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डेली न्यूज़

  • 10 Feb, 2021
  • 56 min read
भारतीय राजनीति

कुरुबा समुदाय: कर्नाटक

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में कर्नाटक में कुरुबा समुदाय द्वारा एक विशाल रैली का आयोजन किया गया था। इस रैली में समुदाय के लोगों द्वारा राज्य सरकार से मांग की गई कि राज्य सरकार कुरुबा समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने हेतु केंद्र सरकार को अपनी संस्तुति भेजे।

प्रमुख बिंदु:  

पृष्ठभूमि:

  • देश की स्वतंत्रता के बाद से ही कुरुबा समुदाय को एसटी का दर्जा प्राप्त था। परंतु वर्ष 1977 में  पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एल.जी. हावनूर ने कुरुबा समुदाय को एसटी सूची से 'अति पिछड़ा वर्ग' की श्रेणी शामिल कर दिया। 
  • हालाँकि आयोग ने इसमें एक क्षेत्र विशेष की शर्त भी जोड़ दी और कहा कि बीदर, यादगीर, कालाबुरागी तथा मदिकेरी क्षेत्र में कुरुबा समानार्थी शब्द के साथ रहने वाले लोग एसटी श्रेणी का लाभ उठा सकते हैं।

कुरुबा समुदाय का संक्षिप्त परिचय:

  • कर्नाटक का कुरुबा समुदाय एक पारंपरिक भेड़ पालक समुदाय है।
  • वर्तमान में कुरुबा समुदाय की जनसंख्या राज्य की कुल आबादी का 9.3% है और ये पिछड़े वर्ग की श्रेणी में आते हैं।
  • कुरुबा कर्नाटक में लिंगायत, वोक्कालिगा और मुसलमानों के बाद चौथी सबसे बड़ी जाति है।
  • अन्य राज्यों में कुरुबा को अलग-अलग नामों से जाना जाता है - जैसे महाराष्ट्र में धनगर, गुजरात में रबारी या राईका, राजस्थान में देवासी और हरियाणा में गडरिया।

संबंधित मुद्दे:   

  • लिंगायत समुदाय की मांगें: तीन वर्ष पहले कर्नाटक में लिंगायत समुदाय ने एक अलग अल्पसंख्यक धर्म के रूप में मान्यता दिये जाने की मांग की थी।
    • लिंगायत उप-पंथ पंचमासाली से जुड़े लोगों ने भी अपने समुदाय को पिछड़ा वर्ग की 2A श्रेणी में शामिल किये जाने की मांग की है, जिसके तहत पिछड़ी जातियों को वर्तमान में 15% आरक्षण प्रदान किया जाता है।
  • न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास आयोग:
    • न्यायमूर्ति एच.एन. नागमोहन दास आयोग का गठन एससी समुदाय के लिये मौजूदा आरक्षण को 15% से बढ़ाकर 17% करने और एसटी के लिये इसे 3% से 7% तक किये जाने की प्रक्रिया की निगरानी के लिये किया गया था जिससे उच्चतम न्यायालय के वर्ष 1992 के निर्णय के अनुसार, यह कुल 50% आरक्षण कोटे से अधिक न होने पाए।
      • अगर कुरुबा को उनकी मांग के अनुसार एसटी घोषित किया जाता है, तो एसटी कोटे को भी आनुपातिक रूप से बढ़ाना होगा।
  • चुनौतियाँ:  
    • सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि कर्नाटक राज्य पहले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित   आरक्षण की 50% सीमा तक पहुँच चुका है और इसमें किसी भी प्रकार की वृद्धि एक बड़ी चुनौती होगी।

कर्नाटक में वर्तमान आरक्षण कोटा:

  • कर्नाटक ने सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1992 के आदेश का पालन करते हुए आरक्षण को 50% तक सीमित कर दिया है, इसके तहत पिछड़े वर्गों के लिये 32% आरक्षण निर्धारित है, जिनमें मुस्लिम, ईसाई और जैन शामिल हैं, एससी के लिये 15% और एसटी के लिये 3% आरक्षण निर्धारित है।
  • इस आरक्षण कोटे को आगे कई श्रेणियों में विभाजित किया गया है: श्रेणी 1 (4%), श्रेणी 2 ए (15%), श्रेणी 2 बी (4%), श्रेणी 3 ए (4%), श्रेणी 3 बी (5%), एससी (15%) और एसटी (3%)।

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अनुसूचित जनजाति:

परिचय:  

  • अनुच्छेद 366 (25): अनुसूचित जनजातियों का अर्थ ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों से है, जिन्हें भारतीय संविधान के प्रयोजन के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
  • अनुच्छेद 342 के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ वे समुदाय हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना या संसद द्वारा विधायी प्रक्रिया के माध्यम से अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित किया गया है। 
  •  अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य/केंद्रशासित प्रदेश से संबंधित होती है, ऐसे में एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित एक समुदाय को दूसरे राज्य में भी यह दर्जा प्राप्त होना अनिवार्य नहीं है।

मौलिक विशेषताएँ:  

  • किसी समुदाय को एक अनुसूचित जनजाति के रूप में नामित किये जाने के मानदंडों के संदर्भ में संविधान में कोई विशेष जानकारी नहीं दी गई है। हालाँकि अनुसूचित जनजाति समुदायों को अन्य समुदायों से अलग करने वाले कुछ लक्षण निम्नलिखित हैं:
    • पिछड़ापन/आदिमता (Primitiveness)
    • भौगोलिक अलगाव (Geographical Isolation)
    • संकोची स्वभाव (Shyness)  
    • सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ापन।

विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह

(Particularly Vulnerable Tribal Groups -PVTG)

  • देश में कुछ ऐसी जनजातियाँ (कुल ज्ञात 75) हैं जिन्हें ‘विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Groups -PVTG) के रूप में जाना जाता है, इन समूहों को (i) पूर्व-कृषि स्तर की प्रौद्योगिकी, (ii) स्थिर या घटती जनसंख्या, (iii) बेहद कम साक्षरता और (iv) आर्थिक निर्वाह स्तर के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

 स्रोत: द हिंदू


भूगोल

उत्तराखंड में फ्लैश फ्लड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड के चमोली ज़िले के तपोवन-रैनी क्षेत्र में एक ग्लेशियर के टूटने से धौली गंगा और अलकनंदा नदियों में बड़े पैमाने पर फ्लैश फ्लड (Flash Flood) की घटना देखी गई, जिससे ऋषिगंगा बिजली परियोजना को काफी नुकसान पहुँचा है।

  • उत्तराखंड में जून 2013 में आई बाढ़ के कारण अत्यधिक जान-माल की हानि हुई थी।

प्रमुख बिंदु

उत्तराखंड में बाढ़ आने का कारण:

  • यह घटना  ऋषि गंगा (Rishi Ganga) नदी में नंदा देवी ग्लेशियर के एक हिस्से के गिरने से हुई, जिससे पानी की मात्रा में अचानक वृद्धि हो गई।
    • ऋषि गंगा रैनी के पास धौली गंगा से मिलती है। इसी कारण से धौली गंगा में भी बाढ़ आ गई।

प्रमुख विद्युत परियोजनाएँ प्रभावित:

  • ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट:
    • यह 130MW की एक निजी स्वामित्व वाली परियोजना है।
  • धौलीगंगा पर तपोवन विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना:
    • यह धौलीगंगा नदी पर निर्मित 520 मेगावॉट की पनबिजली परियोजना थी।
  • उत्तर-पश्चिमी उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी नदी घाटियों की कई अन्य परियोजनाएँ भी बाढ़ के कारण प्रभावित हुई हैं।

फ्लैश फ्लड:

  • फ्लैश फ्लड के विषय में:
    • यह घटना बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में हुई अचानक वृद्धि को संदर्भित करती है।
    • यह बहुत ही उच्च स्थानों पर छोटी अवधि में घटित होने वाली घटना है, आमतौर पर वर्षा और फ्लैश फ्लड के बीच छह घंटे से कम का अंतर होता है।
    • फ्लैश फ्लड, खराब जल निकासी लाइनों या पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करने वाले अतिक्रमण के कारण भयानक हो जाती है।
  • कारण:
    • यह घटना भारी बारिश की वजह से तेज़ आँधी, तूफान, उष्णकटिबंधीय तूफान, बर्फ का पिघलना आदि के कारण हो सकती है।
    • फ्लैश फ्लड की घटना बाँध टूटने और/या मलबा प्रवाह के कारण भी हो सकती।
    • फ्लैश फ्लड के लिये ज्वालामुखी उद्गार भी उत्तरदायी है, क्योंकि ज्वालामुखी उद्गार के बाद आस-पास के क्षेत्रों के तापमान में तेज़ी से वृद्धि होती है जिससे इन क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर पिघलने लगते हैं।
    • फ्लैश फ्लड के स्वरूप को वर्षा की तीव्रता, वर्षा का वितरण, भूमि उपयोग का प्रकार तथा स्थलाकृति, वनस्पति प्रकार एवं विकास/घनत्व, मिट्टी का प्रकार आदि सभी बिंदु निर्धारित करते हैं।

ग्लेशियर 

  • ग्लेशियर के विषय में:
    • ये विशाल आकार की गतिशील बर्फराशि होती है जो अपने भार के कारण पर्वतीय ढालों का अनुसरण करते हुए नीचे की ओर प्रवाहित होते हैं।
    • ये आमतौर पर बर्फ के मैदानों के रूप में देखे जाते हैं।
    • ये मीठे पानी के सबसे बड़े बेसिन हैं जो पृथ्वी की लगभग 10% भूसतह को कवर करते हैं।
    • ग्लेशियर की स्थलाकृति और अवस्थिति के अनुसार इन्हें माउंटेन ग्लेशियर (अल्पाइन ग्लेशियर) या महाद्वीपीय ग्लेशियर (आइस शीट्स) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
    • महाद्वीपीय ग्लेशियर सभी दिशाओं में बाहर की ओर, जबकि माउंटेन ग्लेशियर उच्च ऊँचाई से कम ऊँचाई की ओर गति करते हैं।
  • ग्लेशियर और बाढ़:
    • ग्लेशियर झील:
      • हिमालय में ग्लेशियरों के पीछे हटने से झील का निर्माण होता है, जिन्हें अग्रहिमनदीय झील (Proglacial Lake) कहा जाता है जो तलछट और बड़े पत्थरों से बँधी होती है।
    • बाढ़:
      • जब इन झीलों पर बने बाँध टूटते हैं तो इनका पानी प्रवाहित होकर अचानक बड़ी मात्रा में पास की नदियों में मिल जाता है, जिससे निचले क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। 

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:

  • जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम पैटर्न में अनियमितता देखी जाती है, जिससे बर्फबारी, बारिश और बर्फ पिघलने की घटना में वृद्धि हुई है।
  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल की नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्टों के अनुसार, ग्लेशियरों के पीछे हटने और पर्माफ्रॉस्ट के गलने से पहाड़ी ढलानों की स्थिरता प्रभावित होने एवं ग्लेशियर क्षेत्र में झीलों की संख्या व क्षेत्र में वृद्धि होने का अनुमान है।

धौलीगंगा

उत्पत्ति:

  • इसकी उत्पत्ति उत्तराखंड की सबसे बड़ी हिमनद झील वसुधारा ताल (Vasudhara Tal) से होती है।

धौलीगंगा:

  • धौलीगंगा (Dhauliganga), अलकनंदा की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियों में से एक है, अलकनंदा की अन्य सहायक नदियाँ नंदाकिनी, पिंडर, मंदाकिनी और भागीरथी हैं।
    • धौलीगंगा, रैनी नदी में ऋषिगंगा के पास मिलती है।
  • यह अलकनंदा के साथ विष्णुप्रयाग में विलीन हो जाती है।
    • यह यहाँ अपनी पहचान खो देती है और अलकनंदा चमोली, मैथन, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग से होकर दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हुई मंदाकिनी नदी से मिलती है।
    • यह श्रीनगर होती हुई देवनाग के पास गंगा में मिल जाती है।
  • अलकनंदा, गंगा में मिलने के बाद गायब हो जाती है। गंगा  यहाँ से दक्षिण और फिर पश्चिम की ओर बहती हुई ऋषिकेश, हरिद्वार होकर उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है।

Alaknanda

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान

अवस्थिति:

  • यह राष्ट्रीय उद्यान भारत के दूसरे सबसे ऊंचे पर्वत नंदा देवी के 7,817 मीटर ऊँचाई क्षेत्र पर विस्तृत है।

नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान:

  • उद्यान में नंदादेवी अभयारण्य, एक हिमनद बेसिन स्थित है जो कई चोटियों से घिरा हुआ है तथा यह क्षेत्र ऋषि गंगा नदी द्वारा सिंचित है।

स्थापना:

  • इस उद्यान को वर्ष 1982 में एक अधिसूचना द्वारा संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित किया गया था, लेकिन बाद में इसका नाम नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया।
  • इसे वर्ष 1988 में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में दर्ज किया गया।

इस पार्क की वनस्पतियाँ:

  • यहाँ लगभग 312 फूलों की प्रजातियाँ (जिनमें 17 दुर्लभ प्रजातियाँ शामिल हैं) और देवदार, सनौबर, रोडोडेंड्रोन, जुनिपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं।

जीव-जंतु:

  • इस उद्यान में हिमालयन काला भालू, हिम तेंदुआ, हिमालयन मस्क हिरण आदि प्रमुख जीव-जंतु पाए जाते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

श्रीलंका में चीन की नई परियोजना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक चीनी कंपनी ने तमिलनाडु के रामेश्वरम से 45 किमी. दूर उत्तरी जाफना प्रायद्वीप के तीन श्रीलंकाई द्वीपों पर हाइब्रिड पवन और सौर ऊर्जा परियोजनाओं को स्थापित करने के लिये एक अनुबंध प्राप्त कर लिया है।

  • पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) में तीन द्वीपों डेल्फ्ट, नैनातिवु और अनलातिवु में स्थित इस परियोजना का वित्तपोषण एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा किया जाएगा।

Sri-Lanka

प्रमुख बिंदु

द्वीपों के बारे में

  • डेल्फ्ट, तीन द्वीपों में से सबसे बड़ा है और रामेश्वरम, तमिलनाडु के सबसे करीब है, यह श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
    • यहाँ दोनों के बीच कच्छतिवु नाम का एक छोटा द्वीप भी स्थित है, जिसे भारत ने वर्ष 1974 में श्रीलंका को सौंप दिया था।
    • इन द्वीपों के आसपास का जलीय क्षेत्र तमिलनाडु और जाफना के मछुआरों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
    • यह विषय दशकों से दोनों देशों के द्विपक्षीय एजेंडे में शामिल है।
    • भारत और श्रीलंका ने वर्ष 2016 में मछुआरों के मुद्दों को हल करने के लिये एक स्थायी तंत्र के रूप में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और श्रीलंका के मत्स्य एवं जलीय संसाधन विकास मंत्रालय के बीच मत्स्य पालन पर एक संयुक्त कार्यकारी समूह (JWG) की स्थापना की थी।

श्रीलंका का पक्ष

  • श्रीलंका के मुताबिक, इस निर्णय के लिये श्रीलंका को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि यह परियोजना एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा समर्थित है, जिसने स्वयं के दिशा-निर्देश स्थापित किये हैं, उधारकर्त्ता के लिये इनका पालन करना अनिवार्य है।

भारत की चिंताएँ

  • भारतीय तट रेखा से परियोजना की निकटता
    • भारतीय जलीय क्षेत्र में चीन की उपस्थिति भारत के लिये चिंता का विषय मानी जा सकती है, खासतौर पर ऐसे समय में जब भारत-चीन सीमा पर पहले से गतिरोध और तनाव जारी है।
    • यह समझौता ऐसे समय में किया जा रहा है जब लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर जारी गतिरोध का स्थायी समाधान प्राप्त होना शेष है।
  • ज्ञात हो कि हाल ही में श्रीलंका की सरकार ने पूर्वी कंटेनर टर्मिनल (ECT) के लिये भारत और जापान के साथ किये गए अनुबंध को रद्द कर दिया है।
    • भारत, श्रीलंका और जापान द्वारा हस्ताक्षरित इस त्रिपक्षीय समझौते के तहत पूर्वी कंटेनर टर्मिनल (ECT) को विकसित करने की बात की गई थी, जो कि कोलंबो बंदरगाह के नव विस्तारित दक्षिणी भाग में स्थित है।
    • भारत के लिये पूर्वी कंटेनर टर्मिनल (ECT) सौदा इस लिहाज से भी महत्त्वपूर्ण था कि इसके माध्यम से होने वाले लगभग 70 प्रतिशत ट्रांसशिपमेंट भारत से जुड़े हुए थे। कोलंबो पोर्ट में किसी भी अन्य टर्मिनल की तुलना में पूर्वी कंटेनर टर्मिनल को रणनीतिक दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

भारत का पक्ष

  • भारत सरकार ने चीन की कंपनी को अनुबंध दिये जाने पर श्रीलंका की सरकार के समक्ष मज़बूती के साथ विरोध दर्ज किया है। 
    • वर्ष 2018 में भारत ने युद्ध प्रभावित क्षेत्रों के लिये चीन की 300 मिलियन डॉलर की आवासीय परियोजना पर चिंता व्यक्त की थी, जिसमें श्रीलंका की पूर्व सरकार ने पुनर्वास मंत्रालय पर ‘अपारदर्शी’ तरीके से बोली प्रक्रिया को संपन्न करने का आरोप लगाया था।
      • इस परियोजना को अंततः बंद कर दिया गया था।

दक्षिण एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव

हाल के प्रयास

  • जनवरी 2021 में चीन ने कोरोना वायरस महामारी से मुकाबला करने और अपने आर्थिक एजेंडे के समन्वयन के लिये दक्षिण एशिया के देशों के साथ मिलकर वर्चुअल माध्यम से तीसरा बहुपक्षीय संवाद आयोजन किया था।

अन्य पहलें

  • ‘अमेरिकन इंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट’ के चाइना ग्लोबल इन्वेस्टमेंट ट्रैकर’ के मुताबिक, चीन ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका की अर्थव्यवस्थाओं में लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार किया है।
  • चीन अब मालदीव, पाकिस्तान और श्रीलंका में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है।

भारत के लिये चिंताएँ

  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ
    • पाकिस्तान और चीन के बीच बढ़ता सहयोग।
    • नेपाल और चीन के बीच बढ़ता संपर्क।
    • दक्षिण एशियाई देशों द्वारा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को स्वीकृति।
  • दक्षिण एशिया में नेतृत्त्वकारी भूमिका
    • दक्षिण एशिया क्षेत्र में चीन की स्थिति में लगातार वृद्धि होती जा रही है और दक्षिण एशिया में विभिन्न देशों द्वारा चीन को एक मार्गदर्शक के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
  • आर्थिक चिंताएँ
    • बीते एक दशक में चीन ने भारत को कई दक्षिण एशियाई देशों के प्रमुख व्यापारिक भागीदार के रूप में प्रतिस्थापित किया है।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2008 में मालदीव के साथ भारत का व्यापार चीन की तुलना में 3.4 गुना अधिक था, किंतु 2018 तक मालदीव के साथ चीन का कुल व्यापार भारत से थोड़ा अधिक था।
  • बांग्लादेश के साथ चीन का व्यापार अब भारत की तुलना में लगभग दोगुना हो गया है। यद्यपि नेपाल और श्रीलंका के साथ चीन का व्यापार अभी भी भारत की तुलना में कम है, किंतु व्यापार का अंतर फिलहाल काफी कम हो गया है।

आगे की राह

  • भारत के पास चीन के समान आर्थिक क्षमता मौजूद नहीं है। इसलिये यह आवश्यक है कि भारत इन देशों के विकास के लिये चीन के साथ सहयोग करे, ताकि विकास का लाभ सामूहिक रूप से दक्षिण एशिया तक पहुँचे। इसके अलावा भारत को उन देशों में निवेश करना चाहिये, जहाँ अभी तक चीन का हस्तक्षेप काफी कम है।
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के विस्तार योजनाओं की कड़ी निंदा करने के साथ-साथ, भारत को पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने के लिये अपने पारंपरिक और सांस्कृतिक संबंधों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत - यूक्रेन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूक्रेन ने भारतीय रक्षा बाज़ार में अपनी उपस्थिति को मज़बूती प्रदान करने के प्रयासों के अलावा भारत से कुछ सैन्य हार्डवेयर खरीदने में रुचि दिखाई है।

  • यह भारतीय रक्षा क्षेत्र में सुधारों और आत्मनिर्भर भारत अभियान के साथ तालमेल स्थापित करता है जिसका उद्देश्य भारत को रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है।

प्रमुख बिंदु

  • यूक्रेन ने 70 मिलियन अमेरिकी डॉलर के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसमें भारतीय सशस्त्र बलों के लिये नए हथियारों की बिक्री उनके रखरखाव तथा उन्नयन (आर -27 एयर-टू-एयर मिसाइल) शामिल है।
  • यूक्रेन ने भारत को अपने AN-178 मध्यम परिवहन विमान को बेचने का भी संकेत दिया है।
    • वर्ष 2009 में हुए एक समझौते के तहत यूक्रेन वर्तमान में भारतीय वायु सेना (Indian Air Force- IAF) के AN-32 परिवहन बेड़े को अद्यतन कर रहा है  
    • यूक्रेन की टीम ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) के साथ भी विचार-विमर्श किया और अनुसंधान तथा विकास के क्षेत्र में सहयोग की संभावना जताई।

भारत-यूक्रेन संबंध:

राजनयिक संबंध:

  • सोवियत संघ के विघटन के तुरंत बाद भारत सरकार ने दिसंबर 1991 में यूक्रेन गणराज्य को एक संप्रभु स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी।
  • कीव (Kyiv) में भारत का दूतावास मई 1992 में स्थापित किया गया था और यूक्रेन ने फरवरी 1993 में नई दिल्ली में अपना मिशन स्थापित किया।
  • भारत और यूक्रेन के बीच सौहार्द एवं मैत्रीपूर्ण संबंध हैं तथा दोनों शिक्षा, पारस्परिक कानूनी सहायता व बाह्य अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में सहयोग करते हैं।

रक्षा संबंध:

  • यूक्रेन अपनी आज़ादी के बाद से भारत के लिये सैन्य प्रौद्योगिकी और उपकरणों का एक स्रोत रहा है।
    • यूक्रेन R-27 एयर-टू-एयर मिसाइलों का भी निर्माण करता है जिसका उपयोग भारतीय वायुसेना द्वारा अपने SU-30MKI लड़ाकू विमानों में  किया जाता है।
  • अब भारत दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिये यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति भी कर रहा है।

व्यापार:

  • भारत, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में यूक्रेन का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है और पाँचवाँ सबसे बड़ा समग्र निर्यात गंतव्य है।
  • भारत द्वारा यूक्रेन को किया जाने वाला अधिकांश निर्यात फार्मास्यूटिकल्स  से संबंधित है।

संस्कृति:

  • वहाँ देश भर में फैले 30 से अधिक यूक्रेनी सांस्कृतिक संघ/समूह भारतीय नृत्य को बढ़ावा देने के कार्य में लगे हुए हैं।
  • यूक्रेन में लगभग 18,000 भारतीय छात्र मुख्य रूप से चिकित्सा के क्षेत्र में अध्ययन कर रहे हैं। भारतीय व्यावसायिक पेशेवर मुख्य रूप से फार्मास्यूटिकल्स, आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, शिक्षा आदि के क्षेत्र में कार्य करते हैं।

चुनौतियाँ:

  • वर्ष 2014 में मास्को ने क्रीमियाई प्रायद्वीप (Crimean Peninsula) पर कब्ज़ा कर लिया जिसके कारण रूस और यूक्रेन के बीच संबंध खराब हो गए, इससे भारत के लिये एक संभावित दुविधा उत्पन्न हो गई।
  • हाल ही में एक रूसी प्रेस विज्ञप्ति में रूस द्वारा निर्मित और बेचे जाने वाले सैन्य उपकरणों को यूक्रेन में पुनर्व्यवस्थित किये जाने पर आपत्ति जताई गई है।
  • यूक्रेन के साथ व्यापार करने वालों पर रूस ने आपत्ति जताना शुरू कर दिया है।
  • रूस से विवाद की संभावना इसलिये भी है क्योंकि वर्तमान में भारतीय वायु सेना (IAF) AN-32 के अपने बेड़े को पुनर्व्यवस्थित करने के लिये यूक्रेन के साथ सहयोग कर रही है।

 यूक्रेन 

स्थान: 

  • यूक्रेन, पूर्वी यूरोप में स्थित एक देश है। इसकी राजधानी कीव है, जो उत्तर-मध्य यूक्रेन में नीपर नदी (Dnieper River) के तट पर स्थित है।

आसपास के देश और समुद्र:

  • यूक्रेन की सीमा उत्तर में बेलारूस, पूर्व में रूस, आज़ोव का सागर और दक्षिण में काला सागर, दक्षिण-पश्चिम में मोल्दोवा व रोमानिया तथा पश्चिम में हंगरी, स्लोवाकिया एवं पोलैंड से लगती है।
  • सुदूर दक्षिण-पूर्व में यूक्रेन को केर्च जलडमरूमध्य (Kerch Strait) द्वारा रूस से अलग किया गया है, जो आज़ोव सागर को काला सागर से जोड़ता है।

इतिहास: 

  • दिसंबर 1991 में U.S.S.R (सोवियत संघ) के विघटन के साथ यूक्रेन को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
  • देश ने अपना आधिकारिक नाम बदलकर यूक्रेन कर लिया और इसने स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल (CIS) को उन देशों का एक संघ बनाने में मदद की जो पूर्व में सोवियत संघ के गणराज्य थे।

हाल के मुद्दे:

  • हाल ही में रूस द्वारा क्रीमियाई प्रायद्वीप पर कब्ज़े के बाद रूस तथा यूक्रेन के बीच शत्रुता की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • जून 2020 में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization- NATO) की अंतर-पहल भागीदारी के तहत यूक्रेन ‘इन्हेन्स्ड ऑपर्च्युनिटी पार्टनर (EOP)’ बना।
  • यूक्रेन, यूरोपीय यूनियन और नाटो की सदस्यता भी चाहता है, यह एक ऐसा कदम है जो रूस के साथ अन्य तनावों को हल करने के प्रयासों को बाधित कर सकता है।

Ukraine

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

पूर्वी हिमालय क्षेत्र में भूंकप की संभावना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों ने असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर भूकंप का पहला भूगर्भीय साक्ष्य पाया है, जिसका उल्लेख इतिहास में सदिया भूकंप (Sadiya Earthquake) के रूप में किया गया है। यह खोज पूर्वी हिमालय क्षेत्र में भूंकप की संभावना वाले क्षेत्रों की पहचान करने और उसके अनुरुप यहाँ निर्माण गतिविधियों की योजना बनाने में मददगार हो सकती है।

  • यह साइट पूर्वी हिमालय के एक प्रमुख भाग टुटिंग-टिडिंग सिवनी ज़ोन (Tuting-Tidding Suture Zone) के पास है, जहाँ हिमालय दक्षिण की ओर झुका हुआ है और इंडो-बर्मा रेंज से जुड़ता है।

प्रमुख बिंदु 

  • वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (Wadia Institute of Himalayan Geology- WIHG) के वैज्ञानिकों ने अरुणाचल प्रदेश के हिमबस्ती गाँव के उस क्षेत्र में उत्खनन किया जहाँ वर्ष 1697 में सदिया भूकंप आने के ऐतिहासिक साक्ष्य मिले हैं। उत्खनन में प्राप्त इन साक्ष्यों का आधुनिक भूवैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से विश्लेषण किया गया।
    • भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) के तहत WIHG एक स्वायत्त संस्थान है।
  • वैज्ञानिकों को सुबनसिरी नदी के डेल्टा क्षेत्र में गाद वाले स्थान पर बड़े-बड़े वृक्षों की टहनियाँ (सदिया सुबनसिरी नदी के दक्षिण-पूर्व में लगभग 145 किमी. दूर स्थित) दबी मिलीं, इससे पता चलता है कि भूकंप की इस घटना के बाद भी छह महीने तक भूकंप के हल्के झटकों की वज़ह से नदी में इतनी मिट्टी और मलबा जमा हो गया कि उसकी सतह ऊपर उठ गई। 
    • भू-वृद्धि (Aggradation) वह शब्द है जिसका प्रयोग तलछट के जमाव के कारण भूमि के उन्नयन में वृद्धि के लिये भूविज्ञान में किया जाता है।
    • आफ्टरशॉक वह भूकंपीय स्थिति है जो भूकंप क्रम के सबसे बड़े झटके का अनुसरण करती है।

महत्त्व: 

  • पूर्व में आए भूकंपों के अध्ययन से क्षेत्र की भूकंपीय क्षमता को निर्धारित करने में मदद मिलती है। यह क्षेत्र में भूकंप के खतरे के प्रतिचित्रण में मदद करता है और तद्नुसार विकास गतिविधियों के समन्वयन को सक्षम बनाता है।
  • भारत-चीन सीमा के पास स्थित अरुणाचल प्रदेश रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है, यह कभी-कभी स्वामित्व को लेकर विवाद के केंद्र में रहता है।
    • यहाँ सड़क, पुल और पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण जैसी विकास की कई पहलें शुरू की जा रही हैं, इसलिये इस क्षेत्र में भूकंप के पैटर्न को समझने की तत्काल आवश्यकता है।

भारत का भूकंपीय जोखिम मानचित्रण:

  • विवर्तनिक रूप से सक्रिय वलित पर्वत हिमालय की उपस्थिति के कारण भारत भूकंप प्रभावित देशों में से एक है।
  • भूकंपीयता से संबंधित वैज्ञानिक जानकारी, अतीत में आए भूकंप तथा विवर्तनिक व्यवस्था के आधार पर भारत को चार ‘भूकंपीय ज़ोनों’ (II, III, IV और V) में वर्गीकृत किया गया है।
    • पूर्व के भूकंप क्षेत्रों को उनकी गंभीरता के आधार पर पाँच ज़ोनों में विभाजित किया गया था, लेकिन 'भारतीय मानक ब्यूरो' (Bureau of Indian Standards- BIS) ने प्रथम 2 ज़ोनों का एकीकरण कर देश को चार भूकंपीय ज़ोनों में बाँटा है।
  • BIS भूकंपीय खतरे के नक्शे (Hazard Maps) और कोड प्रकाशित करने के लिये आधिकारिक एजेंसी है।

Seismic-zone

  • भूकंपीय ज़ोन II:
    • मामूली क्षति वाले भूकंपीय ज़ोन की तीव्रता MM के पैमाने पर V से VI तक होती है (MM- संशोधित मरकली तीव्रता पैमाना)।
  • भूकंपीय ज़ोन III:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप मध्यम क्षति।
  • भूकंपीय ज़ोन IV:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप अधिक क्षति।
  • भूकंपीय ज़ोन V:
    • भूकंपीय ज़ोन V भूकंप के लिये सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ ऐतिहासिक रूप से देश में भूकंप के कुछ सबसे तीव्र झटके देखे गए हैं।
    • इन क्षेत्रों में 7.0 से अधिक परिमाण वाले भूकंप देखे गए हैं और यह IX की तुलना में अधिक तीव्र होते हैं।

भूकंपीय लहरें, रिक्टर पैमाना और मरकली पैमाना:

  • भूकंपीय तरंगें भूकंप के कारण होने वाला कंपन है जो पृथ्वी के माध्यम से गति करते हैं और जिन्हें भूकंपमापी यंत्र (Seismographs) द्वारा दर्ज किया जाता है।
    • भूकंपमापी यंत्र तरंगों को एक टेढ़े-मेढ़े ग्राफ के रूप में प्रस्तुत करता है जो भूमिगत तरंगों के दोलन से संबंधित विभिन्न आयामों को दर्शाता है।
  • भूकंप की घटनाओं को झटके की तीव्रता के अनुसार जाना जाता है।
    • इसे परिमाण पैमाने (Magnitude scale) के रूप में भी जाना जाता है। यह भूकंप के दौरान उत्पन्न ऊर्जा के मापन से संबंधित है इसे 0-10 तक की संख्या में व्यक्त किया जाता है।
    • हालाँकि 2 से कम तथा 10 से अधिक रिक्टर तीव्रता के भूकंप का मापन करना सामान्यतः संभव नहीं है।

स्रोत:  पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

मिशन इनोवेशन 2.0

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री (Union Minister of Science & Technology) ने मिशन इनोवेशन (Mission Innovation) के दूसरे चरण की शुरुआत की है।

  • भारत ने मिशन इनोवेशन के संचालन समिति में नेतृत्व की भूमिका निभाई। यह विश्लेषण और संयुक्त अनुसंधान व व्यवसाय तथा निवेशक उप-समूहों का सदस्य है।

प्रमुख बिंदु

मिशन इनोवेशन:

  • गठन:
    •  मिशन इनोवेशन की घोषणा 30 नवंबर, 2015 को पेरिस जलवायु समझौते (Paris Climate Agreement) से अलग (Sideline) जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये की गई थी।
  • सदस्यता:
    • यह 24 देशों और यूरोपीय संघ के वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा नवाचार में तेज़ी लाने के लिये एक वैश्विक पहल है।
  • सिद्धांत:
    • सभी सदस्यों द्वारा चयनित प्राथमिक क्षेत्रों में पाँच वर्षों में अपने स्वच्छ ऊर्जा नवाचार निवेश को दोगुना करने की प्रतिबद्धता व्यक्त गई है।
    • प्रत्येक सदस्य अपनी प्राथमिकताओं, नीतियों, प्रक्रियाओं और कानूनों के अनुसार स्वतंत्र रूप से अपनी निधि का सबसे उचित उपयोग निर्धारित करने और दोहरे लक्ष्य को प्राप्ति के लिये अपने स्वयं के अनुसंधान तथा विकास प्राथमिकताओं एवं उनके उचित मार्ग को परिभाषित करता है।
    • एमआई सदस्य कई मामलों में अपने संपूर्ण ऊर्जा नवाचार बजट के कुछ हिस्सों को अपनी सीमा रेखा के भीतर पूर्ण करने को प्राथमिकता देते हैं।
  • उद्देश्य:
    • सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश को संतोषजनक स्तर तक बढ़ाना।
    • निजी क्षेत्र की संलग्नता और निवेश में वृद्धि करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना।
    • नवाचार की परिवर्तनकारी क्षमता के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  • नवाचार में आने वाली चुनौतियाँ:
    • नवाचार की चुनौतियाँ मिशन नवाचार का एक प्रमुख हिस्सा है, जिनका उद्देश्य प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अनुसंधान, विकास और प्रदर्शन का लाभ उठाना है जो अंततः ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने तथा स्वच्छ आर्थिक विकास के नए अवसर पैदा करने में मदद कर सकती हैं।
  • मिशन नवाचार की 8 चुनौतियाँ:
    • IC1 - स्मार्ट ग्रिड, IC2 - बिजली से ग्रिड तक पहुँच, IC3 - कार्बन कैप्चर, IC4 - सतत् जैव ईंधन, IC5 - कन्वर्टिंग सनलाइट, IC6 - स्वच्छ ऊर्जा सामग्री, IC7 - किफायती कूलिंग और हीटिंग वाले भवन, IC8 - अक्षय और स्वच्छ हाइड्रोजन
  • पहले चरण से पता चलता है कि नवाचार चुनौतियों के तहत किये गए कार्य अपेक्षाकृत कम समय में पूरे कर लिये गए जो आईसी के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये सदस्यों के नेतृत्व और स्वैच्छिक प्रयासों पर निर्भर थे।
  • इन संसाधनों ने नाटकीय रूप से उन्नत प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता को तेज़ कर दिया है जो भविष्य की स्वच्छ, सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा को परिभाषित करेगा।

 मिशन इनोवेशन 2.0:

  • नवाचार में तेज़ी लाने के साझा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सभी सदस्य एक अन्य चरण (2.0) को विकसित करने हेतु सहमत हुए हैं, इस चरण में शामिल हैं:
    • वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने और सीखने में तेज़ी लाने के लिये वर्तमान गतिविधियों पर एक उन्नत नवाचार मंच का निर्माण करना।
    • नया सार्वजनिक-निजी नवाचार गठजोड़ - ये मिशन स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं द्वारा समर्थित महत्त्वाकांक्षी और प्रेरणादायक लक्ष्यों के आसपास निर्मित होते हैं जिन्हें स्वच्छ ऊर्जा समाधान लागत, पैमाने, उपलब्धता आदि द्वारा सुगम बनाया जा सकता है।

मिशन के साथ भारतीय पहल

  • स्वच्छ ऊर्जा अंतर्राष्ट्रीय ऊष्मायन केंद्र:
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत स्थापित स्वच्छ ऊर्जा अंतर्राष्ट्रीय ऊष्मायन केंद्र (Clean Energy International Incubation Centre) ने स्टार्ट-अप नवाचार पारिस्थितिकी का सहयोग करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • सौर क्षमता में बढ़ोतरी:
    • भारत ने सौर संस्थापित क्षमता में 13 गुना की वृद्धि करके अपने गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन को 134 गीगावाट तक बढ़ा दिया है, यह कुल बिजली उत्पादन का लगभग 35% है।
      • भारत को राष्ट्रीय सौर मिशन (National Solar Mission- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना का एक हिस्सा) से अपनी सौर क्षमता बढ़ाने में मदद मिली है।
    • भारत का उद्देश्य वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में 450 गीगावाट बिजली उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त करना है।
  • जैव ईंधन:
    • भारत, पेट्रोल और डीज़ल में जैव ईंधन (Biofuel) मिश्रण के अनुपात को बढ़ाने के लिये काम कर रहा है:
      • इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम: इस कार्यक्रम का उद्देश्य पेट्रोल में इथेनॉल को मिश्रित करके इसे जैव ईंधन की श्रेणी में लाना और जैव ईंधन के आयात में कटौती करके लाखों डॉलर की बचत करना है।
      • राष्‍ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 का उद्देश्य वर्ष 2030 तक पेट्रोल में 20% और डीज़ल में 5% तक इथेनॉल का सम्मिश्रण करना है।
    • भारत में जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित जैव ईंधन में उत्कृष्टता के पाँच केंद्र जैव ईंधन, बायो हाइड्रोजन और बायो जेट जैसे उन्नत जैव ईंधन पर अनुसंधान कार्य कर रहे हैं।
  • उज्ज्वला योजना:
    • यह स्वच्छ ईंधन से खाना पकाने की दुनिया की सबसे बड़ा योजना है, जिसको वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय इसे  अपने तेल विपणन कंपनियों के माध्यम से संचालित करता है।
    • उज्ज्वला योजना के माध्यम से शुरू में गरीबी रेखा (Below Poverty Line) से नीचे के 5 करोड़ परिवारों को 31 मार्च, 2019 तक मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान करने का लक्ष्य था। यह लक्ष्य हासिल कर लिया गया है।
    • भारत ने अब तक लगभग 150 मिलियन कनेक्शन जारी किये हैं।
  • एक स्थायी भविष्य के लिये उत्सर्जन फ्रेमवर्क से परहेज:
    • एक साझेदारी के तहत भारत और स्वीडन ने स्थायी भविष्य के लिये अवॉइडेड इमिशन फ्रेमवर्क (Avoided Emission Framework) ढाँचा विकसित किया है।
    • इस साझेदारी के तहत वर्ष 2030 तक CO2 उत्सर्जन में लगभग 100 मिलियन टन की कमी लाने के लिये आठ कंपनियों का चयन किया गया है।

Mission-Innovation

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

पोंग बाँध झील वन्यजीव अभयारण्य

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2020-21 की सर्दियों में हिमाचल प्रदेश के पोंग बाँध झील वन्यजीव अभयारण्य में एक लाख से अधिक प्रवासी जल पक्षी पहुँचे।

प्रमुख बिंदु:  

  • अवस्थिति: कांगड़ा ज़िला, हिमाचल प्रदेश।
  • निर्माण:
    • पोंग बाँध को वर्ष 1975 में ब्यास नदी पर बनाया गया था। इसे पोंग जलाशय या महाराणा प्रताप सागर भी कहा जाता है।
    • वर्ष 1983 में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा पूरे जलाशय को वन्यजीव अभयारण्य घोषित कर दिया गया था।
    • वर्ष 1994 में भारत सरकार ने इसे "राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि" घोषित किया।
    • पोंग बाँध झील को नवंबर 2002 में रामसर स्थल के रूप में घोषित किया गया था।

Pong-Dam

  • प्रवासी पक्षियों के लिये गंतव्य:
    • यह अभयारण्य 54 कुलों के पक्षियों की लगभग 220 प्रजातियों की मेज़बानी करता है। सर्दियों के दौरान प्रवासी पक्षी हिंदुकुश हिमालय से, यहाँ तक कि साइबेरिया से इस अभयारण्य में आते हैं।
  • नदियाँ:
    • इस झील को ब्यास नदी और इसकी कई बारहमासी सहायक नदियों जैसे कि गज, नियोगल, बिनवा, उहल, बंगाणा और बानर से जल प्राप्त होता है। 
    • यह झील मछलियों की लगभग 22 प्रजातियों को आश्रय देती है, जिसमें दुर्लभ मछलियाँ जैसे- सैल और गैड शामिल हैं। झील का पर्याप्त जल स्तर इसे वाटर स्पोर्ट्स के लिये एक आदर्श गंतव्य स्थल बनाता है।
  • वनस्पति:
    • यह अभयारण्य क्षेत्र उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जंगलों से आच्छादित है, जो बड़ी संख्या में भारतीय वन्यजीवों को आश्रय देता है।
  • वनस्पति जगत: 
    • यूकेलिप्टस, कीकर, जामुन, शीशम, आम, शहतूत, गूलर, कचनार तथा आँवला आदि।
  • प्राणी जगत:
    • काकड़ (बार्किंग डियर), सांभर, जंगली सूअर, नीलगाय, तेंदुआ तथा छोटे पंजे वाले ऊदबिलाव आदि।
  • पक्षी वर्ग:
    • ब्लैक हेडेड गुल, लाल गर्दन वाले ग्रीब, टिटिहरी (Plovers) टर्न, बत्तख, जल मुर्गी, बगुला इत्यादि।

हिमाचल प्रदेश स्थित राष्ट्रीय उद्यान 

  • ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (Great Himalayan National Park):
    • कुल्लू ज़िले के बंजार उप-प्रभाग में स्थित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को आधिकारिक रूप से वर्ष 1999 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
    • वर्ष 2014 में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को जैव विविधता संरक्षण में अद्भुत योगदान के लिये यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया।
    • यहाँ पाई जाने वाली प्रजातियों में ग्रेटर ब्लू शीप, भारतीय पिका, रीसस बंदर, हिमालयन काले भालू, हिमालयन भूरे भालू, लाल लोमड़ी आदि शामिल हैं।
  • पिन घाटी राष्ट्रीय उद्यान (Pin Valley National Park):
    • पिन घाटी राष्ट्रीय उद्यान, लाहौल और स्पीति ज़िले में स्थित है। इसकी स्थापना वर्ष 1987 में की गई थी। 
    • यहाँ विभिन्न संकटग्रस्त प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवास में पाई जाती है जिसमें हिम तेंदुआ तथा साइबेरियाई आइबेक्स भी शामिल हैं। 
  • इंदरकिला राष्ट्रीय उद्यान (Inderkilla National Park):
    • इंदरकिला राष्ट्रीय उद्यान हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले में अवस्थित है तथा इसकी स्थापना वर्ष 2010 में की गई थी।
    • यहाँ तेंदुए और हिरण जैसे हिमालयी क्षेत्र के जंतु और विभिन्न पक्षी जिनमें ग्रीष्म ऋतु वाले दुर्लभ पक्षी भी शामिल हैं के साथ-साथ कीटों की विविध प्रजातियाँ भी देखी जा सकती हैं।
  • खीरगंगा राष्ट्रीय उद्यान (Khirganga National Park):
    • खीरगंगा राष्ट्रीय उद्यान कुल्लू में अवस्थित है तथा इसकी स्थापना वर्ष 2010 में की गई थी।
    • यह राष्ट्रीय उद्यान लगभग 5,500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है तथा 710 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है।
  • सिम्बलबारा राष्ट्रीय उद्यान (Simbalbara National Park):
    • सिम्बलबारा राष्ट्रीय उद्यान सिरमौर ज़िले की पांवटा घाटी (Paonta Valley) में अवस्थित है।
    • इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1958 में सिम्बलबारा वन्यजीव अभयारण्य (9.03 वर्ग किमी. क्षेत्रफल) के रूप में की गई थी।
    • वर्ष 2010 में 8.88 वर्ग किमी. अतिरिक्त क्षेत्रफल को शामिल करते हुए इसे एक राष्ट्रीय  उद्यान में परिवर्तित किया गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

हंटर सिंड्रोम: एमपीएस II

चर्चा में क्यों?

हाल ही में म्युकोपाॅलिसैक्रोडोसिस II या MPS II से पीड़ित दो भाइयों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करते हुए यह मांग की है कि उच्च न्यायालय उन्हें मुफ्त इलाज उपलब्ध कराने हेतु केंद्र सरकार और एम्स को निर्देश जारी करे। 

  • MPS II एक दुर्लभ बीमारी है जो परिवार में एक से दूसरे में पहुँचती है।

प्रमुख बिंदु:  

  • परिचय: MPS II ज़्यादातर बालकों को प्रभावित करता है और इससे पीड़ित लोगों का शरीर एक प्रकार के शर्करा को अपघटित नहीं कर पाता है जो हड्डियों, त्वचा, पेशी और अन्य ऊतकों का निर्माण करती है।
  • कारण: यह आईडीएस जीन के परिवर्तन (उत्परिवर्तन) के कारण होता है जो इंड्यूरोनेट 2-सल्फाटेज़ (I2S) एंज़ाइम के उत्पादन को नियंत्रित करता है।
    • इस एंज़ाइम की आवश्यकता शरीर में उत्पादित ग्लाइकोसामिनोग्लाइकन्स (Glycosaminoglycans or GAGs) नामक जटिल शर्करा को अपघटित करने के लिये होती है।
  • प्रभाव: I2S एंज़ाइम गतिविधि का अभाव कोशिकाओं के भीतर, विशेष रूप से लाइसोसोम के अंदर GAG के संचय का कारण बनता है।
    • लाइसोसोम कोशिका में ऐसे यौगिक होते हैं जो विभिन्न प्रकार के अणुओं के पाचन और उनके 
    • पुन: चक्रण का कार्य करते हैं।
    • MPS II के साथ लाइसोसोम के अंदर अणुओं का निर्माण करने वाली स्थितियों को लाइसोसोमल भंडारण विकार (Lysosomal Storage Disorders) कहा जाता है। 
    • GAGs के संचय से लाइसोसोम का आकार बढ़ जाता है, यही वजह है कि इस विकार के कारण कई ऊतक और अंगों की वृद्धि हो जाती है।
  • लक्षण: इसकी पहचान चेहरे के विशिष्ट लक्षणों, सिर के आकार का बढ़ जाना, यकृत और प्लीहा के आकार में वृद्धि  [हेपेटोसप्लेनोमेगाली (Hepatosplenomegaly)], श्रवण ह्रास, आदि के आधार पर की जाती है।
  • वंशानुगतता:
    • MPS II बीमारी,  X- गुणसूत्र संबद्ध रिसेसिव पैटर्न के वंशानुगत क्रम का अनुसरण करती है जिसका तात्पर्य है कि यह बीमारी विशेष रूप से पुरुषों में ही पाई जाती है। सामान्यतः महिलाएँ इस बीमारी से प्रभावित नहीं होती हैं यद्यपि वे इस बीमारी की वाहक हो सकती हैं।
    • ऐसे परिवार जिनमें एक से अधिक व्यक्ति इस बीमारी से प्रभावित होते हैं, में संभवतः इस रोग की वाहक माँ होती है। जब इस बीमारी की वाहक महिला बच्चे को जन्म देती है, तो इस बात की 25% (4 में से 1) संभावना होती है कि उसका पुत्र इस बीमारी से प्रभावित होगा।

दुर्लभ रोग:

  • दुर्लभ बीमारी एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति है जिसका प्रचलन लोगों में प्रायः कम पाया जाता है या सामान्य बीमारियों की तुलना में बहुत कम लोग इन बीमारियों से प्रभावित होते हैं।
  • दुर्लभ बीमारियों की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है तथा अलग-अलग देशों में इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ हैं।
  • हालाँकि दुर्लभ बीमारियाँ कम लोगों में पाई जाती हैं परंतु सामूहिक रूप से वे जनसंख्या के काफी बड़े अनुपात को प्रभावित करती हैं।
  • 80 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियाँ मूल रूप से आनुवंशिक होती हैं, इसलिये बच्चों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  • भारत में 56-72 मिलियन लोग दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित हैं।
  • केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा 450 'दुर्लभ रोगों' (Rare Diseases) के इलाज हेतु एक राष्ट्रीय नीति जारी की गई है।

स्रोत: द हिंदू


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