया था। परीक्षण में टाइफाइड से होने वाले बुखार की रोकथाम में TCV 82 प्रतिशत तक सक्षम पाई गई।
  • बाज़ार में यह वैक्सीन टाइपबार टीसीवी (Typbar TCV) के नाम से प्रयोग में लाई जा रही है।
  • टाइफाइड अत्यधिक संक्रामक बैक्टीरिया सालमोनेला टाईफी (Salmonella Typhi) के कारण होता है। यह संक्रमित भोजन तथा पानी के माध्यम से फैलता है।
  • वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 1 करोड़ 10 लाख लोग टाइफाइड से ग्रसित होते हैं तथा इनमें 1 लाख से अधिक लोगों की मौत हो जाती है।
  • WHO के अनुसार, टाइफाइड के मामले 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों में अधिक देखने को मिलते हैं।

कॉनज्युगेट वैक्सीन (Conjugate Vaccine):

  • ऐसी वैक्सीन जिसमें एंटीजन (Antigen) को रासायनिक तौर पर वाहक प्रोटीन (Career Protein) के साथ जोड़ दिया जाता है, कॉनज्युगेट वैक्सीन कहलाती हैं।
  • इस वैक्सीन में पॉलीसैकराइड (Polysaccharide) को एंटीजन के तौर पर प्रयोग किया गया है।
  • हालाँकि टाइफाइड की रोकथाम के लिये पहले ही दो वैक्सीन मौजूद हैं जिनका नाम- पॉलीसैकराइड टाइफाइड वैक्सीन (Polysaccharide Typhoid Vaccine) तथा लाइव, वीकेनेड टाइफाइड वैक्सीन (Live, Weakened Typhoid Vaccine) है।
  • लेकिन जहाँ TCV की एक खुराक (Dose) टाइफाइड की रोकथाम में 82 प्रतिशत तक सक्षम है, वहीं इन दोनों वैक्सीनों की दो खुराक इसे रोकने में मात्र 60-70 प्रतिशत तक ही सक्षम हैं।
  • इसके अलावा TCV छह माह के शिशु को भी दी जा सकती है, जबकि अन्य वैक्सीनों का प्रयोग केवल 2 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों पर ही किया जा सकता है।
  • टाइफाइड के बैक्टीरिया का उपचार एंटीबायोटिक्स से भी किया जा सकता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पाया गया है कि इसके बैक्टीरिया ने कुछ एंटीबायोटिक्स के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है।
  • इस प्रकार के मल्टीड्रग प्रतिरोधक टाइफाइड बैक्टीरिया (Multi-drug Resistant Typhoid Bacteria) दक्षिण एशिया तथा अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पाए गए हैं।
  • इसके अलावा पाकिस्तान, भारत तथा बांग्लादेश में एक्सडीआर (Extensively Drug Resistant-XDR) टाइफाइड का संक्रमण पाया गया हैं। इन देशों में पाकिस्तान टाइफाइड से सर्वाधिक प्रभावित है।
  • भारत बायोटेक कंपनी की तरफ से वर्ष 2017 से ही पाकिस्तान को TCV की आपूर्ति की जा रही है तथा पाकिस्तान पहला देश है जिसने TCV को राष्ट्रीय रोग-प्रतिरक्षण कार्यक्रम (National Immunisation Programme) में शामिल किया है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पोर्ट्स ऑफ कॉल

प्रीलिम्स के लिये:

पोर्ट्स ऑफ कॉल

मेन्स के लिये:

भारत-बांग्लादेश तटीय नौपरिवहन समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पोत परिवहन मंत्रालय द्वारा भारत और बांग्लादेश के बीच तटीय नौपरिवहन समझौते के अंतर्गत बांग्लादेश के मोंगला तथा चटगाँव बंदरगाह को ‘पोर्ट्स ऑफ कॉल’ (Ports of Call) घोषित किया गया है।

पोर्ट्स ऑफ कॉल के बारे में

पोर्ट्स ऑफ कॉल का आशय ऐसे बंदरगाह से है जिसका प्रयोग मालवाहक या यात्री (क्रूज) जहाज़ द्वारा सामान और यात्रियों को उतारने तथा चढ़ाने के लिये किया जाता है। ऐसे बंदरगाहों का प्रयोग जलपोतों द्वारा ईंधन की आपूर्ति के लिये भी किया जाता है।

मुख्य बिंदु:

  • केंद्रीय पोत परिवहन मंत्रालय द्वारा मोंगला बंदरगाह को अंतर्देशीय जल पारगमन एवं व्यापार प्रोटोकॉल (Protocol on Inland Water Transit and Trade- PIWT&T) के तहत ‘पोर्ट ऑफ कॉल’ घोषित किया गया है परंतु चटगाँव बंदरगाह को PIWT&T के अंतर्गत पोर्ट ऑफ कॉल घोषित नहीं किया गया है।
  • भारत और बांग्लादेश द्वारा सामान लाने और ले जाने के लिये मोंगला तथा चटगाँव बंदरगाह के उपयोग पर एक समझौता ज्ञापन तथा मानक संचालन प्रक्रिया (Standard Operating Procedure- SOP) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

भारत और बांग्लादेश में वर्तमान में स्थित पोर्ट ऑफ कॉल:

  • भारत और बांग्लादेश में वर्तमान में अंतर्देशीय जल पारगमन एवं व्यापार प्रोटोकॉल के अंतर्गत निम्न बंदरगाह ‘पोर्ट ऑफ कॉल’ के रूप में शामिल हैं-
भारत बांग्लादेश
  • कोलकाता
  • हल्दिया
  • पांडू
  • करीमगंज
  • सिलघट
  • धुबरी
  • नारायणगंज
  • खुलना
  • मोंगला
  • सिराजगंज
  • आशूगंज
  • पनगाँव

स्रोत- पीआईबी


सामाजिक न्याय

मानव विकास सूचकांक

प्रीलिम्स के लिये:

मानव विकास सूचकांक

मेन्स के लिये:

वैश्विक विकास संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme) द्वारा मानव विकास सूचकांक (Human development Index- HDI) 2019 जारी किया गया।

Ups and downs

प्रमुख बिंदु:

  • सूचकांक के अनुसार, 189 देशों की सूची में भारत 129वें स्थान पर है।
  • भारत की स्थिति में एक स्थान का सुधार हुआ है, ग़ौरतलब है कि वर्ष 2018 में भारत 130वें स्थान पर था।
  • इस सूचकांक की वरीयता सूची में नार्वे, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड और जर्मनी शीर्ष स्थानों पर हैं।
  • सूचकांक में सबसे निचले पायदान पर क्रमशः नाइजर, दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिण सूडान, चाड और बुरुंडी हैं।
  • भारत के पड़ोसी देशों में श्रीलंका 71वें स्थान पर और चीन 85वें स्थान पर हैं।
  • वहीं भूटान 134वें, बांग्लादेश 135वें, म्याँमार 145वें, नेपाल 147वें, पाकिस्तान 152वें और अफगानिस्तान 170वें स्थान पर हैं।
  • दक्षिण एशिया वर्ष 1990 से 2018 के बीच विश्व में सबसे तेज़ गति से विकास करने वाला क्षेत्र है।
    • इस अवधि में मानव विकास सूचकांक के संदर्भ में दक्षिण एशिया में 46% की वृद्धि दर्ज की गई।
    • वहीँ पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 43% की वृद्धि हुई।
    • भारत के HDI वैल्यू में 50% तक की वृद्धि हुई है. वर्ष 1990 में जहाँ यह मूल्य .431 था वहीँ वर्ष 2018 में .647 है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, विश्व भर में समूह आधारित असमानता विद्यमान है, यह असमानता विशेषकर महिलाओं को प्रभावित करती है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, लैंगिक असमानता सूचकांक में 162 देशों की सूची में भारत 122वें स्थान पर है, वहीं पड़ोसी देश चीन (39) श्रीलंका (86) भूटान (99) और म्यांमार (106) भारत से बेहतर स्थिति में हैं।
    • इस सूची में नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड और आयरलैंड शीर्ष पर हैं।
    • यह सूचकांक महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य, सशक्तीकरण, आर्थिक सक्रियता पर आधारित है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जन्म के समय पुरुषों की जीवन प्रत्याशा जहाँ 68.2 वर्ष थी वहीं महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 70.7 वर्ष दर्ज की गई है।
  • रिपोर्ट के अंतर्गत, भारत में स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों की संख्या 12.3 वर्ष आँकी गई है।
    • भारत में स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों की संख्या 6.5 वर्ष बताई गई है।

मानव विकास सूचकांक

(Human Development Index) :

  • मानव विकास सूचकांक की अवधारणा का विकास पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा किया गया।
  • पहला मानव विकास सूचकांक वर्ष 1990 में जारी किया गया।
  • इसको प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा जारी किया जाता है।
  • सूचकांक की गणना 3 प्रमुख संकेतकों- जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष, शिक्षा के औसत वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के अंतर्गत की जाती है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम

(United Nations Development Programme- UNDP):

  • UNDP संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक विकास का एक नेटवर्क है।
  • इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में अवस्थित है
  • UNDP गरीबी उन्मूलन, असमानता को कम करने हेतु लगभग 70 देशों में कार्य करता है।
  • इसके अलावा देश के विकास को बढ़ावा देने के लिये नीतियों, नेतृत्व कौशल, साझेदारी क्षमताओं तथा संस्थागत क्षमताओं को विकसित करने और लचीलापन बनाने में मदद करता है।

स्रोत- द हिंदू


सामाजिक न्याय

विश्व में खसरे का बढ़ता प्रकोप

प्रीलिम्स के लिये

खसरे के लक्षण, रूबेला विषाणु

मेन्स के लिये

खसरे की रोकथाम के उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) की तरफ से जारी एक आकलन के आधार पर यह कहा गया कि वर्ष 2018 में खसरे (Measles) की वजह से विश्व में 1 लाख 40 हज़ार लोगों की मौत हो गई जिसमें सर्वाधिक पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चे शामिल थे।

मुख्य बिंदु:

  • खसरा तीव्र संक्रामक बीमारी है जो कि रूबेला विषाणु (Rubella Virus) द्वारा उन बच्चों में फैलती है जिनका टीकाकरण नहीं होता। इसकी वजह से शरीर पर धब्बे, अंधापन, निमोनिया, इन्सेफेलाइटिस की शिकायत तथा मृत्यु भी हो सकती है।
  • खसरे से बचाव के लिये खसरा-रूबेला वैक्सीन (Measles Rubella-MR) का प्रयोग किया जाता है।
  • रूबेला विषाणु की वजह से जन्म के समय भी किसी शिशु में खसरे की शिकायत हो सकती है। इस स्थिति में गर्भपात कराना पड़ सकता है तथा शिशु हृदय, आँख तथा मस्तिष्क की कमज़ोरी के साथ पैदा हो सकता है।
  • WHO के अनुसार, वर्ष 2018 में खसरे के मामले में वर्ष 2017 की तुलना में दोगुना बढ़ोतरी हुई है तथा वर्ष 2019 के अंतिम आँकड़े अभी तक जारी नहीं हुए हैं परंतु नवंबर तक के आँकड़ों के आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि इसमें पिछले वर्ष की तुलना में तीन गुना की वृद्धि होगी।

खसरा की वृद्धि के कारण:

  • टीकाकरण योजनाओं की व्यापक पहुँच न होना तथा कई स्थानों में बच्चों का टीकाकरण से अछूता रह जाना, विश्व में खसरे के बढ़ते संक्रमण का कारण है। इसमें वे देश भी शामिल हैं जहाँ पहले खसरा समाप्त हो चुका था।
  • कुछ मामलों में आतंरिक संघर्ष, सुरक्षा तथा नागरिक सेवाओं के नष्ट हो जाने से किसी देश के दूरदराज़ के हिस्सों में टीकाकरण संभव नहीं हो पाता।
  • वैक्सीनों के बारे में गलत धारणा रखने तथा इसके प्रति अविश्वास की वजह से भी कुछ बच्चों के माता-पिता इसके प्रयोग से बचते हैं।
  • वर्ष 2018 में वैश्विक स्तर पर लगभग 1 करोड़ 90 लाख बच्चों को दो वर्ष की आयु तक खसरा का एक भी टीका नहीं लगा था।
  • यूनीसेफ (UNICEF) तथा WHO के अनुसार, पिछले एक दशक में खसरा के टीके का कवरेज लगभग स्थिर हो गया है जिसकी वजह से वर्तमान में खसरे के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है।

भारत में खसरे की समस्या:

  • मोर्बिडिटी एंड मोर्टेलिटी वीकली रिपोर्ट (Morbidity and Mortality Weekly Report-MMWR) के अनुसार, बच्चों में खसरे की समस्या से सर्वाधिक ग्रसित विश्व के छह देशों में भारत दूसरे स्थान पर है।
  • इस रिपोर्ट में विभिन्न देशों में खसरे के विरुद्ध किये गए टीकाकरण से वंचित बच्चों की संख्या बताई गई है।
  • इस सूची में पहले स्थान पर नाइजीरिया (24 लाख), दूसरे स्थान पर भारत (23 लाख), तीसरे स्थान पर पाकिस्तान (14 लाख), चौथे स्थान पर इथियोपिया (13 लाख), पाँचवें स्थान पर इंडोनेशिया (12 लाख) तथा छठे स्थान पर फिलिपींस (7 लाख) है।
  • भारत ने खसरा उन्मूलन के लिये विश्व का सबसे बड़ा खसरा-रूबेला अभियान चलाया, जिसके द्वारा भारत में वर्ष 2017 से 2018 के मध्य लगभग 9 लाख बच्चों का टीकाकरण किया गया।
  • WHO को सौंपे गए आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में खसरे के 70 हज़ार (विश्व में तीसरा सर्वाधिक) मामले दर्ज किये गए तथा वर्ष 2019 में यह आँकड़ा 29 हज़ार था।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

WTO अपीलीय निकाय

प्रीलिम्स के लिये:

WTO

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

विश्व व्यापार संगठन के सात सदस्यीय अपीलीय निकाय में शेष 3 सदस्यों में से 2 का कार्यकाल समाप्त होने से निकाय का अस्तित्व समाप्ति के कगार पर है।

विवाद:

  • पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका ने विश्व व्यापार संगठन के अपीलीय निकाय में नए सदस्यों की नियुक्ति और कार्यकाल पूरा कर चुके सदस्यों की पुनः नियुक्ति का मार्ग अवरुद्ध कर रखा है।
  • फलस्वरूप 7 सदस्यीय निकाय में केवल 3 सदस्य शेष हैं, जिनमें से 2 सदस्यों का कार्यकाल पूर्ण होने को है।
  • एक अपील की सुनवाई के लिये कम-से-कम 3 सदस्यों की आवश्यकता होती है, यदि नए सदस्यों की नियुक्ति नहीं की जाती है तो निकाय की प्रासंगिकता खत्म हो जाएगी।
  • अमेरिका का मत है कि विश्व व्यापार संगठन का व्यवहार पक्षपातपूर्ण रहा है।
  • अमेरिका के मतानुसार, संगठन ने अमरीकी श्रमिकों की समस्याओं को अनदेखा किया और चीनी अर्थव्यवस्था को अनुचित तरीके से बढ़ावा दिया है।

भारत के संदर्भ में:

  • सदस्यों की कमी के कारण अपीलीय निकाय 2 से 3 महीने के भीतर निर्णय देने की अपनी समय-सीमा को पूरा करने में असमर्थ रहा।
  • भारत अब तक 54 विवादों में प्रत्यक्ष भागीदार रहा है और 158 मामलों में तीसरे पक्ष के रूप में शामिल रहा है।
  • फरवरी 2019 में निकाय ने कहा कि वह जापान और भारत के बीच एक विवाद में भारत द्वारा लोहे और इस्पात उत्पादों के आयात पर लगाए गए सुरक्षा मानकों पर अमल करने में असमर्थ होगा।
  • निकाय अभी तक जुलाई 2018 से दायर की गई कम से कम 10 अपीलों की समीक्षा करने में असमर्थ रहा है।

संकट का विषय:

  • वर्ष 1995 में WTO अपीलीय निकाय की स्थापना हुई थी, तब से 500 से ज़्यादा मामलों की सुनवाई की जा चुकी है, इसके साथ ही 350 से अधिक मामलों को सुलझाया गया है।
  • निकाय के निष्क्रिय होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधी मुद्दों के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच की समाप्ति हो जाएगी।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में देशों के पास अपील के लिये अन्य कोई मार्ग नहीं है।
  • यह भारत के लिये अच्छा नहीं है, जो कि विवाद के कई मामलों का सामना कर रहा है, खासकर कृषि उत्पादों पर।
    • हाल ही में भारत के चीनी और गन्ना उत्पादों के लिये समर्थन उपायों के खिलाफ चार मामलों को WTO में लाया गया है।

विश्व व्यापार संगठन

(World Trade Organisation):

  • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में मराकेश संधि के तहत की गई थी।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा में है। वर्तमान में विश्व के 164 देश इसके सदस्य हैं।
  • 29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना था।
  • सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मेलन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

तटीय पर्यावरण

प्रीलिम्स के लिये:

गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार, प्रफुल्ल समंतारा

मेन्स के लिये:

तटीय पर्यावरण तथा उसे संरक्षित करने से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता प्रसिद्ध भारतीय पर्यावरणविद् प्रफुल्ल समंतारा ने पश्चिम बंगाल के दीघा से दक्षिणी ओडिशा के गोपालपुर तक प्रस्तावित तटीय राजमार्ग का विरोध किया है।

मुख्य बिंदु:

  • इस राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई 415 किमी. है जो कि ओडिशा के तटीय क्षेत्र से होकर गुज़रेगा।
  • अप्रैल 2015 में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 7500 करोड़ रूपए की लागत वाली इस परियोजना की घोषणा की थी।
  • हाल ही में ओडिशा सरकार ने दीघा और सतपदा के बीच 320 किमी. के विस्तार को मंज़ूरी दे दी है परंतु सतपदा से चिल्का झील होते हुए गोपालपुर तक 95 किमी. के राजमार्ग विस्तार को अभी मंज़ूरी नहीं मिली है।
  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी इस प्रस्तावित राज़मार्ग का अवलोकन किया है क्योंकि यह प्रसिद्ध चिल्का झील तथा अन्य संवेदनशील क्षेत्रों से होकर गुज़रेगा।

प्रफुल्ल समंतारा द्वारा राजमार्ग के विरोध में दिये गए तर्क:

  • प्रफुल्ल समंतारा के अनुसार, यह परियोजना ओडिशा के संवेदनशील तटीय पर्यावरण को खतरे में डाल देगी तथा चिल्का झील एवं भीतरकनिका जैसे प्रमुख जैव विविधताओं वाले क्षेत्र इससे प्रभावित होंगे।
  • यह परियोजना मैंग्रोव वनों को नुकसान पहुँचाएगी तथा समुद्री क्षरण के खतरे को बढ़ावा देगी।
  • मैंग्रोव वन बाढ़ और ज्वार के खिलाफ प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करते हैं और समुद्र तटों की रक्षा करते हैं।
  • यह तटीय राजमार्ग तटीय क्षेत्र में स्थित लगभग 33% मैंग्रोव वनों को समाप्त कर देगा।
  • पर्यटन तथा अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में इस तटीय राजमार्ग की कोई विशेष भूमिका नहीं होगी क्योंकि ओडिशा से गुज़रने वाला NH-16 भी तट से अधिक दूर नहीं है।

कौन हैं प्रफुल्ल समंतारा?

  • प्रफुल्ल समंतारा एक प्रसिद्ध पर्यवारणविद् हैं जिन्होंने ओडिशा के डोंगरिया कोंड आदिवासियों के भूमि अधिकारों के लिये 12 वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ी और उनके पूजनीय स्थल नियामगिरी पर्वत को खनन से बचाया।
  • प्रफुल्ल समंतारा ‘ग्रीन नोबेल’ के नाम से लोकप्रिय गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार जीतने वाले भारत के छठे व्यक्ति हैं। यह पुरस्कार उन्हें एशिया क्षेत्र में पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने के लिये वर्ष 2017 में दिया गया था।
  • इससे पहले यह पुरस्कार मेधा पाटकर, एम.सी. मेहता, राशिदा बी और चंपा देवी शुक्ला को संयुक्त रूप से तथा रमेश अग्रवाल को मिल चुका है।

स्रोत- द हिंदू


विविध

RAPID FIRE करेंट अफेयर्स (10 दिसंबर, 2019)

वन धन विकास केंद्र

आदिवासी समाज के सशक्तीकरण के लिये आरंभ की गई ‘प्रधानमंत्री वन धन योजना’ के पहले 100 दिनों में 18 राज्यों में 676 वन धन विकास केंद्र खोलने को मंज़ूरी दी गई है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने वन धन योजना की शुरुआत इसी वर्ष 27 अगस्त को की थी और इसके क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी ट्राईफेड को सौंपी गई। (ट्राईफेड के बारे में अधिक जानकारी के लिये दृष्टि की वेबसाइट पर महत्त्वपूर्ण संस्थान/संगठन का अवलोकन करें)। वन धन विकास केंद्रों के लिये अभी तक 99.81 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत हो चुकी है। अगले पाँच वर्षों में प्रत्येक वर्ष 3000 वन धन केंद्र खोलने की योजना तैयार की गई है। इनके दायरे में लगभग 45 लाख आदिवासी परिवार और दो करोड़ लोग होंगे। इन केंद्रों के ज़रिये तैयार होने वाले हथकरघा और हस्तशिल्प उत्पादों को देश भर में फैले 117 ‘ट्राइब्स इंडिया’ स्टोर के माध्यम से बेचा जाएगा। इसके तहत जनजातीय क्षेत्रों में आदिवासी स्व-सहायता समूहों का गठन किया जा रहा हैं जो एक कंपनी के रूप में विकसित होंगे।


मिस यूनिवर्स

दक्षिण अफ्रीका की ज़ोज़िबिनी टूंजी (Zozibini Tunzi) ने वर्ष 2019 का मिस यूनिवर्स खिताब जीत है। 68वें मिस यूनिवर्स समारोह का आयोजन अमेरिका के अटलांटा में किया गया। भारत की वर्तिका सिंह टॉप-10 में जगह नहीं बना पाई। वर्ष 2018 की मिस यूनिवर्स फिलीपींस की कैट्रिओना ग्रे (Catriona Gray) ने विजेता और रनर-अप के नामों की घोषणा की। प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर प्यूर्टो रिको की मैडिसन एंडरसन (Madison Anderson) तथा तीसरे स्थान पर मेक्सिको की सोफिया अरागोन (Sofia Aragon) रहीं। ध्यातव्य है कि भारत के लिये पहली बार यह खिताब वर्ष 1994 में सुष्मिता सेन ने जीता था। उनके बाद वर्ष 2000 में लारा दत्ता ने भारत के लिये यह खिताब जीता।


सना मरीन

फिनलैंड की सोशल डेमोक्रेट पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिये 34 वर्षीय पूर्व परिवहन मंत्री सना मरीन (Sanna Marin) को चुना। इसी के साथ वह विश्व में सबसे युवा प्रधानमंत्री बन गई हैं। मरीन ने मतदान में विजय हासिल कर निवर्तमान नेता एंटी रिने का स्थान लिया, जिन्होंने डाक हड़ताल से निपटने के मामले में गठबंधन सहयोगी सेंटर पार्टी का विश्वास खोने के बाद पद से इस्तीफा दे दिया था। गौरतलब है कि मरीन के अलावा न्यूज़ीलैंड के प्रधानमंत्री जैकिंडा आर्डेन की आयु 39 वर्ष, यूक्रेन के प्रधानमंत्री ओलेक्सी होन्चारुक की आयु 35 वर्ष और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन की आयु 35 वर्ष है।

Finland

फिनलैंड उत्तरी यूरोप के फेनोस्केनेडियन क्षेत्र में स्थित एक नॉर्डिक देश है। इसकी सीमा पश्चिम में स्वीडन, पूर्व में रूस और उत्तर में नॉर्वे से लगती है। फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी है।


उत्तर प्रदेश में काऊ सफारी

उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं के खतरे से बचने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार गाय (Cow) सफारी शुरू करने की योजना बना रही है। राज्य के डेयरी विकास मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने उत्तर प्रदेश में काऊ सफारी शुरू करने का प्रस्ताव रखा है। अधिकारियों से उन ज़मीनों की पहचान करने को कहा गया है, जहाँ आवारा पशुओं को खुलेआम घूमने की अनुमति दी जा सकती है। इन क्षेत्रों को बाद में सफारी के रूप में विकसित किया जा सकता है। जैसे मथुरा में एक जगह पर मवेशी रखे जाते हैं, लेकिन वे बँधे नहीं होते और लोग वहाँ उन्हें देखने जाते हैं। एक पर्यटक आकर्षण होने के अलावा काऊ सफारी आवारा पशुओं को एक नया जीवन प्रदान करेगी। गौरतलब है कि गायों की सुरक्षा के लिये राज्य सरकार ने कई फैसले लिये हैं। इसी साल अगस्त महीने में 'मुख्यमंत्री निराश्रित बेसहारा गोवंश सहभागिता योजना' शुरू की गई है। इस योजना में आम लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये प्रति गाय 30 रुपए की रखरखाव राशि देने की बात भी कही गई थी, ताकि अन्य लोग भी आवारा पशुओं को पालने के लिये आगे आएँ। सरकार ने अलग से गोशाला के लिये बजट भी दिया था, जिससे इन गायों को रखने के लिये अलग से व्यवस्था की जा सके। इस काम के लिये प्रशासन और म्युनिसिपल से भी सहयोग देने को कहा गया था। इसके अलावा राज्य सरकार ने सभी कॉरपोरेट हाउस को आदेश जारी करते हुए कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड का प्रयोग कर ग्रामीण इलाकों में छुट्टे गायों के रखरखाव की व्यवस्था करने को कहा था।


उत्तर प्रदेश में 218 फास्ट ट्रैक कोर्ट

राज्य सरकार ने महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के मद्देनज़र प्रदेश में 218 नए फास्ट ट्रैक कोर्ट खोलने की मंज़ूरी दी है। इनमें से 144 नई अदालतें केवल बलात्कार के मामलों की सुनवाई करेंगी, जबकि 74 अदालतें पॉक्सो एक्ट वाले मामले सुनेंगी। फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिये जजों की भर्ती जल्द शुरू की जाएगी। इन अदालतों के गठन पर होने वाले खर्च का 60% हिस्सा केंद्र सरकार तथा 40% हिस्सा राज्य सरकार वहन करेगी। किसी राज्य में फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का निर्णय संबंधित राज्य सरकार हाई कोर्ट से चर्चा के बाद करती है। हाई कोर्ट फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिये समय-सीमा तय कर सकता है (जैसे कि मामले की सुनवाई कब तक पूरी होनी है)। इसी के आधार पर फास्ट ट्रैक कोर्ट तय करता है कि मामले को हर रोज़ सुना जाना है या कुछ दिनों के अंतराल पर। सभी पक्षों को सुनने के बाद फास्ट ट्रैक कोर्ट तय समय-सीमा में अपना फैसला सुनाता है।


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