शासन व्यवस्था
निवारक निरोध कानून के उपयोग में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:निवारक निरोध, दंडात्मक निरोध, गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB)। मेन्स के लिये:निवारक निरोध से संबद्ध मुद्दे और उनका समाधान। |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau-NCRB) द्वारा जारी किये गए नवीनतम अपराध आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2021 में निवारक निरोध कानून के उपयोग में लगभग 23% की वृद्धि हुई है, जिसमें 1.1 लाख से अधिक लोगों को निवारक हिरासत में रखा गया है।
निवारक निरोध:
- अनुच्छेद 22: संविधान का अनुच्छेद 22, गिरफ्तार या हिरासत (निरोध) में लिये गए व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है। निवारक निरोध का उपयोग दो प्रकार से होता है- दंडात्मक और निवारक।
- निवारक निरोध का उपयोग ऐसी स्थिति में किया जाता है, जब किसी व्यक्ति को केवल इस संदेह के आधार पर पुलिस हिरासत में रखा गया है कि वह कोई आपराधिक कृत्य करेगा या समाज को हानि पहुँचाने का प्रयास करेगा।
- इसके अंतर्गत पुलिस के पास किसी ऐसे व्यक्ति हिरासत में लेने का अधिकार है जिस पर उसे अपराध करने का संदेह है, कुछ मामलों में वारंट या मजिस्ट्रेट के प्राधिकरण के बिना गिरफ्तारी करने का भी अधिकार है।
- दंडात्मक निरोध अर्थ है- किसी अपराध के लिये सजा के रूप में निरोध। इसका उपयोग ऐसी स्थिति में किया जाता है, जब वास्तव में कोई अपराध में किया गया हो, या उस अपराध को करने का प्रयास किया गया हो।
- निवारक निरोध का उपयोग ऐसी स्थिति में किया जाता है, जब किसी व्यक्ति को केवल इस संदेह के आधार पर पुलिस हिरासत में रखा गया है कि वह कोई आपराधिक कृत्य करेगा या समाज को हानि पहुँचाने का प्रयास करेगा।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ( NCRB) के आँकड़ों की मुख्य विशेषताएँ:
- हिरासत की सबसे अधिक संख्या: वर्ष 2021 के अंत तक निवारक हिरासत में रखे गए कुल 24,500 से अधिक लोग या तो हिरासत में थे या अभी भी हिरासत में है, जिनकी संख्या वर्ष 2017 के बाद से जब NCRB ने इस आँकड़ों को रिकॉर्ड करना शुरू किया था, तब से अब तक सबसे अधिक है।
- राज्य और केंद्रशासित प्रदेश: वर्ष 2021 में तमिलनाडु के बाद तेलंगाना और गुजरात में राज्यों में सबसे अधिक, जबकि जम्मू और कश्मीर में निवारक निरोध के मामले सबसे अधिक दर्ज किये गए है।
- सापेक्षिक निवारक कानून:
- NCRB के आँकड़ों से पता चला है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत गिरफ्तार किये गए लोगों की संख्या वर्ष 2020 की तुलना में काफी कम हो गई थी।
- NSA के तहत निवारक निरोध के मामलों की संख्या वर्ष 2020 में (741) चरम पर पहुँच गई थी, जो वर्ष 2021 में यह संख्या गिरकर 483 हो गई।
- गुंडा एक्ट
- स्वापक औषधि और मन: प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1988 में अवैध व्यापार की रोकथाम
- लोक सुरक्षा अधिनियमट (पीएसए)
- नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985
- इनसाइडर ट्रेडिंग का निषेध (PIT)
- कालाबाज़ारी और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के रखरखाव के निवारण अधिनियम, 1980 (PBMSECA)
- इसके अलावा, "अन्य निरोध अधिनियमों" के रूप में वर्गीकृत एक श्रेणी, जिसके तहत अधिकांश निरोधक के मामले पंजीकृत थे, वर्ष 2017 के बाद से लगातार निवारक निरोध के तहत व्यक्तियों की सबसे अधिक संख्या "अन्य निरोध अधिनियम" श्रेणी के तहत रखी गई है।
- NCRB के आँकड़ों से पता चला है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत गिरफ्तार किये गए लोगों की संख्या वर्ष 2020 की तुलना में काफी कम हो गई थी।
- समस्याएँ/चुनौतियाँ:
- अन्य अधिनियमों का दुरुपयोग: गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (Unlawful Activities (Prevention) Act- UAPA) और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम जैसे कई कानून भी निवारक निरोध हेतु उपाय प्रदान करते हैं।
- सरकारी अधिकारियों द्वारा हेरफेर: जिला मज़िस्ट्रेट और पुलिस भी अक्सर किसी भी दो समुदायों के बीच उभरती सांप्रदायिक झड़पों या संघर्षों में कानून और व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिये निवारक निरोध का दुरुपयोग करते हैं, भले ही यह हमेशा सार्वजनिक अव्यवस्था का कारण न हो।
- सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण: जुलाई 2022 में, सर्वोच्च न्यायालय की एक अवकाश पीठ ने तेलंगाना में एक चेन-स्नैचर के लिये जारी निवारक निरोध आदेश को रद्द करते हुए देखा कि राज्य को दी गई ये शक्तियाँ "असाधारण" है और चूँकि ये एक व्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यापक स्तर पर प्रभावित करती हैं, अतः इनका उपयोग संयम के साथ किया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि इन शक्तियों का इस्तेमाल सामान्य कानून और व्यवस्था की समस्याओं को नियंत्रित करने के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
WEST: न्यू I-STEM पहल
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग सुविधाएँ, मानचित्र (I-STEM), इंजीनियरिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाएँ (WEST), प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PM-STIAC) मिशन। मेन्स के लिये:विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में "इंजीनियरिंग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाएँ (WEST)" नाम की एक नई “भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग सुविधाओं का खाका (I-STEM)” पहल का शुभारंभ किया गया।
WEST पहल:
- WEST पहल विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) पृष्ठभूमि वाली महिलाओं को पूरा करेगा और उन्हें विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान करने हेतु सशक्त बनाएगा।
- WEST पहल के माध्यम से I-STEM, वैज्ञानिक रूप से इच्छुक महिला शोधकर्त्ताओं, वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों को विज्ञान और इंजीनियरिंग के अग्रणी क्षेत्रों में बेसिक या अप्लाइड साइंसेज में अनुसंधान करने के लिये एक अलग मंच प्रदान करेगा।
- महिलाएंँ इस WEST कार्यक्रम में शामिल हो सकती हैं और विभिन्न क्षेत्रों में हितधारक बनने के अवसरों का पता लगा सकती हैं। वे विभिन्न स्तरों पर अनुसंधान एवं विकास में कॅरियर बना सकती हैं, जैसे कि तकनीशियन, प्रौद्योगिकीविद, वैज्ञानिक और उद्यमी।
- ये अवसर वैज्ञानिक उपकरणों के संचालन और उनकी देखरेख से लेकर, उनके डिज़ाइन और निर्माण तक प्रदान करते हैं।
- कौशल विकास कार्यक्रम WEST के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पृष्ठभूमि वाली महिलाओं को उनकी क्षमताओं पर काम करने और प्रयोगशाला तकनीशियनों और मेंटेनंस इंजीनियरों के रूप में "फील्ड में" संलग्न होने के लिये प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
- I-STEM पोर्टल के जरिये उपलब्ध अनुसंधान और विकास सुविधाओं और सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्मों (कॉमसॉल, मैटलैब, लैबव्यू, ऑटोकैड) तक पहुँच, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में महिला उद्यमियों के लिये एक मज़बूत समर्थन नेटवर्क तैयार करेगी।
- इसके अलावा, ऑनलाइन चर्चा और तत्काल मदद के लिये I-STEM के व्हाट्सएप और टेलीग्राम प्लेटफॉर्म के जरिये एक डिजिटल समूह "कनेक्ट क्विकली" भी स्थापित किया गया है।
- महिलाओं की एक समर्पित टीम WEST पहल के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करेगी।
I-STEM:
- I-STEM के विषय में:
- I-STEM अनुसंधान एवं विकास (Research and Development- R&D) सुविधाओं को साझा करने के लिये एक राष्ट्रीय वेब पोर्टल है।
- यह पोर्टल शोधकर्त्ताओं को उपकरणों के उपयोग के लिये स्लॉट तक पहुँचने के साथ-साथ परिणामों के विवरण जैसे- पेटेंट, प्रकाशन और प्रौद्योगिकियों को साझा करने की सुविधा प्रदान करता है।
- लॉन्च:
- इस पोर्टल को जनवरी 2020 में लॉन्च किया गया। यह प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (Prime Minister’s Science, Technology & Innovation Advisory Council- PM-STIAC) के तत्त्वावधान में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय की एक पहल है।
- PM-STIAC: यह एक व्यापक परिषद है जो प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय को विशिष्ट विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में स्थिति का आकलन करने, भविष्य का रोडमैप विकसित करने, चुनौतियों को समझने आदि विषय पर प्रधानमंत्री को सलाह देने की सुविधा प्रदान करती है।
- इस पोर्टल को जनवरी 2020 में लॉन्च किया गया। यह प्रधानमंत्री विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (Prime Minister’s Science, Technology & Innovation Advisory Council- PM-STIAC) के तत्त्वावधान में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय की एक पहल है।
WEST का महत्त्व और आगे की राह:
- महत्त्व:
- यह पहल कॅरियर में लंबे अंतराल के बाद के बाद महिलाओं को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी डोमेन में पुनः वापसी में भी सहायता करेगी।
- देश के अनुसंधान एवं विकास के बुनियादी ढाँचे के अंतराल में महत्त्वपूर्ण रूप से कमी आएगी।
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिला उद्यमियों के लिये एक सशक्त समर्थन नेटवर्क का निर्माण किया जा सकेगा।
- I-STEM महिला शोधकर्त्ताओं को उपलब्धियों, मुद्दों पर विचार-विमर्श करने और विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार में प्रगति के माध्यम से देश को आगे ले जाने के लिये विचारों का आदान-प्रदान करने हेतु एक मंच प्रदान करेगा।
- महिलाएँ I-STEM प्लेटफॉर्म के माध्यम से परिष्कृत उपकरणों/यंत्रों के संचालन और रख-रखाव के लिये सलाहकार के रूप में सेवा कर सकती हैं।
- यह एक "कौशल अंतराल" कम करने और सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित उपायों के सदुपयोग के क्रम में एक लंबा रास्ता तय करेगा।
आगे की राह:
- I-STEM को फीडबैक प्राप्त करके पहल के प्रभाव की निगरानी करनी चाहिये।
- WEST और I-STEM में महिलाओं की व्यापक भागीदारी बढ़ाने के लिये कदम उठाए जाने चाहिये।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय राजनीति
क्षेत्रीय भाषा का महत्त्व
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 343, क्षेत्रीय भाषा, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), राष्ट्रीय शिक्षा नीति। मेन्स के लिये:क्षेत्रीय भाषा का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अध्यक्ष ने मातृभाषा सीखने की प्रारंभिक शुरुआत की भूमिका पर ज़ोर दिया, जो बच्चे की रचनात्मक सोच के लिये महत्त्वपूर्ण है।
क्षेत्रीय भाषाएँ:
- क्षेत्रीय भाषा एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल उस भाषा के लिये किया जाता है जो बड़ी संख्या में लोगों द्वारा बोली जाती है लेकिन देश के बाकी हिस्सों में संचार की वास्तविक भाषा नहीं है।
- एक भाषा को क्षेत्रीय तब माना जाता है जब वह ज़्यादातर उन लोगों द्वारा बोली जाती है जो बड़े पैमाने पर किसी राज्य या देश के एक विशेष क्षेत्र में रहते हैं।
- भले ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343(1) में कहा गया है कि संघ की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी।
क्षेत्रीय भाषा की आवश्यकता:
- दुविधा दूर करना:
- किसी भी स्थानीय भाषा के बज़ाय अंग्रेजी भाषा को वरीयता देने की दुविधा को दूर करना और बच्चे को अपनी मातृभाषा में स्वाभाविक रूप से सोचने देना।
- औपनिवेशिक मानसिकता:
- हमारे दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है ताकि जब कोई किसी कक्षा में क्षेत्रीय भाषा में प्रश्न पूछे तो उन्हें हीन भावना महसूस न हो।
- लाभ:
- विषय-विशिष्ट सुधार: भारत और अन्य एशियाई देशों में कई अध्ययन अंग्रेजी माध्यम के बज़ाय क्षेत्रीय माध्यम का उपयोग करने वाले छात्रों के लिये सीखने के परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव का सुझाव देते हैं।
- विशेष रूप से विज्ञान और गणित में प्रदर्शन अंग्रेजी की तुलना में अपनी मूल भाषा में पढ़ने वाले छात्रों के बीच बेहतर पाया गया है।
- भागीदारी की उच्च दर: मातृभाषा में अध्ययन के परिणामस्वरूप उच्च उपस्थिति, प्रेरणा और छात्रों के बीच बोलने के लिये आत्मविश्वास में वृद्धि होती है तथा मातृभाषा के साथ सहज होने के कारण माता-पिता की भागीदारी और पढ़ाई हेतु समर्थन में सुधार होता है।
- कई शिक्षाविदों द्वारा प्रमुख इंजीनियरिंग शिक्षा संस्थानों में ड्रॉपआउट दरों के साथ-साथ कुछ छात्रों के खराब प्रदर्शन के लिये अंग्रेजी की खराब पकड़ को प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार पाया गया है।
- कम-लाभकारी के लिये अतिरिक्त लाभ: यह विशेष रूप से उन छात्रों के लिये प्रासंगिक है जो पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं (अपनी पूरी पीढ़ी में स्कूल जाने और शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति) या ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले लोगों के लिये जो एक विदेशी भाषा के अपरिचित अवधारणाओं से भयभीत महसूस कर सकते हैं।
- विषय-विशिष्ट सुधार: भारत और अन्य एशियाई देशों में कई अध्ययन अंग्रेजी माध्यम के बज़ाय क्षेत्रीय माध्यम का उपयोग करने वाले छात्रों के लिये सीखने के परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव का सुझाव देते हैं।
- स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल:
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये बार काउंसिल ऑफ इंडिया जैसे विभिन्न नियामक निकायों के साथ बातचीत कर रहा है इसलिये भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई है जो यह देखेगी कि संस्थान स्थानीय भाषाओं में कानूनी शिक्षा कैसे प्रदान कर सकते हैं?
- भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education-AICTE) ने भी 10 कॉलेजों में क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम शुरू किए थे।
- इसके अलावा, यह विशेषज्ञों के साथ-साथ 10-12 विषयों की पहचान करने के लिये शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्थापित भारतीय भाषा विकास पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति के साथ भी कार्य कर रहा है ताकि पुस्तकों का या तो अनुवाद किया जा सके या उन्हें नए सिरे से लिखा जा सके।
- नियामक संस्था अगले एक वर्ष में विभिन्न विषयों में क्षेत्रीय भाषाओं में 1,500 पुस्तकें तैयार करने का लक्ष्य लेकर चल रही थी।
- वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology-CSTT) क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन को बढ़ावा देने हेतु प्रकाशन अनुदान प्रदान कर रहा है।
- राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (The National Translation Mission-NTM) को केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages-CIIL) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है।
शिक्षा में क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देने के उपाय:
- संस्थान एक क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाएँगे अथवा वह अंग्रेजी माध्यम में उन छात्रों को इसे सीखने में सहायता प्रदान करेगा जो किसी क्षेत्रीय भाषा में कुशल नहीं हैं।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: भविष्य में कक्षाओं में देखे जाने वाले वास्तविक समय के अनुवादों को सक्षम करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित तकनीक उपलब्ध कराना।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2022 मातृभाषा को बढ़ावा देने पर ज़ोर देती है जो कम से कम पाँचवीं या आठवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम होना चाहिये और उसके बाद इसे एक भाषा के रूप में पेश किया जाना चाहिये ।
- यह विश्वविद्यालयों से क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री विकसित करने का भी आग्रह करता है।
क्षेत्रीय भाषा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 345: अनुच्छेद 346 और 347 के प्रावधानों के अनुसार किसी राज्य का विधानमंडल कानून द्वारा राज्य में प्रयोग में आने वाली किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या किसी भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अथवा भाषाओं के रूप में अपना सकता है।
- अनुच्छेद 346: संघ में आधिकारिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अधिकृत भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच एवं एक राज्य तथा संघ के बीच संचार के लिये आधिकारिक भाषा होगी।
- उदाहरण: यदि दो या दो से अधिक राज्य सहमत हैं कि ऐसे राज्यों के बीच संचार के लिये हिंदी भाषा, आधिकारिक भाषा होनी चाहिये तो उस भाषा का उपयोग ऐसे संचार के लिये किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 347: यह राष्ट्रपति को किसी दिये गए राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में किसी भाषा को मान्यता देने की शक्ति प्रदान करता है, बशर्ते कि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि उस राज्य का एक बड़ा हिस्सा भाषा को मान्यता देना चाहता है। ऐसी मान्यता राज्य के किसी हिस्से या पूरे राज्य के लिये हो सकती है।
- अनुच्छेद 350A: प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा।
- अनुच्छेद 350B: यह भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की स्थापना का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 351: यह केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास हेतु निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न : निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न: भारत के संदर्भ में 'हाइबी, हो और कुई' शब्द निम्नलिखित से संबंधित हैं: (2021) (a) उत्तर-पश्चिम भारत के नृत्य रूप उत्तर: (d) व्याख्या:
|
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-बांग्लादेश के मध्य समझौते
प्रिलिम्स के लिये:बांग्लादेश की भौगोलिक अवस्थिति, भारत बांग्लादेश समझौते, भारत- बांग्लादेश संबंध।मेन्स के लिये: भारत के लिये बांग्लादेश का आर्थिक महत्त्व, भारत और बांग्लादेश के मध्य हस्ताक्षरित समझौतों के रुझान, संबंधों में विद्यमान चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने भारत का दौरा किया है और भारतीय प्रधानमंत्री के साथ वार्ता की है।
- भारत और बांग्लादेश ने नदी जल के बँटवारे से लेकर अंतरिक्ष तक के क्षेत्रों में सहयोग के लिये सात समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं और नई कनेक्टिविटी तथा ऊर्जा पहल का अनावरण किया है।
बैठक की मुख्य विशेषताएँ:
- दोनों पक्षों ने सात समझौता ज्ञापनों (MoU) पर हस्ताक्षर किये, जिसमें शामिल हैं:
- सीमा पार से कुशियारा नदी से जल की निकासी।
- समझौते से भारत में दक्षिणी असम और बांग्लादेश के सिलहट क्षेत्र को लाभ होगा।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सहयोग।
- माल ढुलाई जैसे क्षेत्रों में रेलवे द्वारा उपयोग की जाने वाली सूचना प्रौद्योगिकी प्रणालियों पर सहयोग।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग।
- भारत में बांग्लादेश रेलवेकर्मियों और बांग्लादेशी न्यायिक अधिकारियों का प्रशिक्षण।प्रसार भारती और बांग्लादेश टेलीविजन के मध्य प्रसारण में सहयोग।
- सीमा पार से कुशियारा नदी से जल की निकासी।
- थर्मल पाॅवर प्रोजेक्ट:
- दोनों देशों ने भारत से रियायती वित्त पोषण के साथ बांग्लादेश के खुलना डिवीज़न में बनाई जा रही मैत्री सुपर थर्मल पाॅवर प्रोजेक्ट की पहले यूनिट का अनावरण किया।
- यूनिट को अगस्त 2022 में बांग्लादेश के पाॅवर ग्रिड के साथ सिंक्रोनाइज़ गया था और पूर्ण होने पर यह परियोजना 1,320 MW विद्युत् उत्पन्न करेगी।
- रुश्पा रेल ब्रिज:
- 5.13 किलोमीटर के रूपशा रेल पुल का भी उद्घाटन किया गया, जो 64.7 किलोमीटर के खुलना-मोंगला बंदरगाह ब्रॉड गेज रेलवे परियोजना का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- पुल का निर्माण 389 मिलियन डॉलर के भारतीय ऋण (लाइन ऑफ क्रेडिट) के साथ किया गया था।
- यह बांग्लादेश के दूसरे सबसे बड़े बंदरगाह मोंगला के साथ कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा।
- ऋण और अग्रिम:
- भारत ने बांग्लादेश में विकास परियोजनाओं के लिये 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रियायती ऋण प्रदान किया है, जिसमें शामिल हैं:
- खुलना और ढाका, चिलाहाटी और राजशाही के बीच रेल संपर्क।
- 312 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से मोंगला बंदरगाह को दर्शन-गेज से जोड़ना।
- ईंधन के परिवहन की सुविधा के लिये पार्बतीपुर-कौनिया रेल परियोजना 120 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से बनाई जा रही है।
- बांग्लादेश के सड़क नेटवर्क की मरम्मत और रखरखाव के लिये 41 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सड़क निर्माण उपकरण और मशीनरी की आपूर्ति।
- भारत ने बांग्लादेश में विकास परियोजनाओं के लिये 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रियायती ऋण प्रदान किया है, जिसमें शामिल हैं:
- रक्षा खरीद:
- वर्ष 2018 में भारत ने बांग्लादेश को 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रक्षा ऋण (LOC) प्रदान किया है।
- मई 2018 में कोलकाता के रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ने युद्धपोतों के डिज़ाइन और निर्माण में सहायता एवं जानकारी प्रदान करने के लिये बांग्लादेश के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये थे।
- ढाका ने सैन्य प्लेटफार्मों और प्रणालियों की एक इच्छा सूची साझा की है जिसे उसके सशस्त्र बल भारत से खरीदना चाहेंगे।
- बांग्लादेश सेना ने तीन वस्तुओं की खरीद को मंजूरी दी है:
- 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर पर 5 ब्रिज लेयर टैंक (बीएलटी -72)
- 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर पर 7 पोर्टेबल स्टील ब्रिज (बेली)
- 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर पर 1 माइन सुरक्षात्मक वाहन
- अन्य प्रस्तावित खरीद में शामिल हैं:
- ऑफ-रोड व्हीकल्स, भारी रिकवरी वाहन, आर्मड इंजीनियर परिक्षण वाहन और बुलेट प्रूफ हेलमेट।
- बांग्लादेश मशीन टूल्स फैक्ट्री के लिये ऑटोमोबाइल असेंबलिंग यूनिट का आधुनिकीकरण और विस्तार, विस्फोटकों, कच्चे माल और उपकरणों की आपूर्ति
- बांग्लादेश नौसेना ने एक लॉजिस्टिक जहाज़, फ्लोटिंग डॉक, तेल टैंकर और एक महासागर जाने वाले टग (Tug) की खरीद का प्रस्ताव दिया है।
- बांग्लादेश सेना ने तीन वस्तुओं की खरीद को मंजूरी दी है:
बांग्लादेश के साथ CEPA पर भारत का दृष्टिकोण:
- परिचय:
- भारत के प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत और बांग्लादेश जल्द ही एक द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) पर बातचीत शुरू करेंगे।
- CEPA द्वारा वस्तुओं, सेवाओं और निवेश में व्यापार पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना है, जिसका एक प्रमुख उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार अंतर को कम करना है।
- बांग्लादेश वर्ष 2026 तक एक विकासशील राष्ट्र बनने की तैयारी कर रहा है, जिसके बाद यह अब व्यापार लाभों के लिये अर्हता प्राप्त नहीं कर सकता है, जो वर्तमान में कम-से-कम विकसित देश के रूप में प्राप्त है; वह एक वर्ष के भीतर CEPA प्राप्त करने का इच्छुक है।
- भारत-बांग्लादेश व्यापार संबंध:
- वित्त वर्ष 2021-22 में बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत के लिये सबसे बड़ा व्यापार भागीदार तथा विश्व भर में भारतीय निर्यात के लिये चौथा सबसे बड़ा गंतव्य के रूप में उभरा है।
- वित्त वर्ष 2020-21 में बांग्लादेश का निर्यात 66% से अधिक 9.69 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- कोविड-19 से संबंधित व्यवधानों के बावजूद, द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2020-21 में 10.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 44% बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 18.13 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- बांग्लादेश को भारत का निर्यात:
- कच्चा कपास, गैर-खुदरा शुद्ध सूती धागा और बिजली
- बांग्लादेश से भारत का आयात:
- शुद्ध वनस्पति तेल, बिना बुने हुए पुरुषों के सूट और कपड़ा स्क्रैप।
- शुद्ध वनस्पति तेल, बिना बुने हुए पुरुषों के सूट और कपड़ा स्क्रैप।
मुद्दे जिनका समाधान दोनों देशों को करना चाहिये:
- पानी के बँटवारे, बंगाल की खाड़ी में महाद्वीपीय शेल्फ जैसे मुद्दों को हल करने, सीमा विवाद की घटनाओं को शून्य पर लाने और मीडिया को प्रबंधित करने से संबंधित लंबित मुद्दों को हल करने के प्रयास होने चाहिये।
- बांग्लादेश के प्रधानमंत्री ने आशा व्यक्त की कि दोनों देश तीस्ता नदी के पानी के बंँटवारे के मुद्दे को सुलझा लेंगे, इस मामले पर एक समझौता वर्ष 2011 से लंबित है।
- बांग्लादेश ने पहले ही असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लागू करने पर चिंता जताई है, जो असम में रहने वाले वास्तविक भारतीय नागरिकों की पहचान करने और अवैध बांग्लादेशियों को बाहर निकालने के लिये एक अभ्यास है।
- वर्तमान में, बांग्लादेश बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक सक्रिय भागीदार है, जिस पर दिल्ली ने हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
- सुरक्षा क्षेत्र में, बांग्लादेश भी पनडुब्बियों सहित चीनी सैन्य वस्तुसूची का एक प्रमुख प्राप्तकर्त्ता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न. मेकांग-गंगा सहयोग जो कि छह देशों की एक पहल है, निम्नलिखित में से कौन-सा/से देश प्रतिभागी नहीं है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या :
प्रश्न. उन परिस्थितियों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये जिनके कारण भारत को बांग्लादेश के उदय में निर्णायक भूमिका का निर्वहन करना पड़ा। (मेन्स-2013) |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
शासन व्यवस्था
भारत में सामाजिक सुरक्षा की स्थिति
प्रिलिम्स के लिये:विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट 2020-22: एशिया और प्रशांत के लिये क्षेत्रीय सहयोग रिपोर्ट), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (MGNREGA)। मेन्स के लिये:भारत में सामाजिक सुरक्षा। |
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा सामाजिक सुरक्षा पर नवीनतम रिपोर्ट (वर्ल्ड सोशल प्रोटेक्शन रिपोर्ट 2020-22: एशिया और प्रशांत के लिये क्षेत्रीय सहयोग रिपोर्ट) के अनुसार, बांग्लादेश के 28.4% स्तर से भी कम केवल 24.4% भारतीयों को किसी भी प्रकार के सामाजिक संरक्षण लाभ मिलता है।
सामाजिक सुरक्षा:
- सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ व्यक्तियों और परिवारों, विशेष रूप से गरीब तथा कमज़ोर लोगों, संकटों व समस्याओं का सामना करने, नौकरी खोजने, उत्पादकता में सुधार करने, अपने बच्चों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा में निवेश करने तथा बढ़ती उम्र की आबादी की रक्षा करने में मदद करती हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- परिचय: रिपोर्ट ILO की 'वर्ल्ड सोशल प्रोटेक्शन रिपोर्ट 2021-22' की सहयोगी है, जो एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा का एक क्षेत्रीय अवलोकन प्रदान करती है।
- वैश्विक:
- सामाजिक सुरक्षा: यह बताती है कि मंगोलिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में 100% सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क है, जबकि म्याँमार और कंबोडिया में यह 10% से भी कम है।
- कम कवरेज: रिपोर्ट के अनुसार एशिया प्रशांत क्षेत्र में चार श्रमिकों में से तीन काम के दौरान बीमारी या चोट लगने की स्थिति में सुरक्षित नहीं हैं।
- प्रति व्यक्ति कम सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वाले देशों में कार्य क्षति कवरेज निम्न स्तर का होता हैं, उदाहरण के लिये अफगानिस्तान, भारत, नेपाल और पाकिस्तान अपने श्रमिकों के 5% से कम कार्य क्षति कवरेज कवर करते हैं।
- असमान कवरेज: रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक वैश्विक आबादी का केवल 9% कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा लाभ से प्रभावी रूप से कवर किया गया था, जबकि शेष 53.1% 4.1 बिलियन लोगों को पूरी तरह से असुरक्षित छोड़ दिया गया था।
- असमान कवरेज: रिपोर्ट के अनुसार, 2020 तक, वैश्विक आबादी का केवल 46.9% प्रभावी रूप से कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा लाभ द्वारा कवर किया गया था, जबकि शेष 53.1% 1 बिलियन लोगों को पूरी तरह से असुरक्षित छोड़ दिया गया था।
- रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दुनिया में कामकाजी उम्र की आबादी का बड़ा हिस्सा 4% या 4 बिलियन लोग केवल आंशिक रूप से संरक्षित हैं या बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं।
- लैंगिक असमानता: सामाजिक सुरक्षा कवरेज में अंतर्निहित लैंगिक असमानता को उज़ागर करते हुए, रिपोर्ट में महिलाओं के कवरेज में पुरुषों के मुकाबले 8% अंकों की कमी दर्ज की गई है।
- भारतीय परिप्रेक्ष्य:
- सामाजिक सुरक्षा में कम निवेश: रिपोर्ट में कहा गया है कि सामाजिक सुरक्षा में अपेक्षाकृत कम निवेश के कारण, यानी भारतीय आबादी का केवल 4%, गैर-अंशदायी लाभों के तहत हस्तांतरित राशि आमतौर पर पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के लिये बहुत कम है।
- कवरेज में असमानता: अंशदायी योजनाओं के साथ आम तौर पर औपचारिक क्षेत्र में काम करने वालों और गैर-अंशदायी योजनाओं तक सीमित होने के कारण, भारत के सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के 5% से कम हैं।
- हाल की पहल: इसने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Programme-MGNREGA) जैसे सामाजिक सुरक्षा के विभिन्न स्तरों के अपने प्रगतिशील विस्तार से अंशदायी और गैर-अंशदायी योजनाओं के संयोजन के माध्यम से प्राप्त भारत की उच्च कवरेज दर की सराहना की, जो अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये 100 दिनों तक कार्य सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है।
सामाजिक सुरक्षा के संबंध में भारत सरकार की विभिन्न पहलें:
- प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन योजना (Pradhan Mantri Shram Yogi Maan-Dhan Yojana (PM-SYM)
- राष्ट्रीय पेंशन योजन (National Pension Scheme-NPS)
- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना (Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Yojana-PMJJBY)
- प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana-PMSBY)
- अटल पेंशन योजना
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम (National Safai Karamcharis Finance and Development Corporation-NSKFDC)
- हाथ से मैला उठाने वालों के पुनर्वास हेतु स्वरोज़गार योजना
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन International Labour Organisation (ILO):
- यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
- वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
- वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई।
- वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
- मुख्यालय: इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
- अन्य रिपोर्ट:
- सामाजिक संरक्षण रिपोर्ट
- विश्व रोजगार और सामाजिक आउटलुक
- विश्व रोज़गार और सामाजिक दृष्टिकोण
- विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट
- वैश्विक वेतन रिपोर्ट
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रिलिम्स: प्रश्न . 'अटल पेंशन योजना' के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: C व्याख्या:
मेन्स: प्र. क्या दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 समाज में इच्छित लाभार्थियों के सशक्त्तिकरण और समावेशन के लिये प्रभावी तंत्र सुनिश्चित करता है? चर्चा कीजिये। (2017) |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
नीतिशास्त्र
वर्दीधारी बल और मानसिक स्वास्थ्य
मेन्स के लिये:वर्दीधारी बल, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेपों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
सरकार को वर्दीधारी सेवाओं में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के समाधान के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
वर्दीधारी बलों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों की व्यापकता के कारण:
- कठोर संरचित पदानुक्रम:
- वर्दीधारी बलों को एक कमांड-एंड-कंट्रोल पदानुक्रम प्रणाली के साथ कठोर रूप से संरचित किया जाता है।
- एक वरिष्ठ अधिकारी अपने तत्काल कनिष्ठ के लिये रिपोर्टिंग प्राधिकारी होता है और इस कनिष्ठ को अपने कार्यों को उसके आदेश के तहत जनशक्ति के साथ पूरा करना होता है।
- इसमें पदानुक्रम का शायद ही कभी उल्लंघन किया जाता है और प्रणाली अनुशासन, भूमिकाओं की स्पष्टता और जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
- हालाँकि यह अमानवीय हो जाता है, विशेषकर उन लोगों के लिये जो व्यक्तिगत मुद्दों पर उचित संवाद नहीं कर पाते हैं।
- तनाव-प्रबंधन पर ध्यान न देना:
- मानसिक तनाव का सामना कर रहे लोगों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है।
- समस्या को व्यक्त करने वालों लोगों को कमज़ोर व्यक्ति घोषित कर दिया जाता है।
- एक वर्दीधारी पेशे में अधीनस्थ कर्मचारी कमज़ोर नहीं दिखना चाहते हैं क्योंकि यह उनके कार्य से असंगत छवि का निर्माण करता है।
- उनकी उपलब्धियों के लिये कम सम्मान:
- राज्य पुलिस और CAPFs में कांस्टेबुलरी का लगभग 85% हिस्सा है।
- ये कर्मी अपने वरिष्ठों के निर्देशानुसार अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।
- वे ज़्यादातर अपनी उपलब्धियों के लिये कम सम्मान और विफलता के लिये अधिक उत्पीड़न के साथ लगातार संगठन की भूमिका में रहते हैं।
- मद्यपान की ओर रुझान :
- व्यवस्था में अनेक की कठिनाईयों से निपटने के लिये कर्मी अक्सर शराब और नशीली दवाओं के उपयोग का सहारा लेते हैं।
- ऐसे मामलों में पकड़े जाने पर कानून के अनुसार दंडित किया जाता है और उपयुक्त विभागीय कार्रवाई भी की जाती है।
बलों के बीच बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों का प्रभाव:
- युवा पीढ़ी हतोत्साहित होगी:
- सशस्त्र बलों की अच्छी छवि और इस तथ्य के बावज़ूद कि यह एक बहुत ही सम्मानजनक कार्य है, बलों के बीच बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे युवा पीढ़ी को इसमें शामिल होने से हतोत्साहित कर सकते हैं।
- बलों का मनोबल कमज़ोर होगा:
- बलों के बीच बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे उन्हें हतोत्साहित कर सकते हैं और उनके दैनिक कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
- आत्महत्या के बढ़ते मामले :
- यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया (USI) के एक अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, किसी भी दुश्मन या आतंकवादी गतिविधियों की तुलना में आत्महत्या, भ्रातृघात और अप्रिय घटनाओं के कारण सेना के अधिक जवानों को अपनी जान गंँवानी पड़ रही है।
आगे की राह:
- काम करने की अच्छी स्थितियाँ: काम करने की स्थिति, छुट्टी, भत्ते और आवास को पात्रता के रूप में प्रदान किया जाना चाहिये।
- अंतर्निहित मुद्दों की पहचान करें:
- असंगत लोगों को हटाकर अंतर्निहित मुद्दों वाले लोगों की पहचान की जानी चाहिये और एक अलग दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये।
- यहीं से पुलिस नेतृत्व की भूमिका सामने आती है।
- ज़रूरत एक ऐसी कार्यप्रणाली विकसित करने की है जो कर्मियों को व्यक्तिगत संतुष्टि प्रदान करे तथा मानसिक तनाव एवं बीमारी की संभावना को कम करे।
- उचित संचार तंत्र:
- पुलिस नेताओं के रूप में सभी रैंकों के साथ संचार बढ़ाने तथा कर्मचारियों की भलाई के लिये अनुशासन के प्रवर्तन को साथ-साथ चलाने की आवश्यकता है।
- नियमित संपर्क सभा आयोजित करने की आवश्यकता है जहाँ कार्मिक अपनी शिकायतों को प्रसारित कर सकें तथा सभी संभावित मुद्दों पर उचित अनुवर्ती कार्रवाई की जा सके।
- कार्यालय 24/7 सभी रैंकों के लिये खुला होना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, मैदान पर यादृच्छिक निरीक्षण के दौरान, ड्यूटी पर कर्मियों के साथ मैत्रीपूर्ण संचार अनुशासन को प्रभावित नहीं पहुँचाती है - यह केवल नेतृत्व और कर्तव्य के प्रति समर्पण में उसका विश्वास बढ़ाता है।
- पुरस्कार और सम्मान:
- पुरस्कार और मान्यता बड़े प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। अक्सर, प्रोत्साहन प्रणाली संगठन की प्रमुख कल्पना पर होती है।
- इसे उचित व्यवस्था का औपचारिक रूप दिया जाना है साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया है कि खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम संकट के दौरान एक-दूसरे का समर्थन करने वाले कर्मियों के बीच सौहार्द बढ़ाते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ):प्रश्न. सकारात्मक अभिवृत्ति एक लोक सेवक अनिवार्य विशेषता माना जाती है जिसे प्राय: नितान्त दबाव में कार्य करना पड़ता है। एक व्यक्ति की सकारात्मक अभिवृत्ति में क्या योगदान देता है? (2020)) प्रश्न. "हम बाहरी दुनिया में तब तक शांति प्राप्त नहीं कर सकते जब तक हम अपने भीतर शांति प्राप्त नहीं कर लेते।" - दलाई लामा (2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन मानदंडों का विस्तार
प्रिलिम्स के लिये:सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण और इसका प्रभाव, फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन। मेन्स के लिये:भारत में वायु प्रदूषण के खतरों को कम करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। |
चर्चा में क्यों?
विद्युत मंत्रालय (MoP) ने सल्फर उत्सर्जन में कटौती करने के लिये फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) स्थापित करने के लिये कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों की समय सीमा दो वर्ष बढ़ा दी है।
पृष्ठभूमि
- भारत ने शुरू में सल्फर उत्सर्जन में कटौती के लिये FGD इकाइयों को स्थापित करने के लिये तापीय ऊर्जा संयंत्र हेतु के लिये वर्ष 2017 की समय सीमा निर्धारित की थी।
- सल्फर डाइऑक्साइड को हटाने को फ्लू-गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) कहा जाता है।
- यह गैसीय प्रदूषकों को दूर करने का प्रयास करता है। SO2 थर्मल प्रसंस्करण, उपचार और दहन के कारण भट्टियों, बॉयलरों और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं में उत्पन्न गैसें हैं।
- बाद में समय सीमा को अलग-अलग क्षेत्रों के लिये अलग-अलग समय सीमा वर्ष 2022 में समाप्त होने वाली थी जिसे बढ़ाकर वर्ष 2025 कर दिया गया।
- 2027 के अंत तक सल्फर उत्सर्जन के मानदंडों का पालन नहीं करने पर बिजली संयंत्रों को जबरन रिटायर्ड कर दिया जाएगा।
- आबादी वाले क्षेत्रों और राजधानी नई दिल्ली के पास संयंत्रों को वर्ष 2024 के अंत से संचालित करने के लिये जुर्माना देना होगा, जबकि कम प्रदूषण वाले क्षेत्रों में यूटिलिटीज पर वर्ष 2026 के अंत से जुर्माना लगाया जाएगा।
- उच्च लागत, धन की कमी, कोविड -19 संबंधित देरी और चीन के साथ भूराजनीतिक तनाव, जिसने व्यापार को कुप्रभावित किया है, विस्तार के कारणों के रूप में उद्धृत किया गया है।
FGD इकाइयों की स्थापना का महत्त्व:
- भारतीय शहरों में दुनिया की कुछ सबसे प्रदूषित वायु हैं। भारत वर्तमान में अगले उच्चतम देश रूस की तुलना में SO2 की मात्रा का लगभग दोगुना उत्सर्जन करता है।
- थर्मल यूटिलिटीज, जो देश की 75% बिजली का उत्पादन करती हैं, सल्फर और नाइट्रस-ऑक्साइड के लगभग 80% औद्योगिक उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं, जो फेफड़ों की बीमारियों, अम्ल वर्षा और स्मॉग का कारण बनती हैं।
- निर्धारित मानदंडों के कार्यान्वयन में हर एक दिन की देरी और FGD प्रणाली को स्थापित नहीं करने से हमारे समाज को भारी स्वास्थ्य और आर्थिक नुकसान हो रहा है।
- भारत में हानिकारक SO2 प्रदूषण के उच्च स्तर को बहुत जल्द टाला जा सकता है क्योंकि फ्लू -गैस डिसल्फराइज़ेशन सिस्टम चीन में उत्सर्जन के स्तर को कम करने में सफल साबित हुए हैं , जो 2005 में उच्चतम स्तर के लिये जिम्मेदार देश था।
सल्फर डाइऑक्साइड प्रदूषण
- स्रोत:
- वातावरण में SO2 का सबसे बड़ा स्रोत विद्युत संयंत्रों और अन्य औद्योगिक गतिविधियों में जीवाश्म ईंधन का दहन है।
- SO2 उत्सर्जन के छोटे स्रोतों में अयस्कों से धातु निष्कर्षण जैसी औद्योगिक प्रक्रियाएँ, प्राकृतिक स्रोत जैसे- ज्वालामुखी विस्फोट, इंजन, जहाज़ और अन्य वाहन तथा भारी उपकारणों में उच्च सल्फर ईंधन सामग्री का प्रयोग शामिल है।
- प्रभाव:
- SO2 स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को प्रभावित कर सकती है।
- SO2 के अल्पकालिक जोखिम मानव श्वसन प्रणाली को नुकसान पहुंँचा सकते हैं और साँस लेने में कठिनाई उत्पन्न कर सकते हैं। विशेषकर बच्चे SO2 के इन प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- WHO के अनुसार, यह प्रति वर्ष विश्व स्तर पर 2 मिलियन लोगों की मौत SO2 के कारण होती है।
- SO2 का उत्सर्जन हवा में SO2 की उच्च सांद्रता के कारण होता है, सामान्यत: यह सल्फर के अन्य ऑक्साइड (SOx) का निर्माण करती है। (SOx) वातावरण में अन्य यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया कर छोटे कणों का निर्माण कर सकती है। ये पार्टिकुलेट मैटर (PM) प्रदूषण को बढ़ाने में सहायक हैं।
- छोटे प्रदूषक कण फेफड़ों में प्रवेश कर स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
- यह अम्लीय वर्षा का कारण भी बन सकता है जिससे व्यापक पर्यावरणीय क्षति होती है।
- भारत के संदर्भ में:
- भारत द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट (चार वर्षों में सबसे अधिक) दर्ज की गई है।
- फिर भी भारत इस दौरान SO2 का सबसे बड़ा उत्सर्जक बना रहा।
- वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) को अल्पकालिक अवधि (24 घंटे तक) के लिये व्यापक राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक निर्धारित करने हेतु आठ प्रदूषकों (PM10, PM2.5, NO2, SO2, CO, O3, NH3 तथा Pb) के आधार पर विकसित किया गया है।
- भारत द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में ग्रीनपीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (Centre for Research on Energy and Clean Air) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में वर्ष 2018 की तुलना में लगभग 6% की गिरावट (चार वर्षों में सबसे अधिक) दर्ज की गई है।
प्रिलिम्स प्रश्न. ताम्र प्रगलन संयंत्रों को लेकर चिंता क्यों है?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
Q. भट्टी के तेल के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
मेन्स: Q. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश (AQGs) के प्रमुख बिंदुओं का वर्णन कीजिये। ये वर्ष 2005 में इसके पिछले अद्यतन से किस प्रकार भिन्न हैं? संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में कौन से परिवर्तन आवश्यक हैं? (2021) Q. सरकार द्वारा किसी परियोजना को मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन तेज़ी से किये जा रहे हैं। कोयला खदानों के नजदीक स्थित कोयले से चलने वाले तापीय संयंत्र के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2014) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय इतिहास
मोहनजोदड़ो: यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल
प्रिलिम्स के लिये:सिंधु घाटी सभ्यता, विश्व विरासत का महत्त्व, पाकिस्तान में बाढ़। मेन्स के लिये:मोहनजोदड़ो, यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल। |
चर्चा में क्यों?
पाकिस्तान के पुरातत्व विभाग ने चेतावनी दी है कि सिंध प्रांत में भारी वर्षा से मोहनजोदड़ो के विश्व धरोहर का दर्जा खतरे में पड़ गया है।
विरासत स्थल को खतरा:
- 16 और 26 अगस्त, 2022 के बीच, मोहनजोदड़ो के पुरातात्विक खंडहरों में रिकॉर्ड 779.5 मि.मी. वर्षा हुई, जिसके परिणामस्वरूप "स्थल को काफी नुकसान हुआ और स्तूप गुंबद की सुरक्षा दीवार सहित कई दीवारें आंशिक रूप से गिर गईं" है।
- मुनीर क्षेत्र, स्तूप, महान स्नानागार और इन खंडहरों के अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल प्राकृतिक आपदा से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
- यह आशंका है कि मोहनजोदड़ो के खंडहरों को विश्व विरासत सूची से हटाया जा सकता है, इसलिये सिंध के अधिकारियों ने स्थल पर संरक्षण और बहाली के कार्य पर तत्काल ध्यान देने का आह्वान किया है।
मोहनजोदड़ो के प्रमुख बिंदु:
- मोहनजोदड़ो का स्थल, जिसका शाब्दिक अर्थ है 'मृतकों का टीला' सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) के महत्त्वपूर्ण स्थलों में से एक है।
- सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल पाकिस्तान-ईरान सीमा के पास बलूचिस्तान में सुत्कागेनडोर से लेकर उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के आलमगीरपुर तक और जम्मू के मांडा से लेकर महाराष्ट्र के दाइमाबाद तक फैले एक बड़े क्षेत्र में पाए गए हैं।
- भारत में हड़प्पा सभ्यता के अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल गुजरात में लोथल, धौलावीरा और राजस्थान में कालीबंगा हैं।
- हड़प्पा के साथ-साथ मोहनजोदड़ो भी कांस्ययुगीन (3300 ईसा पूर्व से 1200 ईसा पूर्व) शहरी सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध स्थल है।
- यह लगभग 3,300 ईसा पूर् और 1,300 ईसा पूर्व के बीच सिंधु घाटी में विकसित हुआ, इसका 'परिपक्व' चरण 2,600 ईसा पूर्व से 1,900 ईसा पूर्व तक था।
- दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य में सभ्यता का पतन जलवायु परिवर्तन जैसे कारणों से माना जाता है।
- मोहनजोदड़ो की खुदाई वर्ष 1920 में शुरू हुई थी और वर्ष 1964-65 तक चरणों में जारी रही, अभी भी केवल एक छोटे से हिस्से की खुदाई की गई है।
- मोहनजोदड़ो की प्रागैतिहासिक प्राचीनता की खोज वर्ष 1922 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के रखाल दास बनर्जी ने की थी।
- यह स्थल ईंट से बने फुटपाथ, विकसित जल आपूर्ति, जल निकासी, शौचालयों, विशाल अन्नागार और स्नानागार एवं स्मारक भवनों के साथ परस्पर समकोण पर काटती हुई सड़कों तथा विस्तृत नगर नियोजन प्रणाली के लिये प्रसिद्ध है।
- अपने चरमोत्कर्ष और अत्यधिक विकसित सामाजिक संगठन के साथ इसके अनुमानित निवासियों की संख्या 30,000 से 60,000 के मध्य थी
- कराची से 510 किलोमीटर उत्तर पूर्व और सिंध में लरकाना से 28 किलोमीटर दूर बिना पकी ईंट के विशाल शहर के खंडहरों को वर्ष 1980 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी।
यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल:
- परिचय:
- विश्व धरोहर/विरासत स्थल का आशय एक ऐसे स्थान से है, जिसे यूनेस्को द्वारा उसके विशिष्ट सांस्कृतिक अथवा भौतिक महत्त्व के कारण सूचीबद्ध किया गया है।
- विश्व धरोहर स्थलों की सूची को ‘विश्व धरोहर कार्यक्रम’ द्वारा तैयार किया जाता है, यूनेस्को की ‘विश्व धरोहर समिति’ द्वारा इस कार्यक्रम को प्रशासित किया जाता है।
- यह सूची यूनेस्को द्वारा वर्ष 1972 में अपनाई गई ‘विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण से संबंधित अभिसमय’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संधि में सन्निहित है।
- सूचीबद्ध स्थलों की संख्या:
- इसके 167 सदस्य देशों में लगभग 1,100 यूनेस्को सूचीबद्ध स्थल हैं।
- वर्ष 2021 में यूनाइटेड किंगडम में 'लिवरपूल मैरीटाइम मर्केंटाइल सिटी' को "संपत्ति के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य को व्यक्त करने वाली विशेषताओं के अपरिवर्तनीय नुकसान" के कारण विश्व विरासत सूची से हटा दिया गया था।
- वर्ष 2007 में यूनेस्को पैनल ने ओमान में अरब ओरिक्स अभयारण्य को अवैध शिकार और निवास स्थान के क्षरण पर चिंताओं के बाद और वर्ष 2009 में जर्मनी के ड्रेसडेन में एल्बे घाटी को एल्बे नदी के पार वाल्डस्च्लोसेचेन रोड ब्रिज के निर्माण के बाद इस सूची से हटा दिया ।
- भारत के स्थल:
- भारत में कुल 3691 स्मारकों और स्थल हैं। इनमें से 40 यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित हैं।
- जिसमें ताजमहल, अजंता और एलोरा की गुफाएँ शामिल हैं। विश्व धरोहर स्थलों में असम में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान जैसे प्राकृतिक स्थल भी शामिल हैं।
- गुजरात में हड़प्पा शहर धोलावीरा भारत के 40वें विश्व धरोहर स्थल के रूप में।
- रामप्पा मंदिर (तेलंगाना) भारत का 39वाँ विश्व धरोहर स्थल था।
- कंचनजंघा राष्ट्रीय उद्यान, सिक्किम को भारत का पहला और एकमात्र "मिश्रित विश्व विरासत स्थल" के रूप में चिह्नित किया गया है।
- वर्ष 2022 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने वर्ष 2022-2023 के लिये विश्व विरासत स्थल के रूप में विचार करने के लिये होयसल मंदिरों के पवित्र समागम को नामित किया।
यूनेस्को (UNESCO):
- परिचय:
- यूनेस्को को वर्ष 1945 में स्थायी शांति के निर्माण के साधन के रूप में ‘मानव जाति में बौद्धिक और नैतिक एकजुटता’ विकसित करने हेतु स्थापित किया गया था।
- इसका मुख्यालय पेरिस, फ्रांँस में स्थित है।
- यूनेस्को की प्रमुख पहलें
प्रश्न: निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सिंधु सभ्यता के लोगों की विशेषता/विशेषताएंँ प्रदर्शित करता है/करते हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
मेन्स प्रश्न: सिंधु घाटी सभ्यता की शहरी नियोजन और संस्कृति ने किस हद तक वर्तमान शहरीकरण को इनपुट प्रदान किया है? चर्चा कीजिये। (2014) |
जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु क्षतिपूर्ति
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु क्षतिपूर्ति, प्रदूषक भुगतान सिद्धांत, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC), मानवीय प्रयासों के समन्वय हेतु संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOCHA), वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र (WIM)। मेन्स के लिये:जलवायु क्षतिपूर्ति, जलवायु परिवर्तन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पाकिस्तान अपने इतिहास की सबसे भीषण बाढ़ आपदा का सामना कर रहा है, इसलिये उसने उन विकसित देशों से क्षतिपूर्ति या मुआवजे की मांग करना शुरू कर दिया है जो मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
जलवायु क्षतिपूर्ति
- जलवायु क्षतिपूर्ति विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन की दिशा में किये गए ऐतिहासिक योगदानों को संबोधित करने के साधन के रूप में भुगतान किये जाने वाले धन के आह्वान को संदर्भित करती है।
जलवायु परिवर्तन हेतु ज़िम्मेदार:
- ऐतिहासिक उत्सर्जन: पश्चिमी देशों की ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड सैकड़ों वर्षों तक वातावरण में बनी रहती है और यह इस कार्बन डाइऑक्साइड का संचय है जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।
- प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle): प्रदूषक भुगतान सिद्धांत की अवधारणा प्रदूषक को न केवल उपचारात्मक कार्रवाई की लागत का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी बनाती है, बल्कि उनके कार्यों के कारण पर्यावरणीय क्षति के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति करने हेतु भी उत्तरदायी बनाती है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ, यूनाइटेड किंगडम सहित, वर्तमान समय के दौरान सभी उत्सर्जन का 50% से अधिक हिस्सा है।
- वर्तमान समय के दौरान सभी उत्सर्जन का 50% से अधिक हिस्सा यूनाइटेड किंगडम सहित संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ का है।
- यदि रूस, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल किया जाए, तो संयुक्त योगदान 65% या सभी उत्सर्जन के लगभग दो-तिहाई से अधिक हो जाता है।
- इसके अलावा भारत जैसा देश, जो वर्तमान में तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है, ऐतिहासिक उत्सर्जन का केवल 3% है। जबकि, चीन, जो पिछले 15 वर्षों से अधिक समय से दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, ने वर्ष 1850 के बाद से कुल उत्सर्जन में लगभग 11% का योगदान दिया है।
- वैश्विक प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गरीब देशों पर उनकी भौगोलिक स्थिति और सामना करने की कमजोर क्षमता के कारण बहुत अधिक गंभीर हैं।
- इन सबसे होने वाली क्षति मुआवजे की मांगों को जन्म दे रहा है, जिन देशों द्वारा अतीत में उत्सर्जन नगण्य योगदान रहा है और संसाधनों की कमी है, वे जलवायु परिवर्तन के सबसे विनाशकारी प्रभावों का सामना कर रहे हैं।
- भारत पर प्रभाव: वर्ष 2020 में भारत और बांग्लादेश में चक्रवात अम्फान से 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में निर्धारित जलवायु उत्तरदायित्व:
- उत्तरदायित्व की स्वीकृति: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) , 1994 का अंतर्राष्ट्रीय समझौता जो जलवायु परिवर्तन से का सामना करने के वैश्विक प्रयासों के व्यापक सिद्धांतों को निर्धारित करता है, स्पष्ट रूप से राष्ट्रों की इस विभेदित ज़िम्मेदारी को स्वीकार करता है।
- यह स्पष्ट करता है कि विकसित देशों को विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये वित्त और प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण करना चाहिये।
- इस जनादेश के परिणामस्वरूप विकसित देश प्रत्येक वर्ष विकासशील देशों को 100 बिलियन अमेरीकी डॉलर का अनुदान देने पर सहमत हुए।
- वर्तमान स्थिति: 100 बिलियन अमेरीकी डॉलर के अनुदान की प्रतिबद्धता अभी पूरा नहीं हुई है।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिये तैयार किये गए मानवीय प्रयासों के समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOCHA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु से जुड़ी आपदाओं से संबंधित वार्षिक वित्त पोषण अनुरोध वर्ष 2019 और 2021 के मध्य तीन वर्ष की अवधि में औसतन 15.5 बिलियन अमेरीकी डॉलर का था।
- अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने उत्सर्जन के कारण "अन्य देशों को हानि में 1.9 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर से अधिक की क्षति" का अनुमान लगाया है।
- गैर-आर्थिक हानि: जीवन की हानि, विस्थापन और प्रवासन, स्वास्थ्य प्रभाव तथा सांस्कृतिक विरासत को नुकसान सहित गैर-आर्थिक नुकसान शामिल हैं।
- आर्थिक हानि: जलवायु परिवर्तन से अपरिहार्य वार्षिक आर्थिक नुकसान वर्ष 2030 तक 290 बिलियन अमेरीकी डॉलर से 580 बिलियन अमेरीकी डॉलर के बीच कहीं पहुँचने का अनुमान लगाया गया था।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिये तैयार किये गए मानवीय प्रयासों के समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOCHA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु से जुड़ी आपदाओं से संबंधित वार्षिक वित्त पोषण अनुरोध वर्ष 2019 और 2021 के मध्य तीन वर्ष की अवधि में औसतन 15.5 बिलियन अमेरीकी डॉलर का था।
- यह स्पष्ट करता है कि विकसित देशों को विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये वित्त और प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण करना चाहिये।
- पहल: विकासशील देश और गैर-सरकारी संगठन अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ता में हानि और क्षति के लिये एक अलग चैनल स्थापित करने में सफल रहे।
- इसलिये हानि और भरपाई के लिये वारसॉ अंतर्राष्ट्रीय तंत्र (WIM), 2013 में स्थापित, जलवायु आपदाओं से प्रभावित विकासशील देशों को क्षतिपूर्ति करने की आवश्यकता की पहली औपचारिक स्वीकृति थी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ):प्रश्न 'हरित जलवायु निधि (ग्रीन क्लाइमेट फण्ड) के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? 1- यह विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन का सामना करने हेतु अनुकूलन और न्यूनीकरण पद्धतियों में सहायता देने के आशय से बनी है। नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: A व्याख्या:
|