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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तालिबान को लेकर भारत की बदलती रणनीति

  • 14 Sep 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

ज़रीन-डेलारम राजमार्ग, अफगानिस्तान-भारत मैत्री बांध

मेन्स के लिये

अफगानिस्तान को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच कतर (दोहा) में होने वाली अंतर-अफगान वार्ता (Intra-Afghan Talks) के शुरुआती समारोह में भाग लेकर तालिबान पर अपनी बदलती रणनीति का संकेत दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • अंतर-अफगान शांति वार्ता में भारत की उपस्थिति यह इंगित करती है कि भारत ने अफगानिस्तान में ज़मीनी हकीकत एवं बदलते सत्ता ढाँचे को देखते हुए अपनी रणनीति बदल दी है।
    • गौरतलब है कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी ने पाकिस्तान को अफगानिस्तान में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी निकटता के कारण एक अहम बढ़त दिलाई है। 
  • हालाँकि कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, भारत ने एक पक्ष के रूप में अफगान सरकार की उपस्थिति के कारण इस समारोह में भाग लिया। जबकि भारत अभी भी तालिबान को मान्यता नहीं देता है।

भारत का मत:

  • भारत का मानना ​​है कि कोई भी शांति प्रक्रिया अफगान सरकार के नेतृत्त्व वाली, अफगान सरकार के स्वामित्त्व वाली और अफगान सरकार द्वारा नियंत्रित होनी चाहिये। अर्थात् 
    • इसमें अफगानिस्तान की राष्ट्रीय संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिये और मानव अधिकारों एवं लोकतंत्र को बढ़ावा दिये जाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
    • इस शांति वार्ता में अफगानिस्तान में एक लोकतांत्रिक इस्लामी गणराज्य की स्थापना में हुई प्रगति को संरक्षित करने की भी आवश्यकता है।
  • अल्पसंख्यकों, महिलाओं एवं समाज के कमज़ोर वर्गों के हितों को संरक्षित किया जाना चाहिये और अफगानिस्तान एवं उसके पड़ोस में हिंसा के मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित किया जाना चाहिये।
  • भारतीय हितों जिसमें अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास एवं भारतीय कंपनियाँ व श्रमिक शामिल हैं, को भी संरक्षित किया जाना चाहिये।
  • भारत एक ‘स्वतंत्र एवं संप्रभु’ अफगानिस्तान का समर्थन करता है। ‘स्वतंत्र एवं संप्रभु’ शब्दों का उपयोग यह स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान एवं आईएसआई द्वारा अफगानिस्तान को नियंत्रित नहीं किया जाना चाहिये।

पृष्ठभूमि:

  • उल्लेखनीय है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया जिसने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की पूर्ण वापसी का मार्ग प्रशस्त किया और अफगानिस्तान में 18 वर्ष के युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक मार्ग प्रशस्त किया।
  • इस शांति समझौते से दो प्रक्रियाओं के शुरू होने की उम्मीद बनी थी:
    1. अमेरिकी सैनिकों की चरणबद्ध वापसी 
    2. अंतर-अफगान वार्ता
  • यह समझौता अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया के लिये व्यापक और स्थायी युद्ध विराम तथा भविष्य के लिये एक राजनीतिक रोडमैप देने का एक बुनियादी कदम था।

अफगानिस्तान में भारत के हित:

Helping-Hand

  • अफगानिस्तान में स्थिरता बनाए रखने  में भारत की बड़ी हिस्सेदारी है। भारत द्वारा अफगानिस्तान के विकास में काफी संसाधन लगाए गए हैं। जैसे-अफगान संसद (Afghan Parliament), ज़रीन-डेलारम राजमार्ग (Zaranj-Delaram Highway), अफगानिस्तान-भारत मैत्री बांध (सलमा बांध) Afghanistan-India Friendship Dam (Salma Dam) इत्यादि का निर्माण अफगानिस्तान में भारत के सहयोग से किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान मध्य एशिया का प्रवेश द्वार है। 

उभरते मुद्दे:

  • भारत, तालिबान के पाकिस्तान की आईएसआई के साथ संबंध और अफगानिस्तान में भारत के हितों को लक्षित करने वाले हक्कानी नेटवर्क के प्रयासों से चिंतित है।
    • पाकिस्तान, अफगानिस्तान में भारत की किसी भी सुरक्षा भूमिका का विरोध करता है और भारत की मौजूदगी को अपने हितों के लिये हानिकारक मानता है। 
  • तालिबान का जैश-ए-मुहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तोइबा (LeT) से भी संबंध है जो भारत के खिलाफ विभिन्न आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त हैं।
  • भारत ने अभी भी तालिबान को मान्यता नहीं दी है। हालाँकि यदि भारत, तालिबान के साथ प्रत्यक्ष बातचीत करने के विकल्प पर विचार करता है तो यह केवल मान्यता प्राप्त सरकारों के साथ कार्य करने की अपनी सुसंगत नीति से अलग कदम होगा।

आगे की राह:

  • भारत को अफगानिस्तान के भविष्य के लिये केंद्रित सभी शक्तियों से निपटने के लिये अपने निर्णयों का पुनर्मूल्यांकन करने और अपने दृष्टिकोण में अधिक सर्वव्यापी होने की आवश्यकता है।
  • बदलती राजनीतिक एवं सुरक्षा स्थिति के लिये भारत को अपने हितों को ध्यान में रखते हुए तालिबान के साथ बातचीत शुरू करने के लिये खुलेपन की नीति को अपनाना चाहिये। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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