नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 07 Aug, 2020
  • 42 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

नीतिगत दरों में अपरिवर्तन: कारण और प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये

मौद्रिक नीति, मौद्रिक नीति के विभिन्न साधन

मेन्स के लिये

मौद्रिक नीति में परिवर्तन और अर्थव्यवस्था पर उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली ‘मौद्रिक नीति समिति’ की बैठक में प्रमुख मौद्रिक नीतिगत दरों को यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया है। 

प्रमुख बिंदु

  • रिज़र्व बैंक ने रेपो दर (Repo Rate) को 4 प्रतिशत पर तथा सीमांत स्थायी सुविधा दर (Marginal Standing Facility Rate) और बैंक दर (Bank Rate) को 4.25  प्रतिशत पर यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया है। 
    • साथ ही केंद्रीय बैंक ने रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) को 3.35 प्रतिशत पर बनाए रखा है।
  • ज्ञात हो कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने इस वर्ष फरवरी माह से अब तक नीतिगत दरों में कुल 115 आधार अंकों की गिरावट की है।
    • फरवरी 2019 से अब तक भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नीतिगत दरों में 250 आधार अंकों की गिरावट की है।

अपरिवर्तन का कारण

  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) द्वारा मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति इस वर्ष जून माह में बढ़कर 6.09 प्रतिशत हो गई, जो कि मार्च माह में 5.84 प्रतिशत थी।
  • इसी के साथ जून माह में खुदरा मुद्रास्फीति भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के 2-6 प्रतिशत के लक्ष्य को पार कर गई है।
  • संभवतः यही कारण है कि भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में सर्वसम्मति से नीतिगत दरों में बदलाव न करने का निर्णय लिया गया है।
  • इसके अलावा रिज़र्व बैंक घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति को लेकर भी काफी चिंतित है।
  • महामारी के बीच मुद्रास्फीति की अनिश्चितता और अर्थव्यवस्था की कमज़ोर स्थिति ने देश के केंद्रीय बैंक को नीतिगत दरों को यथावत बनाए रखने के लिये मजबूर किया है।
  • संभव है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के नीति-निर्माता नीतिगत दरों में कमी करने की बची हुई संभावना को भविष्य में आने वाली अनिश्चितताओं से निपटने पर प्रयोग करने पर विचार कर रहे हैं।

विषम परिस्थिति में अर्थव्यवस्था

  • वर्तमान में रिज़र्व बैंक एक विषम परिस्थिति का सामना कर रहा है, अर्थव्यवस्था में जहाँ एक ओर महँगाई बढ़ती जा रही है, वहीं सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर कम होती जा रही है।
  • ऐसा इसलिये हो रहा है, क्योंकि महामारी ने एक ओर मांग को तो प्रभावित किया ही है, किंतु दूसरी ओर इसने अर्थव्यवस्था में आपूर्ति को भी बाधित किया है। नतीजतन, अर्थव्यवस्था में दो परिस्थितियाँ एक साथ देखने को मिल रही हैं।
  • यह सत्य है कि मुद्रास्फीति को रोकने के लिये रिज़र्व बैंक को ब्याज़ दरों में वृद्धि करनी चाहिये, और सामान्य परिस्थितियों में RBI द्वारा ऐसा किया भी जाता, किंतु इस समय ब्याज़ दरों में वृद्धि करना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये विनाशकारी साबित हो सकता है, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर प्रभाव पड़ेगा।
  • हालाँकि RBI ब्याज़ दरों में कटौती भी नहीं कर सकता है, क्योंकि जून माह में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 6.09 प्रतिशत पर पहुँच गई है, इस प्रकार यदि RBI ब्याज़ दर में कटौती करता है तो खुदरा मुद्रास्फीति में और अधिक वृद्धि हो सकती है, जिससे देश के गरीब और संवेदनशील वर्ग के समक्ष बड़ी चुनौती उत्पन्न हो सकती है। 
  • ऐसी स्थिति में नीतिगत दरों को यथावत बनाए रखना ही सबसे बेहतर विकल्प होगा। 

पूर्व में नीतिगत दरों में कटौती

  • RBI ने दावा किया है कि फरवरी 2019 से रेपो दर में 250 आधार अंकों की संचयी कमी ने बॉण्ड, क्रेडिट और मुद्रा बाज़ारों में ब्याज दरों और अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रभाव को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
  • गौरतलब है कि मई माह में मौद्रिक नीति समिति ने रेपो रेट में 40 आधार अंकों की कटौती करते हुए इसे 4 प्रतिशत पर पहुँचा दिया था।
  • RBI का कहना है कि रेपो रेट में कमी किये जाने के कारण बैंकों ने भी अपने ब्याज़ दरों में कमी की है, जिसका लाभ आम ग्राहकों को भी मिला है।

अर्थव्यवस्था का आकलन

  • भारतीय रिज़र्व बैंक का आकलन है कि जहाँ अप्रैल-मई माह में देशव्यापी लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई थी, वहीं बीते कुछ दिनों में अनलॉक के कारण आर्थिक गतिविधियाँ पुनः शुरू हो गई हैं।
    • हालाँकि COVID-19 संक्रमण से संबंधित ताज़ा आँकड़ों ने राज्यों को एक बार पुनः नए सिरे से लॉकडाउन लागू करने के लिये मजबूर कर दिया है।
  • RBI समेत कई अन्य विशेषज्ञ संस्थानों का मानना है कि खरीफ की बुआई के साथ  ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रिकवरी होने की उम्मीद है। 
  • वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये समग्र तौर पर वास्तविक GDP वृद्धि दर नकारात्मक होने की उम्मीद है। RBI का मत है कि महामारी को जितना जल्दी रोक जाएगा, अर्थव्यवस्था के लिये उतना ही अच्छा होगा।
  • RBI को उम्मीद है की वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही के दौरान मुद्रास्फीति में कुछ कमी देखने को मिलेगी। जून 2020 में हेडलाइन मुद्रास्फीति 5.8 प्रतिशत से बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गई है, हालाँकि अच्छा मानसून और खरीफ फसल आने वाले दिनों में खाद्य कीमतों को कम कर सकते हैं।

तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के लिए ऋण पुनर्गठन ढाँचा 

  • गौरतलब है कि RBI द्वारा घोषित ऋण भुगतान के स्थगन की अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो रही है, RBI का अनुमान है कि इस अवधि की समाप्ति के बाद गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में काफी वृद्धि दर्ज की जा सकती है।
  • RBI की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि आर्थिक स्थितियाँ और अधिक बिगड़ती हैं, तो गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) अनुपात 14.7 प्रतिशत तक भी पहुँच सकता है।
  • महामारी से प्रभावित तनावग्रस्त क्षेत्रों के लिये एक बड़ी राहत के रूप में RBI ने घोषणा की है कि तनावग्रस्त MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) उधारकर्त्ता 31 मार्च, 2021 तक ऋण के पुनर्गठन (Restructuring of Loans) के लिये पात्र होंगे, हालाँकि यह तभी होगा जब उनके खाते को 1 जनवरी, 2020 तक 'मानक’ (Standard) के रूप में वर्गीकृत किया गया हो।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हिरोशिमा परमाणु बमबारी की 75वीं वर्षगांठ

प्रीलिम्स के लिये:

हिरोशिमा परमाणु बमबारी 

मेन्स के लिये:

परमाणु सुरक्षा

चर्चा में क्यों?

6 अगस्त, 2020 को हिरोशिमा परमाणु बमबारी की 75वीं वर्षगांठ के रूप में चिन्हित किया गया है। इस अवसर पर जापान सरकार द्वारा आयोजित किये जाने वाले कई कार्यक्रमों को COVID-19 महामारी के कारण रद्द कर दिया गया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • 6 अगस्त और 9 अगस्त, 1945 को जापान के हिरोशिमा (Hiroshima) एवं नागासाकी (Nagasaki) पर अमेरिका ने परमाणु बम से हमला किया था जिसमें क्रमश: 1,40,000 और 74,000 लोग मारे गए थे।
  • जबकि 2,00,000 लोग या जो इन दोनों शहरों के बम विस्फोटों से बच निकले उनमें से अधिकांश विकिरण प्रभाव में आ गए जिन्हें हिबाकुशा (Hibakusha) कहा गया।

परमाणु खतरों के प्रति सुभेद्यता:

उपलब्धता:

  • परमाणु युग की शुरुआत के बाद से 1,26,000 से अधिक परमाणु हथियार बनाए गए हैं, उनमें से 2,000 से अधिक का उपयोग विभिन्न प्रकार के परमाणु परीक्षण करने में किया गया है। इससे पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को गंभीर तथा दीर्घकालिक नुकसान होता है।

व्यापक नुकसान:

  • वर्तमान में उपलब्ध परमाणु हथियारों में से कुछ का उपयोग नागरिक आबादी के खिलाफ किया जाता है, तो इससे होने वाले नुकसान की हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
  • व्यापक पैमाने पर नुकसान पहुँचाने के लिये दुनिया के किसी भी लक्ष्य के खिलाफ परमाणु हथियारों को किसी भी समय लॉन्च किया जा सकता है।

सुरक्षा का अभाव:

  • परमाणु हथियारों के हमले के खिलाफ खुद को बचाने का कोई वास्तविक तरीका नहीं है, चाहे इन हथियारों का प्रयोग जानबूझकर, अनजाने में, या गलती से ही क्यों न किया जाए। 

व्यापक पहुँच:

  • 1950 के दशक के अंत में बैलिस्टिक मिसाइलों का आविष्कार हुआ जिन्हें एक बार लॉन्च होने के बाद रोकना असंभव सा है। वर्तमान में बैलिस्टिक मिसाइलों की पहुँच विश्व के प्रत्येक क्षेत्र तक है। ‘बैलिस्टिक मिसाइल सुरक्षा प्रणालियाँ’ भी इन परमाणु हमलों को रोकने में पूरी तरह सक्षम नहीं हैं। 

परमाणु संपन्नता:

  • वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांँस, चीन, इज़रायल, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों से संपन्न है। 
  • मुख्यत: परमाणु हथियार संपन्न देश अन्य परमाणु हथियार संपन्न देशों के लक्ष्य माने जाते हैं, लेकिन गैर-परमाणु हथियार देश भी परमाणु हथियारों के प्रति उतने ही सुभेद्य हैं। 

अवरोध का विचार (Idea of Deterrence):

अर्थ:

  • अवरोध या डेटरेंस का सामान्य अर्थ है किसी हमले को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से भय, विशेष रूप से दंड और सैन्य शक्ति के द्वारा किसी आपराधिक गतिविधि को रोकना।
  • परमाणु हथियारों के संबंध में इसका अर्थ है; अगर आपको पता है कि आपके दुश्मन के पास बड़ी मात्रा में परमाणु हथियार और परमाणु क्षमता है तथा दुश्मन आपके देश के आधे हिस्से को कुछ ही समय में पूरी तरह से नष्ट कर सकता है, तो आप उस देश के खिलाफ युद्ध करने के अपने निर्णय पर काफी गंभीरता से विचार करेंगे।

महत्त्व:

  • इस विचार के समर्थक लोगों का मानना है कि परमाणु हथियार न केवल खुद को दूसरे देश के परमाणु हथियारों से रक्षा करते हैं, बल्कि युद्ध को भी रोकते हैं और स्थिरता को बढ़ावा देते हैं।
  • परमाणु अवरोध सिद्धांत के विचार के कारण ही शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी और सोवियत संघ ने शांति बनाए रखी। 

नुकसान:

  • कुछ मामलों में अवरोध का सिद्धांत युद्ध के खतरों को आगे बढ़ाने के लिये प्रेरक का कार्य कर सकता है, जैसा कि 'क्यूबा मिसाइल संकट' के दौरान फिदेल कास्त्रो के साथ हुआ था।
  • इसके अलावा, कुछ मामलों में 'अवरोध का विचार' पारंपरिक हथियारों के साथ अधिक आक्रामक युद्ध नीति का कारण हो सकता है।

निष्कर्ष:

  • अवरोध के लिये परमाणु हथियार को रखने और परमाणु युद्ध के लिये इन हथियारों को रखने के बीच व्यावहारिक अंतर होता है। 
  • सभी परमाणु हथियार संपन्न देशों ने इस संभावना को स्वीकार किया है कि अवरोध का विचार विफल हो सकता है तथा कुछ देश तो परमाणु हथियारों का उपयोग करने तथा परमाणु युद्ध लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

भारत की परमाणु नीति:

क्षमता:

  • भारत के पास परमाणु हथियार और व्यापक परमाणु ईंधन चक्र क्षमता दोनों हैं। 
  • SIPRI की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत के पास 130 से 140 परमाणु हथियार थे। इस तरह के अनुमान, आमतौर पर ‘विपन-ग्रेड प्लूटोनियम’ के भंडार के विश्लेषण के आधार पर लगाए जाते हैं। 

प्रमुख समूह:

परमाणु अवरोध:

  • वर्ष 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद भारत सरकार ने एक 'राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड’ की स्थापना की, जिसके द्वारा वर्ष 1999 में भारतीय परमाणु सिद्धांत पर एक ड्राफ्ट रिपोर्ट जारी की गई। 
  • ड्राफ्ट रिपोर्ट में व्यापक रूप से भारत की परमाणु 'पहले प्रयोग नहीं की नीति' (No First Use Policy) और 'विश्वसनीय न्यूनतम परमाणु अवरोध' (Credible Minimum Nuclear Deterrence) की रक्षात्मक मुद्रा को रेखांकित किया गया था।

निष्कर्ष: 

  • वास्तविक दुनिया में योजनाकारों के लिये परमाणु हथियारों पर पूर्ण नियंत्रण रखना संभव नहीं है। हालाँकि परमाणु हथियारों पर पूर्ण नियंत्रण और सुरक्षा में विश्वास करने की इच्छा अति आत्मविश्वास पैदा करती है, जो खतरनाक साबित हो सकता है। अत: परमाणु हथियारों को न्यूनतम करने की दिशा में सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्यूबा और मानवाधिकार परिषद

प्रीलिम्स के लिये

क्यूबा की भौगोलिक स्थिति, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

मेन्स के लिये 

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद  और अमेरिका, क्यूबा में चिकित्सा के माध्यम से सेवा या मानव तस्करी का मुद्दा

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ (Mike Pompeo) ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों से आग्रह किया है कि वे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (Human Rights Council) में शामिल होने के लिये क्यूबा (Cuba) के दावे का समर्थन न करें।

प्रमुख बिंदु

  • अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने क्यूबा द्वारा अन्य देशों को भेजे जाने वाले चिकित्सकों की प्रक्रिया को एक प्रकार की मानव तस्करी के रूप में परिभाषित किया।
    • गौरतलब है कि अन्य देशों में चिकित्सक भेजना क्यूबा के लिये विदेशी मुद्रा का एक मुख्य स्रोत है।
  • ध्यातव्य है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी प्रशासन ने क्यूबा के साथ अपने राजनयिक रिश्तों को लगभग समाप्त कर दिया है।
  • क्यूबा इससे पूर्व वर्ष 2014-2016 और वर्ष 2017-2019 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में शामिल था, क्यूबा ने वर्ष 2021-2023 के लिये क्षेत्रीय रिक्तियों में से एक को भरने के लिये आवेदन किया है।
    • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में सीटों को भौगोलिक रूप से वितरित किया जाता है और वे तीन वर्ष की अवधि के लिये कार्यभार संभालते हैं।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और अमेरिका

  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2018 में अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) से अपना नाम वापस ले लिया था, इस संबंध में राजदूत निक्की हेली (Nikki Haley) ने UNHRC को मानव अधिकारों का मजाक उड़ाने वाले संगठन के रूप में परिभाषित किया था।
  • अमेरिका ने खासतौर पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) द्वारा इज़राइल की निंदा करने वाले प्रस्ताव को अपनाने के लिये परिषद को दोषी ठहराया था।

चिकित्सा के माध्यम से सेवा या मानव तस्करी?

  • गौरतलब है कि क्यूबा में लंबे समय तक आम लोगों की विदेश यात्रा पर प्रतिबंध लगा था और यह अधिकार केवल कुछ विशिष्ट लोगों के पास तक ही सीमित था।
  • क्यूबा ने सबसे पहले वर्ष 1963 में अल्जीरिया में अपने चिकित्सकों का एक समूह भेजा था, क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी का सामना कर रहा था।
  • इसके पश्चात् क्यूबा ने खराब स्वास्थ्य प्रणाली और संकट का सामना कर रहे कई देशों में भी अपने चिकित्सकों के समूह भेजे।
  • 1980 के दशक से पूर्व क्यूबा के ये मिशन पूरी तरह से मानवीय सहायता पर आधारित थे, किंतु 1980 के दशक के बाद क्यूबा के ये चिकित्सा मिशन वाणिज्यिक लाभ प्राप्त करने के लिये किये जाने लगे। 
  • बर्लिन की दीवार गिरने के बाद क्यूबा को सोवियत संघ से प्राप्त होने वाली सब्सिडी में भारी कमी देखने को मिली, जिससे अन्य देशों में चिकित्सकों को भेजने का वाणिज्यिक कार्य और तेज़ होने लगा।
  • क्यूबा की इस नीति ने और अधिक वाणिज्यिक रूप तब ले लिया, जब क्यूबा ने वेनेज़ुएला के साथ वर्ष 2000 और वर्ष 2005 में हस्ताक्षित दो व्यापार समझौतों के हिस्से के रूप में चिकित्सा सहयोग कार्यक्रम (Medical Cooperation Program) स्थापित किया। 
    • गौरतलब है कि ‘ऑयल फॉर डॉक्टर्स’ के नाम से प्रसिद्ध इस कार्यक्रम में प्रतिदिन 105,000 बैरल तेल के बदले में 30,000 से अधिक क्यूबा के चिकित्सकों और दंत चिकित्सकों का वेनेज़ुएला में निर्यात करना शामिल था।
  • एक अनुमान के मुताबिक क्यूबा के 40000 से अधिक चिकित्सक वर्तमान में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कुल 66 देशों में कार्य कर रहे हैं।
  • ध्यातव्य है कि बीते कई वर्षों में इन कार्यक्रमों के दौरान क्यूबा सरकार पर चिकित्सकों के श्रम अधिकारों का उल्लंघन करने और अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों का पालन न करने का आरोप लगा है।
  • इस संबंध में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्राज़ील की सरकार क्यूबा के प्रत्येक चिकित्सक को भोजन, परिवहन और स्वास्थ्य बीमा के अलावा वेतन के तौर पर 4150 अमेरिकी डॉलर का भुगतान करती है, किंतु क्यूबा के चिकित्सकों को असल में केवल 1000 अमेरिकी डॉलर ही प्राप्त होते हैं, और उसमें से भी 600 अमेरिकी डॉलर उन्हें बैंक खाते में जमा किये जाते हैं, जो वे अपना मिशन खत्म होने के बाद ही प्राप्त कर सकते हैं। शेष बची हुई राशि क्यूबा सरकार द्वारा अधिग्रहित कर ली जाती है।
  • इसलिये कई अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ क्यूबा की इस स्थिति को चिकित्सकों की मानव तस्करी के रूप में परिभाषित करते हैं।

अमेरिका-क्यूबा संबंध

  • अमेरिका और क्यूबा के संबंध 1959 के बाद से ही अविश्वास और मनमुटाव से त्रस्त हैं। वर्ष 1959 में ही फिडेल कास्त्रो (Fidel Castro) ने अमेरिका द्वारा समर्थित शासन को उखाड़ फेंका था और वहाँ सोवियत संघ के साथ संबद्ध एक समाजवादी राज्य की स्थापना की थी।
  • इसके पश्चात् अमेरिका ने क्यूबा को आर्थिक और कूटनीतिक रूप से अलग करने संबंधी नीतियों का अनुसरण किया।
  • अमेरिका ने क्यूबा पर किसी अन्य देश की तुलना में लंबे समय तक प्रतिबंध अधिरोपित किये थे। 
  • हालाँकि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने क्यूबा के साथ अमेरिकी संबंधों को सामान्य करने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाए थे, किंतु वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में इस दिशा में कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं किया गया, बल्कि दोनों देशों के संबंध और खराब हो गए हैं।

Cuba

स्रोत: द हिंदू


आपदा प्रबंधन

UNESCO-IOC का ‘सुनामी रेडी’ प्रोग्राम

प्रीलिम्स के लिये: 

UNESCO-IOC का ‘सुनामी रेडी’ प्रोग्राम, 

मेन्स के लिये: 

आपदा से निपटने हेतु किये गये प्रयास तथा आपदा प्रबंधन हेतु संस्थाएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) द्वारा ओडिशा के दो गाँवों को सुनामी से निपटने हेतु तैयारियों के लिये ‘सुनामी रेडी ’ (Tsunami Ready) के रूप में नामित किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • जगतसिंहपुर ज़िले के गंजम और नोलियासाही में वेंकटरायपुर (बॉक्सिपल्ली) को एक वर्चुअल कार्यक्रम के दौरान मान्यता प्रदान (प्रमाण पत्र) की गई है।
  • ओडिशा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Odisha State Disaster Management Authority- OSDMA) ने दो गाँवों में ‘सुनामी रेडी’ प्रोग्राम को लागू किया।
    • OSDMA ने दिशा-निर्देशों के अनुसार, उन गाँवों में संकेतों के कार्यान्वयन के सत्यापन के बाद, उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान कराने हेतु UNESCO-IOC के पास सिफारिश की।
    • OSDMA की सिफारिशों के आधार पर, UNESCO-IOC द्वारा दोनों गाँवों को ‘सुनामी रेडी’ समुदाय के रूप में मान्यता प्रदान कर दी गई है।
  • इस मान्यता के साथ, भारत हिंद महासागर क्षेत्र में ‘सुनामी रेडी’ को लागू करने वाला पहला देश और ओडिशा पहला राज्य बन गया है।
  • सुनामी रेडी’, UNESCO-IOC का एक सामुदायिक प्रदर्शन-आधारित कार्यक्रम है।

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन-अंतर-सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (UNESCO-IOC):

  • UNESCO का अंतर-सरकारी समुद्र विज्ञान आयोग (Intergovernmental Oceanographic Commission- IOC) संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत समुद्री विज्ञान के प्रति समर्पित एक मात्र सक्षम संगठन है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1960 में UNESCO के कार्यकारी स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी।
  • इसने 26 दिसंबर, 2004 को आई सुनामी के बाद ‘भारतीय समुद्र सुनामी चेतावनी और शमन व्यवस्था’ (Indian Ocean Tsunami Warning and Mitigation System- IOTWMS) की स्थापना में मदद की थी।

उद्देश्य:

  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य, सुनामी के दौरान आपातकालीन स्थितियों से निपटने हेतु तटीय समुदाय की तैयारियों में सुधार लाना है। 
  • इससे जन और संपत्ति के नुकसान को कम किया जा सकेगा और UNESCO- IOC की हिंद महासागर सुनामी चेतावनी और शमन प्रणाली के लिये अंतर सरकारी समन्वय समूह (Intergovernmental Coordination Group/Indian Ocean Tsunami Warning and Mitigation System- ICG/IOTWMS) द्वारा निर्धारित सर्वोत्तम अभ्यास संकेतकों को पूरा करने की सामुदायिक तैयारी में एक संरचनात्मक और व्यवस्थित दृष्टिकोण को सुनिश्चित किया जा सकेगा।

कार्यान्वयन एजेंसी:

  • ‘सुनामी रेडी’ और आईओवेव (IOWave) अभ्यासों के कार्यान्वयन को लागू करने और निगरानी के लिये, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा INCOIS के निदेशक की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय बोर्ड की स्थापना की गई है।
  • इस बोर्ड में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA), गृह मंत्रालय, OSDMA, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह आपदा प्रबंधन निदेशालय (Andaman & Nicobar Islands Directorate of Disaster Management- DDM) और INCOIS  के सदस्यों को शामिल किया गया है।

भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र

(Indian National Centre for Ocean Information Services-INCOIS)

  • INCOIS, भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र (Indian Tsunami Early Warning Centre- ITEWC) की भारत को सुनामी संबंधित सलाह/सूचना देने हेतु नोडल एजेंसी है। 
    • INCOIS की स्थापना वर्ष 1999 में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी और यह पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन की एक इकाई है।
  • INCOIS, UNESCO-IOC द्वारा सौंपी गई ज़िम्मेदारी वाले सुनामी सेवा प्रदाताओं के रूप में, हिंद महासागर क्षेत्र (25 देशों) को सुनामी संबंधी सलाह/सूचना भी प्रदान करता है।
  • लोगों में सुनामी संबंधी जागरूकता के लिये, INCOIS नियमित रूप से तटीय राज्यों और ज़िला स्तरीय आपदा प्रबंधन अधिकारियों (Disaster Management Officials- DMOs) के लिये, सुनामी मानक संचालन प्रक्रिया (Tsunami Standard Operating Procedure- SOP) कार्यशालाओं, प्रशिक्षण सत्रों और सेमिनारों का आयोजन करता है।
  • ITEWC और ICG/IOTWMS के समन्वय से INCOIS में  आईओवेव सुनामी मॉक अभ्यास का भी आयोजन किया जाता है।
  • इसके अलावा आपात स्थितियों से निपटने की क्षमताओं को मज़बूती प्रदान करने के लिये वैकल्पिक वर्षों में गृह मंत्रालय, NDMA तथा राज्य आपदा प्रबंधन एजेंसियों (State Disaster Management Agencies- SDMA) के समन्वय से राष्ट्रीय स्तर पर मॉक अभ्यास का आयोजन किया जाता है।

आगे की राह:

  • यदि सुनामी से जोखिम वाले लोगों को समय पर सटीक चेतावनी प्रदान कर दी जाती है, तो वे जीवन रक्षक उपायों को अपना सकते हैं, इससे नुकसान को कम किया जा सकता है और प्रतिक्रिया में तेज़ी लाई जा सकती है।
  • वैज्ञानिकों और आपातकालीन प्रबंधन अधिकारियों के निरंतर प्रयास के माध्यम से, बेहतर सेंसर, सटीक मॉडल और समवर्ती प्रसार के कई उपायों को अपनाकर, सुनामी की चेतावनी और समय-सीमा में पर्याप्त सुधार किया जा सकता है।
  • हालाँकि जोखिम में रहने वाले क्षेत्र के किसी व्यक्ति के लिये सुनामी के बाद सुरक्षित रहना, उसके द्वारा चेतावनी संकेतों को पहचानने, सही निर्णय लेने और जल्द से जल्द कार्यवाही करने की क्षमता पर निर्भर करता है।

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

‘हमारा घर, हमारा विद्यालय’ कार्यक्रम

प्रीलिम्स के लिये:

‘हमारा घर, हमारा विद्यालय कार्यक्रम के प्रमुख बिंदु, प्रज्ञाता, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति

मेन्स के लिये:

‘हमारा घर, हमारा विद्यालय’ कार्यक्रम के प्रमुख घटक तथा नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ऑनलाइन शिक्षा के संबंध में प्रमुख पहलें

चर्चा में क्यों?

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh-MP) के सरकारी विद्यालयों में केवल 30% छात्र ही नियमित रूप से ‘हमारा घर, हमारा विद्यालय’  (Hamara Ghar, Humara Vidyalaya) कार्यक्रम में शामिल हो पा रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘हमारा घर, हमारा विद्यालय’ कार्यक्रम:
    • यह मध्य प्रदेश सरकार के ‘स्कूल शिक्षा विभाग’ (Department of School Education) द्वारा घर पर ही शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शुरू किया गया एक शिक्षण कार्यक्रम है।
    • इसका उद्देश्य COVID-19 महामारी के चलते विद्यालयों के बंद होने के कारण 22 लाख छात्रों तक इस कार्यक्रम की पहुँच को सुनिश्चित करना है।.
    • कार्यक्रम के पीछे मुख्य रूप से इस अवधारणा को सुनिश्चित करना है कि छात्र घर पर नियमित रूप से अध्ययन करते हैं तथा घर पर ही अपने बड़ों द्वारा जीवन कौशल को भी सीखते हैं।
    • इसके तहत मध्य प्रदेश दूरदर्शन द्वारा निश्चित समय पर प्रारूपीय कार्यक्रम (Modular Programme) को प्रसारित किया जाता है। इसके तीन भाग हैं जो पुनर्कथन (Recap), एक नई अवधारणा का वितरण (Delivery of a New Concept) तथा अवधारणा के अभ्यास (Practice of the Concept) पर आधारित हैं।
    • व्हाट्सएप के डिजिटल लर्निंग एनहांसमेंट प्रोग्राम (Digital Learning Enhancement Program- DigiLEP) के माध्यम से वीडियो, प्रैक्टिस शीट तथा क्विज़ के रूप में अध्ययन से संबंधित विभिन्न अवधारणाओं को टीवी कार्यक्रमों के साथ समन्वित किया जाता है।

कार्यक्रम से संबंधित मुद्दे:

  • 18 जुलाई से 25 जुलाई के मध्य यह कार्यक्रम कुल 30% छात्रों तक पहुँचने में सक्षम रहा।
    • 20% छात्र टीवी के माध्यम से तथा 10% छात्र व्हाट्सएप के माध्यम से इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
  • 30% छात्रों के परिवारों के पास अध्ययन सामग्री प्राप्त करने के लिये इंटरनेट कनेक्शन के साथ टीवी या स्मार्टफोन नहीं है।
    • जिन परिवारों में इंटरनेट कनेक्शन वाले स्मार्टफोन का विकल्प उपलब्ध हैं वहाँ  माता-पिता अक्सर स्मार्टफोन को काम के समय अपने साथ ही ले जाते हैं।
  • शेष छात्र सीखने के प्रवाह क्रम को तोड़ते हुए नियमित रूप से इस अध्ययन मॉड्यूल का लाभ उठाने में असमर्थ रहे हैं।
  • अलीराजपुर, बड़वानी एवं झाबुआ जैसे ज़िलों के 89 आदिवासी बहुल ब्लॉकों में छात्रों तक इस कार्यक्रम की पहुँच को सुनिश्चित करना स्वयं में एक बड़ा कार्य है।

सुझाव:

  • छात्रों को 'प्रज्ञाता' दिशा-निर्देशों (PRAGYATA guidelines) के साथ जोड़ते हुए टीवी एवं फोन की उपलब्धता के अनुसार विभिन्न समूहों में विभाजित किया जाना चाहिये।
  • यदि किसी परिवार के पास फोन है, तो इसका उपयोग उसके सभी बच्चों द्वारा अपनी पढ़ाई के लिये किया जाना चाहिये।
  • जिनके पास टीवी है उन्हें दूरदर्शन पर निश्चित निर्धारित समय पर प्रसारण/टेलीकास्ट को देखना होगा।

आगे की राह:

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (New National Education Policy- NEP) में ‘प्रौद्योगिकी का समान उपयोग’ (equitable use of technology) सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल शिक्षा पर एक खंड/भाग को जोड़ा गया है। निजी संस्थान या प्राइवेट प्लेयर्स कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (Corporate Social Responsibility- CSR) के माध्यम से छात्रों के लिये ई-संसाधन की पहुँच एवं उपलब्धता को सुनिश्चित कर सकते हैं।

शिक्षा के अधिकार की परिभाषा को ऑनलाइन शिक्षा तक विस्तारित एवं बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि यह ज्ञान एवं सूचना तक लोगों के जुड़ाव तथा पहुँच के महत्व को संबोधित कर सके।

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

भारत मौसम विज्ञान विभाग का पूर्वानुमान

प्रीलिम्स के लिये:

भारत मौसम विज्ञान विभाग, ला नीना, एल-नीनो

मेन्स के लिये:

भारतीय मानसून पर ला नीना, एल-नीनो का प्रभाव 

चर्चा में क्यों? 

भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) के अनुसार , मानसून के उत्तरार्ध में दीर्घावधि औसत वर्षा के 104% होने की संभावना व्यक्त की गई है। यह  औसत वर्षा,  वर्षा की "सामान्य" सीमा के अंतर्गत आती है।

प्रमुख बिंदु:

  • दीर्घावधि औसत (Long Period Average-LPA): यह जून से सितंबर माह के दौरान दर्ज की गई वर्षा की औसत मात्रा है जिसकी गणना 50 वर्ष की अवधि के दौरान की जाती है तथा हर वर्ष मानसून के मौसम के लिये वर्षा की मात्रा का पूर्वानुमान लगाने के लिये इसे एक बेंचमार्क के रूप में रखा जाता है।
    • भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा देश के प्रत्येक समान क्षेत्र के लिये वर्षा का एक स्वतंत्र दीर्घावधि औसत (Long Period Average) निर्धारित किया गया है जिसकी निर्धारित सीमा 71.6 सेमी से 143.83 सेमी तक है।
  • भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर वर्षा की मात्रा के आधार पर पाँच वर्षा वितरण श्रेणियाँ (Rainfall Distribution Categories) निर्धारित की गई है जो इस प्रकार है-
    • सामान्य/सामान्य के लगभग (Normal or Near Normal): जब वास्तविक वर्षा का प्रतिशत स्तर  वर्षा के LPA का +/- 10% हो,  अर्थात LPA के 96-104% के मध्य।
    • सामान्य से कम (Below Normal): जब वास्तविक वर्षा का स्तर LPA के 10% से कम हो अर्थात LPA का 90-96% के मध्य।
    • सामान्य से अधिक (Above Normal): जब वास्तविक वर्षा LPA का 104-110% हो।
    • कमी (Deficient): जब वास्तविक वर्षा का स्तर LPA के 90% से कम हो।
    • आधिक्य (Excess): जब वास्तविक वर्षा का स्तर LPA के 110% से अधिक हो।.
  • इस वर्ष मानसून के उत्तरार्द्ध में वर्षा की मात्रा के बढ़ने के कारणों में ला नीना जैसी स्थितियों को ज़िम्मेदार माना जा रहा है। 
    • ला नीना (La Nina) एक जलवायु पैटर्न (Climate Pattern) है जिसमे पूर्व-मध्य इक्वेटोरियल प्रशांत (East-Central Equatorial Pacific) में  समुद्री सतह  का औसत तापमान कम हो जाता है
    • ला नीना, एल नीनो (El Nino) के समान ही एक प्रकार की परिघटना है जिसका प्रभाव अल नीनो के विपरीत होता है।

भारत मौसम विज्ञान विभाग:

  • IMD की स्थापना वर्ष 1875 में की गई थी।
  • यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक एजेंसी है।
  • यह मौसम संबंधी जानकारियों, मौसम पूर्वानुमान तथा भूकंपीय विज्ञान से संबंधित  प्रमुख  एजेंसी है।

स्रोत: द हिंदू


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow