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डेली न्यूज़

  • 09 Apr, 2020
  • 53 min read
भूगोल

आयनमंडल आधारित भूकंपीय निगरानी

प्रीलिम्स के लिये:

आयनमंडल, भू-कंपीय आयनमंडल अव्यवस्था/कंपन (CIP) 

मेन्स के लिये:

वायुमंडलीय परतों का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) के एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान 'भारतीय भू-विज्ञान संस्थान' (Indian Institute of Geology- IIG) के वैज्ञानिकों द्वारा आयनमंडल से भूकंपीय स्रोतों की विशेषताओं का पता लगाने के लिये अधिक तीव्रता वाले भूकंपों का अध्ययन किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • यह शोध IIG के अंतःविषय कार्यक्रम 'कपलेड लिथोस्फीयर-एटमॉस्फियर- आयनोस्फियर-मैग्नेटोस्फीयर सिस्टम' (CLAIMS) का एक भाग है। 

CLAIMS:

  • CLAIMS भूकंप के साथ-साथ सुनामी जैसी विवर्तनिक प्रक्रियाओं के दौरान वातावरण में ऊर्जा हस्तांतरण संबंधी शोध कार्यों पर केंद्रित है।

CLAIMS का उद्देश्य:

  • सह-भूकंपीय आयनमंडलीय कंपन (CIP) का स्थानिक वितरण, उपकेंद्र के आसपास भूमि विरूपण पैटर्न को अच्छी तरह से प्रतिबिंबित कर सकता है तथा CIP का वितरण आयनमंडलीय भेदी बिंदु (Ionospheric piercing point- IPP)  ऊँचाई पर अनुमानित है। CLAIMS के माध्यम से इनका संयुक्त अध्ययन किया जाता है। 
  • सह-भूकंपीय आयनमंडलीय अव्यवस्था/कंपन (Co-seismic Ionospheric Perturbations- CIP) का निर्धारण ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम ( Global Positioning System- GPS) द्वारा मापित कुल इलेक्ट्रॉन सामग्री (Total Electron Content- TEC) का उपयोग करके किया गया। TEC एक रेडियो ट्रांसमीटर तथा रिसीवर के मार्ग के मध्य मौजूद इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या है। 
  • IIG के वैज्ञानिकों ने हाल ही में आए भूकंपों यथा- वर्ष 2012 में हिंद महासागर, वर्ष 2015 में नेपाल तथा वर्ष 2016 के ऑस्ट्रेलिया-प्रशांत क्षेत्र के भूकंप का आयनमंडल पर प्रभाव का अध्ययन किया है।
  • IIG के वैज्ञानिकों ने गैर-विवर्तनिकी कारकों को आयनमंडल में उत्पन्न सह-भूकंपीय आयनमंडलीय अव्यवस्था का प्रमुख कारण माना है।

सह भू-कंपीय आयनमंडल अव्यवस्था/कंपन (CIP):

  • सामान्यत: जब कोई भूकंप आता है तो भू–पर्पटी में उत्पन्न उभार के कारण वायुमंडल में दबाव तरंगें (Compressional Waves) बनती हैं।
  • ये तरंगें अपने उत्पत्ति क्षेत्र (अधिकेन्द्र) के ऊपर स्थित वायुमंडल के कम घनत्व वाले क्षेत्र में तेज़ी से फैलती हैं तथा वायुमंडलीय ऊँचाई के साथ इसके आयाम में वृद्धि होती है। 
  • आयनमंडल में पहुँच कर ये तरंगें आयनमंडलीय इलेक्ट्रॉन घनत्व को पुनर्वितरित करती हैं तथा इलेक्ट्रॉन घनत्व अव्यवस्था (Electron Density Perturbations- EDP) उत्पन्न करती हैं, जिसे सह भू-कंपीय आयनमंडल अव्यवस्था/कंपन (CIP) के रूप में भी जाना जाता है।

JGR

CIP का अध्ययन:

  • CIP की विशेषताओं का अध्ययन करने में विभिन्न आयनमंडलीय ध्वनिक तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन वैश्विक नौपरिवहन उपग्रह प्रणाली (Global Navigation Satellite System- GNSS) आधारित तकनीक व्यापक स्थानिक तथा कालिक जानकारी प्रदान करता है।
  • CIP मुख्यत: गैर विवर्तनिक दबाव प्रक्रियाओं यथा- उपग्रह ज्यामिति, भू-चुंबकीय क्षेत्र ध्वनिक तरंग युग्मन, आयनमंडल में आयनीकरण घनत्व आदि द्वारा नियंत्रित होता है, जिसका निर्धारण अनुरेखण मॉडल के आधार पर निर्धारित किया जाता है।

CIP निर्धारण में चुनौतियाँ: 

  • आयनमंडल एक अत्यधिक गतिशील क्षेत्र है। आयनमंडल के इलेक्ट्रॉन घनत्व में किसी भी प्रकार की अव्यवस्था का पता आयमंडल के ऊपरी (जैसे- सौर, भू-चुंबकत्व) या नीचे (जैसे- निचले वायुमंडलीय, भूकंपीय आदि) की विभिन्न गतिविधियों के आधार पर लगाया जाता है। CIP की पहचान करते समय यही एक बड़ी चुनौती है।

अध्ययन का महत्त्व:

  • यह अध्ययन CIP निर्माण के पीछे के कारणों की पहचान करने के क्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 
  • अध्ययन बताता है कि CIP को गैर-विवर्तनिकी प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिये।
  • अध्ययन आयनमंडल आधारित उपकरणों के डिज़ाइन करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।

आयनमंडल:

  • वायुमंडल संस्तरों में आयनमंडल 80 से 400 किलोमीटर के बीच स्थित है। इसमें विद्युत आवेशित कण पाए जाते हैं, जिन्हें आयन कहते हैं। अत: इस वायुमंडलीय परत को आयनमंडल के रूप में जाना जाता है। 
  • पृथ्वी द्वारा भेजी गई रेडियो तरंगे इस संस्तर द्वारा वापस लौटा दी जाती है। यहाँ ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान में वृद्धि होती है। 

Exosphere

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

जम्मू-कश्मीर अधिवास संशोधन

प्रीलिम्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019

मेन्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर अधिवास संशोधन,  जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के अधिवासियों के संदर्भ में किये गए बदलावों को वापस लेते हुए केंद्रशासित प्रदेश में सभी सरकारी नौकरियों को केवल जम्मू-कश्मीर के अधिवासियों के लिये आरक्षित कर दिया है।

मुख्य बिंदु:   

  • 3 अप्रैल, 2020 को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी किये गए आदेश के अनुसार, ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ सहित सभी सरकारी नौकरियों को केंद्रशासित प्रदेश के अधिवासियों के लिये सुरक्षित कर दिया गया है।
  • इस आदेश के माध्यम से पिछले परिवर्तन के दौरान जोड़े गए उस खंड को भी हटा लिया गया है जिसके तहत ‘अधिवास पात्रता के मानदंड को पूरा करने वाला कोई भी व्यक्ति "अधिवासित" माना जा सकता था’।
  • इसके तहत अधिवास प्रमाण-पत्र जारी करने का अधिकार ‘तहसीलदार’ को दिया गया है।
  • केंद्र सरकार ने यह परिवर्तन ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019’ की धारा-96 के तहत प्राप्त शक्तियों के आधार पर किया है।  

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019:

  • जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को 6 अगस्त 2019 को लोकसभा से पारित किया गया था।
  • इस अधिनियम के माध्यम से जम्मू-कश्मीर राज्य का पुनर्गठन कर दो नए केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख (बगैर विधानसभा के) की स्थापना की गई।
  • इस अधिनियम के माध्यम से जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के लिये 107 सीटों वाली  विधानसभा की व्यवस्था दी गई। अधिनियम में जम्मू-कश्मीर मंत्रिपरिषद के अधिकतम सदस्यों की संख्या 10 सुनिश्चित की गई है। 
  • इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् आधार एक्ट, 2016, भारतीय दंड संहिता, 1860 और शिक्षा का अधिकार एक्ट, 2009 जैसे-106 केंद्रीय कानूनों को केंद्रशासित प्रदेश में लागू किया गया।

पूर्व में किये गए परिवर्तन: 

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 31 मार्च, 2020 को जारी आदेश के तहत ‘जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती अधिनियम), 2010’ में ‘स्थायी निवासियों' शब्द को  बदलकर ‘जम्मू और कश्मीर के अधिवासी’ कर दिया गया था।
  • 31 मार्च को जारी अधिसूचना के अनुसार, उन सभी लोगों को अधिवासी के रूप में परिभाषित किया गया था, जो-
    1. 15 वर्षों की अवधि तक केंद्रशासित प्रदेश  जम्मू और कश्मीर में रहा रहा हो।
    2. सात वर्ष तक केंद्रशासित प्रदेश  जम्मू और कश्मीर पढ़ा हो और यहाँ स्थित किसी शिक्षण संस्थान में 10 वीं या 12वीं की परीक्षा में शामिल हुआ हो।
    3. जो ‘राहत और पुनर्वास आयुक्त (प्रवासी)’ द्वारा एक प्रवासी के रूप में पंजीकृत हो।
  • इसके तहत केंद्र सरकार के उन अधिकारियों के बच्चों को भी अधिवास का पत्र बताया गया जिन्होंने अखिल भारतीय सेवाओं, पीएसयू, केंद्र के स्वायत्त निकाय, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, वैधानिक निकायों के अधिकारियों, केंद्रीय विश्वविद्यालयों, केंद्र के मान्यता प्राप्त अनुसंधान संस्थानों में रहते हुए जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में 10 वर्ष तक अपनी सेवाएँ दी हों। 
  • साथ ही इस परिवर्तन के तहत जम्मू और कश्मीर के ऐसे निवासियों के बच्चों को भी अधिवास का पात्र बताया गया जो अपने रोज़गार या व्यवसाय या अन्य पेशा या वृत्ति के कारणों के संबंध में जम्मू और कश्मीर से बाहर रहते हैं, लेकिन उनके माता-पिता आवश्यक शर्तों को पूरा करते हैं।

‘अधिवास’ के संदर्भ में संशोधन का अधिकार:

  • ध्यातव्य है कि 6 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 A के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त कर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित कर दिया था।
  • संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A (वर्तमान में निरस्त) के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य की विधान सभा को राज्य के ‘स्थायी निवासियों' को परिभाषित करने का अधिकार था और राज्य में गैर-निवासियों द्वारा संपत्ति खरीदने पर प्रतिबंध था।
  • 18 फरवरी, 2020 को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा एक संसदीय पैनल को दी गई जानकारी के अनुसार, वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में विभिन्न विभागों में 84,000 पद खाली हैं, जिनमें से 22,078 पद चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिये, 54375 पद नाॅन-गैज़टेड (Non-Gazettted) और 7552 पद  गैज़टेड (Gazettted) स्तर के हैं।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

लॉकडाउन के दौरान महिला सुरक्षा के लिये विशेष दिशा-निर्देश

प्रीलिम्स के लिये:

 राष्ट्रीय महिला आयोग, वन स्टॉप सेंटर

मेन्स के लिये:

भारत में विभिन्न क्षेत्रों में COVID-19 का प्रभाव, महिला सुरक्षा से संबंधित प्रश्न 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये देशभर में लागू लॉकडाउन के दौरान महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से जुड़े विभिन्न संस्थानों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस की और महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये।

मुख्य बिंदु:  

  • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री (Union Women and Child Development Ministe) ने  8 अप्रैल, 2020 को विभिन्न संस्थानों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस बैठक के माध्यम से महिला सुरक्षा के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने तथा इसके लिये विभिन्न विभागों के बीच समन्वय को बढ़ाने का निर्देश दिया।  
  • ध्यातव्य है कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने COVID-19 की महामारी के दौरान महिला हिंसा की घटनाओं में वृद्धि को देखते हुए विश्व के सभी देशों से महिला सुरक्षा को प्राथमिकता देने और COVID-19 पर नियंत्रण की नीति में महिला सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आवश्यक परिवर्तन करने को कहा था।
  • राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission of Women) के अनुसार, 24 मार्च के बाद पहले हफ्ते में ही घरेलू हिंसा और सेक्सुअल असॉल्ट (Sexual Assault) के मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई है और इस दौरान पुलिस शिथिलता के ममलों में तीन गुना वृद्धि दर्ज़ की गई है। 
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हाल के दिनों में चीन में घरेलू हिंसा की हेल्पलाइन पर शिकायतों की संख्या में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है, मलेशिया और लेबनान में पिछले वर्ष के तुलना में ऐसे मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई है तथा इस दौरान ऑस्ट्रेलिया में घरेलू हिंसा के लिये सहायता की ऑनलाइन सर्च की संख्या पिछले पाँच वर्षों की तुलना में सर्वाधिक रही है। 

महिला उत्पीडन के मामलों पर COVID-19 का प्रभाव:

  • राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार, हाल में फोन के माध्यम से हेल्पलाइन पर मिलने वाली शिकायतों में कमी आई है, आयोग को प्राप्त ज़्यादातर शिकायतें ईमेल द्वारा भेजी गई हैं। 
  • विशेषज्ञों के अनुसार, लॉकडाउन के कारण घरेलू हिंसा के मामलों में अपराधी (Abuser) के हमेशा घर पर रहने के कारण महिलाएँ फोन करने या बाहर जाकर सहायता माँगने में असमर्थ रही हैं।
  • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत घरेलू हिंसा के मामलों में पुलिस फर्स्ट रिस्पाॅडंर (First Responder) नहीं होती बल्कि ऐसे मामलों के लिये स्थापित परामर्श केंद्र शिकायतकर्त्ता की सहायता करते हैं।
  • परंतु लॉकडाउन के कारण इन केंद्रों का संचालन प्रभावित हुआ है, जिससे हिंसा के ऐसे मामलों में पीड़ितों की समस्या और भी गंभीर हो गई है।

सरकार के प्रयास:      

  • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि पीड़ितों को विधिक और मनोसमजिक सहायता उपलब्ध कराने वाले ‘वन स्टॉप सेंटर्स’ स्थानीय स्वास्थ्य टीम और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण से जुड़े हुए हों। जिससे लॉकडाउन  के बावज़ूद भी पीड़ितों को आसानी से ये सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा सके।     
  • उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे यह भी सुनिश्चित करें कि सभी ‘वन स्टॉप सेंटर’(One Stop Center) ‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान’ (National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences or NIMHANS) से जुड़े हुये हों जिससे पूरे देश में महिलाओं की विशेष समस्याओं के लिये परामर्शदाताओं की सुविधा उपलब्ध कराई जा सके।
  • राज्य स्तर पर महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये राज्य-स्तर पर गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से डिजिटल-गवर्नेंस (Digital Governence) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, जिससे ऐसे मामलों में सूचना और सहायता की कोई कमी न होने पाए।
  • केंद्रीय मंत्री ने गैर-सरकारी संगठनों को महिलाओं में सुरक्षा की भावना को बढ़ाने के लिये एक दिन में कम-से-कम 10 महिलाओं से फोन पर बात करने का सुझाव दिया। 

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका-विज्ञान संस्थान

(National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences or NIMHANS): 

  • NIMHANS मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र में रोगी देखभाल और अकादमिक खोज का एक बहु-विषयक संस्थान है।
  • वर्ष 1974 में मैसूर (कर्नाटक) सरकार द्वारा स्थापित मानसिक अस्पताल और केंद्र सरकार द्वारा स्थापित ‘अखिल भारतीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान’ को मिलाकर  NIMHANS की स्थापना की गई थी।
  • यह संस्थान बंगलूरु (कर्नाटक) में स्थित है। 
  • वर्ष 1994 में केंद्र सरकार ने इस संस्थान के योगदान को देखते हुए इसे शैक्षिक स्वायत्तता के साथ मानद विश्वविद्यालय (Deemed University) का दर्जा प्रदान किया 
  • वर्ष 2012 में ‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका-विज्ञान संस्थान बंगलौर अधिनियम, 2012’ के माध्यम से इसे ‘राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान’ (Institute of National Importance) घोषित किया गया। 
  • यह संस्थान मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में नए स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना, मौजूदा सुविधाओं में सुधार और मानसिक स्वास्थ्य के राष्ट्रीय कार्यक्रम की रणनीति तैयार करने में केंद्र तथा राज्य सरकारों को परामर्श देने का कार्य भी करता है।  

आगे की राह: 

  • सरकार को महिला सुरक्षा से जुड़ी विभिन्न सेवाओं (हेल्पलाइन, परामर्श केंद्र आदि) को अतिआवश्यक सेवाओं (Essential Services) के श्रेणी में रखना चाहिये, जिससे किसी आपदा की स्थिति में भी इनका निर्बाध संचालन सुनिश्चित किया जा सके। 
  • महिला सुरक्षा और घरेलू हिंसा पर काम करने वाले स्वयंसेवी संस्थानों और ज़मीनी कार्यकर्त्ताओं के लिये बेहतर संसाधन और सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिये।  
  • हिंसा के अतिरिक्त सामान्य मामलों में भी देश में महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं को मज़बूत करना अति आवश्यक है।
  • महिला अधिकारों को बढ़ावा देने के साथ ही घरेलू कामों में पुरुषों की बराबर भागीदारी के माध्यम से एक सकारात्मक माहौल बनाया जाना चाहिये।   

स्रोत:  द हिंदू


शासन व्यवस्था

निजी प्रयोगशालाओं में COVID-19 परीक्षण

प्रीलिम्स के लिये 

COVID-19

मेन्स के लिये

COVID-19 परीक्षण में निजी क्षेत्र की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को एक ऐसा तंत्र विकसित करने के आदेश दिये हैं जिसमें COVID-19 परीक्षणों का संचालन करने वाली निजी प्रयोगशालाएँ सार्वजनिक प्रयोगशालाओं से अधिक शुल्क न लें, साथ ही प्रयोगशालाओं द्वारा लिये जाने वाले शुल्क की प्रतिपूर्ति (Reimbursement) की व्यवस्था हो।

प्रमुख बिंदु

  • इससे पूर्व केंद्र सरकार ने जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. रवींद्र भट की खंडपीठ से कहा था कि शुरुआत में 118 प्रयोगशालाओं द्वारा 15,000 परीक्षण प्रति दिन किये जा रहे थे और बाद में इस क्षमता को बढ़ाने के लिये 47 निजी प्रयोगशालाओं को COVID-19 परीक्षणों का संचालन करने की अनुमति दी गई थी।
  • ध्यातव्य है कि वकील शशांक देव सुधी ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करते हुए मांग की थी कि न्यायालय केंद्र सरकार को सभी नागरिकों के लिये मुफ्त परीक्षण करने के निर्देश दे, ताकि वे लोग भी अपने परीक्षण करा सकें जो इस खर्चे को वहन नहीं कर सकते।
  • इस मामले में केंद्र सरकार का नेतृत्त्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुसार, यह एक विकासशील तथा गतिशील स्थिति है और सरकार के लिये इस स्थिति में यह अनुमान लगाना अपेक्षाकृत कठिन है कि हमें कितनी प्रयोगशालाओं की आवश्यकता है तथा कब तक है?

प्रतिपूर्ति के लिये तंत्र

  • न्यायपीठ ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करे कि निजी प्रयोगशालाएँ परीक्षण के लिये अधिक शुल्क न लें, साथ ही सरकार परीक्षणों हेतु लिये जाने वाले शुल्क की प्रतिपूर्ति के लिये एक तंत्र विकसित करे।
  • याचिकाकर्त्ता ने देश भर में बढ़ती मृत्यु दर (Mortality Rate) और रुग्णता दर (Morbidity Rate) को देखते हुए COVID-19 की परीक्षण सुविधाओं हेतु जल्द-से-जल्द निर्देश देने की मांग की थी।
  • याचिका में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की 17 मार्च की सलाह (Advisory) पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है, जिसमें निजी अस्पतालों या प्रयोगशालाओं में COVID-19 के परीक्षण का शुल्क 4,500 रुपए निर्धारित किया गया था, इसमें स्क्रीनिंग और पुष्टिकरण परीक्षण भी शामिल हैं।
  • सरकारी अस्पताल और प्रयोगशालाओं में आम नागरिकों के लिये खुद का परीक्षण करवाना अपेक्षाकृत काफी कठिन है और किसी विशिष्ट विकल्प के अभाव में लोग निजी अस्पताल और प्रयोगशालाओं को परीक्षण के लिये भुगतान करने को विवश हैं।
    • उल्लेखनीय है कि देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो इस शुल्क का भुगतान करने में समर्थ नहीं है, किंतु यह वर्ग COVID-19 के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील है। इसके अलावा देश भर में लागू किये गए 21-दिवसीय लॉकडाउन के कारण आम नागरिकों की दुर्दशा के प्रति अधिकारी पूर्ण रूप से असंवेदनशील और उदासीन हैं। 
  • याचिका के अनुसार, निजी अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में COVID-19 के परीक्षण हेतु कीमत निर्धारित करने का निर्णय संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत अनुचित है। 
  • साथ ही याचिका में यह भी मांग की गई है कि COVID-19 से संबंधित सभी परीक्षण राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories-NABL) या ICMR द्वारा मान्यता प्राप्त पैथोलॉजिकल लैब के तहत किये जाएं।

कोरोनावायरस महामारी

  • COVID-19 वायरस मौजूदा समय में भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बना हुआ है। अब यह वायरस संपूर्ण विश्व में फैल गया है।
  • WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है।
  • कोरोनावायरस (COVID -19) का प्रकोप तब सामने आया जब 31 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में अज्ञात कारण से निमोनिया के मामलों में हुई अत्यधिक वृद्धि के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया।
  • कोरोनावायरस मौजूदा समय में विश्व के समक्ष एक गंभीर चुनौती बन गया है और दुनिया भर में इसके कारण अब तक 88000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और तकरीबन 14 लाख लोग इसकी चपेट में हैं। 
  • भारत में भी स्थिति काफी गंभीर है और इस खतरनाक वायरस के कारण अब तक देश में 166 लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा देश में 5700 से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं।

राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड 

(National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories-NABL) 

  • NABL भारत की गुणवत्ता परिषद का एक सांविधिक बोर्ड है।
  • NABL को सरकार, उद्योग संघों और उद्योग को अनुरूपता मूल्यांकन निकाय की मान्यता प्रदान करने की योजना के साथ स्थापित किया गया है। जिसमें चिकित्सा और अंशांकन प्रयोगशालाओं, प्रवीणता परीक्षण प्रदाताओं और संदर्भ सामग्री उत्पादकों सहित परीक्षण की तकनीकी क्षमता का तृतीय-पक्ष मूल्यांकन शामिल है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

महिलाओं के प्रति हिंसा में वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये:

यूनाइटेड नेशंस वुमन संगठन, COVID-19, 

मेन्स के लिये:

महिला सशक्तीकरण एवं महिलाओं से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

यूनाइटेड नेशंस वुमन (United Nations Women) संगठन के अनुसार, संपूर्ण विश्व में COVID-19 के कारण महिलाओं के प्रति हिंसा में वृद्धि हुई है। 

प्रमुख बिंदु: 

  • अर्जेंटीना, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, साइप्रस, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में महिलाओं के प्रति हिंसा में वृद्धि हुई है।
  • लगभग 90 देशों में लॉकडाउन के कारण सुरक्षा, स्वास्थ्य, और धन की कमी से उत्पन्न तनाव हिंसा को बढ़ावा दे रहा है।
  • भारत के संदर्भ में: 
    • भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women- NCW) ने लिंग आधारित हिंसा में दो गुना से अधिक की वृद्धि दर्ज की है।
    • NCW द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, जहाँ एक ओर मार्च के पहले सप्ताह (2-8 मार्च) में महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा के 116 मामले सामने आए वहीं मार्च के अंतिम सप्ताह (23 मार्च - 1 अप्रैल) में ऐसे मामलों की संख्या बढ़कर 257 हो गई।
    • इस अवधि के दौरान बलात्कार अथवा बलात्कार के प्रयास के मामले में तेज़ी से वृद्धि देखी गई और ये 2 से बढ़कर 13 पर पहुँच गए हैं।

COVID-19 से उत्पन्न  चुनौतियाँ:

  • COVID-19 से पहले भी घरेलू हिंसा मानवाधिकार के उल्लंघनों में से एक था।
    • ध्यातव्य है कि वर्ष 2019-20 के दौरान विश्व में 243 मिलियन महिलाओं और लड़कियों (15-49 वर्ष की आयु) के साथियों द्वारा यौन या शारीरिक हिंसा की  गई। इसी तरह COVID-19 का प्रकोप जारी रहा तो हिंसा में वृद्धि होने की संभावना है।
  • घरेलू हिंसा के व्यापक विश्लेषण ने पहले से मौजूद आँकड़ों पर प्रश्न चिह्न लगाया है।
    • 40% से भी कम ऐसी महिलाएँ हैं जो हिंसा का शिकार होने पर मदद मांगती हैं या अपराध की शिकायत करती हैं। मदद मांगने वाली इन महिलाओं में से 10% से भी कम पुलिस के पास जाती हैं।
  • कई देशों में महिलाओं के प्रति हिंसा को रोकने के लिये कोई कानून नही है।
    • वर्तमान समय में प्रत्येक 4 में से 1 देश में महिलाओं के प्रति हिंसा को रोकने हेतु कोई कानून नहीं है।

आगे की राह:

  • हिंसा की शिकार महिलाओं हेतु हेल्पलाइन तैयार करना, मनोसामाजिक (Psycho-social) मदद प्रदान करना और ऑनलाइन काउंसलिंग जैसे कदम सहायक साबित हो सकते है।
  • प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान जैसे एसएमएस, ऑनलाइन उपकरण और नेटवर्क का उपयोग समाज के उत्थान के लिए किया जाना चाहिये।
  • महिलाओं और ज़मीनी स्तर के कार्यकर्त्ताओं के संगठन और समुदायों को आर्थिक रूप से मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • पुलिस और न्याय प्रणाली में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये साथ ही विशेष परिस्थितियों के अलावा अपराधियों हेतु दंड-मुक्ती का कोई प्रावधान नहीं होना चाहिये।

यूनाइटेड नेशंस वुमन

(United Nations Women):

  • वर्ष 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘यूनाइटेड नेशंस वीमेन’ का गठन किया गया।
  • यह संस्था महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य करती है।
  • इसके तहत संयुक्त राष्ट्र के 4 अलग-अलग प्रभागों के कार्यों को संयुक्त रूप से संचालित किया जाता है:
    • महिलाओं की उन्नति के लिये प्रभाग (Division for the Advancement of Women -DAW)
    • महिलाओं की उन्नति के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (International Research and Training Institute for the Advancement of Women -INSTRAW)
    • लैंगिक मुद्दों और महिलाओं की उन्नति पर विशेष सलाहकार कार्यालय (Office of the Special Adviser on Gender Issues and Advancement of Women-OSAGI)
    • महिलाओं के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास कोष ( United Nations Development Fund for Women-UNIFEM)

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

सीरियाई युद्ध में रासायनिक हमलों के पीछे सीरियाई वायु सेना

प्रीलिम्स के लिये:

OPCW, सरीन गैस

मेन्स के लिये:

रासायनिक हथियारों का नियमन 

चर्चा में क्यों?

‘रासायनिक हथियारों के निषेध के लिये संगठन’ (The Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons- OPCW) ने नवीनतम जाँच एवं पहचान टीम (Investigation and Identification Team- IIT) ने निष्कर्ष निकाला है कि मार्च 2017 में सीरियाई वायु सेना द्वारा रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया गया था।

मुख्य बिंदु:

  • जाँच और पहचान टीम (IIT) ने निष्कर्ष निकाला कि सरकारी बलों ने गृह युद्ध के दौरान अन्य कुछ अवसरों पर क्लोरीन को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था।
  • यद्यपि सीरिया की सरकार ने किसी भी प्रकार के रासायनिक हथियारों के प्रयोग संबंधी घटना से साफ मना कर दिया है। 

जाँच एवं पहचान टीम:

  • IIT की स्थापना OPCW के सदस्य देशों द्वारा वर्ष 2019 में की गई थी। जाँच और पहचान टीम (IIT) सीरियाई अरब गणराज्य में रासायनिक हथियारों के उपयोग करने वाले अपराधियों की पहचान करने की दिशा में कार्य करती है।  
  • IIT रासायनिक हथियार संबंधी सूचनाओं की पहचान और रिपोर्ट करता है, जिनको OPCW के फैक्ट-फाइंडिंग मिशन (Fact-Finding Mission- FFM) द्वारा निर्धारित किया गया है। 

रासायनिक हथियार:

  • यह डिलीवरी सिस्टम जैसे बम अथवा तोपखाने में प्रयुक्त एक ज़हरीला रसायन होता है। सामान्य शब्दों में इन शस्त्रों को रासायनिक शस्त्र (chemical weapon - CW) कहा जाता है जिसमें ज़हरीले रसायन का उपयोग किया जाता है। रासायनिक शस्त्र, जनसंहार करने वाले शस्त्रों का एक प्रकार है। 

IIT द्वारा निकाले गए निष्कर्ष:

  • IIT के अनुसार वर्ष 2017 में सीरियाई युद्ध के दौरान 3 बार रासायनिक हथियारों का उपयोग किया गया: 
    • प्रथम, 24 मार्च को सीरियाई वायु सेना के Su- 22 सैन्य विमान से दक्षिणी लतामीना (Latamina) में एक M4000 हवाई बम गिराया था, जिसमें सरिन (Sarin) का प्रयोग किया गया।
    • दूसरा, 25 मार्च को सीरियाई वायु सेना के हेलिकॉप्टर से लतामीना अस्पताल पर एक सिलेंडर गिराया जिसमें क्लोरीन गैस का प्रयोग किया गया था। 
    • तीसरा, 30 मार्च को, सीरियाई वायु सेना के Su-22 से दक्षिणी लतामीना में सरिन युक्त एक M4000 हवाई बम गिराया गया।

सरिन गैस:

  • जर्मन वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 1938 में सरिन नामक रासायनिक हथियार को तैयार किया गया। इसे हानिकारक कीटों को मारने के लिये एक कीटनाशक के रूप में तैयार किया गया था। परंतु वर्तमान समय में यह एक सबसे खतरनाक ‘नर्व गैस’ मानी जाती है। 
  • रासायनिक संरचना में यह दूसरे नर्व एजेंट जैसा ही है। तरल रूप में यह गंधहीन और रंगहीन होती है। वाष्पशील होने के कारण यह आसानी से गैस में परिवर्तित हो जाती है।

आगे की राह:

  • FFM के अनुसार इस बात के पर्याप्त आधार है कि जहरीले रसायनों का हथियार के रूप में उपयोग किया गया तथा रसायन में प्रतिक्रियाशील क्लोरीन का उपयोग किया गया था लेकिन किसी देश को इसका दोषी ठहराना FFM के अधिदेश (Mandate) क्षेत्र में नहीं है।
  • IIT न्यायिक या अर्द्ध-न्यायिक निकाय नहीं है जो किसी देश को अपने निष्कर्षों के आधार पर अपराधी घोषित कर सके अत; अब OPCW की कार्यकारी परिषद एवं सदस्य देशों तथा संयुक्त राष्ट्र महासचिव को आगे की कार्यवाई करनी है। 

रासायनिक हथियारों के निषेध के लिये संगठन

(Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons- OPCW)

  • ‘रासायनिक हथियार निषेध संगठन’ (Organisation for the Prohibition of Chemical Weapons- OPCW) संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा समर्थित एक स्वतंत्र संस्था (संयुक्त राष्ट्र संघ से स्वतंत्र) है, यह रासायनिक हथियार कंवेंशन (Chemical Weapons Convention- CWC) के प्रावधानों को क्रियान्वित करती है। 
  • 29 अप्रैल, 1997 को अस्तित्त्व में आया तथा इसका मुख्यालय नीदरलैंड के हेग में स्थित है। 
  • OPCW में 193 हस्ताक्षरकर्त्ता देश हैं, जो वैश्विक आबादी के 98% का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
  • इज़रायल ने संधि पर हस्ताक्षर तो किये हैं लेकिन रासायनिक हथियार अभिसमय की पुष्टि नहीं की है।  
  • 14 जनवरी, 1993 को भारत सीडब्ल्यूसी के लिये एक मूल हस्ताक्षरकर्त्ता बना।

OPCW के कार्य:

  • अंतर्राष्ट्रीय सत्यापन के तहत सभी मौजूदा रासायनिक हथियारों को नष्ट करना।
  • रासायनिक हथियारों को फिर से उभरने से रोकने के लिये रासायनिक उद्योग की निगरानी करना। 
  • रासायनिक हथियारों के खतरों से सदस्य देशों की सुरक्षा तथा सहायता प्रदान करना। 
  • कंवेंशन के कार्यान्वयन को मज़बूत करने तथा रसायन विज्ञान के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकारी विभाग के खर्चों में कटौती

प्रीलिम्स के लिये

राजकोषीय नीति और बजट 

मेन्स के लिये

COVID-19 महामारी का आर्थिक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी को मद्देनज़र रखते हुए इसके आर्थिक प्रभाव को न्यून करने के उद्देश्य से अपने खर्चों में कटौती शुरू कर दी है।

प्रमुख बिंदु

  • सांसदों और मंत्रियों के वेतन एवं अन्य भत्तों में कटौती के पश्चात् सरकार ने सभी विभागों को अपनी पहली तिमाही की खर्च योजनाओं में 60 प्रतिशत की कमी करने के निर्देश दिये हैं।
  • सरकार द्वारा दिये गए निर्देशानुसार, प्रत्येक विभाग को अपने बजट की पुनः समीक्षा करनी होगी और उन्हें अपने बजट में भारी कटौती करनी होगी।
    • हालाँकि सरकार द्वारा दिये गए निर्देशों में यह स्पष्ट किया गया है कि सभी विभाग अपनी उन योजनाओं में से कुछ भी कटौती नहीं करेंगे, जो COVID-19 महामारी से संबंधित हैं, किंतु इनमें गैर-आवश्यक मदों के लिये कटौती की जा सकती है।
  • केंद्र सरकार ने राज्यों को अभी तक इस संदर्भ में कटौती के लिये कोई भी विशिष्ट निर्देश नहीं दिये हैं, किंतु स्थिति के मद्देनज़र यह कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार जल्द-ही-जल्द ही राज्यों को कटौती के लिये निर्देश जारी करेगी।
  • अनुमान के अनुसार, यदि सरकार के निर्देशों का सही ढंग से पालन किया जाता है तो सरकार के खर्च में 3.34 ट्रिलियन रुपए की कटौती हो सकती है।
  • विश्लेषकों के अनुसार यह कटौती आवश्यक है क्योंकि सभी अनुमानों से पता चलता है कि सरकार के कर और गैर-कर राजस्व दोनों वित्त वर्ष 2021 में बजट अनुमानों से बहुत कम आएंगे।
  • आमतौर पर भारत सरकार की खर्च योजनाओं के तहत मंत्रालयों और विभागों को अपने बजट का 25 प्रतिशत हिस्सा वर्ष की 4 तिमाही में खर्च करना पड़ता है।
    • इसका अर्थ है कि सभी विभागों को वित्तीय वर्ष के अंत में अपने खर्चों को कम करने से रोकना है।
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष में विभागों ने अपनी व्यय योजनाओं को अंतिम रूप दे दिया है, किंतु अब वित्त मंत्रालय ने उनके लिये एक संशोधित नकदी प्रबंधन योजना जारी की है, जिसमें कटौती की सलाह दी गई है।
  • इस उद्देश्य के लिये सरकार ने सभी मंत्रालयों को तीन समूहों में विभाजित किया है। पहले समूह को अपने खर्च में 20 प्रतिशत की कमी करनी होगी, दूसरे समूह को अपने खर्च में 40 प्रतिशत और तीसरे समूह को खर्च में 60 प्रतिशत की कमी करनी होगी।
  • बजट अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 2021 के लिये सरकार ने 30.42 ट्रिलियन रुपए खर्च करने की योजना बनाई है। 
    • यदि सरकार के कुल अनुमानित खर्च में से प्रतिबद्ध ब्याज भुगतान और राज्यों के हस्तांतरण को अलग कर दिया जाता है तो इसमें 16.20 ट्रिलियन रुपए शेष हैं।
  • मज़दूरी और पेंशन सहित अन्य प्रतिबद्ध व्यय को भी यदि इसमें से घटा दिया जाए तो लगभग 11.62 ट्रिलियन रुपए शेष बचते हैं।
  • विभागों और मंत्रालय को इसी शेष राशि से आवश्यक कटौती करनी होगी।

कोरोनावायरस का आर्थिक प्रभाव

  • उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) के हालिया अनुमान के अनुसार, कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कारण वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था तकरीबन 1 प्रतिशत तक कम हो सकती है। साथ ही UN द्वारा यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि बिना पर्याप्त राजकोषीय उपायों के आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध और अधिक बढ़ाया जाता है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था और अधिक प्रभावित हो सकती है।
  • विश्लेषण के अनुसार, यदि सरकारें आय सहायता प्रदान करने और उपभोक्ता को खर्च करने हेतु प्रेरित करने में विफल रहती हैं तो वैश्विक अर्थव्यवस्था में और अधिक कमी आ सकती है।
  • विकसित अर्थव्यवस्थाओं में लंबे समय तक आर्थिक प्रतिबंधों का नकारात्मक प्रभाव जल्द ही व्यापार और निवेश के माध्यम से विकासशील देशों को प्रभावित करेगा।
    • यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में उपभोक्ता खर्च में तेज़ी से हो रही गिरावट विकासशील देशों से उपभोक्ता वस्तुओं के आयात को प्रभावित करेगा।
  • ज़ाहिर है कि वैश्विक स्तर पर हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलेगा और यदि इस समस्या को सही ढंग से संभाला नहीं गया तो भारतीय अर्थव्यवस्था, जिसकी स्थिति पहले से ही अच्छी नहीं, की स्थिति और खराब हो सकती है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 09 अप्रैल, 2020

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण

हाल ही में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India-NHAI) ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में राष्ट्रीय राजमार्गों के 3,979 किलोमीटर के निर्माण का कार्य पूरा किया है। ध्यातव्य है कि यह NHAI की स्थापना के पश्चात् से किसी एक वित्तीय वर्ष में प्राप्त किया गया सर्वोच्च लक्ष्य है। भारत सरकार ने भारतमाला योजना के तहत राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण की परिकल्पना की है। भारतमाला योजना की शुरुआत वर्ष 2017-18 में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा की गई थी। इसके अंतर्गत आर्थिक गलियारे, फीडर कॉरीडोर और इंटर कॉरीडोर, राष्ट्रीय कॉरीडोर, तटवर्ती सड़कें, बंदरगाह संपर्क सड़कें आदि का निर्माण किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत निर्माण कार्य करने वाली मुख्य एजेंसियाँ हैं: भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, राष्ट्रीय राजमार्ग और औद्योगिक विकास निगम तथा लोक निर्माण विभाग। भारत के संपूर्ण राजमार्ग संजाल को भारतीय ‘राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण’ द्वारा प्रबंधित किया जाता है और यह राजमार्गों के विकास तथा रखरखाव के लिये ज़िम्मेदार है। इस प्राधिकरण का गठन संसद के भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1988 द्वारा किया गया था। यह प्राधिकरण सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।

इंटीग्रेटेड गवर्नमेंट ऑनलाइन (iGOT)

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अग्रिम पंक्ति में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये इंटीग्रेटेड गवर्नमेंट ऑनलाइन ट्रेनिंग (Integrated Government Online Training-iGOT) पोर्टल की शुरुआत की है। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम विशेष रूप से चिकित्सकों, नर्सों, अर्द्ध-चिकित्सा कर्मियों, टेक्नीशियनों, राज्य सरकार के अधिकारियों, नागरिक सुरक्षा अधिकारियों, विभिन्न पुलिस संगठनों, राष्ट्रीय कैडेट कोर (NCC), नेहरू युवा केंद्र संगठन,  राष्ट्रीय सेवा योजना, भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी, स्काउट गाइड और स्वेच्छा से कार्य करने के इच्छुक अन्य लोगों के लिये शुरु किया गया है। इस पोर्ट तक मंत्रालय द्वारा जारी किये गए लिंक (https://igot.gov.in) के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। यह प्लेटफॉर्म किसी भी स्थान, किसी भी समय प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करता है ताकि COVID-19 से प्रभावी तरीके से निबटने के लिये आवश्यक कार्यबल को और सशक्त बनाया जा सके।

बैंक बोर्ड ब्यूरो

भारत सरकार ने बैंक बोर्ड ब्यूरो के वर्तमान सदस्यों का कार्यकाल दो साल के लिये बढ़ा दिया है। इस संदर्भ में जारी अधिसूचना के तहत इस बोर्ड के मौजूदा कार्यरत अंशकालिक चेयरमैन और सदस्यों की सेवा अवधि 11 अप्रैल से दो वर्ष के लिये बढ़ा दी गई है। फरवरी 2016 में सरकार ने ‘बैंक बोर्ड ब्यूरो’ का गठन किया और उसे सरकारी बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों में शीर्ष पदों के लिये उम्मीदवार तय करने की ज़िम्मेदारी दी गई। बाद में सरकार ने बैंकों के लिये पूंजी जुटाने की योजना तैयार करने के अलावा व्यावसायिक रणनीति तैयार करने का दायित्त्व भी ‘बैंक बोर्ड ब्यूरो’ को सौंप दिया। प्रारंभ में पूर्व नियंत्रक महालेखापरीक्षक विनोद राय को इसका अध्यक्ष बनाया गया था।

COVID-19 हेतु इंटरनेट-नियंत्रित रोबोट 

छत्तीसगढ़ के महासमुंद में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के एक ने डॉक्टरों के स्थान पर रोगियों की देखभाल करने के लिये एक इंटरनेट-नियंत्रित रोबोट का निर्माण किया है। छात्र के अनुसार, इस तकनीक का उपयोग डॉक्टरों के स्थान पर रोगियों की देखरेख करने के लिये किया जा सकता है। जिससे डॉक्टरों को जोखिम से बचाया जा सकता है। यह इंटरनेट द्वारा नियंत्रित रोबोट लोगों के साथ बातचीत कर सकता है। छात्र के अनुसार, इस रोबोट की लागत तकरीबन 5000 रुपए है। उल्लेखनीय है कि इस रोबोट को इंटरनेट से प्रत्यक्ष जोड़ा जा सकता है और इसे कहीं से भी संचालित किया जा सकता है। यह नया आविष्कार COVID-19 के विरुद्ध जंग में डॉक्टरों की सहायता करेगा।


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