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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एन.एस.जी. में ‘भारत’ के प्रवेश पर चीन का खुला विरोध

  • 23 May 2017
  • 6 min read

संदर्भ
चीन का कहना है कि वह परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group - NSG) में भारत को एकतरफा प्रवेश दिलाने की किसी भी पहल का विरोध करेगा| इस प्रकार, चीन ने एन.एस.जी. में परमाणु हथियार संपन्न उन देशों की सदस्यता पर रोक लगा दी है जिन्होंने परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-proliferation Treaty -NPT) पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं|

प्रमुख बिंदु 

  • गौरतलब है कि एन.एस.जी. में गैर-परमाणु अप्रसार संधि वाले देशों की भागीदारी के संबंध में चीन की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है|
  • दरअसल, 48 सदस्य राष्ट्रों वाले एन.एस.जी. की बैठक अगले माह बर्न (स्विट्ज़रलैंड) में होगी जिसमें भारत के एन.एस.जी. में प्रवेश पर विचार-विमर्श किया जाएगा| 
  • औपचारिक तौर पर भारत पिछले वर्ष ही एन.एस.जी. की सदस्यता के लिये आवेदन कर चुका था,  लेकिन चीन ने इसकी सदस्यता को कोई स्वीकृति नहीं दी और इसके पीछे यह तर्क दिया कि जिन राष्ट्रों ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं उनके लिये सर्वमान्य सदस्यता मानदंड बनाए जाने की आवश्यकता है|
  • गौरतलब है कि पाकिस्तान (चीन का निकट सहयोगी) भी परमाणु हथियार संपन्न एक ऐसा देश है जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं| 
  • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह परमाणु प्रौद्योगिकी और हथियारों के वैश्विक निर्यात पर नियंत्रण रखता है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये ही किया जाएगा|
  • पिछले वर्ष 11 नवम्बर को वियना में हुई एन.एस.जी. की बैठक में चीन का कहना था कि ऑस्ट्रिया की राजधानी में हुई यह बैठक सीओल में हुई सामूहिक बैठक के दौरान स्वीकृत जनादेश के आधार पर गैर-एनपीटी राष्ट्रों के तकनीकी, कानूनी और राजनीतिक दृष्टिकोणों पर विचार-विमर्श करने के लिये बुलाई गई है| यह बैठक वर्ष 1975 में एन.एस.जी. की शुरुआत के पश्चात् किया गया पहला प्रयास था| यह माना गया था कि इससे एन.एस.जी. में पारदर्शिता बनी रहेगी|
  • चीन का कहना है कि सदस्यता के लिये बनाया गया कोई भी नियम भेदभाव रहित होना चाहिये तथा गैर-अप्रसार के क्षेत्र में परंपरागत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के विपरीत इसे सभी गैर-एनपीटी राष्ट्रों पर लागू किया जाना चाहिये| 
  • इसके समाधान हेतु एक द्विमार्गी दृष्टिकोण अपनाना होगा| एन.एस.जी. की सदस्यता के लिये सर्वप्रथम एक सूत्र को परिभाषित करना आवश्यक है, जबकि इसके पश्चात अगला कदम उठाया जाएगा जोकि ‘देश-विशिष्ट’(country-specific) होगा|
  • भारत का यह मत है कि परमाणु अप्रसार संधि का सदस्य होना एन.एस.जी. से जुड़ने के लिये अनिवार्य नहीं है क्योंकि ऐसा फ्रांस के संदर्भ में भी किया गया था| विदित हो कि फ्रांस परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किये बिना ही एन.एस.जी. का सदस्य बन गया था|
  • चीन के साथ वार्ता के दौरान भारत का यह कहना था कि एन.एस.जी. ‘गैर-अप्रसार’ (non-proliferation) नहीं बल्कि ‘निर्यात नियंत्रण’(export control)  है| अतः भारत के एन.एस.जी. में प्रवेश को परमाणु अप्रसार संधि की सदस्यता से नहीं जोड़ना चाहिये|

एन.एस.जी. क्या है?

  • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह परमाणु प्रौद्योगिकी और हथियारों के वैश्विक निर्यात पर नियंत्रण रखता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परमाणु ऊर्जा का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये ही किया जाएगा|
  • इसका गठन 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के प्रतिक्रियास्वरूप किया गया था|  वर्तमान में इसके 48 सदस्य राष्ट्र हैं|

एनपीटी क्या है?

  • इसका उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर भी अंकुश लगाना है|
  • अभी तक कुल 190 देश इस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके हैं|
  • केवल चार संप्रभु देश (जैसे- भारत ,इज़राइल, पाकिस्तान और उत्तरी कोरिया) ही इसके सदस्य नहीं है|
  • इस समझौते के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता प्रदान नहीं की गई है|

निष्कर्ष
इसके लिये एक द्विमार्गी दृष्टिकोण अपनाना होगा| एन.एस.जी. की सदस्यता के लिये सर्वप्रथम नियम बनाना आवश्यक होगा जबकि इसके पश्चात अगला कदम उठाया जाएगा जोकि ‘देश-विशिष्ट’(country-specific) होगा|

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