अंतर्राष्ट्रीय संबंध
लोया जिरगा: अफगानिस्तान की महासभा
- 10 Aug 2020
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प्रिलिम्स के लिये:लोया जिरगा, मानचित्र पर अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति मेन्स के लिये:लोया जिरगा-महासभा के निर्णयों के भारत-अफगानिस्तान संबंधों पर पड़ने वाले प्रभाव |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में अफगानिस्तान में हत्या और अपहरण सहित गंभीर अपराधों के लिये दोषी ठहराए गए 400 तालिबान लड़ाकों को मुक्त करने से संबंधित निर्णय लेने के लिये अफगानिस्तान में तीन दिवसीय लोया जिरगा-महासभा को बुलाया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- लोया जिरगा को नियुक्त करने की आवश्यकता:
- अफगानिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा तालिबान कैदियों को रिहा करने से इनकार किये जाने के बाद लोया जिरगा बैठक को बुलाया गया है।
- 10 अगस्त, 2020 को दोहा में अस्थायी रूप से निर्धारित की गई अंतर-अफगान वार्ता (Intra-Afghan Talks) के विफल हो जाने के बाद तथा तालिबानी कैदियों को रिहा न करने पर तालिबान द्वारा और अधिक खून-खराबा करने की धमकी दी गई है।
- अमेरिका का ऐसे मानना है कि अफगानिस्तान सरकार एवं तालिबान के मध्य बातचीत से हिंसा एवं प्रत्यक्ष वार्ताओं में कमी आएगी, जिसके परिणामस्वरूप शांति समझौता के द्वारा अफगानिस्तान में युद्ध को समाप्त किया जा सकता है।
- अफगानिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा तालिबान कैदियों को रिहा करने से इनकार किये जाने के बाद लोया जिरगा बैठक को बुलाया गया है।
पृष्ठभूमि:
- कैदियों की रिहाई/अदला बदली (Prisoner Exchanges) उस समझौते का हिस्सा है जिस पर फरवरी, 2020 में अमेरिकी एवं तालिबान तथा अमेरिकी एवं अफगानिस्तान सरकार के मध्य हस्ताक्षर किये गए थे।
- हालाँकि, इसे कई महीनों तक टाला गया जिस कारण 10 मार्च को होने वाली अंतर-अफगान वार्ता को बंद करना पड़ा।
- कुछ लोगों का तर्क है कि अफगानिस्तान के वर्तमान राष्ट्रपति अशरफ गनी तालिबान के साथ शांति बनाए रखने के लिये जानबूझकर शांति वार्ता को टाल रहे है, क्योंकि ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वार्ता में तालिबान द्वारा एक तटस्थ अंतरिम सरकार की मांग की जा सकती है जिसके चलते राष्ट्रपति अशरफ गनी को अपने पद से हाथ धोना पड़ सकता है।
- अफगानिस्तान द्वारा तालिबानी कैदियों को रिहा करने तथा तालिबानियों द्वारा अफगानिस्तानी कैदियों एवं नागरिकों को रिहा करने के बाद अमेरिका द्वारा अपने 8000 सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा की गई है।
- पिछले कुछ हफ्तों से , अमेरिकी सरकार नवंबर 2020 के राष्ट्रपति चुनावों पर नजर रखने के साथ-साथ, तालिबान-अफगान के मध्य सुलह प्रक्रिया को तेज़ करने के लिये उत्सुक है।
लोया जिरगा:
- यह अफगानिस्तान की एक सामूहिक राष्ट्रीय सभा है जो विभिन्न जातीय, धार्मिक एवं जनजातीय समुदायों के प्रतिनिधियों को एक साथ एक मंच पर लाती है।
- यह एक उच्च सम्मानित, दशकों पुरानी परामर्श संस्था है जिसे राष्ट्रीय संकट के समय या राष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिये बुलाया गया है।
- अफगान संविधान के अनुसार, लोया जिरगा को अफगान लोगों की सर्वोच्च अभिव्यक्ति माना जाता है। हालाँकि यह आधिकारिक निर्णय लेने वाली संस्था नहीं है एवं न ही इसके निर्णय कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं।
- फिर भी लोया जिरगा के फैसले को राष्ट्रपति और अफगानिस्तान की संसद द्वारा अंतिम रूप में देखा जाता है।
अफगानिस्तान में भारत के हित:
- अफगानिस्तान में स्थिरता बनाए रखने में भारत की बड़ी हिस्सेदारी है। भारत द्वारा अफगानिस्तान के विकास में काफी संसाधन लगाए गए हैं। जैसे-अफगान संसद (Afghan Parliament), ज़रीन-डेलारम राजमार्ग (Zaranj-Delaram Highway), अफगानिस्तान-भारत मैत्री बांध (सलमा बांध) Afghanistan-India Friendship Dam (Salma Dam) इत्यादि का निर्माण अफगानिस्तान में भारत के सहयोग से किया गया है।
- अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार का भारत द्वारा समर्थन किया जाता है जिसे भारत,पाकिस्तान के लिये रणनीतिक तौर पर देखता है।
- तालिबान की बढ़ी हुई राजनीतिक सैन्य भूमिका एवं उसके क्षेत्रीय नियंत्रण का विस्तार भारत के लिये चिंता का विषय होना चाहिये क्योंकि तालिबान को व्यापक रूप से पाकिस्तान का समर्थक माना जाता है।
- अफगानिस्तान मध्य एशिया का प्रवेश द्वार है।
- अमेरिकी सैनिकों की वापसी से इस क्षेत्र में लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद जैसे विभिन्न भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों का विकास हो सकता है।
आगे की राह:
- भारत द्वारा अफगानिस्तान में किसी भी वास्तविक शांति प्रक्रिया का समर्थन करना चाहिये। हालाँकि अफगानिस्तान में यह शांति प्रक्रिया एकतरफा है जिसे अमेरिका एवं पाकिस्तान के समर्थन से बढ़ाया जा रहा है।
- भारत को तालिबान को तब तक मान्यता नहीं देनी चाहिये जब तक कि वह अफगानिस्तान सरकार को मान्यता प्रदान नहीं करता है।