चुनावी बॉण्ड (Electoral Bonds)
प्रिलिम्स के लिये:चुनावी बॉण्ड। मेन्स के लिये:चुनावी बॉण्ड, चुनावी फंडिंग, राजनीति का अपराधीकरण, नीतियों का निर्माण तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय इलेक्टोरल बॉण्ड स्कीम, 2018 को चुनौती देने वाली एक लंबित याचिका पर सुनवाई करेगा।
- दो गैर-सरकारी संगठनों- कॉमन कॉज़ और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना को चुनौती देते हुए आरोप लगाया है कि यह ‘लोकतंत्र को विकृत’ (Distorting Democracy) कर रही है।
चुनावी बाॅण्ड:
- चुनावी बॉण्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
- भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्ड्स को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
- यह बॉण्ड एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होता है।
- बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया है।
- एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
- बॉण्ड पर दाता के नाम का उल्लेख नहीं किया जाता है।
- चुनावी बॉण्ड की खरीद के माध्यम से राजनीतिक दलों को 20,000 रुपए से कम का योगदान देने वाले दाताओं को अपना पहचान विवरण जैसे- पैन (PAN) आदि देने की आवश्यकता नहीं होती।
- चुनावी बॉण्ड योजना का प्रमुख उद्देश्य भारत में चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाना था।
- सरकार ने इस योजना को "कैशलेस-डिजिटल अर्थव्यवस्था" की ओर बढ़ रहे देश में ‘चुनावी सुधार’ के रूप में वर्णित किया।
चुनावी बॉण्ड की आलोचना:
- मूल विचार के विपरीत:
- चुनावी बॉण्ड योजना की मुख्य आलोचना यह की जाती है कि यह अपने मूल विचार यानी चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के ठीक विपरीत काम करता है।
- उदाहरण के लिये आलोचकों का तर्क है कि चुनावी बॉण्ड की गुमनामी केवल व्यापक जनता और विपक्षी दलों तक की सीमित होती है।
- जबरन वसूली की संभावना:
- चूँकि इस तरह के बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, ऐसे में कई आलोचकों का मानना है कि सरकार इसके माध्यम से यह जान सकती है कि कौन लोग विपक्षी दलों को वित्तपोषण प्रदान कर रहे हैं।
- परिणामस्वरूप यह प्रकिया केवल तत्कालीन सरकार को ही धन उगाही की अनुमति देती है और सत्ताधारी पार्टी को अनुचित लाभ प्रदान करती है।
- लोकतंत्र के लिये चुनौती: वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के ज़रिये प्राप्त राशि का खुलासा करने से छूट दी है।
- इसका मतलब है कि मतदाता यह नहीं जान पाएंगे कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक वित्तपोषित किया है।
- हालाँकि एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक उन लोगों के लिये अपना वोट डालते हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
- ‘जानने के अधिकार’ से समझौता: भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया है कि ‘जानने का अधिकार’ विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।
- स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के खिलाफ: चुनावी बॉण्ड नागरिकों को इस संदर्भ में कोई विवरण नहीं देते हैं।
- उक्त गुमनामी उस समय की सरकार पर लागू नहीं होती है, जो कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुँच सकती है।
- इसका मतलब यह है कि सत्ता में बैठी सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को बाधित कर सकती है।
- क्रोनी कैपिटलिज़्म: चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक चंदे पर पहले से मौजूद सभी सीमाओं को हटा देती है और प्रभावी रूप से अच्छे संसाधन वाले निगमों को चुनावों के लिये धन देने की अनुमति देती है जिससे क्रोनी कैपिटलिज़्म का मार्ग प्रशस्त होता है।
- क्रोनी कैपिटलिज़्म एक आर्थिक प्रणाली है जो व्यापारिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों की विशेषता है।
आगे की राह
- भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को तोड़ने और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता की कमी के लिये साहसिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की आवश्यकता है।
- संपूर्ण शासनतंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने हेतु मौजूदा कानूनों में खामियों को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
- मतदाता जागरूकता अभियानों की मांग कर पर्याप्त बदलाव लाने में भी मदद कर सकते हैं। यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और पार्टियों को अस्वीकार करते हैं जो उन परअधिक खर्च करते हैं या उन्हें रिश्वत देते हैं तो लोकतंत्र एक कदम और आगे बढ़ जाएगा।
स्रोत: द हिंदू
मैनुअल स्कैवेंजिंग
प्रिलिम्स के लिये:मैला ढोने/मैनुअल स्कैवेंजिंग की समस्या से निपटने हेतु पहलें, स्वच्छ भारत मिशन। मेन्स के लिये:हाथ से मैला ढोने की समस्या, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा जानकारी साझा की गई है कि वर्ष 1993 से अब तक कुल 971 लोगों ने सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान अपनी जान गंँवाई है।
- इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (National Commission for Safai Karamcharis- NCSK) के कार्यकाल को 31 मार्च, 2022 से आगे और तीन साल बढ़ाने हेतु मंजूरी दी गई थी। इसके प्रमुख लाभार्थी देश में सफाई कर्मचारी और पहचान किये गए हाथ से मैला ढोने वाले/मैनुअल स्कैवेंजिंग के कार्य में संलग्न लोग होंगे।
प्रमुख बिंदु
मैनुअल स्कैवेंजिंग:
- मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) या हाथ से मैला ढोने को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालियों एवं सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग की कुप्रथा के प्रसार का कारण:
- उदासीन रवैया: कई अध्ययनों में राज्य सरकारों द्वारा इस कुप्रथा को समाप्त कर पाने में असफलता को स्वीकार न करना और इसमें सुधार के प्रयासों की कमी को एक बड़ी समस्या बताया गया है।
- आउटसोर्स की समस्या: कई स्थानीय निकायों द्वारा सीवर सफाई जैसे कार्यों के लिये निजी ठेकेदारों से अनुबंध किया जाता है परंतु इनमें से कई फ्लाई-बाय-नाइट ऑपरेटर" (Fly-By-Night Operator), सफाई कर्मचारियों के लिये उचित दिशा-निर्देश एवं नियमावली का प्रबंधन नहीं करते हैं।
- ऐसे में सफाई के दौरान किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर इन कंपनियों या ठेकेदारों द्वारा मृतक से किसी भी प्रकार का संबंध होने से इनकार कर दिया जाता है।
- सामाजिक मुद्दा: मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा जाति, वर्ग और आय के विभाजन से प्रेरित है।
- यह प्रथा भारत की जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जहाँ तथाकथित निचली जातियों से ही इस काम को करने की उम्मीद की जाती है।
- “मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993” के तहत देश में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया है, हालाँकि इसके साथ जुड़ा कलंक व भेदभाव अब भी जारी है।
- इससे हाथ से मैला ढोने वालों के लिये वैकल्पिक आजीविका सुरक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
मैला ढोने की समस्या से निपटने हेतु उठाए गए कदम:
- हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020:
- इसमें सीवर की सफाई को पूरी तरह से मशीनीकृत करने, 'ऑन-साइट' सुरक्षा के उपाय करने और सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों के मामले में मैनुअल स्कैवेंजर्स को मुआवज़ा प्रदान किये जाने का प्रस्ताव है।
- यह मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 में संशोधन होगा।
- इसे अभी तक कैबिनेट से मंज़ूरी नहीं मिली है।
- हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013:
- वर्ष 1993 के अधिनियम का स्थान लेते हुए वर्ष 2013 का अधिनियम सूखे शौचालयों पर प्रतिबंध से परे है तथा यह अस्वच्छ शौचालयों, खुली नालियों एवं गड्ढों आदि सभी की मैनुअल सफाई को अवैध बनाता है।
- अस्वच्छ शौचालयों का निर्माण और रखरखाव अधिनियम 2013:
- यह अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण या रखरखाव तथा किसी को भी हाथ से मैला ढोने हेतु काम पर रखने के साथ-साथ सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई को गैरकानूनी घोषित करता है।
- यह अन्याय और अपमान की क्षतिपूर्ति के रूप में हाथ से मैला ढोने वाले समुदायों को वैकल्पिक रोज़गार तथा अन्य सहायता प्रदान करने के लिये एक संवैधानिक ज़िम्मेदारी भी प्रदान करता है।
- अत्याचार निवारण अधिनियम:
- वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम स्वच्छता संबंधी कार्यकर्त्ताओं के लिये एक समन्वित गार्ड बन गया। इस दौरान मैला ढोने वालों के रूप में कार्यरत 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। यह मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
- सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती:
- इसे आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
- सरकार द्वारा सभी राज्यों के लिये अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने हेतु इसे एक ‘चुनौती’ के रूप में शुरू किया गया, इसके तहत यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित गियर और ऑक्सीजन टैंक आदि प्रदान किये जाते हैं।
- 'स्वच्छता अभियान एप':
- इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान एवं जियोटैग करने हेतु विकसित किया गया है, ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सैनिटरी शौचालयों में बदला जा सके और सभी हाथ से मैला ढोने वालों को जीवन की गरिमा प्रदान करने हेतु उनका पुनर्वास किया जा सके।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया था, जो वर्ष 1993 से सीवेज के काम में मारे गए थे और प्रत्येक व्यक्ति के परिवार को मुआवज़े के रूप में 10 लाख रुपए दिये जाने का भी आदेश दिया गया था।
आगे की राह
- स्थानीय प्रशासन को सशक्त बनाना: स्वच्छ भारत मिशन को 15वें वित्त आयोग द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया और स्मार्ट शहरों एवं शहरी विकास के लिये उपलब्ध धन के साथ हाथ से मैला ढोने की समस्या का समाधान करने के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान किया गया।
- सामाजिक सुभेद्यता: हाथ से मैला ढोने के पीछे की सामाजिक स्वीकृति को संबोधित करने के लिये पहले यह स्वीकार करना और समझना आवश्यक है कि कैसे और क्यों जाति व्यवस्था के कारण हाथ से मैला ढोना अभी भी जारी है।
- राज्य और समाज को रुचि लेने की आवश्यकता: राज्य एवं समाज को इस मुद्दे में सक्रिय रूप से रुचि लेने की ज़रूरत है और इस प्रथा का सही आकलन कर इसके उन्मूलन के लिये सभी संभावित विकल्पों पर गौर करने की ज़रूरत है।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016) (a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना। उत्तर: (c)
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स्रोत: द हिंदू
UIDAI की कार्यप्रणाली पर CAG की लेखापरीक्षा रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:CAG, UIDAI, आधार अधिनियम, 2016 मेन्स के लिये:आधार और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने आधार कार्ड जारी करने से संबंधित कई मुद्दों पर ‘भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण’ (UIDAI) की आलोचना की है।
- ये आलोचना देश के स्वतंत्र लेखा परीक्षक द्वारा UIDAI की पहली प्रदर्शन समीक्षा का हिस्सा हैं, जिसे वित्त वर्ष 2015 और वित्त वर्ष 2019 के बीच चार साल की अवधि में किया गया था।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण:
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CAG द्वारा रेखांकित मुद्दे:
- निवास प्रमाण हेतु दस्तावेज़ नहीं:
- UIDAI ने यह पुष्टि करने के लिये कोई विशिष्ट प्रमाण/दस्तावेज़ या प्रक्रिया निर्धारित नहीं की है कि आवेदक निर्दिष्ट अवधि के लिये भारत में रहा है अथवा नहीं, साथ ही आधार संख्या जारी करते हुए आवेदक से आकस्मिक स्व-घोषणा के माध्यम से आवासीय स्थिति की पुष्टि की जाती है।
- इसके अलावा आवेदक की पुष्टि की जाँच हेतू कोई व्यवस्था नहीं थी।
- भारत में आधार संख्या केवल उन व्यक्तियों को जारी की जाती है जो आवेदन की तारीख से पहले 12 महीनों में से 182 दिनों या उससे अधिक की अवधि हेतु भारत में निवास करते हैं।
- 'डी-डुप्लीकेशन' की समस्या:
- CAG की रिपोर्ट के अनुसार, UIDAI को ‘डुप्लिकेट’ होने के कारण 4,75,000 से अधिक आधार (नवंबर 2019 तक) को रद्द करना पड़ा है।
- यह डेटा इंगित करता है कि वर्ष 2010 के बाद से नौ वर्षों की अवधि के दौरान औसतन एक दिन में कम-से-कम 145 आधार सृजित किये गए, जो डुप्लीकेट नंबर थे, जिन्हें रद्द करना अनिवार्य था।
- आधार प्रणाली का उद्देश्य एक विशिष्ट पहचान स्थापित करना है- अर्थात, इस प्रणाली के तहत कोई भी व्यक्ति दो आधार संख्या प्राप्त नहीं कर सकता है, और साथ ही एक विशिष्ट व्यक्ति के बायोमेट्रिक्स का उपयोग विभिन्न लोगों के लिये आधार संख्या प्राप्त करने हेतु नहीं किया जा सकता है।
- त्रुटिपूर्ण नामांकन प्रक्रिया:
- ऐसा प्रतीत होता है कि UIDAI ने नामांकन के दौरान खराब गुणवत्ता वाले डेटा को फीड किये जाने पर बायोमेट्रिक अपडेट हेतु लोगों से शुल्क लिया था।
- UIDAI ने खराब गुणवत्ता वाले बायोमेट्रिक्स की ज़िम्मेदारी नहीं ली और आम लोगों पर आरोप लगाया तथा इसके लिये शुल्क भी लिया।
- आधार नंबरों का उनके वास्तविक दस्तावेज़ों से मिलान करना:
- UIDAI डेटाबेस में संग्रहीत सभी आधार नंबर निवासी की जनसांख्यिकीय जानकारी संबंधी दस्तावेज़ों के साथ समर्थित नहीं थे।
- इसने वर्ष 2016 से पहले UIDAI द्वारा एकत्र और संग्रहीत निवासी के डेटा की शुद्धता एवं पूर्णता के बारे में संदेह पैदा किया है।
- पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चे:
- ‘बाल आधार’ नामक एक पहल के तहत बिना बायोमेट्रिक्स वाले बच्चों और नवजात शिशुओं को आधार कार्ड जारी करने के UIDAI के कदम की भी ऑडिट आलोचनात्मक थी।
- इसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है, क्योंकि 5 वर्ष की उम्र के बाद बच्चे को नए नियमित आधार के लिये आवेदन करना होता है। अद्वितीय एवं विशिष्ट पहचान वैसे भी मेल नहीं खाती है, क्योंकि यह माता-पिता के दस्तावेज़ों के आधार पर जारी की जाती है।
- वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करने के अलावा UIDAI ने 31 मार्च, 2019 तक बाल आधार (Bal Aadhaars) के मुद्दे पर 310 करोड़ रुपए का परिहार्य व्यय भी किया है।
- आईसीटी सहायता के दूसरे चरण में वर्ष 2020-21 तक राज्यों/स्कूलों को मुख्य रूप से नाबालिग बच्चों को आधार जारी करने हेतु 288.11 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि जारी की गई थी।
सिफारिशें:
- स्व-घोषणा हेतु प्रक्रिया का निर्धारण:
- आधार अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, UIDAI आवेदकों के निवास स्थान की पुष्टि और उसे प्रमाणित करने हेतु स्व-घोषणा के अलावा एक प्रक्रिया और आवश्यक दस्तावेज़ निर्धारित कर सकता है।
- बॉयोमेट्रिक सेवा प्रदाताओं (BSPs) के SLA मानकों को कड़ा करना:
- UIDAI बायोमेट्रिक सर्विस प्रोवाइडर्स (Biometric Service Providers- BSPs) के सर्विस लेवल एग्रीमेंट (Service Level Agreement-SLA) मापदंडों को कड़ा कर सकता है, अद्वितीय बायोमेट्रिक डेटा कैप्चर करने हेतु एक उपयोगी तंत्र विकसित कर उनकी निगरानी प्रणाली में सुधार किया जा सकता है ताकि सक्रिय रूप से उनकी पहचान की जा सकें और डुप्लिकेट आधार की संख्या को कम किया जा सके।
- नाबालिग हेतु बायोमेट्रिक पहचान की विशिष्टता के वैकल्पिक तरीकों की खोज:
- UIDAI पांँच वर्ष से कम उम्र के नाबालिग बच्चों हेतु बायोमेट्रिक पहचान की विशिष्टता हासिल करने के लिये वैकल्पिक तरीकों का पता लगा सकता है क्योंकि पहचान की विशिष्टता व्यक्ति के बायोमेट्रिक्स के माध्यम से स्थापित आधार की सबसे प्रमुख विशेषता है।
- लापता दस्तावेज़ों की पहचान कर उन्हें पूरा करने हेतु सक्रिय कदम:
- जल्द-से-जल्द डेटाबेस के लापता दस्तावेजों की पहचान कर उन्हें फिर से जुटाने हेतु सक्रिय कदम उठाना, ताकि वर्ष 2016 से पहले जारी किये गए आधार धारकों को किसी भी कानूनी जटिलता या असुविधा से बचाया जा सके।
- स्वैच्छिक अद्यतन के लिये शुल्क की समीक्षा:
- UIDAI निवासियों के बायोमेट्रिक्स के स्वैच्छिक अद्यतन हेतु शुल्क वसूलने की समीक्षा कर सकता है, क्योंकि निवासियों द्वारा (यूआईडीएआई) बायोमेट्रिक विफलताओं के कारणों की पहचान करना संभव नहीं था जिस कारण बायोमेट्रिक्स की खराब गुणवत्ता की समझ नागरिकों को नहीं थी।
- दस्तावेज़ों का गहन सत्यापन:
- आधार पारिस्थितिकी तंत्र में संस्थाओं (अनुरोध करने वाली संस्थाओं और प्रमाणीकरण सेवा एजेंसियों) को ऑन-बोर्ड शामिल करने से पहले UIDAI द्वारा दस्तावेज़ों, बुनियादी ढांँचे और उपलब्ध होने का दावा करने वाले तकनीकी समर्थन का गहन सत्यापन किया जा सकता है।
- एक उपयुक्त डेटा अभिलेखीय नीति तैयार करना:
- UIDAI डेटा सुरक्षा के प्रति भेद्यता के जोखिम को कम करने, अनावश्यक और अवांछित डेटा के कारण मूल्यवान डेटा की उपलब्धता को कमी को रोकने हेतु अवांछित डेटा को लगातार हटाकर एक उपयुक्त डेटा अभिलेखीय नीति तैयार कर सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d)
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 4 उत्तर: (b)
प्रश्न. पहचान प्लेटफॉर्म 'आधार' खुला (ओपन) "एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (APIs)" उपलब्ध कराता है। इसका क्या अभिप्राय है? (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c)
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चिकित्सा पंजीकरण हेतु मसौदा दिशा-निर्देश
प्रिलिम्स के लिये:चिकित्सा पंजीकरण हेतु मसौदा दिशा-निर्देश, चिकित्सा उपकरणों हेतु राष्ट्रीय नीति मसौदा, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग। मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं का प्रबंधन, चिकित्सा पंजीकरण हेतु मसौदा दिशा-निर्देश, चिकित्सा उपकरणों हेतु राष्ट्रीय नीति का मसौदा। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने डॉक्टरों को चिकित्सा अभ्यास हेतु पंजीकृत करने संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- इसका उद्देश्य भारत में चिकित्सकों की पंजीकरण प्रक्रिया में एकरूपता लाना है।
- इससे पहले रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग (DoP) ने चिकित्सा उपकरणों के लिये राष्ट्रीय नीति, 2022 के मसौदे हेतु एक दृष्टिकोण पत्र जारी किया।
NMC द्वारा प्रस्तावित चिकित्सा पंजीकरण के लिये मसौदा दिशा-निर्देश:
- विशिष्ट आईडी: ये दिशा-निर्देश एक गतिशील राष्ट्रीय मेडिकल रजिस्टर बनाने हेतु फ्रेमवर्क प्रदान करते हैं, जिसमें NEET एवं अन्य पेशेवर योग्यताओं को उत्तीर्ण करने वाले प्रत्येक छात्र को एक विशिष्ट आईडी प्रदान की जाती है।
- विदेशी डॉक्टरों को अनुमति देना: यह उन विदेशी डॉक्टरों के लिये भी पंजीकरण की सुविधा उपलब्ध कराता है जो स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों, फेलोशिप, नैदानिक अनुसंधान, या स्वैच्छिक नैदानिक सेवाओं में अध्ययन करने के लिये भारत आना चाहते हैं।
- राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NExT): मसौदे में कहा गया है कि भारतीय मेडिकल स्नातक किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री पूरी करने, अपनी साल भर की अनिवार्य इंटर्नशिप पूरी करने और नेशनल एग्जिट टेस्ट (National Exit Test- NExT) पास करने के बाद नेशनल मेडिकल रजिस्टर में पंजीकरण के लिये पात्र होंगे।
- NExT न केवल दोनों के लिये समान अवसर प्रदान करेगा, यह NEET-PG के बजाय स्नातकोत्तर कार्यक्रमों हेतु योग्यता परीक्षा के रूप में भी कार्य करेगा, जिसके लिये उम्मीदवारों को वर्तमान में उपस्थित होना आवश्यक है।
- गाइडलाइंस में कहा गया है कि जब तक NExT को शामिल नहीं किया जाता, तब तक मौजूदा प्रक्रियाएंँ जारी रहेंगी।
- सरकार द्वारा वर्ष 2024 से NExT को आयोजित कराने की उम्मीद है।
- राष्ट्रीय चिकित्सा रजिस्टर में भारत भर में विभिन्न राज्य चिकित्सा परिषदों के साथ पंजीकृत डॉक्टरों की सूची है।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC):
- भारतीय चिकित्सा परिषद (Medical Council of India- MCI) की स्थापना वर्ष 1934 में भारतीय चिकित्सा परिषद (IMC) अधिनियम, 1933 के तहत की गई थी, जिसका मुख्य कार्य चिकित्सा क्षेत्र में उच्च योग्यता के समान मानकों को स्थापित करना तथा भारत और विदेशों में चिकित्सा योग्यता को मान्यता देना था।
- वर्ष 2018 में सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) को भंग कर दिया और इसे बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (BoG) में बदल दिया गया, जिसकी अध्यक्षता नीति आयोग (NITI Aayog) के एक सदस्य द्वारा की गई।
- अब भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI), 1956 राजपत्र अधिसूचना के बाद इसे निरस्त कर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है जो 8 अगस्त, 2019 को अस्तित्व में आया।
- परिवर्तन का उद्देश्य चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में सुधार लाना है तथा विशेष रूप से भ्रष्टाचार और अन्य समस्याओं से दूषित एमसीआई को बदलना इसका मुख्य उद्देश्य है।
- NMC चिकित्सा शिक्षा में देश के शीर्ष नियामक के रूप में कार्य करेगा।
- इसके लिये चार अलग-अलग स्वायत्त बोर्ड होंगे:
- स्नातक चिकित्सा शिक्षा।
- स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा।
- चिकित्सा मूल्यांकन और रेटिंग।
- नैतिकता और चिकित्सा पंजीकरण।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची
प्रिलिम्स के लिये:सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020, रक्षा क्षेत्र से संबंधित पहलें। मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण, रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने 101 वस्तुओं की तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी की है, जिसमें प्रमुख उपकरण/प्लेटफॉर्म शामिल हैं।
- अगस्त 2020 में 101 वस्तुओं वाली 'प्रथम नकारात्मक स्वदेशीकरण' सूची को अधिसूचित किया गया था।
- दूसरी स्वदेशीकरण सूची को जून 2021 में 108 वस्तुओं के साथ अधिसूचित किया गया था।
तीसरी सूची और इसका महत्त्व:
- इसमें अत्यधिक जटिल सिस्टम, सेंसर, हथियार एवं गोला-बारूद, हल्के वज़न वाले टैंक, माउंटेड आर्टिगन सिस्टम, अपतटीय गश्ती पोत (OPV) आदि शामिल हैं।
- इन हथियारों और प्लेटफाॅर्मों को दिसंबर 2022 से दिसंबर 2027 तक उत्तरोत्तर स्वदेशी बनाने की योजना है।
- इन 101 वस्तुओं को अब से रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020 के प्रावधानों के अनुसार स्थानीय स्रोतों से खरीदा जाएगा।
- DAP 2020 में निम्नलिखित खरीद श्रेणियाँ शामिल हैं: खरीदें (भारतीय - स्वदेशी रूप से विकसित और निर्मित), खरीदें (भारतीय), खरीदें और बनाएँ (भारतीय), खरीदें (वैश्विक - भारत में निर्माण) और खरीदें (वैश्विक)।
महत्त्व:
- घरेलू उद्योग को बढ़ावा देना:
- ये हथियार और प्लेटफॉर्म घरेलू उद्योग को बढ़ावा देंगे और देश में अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण की स्थिति को बदल देंगे।
- राजकोषीय घाटे को कम करना और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना:
- स्वदेशीकरण के लाभों के साथ-साथ इससे राजकोषीय घाटे में कमी, शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों के खिलाफ सुरक्षा, रोज़गार सृजन एवं भारतीय सेनाओं के बीच अखंडता तथा संप्रभुता की मज़बूत भावना सहित राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना बढ़ेगी।
रक्षा प्रोद्योगिकी का स्वदेशीकरण:
- परिचय:
- स्वदेशीकरण आत्मनिर्भरता और आयात के बोझ को कम करने के दोहरे उद्देश्य के लिये देश के भीतर किसी भी रक्षा उपकरण के विकास और उत्पादन की क्षमता है।
- रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता रक्षा उत्पादन विभाग के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
- रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO), रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (DPSUs) और निजी संगठन रक्षा उद्योगों के स्वदेशीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है और अगले पाँच वर्षों में सशस्त्र बलों द्वारा रक्षा खरीद पर लगभग 130 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च करने की उम्मीद है।
- भूमिका:
- सोवियत संघ पर अत्यधिक निर्भरता के कारण रक्षा औद्योगीकरण के प्रति भारत के दृष्टिकोण में बदलाव आया।
- वर्ष 1980 के दशक के मध्य से सरकार ने अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) में संसाधनों का इस्तेमाल किया ताकि डीआरडीओ को हाई प्रोफाइल परियोजनाएँ शुरू करने हेतु सक्षम बनाया जा सके।
- रक्षा स्वदेशीकरण में एक महत्त्वपूर्ण शुरुआत वर्ष 1983 में हुई थी जब सरकार ने 5 मिसाइल सिस्टम (पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश, नाग) विकसित करने के लिये एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) को मंज़ूरी दी थी।
- सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये स्वदेशी प्रयास पर्याप्त नहीं थे, जिसके परिणामस्वरूप विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी में सह-विकास और सह-उत्पादन की ओर ध्यान केंद्रित किया गया।
- इसकी शुरुआत वर्ष 1998 में हुई थी, जब भारत और रूस ने संयुक्त रूप से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल का उत्पादन करने के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
- चुनौतियाँ:
- संस्थागत क्षमता का अभाव:
- रक्षा के स्वदेशीकरण के उद्देश्य से विभिन्न नीतियों को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के लिये एक संस्थागत क्षमता का अभाव।
- ढाँचागत घाटा:
- बुनियादी ढाँचे की कमी से भारत की रसद लागत बढ़ जाती है जिससे देश की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और दक्षता कम हो जाती है।
- भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुद्दे:
- भूमि अधिग्रहण के मुद्दे रक्षा निर्माण और उत्पादन में नए प्लेयर्स के प्रवेश को प्रतिबंधित करते हैं।
- नीतिगत दुविधा:
- DPP (रक्षा खरीद नीति, जिसे अब DAP 2020 से बदल दिया गया है) के तहत नीतिगत दुविधा के कारण अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद नहीं मिली। (ऑफसेट एक विदेशी आपूर्तिकर्त्ता के साथ अनुबंधित मूल्य का हिस्सा है जिसे भारतीय रक्षा क्षेत्र में फिर से निवेश किया जाना चाहिये या जिसके खिलाफ सरकार प्रौद्योगिकी खरीद सकती है)।
- केवल सरकार-से-सरकार के बीच समझौते (G2G), एकल विक्रेता अनुबंध या अंतर-सरकारी समझौते (IGA) में अब ऑफसेट क्लॉज़ नहीं होंगे।
- DAP 2020 के अनुसार, अन्य सभी अंतर्राष्ट्रीय सौदे जो प्रतिस्पर्द्धी हैं और जिसके लिये कई विक्रेता हैं, उनके पास 30% ऑफसेट क्लॉज़ जारी रहेगा।
- DPP (रक्षा खरीद नीति, जिसे अब DAP 2020 से बदल दिया गया है) के तहत नीतिगत दुविधा के कारण अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद नहीं मिली। (ऑफसेट एक विदेशी आपूर्तिकर्त्ता के साथ अनुबंधित मूल्य का हिस्सा है जिसे भारतीय रक्षा क्षेत्र में फिर से निवेश किया जाना चाहिये या जिसके खिलाफ सरकार प्रौद्योगिकी खरीद सकती है)।
- संस्थागत क्षमता का अभाव:
संबंधित पहलें:
- FDI सीमा में वृद्धि:
- मई 2020 में रक्षा क्षेत्र में स्वचालित मार्ग के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया गया था।
- आयुध निर्माणी बोर्ड का निगमीकरण:
- अक्तूबर 2021 में सरकार ने चार दशक पुराने आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) को भंग कर दिया और युद्ध सामग्री से लेकर भारी हथियारों व वाहनों तक के रक्षा हार्डवेयर के निर्माण के लिये सात नई राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों के तहत 41 कारखानों को मिला दिया।
- डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज:
- DISC का उद्देश्य राष्ट्रीय रक्षा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में प्रोटोटाइप बनाने और/या उत्पादों/समाधानों का व्यावसायीकरण करने के लिये स्टार्टअप्स/एमएसएमई/इनोवेटर्स का समर्थन करना है।
- इसे रक्षा मंत्रालय ने अटल इनोवेशन मिशन के साथ साझेदारी में लॉन्च किया है।
- DISC का उद्देश्य राष्ट्रीय रक्षा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में प्रोटोटाइप बनाने और/या उत्पादों/समाधानों का व्यावसायीकरण करने के लिये स्टार्टअप्स/एमएसएमई/इनोवेटर्स का समर्थन करना है।
- सृजन पोर्टल:
- यह एक वन स्टॉप शॉप ऑनलाइन पोर्टल है जो विक्रेताओं को स्वदेशीकरण के लिये उपकरण लेने की सुविधा प्रदान करता है।
- ई-बिज पोर्टल:
- ई-बिज पोर्टल पर औद्योगिक लाइसेंस (IL) और औद्योगिक उद्यमी ज्ञापन (IEM) के लिये आवेदन करने की प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन कर दी गई है।
आगे की राह
- सभी आपत्तियों और विवादों से निपटने के लिये एक स्थायी मध्यस्थता प्रकोष्ठ की स्थापना की जा सकती है।
- निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना आवश्यक है क्योंकि यह कुशल और प्रभावी प्रौद्योगिकी तथा स्वदेशी रक्षा उद्योग के आधुनिकीकरण के लिये आवश्यक मानव पूंजी का संचार कर सकता है।
- सॉफ्टवेयर उद्योग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं साइबर सुरक्षा जैसी तकनीकों का उपयोग स्वदेशी रूप से "चिप" के विकास और निर्माण के लिये किया जाना चाहिये।
- DRDO का विश्वास और अधिकार बढ़ाने के लिये उसे वित्तीय व प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करना।
- रक्षा उत्पादन विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने और निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये लंबे कार्यकाल दिये जाने की आवश्यकता है।
- तीनों सेवाओं के बीच इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता में सुधार किया जाना चाहिये, नौसेना ने स्वदेशीकरण के पथ पर अच्छी तरह से प्रगति की है, मुख्य रूप से इन-हाउस डिज़ाइन क्षमता, नौसेना डिज़ाइन ब्यूरो के कारण।
- एक रक्षा निर्माता के लिये मज़बूत आपूर्ति शृंखला महत्त्वपूर्ण है जो लागत को अनुकूलित करती है।