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शासन व्यवस्था

द एडवोकेट्स एक्ट, 1961

  • 02 Nov 2019
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961, बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया

मेन्स के लिये:

‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के विभिन्न प्रावधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (Bar Council of Delhi) ने फेसबुक, व्हाट्सएप तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर विज्ञापन देने वाले अधिवक्ताओं को कदाचार संबंधी नोटिस जारी किये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • बार काउंसिल ऑफ़ दिल्ली द्वारा जारी किये गए नोटिस में यह भी कहा गया है कि बार काउंसिल के नियमों का उल्लंघन करने वाले अधिवक्ता पर ‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 (The Advocates Act, 1961) के प्रावधानों के तहत कार्रवाई की जाएगी।

भारत में अधिवक्ताओं को विज्ञापन की अनुमति प्रतिबंधित करने वाले प्रावधान:

  • ‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 49 की उपधारा 1(c), ‘बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया’ को अधिवक्ता के पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों पर नियम बनाने की शक्ति प्रदान करती है।
  • बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया (Bar Council of India) द्वारा निर्धारित किये गए ‘अधिवक्ता के व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार मानक’ के खंड 4 की धारा 36 के अनुसार अधिवक्ता के व्यावसायिक आचरण संबंधी निम्नलिखित नियम बनाए गए हैं-
    • एक अधिवक्ता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विज्ञापन और व्यवसाय को लुभाने वाले कार्य नहीं करेगा चाहे उसका माध्यम सर्क्युलर, विज्ञापन, दलाल, व्यक्तिगत संचार ही क्यों न हो। कोई भी अधिवक्ता किसी अख़बार की ऐसी टिप्पणियों तथा फोटोग्राफ का उपयोग नहीं करेगा, जिनका संबंध उस अधिवक्ता से जुड़े किसी मामले से हो।
    • किसी भी अधिवक्ता के साइन-बोर्ड या नेमप्लेट उचित आकर की होनी चाहिए तथा साइन-बोर्ड, नेमप्लेट और लेखन सामग्री से यह संकेत नहीं मिलना चाहिये कि वह किसी बार काउंसिल या किसी एसोसिएशन का अध्यक्ष या सदस्य है या वह किसी व्यक्ति तथा संस्था से किसी विशेष कारण के बिना जुड़ा हुआ है या वह कभी जज या महाधिवक्ता रहा है।
    • अगर कोई अधिवक्ता इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उस अधिवक्ता पर द एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 35 के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। इस धारा के अनुसार, किसी भी राज्य की बार काउंसिल को यह अधिकार है कि वह किसी शिकायत को ख़ारिज कर सकती है। साथ ही अधिवक्ता को फटकार लगाने के साथ-साथ उसे सीमित समय के लिये प्रैक्टिस से वंचित कर सकती है तथा उसका नाम राज्य की अधिवक्ता सूची से बाहर भी कर सकती है।

अन्य देशों में प्रावधान:

  • यूनाइटेड किंगडम में सॉलीसिटर्स ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ 2007 (Solicitors’ Code of Conduct 2007) के प्रावधानों के अनुसार, अधिवक्ताओं को अपनी फर्म तथा प्रैक्टिस का विज्ञापन करने की अनुमति है।
  • सिंगापुर के लीगल प्रोफेशन एक्ट ( Legal Profession Act), यूरोपियन यूनियन (European Union) के ‘काउंसिल ऑफ बार एंड लॉ सोसायटीज़ ऑफ़ यूरोप’ के अनुसार, अधिवक्ताओं को अपनी फर्म तथा प्रैक्टिस का विज्ञापन करने की अनुमति है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 1977 के बेट्स बनाम स्टेट बार ऑफ एरिज़ोना (Bates vs State Bar of Arizona) ऐतिहासिक मामले में अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिवक्ताओं द्वारा दी जाने वाली सेवाओं का विज्ञापन करने के अधिकार को बरकरार रखा तथा कहा कि इस तरह के विज्ञापनों के लिये अलग -अलग राज्यों के बार एसोशिएसन नियम तय करेंगे।
  • ऑस्ट्रेलिया में भी कुछ प्रतिबंधों के साथ अधिवक्ताओं को विज्ञापन करने का अधिकार है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया:

(Bar Council of India)

  • बार काउंसिल ऑफ इंडिया भारतीय वकालत को विनियमित तथा प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये ‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत बनाया गया एक सांविधिक निकाय है।
  • यह संस्था अधिवक्ताओं के लिये पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों को तय करती है तथा अपने अनुशासनात्मक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके विनियमन करती है।
  • यह संस्था कानूनी शिक्षा के मानक तय करती है तथा ऐसे विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करती है जिनके द्वारा प्रदान की जाने वाली कानूनी डिग्री एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिये योग्य होती है।
  • यह संस्था अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और उनके हितों की रक्षा करती है तथा उनके लिये प्रारंभ की गई कल्याणकारी योजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये कोष का सृजन करती है।

‘द’ एडवोकेट्स एक्ट, 1961:

  • ‘द’ एडवोकेट्स एक्ट वर्ष 1961 में अधिनियमित हुआ था।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत बार काउंसिल ऑफ इंडिया, स्टेट बार काउंसिल की परिभाषा, स्थापना तथा उनके कार्यों तथा उनसे जुड़े अन्य प्रावधानों के बारे में चर्चा की गई है।
  • इस अधिनियम में अधिवक्ता की परिभाषा तथा उसके विभिन्न स्तरों के बारे में चर्चा की गई है। यह अधिनियम अधिवक्ताओं के आचरण और योग्यताओं तथा निर्योग्यताओं के बारे में प्रावधान करता है।
  • यह अधिनियम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और स्टेट बार काउंसिल की सूची में नामांकन की विधि, एक सूची से दूसरी सूची में स्थानांतरण की विधि के बारे में चर्चा करता है।

स्रोत-द इंडियन एक्सप्रेस

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