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डेली न्यूज़

  • 09 Dec, 2020
  • 57 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

शनि और बृहस्पति का महासंयुग्मन

चर्चा में क्यों?

एक दुर्लभ खगोलीय घटना में बृहस्पति और शनि 21 दिसंबर, 2020 को एक-दूसरे के बहुत करीब (महासंयुग्मन- Great Conjunction) एक चमकते सितारे की तरह दिखाई देंगे।

प्रमुख बिंदु:

  • संयुग्मन (Conjunction): यदि दो आकाशीय पिंड पृथ्वी से एक-दूसरे के करीब दिखाई देते हैं, तो इसे संयुग्मन कहा जाता है। 
  • महासंयुग्मन (Great Conjunction): यदि शनि और बृहस्पति के संयुग्मन की स्थिति होती  है, तो इसे महासंयुग्मन कहा जाता है।
    • यह घटना प्रत्येक 20 वर्ष में एक बार घटित होती है।
    • पृथ्वी से दिखाई देने वाला यह संयोजन बृहस्पति और शनि के कक्षीय रास्तों का एक रेखा में आने का परिणाम है।
      • बृहस्पति लगभग 12 वर्ष में और शनि 29 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करते हैं ।
    • यह घटना 21 दिसंबर, 2020 को होगी, इस दिन दिसंबर सक्रांति (शीत अयनांत) भी होती है।
    • 21 दिसंबर, 2020 को वर्ष 1623 के बाद से बृहस्पति और शनि के मध्य सबसे कम दूरी होगी। इसके बाद ये दोनों ग्रह वर्ष 2080 को इतने नज़दीक दिखाई देंगे।
    • ये दोनों ग्रह एक साथ नज़दीक आते दिखाई देंगे, हाँलाकि इनके मध्य की दूरी 400 मिलियन मील से भी अधिक होगी।

बृहस्पति:

  • सूर्य से पाँचवीं पंक्ति में बृहस्पति, सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है जो अन्य सभी ग्रहों के मुकाबले दोगुने से अधिक बड़ा है।
    • बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून को जोवियन ग्रह या गैसीय विशालकाय ग्रह कहा जाता है। इनमें वायुमंडल की मोटी परत पाई जाती है जिसमें ज़्यादातर हीलियम और हाइड्रोजन गैस होती है।
  • बृहस्पति लगभग हर 10 घंटे में एक बार घूर्णन (एक जोवियन दिवस) करता है, परंतु सूर्य की परिक्रमा (एक जोवियन वर्ष) करने में इसे लगभग 12 वर्ष लगते हैं। बृहस्पति के 75 से अधिक चंद्रमा हैं।
    • बृहस्पति के चार सबसे बड़े चंद्रमाओं को इटालियन खगोलशास्त्री गैलीलियो गैलीली जिन्होंने पहली बार वर्ष 1610 में इन ग्रहों को देखा था, के नाम पर गैलीलियन उपग्रह कहा जाता है। 
      • इनके नाम आयो, यूरोपा, गेनीमेड और कैलिस्टो हैं।
  • वर्ष 1979 में वॉयजर मिशन ने बृहस्पति की धुँधली वलय प्रणाली की खोज की।
  • नौ अंतरिक्षयानों को बृहस्पति पर भेजा जा चुका है। सबसे बाद में जूनो वर्ष 2016 में बृहस्पति पर पहुँचा।

शनि:

  • शनि सूर्य से छठा और सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
  • शनि को अपनी धुरी पर घूमने में लगभग 10.7 घंटे का समय लगता है और यह लगभग 29 वर्षों में सूर्य की परिक्रमा करता है।
  • 'टाइटन' शनि का सबसे बड़ा उपग्रह है जो बुध ग्रह के बराबर है।
  • इसकी सबसे बड़ी विशेषता है इस ग्रह की मध्य रेखा के चारों ओर पूर्ण विकसित वलयों का होना, जिनकी संख्या 7 है।
  • कुछ मिशनों ने शनि का दौरा किया है: पायनियर 11 और वॉयजर 1 तथा 2 ने उड़ान भरी; परंतु कैसिनी ने वर्ष  2004 से 2017 तक 294 बार शनि की परिक्रमा की।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

रोबोटिक सर्जरी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने सभी स्वास्थ्य बीमाकर्त्ता कंपनियों की स्वास्थ्य नीतियों को मानकीकृत किया है ताकि वे रोबोटिक और बैरियाट्रिक सर्जरी को भी स्वास्थ्य बीमा के तहत कवर कर सकें।

  • बैरियाट्रिक सर्जरी (Bariatric surgery) एक ऐसा ऑपरेशन है जिसके माध्यम से पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली में परिवर्तन कर व्यक्ति की भूख को नियंत्रित किया जाता है, यह परिवर्तन व्यक्ति के वज़न को कम करने में मदद करता है।
  • हाल ही में भारत मनुष्यों की टेलीरोबोटिक कोरोनरी सर्जरी करने वाला पहला देश बना है।

प्रमुख बिंदु

  • रोबोटिक्स: यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की वह शाखा है जिसके अंतर्गत रोबोट (मानवीय क्रियाओं के स्थापन के रूप में अथवा उनकी नकल करने वाली मशीनें) के डिज़ाइन, निर्माण, संचालन एवं अनुप्रयोगों का अध्ययन किया जाता है।

रोबोटिक्स के अनुप्रयोग:

  • औद्योगिक क्षेत्र में: कुछ रोबोट मुख्य रूप से औद्योगिक विनिर्माण कार्यों में प्रयोग किये जाते हैं, जैसे-
    • पॉइंट-टू-पॉइंट रोबोट: इस प्रकार के रोबोट पहले से निर्धारित कई बिंदुओं पर कार्य करने हेतु प्रयोग किये जाते हैं। उदाहरण के लिये निश्चित स्थान पर स्टीकर चिपकाने, वेल्डिंग और ड्रिलिंग आदि कार्यों में।
    • पिक एंड प्लेस रोबोट: ये रोबोट्स किसी वस्तु को एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखने की प्रक्रिया को तेज़ करते हैं।
    • कंटीन्यूअस पाथ रोबोट: यह पॉइंट-टू-पॉइंट पद्धति का विस्तार है। इसमें एक साथ कई बिंदुओं का प्रयोग किया जा सकता है। इनका मार्ग चापाकार (Arched), वृत्ताकार अथवा सीढ़ीदार रेखा में बनता है। इन रोबोट्स को विशेष रूप से अत्यंत नज़दीक तथा एक-दूसरे के आस-पास स्थित बिंदुओं के बीच कार्य करने के लिये प्रोग्राम किया जाता है। स्प्रे तथा पेंटिंग जैसे कार्यों में इन्हीं रोबोट्स का उपयोग किया जाता है।
    • एक्सो-स्केलेटन (Exoskeleton): ये मानव की मौजूदा क्षमताओं में वृद्धि करने में काम आते हैं। ये भारी-से-भारी ऑटोमोबाइल कलपुर्जों को आसानी से उठा सकते हैं।
  • चिकित्सा क्षेत्र में: चिकित्सकीय सर्जरी करने के लिये बेहतर कौशल के साथ-साथ बेहतर नियंत्रण की भी आवश्यकता होती है। इस दृष्टि से रोबोट बहुत उपयोगी होते हैं। वर्तमान में रोबोट ने मस्तिष्क सर्जरी, हार्ट बाईपास सर्जरी, छोटे वायरलेस और रोबोटिक कैमरा कैप्सूल की सहायता से पाचन तंत्र को ठीक करने जैसे कार्य भी संभव बना दिये हैं।
    • इसके अलावा टेलीमेडिसिन में दूर से संचालित रोबोट्स की सहायता से चिकित्सक अपने से दूर बैठे मरीज़ का भी इलाज कर सकते हैं।
  • सैन्य क्षेत्र में: सैन्य क्षेत्र में भी रोबोट तकनीक में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है। UAV अथवा मानव रहित विमान (Unmanned Aerial Vehicle) या ड्रोन रिमोट द्वारा नियंत्रित विमान हैं जिनका प्रयोग जासूसी करने, बिना आवाज़ मिसाइल हमला करने आदि में किया जाता है।
  • अंतरिक्ष और समुद्री क्षेत्र में: अंतरिक्ष अन्वेषण हेतु विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा रोबोट्स विकसित किये गए हैं। उदाहरण के लिये रोबोनॉट रिमोट द्वारा संचालित एक रिमोट है जिसे अंतरिक्ष में चहल-कदमी के उद्देश्य से विकसित किया गया है।
    • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने मानवयुक्त गगनयान मिशन हेतु एक अर्द्ध-मानवीय (Half-Humanoid) रोबोट ‘व्योममित्र’  लॉन्च किया है।
  • दवा उद्योग में: दवा उद्योग में रोबोट ऐसे कार्य करने में सक्षम हैं, जो प्रायः मानव के लिये खतरनाक माने जाते हैं। जैसे- रेडियोएक्टिव प्रदूषण के संपर्क में रहकर किये जाने वाले कार्य।
  • दुर्गम और खतरनाक क्षेत्रों में: बमों को निष्क्रिय करने, ज़मीन के अंदर बिछी बारूदी सुरंगों का पता लगाने और नाभिकीय विकिरण वाले खतरनाक तथा जोखिम भरे क्षेत्रों में रोबोट का उपयोग अत्यधिक कारगर एवं उपयुक्त माना जाता है। आपदा (बाढ़, भूकंप, चक्रवात आदि) और परमाणु दुर्घटनाओं के समय रोबोट काफी उपयोगी सिद्ध होते हैं।
    • ‘पायनियर’ (Pioneer) नामक रोबोट को चेर्नोबिल परमाणु रिएक्टर के संयंत्र-4 के संरचना विश्लेषण हेतु भेजा गया था।
    • वर्ष 2011 में हुए फुकुशिमा परमाणु हादसे में भी रोबोट्स ने संचालकों को विभिन्न प्रकार के ऑडियो, विडियो और सेंसर डेटा भेजे थे।
  • कृषि क्षेत्र में: कृषि क्षेत्र में रोबोट की सहायता से मुख्यतः फसलों की कटाई की जाती है। इसके अलावा रोबोट्स या ड्रोनों के बढ़ते अनुप्रयोग में खरपतवार नियंत्रण, क्लाउड सीडिंग, बीज रोपण, मृदा विश्लेषण आदि कार्य भी शामिल हैं।
    • पशुधन अनुप्रयोगों में रोबोट्स का इस्तेमाल ऑटोमेटिक मिल्किंग, वाशिंग आदि में किया जाता है।

रोबोटिक सर्जरी:

Robotic

  • रोबोटिक या रोबोट की सहायता से की जाने वाली सर्जरी उन्नत कंप्यूटर प्रौद्योगिकी को कुशल सर्जनों के अनुभव के साथ एकीकृत करती है। यह तकनीक सर्जन को शरीर की जटिल संरचना की 10 गुना वर्द्धित, हाई डेफिनिशन वाली, 3 डी छवि प्रदान करती है।
  • सर्जन विशेष सर्जिकल उपकरणों को कुशलतापूर्वक चलाने के लिये रोबोटिक संरचना में दिये गए कंट्रोल/नियंत्रण का उपयोग करता है, जो बहुत छोटे होने के साथ ही मानव हाथ की तुलना में अधिक लचीले और फुर्तीले होते हैं। रोबोट हाथ के झटके को कम करते हुए सर्जन के हाथों की हरकतों की नकल करता है।

रोबोटिक सर्जरी के लाभ:

  • सरल प्रक्रियाएँ: जटिल प्रक्रियाओं के प्रदर्शन को बहुत सरल बनाते हैं।
  • लचीलेपन, परिशुद्धता और नियंत्रण में वृद्धि: यह डॉक्टरों को पारंपरिक तकनीकों से अधिक सटीक, लचीलेपन और नियंत्रण के साथ विभिन्न प्रकार की जटिल प्रक्रियाओं को संपन्न करने में सक्षम बनाता है।
  • आघात में कमी: यह रोगी की बड़े चीरों (Incisions) के बजाय छोटे पोर्ट्स/द्वारकों के माध्यम से सर्जरी करने में सक्षम बनाता है। इस प्रकार आघात को कम करता है।
  • सर्जरी को सरल बनाता है: उपकरण पारंपरिक खुले और लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की तुलना में छोटे चीरों (Incisions) के माध्यम से रोगी के शरीर के ऐसे भागों तक पहुँच को आसान बनाते हैं जहाँ आसानी से नहीं पहुँचा जा सकता।
  • रिकवरी में लगने वाले समय में कमी: यह चिकित्सा प्रक्रिया की जटिलताओं में कमी और अस्पताल में रहने की अवधि को कम कर मरीज़ की रिकवरी में लगने वाले समय को कम करता है।
  • अन्य लाभ: दर्द तथा रक्तस्राव में कमी और छोटे निशान जो स्पष्ट दिखाई नहीं देते।

रोबोटिक सर्जरी की उच्च मांग का कारण: रोबोटिक सर्जरी की मांग बढ़ाने वाले कारक हैं:

  • प्रौद्योगिकी में उन्नति।
  • क्रोनिक बीमारी के मामलों में वृद्धि।
  • चिकित्सा त्रुटियों से जुड़े मामलों की उच्च संख्या।
  • शीघ्र रिकवरी और दर्द में कमी।
  • रोबोट की सहायता से की जाने वाली सर्जरी के लाभों से संबंधित जागरूकता में वृद्धि।

क्षेत्र की धीमी प्रगति का कारण:

  • स्थापना की उच्च लागत: ये उपकरण न केवल महँगे हैं बल्कि उपकरणों और सहायक उपकरणों की डिस्पोजेबल प्रकृति के कारण आवर्ती लागत भी उच्च होती है।
  • एकाधिकार: केवल कुछ ही कंपनियाँ हैं जो रोबोटिक सर्जरी के लिये उपकरणों का निर्माण करती हैं। इन कंपनियों के एकाधिकार के कारण भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में रोबोटिक सर्जरी का विस्तार करना मुश्किल हो जाता है।
  • अप्रशिक्षित संसाधन: रोबोटिक सर्जरी के लिये प्रशिक्षित सर्जनों की अनुपलब्धता एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।

भारत में रोबोटिक सर्जरी:

  • गुणवत्ता: भारत विश्व भर में उच्च-गुणवत्ता वाले उपचार प्राप्त करने के लिये सबसे पसंदीदा स्थान है और यहाँ विभिन्न मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल तथा रोगी-देखभाल केंद्र मौजूद हैं।
  • अवसंरचना: अस्पताल विभिन्न महत्त्वपूर्ण बीमारियों के इलाज के लिये अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए उन्नत, अति परिष्कृत एवं विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाओं से सुसज्जित हैं।
  • लागत: अमेरिका, यू.के. और कनाडा के विपरीत भारत में चिकित्सा सुविधाएँ बहुत सस्ती हैं। कुल मिलाकर भारत में ऐसी सभी प्रक्रियाओं की लागत लोगों के लिये अनुकूल है तथा इसके लिये लोगों को सेवाओं और अवसंरचना की गुणवत्ता से समझौता नहीं करना पड़ता।

आगे की राह

  • सरकार को चाहिये कि वह फेलोशिप कार्यक्रम शुरू करे और सर्जिकल टीमों को संरचित प्रशिक्षण प्रदान करे क्योंकि रोबोटिक सर्जरी के मामलों में वृद्धि के साथ ही ऐसी सर्जिकल प्रक्रियाओं के लिये प्रशिक्षित डॉक्टरों की आवश्यकता होगी। भारत में, सर्जनों को प्रशिक्षित करना और प्रमाणित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है।
  • रोबोटिक सर्जरी की उच्च लागत से निपटने के लिये सरकार को चाहिये कि वह अभिनव तरीकों के साथ आगे आने वाले अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच सहयोग को बढ़ावा दे।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हवाना सिंड्रोम

चर्चा में क्यों

हाल ही में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (National Academies of Sciences), USA की एक रिपोर्ट में हवाना सिंड्रोम का संभावी कारण निर्देशित माइक्रोवेव विकिरण (Directed Microwave Radiation) को बताया गया है।

प्रमुख बिंदु

हवाना सिंड्रोम:

  • 2016 के उत्तरार्द्ध में हवाना (क्यूबा की राजधानी) में तैनात USA के राजनयिकों और अन्य कर्मचारियों ने अजीब सी आवाज़ें सुनाई देने तथा शारीरिक संवेदनाओं के बाद इस बीमारी को महसूस किया।
  • इस बीमारी के लक्षणों में मिचली, तीव्र सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, नींद की समस्या आदि शामिल हैं, जिन्हें हवाना सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है।
  • हवाना में कर्मचारियों को मुख्य रूप से अनिद्रा तथा सिरदर्द जैसी समस्याओं के साथ ही वेस्टिबुलर प्रसंस्करण (Vestibular Processing) और संज्ञानात्मक (Cognitive) समस्या को लंबे समय तक झेलना पड़ा।
  • इस सिंड्रोम से प्रभावित कर्मचारियों में से कुछ को तो ठीक कर दिया गया लेकिन अन्य प्रभावित लोगों के जीवन के सामान्य काम-काज को भी इसने प्रभावी रूप से बाधित किया।

रिपोर्ट के बारे में:

  • NAS रिपोर्ट ने लक्षणों की व्याख्या करने के लिये चार संभावनाओं यथा- संक्रमण, रसायन, मनोवैज्ञानिक कारक और माइक्रोवेव ऊर्जा की जाँच की। 
  • अभी तक इस मामले में यही एकमात्र रिपोर्ट है जो स्पष्ट और विस्तृत अनुमान प्रदान करती है।
    • विभिन्न अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा इस संदर्भ किये गए प्रयासों के तहत वैज्ञानिकों ने लोगों के इस सिंड्रोम से पीड़ित होने का कारण विदेशी मिशनों में कार्य करने के दौरान तनावपूर्ण वातावरण को ज़िम्मेदार बताया।

रिपोर्ट का निष्कर्ष:

  • हवाना सिंड्रोम के मामलों को समझने में निर्देशित स्पंदित माइक्रोवेव विकिरण (Directed Pulsed Microwave Radiation) ऊर्जा को सबसे उपयुक्त पाया गया जिस पर समिति ने दावा किया था।
    • इसे "निर्देशित" और "स्पंदित" ऊर्जा कहकर रिपोर्ट इस भ्रम के लिये कोई जगह नहीं छोड़ती है कि पीड़ितों को लक्षित किया गया था जो माइक्रोवेव के सामान्य ऊर्जा स्रोतों के कारण नहीं हो सकता है।
  • रोगियों ने जो लक्षण बताए उनमें दर्द और गूँजती आवाजें शामिल हैं जो स्पष्ट रूप से एक विशेष दिशा में सुनाई दीं या कमरे में एक विशिष्ट स्थान पर घटित हुईं।
  • यह भविष्य की ऐसी घटनाओं के बारे में चेतावनी देते हुए एक प्रतिक्रिया तंत्र स्थापित करने की सिफारिश करती है क्योंकि भविष्य की घटनाओं का प्रसार समय व स्थान के अनुसार और अधिक हो सकता है जिनकी तत्कात पहचान करना कठिन हो सकता है।
  • हालाँकि समिति अन्य संभावित युक्तियों को खारिज़ नहीं करती है और इस संभावना पर विचार करती है कि कारकों की बहुलता कुछ मामलों तथा दूसरों के बीच के अंतर को बताती है।
  • इस बात का भी उल्लेख नहीं किया गया है कि ऊर्जा जान-बूझकर वितरित की गई थी, भले ही इसने माइक्रोवेव हथियारों पर महत्त्वपूर्ण शोध किया हो।

संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिक्रिया:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने NAS के प्रयास की प्रशंसा की लेकिन इस पर भी प्रकाश डाला कि इसके अन्य संभावित कारण भी हो सकते हैं। कुछ जानकारियों तक ही रिपोर्ट के दायरे को सीमित करने वाली संभावित सुरक्षा चिंताओं के कारणों को भी इसने समिति की कमी  के रूप में चिह्नित किया।
  • सरकार ने सिंड्रोम से प्रभावित सरकारी कर्मचारियों को लंबे समय तक आपातकालीन देखभाल लाभ प्रदान करने के लिये नए रक्षा प्राधिकरण बिल में एक प्रावधान को भी शामिल किया।
  • इस संदर्भ में अमेरिका ने क्यूबा पर "हमला" करने का आरोप लगाया था लेकिन क्यूबा ने इन बीमारियों के बारे में किसी भी तरह की जानकारी होने से इनकार कर दिया।

माइक्रोवेव हथियार (Microwave Weapon)

  • माइक्रोवेव हथियार एक प्रकार के प्रत्यक्ष ऊर्जा हथियार होते हैं, जो अपने लक्ष्य को अत्यधिक केंद्रित ऊर्जा के रूपों जैसे ध्वनि, लेज़र या माइक्रोवेव आदि के द्वारा लक्षित करते हैं।
  • इसमें उच्च-आवृत्ति के विद्युत चुंबकीय विकिरण द्वारा मानव शरीर को लक्षित किया जाता है, जिससे दर्द और असहजता की स्थिति उत्पन्न होती है। यह उसी तरह काम करता है जैसे कि रसोई के उपकरण।
    • माइक्रोवेव ओवन में एक इलेक्ट्रॉन ट्यूब जिसे मैग्नेट्रॉन (Magnetron) कहा जाता है, विद्युत चुंबकीय तरंग (Microwaves) उत्पन्न करती है, ये तरंगें उपकरण के आंतरिक धातु के चारों ओर उछलती (Bounce ) हैं और भोजन द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं।
    • माइक्रोवेव भोजन में पानी के अणुओं को उत्तेजित करता है और उनका कंपन गर्मी पैदा करती है जिससे भोजन पकता है। शुष्क खाद्य पदार्थों की तुलना में उच्च जल की मात्रा वाले खाद्य पदार्थ माइक्रोवेव में तेज़ी से पकते हैं।
  • माइक्रोवेव हथियार वाले देश:
    • एक से अधिक देशों ने मानव और इलेक्ट्रॉनिक दोनों प्रणालियों को लक्षित करने के लिये इन हथियारों को विकसित किया है।
    • चीन ने पहली बार वर्ष 2014 में एक एयर शो में पॉली डब्ल्यू.बी.–1 (Poly WB-1) नामक “माइक्रोवेव हथियार” का प्रदर्शन किया था।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी ‘एक्टिव डेनियल सिस्टम’ (Active Denial System) नामक 'माइक्रोवेव हथियार' विकसित किया है।
  • मुद्दे:
    • क्यूबा और चीन में अमेरिकी राजनयिकों और उनके परिवारों के सदस्यों को ‘माइक्रोवेव हथियारों’ (हवाना सिंड्रोम) का उपयोग कर निशाना बनाया गया था।
    • इस बात पर चिंता जताई गई है कि इनका दुष्प्रभाव आँखों पर पड़ सकता है या लंबे समय में कार्सिनोजेनिक (Carcinogenic) प्रभाव भी देखा जा सकता है।
    • यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ये जान ले सकते हैं या मानव को स्थायी नुकसान पहुँचा सकते हैं।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका के अनुसार, प्राकृतिक ब्लिंक रिफ्लेक्स (Natural Blink Reflex), एवेरज़न रिस्पॉन्स (Aversion Response) और हेड टर्न  (Head Turn ) आदि सभी इन हथियारों से आँखों की रक्षा करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

जैविक कृषि क्षेत्र: लक्षद्वीप

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार की भागीदारी गारंटी प्रणाली (PGS) के तहत संपूर्ण लक्षद्वीप को एक जैविक कृषि क्षेत्र घोषित किया गया है।

भागीदारी गारंटी प्रणाली (PGS)

  • यह जैविक उत्पादों को प्रमाणित करने की एक प्रक्रिया है, जो सुनिश्चित करती है कि उनका उत्पादन निर्धारित गुणवत्ता मानकों के अनुसार किया जाए।
    • यह प्रमाणन प्रलेखित लोगो (Documented Logo) या वचन (Statement) के रूप में होता है।
  • इसका कार्यान्वयन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • PGS प्रमाणीकरण केवल उन किसानों या समुदायों के लिये है, जो एक गाँव अथवा आस-पास के अन्य क्षेत्रों के भीतर समूह के रूप में संगठित होकर कार्य कर सकते हैं। साथ ही यह केवल कृषि गतिविधियाँ जैसे कि फसल उत्पादन, प्रसंस्करण, पशु पालन और ऑफ-फार्म प्रसंस्करण आदि पर ही लागू होता है। 

प्रमुख बिंदु

  • लक्षद्वीप 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक क्षेत्र बनने वाला देश का पहला केंद्रशासित प्रदेश है, जहाँ सभी प्रकार की कृषि गतिविधियाँ पूर्णतः सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना की जाती हैं, जिससे इस क्षेत्र के लोगों को सुरक्षित खाद्य विकल्प प्राप्त होता है। साथ ही यहाँ कृषि पर्यावरण-अनुकूल गतिविधि बन गई है।
    • इससे पूर्व वर्ष 2016 में सिक्किम भारत का पहला 100 प्रतिशत जैविक राज्य बना था।
  • लक्षद्वीप के कृषि विभाग ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को प्रदेश के संपूर्ण 32 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्र को जैविक क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव भेजा था।
    • इसके बाद केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने केंद्र सरकार की परंपरागत कृषि विकास योजना (जैविक कृषि को प्रोत्साहन देने संबंधी योजना) के तहत आवश्यक प्रमाणन और प्रख्यापन प्राप्त करने के बाद लक्षद्वीप के संपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र को जैविक क्षेत्र घोषित कर दिया।

पृष्ठभूमि 

  • ध्यातव्य है कि अक्तूबर 2017 में लक्षद्वीप प्रशासन ने सभी द्वीपों को रासायनिक मुक्त क्षेत्र बनाने के उद्देश्य से कृषि प्रयोजनों के लिये किसी भी प्रकार के सिंथेटिक रसायनों की बिक्री और उपयोग पर औपचारिक प्रतिबंध लगा दिया था।

लाभ

  • इससे जैविक उत्पादों जैसे कि नारियल और नारियल का दूध आदि का बेहतर विपणन संभव हो सकेगा।
  • जैविक टैग के साथ लक्षद्वीप के किसानों को अपने कृषि उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होगी।
  • लक्षद्वीप के नारियल किसानों के खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित केंद्र सरकार के ‘एक ज़िला-एक उत्पाद’ (ODOP) कार्यक्रम से लाभान्वित होने की उम्मीद है।
  • इसके तहत पूरे केंद्रशासित प्रदेश को एक ही ज़िले के रूप में माना जा रहा है और नारियल तेल को उत्पाद के रूप में स्वीकार किया गया है।

फसल पैटर्न

  • लक्षद्वीप में नारियल एकमात्र प्रमुख फसल है और वह भी छह माह तक निष्क्रिय रहती है।
    • लक्षद्वीप का नारियल प्रसंस्करण उद्योग एक वर्ष में केवल छह माह के लिये ही काम करता है, क्योंकि इस दौरान मौसम शुष्क होता है, वहीं मई से दिसंबर माह के बीच इस उद्योग में लगभग ठहराव आ जाता है और गतिविधियाँ लगभग रुक जाती हैं, जिससे किसानों को नुकसान होता है।
    • इस वजह से लक्षद्वीप प्रशासन ड्रायर (सुखाने की मशीन) और इसी प्रकार की अन्य मशीनों के प्रयोग पर विचार कर रहा है, जिससे वर्ष की दूसरी छमाही में किसानों को नुकसान का सामना न करना पड़े।

जैविक कृषि (ऑर्गेनिक फार्मिंग)

  • जैविक कृषि वह विधि है, जिसमें सिंथेटिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता या न्यूनतम प्रयोग किया जाता है तथा जिसमें भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाए रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। 
  • जैविक कृषि को बढ़ावा देने हेतु सरकार के प्रयास:
    • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
      • यह योजना प्रमाणन के साथ क्लस्टर आधारित जैविक कृषि को बढ़ावा देती है। इसके तहत क्लस्टर गठन, प्रशिक्षण, प्रमाणन और विपणन का समर्थन किया जाता है।
    • मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्ट रीजन (MOVCD)
      • यह योजना किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र में थर्ड पार्टी प्रमाणित जैविक कृषि को बढ़ावा देने से संबंधित है।
    • पूंजीगत निवेश सब्सिडी योजना 
      • यह योजना राज्य सरकार/सरकारी एजेंसियों को मशीनीकृत फल/सब्जी के बाज़ार/कृषि अपशिष्ट से खाद उत्पादन इकाई की स्थापना के लिये 100 प्रतिशत सहायता प्रदान का प्रावधान करती है।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
      • इसके तहत जैव-उर्वरक के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

लक्षद्वीप

  • 32 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला भारत का सबसे छोटा केंद्रशासित प्रदेश, लक्षद्वीप एक द्वीप समूह है, जिसमें कुल 36 द्वीप शामिल हैं।
  • लक्षद्वीप के अंतर्गत कुल तीन उप-द्वीप समूह शामिल हैं: 
    • अमीनदीव द्वीप समूह  
    • लेकाडाइव द्वीप समूह 
    • मिनिकॉय द्वीप समूह 
  • अमीनदीव द्वीप समूह सबसे उत्तर में है, जबकि मिनिकॉय द्वीप समूह सबसे दक्षिण में है।
  • राजधानी कवारत्ती लक्षद्वीप की राजधानी यहाँ का सबसे प्रमुख शहर है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

त्वरित उपयोग अनुमोदन: COVID-19 टीका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तीन वैक्सीन निर्माताओं ने अपने COVIID -19 टीकों के लिये त्वरित उपयोग की मंज़ूरी हेतु केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drug Standard Control Organisation- CDSCO) को आवेदन किया है।

  • निर्माता जिस वैक्सीन के लिये अनुमोदन की मांग कर रहे हैं वे अभी परीक्षण के अधीन है।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID -19 टीकों के लिये निर्माता:
    • कोविशील्ड: पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया।
      • तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है।
    • कोवैक्सीन:  हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक।
      •  तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है।
    • BNT162b2: BioNTech के सहयोग से अमेरिकी कंपनी फाइज़र द्वारा।
      • भारत में अब तक कोई परीक्षण नहीं हुआ।
  • भारत में टीकों के अनुमोदन के लिये विनियामक प्रावधान:
    • नई दवाओं और टीकों के नैदानिक परीक्षण तथा उनके अनुमोदन का कार्य औषधि और नैदानिक परीक्षण नियम, 2019 ( Drugs and Clinical Trials Rules, 2019) द्वारा नियंत्रित होते हैं।
  • आपातकालीन प्रावधान:
    • भारतीय नियमों में आपातकालीन उपयोग अनुमोदन का प्रावधान नहीं है, हालाँकि 2019 के नियम कई परिस्थितियों में जैसे- मौजूदा महामारी के लिये "त्वरित अनुमोदन प्रक्रिया"  प्रदान करते हैं।
    • ऐसी स्थितियों में नैदानिक परीक्षणों के तहत रहने वाली एक औषधि को मंजूरी देने का प्रावधान है, बशर्ते औषधि का सार्थक चिकित्सीय लाभ की हो।
    • किसी नई औषधि को उस स्थिति में त्वरित अनुमोदन प्रदान किया जा सकता है यदि वह एक गंभीर या जीवन को खतरे में डालने वाले रोग या देश के लिये विशेष रूप से प्रासंगिक रोग और चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करती हो।
    • एक नई औषधि या टीके के लिये अनुमोदन हेतु विचार किया जा सकता है यदि इसके चरण- II परीक्षण से भी असाधारण प्रभावशीलता की सूचना मिलती है।
    • ऐसे मामलों में चरण- II परीक्षण के बाद भी अतिरिक्त अध्ययन की आवश्यकता हो सकती है।
    • नैदानिक परीक्षणों के अंतर्गत रहने वाली औषधियों या टीकों को दी गई मंज़ूरी अस्थायी होती है, और केवल एक वर्ष के लिये वैध है।

नैदानिक परीक्षण:

  • नैदानिक परीक्षण का अभिप्राय किसी भी दवा की नैदानिक विशेषताओं की खोज करने अथवा मानवीय स्वास्थ्य पर उस विशिष्ट दवा के प्रभावों को स्पष्ट करने का एक व्यवस्थित अध्ययन है।

नैदानिक परीक्षण के चरण:

  • इसका उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि क्या नया यौगिक रोगी के शरीर द्वारा सहन और अनुमानित तरीके से व्यवहार कर सकता है।
  • प्रथम चरण या नैदानिक फार्माकोलॉजी परीक्षण या "पहले मनुष्य में" अध्ययन: इस चरण में  औषधि को किसी डॉक्टर की देख-रेख में वालंटियर की न्यूनतम संख्या (प्रत्येक खुराक के लिये सूचीबद्ध वालंटियर में से कम-से-कम 2) को दिया जाता है।
    • नैदानिक परीक्षण चार चरणों में किये जाते हैं।
  • द्वितीय चरण या समन्वेशी परीक्षण: इस चरण के दौरान औषधि को इसके प्रभाव को निर्धारित करने और अस्वीकार्य दुष्प्रभावों की जाँच करने के लिये 3 से 4 केंद्रों में लगभग 10-12 सूचित रोगियों के समूह को दिया जाता है।.
  • तृतीय चरण या पुष्टिकरण परीक्षण: इसका उद्देश्य एक बड़ी संख्या में रोगियों में दवा की प्रभावकारिता और सुरक्षा के बारे में पर्याप्त प्रमाण प्राप्त करना है, आमतौर पर एक मानक दवा की तुलना में। इस चरण में समूह 1000-3000 विषयों के मध्य होता है।
  • चतुर्थ चरण या विपणन के बाद का चरण: औषधि को डॉक्टरों को उपलब्ध कराने के बाद निगरानी का चरण है, जो इसे निर्धारित करना शुरू करते हैं। किसी भी अप्रत्याशित दुष्प्रभाव की पहचान करने में मदद करने के लिये हजारों रोगियों पर औषधि के प्रभावों की निगरानी की जाती है।

भारत में नियामक तंत्र:

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)

  • CDSCO स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (NRA) है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • देश भर में इसके छह ज़ोनल कार्यालय, चार सब-ज़ोनल कार्यालय, तेरह पोर्ट ऑफिस और सात प्रयोगशालाएँ हैं।
  • विज़न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना।
  • मिशन: दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन और चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता  तथा गुणवत्ता बढ़ाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा करना।
  • ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 एंड रूल्स 1945 (The Drugs & Cosmetics Act,1940 and rules 1945) के तहत CDSCO दवाओं के अनुमोदन, क्लिनिकल परीक्षणों के संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करके ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के प्रवर्तन में एकरूपता लाने के लिये उत्तरदायी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-स्विट्ज़रलैंड संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने स्विट्ज़रलैंड के अपने समकक्ष के साथ एक वर्चुअल बैठक  में हिस्सा लिया।

प्रमुख बिंदु:

व्यापार: 

  • इस बैठक के दौरान दोनों मंत्रियों ने ‘भारत-ईएफटीए (EFTA) व्यापार और आर्थिक भागीदारी समझौते’ (TEPA) की वार्ताओं को आगे बढ़ाने की इच्छा व्यक्त की।
    • यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्ज़रलैंड का अंतर सरकारी संगठन है।
    • ये देश यूरोपीय संघ या ईयू (EU) का हिस्सा नहीं हैं जिसके साथ भारत अलग से ‘भारत-ईयू व्यापक व्यापार और निवेश समझौते’ पर बातचीत कर रहा है।  
  • प्रस्तावित समझौते के तहत वस्तुओं और सेवाओं के साथ निवेश, व्यापार सुविधा, सीमा सहयोग, बौद्धिक संपदा की सुरक्षा तथा सार्वजनिक खरीद आदि को शामिल किया गया है।
  • इस बैठक के दौरान ‘भारत-स्विट्ज़रलैंड द्विपक्षीय निवेश संधि’ (Bilateral Investment Treaty- BIT) पर भी चर्चा की गई, गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से इस संधि को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है। 
    • द्विपक्षीय निवेश संधियाँ दो देशों के बीच निवेशकों द्वारा किये गए निवेश (एक दूसरे के देश में) की रक्षा के उद्देश्य से की गई कुछ संधियाँ हैं।

बहुपक्षीय मंच: 

  • बैठक के दौरान भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में ‘ट्रिप्स’ (TRIPS) छूट के लिये भारत और दक्षिण अफ्रीका के संयुक्त प्रस्ताव पर स्विट्ज़रलैंड के समर्थन की मांग की।    
  • गौरतलब है कि COVID-19 महामारी को नियंत्रित करने हेतु टीकों और नई प्रौद्योगिकियों  का समान साझाकरण सुनिश्चित करने के लिये दक्षिण अफ्रीका और भारत ने  WTO से COVID-19 संबंधी बौद्धिक संपदा (IP) अधिकारों को निरस्त करने की मांग की है।
    • बौद्धिक संपदा अधिकारों पर इस प्रकार का अस्थायी प्रतिबंध लगाने से कुछ ही पेटेंट धारकों द्वारा केंद्रीकृत उत्पादन की बजाय विश्व के कई हिस्सों में अनेक उत्पादक महत्त्वपूर्ण दवाओं और उपकरणों का उत्पादन कर सकेंगे।  

Switzerland

भारत-स्विट्ज़रलैंड  संबंध:

पृष्ठभूमि: 

  • भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही भारत और स्विट्ज़रलैंड के संबंध बहुत ही मित्रवत और सौहार्दपूर्ण रहे हैं, जो लोकतंत्र और कानून के साझा मूल्यों पर आधारित हैं। दोनों देशों के बीच वर्ष 1948 में एक मित्रता संधि पर हस्ताक्षर किये गए। 

आर्थिक संबंध: 

  • व्यापार: इक्ज़िम बैंक के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 में स्विट्ज़रलैंड, भारत का 11वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा। 
  • निवेश:  
    • अप्रैल 2000 और सितंबर 2019 के बीच स्विट्ज़रलैंड ने भारत में लगभग 4.781 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया और इसके साथ ही वह भारत में 12वाँ सबसे बड़ा निवेशक बन गया है। 
    • गौरतलब है कि यह राशि अप्रैल 2000 और सितंबर 2019 के बीच भारत हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का लगभग 1.07% थी।  

विज्ञान और प्रौद्योगिकी:

  • वर्ष 2003 में स्विट्ज़रलैंड के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच तकनीकी और वैज्ञानिक सहयोग पर एक अंतर-सरकारी फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, इसके तहत वर्ष 2005 में एक ‘भारत-स्विस संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रम’ (ISJRP) की शुरुआत की गई थी। 

कौशल विकास: 

  • भारत में उच्च मानक के कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों के संचालन के लिये दोनों देशों के कई संस्थानों ने साझेदारी की है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
    • भारतीय कौशल विकास परिसर और विश्वविद्यालय।  
    • इंडो-स्विस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, पुणे।
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, आंध्र प्रदेश

स्रोत: पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विशेष चिंता वाले देश

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी विदेश विभाग ने हाल ही में पाकिस्तान और चीन के साथ-साथ अन्य आठ देशों को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के चलते विशेष चिंता वाले देशों (Countries of Particular Concern- CPC) की सूची में शामिल किया है।

प्रमुख बिंदु

  • विशेष चिंता वाले देश (CPC): 
    • अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के मामले में CPC में शामिल करने की सिफारिशअंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग(U. S. Commission on International Religious Freedom- USCIRF) द्वारा की जाने वाली शीर्ष स्तर की सिफारिश है। गंभीर उल्लंघनों के मामले में इसके बाद विशेष निगरानी सूची देशों (Special Watch List Countries) का स्थान आता है।
      • यह वर्ष 1998 के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम (International Religious Freedom Act) के अनुरूप है जिसे संयुक्त राज्य की विदेश नीति के रूप में धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पारित किया गया था।
      • अधिनियम का उद्देश्य उन देशों में अधिक से अधिक धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है जहाँ लोग धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन में संलग्न होते हैं या इसे सहन करते हैं। यह अधिनियम विदेशों धार्मिक विश्वासों एवं गतिविधियों के चलते सताए गए व्यक्तियों का भी समर्थन करता है। 
    • पाकिस्तान, चीन, म्याँमार, इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को CPC में शामिल किया गया है क्योंकि ये देश ‘‘धार्मिक स्वतंत्रता के व्यवस्थित, निरंतर एवं घोर उल्लंघन’’ में या तो लिप्त हैं या फिर उल्लंघन होने दे रहे हैं’’।
      • नाइजीरिया पहला धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है जिसका नाम CPC में शामिल किया गया गया है।
    • उल्लेखनीय है कि अमेरिका के विदेश विभाग द्वारा USCIRF द्वारा भारत, रूस, सीरिया और वियतनाम को भी CPC के रूप में भी नामित करने की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया गया है।
      • इससे पहले, USCIRF ने भारत की धार्मिक स्वतंत्रता को विशेष चिंता वाले देशों यानी CPC की श्रेणी में सबसे निचले दर्जे में शामिल किया था।
  • भारत का रूख:
    • भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि विदेशी सरकार के पास इसके (भारत के) नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों पर टिप्पणी करने की कोई अधिस्थिति नहीं है।
  • विशेष निगरानी सूची: इस सूची में ऐसी सरकारें शामिल हैं जो "धार्मिक स्वतंत्रता के घोर उल्लंघन" में या तो लिप्त हैं या फिर उल्लंघन होने दे रही हैं।
    • कोमोरोस, क्यूबा, निकारागुआ और रूस इस सूची में शामिल हैं।
    • सूडान और उज़्बेकिस्तान को पिछले एक साल में उनकी संबंधित सरकारों द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण, ठोस प्रगति के आधार पर इस सूची से हटा दिया गया है।
  • विशेष चिंता वाली एंटिटी: इस सूची में अल-कायदा, बोको हराम (नाइजीरिया आधारित), हूती (यमन), ISIS (इस्लामिक स्टेट), ISIS-ग्रेटर सहारा, ISIS-पश्चिम अफ्रीका और तालिबान आदि शामिल हैं।

भारत में धर्म की स्वतंत्रता

  • धर्म की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28 द्वारा गारंटीकृत एक मौलिक अधिकार है।
    • अनुच्छेद 25 (अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता)
    • अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
    • अनुच्छेद 27 (धर्म की अभिवृद्धि के लिये करों के संदाय से स्वतंत्रता)
    • अनुच्छेद 28 (कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता)
  • इनके अलावा संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा से संबंधित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

चिकित्सा आपूर्ति और मेक इन इंडिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रेल मंत्रालय ने 'उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग' (DPIIT) से लिखित में भारत के बाहर निर्मित कुछ चिकित्सा वस्तुओं विशेष रूप से कोविड-19, कैंसर आदि के उपचार में उपयोग की जाने वाली दवाओं और उपकरणों आदि की खरीद के लिये छूट की मांग की है।

  • DPIIT वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय विभाग है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • अगस्त 2020 में उत्तर रेलवे ने रेलवे बोर्ड को औपचारिक रूप से लिखित में यह सूचित किया था कि मेक इन इंडिया नीति के आलोक में दवाओं और सर्जिकल उपकरणों की खरीद में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
    • ज्ञात हो कि भारतीय रेलवे 12 लाख से अधिक कर्मचारियों के साथ देश के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है और उसके पास स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढाँचे का अपना नेटवर्क मौजूद है, जिसमें सभी ज़ोनल मुख्यालयों में सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल शामिल हैं।
  • उत्तर रेलवे ने रेलवे बोर्ड को बताया था कि कैंसर के उपचार में प्रयोग होने वाली कुछ दवाएँ और कुछ एंटी-वायरल दवाएँ ऐसी हैं, जिन्हें भारत में मध्यस्थों और एजेंटों आदि के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, किंतु इनका निर्माण भारत में नहीं किया जाता है। इसी वज़ह से ये दवाएँ और उपकरण क्लास-1 या क्लास-2 श्रेणी में नहीं आते हैं, जो कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत खरीद के लिये आवश्यक है।
    • केंद्र सरकार ने सार्वजनिक खरीद (मेक इन इंडिया को प्राथमिकता) 2017 में संशोधन करते हुए ‘क्लास-1’, ‘क्लास-2’ और ‘गैर-स्थानीय आपूर्तिकर्त्ता’ की एक अवधारणा प्रस्तुत की थी, इसी अवधारणा के आधार पर भारत में सरकार द्वारा वस्तुओं की खरीद को वरीयता दी जाती है।
    • जून 2020 में, सरकार ने उन कंपनियों को अधिकतम वरीयता देने के लिये सार्वजनिक खरीद मानदंडों को संशोधित किया, जिनके वस्तुओं और सेवाओं में 50 प्रतिशत या अधिक स्थानीय सामग्री है। इस कदम का उद्देश्य ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को बढ़ावा देना और देश को आत्मनिर्भर बनाना था।

मुद्दा

  • मौजूदा ‘मेक इन इंडिया’ नीति में ऐसी वस्तुओं की खरीद के लिये कोई भी विकल्प मौजूद नहीं है, जो क्लास-1 और क्लास-2 के स्थानीय आपूर्तिकर्त्ताओं की श्रेणी से संबंधित मापदंडों को पूरा नहीं करते हैं।
    • क्लास-1 में उन आपूर्तिकर्त्ताओं या सेवाप्रदाताओं को शामिल किया जाता है, जिनकी वस्तुओं और सेवाओं में 50 प्रतिशत या उससे अधिक स्थानीय सामग्री शामिल होती है।
    • क्लास-2 में उन आपूर्तिकर्त्ताओं या सेवाप्रदाताओं को शामिल किया जाता है, जिनकी वस्तुओं और सेवाओं में 20 प्रतिशत से अधिक लेकिन 50 प्रतिशत कम स्थानीय सामग्री शामिल होती है।
    • उपरोक्त दो श्रेणियों के आपूर्तिकर्त्ता या सेवाप्रदाता ही 200 करोड़ रुपए से कम के अनुमानित मूल्य के साथ सरकार द्वारा की जाने वाली किसी भी खरीद में बोली लगाने के लिये पात्र होंगे।
  • यही कारण है कि रेल मंत्रालय ने 'उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग' (DPIIT) से ‘गैर-स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं’ (ऐसे आपूर्तिकर्त्ता जिनकी वस्तुओं और सेवाओं में 20 प्रतिशत से कम स्थानीय सामग्री शामिल होती है) से दवाओं और उपकरणों की खरीद की मांग की सिफारिश की है।
    • हालाँकि, DPIIT ने रेल मंत्रालय को सूचित किया कि भारतीय एजेंटों/व्यापारियों के माध्यम से आयातित वस्तुओं की खरीद अप्रत्यक्ष तौर पर सामान्य वित्त नियम, 2017 का उल्लंघन है इसलिये ऐसी दवाओं/चिकित्सा उपकरणों की खरीद के लिये विशेष छूट प्राप्त करने की सिफारिश नहीं की जा सकती।
    • 200 करोड़ रुपए से अधिक राशि की वैश्विक निविदा जाँच पर प्रतिबंध लगाने के लिये मई 2020 में व्यय विभाग द्वारा GFR 2017 के नियम 161 (iv) में संशोधन किया गया था।
  • इसका उद्देश्य स्थानीय संस्थाओं को लाभ पहुँचाने के लिये सरकारी संस्थाओं की खरीद कर स्थानीय निविदाओं की कार्यशीलता को सक्षम बनाना था।
  • DPIIT ने इस विषय को फार्मास्युटिकल्स विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया है, जो कि फार्मास्युटिकल्स और मेडिकल उपकरणों के लिये नोडल एजेंसियाँ ​​हैं।
  • रेल मंत्रालय को सलाह दी गई कि वे आवश्यक पड़ने पर किसी विशेष खरीद में छूट प्राप्त करने के लिये प्रभारी मंत्री की मंज़ूरी के साथ ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत जारी दिशा-निर्देशों के पैरा 14 के तहत प्रदान की गई शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं।
    • पैरा 14 के तहत मंत्रालयों और विभिन्न सरकारी विभागों को छूट प्रदान करने तथा न्यूनतम स्थानीय सामग्री की आवश्यकता को कम करने का प्रावधान किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


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