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शासन व्यवस्था

दुर्लभ रोगों हेतु राष्ट्रीय नीति-2020

  • 24 Jan 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

दुर्लभ रोग

मेन्स के लिये:

जागरूकता की आवश्यकता, नीति की विशेषताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) ने 450 'दुर्लभ रोगों' (Rare Diseases) के इलाज हेतु एक राष्ट्रीय नीति जारी की है।

पृष्ठभूमि:

केंद्र सरकार द्वारा पहली बार वर्ष 2017 में इस प्रकार की नीति तैयार की गई थी और इसकी समीक्षा के लिये वर्ष 2018 में एक समिति नियुक्त की गई।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान मसौदा नीति में ऐसे रोगी जिन्हें एकमुश्त उपचार की आवश्यकता है और वे सरकार की प्रमुख आयुष्मान भारत योजना के पात्र हैं तो उन्हें दुर्लभ रोगों के इलाज हेतु 15 लाख रुपए तक की राशि प्रदान करने का प्रस्ताव है।
  • नीति के लिये स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय अपनी अम्ब्रेला योजना ‘राष्ट्रीय आरोग्य निधि’ (Rashtriya Arogya Nidhi) के तहत वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
    • राष्ट्रीय आरोग्य निधि का उद्देश्य दुर्लभ बीमारी नीति के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • इसके अलावा मसौदा नीति के अनुसार, डेटाबेस तैयार करने हेतु भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ( Indian Council of Medical Research- ICMR) के तहत एक रजिस्ट्री स्थापित करने का प्रस्ताव भी है।
    • यह कुछ चिकित्सा संस्थानों को दुर्लभ रोगों के लिये उत्कृष्टता केंद्र के रूप में अधिसूचित करेगा।
  • नीति के तहत, दुर्लभ बीमारियों की तीन श्रेणियाँ हैं:
    • एक बार के उपचार के लिये उत्तरदायी रोग (उपचारात्मक)।
    • ऐसे रोग जिनमें लंबे समय तक उपचार की आवश्यकता होती है लेकिन लागत कम होती है।
    • ऐसे रोग जिन्हें उच्च लागत के साथ दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता है।
      • पहली श्रेणी के कुछ रोगों में ऑस्टियोपेट्रोसिस (Osteopetrosis) और प्रतिरक्षा की कमी के विकार शामिल हैं।

दुर्लभ रोग क्या हैं?

  • दुर्लभ बीमारी एक ऐसी स्वास्थ्य स्थिति होती है जिसका प्रचलन लोगों में प्रायः कम पाया जाता है या सामान्य बीमारियों की तुलना में बहुत कम लोग इन बीमारियों से प्रभावित होते हैं।
  • दुर्लभ बीमारियों की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है तथा अलग-अलग देशों में इसकी अलग-अलग परिभाषाएँ हैं।
  • 80 प्रतिशत दुर्लभ बीमारियाँ मूल रूप से आनुवंशिक होती हैं, इसलिये बच्चों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  • नीति के अनुसार, दुर्लभ बीमारियों में आनुवंशिक रोग ( Genetic Diseases), दुर्लभ कैंसर (Rare Cancer), उष्णकटिबंधीय संक्रामक रोग ( Infectious Tropical Diseases) और अपक्षयी रोग (Degenerative Diseases) शामिल हैं।
  • भारत में 56-72 मिलियन लोग दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित हैं।

विभिन्न देशों में दुर्लभ बीमारियों का प्रसार:

क्रमांक देश प्रसार प्रति 10,000 की आबादी से कम
1. संयुक्त राज्य अमेरिका 6.4
2. यूरोप 5.0
3. कनाडा 5.0
4. जापान 4.0
5. दक्षिण कोरिया 4.0
6. ऑस्ट्रेलिया 1.0
7. ताईवान 1.0

परिभाषा:

  • भारत में दुर्लभ बीमारियों की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है क्योंकि इसकी घटनाओं और व्यापकता पर महामारी विज्ञान के आँकड़ों की कमी है।
  • इसके अलावा दुर्लभ बीमारियों की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है सामान्यतः सभी देश रोग की व्यापकता, गंभीरता और वैकल्पिक चिकित्सीय विकल्पों के अस्तित्व को ध्यान में रखते हुए इसको परिभाषित करते हैं।

इस प्रकार की नीति की आवश्यकता क्यों है?

  • नीति के अनुसार, विश्व में सभी दुर्लभ बीमारियों में से 5% से भी कम बीमारियों के उपचार के लिये थेरेपी उपलब्ध है।
  • भारत में, लगभग 450 दुर्लभ बीमारियों को तृतीयक अस्पतालों से दर्ज किया गया है, जिनमें से हीमोफिलिया, थैलेसीमिया, सिकल-सेल एनीमिया, ऑटो-इम्यून रोग, गौचर रोग (Gaucher’s Disease) और सिस्टेम फाइब्रोसिस सबसे आम हैं।
  • राज्य के पास प्रत्येक नागरिक को सस्ती, सुलभ और विश्वसनीय स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ प्रदान करने की जिम्मेदारी है।
  • इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 21, 38 और 47 में स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं के महत्त्व का भी उल्लेख किया गया है।
  • हालाँकि अन्य बीमारियों की तुलना में दुर्लभ बीमारियों का अनुपात बहुत कम है और यह दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित व्यक्ति के जीवन के महत्त्व को कम नहीं करता है।
  • इस प्रकार राष्ट्रीय नीति इस प्रतिकूल अंतर को दूर करेगी और सरकार को सभी लोगों के लिये समान रूप से प्रतिबद्ध करेगी।

स्रोत: लाईवमिंट

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