आंतरिक सुरक्षा
ब्रू शरणार्थी
प्रीलिम्स के लिये:ब्रू समुदाय मेन्स के लिये:ब्रू शरणार्थियों के समक्ष उत्पन्न मुद्दे एवं चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
मिज़ोरम से विस्थापित ब्रू समुदाय का प्रतिनिधित्त्व करने वाले तीन संगठनो ने संयुक्त आंदोलन समिति (Joint Movement Committee- JMC) द्वारा त्रिपुरा में ब्रू समुदाय के पुनर्वास के लिये प्रस्तावित स्थलों को खारिज कर दिया है। संयुक्त आंदोलन समिति गैर ब्रू समुदाय का प्रतिनिधित्त्व करने वाला एक संगठन है।
प्रमुख बिंदु:
- मिज़ोरम ब्रू विस्थापित जन फोरम (Mizoram Bru Displaced Peoples’ Forum), मिज़ोरम ब्रू विस्थापित जन समन्वय समिति (Mizoram Bru Displaced Peoples’ Coordination Committee) और ब्रू विस्थापित कल्याण समिति (Bru Displaced Welfare Committee) ने ब्रू समुदाय के पुनर्वास के लिये JMC के चार सदस्यों को निगरानी टीम में शामिल करने की माँग को भी खारिज़ कर दिया है।
- इनका कहना है कि पिछले 23 वर्षों के दौरान मिज़ोरम के पुनरुत्थान या त्रिपुरा में ब्रू समुदाय के पुनर्वास से संबंधित मुद्दे में इन सदस्यों का कोई संबंध या भागीदारी नहीं रही है।
- ब्रू प्रतिनिधियों का तर्क है कि ब्रू समुदाय के लिये प्रस्तावित स्थलों के चयन में कंचनपुर नागरिक सुरक्षा मंच और मिज़ो कन्वेंशन (JMC के प्रमुख घटक) का हस्तक्षेप पूरी तरह से अनुचित है क्योंकि वे न तो चतुर्पक्षीय समझौते के हस्ताक्षरकर्त्ता थे और न ही उनकी कोई भागीदारी थी।
- इसके अलावा उनका कहना है कि JMC द्वारा प्रस्तावित स्थल सड़क और बिजली जैसी सुविधाओं से असंबद्ध हैं तथा अस्पताल, स्कूल एवं अन्य सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं।
पृष्ठभूमि:
- 16 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार, त्रिपुरा तथा मिज़ोरम की राज्य सरकारों व ब्रू समुदाय के प्रतिनिधियों के मध्य ब्रू शरणार्थियों से जुड़ा एक चतुर्पक्षीय समझौता हुआ था।
- इस समझौते के अनुसार, लगभग 34 हज़ार ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में ही बसाया जाएगा, साथ ही उन्हें सीधे सरकारी तंत्र से जोड़कर राशन, यातायात, शिक्षा आदि की सुविधा प्रदान कर उनके पुनर्वास में सहायता प्रदान की जाएगी।
- JMC में बंगाली, मिज़ो, बौद्ध बरुआ और अन्य समुदायों के लोग शामिल थे।
- इसने वर्ष 1997 के दौरान हुए मिज़ोरम में जातीय हिंसा से बचने वाले ब्रू समुदाय के पुनर्वास के लिये 21 जुलाई को त्रिपुरा सरकार को एक ज्ञापन सौंपा था।
- इसमें उत्तरी त्रिपुरा ज़िले के कंचनपुर और पनीसागर उपखंडों में छह स्थानों को निर्दिष्ट किया गया था।
- JMC ने इन स्थानों पर लगभग 500 परिवारों को बसाने का प्रस्ताव भी रखा था।
ब्रू समुदाय:
- ब्रू समुदाय भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का एक जनजातीय समूह है। ऐतिहासिक रूप से यह एक बंजारा समुदाय है तथा इस समुदाय के लोग झूम कृषि (Slash and Burn Farming) से जुड़े रहे हैं।
- ब्रू समुदाय स्वयं को म्याँमार के शान प्रांत का मूल निवासी मानता है, इस समुदाय के लोग सदियों पहले म्याँमार से आकर भारत के मिज़ोरम राज्य में बस गए थे।
- ब्रू समुदाय के लोग पूर्वोत्तर के कई राज्यों में रहते हैं परंतु इस समुदाय की सबसे बड़ी आबादी मिज़ोरम के मामित और कोलासिब ज़िलों में पाई जाती है।
- इस समुदाय के अंतर्गत लगभग 12 उप-जातियाँ शामिल हैं।
- ब्रू समुदाय के कुछ लोग बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र में भी निवास करते हैं।
- मिज़ोरम में ब्रू समुदाय को अनुसूचित जनजाति के तहत सूचीबद्ध किया गया है, वहीं त्रिपुरा में ब्रू एक अलग जाति समूह है।
- त्रिपुरा में ब्रू समुदाय को रियांग नाम से जाना जाता है।
- इस समुदाय के लोग ब्रू भाषा बोलते हैं, वर्तमान में इस भाषा की कोई लिपि नहीं है।
- पलायन के परिणामस्वरूप समुदाय के कुछ लोग ब्रू भाषा के अतिरिक्त कुछ अन्य राज्यों की भाषाएँ जैसे-बंगाली, असमिया, मिज़ो, हिंदी और अंग्रेज़ी भी बोल लेते हैं।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
EWS आरक्षण की संविधान पीठ में सुनवाई
प्रीलिम्स के लिये103वाँ संविधान संशोधन, अनुच्छेद 15 (6), अनुच्छेद 16 (6) मेन्स के लियेआरक्षण संबंधी मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Section-EWS) के लिये नौकरियों और दाखिले में 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करने वाले संविधान संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास हस्तांतरित कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने यह भी आदेश दिया कि इस मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित याचिकाओं को भी पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को हस्तांतरित की जाए।
विवाद
- इस संबंध में दायर याचिकाओं में 103वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैद्यता को चुनौती दी है, ध्यातव्य है कि इसी संविधान संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में खंड (6) शामिल किया गया था।
- इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 31 जुलाई, 2019 को अपना निर्णय सुरक्षित रखा था।
- सर्वोच्च न्यायालय को यह तय करना था कि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लिये आरक्षण की वैद्यता से संबंधित इस मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेजा जाए अथवा नहीं।
याचिकाकर्त्ताओं के तर्क
- याचिकाकर्त्ताओं ने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि 103वाँ संविधान संशोधन स्पष्ट तौर पर अधिकातीत (Ultra Vires) है, क्योंकि यह संविधान के मूल ढाँचे में बदलाव करता है।
- याचिका में कहा गया था कि यह संविधान संशोधन वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय के विपरीत है, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि ‘पिछड़े वर्ग का निर्धारण केवल आर्थिक कसौटी के संदर्भ में नहीं किया जा सकता है।’
- याचिकाकर्त्ताओं का एक मुख्य तर्क यह भी था कि सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये लागू किये गए आरक्षण के प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लागू की गई 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करते हैं , ध्यातव्य है कि SC, ST और OBC वर्ग को पहले से ही क्रमशः 15 प्रतिशत, 7.5 प्रतिशत और 27 प्रतिशत की दर से आरक्षण दिया जा चुका है।
सरकार का पक्ष
- इस संबंध में केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के सामाजिक उत्थान के लिये आरक्षण की व्यवस्था करना आवश्यक है, क्योंकि इस वर्ग मौजूद आरक्षण प्रावधानों का लाभ नहीं मिलता है।
- सरकार ने कहा था कि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) श्रेणी में देश का एक बड़ा वर्ग शामिल है, जिसका उत्थान भी आवश्यक है।
- आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण का उद्देश्य लगभग 200 मिलियन लोगों का उत्थान करना है जो अभी भी गरीबी रेखा से नीचे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश
- मुख्य न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने कहा कि संविधान पीठ मुख्य तौर पर इस प्रश्न पर विचार करेगी कि ‘आर्थिक पिछड़ापन’ सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने के लिये एकमात्र मानदंड हो सकता है अथवा नहीं।
- साथ ही संविधान पीठ यह भी तय करेगी क्या आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो सकती है।
- गौरतलब है कि इस खंडपीठ ने 103वें संविधान संशोधन के कार्यान्वयन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
- तीन न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने कहा कि ‘संविधान के अनुच्छेद 145(3) और सर्वोच्च न्यायालय नियम, 2013 के आदेश XXXVIII नियम 1(1) से स्पष्ट है, जिन मामलों में कानून की व्याख्या संबंधी प्रश्न शामिल हैं, उन्हें संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या के लिये संविधान पीठ द्वारा सुना जाना चाहिये।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार, संविधान की व्याख्या के रूप में यदि विधि का कोई सारवान प्रश्न निहित हो तो उसका विनिश्चय करने अथवा अनुच्छेद 143 के अधीन मामलों की सुनवाई के प्रयोजन के लिये संविधान पीठ का गठन किया जाएगा जिसमें कम-से-कम पाँच न्यायाधीश होंगे।
EWS आरक्षण और 103वाँ संविधान संशोधन
- वर्ष 2019 में 103वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में संशोधन किया। संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) सम्मिलित किया, ताकि अनारक्षित वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को आरक्षण का लाभ प्रदान किया सके।
- संविधान का अनुच्छेद 15 (6) राज्य को खंड (4) और खंड (5) में उल्लेखित लोगों को छोड़कर देश के सभी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लोगों की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान बनाने और शिक्षण संस्थानों (अनुदानित तथा गैर-अनुदानित) में उनके प्रवेश हेतु एक विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार देता है, हालाँकि इसमें संविधान के अनुच्छेद 30 के खंड (1) में संदर्भित अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को शामिल नहीं किया गया है।
- संविधान का अनुच्छेद 16 (6) राज्य को यह अधिकार देता है कि वह खंड (4) में उल्लेखित वर्गों को छोड़कर देश के सभी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लोगों के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का कोई प्रावधान करें, यहाँ आरक्षण की अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत है, जो कि मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कश्मीर: भारत और चीन
प्रीलिम्स के लियेअनुच्छेद 370, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मेन्स के लियेकश्मीर को लेकर चीन का पक्ष और उसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के एक वर्ष बाद चीन ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) में जम्मू-कश्मीर की स्थिति का मुद्दा उठाया है।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है बीते वर्ष विशेष दर्जे की समाप्ति के बाद यह तीसरी बार हुआ है जब चीन ने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के समक्ष उठाया है, इससे पूर्व यह मुद्दा बीते वर्ष अगस्त माह में और इस वर्ष जनवरी माह में उठाया गया था, किंतु पिछले अवसरों की तरह इस बार भी चीन को कोई सफलता नहीं मिल सकी।
जम्मू-कश्मीर पर चीन का पक्ष
- हाल ही में चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि ‘चीन कश्मीर क्षेत्र की स्थिति पर बारीकी से नज़र बनाए हुए है और कश्मीर के मुद्दे पर चीन की स्थिति सुसंगत और स्पष्ट है।
- कश्मीर के मुद्दे पर अपने पक्ष को लेकर चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस मुद्दे को लेकर चीन हमेशा से तीन बातों पर ज़ोर देता हुआ आया है-
- पहला यह कि कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच इतिहास का बचा हुआ एक विवाद है।
- दूसरा यह कि कश्मीर क्षेत्र की यथास्थिति में कोई भी एकतरफा परिवर्तन पूर्ण रूप से अवैध और अमान्य है।
- तीसरा और अंतिम यह कि कश्मीर क्षेत्र का मुद्दा संबंधित पक्षों के बीच बातचीत और परामर्श के माध्यम से शांतिपूर्वक ढंग से हल होना चाहिये।
भारत ने क्या कहा?
- चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में कश्मीर के मुद्दे को उठाने के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ‘चीन को इस मामले में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है, और इसलिये चीन को अन्य देशों के आंतरिक मामलों में टिप्पणी करने से बचना चाहिये।
- संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी. एस. तिरुमूर्ति ने कहा कि ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की हालिया बैठक बंद कमरे में आयोजित पूर्ण रूप से एक अनौपचारिक बैठक थी, जिसका कोई भी रिकॉर्ड संग्रहित नहीं किया गया।’
- भारत ने कई अवसरों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष स्पष्ट किया है कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करना भारत का आंतरिक मामला था।
निहितार्थ
- गौरतलब है कि बीते कुछ वर्षों में जम्मू-कश्मीर को लेकर चीन की स्थिति में काफी परिवर्तन आया है, पहले चीन यह कहते हुए अपनी तटस्थता पर बल देता था कि कश्मीर एक ऐतिहासिक मुद्दा है, जिसे भारत और पाकिस्तान द्वारा आपसी समन्वय के माध्यम से सुलझा जाना चाहिये।
- हालाँकि बीते एक वर्ष में खासतौर पर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की समाप्ति के बाद से कश्मीर को लेकर चीन के पक्ष में काफी परिवर्तन आया है और वह स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान की ओर अधिक झुका हुआ दिखाई दे रहा है।
- इस बीच चीन ने कई बार जम्मू-कश्मीर की स्थिति को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के समक्ष उठाकर कश्मीर के मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की कोशिश की है।
जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन की पहली वर्षगांठ
- संयोगवश यह पूरा घटनाक्रम जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन की पहली वर्षगांठ के अवसर पर ही घटित हुआ। गौरतलब है कि बीते वर्ष 5 अगस्त के ही दिन केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाकर राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में कर दिया था।
- इसी के साथ जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान रद्द हो गया था और वहाँ भारतीय संविधान लागू हो गया था। वहीं जम्मू-कश्मीर के अलग झंडे की अवधारणा भी समाप्त हो गई।
- राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करते हुए सरकार ने तर्क दिया था कि इस निर्णय के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में विकास कार्य सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- 5 अगस्त और उसके पश्चात् कश्मीर घाटी में हज़ारों लोगों को हिरासत में लिया गया, इनमें से कई लोगों को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act-PSA) के तहत हिरासत में लिया गया, जिसमें पहली बार राज्य के मुख्य धारा के नेता भी शामिल थे।
- साथ ही क्षेत्र विशिष्ट में इंटरनेट सेवाएँ भी पूरी तरह से बंद कर दी गई थीं, जिन्हें अभी तक पूरी तरह बहाल नहीं किया गया है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट
- मानवाधिकारों के मुद्दे पर हाल ही में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की एक रिपोर्ट में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) से जम्मू-कश्मीर में कार्यालय स्थापित करने का आग्रह किया गया है।
- इसके अलावा संगठन ने सरकार से सभी राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को नज़रबंदी से मुक्त करने और राज्य में 4G मोबाइल इंटरनेट सेवाएँ बहाल करने का भी आह्वान किया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
COVID-19 तथा विटामिन-D की कमी
प्रीलिम्स के लिये:COVID-19, ऑस्टियोमलेशिया,ऑस्टियोपोरोसिस, विटामिन-D मेन्स के लिये:भारतीयों में विटामिन-D की कमी के कारण एवं प्रभाव, कुपोषण एवं विटामिन-D की कमी को दूर करने के लिये सरकारी प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शोधकर्त्ताओं द्वारा इस बात का दावा किया गया है कि विटामिन-D की कमी उन COVID-19 संक्रमित लोगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है जो उच्च जोखिम रोगों (मधुमेह, हृदय रोग, निमोनिया, मोटापा ) तथा धूम्रपान की लत से ग्रसित हैं।
प्रमुख बिंदु:
- इसका संबंध श्वसन पथ (Respiratory Tract) के संक्रमण तथा फेफड़ों की चोट (Lung Injury) से भी संबंधित है।
- अलग-अलग स्थान (शहरी या ग्रामीण), उम्र या लिंग के बावजूद भी भारत में एक बड़ी आबादी विटामिन-D की कमी से पीड़ित है।
- भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है जहाँ धूप प्रचुर मात्रा में पहुँचती है तथा शरीर में विटामिन-D के निर्माण को प्रेरित/उत्तेजित करती है।
- इंडियन जर्नल ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज़्म (Indian Journal of Endocrinology and Metabolism) के वर्ष 2017 में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, भारत के विभिन्न राज्यों के लोगों में विटामिन-D का स्तर 3.15 नैनोग्राम/मिलीलीटर से लेकर 52.9 नैनोग्राम/मिलीलीटर तक था, जो कि 30-100 नैनोग्राम/ मिलीलीटर के आवश्यक स्तर से काफी कम था।
- दक्षिण भारतीयों में विटामिन-D का स्तर 15.74-19.16 नैनोग्राम/मिलीलीटर के बीच देखा गया। महिलाओं में पुरुषों की तुलना में लगातार विटामिन-D का निम्न स्तर देखा गया।
- विटामिन-D की कमी ग्रेट ब्रिटेन में बसे भारतीय उपमहाद्वीप मूल के लोगों में भी पाई जाती है।
- इससे इस क्षेत्र के लोगों की आनुवांशिकी तथा विटामिन-D के चयापचय के मध्य संबंध का पता चलता है।
- राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो (National Nutrition Monitoring Bureau- NNMB) से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में भारतीय जनसंख्या में कैल्शियम का औसत स्तर प्रति दिन 700 यूनिट से 300-400 यूनिट तक कम हो गया है।
- मानव शरीर में प्रति दिन कैल्शियम का सामान्य आवश्यक स्तर 800-1,000 यूनिट है, विटामिन- D शरीर द्वारा कैल्शियम के अवशोषण में मदद करता है।
- हड्डियों को मज़बूती प्रदान करने के लिये लिये शरीर को कैल्शियम की आवश्यकता होती है। इसके अलावा मांसपेशियों के संचालन में तथा तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क एवं शरीर के प्रत्येक हिस्से के मध्य सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये भी कैल्शियम की आवश्यकता होती है।
- यह हार्मोन एवं एंज़ाइमों को स्त्रावित करने में भी मदद करता है जो मानव शरीर में लगभग प्रत्येक कार्य को प्रभावित करते हैं।
- भारतीयों में कैल्शियम की यह कमी इस तथ्य के विपरीत है कि भारत विश्व में प्रति दिन अधिकतम दूध का उत्पादन करने वाला देश है जो कैल्शियम का एक समृद्ध स्रोत है।
विटामिन-D
- विटामिन-D वसा में घुलनशील विटामिन है, जो प्राकृतिक रूप से बहुत कम खाद्य पदार्थों जैसे- वसायुक्त मछली एवं मछली के यकृत के तेल, सूअर के यकृत, पनीर एवं अंडे की जर्दी में पाया जाता है।
- इसका स्राव शरीर की कोशिकाओं द्वारा उस समय किया जाता है जब सूर्य के प्रकाश की पराबैंगनी किरणें त्वचा पर पड़ती हैं तथा विटामिन-D के संश्लेषण को प्रेरित/उत्तेजित करती हैं।
- सूर्य का प्रकाश कोलेस्ट्रॉल-आधारित अणु में एक रासायनिक प्रतिक्रिया को प्रेरित कर इसे यकृत में कैल्सीडियोल (Calcidiol) तथा गुर्दे में कैल्सीट्रियोल (Calcitriol) में परिवर्तित करता है।
- तकनीकी रूप से 25-OHD (25-Hydroxyvitamin D) कहे जाने वाले ये अणु शारीरिक रूप से सक्रिय होते हैं।
कार्य:
- विटामिन D रक्त में कैल्शियम और फॉस्फेट की पर्याप्त मात्रा को बनाए रखने में मदद करता है जो हड्डियों को कमज़ोर होने से रोकते हैं।
- विटामिन-D के अन्य कार्यों में कोशिका वृद्धि, न्यूरोमस्कुलर, प्रतिरक्षा कार्य एवं सूजन को कम करना शामिल है।
आवश्यक मात्रा:
- एक स्वास्थ शरीर में 30-100 नैनोग्राम/ मिलीलीटर की सीमा में 25-ओएचडी का स्तर पर्याप्त माना जाता है। 21-29 नैनोग्राम/मिलीलीटर के बीच के स्तर को अपर्याप्त माना जाता है तथा 20 नैनोग्राम/मिलीलीटर से नीचे का स्तर व्यक्ति में विटामिन-D की कमी को दर्शाता है।
प्रभाव:
- विटामिन-D की कमी से बच्चों में रिकेट्स तथा वयस्कों में ऑस्टियोमलेशिया (हड्डियों का नरम होना) रोग हो जाता है।
- विटामिन-D की कमी से हड्डियाँ पतली, भंगुर हो जाती है तथा इसमें अस्थिसुषिरता (ऑस्टियोपोरोसिस) की समस्या उप्तन्न हो जाती है।
भारत में पोषण:
- भारत में आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूख, कुपोषण तथा पोषण संबंधी कमियों से ग्रस्त है।
- छिपी हुई भूख की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब लोगों द्वारा खाए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता उनके शरीर के लिये पर्याप्त पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाती है। इस प्रकार के भोजन में उन आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसे विटामिन और खनिजों की कमी है जो उनके वृद्धि एवं विकास के लिये आवश्यक होते हैं।
- यूनिसेफ रिपोर्ट, एडोलेसेंट्स, डाइट्स एंड न्यूट्रिशन: ग्रोइंग विल इन चेंजिंग वर्ल्ड, 2019 (Adolescents, Diets and Nutrition: Growing Well in a Changing World, 2019) के अनुसार भारत में 80% से अधिक किशोर छिपी हुई भूख की समस्या से ग्रसित हैं।
- भारत के शहरी क्षेत्रों में 5 वर्ष से कम आयु के 63% बच्चे (ग्रामीण क्षेत्रों में 72%) एनीमिक (शरीर में रक्त का स्तर आवश्यक स्तर से कम होना) पाए जाते हैं तथा 55% महिलाएँ और 24% पुरुष एनीमिक पाए जाते हैं।
- भारत में भोजन के लिये उत्पादन, खरीद और वितरण प्रणाली अभी भी खाद्य सुरक्षा के मुद्दों को हल करने में सक्षम नहीं है।
- उदाहरण के लिये भारत में COVID-19 महामारी के समय गरीबों (प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना) को दिये जा रहे भोजन में दाल एवं अनाज तो शामिल हैं लेकिन इनमें कच्ची या पकी हुई सब्जियों की कमी है।
- अभी भी एक संतुलित आहार लेना सभी भारतीयों के लिये संभव नहीं है।
- संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी ‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड, 2020’ (State of Food Security and Nutrition in the World 2020) के अनुसार, प्रत्येक देश में खाद्य सुरक्षा और पोषण को ध्यान में रखते हुए पोषक तत्वों से पूर्ण एक समय के भोजन की खुराक की कीमत 25 रूपए/खुराक तथा एक 'स्वस्थ आहार' की कीमत 100 रुपए/दिन है।
सरकारी पहल:
- मध्याह्न भोजन योजना (Mid-day Meal Scheme) गरीब स्कूल जाने वाले बच्चों में पोषण संबंधी कमियों को दूर करने में मददगार साबित हुई है।
- एकीकृत बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services) के तहत आंगनवाड़ियों के माध्यम से संचालित पूर्व स्कूली बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिये पोषण कार्यक्रम महत्त्वपूर्ण है।
- सरकार, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act-NFSA) तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System-PDS) के माध्यम से समाज के गरीब वर्ग की खाद्य आवश्यकताओं को सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है।
- वर्ष 2017-18 में शुरू किये गए पोषण अभियान का उद्देश्य बेहतर निगरानी एवं सामुदायिक सहयोग के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में तालमेल एवं एकरूपता स्थापित करते हुए बौनेपन, कम पोषण, एनीमिया तथा कम वजन वाले शिशुओं को संख्या को कम करना है।
- बायोफोर्टिफिकेशन: पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा विभिन्न फसलों जैसे गाजर (मधुबन गजर), गेहूं (MACS 4028) आदि के लिये एग्रोनोमिक पद्धति, पारंपरिक संयंत्र प्रजनन, या आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से खाद्य फसलों की पोषण गुणवत्ता में सुधार किया जा रहा है।
सुझाव:
- गरीबों और स्कूली बच्चों के लिये मौजूदा ‘राशन’ में विभिन्न आवश्यक पोषण तत्वों को शामिल करने के संदर्भ में केंद्र और राज्य सरकारों को पोषण विशेषज्ञों एवं संस्थानों की सलाह लेने की ज़रूरत है।
- गरीबों या बच्चों को दिये जाने वाले भोजन में पालक एवं अन्य हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, फली, मटर, गाजर, टमाटर, आलू, दूध/दही,अंडा तथा फलों में केले इसके अलावा, ओमेगा 3 और 6 फैटी एसिड शामिल होने चाहिये।
- विटामिन-D और कैल्शियम के अलावा, अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों (जैसे बी कॉम्प्लेक्स विटामिन और Fe, Zn, I, Se, Zn) से पूर्ण भोजन ग़रीबों को उपलब्ध किया जाना चाहिये ताकि उनमें किसी भी संक्रमण के खिलाफ प्रतिरक्षा को विकसित किया जा सके।
- सरकार चिकित्सक और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से परामर्श करके मुफ्त में विटामिन-D, अन्य विटामिन एवं कैल्शियम की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकती है।
- कई भारतीय दवा कंपनियाँ इस प्रकार की दवाओं का निर्माण करती हैं। भारतीय कंपनियों द्वारा इस प्रकार की दवाओं के सप्लिमेंट्स को प्राप्त करना सरकार के 'मेक इन इंडिया' पहल के अनुरूप होगा।
- समुद्री शैवालों का सेवन काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। समुद्री शैवाल शाकाहारी हैं तथा इनमें विटामिन, खनिज, आयोडीन तथा ओमेगा 3 फैटी एसिड प्रचुर मात्रा में विद्यमान होते हैं। चूंकि भारत में एक लंबी तटरेखा है, इसलिये ये भारतीयों के लिये एक सस्ती पोषक खुराक हो सकती है।
- विटामिन-D की प्राप्ति के लिये स्कूल में छात्रों को प्रतिदिन 20-30 मिनट धूप में खड़ा किया जा सकता हैं तथा प्रति दिन एक घंटे के लिये शारीरिक व्यायाम और खेलने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- इसके अलावा, मानव शरीर के के लिये स्वस्थ भोजन एवं पोषण संबंधी आवश्यकताओं के महत्त्व के बारे में लोगों के मध्य जागरूकता आवश्यक है।
आगे की राह:
एक स्वस्थ आबादी को विकसित करके ही COVID-19 जैसी महामारी से लड़ने के लिये प्रतिरक्षा क्षमता को विकसित किया जा सकता है। विटामिन-D एवं कैल्शियम की कमी को दूर करके ही सतत् विकास लक्ष्य-2 ( Sustainable Development Goal-SDG-2) में वर्णित भूख की समस्या को समाप्त किया जा सकता है जो सतत् विकास लक्ष्य-3 (SDG-3) अर्थात सभी के अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिये एक आवश्यक कदम है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पाकिस्तान का नया मानचित्र
प्रीलिम्स के लिये:भारत और उसके पड़ोसी देशों के बीच विवादित क्षेत्र मेन्स के लिये:सर क्रीक की अवस्थिति और विवाद |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर, लद्दाख, सर क्रीक और जूनागढ़ को शामिल करते हुए एक नए राजनीतिक मानचित्र का अनावरण किया है।
प्रमुख बिंदु:
- यह मानचित्र अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जे के निराकरण/समाप्ति की पहली वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर जारी किया गया है।
- मानचित्र में पूरे जम्मू और कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र के रूप में दर्शाया गया है तथा यह कश्मीर के पूर्व में कोई सीमा नहीं दर्शाता है।
- इसके अलावा इसमें इस्लामाबाद में कश्मीर राजमार्ग नाम बदलकर श्रीनगर राजमार्ग के रूप में दर्शाया गया है।
- यह दावा करता है कि सियाचिन, सर क्रीक के क्षेत्र और गुजरात में जूनागढ़ की पूर्ववर्ती स्थिति पाकिस्तान के क्षेत्र के रूप में है।
- यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने जूनागढ़ को अपने क्षेत्र के रूप में चित्रित करने की कोशिश की है। वर्ष 2012 के पाकिस्तान के एटलस ने भी जूनागढ़ को पाकिस्तान के क्षेत्र के रूप में चित्रित किया था।
- नक्शे में संघीय रूप से प्रशासित जनजातीय क्षेत्र (Federally Administered Tribal Areas- FATA) को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के हिस्से के रूप में भी दिखाया गया है।
भारत की प्रतिक्रिया:
- इस कदम पर तेज़ी से प्रतिक्रिया देते हुए, भारत ने इसे "राजनीतिक गैर-बराबरी की एक कवायद करार (Exercise In Political Absurdity) दिया है" और इन हास्यास्पद दावों की न तो कोई कानूनी वैधता है और न ही अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता है, कहते हुए इस मानचित्र को खारिज कर दिया।
भारत के लिये चिंता:
- हाल के दिनों में यह दूसरी बार है जब भारत के पड़ोसी देश ने भारत के क्षेत्रों पर दावा करते हुए एक नया मानचित्र प्रकाशित किया है। इससे पहले नेपाल ऐसा करने वाला पहला देश था।
- नेपाल ने कालापानी क्षेत्र पर अपना दावा करते हुए अपने मानचित्र को प्रकाशित किया था।
- इसके अलावा नेपाल और पाकिस्तान की चीन के साथ निकटता।
- हाल ही में, चीन ने भी अपने पश्चिमी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) के साथ अपने पक्ष में यथास्थिति बदल दी।
सर क्रीक लाइन:
- यह कच्छ के रण में भारत और पाकिस्तान के मध्य विवादित जल की 96 किलोमीटर लंबी पट्टी है।
- मुख्य विवाद कच्छ और सिंध के बीच की समुद्री सीमा रेखा की अस्पष्ट व्याख्या है।
- पाकिस्तान इसके मुहाने के पूर्वी किनारे का अनुसरण करने के लिये लाइन का दावा करता है जबकि भारत एक केंद्रीय रेखा का दावा करता है।
- पाकिस्तान द्वारा प्रस्तुत दावों के अनुसार, वर्ष 1914 में तत्कालीन सिंध सरकार और कच्छ के राव महाराज के बीच हस्ताक्षरित ‘बंबई सरकार संकल्प’ (Bombay Government Resolution) के अनुच्छेद 9 एवं 10 के अनुसार पूरे क्रीक क्षेत्र पर उसी का अधिकार है।
- ध्यातव्य है कि इस संकल्प-पत्र में इन दोनों क्षेत्रों के बीच की सीमाओं को सीमांकित किया गया। इसमें क्रीक को सिंध के हिस्से के रूप में शामिल किया गया है। तब से क्रीक के पूर्वी भाग की सीमा को ग्रीन लाइन (Green Line) के रूप में जाना जाता है।
- भारत का कहना है कि सर क्रीक को थालवेग सिद्धांत के अनुसार दोनों देशों के बीच विभाजित किया जाना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत, एक थालवेग प्राथमिक जलमार्ग के बीच वह जलमार्ग है जो राज्यों के मध्य सीमा रेखा को परिभाषित करता है।
- भारत और पाकिस्तान के मध्य सर क्रीक क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सीमा और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (International Maritime Boundary line- IMBL) को सीमांकित नहीं किया गया है।
सियाचिन ग्लेशियर:
- सियाचिन ग्लेशियर लद्दाख का हिस्सा है जिसे अब केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया गया है। यह दुनिया के गैर-ध्रुवीय क्षेत्रों में दूसरा सबसे लंबा ग्लेशियर है।
- यह हिमालय में पूर्वी काराकोरम श्रेणी में स्थित है, जो कि प्वाइंट NJ9842 के उत्तर-पूर्व में है, जहाँ भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा समाप्त होती है।
- यह दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है।
संघीय रूप से प्रशासित जनजातीय क्षेत्र (FATA):
- संघीय रूप से प्रशासित जनजातीय क्षेत्र उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में एक अर्द्ध-स्वायत्त जनजातीय क्षेत्र था जो वर्ष 1947 से अस्तित्त्व में आया।
- वर्ष 2018 में इसे इसके पड़ोसी प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में मिला दिया गया था।
आगे की राह:
- पिछले एक वर्ष में, पाकिस्तान ने कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जम्मू एवं कश्मीर राज्य को केंद्रशासित प्रदेश बनाने के मुद्दे को उठाया है लेकिन इस मुद्दे पर उसे कोई व्यापक समर्थन नहीं मिला है।
- नेपाल के साथ अनबन होने के साथ, श्रीलंका का चीन की ओर झुक जाना, बांग्लादेश के साथ नागरिकता (संशोधन), 2019 को लेकर विवाद और भारत का ईरान की चाबहार रेलवे लिंक परियोजना से बाहर (जिसका निर्माण भारत को करना था) हो जाना, भारत के प्रभाव क्षेत्र विशेष रूप से इसके पड़ोस और विस्तारित पड़ोस में सापेक्ष गिरावट के कारण हैं। यह विदेश नीति की गहन परीक्षा की मांग करता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
RBI की मौद्रिक नीति की समीक्षा
प्रीलिम्स के लिये:मौद्रिक नीति, मौद्रिक नीति के साधन, LAF, SLR, CRR, RRR, RR, MSF, MSS, OMO मेन्स के लिये:मौद्रिक नीति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हुई ‘मौद्रिक नीति समिति’ (Monetary Policy Committee) की बैठक में ‘भारतीय रिज़र्व बैंक’ (Reserve Bank of India- RBI) ने मौद्रिक नीतिगत दरों को यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया है।
प्रमुख बिंदु:
- MPC ने रेपो दर (Repo Rate) को 4% पर, सीमांत स्थायी सुविधा दर (Marginal Standing Facility Rate) और बैंक दर (Bank Rate) को भी 4.25% पर यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया है।
आयात में कमी:
- कमज़ोर घरेलू मांग और कच्चे तेल की कम कीमतों के कारण जून में आयात में तेज़ी से कमी देखी गई है।
विदेशी मुद्रा भंडार:
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (31 जुलाई, 2020 तक) 56.8 बिलियन डॉलर की वृद्धि के साथ वर्तमान में 536.6 बिलियन डॉलर है।
वास्तविक जीडीपी:
- वर्ष 2020-21 में वास्तविक जीडीपी वृद्धि के नकारात्मक रहने का अनुमान है तथा पहली छमाही में इसके संकुचित (Contraction) रहने का अनुमान है।
मांग पर प्रभाव:
- जुलाई माह का उपभोक्ता सर्वेक्षण बताता है कि उपभोक्ताओं का अर्थव्यवस्था में विश्वास काफी निराशावादी है, इसलिये मांग के बुरी तरह प्रभावित रहने का अनुमान है।
उच्च-आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतक:
- अप्रैल और मई की कुछ आर्थिक गतिविधियों को लॉकडाउन के बाद पुन: प्रारंभ किया गया है जिससे ‘उच्च-आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतकों’ में कुछ सुधार देखने को मिला।
- लेकिन महामारी के संक्रमण के फिर से बढ़ने से अनेक क्षेत्रों में पुन: लॉकडाउन लगाया गया जिससे आर्थिक संकेतकों में देखा गया सुधार समाप्त हो गया।
उच्च-आवृत्ति वाले आर्थिक संकेतक (High-frequency Economic Indicators):
- यह विभिन्न आर्थिक गतिविधियों का एक सूचकांक होता है । ये संकेतक नीति निर्माताओं को आर्थिक गतिविधियों से संबंधित आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं जिनके आधार पर वार्षिक और तिमाही जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया जाता है।
मौद्रिक नीति का लक्ष्य:
- मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य आर्थिक वृद्धि को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना होता है। मूल्य स्थिरता स्थायी विकास के लिये एक आवश्यक है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम-1934 के अनुसार, भारत सरकार RBI से परामर्श करके प्रत्येक पाँच वर्षों में एक बार मुद्रास्फीति लक्ष्य को निर्धारित करेगी।
- केंद्र सरकार ने इसे 'उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (CPI) के अनुसार, 5 अगस्त, 2016 से 31 मार्च, 2021 की अवधि के लिये 4 प्रतिशत निर्धारित किया है। जिसकी ऊपरी सीमा 6 प्रतिशत और निम्न सीमा 2 प्रतिशत है।
मौद्रिक नीति के साधन:
- ऐसे कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उपकरण हैं जिनका उपयोग मौद्रिक नीति को लागू करने के लिये किया जाता है।
रेपो दर (Repo Rate-RR):
- वह स्थिर ब्याज दर जिस पर RBI, बैंकों को 'तरलता समायोजन सुविधा' (LAF) के तहत सरकार और अन्य स्वीकृत प्रतिभूतियों की संपार्श्विक (Collateral) के अधीन ओवरनाइट (अल्पकालिक तरलता) तरलता प्रदान करता है।
रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate-RRR):
- वह स्थिर ब्याज दर जिस पर रिज़र्व बैंक LAF के तहत पात्र सरकारी प्रतिभूतियों के संपार्श्विक (Collateral) के खिलाफ बैंकों से ओवरनाइट तरलता को अवशोषित करता है।
तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility-LAF):
- LAF में ओवरनाइट तरलता के साथ-साथ टर्म रेपो की नीलामी भी शामिल है।
सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF):
- वह सुविधा जिसके तहत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक अपने ‘वैधानिक तरलता अनुपात’ (SLR) पोर्टफोलियो में तक निश्चित सीमा तक कमी (Dipping) करके ओवरनाइट सुविधा के तहत अतिरिक्त राशि उधार ले सकते हैं।
बैंक दर (Bank Rate):
- जिस सामान्य ब्याज दर पर रिज़र्व बैंक द्वारा अन्य बैंकों को पैसा उधार दिया जाता है उसे बैंक दर कहते हैं। इसके द्वारा रिज़र्व बैंक साख नियंत्रण (Credit Control) का काम करता है।
- इस दर को MSF दर से संरेखित किया गया है, अत: जब-जब नीति रेपो दर में बदलाव किया जाता है तब MSF दर में भी परिवर्तन होता है।
नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio- CRR):
- प्रत्येक बैंक को अपने कुल नकद रिज़र्व का एक निश्चित हिस्सा रिज़र्व बैंक के पास रखना होता है, जिसे नकद आरक्षित अनुपात कहा जाता है।
वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio- SLR):
- शुद्ध माँग और समय देयताओं (NDTL) का हिस्सा जिसे एक बैंक को सुरक्षित और तरल संपत्ति में बनाए रखने की आवश्यकता होती है। जैसे कि सरकारी प्रतिभूतियाँ, नकदी और सोना।
खुले बाज़ार के परिचालन (Open Market Operations- OMO):
- इनमें स्थायी तरलता को बढ़ाने और अवशोषण के लिये क्रमशः सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री दोनों शामिल हैं।
बाज़ार स्थिरीकरण योजना (Market Stabilisation Scheme- MSS):
- अधिक स्थायी अधिशेष तरलता को लघु-दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों और ट्रेजरी बिलों की बिक्री के माध्यम से अवशोषित किया जाता है।
मौद्रिक नीति समिति (MPC):
- MPC का गठन नीतिगत ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिये जून, 2016 को किया गया था।
- वित्त अधिनियम 2016 द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम-1934 में संशोधन किया गया, ताकि मौद्रिक नीति समिति को वैधानिक और संस्थागत रूप प्रदान किया जा सके।
- मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होते हैं।
- RBI गवर्नर, समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
वन नेशन-वन राशन कार्ड
प्रीलिम्स के लिये:वन नेशन-वन राशन कार्ड योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम मेन्स के लिये:प्रवासी एवं गरीब लोगों के संदर्भ में वन नेशन-वन राशन कार्ड योजना का महत्त्व तथा इसके कार्यान्वयन से संबंधित समस्याएँ/मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, मणिपुर, नागालैंड, उत्तराखंड राज्यों एवं जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश (Union Territory-UT) को ‘वन नेशन-वन राशन कार्ड’ (One Nation-One Ration Card- ONORC) योजना में शामिल किया गया हैं।
प्रमुख बिंदु:
- ‘वन नेशन-वन राशन कार्ड’ योजना में अब तक कुल 24 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को जोड़ा जा चुका है।
- शेष राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को मार्च 2021 तक इस योजना के तहत एकीकृत करने का लक्ष्य रखा गया है।
ONORC योजना:
- इस योज़ना को वर्ष 2019 में राशन कार्डों की अंतर-राज्यीय पोर्टेबिलिटी (Inter-State Portability) सुविधा के तहत शुरू किया गया था।
- इस योज़ना के तहत प्रवासी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (Migratory National Food Security Act- NFSA), 2013 के लाभार्थी देश में कहीं भी अपनी पसंद के किसी भी उचित मूल्य की दुकान ( Fair Price Shop- FPS) से अपने हिस्से के खाद्यान्न कोटे की खरीद कर सकते हैं।
- ऐसा योजना के तहत पात्र व्यक्ति द्वारा आधार द्वारा प्रमाणिक अपने मौजूदा राशन कार्ड का उपयोग करके किया जा सकता है।
- इस योजना में 24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग 65 करोड़ लाभार्थी शामिल है, जिनमें से कुल 80% लाभार्थी NFSAके अंतर्गत हैं, जो अब 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कहीं से भी रियायती दर पर राशन प्राप्त कर सकते हैं।
ONORC योजना के लाभ:
- पारदर्शिता: इस योज़ना के माध्यम से खाद्यान्नों के वितरण में अधिक पारदर्शिता एवं दक्षता को बढ़ावा मिलेगा।
- पहचान: यह नकली/डुप्लिकेट राशन कार्डों की पहचान करने के लिये तंत्र को और अधिक सुद्धढ स्थिति प्रदान करेगा तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public distribution system- PDS) के लाभार्थियों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पसंद के उचित मूल्य की दुकानों से खाद्यान्न को लेने/खरीदने का विकल्प प्रदान करेगा।
- खाद्य सुरक्षा: यह योजना उन प्रवासी मज़दूरों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी, जो बेहतर रोज़गार के अवसर तलाशने में दूसरे राज्यों में जाते हैं।
- सतत विकास लक्ष्य: यह योजना वर्ष 2030 तक भूख को खत्म करने के लिये सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Developmental Goals- SDG)- 2 के तहत निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार साबित होगी।
योजना के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दे:
- राशन का वितरण: राशन का वितरण लॉकडाउन के दौरान एक मुद्दा बन गया था जब प्रवासी श्रमिकों के पास उन राज्यों में राशन कार्ड नहीं थे जहाँ वे रह रहे थे। इसके चलते प्रवासियों ने तालाबंदी के बीच अपने गाँवों की ओर रुख किया।
- लॉजिस्टिक मुद्दे: एक ‘उचित मूल्य की दुकान’ के विक्रेता को मासिक आधार पर उसके पास पंजीकृत लोगों की संख्या के अनुसार निर्धारित खाद्यान कोटे की मात्रा मुश्किल से प्राप्त हो पाती है।
- जब यह योजना पूरी तरह से लागू होगी तो इसके संचालन में विवाद उत्पन्न हो सकते हैं क्योंकि कुछ उचित मूल्य की दुकानों के क्रताओं के पास अधिक कार्डधारक होंगे जबकि कुछ के पास लोगों के प्रवास कर जाने के कारण कार्डधारकों की कम संख्या होगी।
- आँकड़ों की कमी: राज्यों के भीतर तथा एक राज्य से दूसरे राज्य में काम की तलाश के लिये पलायन करने वाले गरीब परिवारों का तथा श्रमिकों को रोज़गार देने वाले क्षेत्रों का कोई सटीक डेटा उपलब्ध नहीं है।
सुझाव:
- असंगठित क्षेत्र के सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 (The Unorganised Sector Social Security Act, 2008) के कल्याणकारी बोर्डों की एक प्रणाली के माध्यम से अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के दस्तावेजीकरण की प्रणाली तैयार की गई थी।
- प्रवासी श्रमिकों के संबंध में विश्वसनीय आँकड़ों को प्राप्त करने के लिये इसके दस्तावज़ों एवं मूल प्रावधानों को लागू किया जाना चाहिये।
- एक पूर्ण रूप से समर्पित ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ONORC योजना से संबंधित तार्किक मुद्दों की चुनौती को हल कर सकता है।
- ONORC के क्रियान्वयन का मूल्यांकन करने के लिये सोशल ऑडिटिंग को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act-NFSA) खाद्य सुरक्षा को पोषण सुरक्षा के रूप में परिभाषित करता है।
- समेकित बाल विकास सेवाओं की वहनीयता, मध्याह्न भोजन, टीकाकरण, स्वास्थ्य देखभाल और गरीब प्रवासी परिवारों के लिये अन्य सुविधाओं की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। इन्हें अधिक वहनीय बनाए जाने की आवश्यकता है।
- दीर्घकालीन समाधान के तौर पर गरीबों के हितों को ध्यान में रखते हुए,सार्वजनिक वितरण प्रणाली को एक फुलप्रूफ फूड कूपन सिस्टम या फिर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है जहाँ गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवार कूपन के माध्यम से या नकद भुगतान करके किसी भी किराने की दुकान से चावल, दाल, चीनी और तेल खरीद सकते हैं।