भारतीय अर्थव्यवस्था
जीडीपी का पहला अग्रिम अनुमान
प्रिलिम्स के लिये:पहला अग्रिम अनुमान, सकल घरेलू उत्पाद, सकल मूल्यवर्द्धन, मुद्रास्फीति, वास्तविक जीडीपी बनाम नाममात्र जीडीपी मेन्स के लिये:जीडीपी गणना तंत्र |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने चालू वित्त वर्ष (2021-22) के लिये जीडीपी का पहला अग्रिम अनुमान (FAE) जारी किया।
- MoSPI के अनुसार, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वित्त वर्ष 2021-22 में 9.2% की दर से बढ़ेगा।
प्रमुख बिंदु
- जीडीपी का पहला अग्रिम अनुमान:
- FAE पहली बार वर्ष 2016-17 में पेश किया गया था, इसे आमतौर पर जनवरी के पहले सप्ताह के अंत में प्रकाशित किया जाता है।
- ये पहले आधिकारिक अनुमान हैं कि उस वित्तीय वर्ष में जीडीपी कैसे बढ़ने की उम्मीद है।
- इसके अलावा ये "अग्रिम" अनुमान भी हैं क्योंकि ये वित्तीय वर्ष (अप्रैल से मार्च) समाप्त होने से बहुत पहले प्रकाशित होते हैं।
- FAE तीसरी तिमाही या Q3 (अक्तूबर, नवंबर, दिसंबर) की समाप्ति के तुरंत बाद प्रकाशित होता है।
- हालाँकि इसमें औपचारिक Q3 जीडीपी डेटा शामिल नहीं होता है, जो फरवरी के अंत में दूसरे अग्रिम अनुमान (SAE) के हिस्से के रूप में प्रकाशित होता है।
- महत्त्व: FAE का मुख्य महत्व इस तथ्य में निहित है किये जीडीपी अनुमान हैं जिन्हें केंद्रीय वित्त मंत्रालय अगले वित्तीय वर्ष के बजट आवंटन को तय करने के लिये उपयोग करता है।
- बजट बनाने के दृष्टिकोण से नाममात्र जीडीपी और इसकी विकास दर दोनों का अनुमान लगाना महत्त्वपूर्ण है।
- इससे वास्तविक जीडीपी तथा मुद्रास्फीति की गणना में और मदद मिलेगी।
- वास्तविक और सांकेतिक जीडीपी के बीच का अंतर वर्ष में मुद्रास्फीति के स्तर को दर्शाता है।
- वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद = नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद - मुद्रास्फीति दर।
- FAE गणना:
- MoSPI के अनुसार, अग्रिम अनुमानों को संकलित करने का दृष्टिकोण बेंचमार्क-संकेतक पद्धति पर आधारित है।
- इसके अनुसार, पिछले वर्ष (इस मामले में वर्ष 2020-21) हेतु उपलब्ध अनुमान प्रासंगिक संकेतकों का उपयोग करके क्षेत्रों के प्रदर्शन को दर्शाते हैं।
- MoSPI औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के पिछले डेटा, वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री के डेटा आदि जैसे संकेतकों का उपयोग करके क्षेत्र-वार अनुमान प्रस्तुत करता है।
- डेटा की गणना संबंधी मुद्दे: पिछले कुछ वर्षों के दौरान महत्त्वपूर्ण उतार-चढ़ाव के कारण महामारी ने ऐसे कई अनुमानों को प्रभावित किया है।
- यही कारण है कि MoSPI ने सचेत किया है कि ‘ये केवल शुरुआती अनुमान हैं’ तथा बाद में संशोधित हो सकते हैं, जो कि कोविड महामारी की स्थिति, अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और सरकार की राजकोषीय प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है।
GDP बनाम GVA:
- ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (GDP) अर्थव्यवस्था को व्यय (या मांग) पक्ष से मापता करता है- यानी सभी व्यय जोड़कर।
- जीडीपी = निजी खपत + सकल निवेश + सरकारी निवेश + सरकारी खर्च + निर्यात-आयात।
- सकल मूल्य वर्द्धन (Gross Value Added- GVA) आपूर्ति पक्ष से अर्थव्यवस्था की एक तस्वीर प्रदान करता है।
- सकल मूल्य वर्द्धन किसी देश की अर्थव्यवस्था में सभी क्षेत्रों, यथा- प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीय क्षेत्र और तृतीयक क्षेत्र द्वारा किया गया कुल अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन का मौद्रिक मूल्य होता है।
- सकल मूल्यवर्द्धन = GDP + उत्पादों पर सब्सिडी - उत्पादों पर कर।
- वर्ष 2015 में भारत ने राष्ट्रीय खातों के अपने संकलन में बड़े बदलाव करने का निर्णय लिया तथा पूरी प्रक्रिया को वर्ष 2008 के संयुक्त राष्ट्र राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) के अनुरूप करने का निर्णय लिया।
- आधार वर्ष 2004-2005 से 2011-2012 में परिवर्तन।
- फैक्टर कॉस्ट को मार्केट प्राइस से बदलना।
- डेटा पूल का विस्तार।
- जीडीपी अनुमान में वित्तीय निगमों का बेहतर कवरेज़ (जैसे स्टॉक ब्रोकर, स्टॉक एक्सचेंज, परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियांँ, म्यूचुअल फंड और पेंशन फंड)।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कृषि
मीठी क्रांति
प्रिलिम्स के लिये:मोबाइल हनी प्रोसेसिंग वैन, राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन, मधुमक्खी पालन, मीठी क्रांति मेन्स के लिये:किसानों की आय दोगुनी करना, मीठी क्रांति, मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने उत्तर प्रदेश के एक गाँव में देश की पहली मोबाइल हनी प्रोसेसिंग वैन लॉन्च की है।
- मोबाइल हनी प्रोसेसिंग वैन जो मधुमक्खी पालकों द्वारा उत्पादित शहद को उनके दरवाजे पर संसाधित करेगी और इस प्रकार उन्हें प्रसंस्करण हेतु दूर के शहरों में प्रसंस्करण संयंत्रों में शहद ले जाने की परेशानी और लागत से बचाएगी।
- यह पहल ‘मीठी क्रांति’ का हिस्सा है।
प्रमुख बिंदु
- 'मोबाइल हनी प्रोसेसिंग वैन' के लाभ:
- प्रसंस्करण संयंत्रों तक शहद का परिवहन छोटे किसानों और मधुमक्खी पालकों के लिये एक महँगी गतिविधि है।
- उच्च परिवहन और प्रसंस्करण लागत से बचने के लिये अधिकांश मधुमक्खी पालक अपने कच्चे शहद को बहुत कम कीमत पर एजेंटों को बेच देते हैं।
- प्रसंस्करण/प्रोसेसिंग वैन मधुमक्खी पालकों को शहद निकालने और प्रसंस्करण की लागत को कम करेगी।
- इससे शहद में मिलावट की गुंजाइश भी खत्म हो जाएगी क्योंकि प्रसंस्करण का कार्य मधुमक्खी पालकों और किसानों के दरवाज़े पर किया जाएगा।
- प्रसंस्करण संयंत्रों तक शहद का परिवहन छोटे किसानों और मधुमक्खी पालकों के लिये एक महँगी गतिविधि है।
- 'मीठी क्रांति' के बारे में:
- यह मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसे 'मधुमक्खी पालन' '(Beekeeping) के नाम से जाना जाता है।
- मीठी क्रांति को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2020 में (कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत) राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन शुरू किया गया।
- इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शहद और अन्य संबंधित उत्पादों के उत्पादन में तीव्रता लाना है।
- अच्छी गुणवत्ता वाले शहद की मांग पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ रही है क्योंकि इसे प्राकृतिक रूप से पौष्टिक उत्पाद माना जाता है।
- अन्य मधुमक्खी पालन उत्पादों जैसे- रॉयल जेली, मोम, पराग, आदि का भी विभिन्न क्षेत्रों जैसे फार्मास्यूटिकल्स, भोजन, पेय, सौंदर्य और अन्य में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
- शहद मिशन के तहत KVIC किसानों या मधुमक्खी पालकों को निम्नलिखित सुविधाएँ प्रदान करता है –
- मधुमक्खी कालोनियों की जाँच के बारे में व्यावहारिक प्रशिक्षण।
- सभी मौसमों में मधुमक्खी कालोनियों के प्रबंधन के साथ-साथ मधुमक्खी को नुकसान पहुँचाने वाले कारकों और रोगों की पहचान एवं प्रबंधन।
- मधुमक्खी पालन के उपकरणों से परिचित और
- शहद निष्कर्षण और मोम शुद्धि।
- शहद मिशन कार्यक्रम वर्ष 2017-18 के दौरान केवीआईसी द्वारा शुरू किया गया था।
- इस मिशन के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप मधुमक्खी संरक्षण सुनिश्चित करेगा, बीमारियों को रोकेगा या मधुमक्खी कालोनियों के नुकसान को रोकेगा तथा मधुमक्खी पालन उत्पादों की गुणवत्ता और अधिक मात्रा प्रदान करेगा।
- खेती के तरीकों से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिये बेहतर गुणवत्ता वाला शहद व अन्य उत्पाद प्राप्त होंगे।
- मधुमक्खी पालन एक कम निवेश और अत्यधिक कुशल उद्यम मॉडल है, जिसमें प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये एक बड़े कारक के रूप में उभरा है।
- मधुमक्खी पालन को बढ़ाने से किसानों की आय दोगुनी होगी, रोज़गार पैदा होगा, खाद्य सुरक्षा और मधुमक्खी संरक्षण सुनिश्चित होगा तथा फसल उत्पादकता में वृद्धि होगी।
- यह मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसे 'मधुमक्खी पालन' '(Beekeeping) के नाम से जाना जाता है।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC)
- खादी और ग्रामोद्योग आयोग 'खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम-1956' के तहत एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है।
- इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ भी आवश्यक हो अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना तथा विकास के लिये योजनाएँ बनाना, उनका प्रचार-प्रसार करना तथा सुविधाएँ एवं सहायता प्रदान करना है।
- यह भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of MSME) के अंतर्गत आने वाली एक मुख्य संस्था है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय राजव्यवस्था
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019
प्रिलिम्स के लिये:अधीनस्थ विधान संबंधी समिति, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, 1985 का असम समझौता मेन्स के लिये:नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 से संबंधित विशेषताएँ और मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृह मंत्रालय (MHA) नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) के तहत नियमों को अधिसूचित करने की समय सीमा से चूक गया।
- नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 से संबंधित चिंताओं और बेहतर स्पष्टता के लिये लोकसभा तथा राज्यसभा में दो संसदीय समितियों (अधीनस्थ कानून संबंधी समितियों) ने गृह मंत्रालय से कानून को नियंत्रित करने वाले नियमों के निर्माण की मांग की थी।
- अगर सरकार नियम और कानून नहीं बनाती है, तो कोई कानून या उसके कुछ हिस्सों को लागू नहीं किया जाएगा। वर्ष 1988 का बेनामी लेन-देन अधिनियम एक ऐसे ही कानून का उदाहरण है, जो नियमों के अभाव में लागू नहीं किया गया है।
अधीनस्थ विधान संबंधी समिति:
- इस समिति द्वारा जाँच की जाती है और यह सदन को रिपोर्ट प्रस्तुत करती है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विनियमों, नियमों और उप-नियमों आदि को बनाने की शक्तियों का इस तरह के प्रतिनिधिमंडल के दायरे में कार्यपालिका द्वारा उचित रूप से प्रयोग किया जा रहा है।
- इस समिति में दोनों सदनों के सदस्य मौजूद होते हैं।
- इसमें 15 सदस्य होते हैं।
- इस समिति में किसी मंत्री को मनोनीत नहीं किया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- CAA के बारे में:
- CAA पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह गैर-मुस्लिम समुदायों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था।
- यह छह समुदायों के सदस्यों को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से छूट देता है।
- दोनों अधिनियम अवैध रूप से देश में प्रवेश करने और वीजा या परमिट के समाप्त हो जाने पर यहाँ रहने के लिये दंड निर्दिष्ट करते हैं।
- CAA के साथ संबद्ध चिंताएँ:
- एक विशेष समुदाय को लक्षित करना: ऐसी आशंकाएँ हैं कि CAA के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का देशव्यापी संकलन होगा यह प्रस्तावित नागरिक रजिस्टर से बाहर किये गए गैर-मुसलमानों को लाभान्वित करेगा, जबकि बहिष्कृत मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी।
- उत्तर-पूर्व के मुद्दे: यह वर्ष 1985 के असम समझौते का खंडन करता है, जिसमें कहा गया है कि 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों को चाहे वे किसी भी धर्म के हों निर्वासित कर दिया जाएगा।
- असम में अनुमानित 20 मिलियन अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं और उन्होंने राज्य के संसाधनों तथा अर्थव्यवस्था पर गंभीर दबाव डालने के अलावा राज्य की जनसांख्यिकी को बदल दिया है।
- मौलिक अधिकारों के खिलाफ: आलोचकों का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है व नागरिकों और विदेशियों दोनों पर लागू होता है) तथा संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
- प्रकृति में भेदभावपूर्ण: भारत में कई अन्य शरणार्थी हैं जिनमें श्रीलंका के तमिल और म्याँमार के हिंदू रोहिंग्या शामिल हैं। वे इस अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते हैं।
- प्रशासन में कठिनाई: सरकार के लिये अवैध प्रवासियों और प्रभावित लोगों के बीच अंतर करना मुश्किल होगा।
- द्विपक्षीय संबंधों में बाधा: यह अधिनियम धार्मिक उत्पीड़न पर प्रकाश डालता है जो कि इन तीन देशों में हुआ है और हो रहा है तथा इस प्रकार उनके साथ हमारे द्विपक्षीय संबंध खराब हो सकते हैं।
आगे की राह
- भारत की एक समृद्ध सभ्यता रही है। इसलिये यह उन लोगों की रक्षा करने का एक नया प्रयास है जिन पर इसके पड़ोस में मुकदमा चलाया जाता है। हालाँकि तरीके संविधान की भावना के अनुसार होने चाहिये।
- इस प्रकार MHA को CAA नियमों को अत्यंत पारदर्शिता के साथ अधिसूचित करना चाहिये और सीएए से जुड़ी आशंकाओं को दूर करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB)
प्रिलिम्स के लिये:एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB), एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) मेन्स के लिये:एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक और भारत में इसके द्वारा समर्थित परियोजनाएंँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल को बीजिंग स्थित एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
- अक्तूबर 2021 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने AIIB के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की छठी वार्षिक बैठक में भाग लिया।
प्रमुख बिंदु
- एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक के बारे में:
- एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) एक बहुपक्षीय विकास बैंक है जिसका उद्देश्य एशिया में सामाजिक-आर्थिक परिणामों को बेहतर बनाना है।
- इसका उद्देश्य लोगों, सेवाओं और बाजारों को जोड़ना है जो समय के साथ अरबों लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा और स्थायी बुनियादी ढाँचे एवं अन्य उत्पादक क्षेत्रों में निवेश करके बेहतर भविष्य का निर्माण करेगा।
- इसकी स्थापना AIIB आर्टिकल्स ऑफ एग्रीमेंट (25 दिसंबर, 2015 से लागू) नामक एक बहुपक्षीय समझौते के माध्यम से की गई है। समझौते के पक्षकारों (57 संस्थापक सदस्य) हेतु बैंक की सदस्यता अनिवार्य है।
- इसका मुख्यालय बीजिंग में है और जनवरी 2016 में इसका परिचालन शुरू हुआ।
- AIIB के विभिन्न अंग:
- बोर्ड ऑफ गवर्नर्स:
- बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में प्रत्येक सदस्य देश द्वारा नियुक्त एक गवर्नर (Governor) और एक वैकल्पिक गवर्नर (Governor) होता है। गवर्नर और वैकल्पिक गवर्नर नियुक्त सदस्यों के प्रति सद्भावपूर्ण व्यवहार रखते हैं। AIIB की सभी शक्तियाँ बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में निहित हैं।
- निदेशक मंडल:
- परिचालन लागत को कम करने के लिये निदेशक मंडल एक गैर-आवासीय मंडल (Non-Resident Board) है।
- यह बैंक के सामान्य संचालन के लिये ज़िम्मेदार है, जोकि बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा सौंपी गई उन सभी शक्तियों का उपयोग करता है, जिनमें शामिल है
- वरिष्ठ प्रबंधन:
- AIIB कर्मचारियों का नेतृत्व अध्यक्ष (President) द्वारा किया जाता है, इन्हें AIIB शेयरधारकों द्वारा पाँच साल के कार्यकाल के लिये चुना जाता है और एक बार पुन: निर्वाचित होने के लिये पात्र होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार पैनल:
- बैंक की रणनीतियों और नीतियों के साथ-साथ सामान्य परिचालन मुद्दों पर अध्यक्ष तथा वरिष्ठ प्रबंधन का समर्थन करने के लिये बैंक ने एक अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार पैनल (IAP) की स्थापना की है।
- बोर्ड ऑफ गवर्नर्स:
- AIIB की प्रमुख उपलब्धियाँ:
- विश्वव्यापी सदस्यता में तीव्र वृद्धि:
- AIIB ने वर्ष 2016 में 57 संस्थापक सदस्यों (37 क्षेत्रीय और 20 गैर क्षेत्रीय) के साथ परिचालन शुरू किया। वर्ष 2020 के अंत तक, इसमें 103 स्वीकृत सदस्य थे जो वैश्विक आबादी का लगभग 79% और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 65% का प्रतिनिधित्त्व करते थे।
- तीन प्रमुख रेटिंग संस्थानों द्वारा सौंपी गई उच्चतम क्रेडिट रेटिंग:
- 2017 के बाद से AIIB ने शीर्ष क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों- स्टैंडर्ड एंड पूअर्स, मूडीज और फिच से स्थिर दृष्टिकोण के साथ एएए रेटिंग प्राप्त की है।
- अपनी मज़बूत वित्तीय स्थिति की उद्योग मान्यता ने इसे अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाज़ारों में उपस्थिति का विस्तार करने में सक्षम बनाया है।
- संयुक्त राष्ट्र में स्थायी पर्यवेक्षक का दर्ज़ा:
- 2018 में AIIB को संयुक्त राष्ट्र महासभा और आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, वैश्विक निकाय के दो विकास-केंद्रित प्रमुख अंगों के विचार-विमर्श में स्थायी पर्यवेक्षक का दर्ज़ा दिया गया था।
- दक्षता और जवाबदेही बढ़ाने वाला शासन मॉडल:
- एआईआईबी ने अपने निदेशक मंडल के लिये एक जवाबदेह प्रबंधन के कार्य को निर्देशित और उसकी देखरेख करने के लिये रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने हेतु एक प्रभावी वातावरण बनाया है।
- बैंक का जवाबदेही ढाँचा एक अभिनव शासन मॉडल है जो एआईआईबी को पूरे संगठन में जवाबदेही की संस्कृति को बनाये रखता है।
- अंतिम रूप दी गई या विकसित नीतियाँ/रणनीति:
- सभी प्रमुख बुनियादी ढाँचा क्षेत्रों के लिये रणनीतियों और गैर-क्षेत्रीय सदस्यों में इक्विटी में निवेश, निजी पूंजी जुटाने तथा वित्तपोषण कार्यों हेतु सभी को अनुमोदित और कार्यान्वित किया जा रहा है।
- विश्वव्यापी सदस्यता में तीव्र वृद्धि:
- AIIB और भारत:
- एआईआईबी ने बैंक के किसी अन्य सदस्य की तुलना में भारत के लिये अधिक ऋण स्वीकृत किये हैं।
- चीन इसका सबसे बड़ा और भारत दूसरा सबसे बड़ा शेयरधारक है।
- AIIB ने भारत में 6.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 28 परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है।
- इसने हाल ही में बुनियादी सुविधाओं के अलावा हरित परियोजनाओं और कोविड-19 महामारी के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल का समर्थन करने पर ज़ोर दिया है।
- अक्तूबर 2021 में भारत ने ‘एशिया पेसिफिक वैक्सीन एक्सेस फैसिलिटी’ (APVAX) पहल के तहत ‘एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक’ (AIIB) और एशियाई विकास बैंक (ADB) से 667 मिलियन वैक्सीन डोज़ खरीदने के लिये ऋण हेतु आवेदन किया था, जिसमें 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर ADB द्वारा दिया जाएगा, जबकि 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर AIIB द्वारा दिया जाएगा।
- बीते वर्ष (वर्ष 2021), AIIB ने चेन्नई मेट्रो रेल प्रणाली के विस्तार का समर्थन करने हेतु भारत सरकार को 356.67 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण की भी मंज़ूरी दी थी।
- एआईआईबी ने बैंक के किसी अन्य सदस्य की तुलना में भारत के लिये अधिक ऋण स्वीकृत किये हैं।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
ई-पासपोर्ट : पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम (PSP)
प्रिलिम्स के लिये:पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम (पीएसपी), ई-पासपोर्ट मेन्स के लिये:ई-पासपोर्ट और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने घोषणा की है कि वह जल्द ही नए पासपोर्ट के लिये आवेदन करने या अपने समाप्त हो रहे पासपोर्ट को नवीनीकृत करने वाले नागरिकों को ई-पासपोर्ट जारी करना शुरू करेगी।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह घोषणा विदेश मंत्रालय (MEA) और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ लिमिटेड (TCS) के बीच हस्ताक्षरित एक समझौते के तहत है, PSP (पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम) के अगले चरण को PSP-V2.0 कहा जाएगा।
- MEA-TCS सहयोग वर्ष 2008 से पासपोर्ट प्रक्रिया का एक हिस्सा रहा है और इसने जटिल प्रक्रिया के डिजिटलीकरण को बढ़ाने में मदद की है जिसके लिये विशाल सरकारी नेटवर्क के स्पेक्ट्रम में कई हितधारकों की आवश्यकता होती है।
- टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ ‘नागरिक इंटरफेस, प्रौद्योगिकी बैकबोन, कॉल सेंटर, प्रशिक्षण और परिवर्तन प्रबंधन’ जैसे "समर्थन कार्यों" की उपलब्धता को सुनिश्चित करेगी।
- पासपोर्ट जारी करने की प्रक्रिया में सरकार ‘सभी संप्रभु और सुरक्षा संबंधी कार्यों’ का प्रयोग करेगी।
- यह घोषणा विदेश मंत्रालय (MEA) और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज़ लिमिटेड (TCS) के बीच हस्ताक्षरित एक समझौते के तहत है, PSP (पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम) के अगले चरण को PSP-V2.0 कहा जाएगा।
- पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम (PSP):
- पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम (PSP) भारत के कई मिशन मोड प्रोजेक्ट्स (MMPs) में से एक है।
- ‘मिशन मोड प्रोजेक्ट’ (MMP) राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP) के भीतर एक ऐसी परियोजना होती है, जो बैंकिंग, भूमि रिकॉर्ड या वाणिज्यिक कर आदि जैसे इलेक्ट्रॉनिक शासन के एक पहलू पर केंद्रित होती है।
- पासपोर्ट सेवा कार्यक्रम (PSP) भारत के कई मिशन मोड प्रोजेक्ट्स (MMPs) में से एक है।
- PSP-V2.0:
- PSP-V2.0, PSP-V1.0 का ही विस्तार है, जो एक ई-सरकारी उपकरण है, जिसके तहत पासपोर्ट से संबंधित सेवाओं के वितरण में नए बदलाव किये गए हैं।
- नई पहल का उद्देश्य एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाना है जो "पारदर्शी, अधिक सुलभ और विश्वसनीय" होगा तथा यह एक प्रशिक्षित कार्यबल द्वारा समर्थित होगा।
- यह एक अत्याधुनिक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र बनाएगा, मौजूदा प्रक्रियाओं को ठीक करेगा और पासपोर्ट जारी करने में शामिल सरकार के विभिन्न अंगों को एकीकृत करेगा।
- PSP-V2.0 की नई विशेषताएंँ:
- नए कार्यक्रम में नवीनतम बायोमेट्रिक्स प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एडवांस डेटा एनालिटिक्स, चैट-बॉट, ऑटो-प्रतिक्रिया, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण, क्लाउड सक्षमता के उपयोग सहित प्रौद्योगिकी उन्नयन होने की उम्मीद है।
- PSP-V2.0 के तहत सबसे नई विशेषता ई-पासपोर्ट नामक नई पीढ़ी के पासपोर्ट जारी करना होगा।
- ई-पासपोर्ट और इसका महत्त्व:
- ई-पासपोर्ट पारंपरिक पासपोर्ट का अद्यतित रूप है और इसका उद्देश्य इसे अधिक सुरक्षित बनाना एवं विश्व स्तर पर अप्रवासन के लिये सुगम मार्ग सुनिश्चित करना है।
- ई-पासपोर्ट को एक चिप के साथ एम्बेड किया जाएगा जिसमें जीवन संबंधी जानकारी सहित धारक के व्यक्तिगत विवरण शामिल होगा।
- ई-पासपोर्ट के लिये सॉफ्टवेयर आईआईटी कानपुर और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) द्वारा विकसित किया गया है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत NIC भारत सरकार का प्रौद्योगिकी भागीदार है। एनआईसी की स्थापना वर्ष 1976 में केंद्र और राज्य सरकारों को प्रौद्योगिकी संचालित समाधान प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
- यह विश्व भर में आव्रजन प्रक्रिया (Immigration Process) को आसान बनाएगा और पासपोर्ट धारकों के लिये डिजिटल सुरक्षा को बढ़ावा देगा।
- ई-पासपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organisation- ICAO) के मानकों का पालन करेंगे।
- ICAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है, जिसे वर्ष 1944 में स्थापित किया गया था, जिसने शांतिपूर्ण वैश्विक हवाई नेविगेशन हेतु मानकों और प्रक्रियाओं की नींव रखी। भारत इसका सदस्य देश है।